१३४ कर्णापयाने

भागसूचना

चतुस्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

भीमसेन और कर्णका युद्ध, धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुखका वध तथा कर्णका पलायन

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वथा विरथः कर्णः पुनर्भीमेन निर्जितः।
रथमन्यं समास्थाय पुनर्विव्याध पाण्डवम् ॥ १ ॥

मूलम्

सर्वथा विरथः कर्णः पुनर्भीमेन निर्जितः।
रथमन्यं समास्थाय पुनर्विव्याध पाण्डवम् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! सब प्रकारसे रथहीन एवं भीमसेनके द्वारा पुनः पराजित हुए कर्णने दूसरे रथपर बैठकर पाण्डुकुमार भीमसेनको पुनः बींध डाला॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महागजाविवासाद्य विषाणाग्रैः परस्परम् ।
शरैः पूर्णायतोत्सृष्टैरन्योन्यमभिजघ्नतुः ॥ २ ॥

मूलम्

महागजाविवासाद्य विषाणाग्रैः परस्परम् ।
शरैः पूर्णायतोत्सृष्टैरन्योन्यमभिजघ्नतुः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे दो विशाल गजराज अपने दाँतोंके अग्रभागोंद्वारा एक-दूसरेसे भिड़ गये हों, उसी प्रकार कर्ण और भीमसेन धनुषको पूर्णतः खींचकर छोड़े गये बाणोंद्वारा एक-दूसरेको चोट पहुँचाने लगे॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथ कर्णः शरव्रातैर्भीमसेनं समार्पयत्।
ननाद च महानादं पुनर्विव्याध चोरसि ॥ ३ ॥

मूलम्

अथ कर्णः शरव्रातैर्भीमसेनं समार्पयत्।
ननाद च महानादं पुनर्विव्याध चोरसि ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर कर्णने अपने बाणसमूहोंद्वारा भीमसेनको घायल कर दिया। उसने बड़े जोरसे गर्जना की और पुनः भीमसेनकी छातीमें चोट पहुँचायी॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं भीमो दशभिर्बाणैः प्रत्यविध्यदजिह्मगैः।
पुनर्विव्याध सप्तत्या शराणां नतपर्वणाम् ॥ ४ ॥

मूलम्

तं भीमो दशभिर्बाणैः प्रत्यविध्यदजिह्मगैः।
पुनर्विव्याध सप्तत्या शराणां नतपर्वणाम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब भीमने सीधे जानेवाले दस बाणोंसे कर्णको मारकर बदला चुकाया। तत्पश्चात् झुकी हुई गाँठवाले सत्तर बाणोंद्वारा पुनः कर्णको बींध डाला॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कर्णं तु नवभिर्भीमो भित्त्वा राजन् स्तनान्तरे।
ध्वजमेकेन विव्याध सायकेन शितेन ह ॥ ५ ॥

मूलम्

कर्णं तु नवभिर्भीमो भित्त्वा राजन् स्तनान्तरे।
ध्वजमेकेन विव्याध सायकेन शितेन ह ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! भीमसेनने कर्णकी छातीमें नौ बाणोंद्वारा गहरी चोट पहुँचाकर एक तीखे बाणसे उसकी ध्वजाको भी छेद दिया॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सायकानां ततः पार्थस्त्रिषष्ट्या प्रत्यविध्यत।
तोत्रैरिव महानागं कशाभिरिव वाजिनम् ॥ ६ ॥

मूलम्

सायकानां ततः पार्थस्त्रिषष्ट्या प्रत्यविध्यत।
तोत्रैरिव महानागं कशाभिरिव वाजिनम् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर जैसे विशाल गजराजको अंकुशोंसे और घोड़ेको कोड़ोंसे पीटा जाय, उसी प्रकार कुन्तीकुमार भीमने तिरसठ बाणोंद्वारा कर्णको घायल कर दिया॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽतिविद्धो महाराज पाण्डवेन यशस्विना।
सृक्किणी लेलिहन् वीरः क्रोधरक्तान्तलोचनः ॥ ७ ॥

मूलम्

सोऽतिविद्धो महाराज पाण्डवेन यशस्विना।
सृक्किणी लेलिहन् वीरः क्रोधरक्तान्तलोचनः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! यशस्वी पाण्डुपुत्रके द्वारा अत्यन्त घायल होकर वीर कर्ण क्रोधसे लाल आँखें करके अपने दोनों जबड़ोंको चाटने लगा॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शरं महाराज सर्वकायावदारणम्।
प्राहिणोद् भीमसेनाय बलायेन्द्र इवाशनिम् ॥ ८ ॥

