भागसूचना
अष्टाविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
भीमसेनका द्रोणाचार्य और अन्य कौरव योद्धाओंको पराजित करते हुए द्रोणाचार्यके रथको आठ बार फेंक देना तथा श्रीकृष्ण और अर्जुनके समीप पहुँचकर गर्जना करना तथा युधिष्ठिरका प्रसन्न होकर अनेक प्रकारकी बातें सोचना
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
समुत्तीर्णं रथानीकं पाण्डवं विहसन् रणे।
विवारयिषुराचार्यः शरवर्षैरवाकिरत् ॥ १ ॥
मूलम्
समुत्तीर्णं रथानीकं पाण्डवं विहसन् रणे।
विवारयिषुराचार्यः शरवर्षैरवाकिरत् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— महाराज! रथसेनाको पार करके आये हुए पाण्डुनन्दन भीमसेनको युद्धमें रोकनेकी इच्छासे आचार्य द्रोणने हँसते-हँसते उनपर बाणोंकी वर्षा आरम्भ कर दी॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पिबन्निव शरौघांस्तान् द्रोणचापपरिच्युतान् ।
सोऽभ्यद्रवत सोदर्यान् मोहयन् बलमायया ॥ २ ॥
मूलम्
पिबन्निव शरौघांस्तान् द्रोणचापपरिच्युतान् ।
सोऽभ्यद्रवत सोदर्यान् मोहयन् बलमायया ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
द्रोणाचार्यके धनुषसे छूटे हुए उन बाणोंको पीते हुए-से भीमसेन अपने बलकी मायासे समस्त कौरव बन्धुओंको मोहित करते हुए उनपर टूट पड़े॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं मृधे वेगमास्थाय नृपाः परमधन्विनः।
चोदितास्तव पुत्रैश्च सर्वतः पर्यवारयन् ॥ ३ ॥
मूलम्
तं मृधे वेगमास्थाय नृपाः परमधन्विनः।
चोदितास्तव पुत्रैश्च सर्वतः पर्यवारयन् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय आपके पुत्रोंद्वारा प्रेरित हुए बहुत-से महाधनुर्धर नरेशोंने महान् वेगका आश्रय ले युद्धस्थलमें भीमसेनको सब ओरसे घेर लिया॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तैस्तु संवृतो भीमः प्रहसन्निव भारत।
उद्यच्छन् स गदां तेभ्यः सुघोरां सिंहवन्नदन्।
अवासृजच्च वेगेन शत्रुपक्षविनाशिनीम् ॥ ४ ॥
मूलम्
स तैस्तु संवृतो भीमः प्रहसन्निव भारत।
उद्यच्छन् स गदां तेभ्यः सुघोरां सिंहवन्नदन्।
अवासृजच्च वेगेन शत्रुपक्षविनाशिनीम् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! उनसे घिरे हुए भीमने हँसते हुए-से अपनी अत्यन्त भयंकर गदा ऊपर उठायी और सिंहनाद करते हुए उन्होंने शत्रुपक्षका विनाश करनेवाली उस गदाको बड़े वेगसे उन राजाओंपर दे मारा॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इन्द्राशनिरिवेन्द्रेण प्रविद्धा संहतात्मना ।
प्रामथ्नात् सा महाराज सैनिकांस्तव संयुगे ॥ ५ ॥
मूलम्
इन्द्राशनिरिवेन्द्रेण प्रविद्धा संहतात्मना ।
प्रामथ्नात् सा महाराज सैनिकांस्तव संयुगे ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! सुस्थिरचित्तवाले इन्द्र जिस प्रकार अपने वज्रका प्रयोग करते हैं, उसी तरह भीमसेनद्वारा चलायी हुई उस गदाने युद्धस्थलमें आपके सैनिकोंका कचूमर निकाल दिया॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
घोषेण महता राजन् पूरयन्तीव मेदिनीम्।
ज्वलन्ती तेजसा भीमा त्रासयामास ते सुतान् ॥ ६ ॥
मूलम्
घोषेण महता राजन् पूरयन्तीव मेदिनीम्।
ज्वलन्ती तेजसा भीमा त्रासयामास ते सुतान् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तेजसे प्रज्वलित होनेवाली उस भयंकर गदाने अपने महान् घोषसे इस पृथ्वीको परिपूर्ण करके आपके पुत्रोंको भयभीत कर दिया॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तां पतन्तीं महावेगां दृष्ट्वा तेजोऽभिसंवृताम्।
