१३५

भागसूचना

पञ्चत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

धृतराष्ट्रका खेदपूर्वक भीमसेनके बलका वर्णन और अपने पुत्रोंकी निन्दा करना तथा भीमके द्वारा दुर्मर्षण आदि धृतराष्ट्रके पाँच पुत्रोंका वध

मूलम् (वचनम्)

धृतराष्ट्र उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

दैवमेव परं मन्ये धिक् पौरुषमनर्थकम्।
यत्राधिरथिरायत्तो नातरत् पाण्डवं रणे ॥ १ ॥

मूलम्

दैवमेव परं मन्ये धिक् पौरुषमनर्थकम्।
यत्राधिरथिरायत्तो नातरत् पाण्डवं रणे ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतराष्ट्रने कहा— संजय! मैं तो दैवको ही बड़ा मानता हूँ। पुरुषार्थ तो व्यर्थ है। उसे धिक्कार है; क्योंकि उसमें स्थित हुआ अधिरथपुत्र कर्ण सब प्रकारसे प्रयत्न करके भी रणक्षेत्रमें पाण्डुनन्दन भीमसे पार न पा सका॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कर्णः पार्थान् सगोविन्दान् जेतुमुत्सहते रणे।
न च कर्णसमं योधं लोके पश्यामि कञ्चन ॥ २ ॥

मूलम्

कर्णः पार्थान् सगोविन्दान् जेतुमुत्सहते रणे।
न च कर्णसमं योधं लोके पश्यामि कञ्चन ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘कर्ण युद्धस्थलमें कृष्णसहित समस्त कुन्तीकुमारोंको जीतनेका उत्साह रखता है। मैं संसारमें कर्णके समान दूसरे किसी योद्धाको नहीं देख रहा हूँ’॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इति दुर्योधनस्याहमश्रौषं जल्पतो मुहुः।
कर्णो हि बलवान् शूरो दृढधन्वा जितक्लमः ॥ ३ ॥
इति मामब्रवीत् सूत मन्दो दुर्योधनः पुरा।
वसुषेणसहायं मां नालं देवाऽपि संयुगे ॥ ४ ॥
किं नु पाण्डुसुता राजन् गतसत्त्वा विचेतसः।

मूलम्

इति दुर्योधनस्याहमश्रौषं जल्पतो मुहुः।
कर्णो हि बलवान् शूरो दृढधन्वा जितक्लमः ॥ ३ ॥
इति मामब्रवीत् सूत मन्दो दुर्योधनः पुरा।
वसुषेणसहायं मां नालं देवाऽपि संयुगे ॥ ४ ॥
किं नु पाण्डुसुता राजन् गतसत्त्वा विचेतसः।

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार दुर्योधनके मुँहसे मैंने बारंबार सुना है। सूत! मूर्ख दुर्योधनने पहले मुझसे यह भी कहा था कि ‘कर्ण बलवान्, शूरवीर, सुदृढ़ धनुर्धर और युद्धमें श्रम तथा थकावटपर विजय पानेवाला है। राजन्! कर्णके साथ रहनेपर समरभूमिमें मुझे देवता भी परास्त नहीं कर सकते; फिर शक्तिहीन और विवेकशून्य पाण्डव मेरा क्या कर सकते हैं?’॥३-४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्र तं निर्जितं दृष्ट्वा भुजङ्गमिव निर्विषम् ॥ ५ ॥
युद्धात् कर्णमपक्रान्तं किंस्विद् दुर्योधनोऽब्रवीत्।

मूलम्

तत्र तं निर्जितं दृष्ट्वा भुजङ्गमिव निर्विषम् ॥ ५ ॥
युद्धात् कर्णमपक्रान्तं किंस्विद् दुर्योधनोऽब्रवीत्।

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु रणक्षेत्रमें विषहीन सर्पके समान कर्णको पराजित और युद्धसे भागा हुआ देखकर दुर्योधनने क्या कहा था॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अहो दुर्मुखमेवैकं युद्धानामविशारदम् ॥ ६ ॥
प्रावेशयद्धुतवहं पतङ्गमिव मोहितः ।

मूलम्

अहो दुर्मुखमेवैकं युद्धानामविशारदम् ॥ ६ ॥
प्रावेशयद्धुतवहं पतङ्गमिव मोहितः ।

अनुवाद (हिन्दी)