मूलम्

ततः शरं महाराज सर्वकायावदारणम्।
प्राहिणोद् भीमसेनाय बलायेन्द्र इवाशनिम् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तदनन्तर जैसे इन्द्रने बलासुरपर वज्र चलाया था, उसी प्रकार उसने भीमसेनपर समस्त शरीरको विदीर्ण कर देनेवाले बाणका प्रहार किया॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स निर्भिद्य रणे पार्थं सूतपुत्रधनुश्च्युतः।
अगच्छद् दारयन् भूमिं चित्रपुङ्खः शिलीमुखः ॥ ९ ॥

मूलम्

स निर्भिद्य रणे पार्थं सूतपुत्रधनुश्च्युतः।
अगच्छद् दारयन् भूमिं चित्रपुङ्खः शिलीमुखः ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रणक्षेत्रमें सूतपुत्रके धनुषसे छूटा हुआ वह विचित्र पंखोंवाला बाण भीमसेनको विदीर्ण करके पृथ्वीको चीरता हुआ उसके भीतर समा गया॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो भीमो महाबाहुः क्रोधसंरक्तलोचनः।
वज्रकल्पां चतुष्किष्कुं गुर्वीं रुक्माङ्गदां गदाम् ॥ १० ॥
प्राहिणोत् सूतपुत्राय षडस्रामविचारयन् ।

मूलम्

ततो भीमो महाबाहुः क्रोधसंरक्तलोचनः।
वज्रकल्पां चतुष्किष्कुं गुर्वीं रुक्माङ्गदां गदाम् ॥ १० ॥
प्राहिणोत् सूतपुत्राय षडस्रामविचारयन् ।

अनुवाद (हिन्दी)

तब क्रोधसे लाल नेत्रोंवाले महाबाहु भीमसेनने चार बित्तेकी बनी हुई वज्रके समान भयंकर तथा सुवर्णमय भुजबंदसे विभूषित छः कोणोंवाली भारी गदा उठाकर उसे बिना विचारे सूतपुत्र कर्णपर चला दिया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तया जघानाधिरथेः सदश्वान् साधुवाहिनः ॥ ११ ॥
गदया भारतः क्रुद्धो वज्रेणेन्द्र इवासुरान्।

मूलम्

तया जघानाधिरथेः सदश्वान् साधुवाहिनः ॥ ११ ॥
गदया भारतः क्रुद्धो वज्रेणेन्द्र इवासुरान्।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे कुपित हुए इन्द्रने वज्रसे असुरोंका वध किया था, उसी प्रकार क्रोधमें भरे भरतवंशी भीमने अपनी उस गदासे अधिरथपुत्र कर्णके उन उत्तम घोड़ोंको मार डाला, जो अच्छी तरह सवारीका काम देते थे॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो भीमो महाबाहुः क्षुराभ्यां भरतर्षभ ॥ १२ ॥
ध्वजमाधिरथेश्छित्त्वा सूतमभ्यहनच्छरैः ।

मूलम्

ततो भीमो महाबाहुः क्षुराभ्यां भरतर्षभ ॥ १२ ॥
ध्वजमाधिरथेश्छित्त्वा सूतमभ्यहनच्छरैः ।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! तत्पश्चात् महाबाहु भीमसेनने दो छुरोंसे कर्णकी ध्वजा काटकर अपने बाणोंद्वारा उसके सारथिको भी मार डाला॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हताश्वसूतमुत्सृज्य सरथं पतितध्वजम् ॥ १३ ॥
विस्फारयन् धनुः कर्णस्तस्थौ भारत दुर्मनाः।

मूलम्

हताश्वसूतमुत्सृज्य सरथं पतितध्वजम् ॥ १३ ॥
विस्फारयन् धनुः कर्णस्तस्थौ भारत दुर्मनाः।

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! घोड़े और सारथिके मारे जाने तथा ध्वजाके गिर जानेपर कर्ण उस रथको छोड़कर धनुषकी टंकार करता हुआ दुःखी मनसे वहाँ खड़ा हो गया॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राद्भुतमपश्याम राधेयस्य पराक्रमम् ॥ १४ ॥
विरथो रथिनां श्रेष्ठो वारयामास यद् रिपुम्।

मूलम्

तत्राद्भुतमपश्याम राधेयस्य पराक्रमम् ॥ १४ ॥
विरथो रथिनां श्रेष्ठो वारयामास यद् रिपुम्।