प्राद्रवंस्तावकाः सर्वे नदन्तो भैरवान् रवान् ॥ ७ ॥
मूलम्
तां पतन्तीं महावेगां दृष्ट्वा तेजोऽभिसंवृताम्।
प्राद्रवंस्तावकाः सर्वे नदन्तो भैरवान् रवान् ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस महावेगशालिनी तेजस्विनी गदाको गिरती देख आपके समस्त सैनिक घोर स्वरमें आर्तनाद करते हुए वहाँसे भाग गये॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं च शब्दमसह्यं वै तस्याः संलक्ष्य मारिष।
प्रापतन्मनुजास्तत्र रथेभ्यो रथिनस्तदा ॥ ८ ॥
मूलम्
तं च शब्दमसह्यं वै तस्याः संलक्ष्य मारिष।
प्रापतन्मनुजास्तत्र रथेभ्यो रथिनस्तदा ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
माननीय नरेश! उस गदाके असह्य शब्दको सुनकर उस समय कितने ही रथी मानव अपने रथोंसे नीचे गिर पड़े॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते हन्यमाना भीमेन गदाहस्तेन तावकाः।
प्राद्रवन्त रणे भीता व्याघ्रघ्राता मृगा इव ॥ ९ ॥
मूलम्
ते हन्यमाना भीमेन गदाहस्तेन तावकाः।
प्राद्रवन्त रणे भीता व्याघ्रघ्राता मृगा इव ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
रणभूमिमें गदाधारी भीमके द्वारा मारे जानेवाले आपके सैनिक व्याघ्रोंके सूँघे हुए मृगोंके समान भयभीत होकर भाग निकले॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तान् विद्राव्य कौन्तेयः संख्येऽमित्रान् दुरासदान्।
सुपर्ण इव वेगेन पक्षिराडत्यगाच्चमूम् ॥ १० ॥
मूलम्
स तान् विद्राव्य कौन्तेयः संख्येऽमित्रान् दुरासदान्।
सुपर्ण इव वेगेन पक्षिराडत्यगाच्चमूम् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुन्तीकुमार भीमसेन युद्धस्थलमें उन दुर्जय शत्रुओंको भगाकर पक्षिराज गरुडके समान वेगसे उस सेनाको लाँघ गये॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा तु विप्रकुर्वाणं रथयूथपयूथपम्।
भारद्वाजो महाराज भीमसेनं समभ्ययात् ॥ ११ ॥
मूलम्
तथा तु विप्रकुर्वाणं रथयूथपयूथपम्।
भारद्वाजो महाराज भीमसेनं समभ्ययात् ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! रथयूथपतियोंके भी यूथपति भीमसेनको इस प्रकार सेनाका संहार करते देख द्रोणाचार्य उनका सामना करनेके लिये आगे बढ़े॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमं तु समरे द्रोणो वारयित्वा शरोर्मिभिः।
अकरोत् सहसा नादं पाण्डूनां भयमादधत् ॥ १२ ॥
मूलम्
भीमं तु समरे द्रोणो वारयित्वा शरोर्मिभिः।
अकरोत् सहसा नादं पाण्डूनां भयमादधत् ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समरांगणमें अपने बाणरूपी तरंगोंसे भीमसेनको रोककर आचार्य द्रोणने पाण्डवोंके मनमें भय उत्पन्न करते हुए सहसा सिंहनाद किया॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तद् युद्धमासीत् सुमहद् घोरं देवासुरोपमम्।
द्रोणस्य च महाराज भीमस्य च महात्मनः ॥ १३ ॥
मूलम्
तद् युद्धमासीत् सुमहद् घोरं देवासुरोपमम्।
द्रोणस्य च महाराज भीमस्य च महात्मनः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! द्रोणाचार्य तथा महामनस्वी भीमसेनका वह महान् युद्ध देवासुर-संग्रामके समान भयंकर था॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यदा तु विशिखैस्तीक्ष्णैर्द्रोणचापविनिःसृतैः ।