अहो! दुर्योधनने मोहित होकर युद्धकी कलासे अनभिज्ञ दुर्मुखको अकेले ही पतंगकी भाँति आगमें झोंक दिया॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अश्वत्थामा मद्रराजः कृपः कर्णश्च संगताः ॥ ७ ॥
न शक्ताः प्रमुखे स्थातुं नूनं भीमस्य संजय।

मूलम्

अश्वत्थामा मद्रराजः कृपः कर्णश्च संगताः ॥ ७ ॥
न शक्ताः प्रमुखे स्थातुं नूनं भीमस्य संजय।

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! अश्वत्थामा, मद्रराज शल्य, कृपाचार्य और कर्ण—ये सब मिलकर भी निश्चय ही भीमके सामने नहीं ठहर सकते॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेऽपि चास्य महाघोरं बलं नागायुतोपमम् ॥ ८ ॥
जानन्तो व्यवसायं च क्रूरं मारुततेजसः।
किमर्थं क्रूरकर्माणं यमकालान्तकोपमम् ॥ ९ ॥
बलसंरम्भवीर्यज्ञाः कोपयिष्यन्ति संयुगे ।

मूलम्

तेऽपि चास्य महाघोरं बलं नागायुतोपमम् ॥ ८ ॥
जानन्तो व्यवसायं च क्रूरं मारुततेजसः।
किमर्थं क्रूरकर्माणं यमकालान्तकोपमम् ॥ ९ ॥
बलसंरम्भवीर्यज्ञाः कोपयिष्यन्ति संयुगे ।

अनुवाद (हिन्दी)

वे भी वायुके तुल्य तेजस्वी भीमसेनके दस हजार हाथियोंके समान अत्यन्त घोर बलको तथा उनके क्रूरतापूर्ण निश्चयको जानते हैं; उनके बल, पराक्रम और क्रोधसे परिचित हैं। ऐसी दशामें वे यम, काल और अन्तकके समान क्रूर कर्म करनेवाले भीमसेनको युद्धमें अपने ऊपर कैसे कुपित करेंगे?॥८-९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कर्णस्त्वेको महाबाहुः स्वबाहुबलदर्पितः ॥ १० ॥
भीमसेनमनादृत्य रणेऽयुध्यत सूतजः ।

मूलम्

कर्णस्त्वेको महाबाहुः स्वबाहुबलदर्पितः ॥ १० ॥
भीमसेनमनादृत्य रणेऽयुध्यत सूतजः ।

अनुवाद (हिन्दी)

अकेला सूतपुत्र महाबाहु कर्ण ही अपने बाहुबलके घमंडमें भरकर भीमसेनका तिरस्कार करके रणभूमिमें उनके साथ जूझता रहा॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

योऽजयत् समरे कर्णं पुरंदर इवासुरम् ॥ ११ ॥
न स पाण्डुसुतो जेतुं शक्यः केनचिदाहवे।

मूलम्

योऽजयत् समरे कर्णं पुरंदर इवासुरम् ॥ ११ ॥
न स पाण्डुसुतो जेतुं शक्यः केनचिदाहवे।

अनुवाद (हिन्दी)

जिन्होंने समरांगणमें असुरोंपर विजय पानेवाले देवराज इन्द्रके समान कर्णको पराजित कर दिया, उन पाण्डुपुत्र भीमसेनको कोई भी युद्धमें जीत नहीं सकता॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रोणं यः सम्प्रमथ्यैकः प्रविष्टो मम वाहिनीम् ॥ १२ ॥
भीमो धनंजयान्वेषी कस्तमार्च्छेज्जिजीविषुः ।

मूलम्

द्रोणं यः सम्प्रमथ्यैकः प्रविष्टो मम वाहिनीम् ॥ १२ ॥
भीमो धनंजयान्वेषी कस्तमार्च्छेज्जिजीविषुः ।

अनुवाद (हिन्दी)

जो भीमसेन अकेले ही द्रोणाचार्यको मथकर धनंजयका पता लगानेके लिये मेरी सेनामें घुस आये, उनका सामना करनेके लिये जीवित रहनेकी इच्छावाला कौन पुरुष जा सकता है?॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

को हि संजय भीमस्य स्थातुमुत्सहतेऽग्रतः ॥ १३ ॥
उद्यताशनिहस्तस्य महेन्द्रस्येव दानवः ।