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ हमलोगोंने राधानन्दन कर्णका अद्भुत पराक्रम देखा। रथियोंमें श्रेष्ठ उस वीरने रथहीन होनेपर भी अपने शत्रुको आगे नहीं बढ़ने दिया॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विरथं तं नरश्रेष्ठं दृष्ट्वाऽऽधिरथिमाहवे ॥ १५ ॥
दुर्योधनस्ततो राजन्नभ्यभाषत दुर्मुखम् ।
एष दुर्मुख राधेयो भीमेन विरथीकृतः ॥ १६ ॥
तं रथेन नरश्रेष्ठं सम्पादय महारथम्।

मूलम्

विरथं तं नरश्रेष्ठं दृष्ट्वाऽऽधिरथिमाहवे ॥ १५ ॥
दुर्योधनस्ततो राजन्नभ्यभाषत दुर्मुखम् ।
एष दुर्मुख राधेयो भीमेन विरथीकृतः ॥ १६ ॥
तं रथेन नरश्रेष्ठं सम्पादय महारथम्।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! नरश्रेष्ठ कर्णको युद्धस्थलमें रथहीन खड़ा देख दुर्योधनने अपने भाई दुर्मुखसे कहा—‘दुर्मुख! यह राधानन्दन कर्ण भीमसेनके द्वारा रथसे वंचित कर दिया गया है। इस महारथी नरश्रेष्ठ वीरको रथसे सम्पन्न करो’॥१५-१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुर्योधनवचः श्रुत्वा भारत दुर्मुखः ॥ १७ ॥
त्वरमाणोऽभ्ययात् कर्णं भीमं चावारयच्छरैः।
दुर्मुखं प्रेक्ष्य संग्रामे सूतपुत्रपदानुगम् ॥ १८ ॥
वायुपुत्रः प्रहृष्टोऽभूत् सृक्किणी परिसंलिहन्।

मूलम्

ततो दुर्योधनवचः श्रुत्वा भारत दुर्मुखः ॥ १७ ॥
त्वरमाणोऽभ्ययात् कर्णं भीमं चावारयच्छरैः।
दुर्मुखं प्रेक्ष्य संग्रामे सूतपुत्रपदानुगम् ॥ १८ ॥
वायुपुत्रः प्रहृष्टोऽभूत् सृक्किणी परिसंलिहन्।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! दुर्योधनकी यह बात सुनकर दुर्मुख बड़ी उतावलीके साथ कर्णके समीप आ पहुँचा और भीमसेनको अपने बाणोंद्वारा रोका। संग्राममें सूतपुत्रके चरणोंका अनुसरण करनेवाले दुर्मुखको देखकर वायुपुत्र भीमसेन बड़े प्रसन्न हुए। वे अपने दोनों गलफर चाटने लगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः कर्णं महाराज वारयित्वा शिलीमुखैः ॥ १९ ॥
दुर्मुखाय रथं तूर्णं प्रेषयामास पाण्डवः।

मूलम्

ततः कर्णं महाराज वारयित्वा शिलीमुखैः ॥ १९ ॥
दुर्मुखाय रथं तूर्णं प्रेषयामास पाण्डवः।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! तदनन्तर कर्णको अपने बाणोंद्वारा रोककर पाण्डुकुमार भीम तुरंत ही अपने रथको दुर्मुखके पास ले गये॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिन् क्षणे महाराज नवभिर्नतपर्वभिः ॥ २० ॥
सुमुखैर्दुर्मुखं भीमः शरैर्निन्ये यमक्षयम्।

मूलम्

तस्मिन् क्षणे महाराज नवभिर्नतपर्वभिः ॥ २० ॥
सुमुखैर्दुर्मुखं भीमः शरैर्निन्ये यमक्षयम्।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! फिर झुकी हुई गाँठवाले नौ सुमुख बाणोंद्वारा भीमसेनने दुर्मुखको उसी क्षण यमलोक पहुँचा दिया॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तमेवाधिरथिः स्यन्दनं दुर्मुखे हते ॥ २१ ॥
आस्थितः प्रबभौ राजन् दीप्यमान इवांशुमान्।

मूलम्

ततस्तमेवाधिरथिः स्यन्दनं दुर्मुखे हते ॥ २१ ॥
आस्थितः प्रबभौ राजन् दीप्यमान इवांशुमान्।