वध्यन्ते समरे वीराः शतशोऽथ सहस्रशः ॥ १४ ॥
ततो रथादवप्लुत्य वेगमास्थाय पाण्डवः।
निमील्य नयने राजन् पदातिर्द्रोणमभ्ययात् ॥ १५ ॥
अंसे शिरो भीमसेनः करौ कृत्वोरसि स्थिरौ।
वेगमास्थाय बलवान् मनोऽनिलगरुत्मताम् ॥ १६ ॥
मूलम्
यदा तु विशिखैस्तीक्ष्णैर्द्रोणचापविनिःसृतैः ।
वध्यन्ते समरे वीराः शतशोऽथ सहस्रशः ॥ १४ ॥
ततो रथादवप्लुत्य वेगमास्थाय पाण्डवः।
निमील्य नयने राजन् पदातिर्द्रोणमभ्ययात् ॥ १५ ॥
अंसे शिरो भीमसेनः करौ कृत्वोरसि स्थिरौ।
वेगमास्थाय बलवान् मनोऽनिलगरुत्मताम् ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जब इस प्रकार द्रोणाचार्यके धनुषसे छूटे हुए पैने बाणोंद्वारा समरांगणमें सैकड़ों और हजारों वीर मारे जाने लगे, तब बलवान् पाण्डुनन्दन भीम वेगपूर्वक रथसे कूद पड़े तथा दोनों नेत्र मूँदकर सिरको कंधेपर सिकोड़कर दोनों हाथोंको छातीपर सुस्थिर करके मन, वायु तथा गरुडके समान वेगका आश्रय ले पैदल ही द्रोणाचार्यकी ओर दौड़े॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा हि गोवृषो वर्षं प्रतिगृह्णाति लीलया।
तथा भीमो नरव्याघ्रः शरवर्षं समग्रहीत् ॥ १७ ॥
मूलम्
यथा हि गोवृषो वर्षं प्रतिगृह्णाति लीलया।
तथा भीमो नरव्याघ्रः शरवर्षं समग्रहीत् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे साँड़ लीलापूर्वक वर्षाका वेग अपने शरीरपर ग्रहण करता है, उसी प्रकार पुरुषसिंह भीमसेनने आचार्यकी उस बाण-वर्षाको अपने शरीरपर ग्रहण किया॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स वध्यमानः समरे रथं द्रोणस्य मारिष।
ईषायां पाणिना गृह्य प्रचिक्षेप महाबलः ॥ १८ ॥
मूलम्
स वध्यमानः समरे रथं द्रोणस्य मारिष।
ईषायां पाणिना गृह्य प्रचिक्षेप महाबलः ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आर्य! समरांगणमें बाणोंसे आहत होते हुए महाबली भीमने द्रोणाचार्यके रथके ईषादण्डको हाथसे पकड़कर समूचे रथको दूर फेंक दिया॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्रोणस्तु सत्वरो राजन् क्षिप्तो भीमेन संयुगे।
रथमन्यं समारुह्य व्यूहद्वारं ययौ पुनः ॥ १९ ॥
मूलम्
द्रोणस्तु सत्वरो राजन् क्षिप्तो भीमेन संयुगे।
रथमन्यं समारुह्य व्यूहद्वारं ययौ पुनः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! उस युद्धस्थलमें भीमसेनद्वारा फेंके गये आचार्य द्रोण तुरंत ही दूसरे रथपर आरूढ़ हो पुनः व्यूहके द्वारपर जा पहुँचे॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमायान्तं तथा दृष्ट्वा भग्नोत्साहं गुरुं तदा।
गत्वा वेगात् पुनर्भीमो धुरं गुह्य रथस्य तु ॥ २० ॥
तमप्यतिरथं भीमश्चिक्षेप भृशरोषितः ।
एवमष्टौ रथाः क्षिप्ता भीमसेनेन लीलया ॥ २१ ॥
मूलम्
तमायान्तं तथा दृष्ट्वा भग्नोत्साहं गुरुं तदा।
गत्वा वेगात् पुनर्भीमो धुरं गुह्य रथस्य तु ॥ २० ॥
तमप्यतिरथं भीमश्चिक्षेप भृशरोषितः ।
एवमष्टौ रथाः क्षिप्ता भीमसेनेन लीलया ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय गुरु द्रोणका उत्साह भंग हो गया था। उन्हें उस अवस्थामें आते देख भीमने पुनः वेगपूर्वक आगे बढ़कर उनके रथकी धुरी पकड़ ली और अत्यन्त रोषमें भरकर उन अतिरथी वीर द्रोणको भी पुनः रथके साथ ही फेंक दिया। इस प्रकार भीमसेनने खेल-सा करते हुए आठ रथ फेंके॥२०-२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
व्यदृश्यत निमेषेण पुनः स्वरथमास्थितः।