मूलम्

को हि संजय भीमस्य स्थातुमुत्सहतेऽग्रतः ॥ १३ ॥
उद्यताशनिहस्तस्य महेन्द्रस्येव दानवः ।

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! जैसे हाथमें वज्र लिये हुए देवराज इन्द्रके सामने कोई दानव खड़ा नहीं हो सकता, उसी प्रकार भीमसेनके सम्मुख भला कौन ठहर सकता है?॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रेतराजपुरं प्राप्य निवर्तेतापि मानवः ॥ १४ ॥
न भीमसेनं सम्प्राप्य निवर्तेत कदाचन।

मूलम्

प्रेतराजपुरं प्राप्य निवर्तेतापि मानवः ॥ १४ ॥
न भीमसेनं सम्प्राप्य निवर्तेत कदाचन।

अनुवाद (हिन्दी)

मनुष्य यमलोकमें भी जाकर लौट सकता है; परंतु युद्धमें भीमसेनके सामने जाकर कदापि जीवित नहीं लौट सकता॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पतङ्गा इव वह्निं ते प्राविशन्नल्पचेतसः ॥ १५ ॥
ये भीमसेनं संक्रुद्धमन्वधावन् विमोहिताः।

मूलम्

पतङ्गा इव वह्निं ते प्राविशन्नल्पचेतसः ॥ १५ ॥
ये भीमसेनं संक्रुद्धमन्वधावन् विमोहिताः।

अनुवाद (हिन्दी)

मेरे जो मन्दबुद्धि पुत्र मोहित होकर क्रोधमें भरे हुए भीमसेनकी ओर दौड़े थे, वे पतंगोंके समान मानो आगमें ही कूद पड़े थे॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यत् तत् सभायां भीमेन मम पुत्रवधाश्रयम् ॥ १६ ॥
उक्तं संरम्भिणोग्रेण कुरूणां शृण्वतां तदा।
तन्नूनमभिसंचिन्त्य दृष्ट्वा कर्णं च निर्जितम् ॥ १७ ॥
दुःशासनः सह भ्रात्रा भयाद् भीमादुपारमत्।

मूलम्

यत् तत् सभायां भीमेन मम पुत्रवधाश्रयम् ॥ १६ ॥
उक्तं संरम्भिणोग्रेण कुरूणां शृण्वतां तदा।
तन्नूनमभिसंचिन्त्य दृष्ट्वा कर्णं च निर्जितम् ॥ १७ ॥
दुःशासनः सह भ्रात्रा भयाद् भीमादुपारमत्।

अनुवाद (हिन्दी)

क्रोधमें भरे हुए भयंकर भीमसेनने सभाभवनमें उस दिन समस्त कौरवोंके सुनते हुए मेरे पुत्रोंके वधके सम्बन्धमें जो प्रतिज्ञा की थी, उसका विचार करके और कर्णको पराजित देखकर अपने भाई दुर्योधनसहित दुःशासन निश्चय ही भयके मारे भीमसेनसे दूर हट गया होगा॥१६-१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यश्च संजय दुर्बुद्धिरब्रवीत् समितौ मुहुः ॥ १८ ॥
कर्णो दुःशासनोऽहं च जेष्यामो युधि पाण्डवान्।

मूलम्

यश्च संजय दुर्बुद्धिरब्रवीत् समितौ मुहुः ॥ १८ ॥
कर्णो दुःशासनोऽहं च जेष्यामो युधि पाण्डवान्।

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! खोटी बुद्धिवाले दुर्योधनने सभामें बारंबार कहा था कि ‘कर्ण, दुःशासन तथा मैं—तीनों मिलकर युद्धमें अवश्य पाण्डवोंको जीत लेंगे’॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स नूनं विरथं दृष्ट्वा कर्णं भीमेन निर्जितम् ॥ १९ ॥
प्रत्याख्यानाच्च कृष्णस्य भृशं तप्यति पुत्रकः।

मूलम्

स नूनं विरथं दृष्ट्वा कर्णं भीमेन निर्जितम् ॥ १९ ॥
प्रत्याख्यानाच्च कृष्णस्य भृशं तप्यति पुत्रकः।

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु अब कर्णको भीमसेनके द्वारा पराजित और रथहीन हुआ देख श्रीकृष्णकी बात न माननेके कारण मेरा वह पुत्र निश्चय ही बड़ा भारी पश्चात्ताप कर रहा होगा॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दृष्ट्वा भ्रातॄन्‌ हतान् संख्ये भीमसेनेन दंशितान् ॥ २० ॥
आत्मापराधे सुमहन्नूनं तप्यति पुत्रकः।