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! दुर्मुखके मारे जानेपर कर्ण उसी रथपर बैठकर देदीप्यमान सूर्यके समान प्रकाशित होने लगा॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शयानं भिन्नमर्माणं दुर्मुखं शोणितोक्षितम् ॥ २२ ॥
दृष्ट्वा कर्णोऽश्रुपूर्णाक्षो मुहूर्तं नाभ्यवर्तत।
तं गतासुमतिक्रम्य कृत्वा कर्णः प्रदक्षिणम् ॥ २३ ॥
दीर्घमुष्णं श्वसन् वीरो न किंचित् प्रत्यपद्यत।

मूलम्

शयानं भिन्नमर्माणं दुर्मुखं शोणितोक्षितम् ॥ २२ ॥
दृष्ट्वा कर्णोऽश्रुपूर्णाक्षो मुहूर्तं नाभ्यवर्तत।
तं गतासुमतिक्रम्य कृत्वा कर्णः प्रदक्षिणम् ॥ २३ ॥
दीर्घमुष्णं श्वसन् वीरो न किंचित् प्रत्यपद्यत।

अनुवाद (हिन्दी)

दुर्मुखका मर्मस्थान विदीर्ण हो गया था। वह खूनसे लथपथ हो पृथ्वीपर पड़ा था। उसे उस दशामें देखकर कर्णके नेत्रोंमें आँसू भर आया। वह दो घड़ीतक विपक्षीका सामना न कर सका। जब उसके प्राणपखेरू उड़ गये, तब कर्ण उस शवकी परिक्रमा करके आगे बढ़ा। वह वीर गरम-गरम लंबी साँस खींचता हुआ किसी कर्तव्यका निश्चय न कर सका॥२२-२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिंस्तु विवरे राजन् नाराचान् गार्ध्रवाससः ॥ २४ ॥
प्राहिणोत् सूतपुत्राय भीमसेनश्चतुर्दश ।

मूलम्

तस्मिंस्तु विवरे राजन् नाराचान् गार्ध्रवाससः ॥ २४ ॥
प्राहिणोत् सूतपुत्राय भीमसेनश्चतुर्दश ।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इसी अवसरमें भीमसेनने सूतपुत्रपर गीधकी पाँखवाले चौदह नाराच चलाये॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते तस्य कवचं भित्त्वा स्वर्णचित्रं महौजसः ॥ २५ ॥
हेमपुङ्खा महाराज व्यशोभन्त दिशो दश।

मूलम्

ते तस्य कवचं भित्त्वा स्वर्णचित्रं महौजसः ॥ २५ ॥
हेमपुङ्खा महाराज व्यशोभन्त दिशो दश।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! वे महातेजस्वी सुनहरी पाँखवाले बाण उसके सुवर्णजटित कवचको छिन्न-भिन्न करके दसों दिशाओंको सुशोभित करने लगे॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपिबन् सूतपुत्रस्य शोणितं रक्तभोजनाः ॥ २६ ॥
क्रुद्धा इव मनुष्येन्द्र भुजङ्गाः कालचोदिताः।

मूलम्

अपिबन् सूतपुत्रस्य शोणितं रक्तभोजनाः ॥ २६ ॥
क्रुद्धा इव मनुष्येन्द्र भुजङ्गाः कालचोदिताः।

अनुवाद (हिन्दी)

नरेन्द्र! वे रक्तका आहार करनेवाले बाण क्रोधभरे कालप्रेरित भुजंगोंके समान सूतपूत्र कर्णका खून पीने लगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रसर्पमाणा मेदिन्यां ते व्यरोचन्त मार्गणाः ॥ २७ ॥
अर्धप्रविष्टाः संरब्धा बिलानीव महोरगाः।

मूलम्

प्रसर्पमाणा मेदिन्यां ते व्यरोचन्त मार्गणाः ॥ २७ ॥
अर्धप्रविष्टाः संरब्धा बिलानीव महोरगाः।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे क्रोधमें भरे हुए महान् सर्प बिलोंमें प्रवेश करते समय आधे ही घुस पाये हों, उसी प्रकार वे बाण पृथ्वीमें घुसते हुए शोभा पा रहे थे॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं प्रत्यविध्यद् राधेयो जाम्बूनदविभूषितैः ॥ २८ ॥
चतुर्दशभिरत्युग्रैर्नाराचैरविचारयन् ।

मूलम्

तं प्रत्यविध्यद् राधेयो जाम्बूनदविभूषितैः ॥ २८ ॥
चतुर्दशभिरत्युग्रैर्नाराचैरविचारयन् ।