दृश्यते तावकैर्योधैर्विस्मयोत्फुल्ललोचनैः ॥ २२ ॥
मूलम्
व्यदृश्यत निमेषेण पुनः स्वरथमास्थितः।
दृश्यते तावकैर्योधैर्विस्मयोत्फुल्ललोचनैः ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
परंतु द्रोणाचार्य पुनः पलक मारते-मारते अपने रथपर बैठे दिखायी देते थे। उस समय आपके योद्धा विस्मयसे आँखें फाड़-फाड़कर यह दृश्य देख रहे थे॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिन् क्षणे तस्य यन्ता तूर्णमश्वानचोदयत्।
भीमसेनस्य कौरव्य तदद्भुतमिवाभवत् ॥ २३ ॥
मूलम्
तस्मिन् क्षणे तस्य यन्ता तूर्णमश्वानचोदयत्।
भीमसेनस्य कौरव्य तदद्भुतमिवाभवत् ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुनन्दन! इसी समय भीमसेनका सारथि तुरंत ही घोड़ोंको हाँककर वहाँ ले आया। वह एक अद्भुत-सी बात थी॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स्वरथमास्थाय भीमसेनो महाबलः।
अभ्यद्रवत वेगेन तव पुत्रस्य वाहिनीम् ॥ २४ ॥
मूलम्
ततः स्वरथमास्थाय भीमसेनो महाबलः।
अभ्यद्रवत वेगेन तव पुत्रस्य वाहिनीम् ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् महाबली भीमसेन पुनः अपने रथपर आरूढ़ हो आपके पुत्रकी सेनापर वेगपूर्वक टूट पड़े॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स मृद्नन् क्षत्रियानाजौ वातो वृक्षानिवोद्धतः।
आगच्छद् दारयन् सेनां सिन्धुवेगो नगानिव ॥ २५ ॥
मूलम्
स मृद्नन् क्षत्रियानाजौ वातो वृक्षानिवोद्धतः।
आगच्छद् दारयन् सेनां सिन्धुवेगो नगानिव ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे उठी हुई आँधी वृक्षोंको उखाड़ फेंकती है और सिंधुका वेग पर्वतोंको विदीर्ण कर देता है, उसी प्रकार युद्धस्थलमें क्षत्रियोंको रौंदते और कौरव-सेनाको विदीर्ण करते हुए भीमसेन आगे बढ़ गये॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भोजानीकं समासाद्य हार्दिक्येनाभिरक्षितम् ।
प्रमथ्य तरसा वीरस्तदप्यतिबलोऽभ्ययात् ॥ २६ ॥
मूलम्
भोजानीकं समासाद्य हार्दिक्येनाभिरक्षितम् ।
प्रमथ्य तरसा वीरस्तदप्यतिबलोऽभ्ययात् ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर अत्यन्त बलशाली वीर भीमसेन कृतवर्माद्वारा सुरक्षित भोजवंशियोंकी सेनाके पास जा पहुँचे और उसे वेगपूर्वक मथकर आगे चले गये॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संत्रासयन्ननीकानि तलशब्देन पाण्डवः ।
अजयत् सर्वसैन्यानि शार्दूल इव गोवृषान् ॥ २७ ॥
मूलम्
संत्रासयन्ननीकानि तलशब्देन पाण्डवः ।
अजयत् सर्वसैन्यानि शार्दूल इव गोवृषान् ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे सिंह गाय-बैलोंको जीत लेता है, उसी प्रकार पाण्डुनन्दन भीमने ताली बजाकर शत्रुसेनाओंको संत्रस्त करते हुए समस्त सैनिकोंपर विजय पा ली॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भोजानीकमतिक्रम्य दरदानां च वाहिनीम्।
तथा म्लेच्छगणानन्यान् बहून् युद्धविशारदान् ॥ २८ ॥
सात्यकिं चैव सम्प्रेक्ष्य युध्यमानं महारथम्।
रथेन यत्तः कौन्तेयो वेगेन प्रययौ तदा ॥ २९ ॥
मूलम्
भोजानीकमतिक्रम्य दरदानां च वाहिनीम्।
तथा म्लेच्छगणानन्यान् बहून् युद्धविशारदान् ॥ २८ ॥
सात्यकिं चैव सम्प्रेक्ष्य युध्यमानं महारथम्।