मूलम्

दृष्ट्वा भ्रातॄन्‌ हतान् संख्ये भीमसेनेन दंशितान् ॥ २० ॥
आत्मापराधे सुमहन्नूनं तप्यति पुत्रकः।

अनुवाद (हिन्दी)

अपने कवचधारी भ्राताओंको युद्धमें भीमसेनके द्वारा मारा गया देख मेरे पुत्रको अपने अपराधके लिये अवश्य ही महान् अनुताप हो रहा होगा॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

को हि जीवितमन्विच्छन् प्रतीपं पाण्डवं व्रजेत् ॥ २१ ॥
भीमं भीमायुधं क्रुद्धं साक्षात्‌ कालमिव स्थितम्।

मूलम्

को हि जीवितमन्विच्छन् प्रतीपं पाण्डवं व्रजेत् ॥ २१ ॥
भीमं भीमायुधं क्रुद्धं साक्षात्‌ कालमिव स्थितम्।

अनुवाद (हिन्दी)

अपने जीवनकी इच्छा रखनेवाला कौन पुरुष क्रोधमें भरकर साक्षात् कालके समान खड़े हुए भयानक अस्त्र-शस्त्रधारी पाण्डुपुत्र भीमसेनके विरुद्ध युद्धमें जा सकता है॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वडवामुखमध्यस्थो मुच्येतापि हि मानवः ॥ २२ ॥
न भीममुखसम्प्राप्तो मुच्येदिति मतिर्मम।

मूलम्

वडवामुखमध्यस्थो मुच्येतापि हि मानवः ॥ २२ ॥
न भीममुखसम्प्राप्तो मुच्येदिति मतिर्मम।

अनुवाद (हिन्दी)

मेरा तो ऐसा विश्वास है कि बडवानलके मुखमें पड़ा हुआ मनुष्य शायद जीवित बच जाय; परंतु भीमसेनके सम्मुख युद्धके लिये आया हुआ कोई भी शूरमा जीवित नहीं छूट सकता॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न पार्था न च पञ्चाला न च केशवसात्यकी॥२३॥
जानते युधि संरब्धा जीवितं परिरक्षितुम्।
अहो मम सुतानां हि विपन्नं सूत जीवितम् ॥ २४ ॥

मूलम्

न पार्था न च पञ्चाला न च केशवसात्यकी॥२३॥
जानते युधि संरब्धा जीवितं परिरक्षितुम्।
अहो मम सुतानां हि विपन्नं सूत जीवितम् ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सूत! युद्धमें क्रुद्ध होनेपर पाण्डव, पांचाल, श्रीकृष्ण तथा सात्यकि—ये कोई भी शत्रुके जीवनकी रक्षा करना नहीं जानते हैं। अहो! मेरे पुत्रोंका जीवन भारी विपत्तिमें पड़ गया है॥२३-२४॥

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

यस्त्वं शोचसि कौरव्य वर्तमाने महाभये।
त्वमस्य जगतो मूलं विनाशस्य न संशयः ॥ २५ ॥

मूलम्

यस्त्वं शोचसि कौरव्य वर्तमाने महाभये।
त्वमस्य जगतो मूलं विनाशस्य न संशयः ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजयने कहा— कुरुनन्दन! यह महान् भय जब सिरपर आ गया है, तब आप शोक करने बैठे हैं, यह ठीक नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस जगत्‌के विनाशका मूल कारण आप ही हैं॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वयं वैरं महत् कृत्वा पुत्राणां वचने स्थितः।
उच्यमानो न गृह्णीषे मर्त्यः पथ्यमिवौषधम् ॥ २६ ॥

मूलम्

स्वयं वैरं महत् कृत्वा पुत्राणां वचने स्थितः।
उच्यमानो न गृह्णीषे मर्त्यः पथ्यमिवौषधम् ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुत्रोंकी हाँ-में-हाँ मिलाकर आपने स्वयं ही इस महान् वैरकी नींव डाली है और जब इसे मिटानेके लिये आपसे किसीने कोई बात कही, तब आपने उसे नहीं माना, ठीक उसी तरह, जैसे मरणासन्न मनुष्य हितकारक औषध नहीं ग्रहण करता है॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वयं पीत्वा महाराज कालकूटं सुदुर्जरम्।
तस्येदानीं फलं कृत्स्नमवाप्नुहि नरोत्तम ॥ २७ ॥