अनुवाद (हिन्दी)

तब कर्णने कुछ विचार न करके अत्यन्त भयंकर एवं सुवर्णभूषित चौदह नाराचोंसे भीमसेनको भी घायल कर दिया॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते भीमसेनस्य भुजं सव्यं निर्भिद्य पत्रिणः ॥ २९ ॥
प्राविशन् मेदिनीं भीमाः क्रीञ्चं पत्ररथा इव।

मूलम्

ते भीमसेनस्य भुजं सव्यं निर्भिद्य पत्रिणः ॥ २९ ॥
प्राविशन् मेदिनीं भीमाः क्रीञ्चं पत्ररथा इव।

अनुवाद (हिन्दी)

वे पंखधारी भयानक बाण भीमसेनकी बायीं भुजा छेदकर पृथ्वीमें समा गये, मानो पक्षी क्रौंच पर्वतको जा रहे हों॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते व्यरोचन्त नाराचाः प्रविशन्तो वसुंधराम् ॥ ३० ॥
गच्छत्यस्तं दिनकरे दीप्यमाना इवांशवः।

मूलम्

ते व्यरोचन्त नाराचाः प्रविशन्तो वसुंधराम् ॥ ३० ॥
गच्छत्यस्तं दिनकरे दीप्यमाना इवांशवः।

अनुवाद (हिन्दी)

वे नाराच इस पृथ्वीमें प्रवेश करते समय वैसी ही शोभा पा रहे थे, जैसे सूर्यके डूबते समय उनकी चमकीली किरणें प्रकाशित होती हैं॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स निर्भिन्नो रणे भीमो नाराचैर्मर्मभेदिभिः ॥ ३१ ॥
सुस्राव रुधिरं भूरि पर्वतः सलिलं यथा।

मूलम्

स निर्भिन्नो रणे भीमो नाराचैर्मर्मभेदिभिः ॥ ३१ ॥
सुस्राव रुधिरं भूरि पर्वतः सलिलं यथा।

अनुवाद (हिन्दी)

मर्मभेदी नाराचोंसे रणक्षेत्रमें विदीर्ण हुए भीमसेन उसी प्रकार भूरि-भूरि रक्त बहाने लगे, जैसे पर्वत झरनेका जल गिराता है॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स भीमस्त्रिभिरायत्तः सूतपुत्रं पतत्त्रिभिः ॥ ३२ ॥
सुपर्णवेगैर्विव्याध सारथिं चास्य सप्तभिः।

मूलम्

स भीमस्त्रिभिरायत्तः सूतपुत्रं पतत्त्रिभिः ॥ ३२ ॥
सुपर्णवेगैर्विव्याध सारथिं चास्य सप्तभिः।

अनुवाद (हिन्दी)

तब भीमसेनने भी प्रयत्नपूर्वक गरुडके समान वेगशाली तीन बाणोंद्वारा सूतपुत्र कर्णको तथा सात बाणोंसे उसके सारथिको भी घायल कर दिया॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स विह्वलो महाराज कर्णो भीमशराहतः ॥ ३३ ॥
प्राद्रवज्जवनैरश्वै रणं हित्वा महाभयात्।

मूलम्

स विह्वलो महाराज कर्णो भीमशराहतः ॥ ३३ ॥
प्राद्रवज्जवनैरश्वै रणं हित्वा महाभयात्।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! भीमके बाणोंसे आहत होकर कर्ण विह्वल हो उठा और महान् भयके कारण युद्ध छोड़कर शीघ्रगामी घोड़ोंकी सहायतासे भाग निकला॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमसेनस्तु विस्फार्य चापं हेमपरिष्कृतम् ॥ ३४ ॥
आहवेऽतिरथोऽतिष्ठज्ज्वलन्निव हुताशनः ॥ ३५ ॥

मूलम्

भीमसेनस्तु विस्फार्य चापं हेमपरिष्कृतम् ॥ ३४ ॥
आहवेऽतिरथोऽतिष्ठज्ज्वलन्निव हुताशनः ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु अतिरथी भीमसेन अपने सुवर्णभूषित धनुषको ताने हुए प्रज्वलित अग्निके समान युद्धस्थलमें ही खड़े रहे॥३४-३५॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि कर्णापयाने चतुस्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः ॥ १३४ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत जयद्रथवधपर्वमें कर्णका पलायनविषयक एक सौ चौंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१३४॥