रथेन यत्तः कौन्तेयो वेगेन प्रययौ तदा ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय कुन्तीकुमार भीमसेन भोजवंशियोंकी सेनाको लाँघकर दरदोंकी विशाल वाहिनीको पार कर गये तथा बहुत-से युद्धविशारद म्लेच्छोंको परास्त करके महारथी सात्यकिको शत्रुओंके साथ युद्ध करते देख सावधान हो रथके द्वारा वेगपूर्वक आगे बढ़े॥२८-२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनो महाराज द्रष्टुकामो धनंजयम्।
अतीत्य समरे योधांस्तावकान् पाण्डुनन्दनः ॥ ३० ॥
मूलम्
भीमसेनो महाराज द्रष्टुकामो धनंजयम्।
अतीत्य समरे योधांस्तावकान् पाण्डुनन्दनः ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! अर्जुनको देखनेकी इच्छा लिये पाण्डुनन्दन भीमसेन समरांगणमें आपके योद्धाओंको लाँघते हुए वहाँ पहुँचे थे॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽपश्यदर्जुनं तत्र युध्यमानं महारथम्।
सैन्धवस्य वधार्थं हि पराक्रान्तं पराक्रमी ॥ ३१ ॥
मूलम्
सोऽपश्यदर्जुनं तत्र युध्यमानं महारथम्।
सैन्धवस्य वधार्थं हि पराक्रान्तं पराक्रमी ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पराक्रमी भीमने वहाँ सिंधुराजके वधके लिये पराक्रम करते हुए युद्धतत्पर महारथी अर्जुनको देखा॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं दृष्ट्वा पुरुषव्याघ्रश्चुक्रोश महतो रवान्।
प्रावृट्कले महाराज नर्दन्निव बलाहकः ॥ ३२ ॥
मूलम्
तं दृष्ट्वा पुरुषव्याघ्रश्चुक्रोश महतो रवान्।
प्रावृट्कले महाराज नर्दन्निव बलाहकः ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! उन्हें देखते ही पुरुषसिंह भीमने वर्षाकालमें गरजते हुए मेघके समान बड़े जोरसे सिंहनाद किया॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं तस्य निनदं घोरं पार्थः शुश्राव नर्दतः।
वासुदेवश्च कौरव्य भीमसेनस्य संयुगे ॥ ३३ ॥
मूलम्
तं तस्य निनदं घोरं पार्थः शुश्राव नर्दतः।
वासुदेवश्च कौरव्य भीमसेनस्य संयुगे ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुनन्दन! गरजते हुए भीमसेनके उस भयंकर सिंहनादको युद्धस्थलमें कुन्तीकुमार अर्जुन तथा भगवान् श्रीकृष्णने सुना॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तौ श्रुत्वा युगपद् वीरौ निनदं तस्य शुष्मिणः।
पुनः पुनः प्राणदतां दिदृक्षन्तौ वृकोदरम् ॥ ३४ ॥
मूलम्
तौ श्रुत्वा युगपद् वीरौ निनदं तस्य शुष्मिणः।
पुनः पुनः प्राणदतां दिदृक्षन्तौ वृकोदरम् ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस महाबली वीरके सिंहनादको एक ही साथ सुनकर उन दोनों वीरोंने भीमसेनको देखनेकी इच्छा प्रकट करते हुए बारंबार गर्जना की॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः पार्थो महानादं मुञ्चन् वै माधवश्च ह।
अभ्ययातां महाराज नर्दन्तौ गोवृषाविव ॥ ३५ ॥
मूलम्
ततः पार्थो महानादं मुञ्चन् वै माधवश्च ह।
अभ्ययातां महाराज नर्दन्तौ गोवृषाविव ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! गरजते हुए दो साँड़ोंके समान अर्जुन और श्रीकृष्ण महान् सिंहनाद करते हुए आगे बढ़ने लगे॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनरवं श्रुत्वा फाल्गुनस्य च धन्विनः।
अप्रीयत महाराज धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः ॥ ३६ ॥
मूलम्
भीमसेनरवं श्रुत्वा फाल्गुनस्य च धन्विनः।
अप्रीयत महाराज धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! भीमसेन तथा धनुर्धर अर्जुनकी गर्जना सुनकर धर्मपुत्र युधिष्ठिर बड़े प्रसन्न हुए॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विशोकश्चाभवद् राजा श्रुत्वा तं निनदं तयोः।