मूलम्

स्वयं पीत्वा महाराज कालकूटं सुदुर्जरम्।
तस्येदानीं फलं कृत्स्नमवाप्नुहि नरोत्तम ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरश्रेष्ठ! महाराज! जिसको पचाना अत्यन्त कठिन है, उस कालकूट विषको स्वयं पीकर अब उसके सारे परिणामोंको आप ही भोगिये॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यत्‌ तु कुत्सयसे योधान् युध्यमानान् महाबलान्।
तत्र ते वर्तयिष्यामि यथा युद्धमवर्तत ॥ २८ ॥

मूलम्

यत्‌ तु कुत्सयसे योधान् युध्यमानान् महाबलान्।
तत्र ते वर्तयिष्यामि यथा युद्धमवर्तत ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

युद्धमें लगे हुए महाबली योद्धाओंको जो आप कोस रहे हैं, वह व्यर्थ है। अब जिस प्रकार वहाँ युद्ध हुआ था, वह सब आपको बता रहा हूँ, सुनिये॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दृष्ट्वा कर्णं तु पुत्रास्ते भीमसेनपराजितम्।
नामृष्यन्त महेष्वासाः सोदर्याः पञ्च भारत ॥ २९ ॥

मूलम्

दृष्ट्वा कर्णं तु पुत्रास्ते भीमसेनपराजितम्।
नामृष्यन्त महेष्वासाः सोदर्याः पञ्च भारत ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! कर्णको भीमसेनसे पराजित हुआ देख आपके पाँच महाधनुर्धर पुत्र जो परस्पर सगे भाई थे, सह न सके॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्मर्षणो दुःसहश्च दुर्मदो दुर्धरो जयः।
पाण्डवं चित्रसंनाहास्तं प्रतीपमुपाद्रवन् ॥ ३० ॥

मूलम्

दुर्मर्षणो दुःसहश्च दुर्मदो दुर्धरो जयः।
पाण्डवं चित्रसंनाहास्तं प्रतीपमुपाद्रवन् ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन पाँचोंके नाम ये हैं—दुर्मर्षण, दुःसह, दुर्मद, दुर्धर (दुराधार) और जय। इन सबने विचित्र कवच धारण करके अपने विरोधी पाण्डुपुत्र भीमसेनपर आक्रमण किया॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते समन्तान्महाबाहुं परिवार्य वृकोदरम्।
दिशः शरैः समावृण्वन् शलभानामिव व्रजैः ॥ ३१ ॥

मूलम्

ते समन्तान्महाबाहुं परिवार्य वृकोदरम्।
दिशः शरैः समावृण्वन् शलभानामिव व्रजैः ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने महाबाहु भीमसेनको चारों ओरसे घेरकर टिड्डीदलोंके समान अपने बाणसमूहोंद्वारा सम्पूर्ण दिशाओंको आच्छादित कर दिया॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आगच्छतस्तान् सहसा कुमारान् देवरूपिणः।
प्रतिजग्राह समरे भीमसेनो हसन्निव ॥ ३२ ॥

मूलम्

आगच्छतस्तान् सहसा कुमारान् देवरूपिणः।
प्रतिजग्राह समरे भीमसेनो हसन्निव ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन देवतुल्य राजकुमारोंको सहसा देख समरभूमिमें भीमसेनने हँसते हुए-से उनका आघात सहन किया॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तव दृष्ट्वा तु तनयान् भीमसेनपुरोगतान्।
अभ्यवर्तत राधेयो भीमसेनं महाबलम् ॥ ३३ ॥

मूलम्

तव दृष्ट्वा तु तनयान् भीमसेनपुरोगतान्।
अभ्यवर्तत राधेयो भीमसेनं महाबलम् ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपके पुत्रोंको भीमसेनके सामने गया हुआ देख राधानन्दन कर्ण पुनः महाबली भीमसेनका सामना करनेके लिये आ पहुँचा॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विसृजन् विशिखांस्तीक्ष्णान् स्वर्णपुङ्खाञ्छिलाशितान् ।
तं तु भीमोऽभ्ययात् तूर्णं वार्यमाणः सुतैस्तव ॥ ३४ ॥