धनंजयस्य समरे जयमाशास्तवान् विभुः ॥ ३७ ॥
मूलम्
विशोकश्चाभवद् राजा श्रुत्वा तं निनदं तयोः।
धनंजयस्य समरे जयमाशास्तवान् विभुः ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन दोनोंका सिंहनाद सुनकर राजाका शोक दूर हो गया। वे शक्तिशाली नरेश समरभूमिमें अर्जुनकी विजयके लिये शुभ कामना करने लगे॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा तु नर्दमाने वै भीमसेने मदोत्कटे।
स्मितं कृत्वा महाबाहुर्धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः ॥ ३८ ॥
हृद्गतं मनसा प्राह ध्यात्वा धर्मभृतां वरः।
मूलम्
तथा तु नर्दमाने वै भीमसेने मदोत्कटे।
स्मितं कृत्वा महाबाहुर्धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः ॥ ३८ ॥
हृद्गतं मनसा प्राह ध्यात्वा धर्मभृतां वरः।
अनुवाद (हिन्दी)
मदोन्मत्त भीमसेनके बारंबार गर्जना करनेपर धर्मात्माओंमें श्रेष्ठ धर्मपुत्र महाबाहु युधिष्ठिर मुसकराकर मन-ही-मन कुछ सोचते हुए अपने हृदयकी बात इस प्रकार कहने लगे—॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दत्ता भीम त्वया संवित् कृतं गुरुवचस्तथा ॥ ३९ ॥
न हि तेषां जयो युद्धे येषां द्वेष्टासि पाण्डव।
दिष्ट्या जीवति संग्रामे सव्यसाची धनंजयः ॥ ४० ॥
मूलम्
दत्ता भीम त्वया संवित् कृतं गुरुवचस्तथा ॥ ३९ ॥
न हि तेषां जयो युद्धे येषां द्वेष्टासि पाण्डव।
दिष्ट्या जीवति संग्रामे सव्यसाची धनंजयः ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘भीम! तुमने सूचना दे दी और गुरुजनकी आज्ञाका पालन कर दिया। पाण्डुनन्दन! जिनके शत्रु तुम हो, उन्हें युद्धमें विजय नहीं प्राप्त हो सकती। सौभाग्यकी बात है कि संग्रामभूमिमें सव्यसाची अर्जुन जीवित है॥३९-४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दिष्ट्या च कुशली वीरः सात्यकिः सत्यविक्रमः।
दिष्ट्या शृणोमि गर्जन्तौ वासुदेवधनंजयौ ॥ ४१ ॥
मूलम्
दिष्ट्या च कुशली वीरः सात्यकिः सत्यविक्रमः।
दिष्ट्या शृणोमि गर्जन्तौ वासुदेवधनंजयौ ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘यह भी आनन्दकी बात है कि सत्यपराक्रमी वीर सात्यकि सकुशल हैं। मैं सौभाग्यवश इस समय भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुनकी गर्जना सुन रहा हूँ॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
येन शक्रं रणे जित्वा तर्पितो हव्यवाहनः।
स हन्ता द्विषतां संख्ये दिष्ट्या जीवति फाल्गुनः ॥ ४२ ॥
मूलम्
येन शक्रं रणे जित्वा तर्पितो हव्यवाहनः।
स हन्ता द्विषतां संख्ये दिष्ट्या जीवति फाल्गुनः ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जिसने रणक्षेत्रमें इन्द्रको जीतकर अग्निदेवको तृप्त किया था, वह शत्रुहन्ता अर्जुन मेरे सौभाग्यसे युद्धस्थलमें जीवित है॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्य बाहुबलं सर्वे वयमाश्रित्य जीविताः।
स हन्ता रिपुसैन्यानां दिष्ट्या जीवति फाल्गुनः ॥ ४३ ॥
मूलम्
यस्य बाहुबलं सर्वे वयमाश्रित्य जीविताः।
स हन्ता रिपुसैन्यानां दिष्ट्या जीवति फाल्गुनः ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जिसके बाहुबलका भरोसा करके हम सब लोग जीवन धारण करते हैं, शत्रुसेनाओंका संहार करनेवाला वह अर्जुन हमारे सौभाग्यसे जीवित है॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निवातकवचा येन देवैरपि सुदुर्जयाः।
निर्जिता धुनुषैकेन दिष्ट्या पार्थः स जीवति ॥ ४४ ॥
मूलम्
निवातकवचा येन देवैरपि सुदुर्जयाः।
निर्जिता धुनुषैकेन दिष्ट्या पार्थः स जीवति ॥ ४४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जिसने देवताओंके लिये भी अत्यन्त दुर्जय निवातकवच नामक दानवोंको एकमात्र धनुषकी सहायतासे जीत लिया था, वह कुन्तीकुमार अर्जुन हमारे भाग्यसे जीवित है॥४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कौरवान् सहितान् सर्वान् गोग्रहार्थे समागतान्।
योऽजयन्मत्स्यनगरे दिष्ट्या पार्थः स जीवति ॥ ४५ ॥
मूलम्
कौरवान् सहितान् सर्वान् गोग्रहार्थे समागतान्।
योऽजयन्मत्स्यनगरे दिष्ट्या पार्थः स जीवति ॥ ४५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘विराटकी गौओंका अपहरण करनेके लिये एक साथ आये हुए समस्त कौरवोंको जिसने मत्स्य देशकी राजधानीके समीप पराजित किया था, वह पार्थ जीवित है, यह सौभाग्यकी बात है॥४५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कालकेयसहस्राणि चतुर्दश महारणे ।
योऽवधीद् भुजवीर्येण दिष्ट्या पार्थः स जीवति ॥ ४६ ॥
मूलम्
कालकेयसहस्राणि चतुर्दश महारणे ।
योऽवधीद् भुजवीर्येण दिष्ट्या पार्थः स जीवति ॥ ४६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जिसने महासमरमें अपने बाहुबलसे चौदह हजार कालकेय नामक दैत्योंका वध किया था, वह अर्जुन हमारे भाग्यसे जीवित है॥४६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गन्धर्वराजं बलिनं दुर्योधनकृते च वै।
जितवान् योऽस्त्रवीर्येण दिष्ट्या पार्थः स जीवति ॥ ४७ ॥
मूलम्
गन्धर्वराजं बलिनं दुर्योधनकृते च वै।
जितवान् योऽस्त्रवीर्येण दिष्ट्या पार्थः स जीवति ॥ ४७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जिसने अपने अस्त्र-बलसे दुर्योधनके लिये बलवान् गन्धर्वराज चित्रसेनको परास्त किया था, वह पार्थ सौभाग्यवश जीवित है॥४७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
किरीटमाली बलवान् श्वेताश्वः कृष्णसारथिः।
मम प्रियश्च सततं दिष्ट्या पार्थः स जीवति ॥ ४८ ॥
मूलम्
किरीटमाली बलवान् श्वेताश्वः कृष्णसारथिः।
मम प्रियश्च सततं दिष्ट्या पार्थः स जीवति ॥ ४८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जिसके मस्तकपर किरीट शोभा पाता है, जिसके रथमें श्वेत घोड़े जोते जाते हैं, भगवान् श्रीकृष्ण जिसके सारथि हैं तथा जो सदा ही मुझे प्रिय लगता है, वह बलवान् अर्जुन अभी जीवित है, यह सौभाग्यकी बात है॥४८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुत्रशोकाभिसंतप्तश्चिकीर्षन् कर्म दुष्करम् ।
जयद्रथवधान्वेषी प्रतिज्ञां कृतवान् हि यः ॥ ४९ ॥
कच्चित् स सैन्धवं संख्ये हनिष्यति धनंजयः।
कच्चित् तीर्णप्रतिज्ञं हि वासुदेवेन रक्षितम् ॥ ५० ॥
अनस्तमित आदित्ये समेष्याम्यहमर्जुनम् ।
मूलम्
पुत्रशोकाभिसंतप्तश्चिकीर्षन् कर्म दुष्करम् ।
जयद्रथवधान्वेषी प्रतिज्ञां कृतवान् हि यः ॥ ४९ ॥
कच्चित् स सैन्धवं संख्ये हनिष्यति धनंजयः।
कच्चित् तीर्णप्रतिज्ञं हि वासुदेवेन रक्षितम् ॥ ५० ॥
अनस्तमित आदित्ये समेष्याम्यहमर्जुनम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