मूलम्

विसृजन् विशिखांस्तीक्ष्णान् स्वर्णपुङ्खाञ्छिलाशितान् ।
तं तु भीमोऽभ्ययात् तूर्णं वार्यमाणः सुतैस्तव ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह शानपर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखोंसे युक्त पैने बाणोंकी वर्षा कर रहा था। उस समय आपके पुत्रोंद्वारा रोके जानेपर भी भीमसेन तुरंत ही कर्णके साथ युद्ध करनेके लिये आगे बढ़ गये॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुरवस्तु ततः कर्णं परिवार्य समन्ततः।
अवाकिरन् भीमसेनं शरैः संनतपर्वभिः ॥ ३५ ॥

मूलम्

कुरवस्तु ततः कर्णं परिवार्य समन्ततः।
अवाकिरन् भीमसेनं शरैः संनतपर्वभिः ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब उन कौरवोंने कर्णको चारों ओरसे घेरकर भीमसेनपर झुकी हुई गाँठवाले बाणोंकी वर्षा आरम्भ कर दी॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तान् बाणैः पञ्चविंशत्या साश्वान् राजन् नरर्षभान्।
ससूतान् भीमधनुषो भीमो निन्ये यमक्षयम् ॥ ३६ ॥

मूलम्

तान् बाणैः पञ्चविंशत्या साश्वान् राजन् नरर्षभान्।
ससूतान् भीमधनुषो भीमो निन्ये यमक्षयम् ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! यह देखकर भीमसेनने पचीस बाणोंका प्रहार करके सारथि और घोड़ोंसहित भयंकर धनुष धारण करनेवाले उन नरश्रेष्ठ राजकुमारोंको यमलोक पहुँचा दिया॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रापतन् स्यन्दनेभ्यस्ते सार्धं सूतैर्गतासवः।
चित्रपुष्पधरा भग्ना वातेनेव महाद्रुमाः ॥ ३७ ॥

मूलम्

प्रापतन् स्यन्दनेभ्यस्ते सार्धं सूतैर्गतासवः।
चित्रपुष्पधरा भग्ना वातेनेव महाद्रुमाः ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे प्राणशून्य होकर सारथियोंके साथ रथोंसे नीचे गिर पड़े, मानो प्रचण्ड आँधीने विचित्र पुष्प धारण करनेवाले विशाल वृक्षोंको उखाड़कर धराशायी कर दिया हो॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राद्भुतमपश्याम भीमसेनस्य विक्रमम् ।
संवार्याधिरथिं बाणैर्यज्जघान तवात्मजान् ॥ ३८ ॥

मूलम्

तत्राद्भुतमपश्याम भीमसेनस्य विक्रमम् ।
संवार्याधिरथिं बाणैर्यज्जघान तवात्मजान् ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ हमने भीमसेनका यह अद्भुत पराक्रम देखा कि उन्होंने सूतपुत्र कर्णको अपने बाणोंद्वारा रोककर आपके पुत्रोंको मार डाला॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स वार्यमाणो भीमेन शितैर्बाणैः समन्ततः।
सूतपुत्रो महाराज भीमसेनमवैक्षत ॥ ३९ ॥

मूलम्

स वार्यमाणो भीमेन शितैर्बाणैः समन्ततः।
सूतपुत्रो महाराज भीमसेनमवैक्षत ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! भीमसेनके पैने बाणोंद्वारा चारों ओरसे रोके जानेपर भी सूतपुत्र कर्णने भीमसेनकी ओर क्रोधपूर्वक देखा॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं भीमसेनः संरम्भात् क्रोधसंरक्तलोचनः।
विस्फार्य सुमहच्चापं मुहुः कर्णमवैक्षत ॥ ४० ॥

मूलम्

तं भीमसेनः संरम्भात् क्रोधसंरक्तलोचनः।
विस्फार्य सुमहच्चापं मुहुः कर्णमवैक्षत ॥ ४० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इधर क्रोधसे लाल आँखें किये भीमसेन भी अपने विशाल धनुषको फैलाकर कर्णकी ओर रोषपूर्वक बारंबार देखने लगे॥४०॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि भीमसेनपराक्रमे पञ्चत्रिंशदधिकशततमोऽध्याय ॥ १३५ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत जयद्रथवधपर्वमें भीमसेनका पराक्रमविषयक एक सौ पैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१३५॥