‘जिसने पुत्रशोकसे संतप्त हो दुष्कर कर्म करनेकी इच्छा रखकर जयद्रथके वधकी अभिलाषासे भारी प्रतिज्ञा कर ली है, वह अर्जुन क्या आज युद्धमें सिंधुराजको मार डालेगा? क्या सूर्यास्त होनेसे पहले ही प्रतिज्ञा पूर्ण करके लौटे हुए, भगवान् श्रीकृष्णद्वारा सुरक्षित अर्जुनसे मैं मिल सकूँगा?॥४९-५०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कच्चित् सैन्धवको राजा दुर्योधनहिते रतः ॥ ५१ ॥
नन्दयिष्यत्यमित्रान् हि फाल्गुनेन निपातितः।
मूलम्
कच्चित् सैन्धवको राजा दुर्योधनहिते रतः ॥ ५१ ॥
नन्दयिष्यत्यमित्रान् हि फाल्गुनेन निपातितः।
अनुवाद (हिन्दी)
‘क्या दुर्योधनके हितमें तत्पर रहनेवाला राजा जयद्रथ अर्जुनके हाथसे मारा जाकर शत्रुपक्षको आनन्दित करेगा?॥५१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कच्चिद् दुर्योधनो राजा फाल्गुनेन निपातितम् ॥ ५२ ॥
दृष्ट्वा सैन्धवकं संख्ये शममस्मासु धास्यति।
मूलम्
कच्चिद् दुर्योधनो राजा फाल्गुनेन निपातितम् ॥ ५२ ॥
दृष्ट्वा सैन्धवकं संख्ये शममस्मासु धास्यति।
अनुवाद (हिन्दी)
‘क्या युद्धमें सिंधुराजको अर्जुनके हाथसे मारा गया देखकर राजा दुर्योधन हमारे साथ संधि कर लेगा?॥५२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्ट्वा विनिहतान् भ्रातॄन् भीमसेनेन संयुगे ॥ ५३ ॥
कच्चिद् दुर्योधनो मन्दः शममस्मासु धास्यति।
मूलम्
दृष्ट्वा विनिहतान् भ्रातॄन् भीमसेनेन संयुगे ॥ ५३ ॥
कच्चिद् दुर्योधनो मन्दः शममस्मासु धास्यति।
अनुवाद (हिन्दी)
‘क्या मूर्ख दुर्योधन संग्रामभूमिमें भीमसेनके हाथसे अपने भाइयोंका वध होता देखकर हमारे साथ संधि कर लेगा?॥५३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्ट्वा चान्यान् महायोधान् पातितान् धरणीतले।
कच्चिद् दुर्योधनो मन्दः पश्चात्तापं गमिष्यति ॥ ५४ ॥
मूलम्
दृष्ट्वा चान्यान् महायोधान् पातितान् धरणीतले।
कच्चिद् दुर्योधनो मन्दः पश्चात्तापं गमिष्यति ॥ ५४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘अन्यान्य बड़े-बड़े योद्धाओंको भी धराशायी किये गये देखकर क्या मन्दबुद्धि दुर्योधनको पश्चात्ताप होगा?॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कच्चिद् भीष्मेण नो वैरं शममेकेन यास्यति।
शेषस्य रक्षणार्थं च संधास्यति सुयोधनः ॥ ५५ ॥
मूलम्
कच्चिद् भीष्मेण नो वैरं शममेकेन यास्यति।
शेषस्य रक्षणार्थं च संधास्यति सुयोधनः ॥ ५५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘क्या एकमात्र भीष्मकी मृत्युसे हमलोगोंका वैर शान्त हो जायगा? क्या शेष वीरोंकी रक्षाके लिये दुर्योधन हमारे साथ संधि कर लेगा?’॥५५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं बहुविधं तस्य राज्ञश्चिन्तयतस्तदा।
कृपयाभिपरीतस्य घोरं युद्धमवर्तत ॥ ५६ ॥
मूलम्
एवं बहुविधं तस्य राज्ञश्चिन्तयतस्तदा।
कृपयाभिपरीतस्य घोरं युद्धमवर्तत ॥ ५६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार राजा युधिष्ठिर जब दयासे द्रवित होकर भाँति-भाँतिकी बातें सोच रहे थे, उस समय दूसरी ओर घोर युद्ध हो रहा था॥५६॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि भीमसेनप्रवेशे युधिष्ठिरहर्षे अष्टाविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १२८ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत जयद्रथवधपर्वमें भीमसेनका कौरव-सेनामें प्रवेश तथा युधिष्ठिरका हर्षविषयक एक सौ अट्ठाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१२८॥