भागसूचना
त्रयोविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
सात्यकिका घोर युद्ध और दुःशासनकी पराजय
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो दुःशासनो राजन् शैनेयं समुपाद्रवत्।
किरन् शतसहस्राणि पर्जन्य इव वृष्टिमान् ॥ १ ॥
मूलम्
ततो दुःशासनो राजन् शैनेयं समुपाद्रवत्।
किरन् शतसहस्राणि पर्जन्य इव वृष्टिमान् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— राजन्! तदनन्तर दुःशासनने वर्षा करनेवाले मेघके समान लाखों बाण बिखेरते हुए वहाँ शिनिपौत्र सात्यकिपर धावा कर दिया॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स विद्ध्वा सात्यकिं षष्ट्या तथा षोडशभिः शरैः।
नाकम्पयत् स्थितं युद्धे मैनाकमिव पर्वतम् ॥ २ ॥
मूलम्
स विद्ध्वा सात्यकिं षष्ट्या तथा षोडशभिः शरैः।
नाकम्पयत् स्थितं युद्धे मैनाकमिव पर्वतम् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह पहले साठ फिर सोलह बाणोंसे बींधकर भी युद्धमें मैनाक पर्वतकी भाँति अविचलभावसे खड़े हुए सात्यकिको कम्पित न कर सका॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं तु दुःशासनः शूरः सायकैरावृणोद् भृशम्।
रथव्रातेन महता नानादेशोद्भवेन च ॥ ३ ॥
मूलम्
तं तु दुःशासनः शूरः सायकैरावृणोद् भृशम्।
रथव्रातेन महता नानादेशोद्भवेन च ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शूरवीर दुःशासनने नाना देशोंसे प्राप्त हुए विशाल रथसमूहके द्वारा तथा बाणोंकी वर्षासे भी सात्यकिको अत्यन्त आवृत कर लिया॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्वतो भरतश्रेष्ठ विसृजन् सायकान् बहून्।
पर्जन्य इव घोषेण नादयन् वै दिशो दश ॥ ४ ॥
मूलम्
सर्वतो भरतश्रेष्ठ विसृजन् सायकान् बहून्।
पर्जन्य इव घोषेण नादयन् वै दिशो दश ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! उसने मेघके समान अपनी गम्भीर गर्जनासे दसों दिशाओंको निनादित करते हुए चारों ओरसे बहुत-से बाणोंकी वर्षा की॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तमालोक्य सात्यकिः कौरवं रणे।
अभिद्रुत्य महाबाहुश्छादयामास सायकैः ॥ ५ ॥
मूलम्
तमापतन्तमालोक्य सात्यकिः कौरवं रणे।
अभिद्रुत्य महाबाहुश्छादयामास सायकैः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुवंशी दुःशासनको रणक्षेत्रमें आक्रमण करते देख महाबाहु सात्यकिने उसपर धावा करके अपने बाणोंद्वारा उसे आच्छादित कर दिया॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते छाद्यमाना बाणौघैर्दुःशासनपुरोगमाः ।
प्राद्रवन् समरे भीतास्तव सैन्यस्य पश्यतः ॥ ६ ॥
मूलम्
ते छाद्यमाना बाणौघैर्दुःशासनपुरोगमाः ।
प्राद्रवन् समरे भीतास्तव सैन्यस्य पश्यतः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे दुःशासन आदि योद्धा सात्यकिके बाण-समूहोंसे आच्छादित होनेपर समरभूमिमें भयभीत हो उठे और आपकी सारी सेनाके देखते-देखते भागने लगे॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषु द्रवत्सु राजेन्द्र पुत्रो दुःशासनस्तव।
तस्थौ व्यपेतभी राजन् सात्यकिं चार्दयच्छरैः ॥ ७ ॥
मूलम्
तेषु द्रवत्सु राजेन्द्र पुत्रो दुःशासनस्तव।
तस्थौ व्यपेतभी राजन् सात्यकिं चार्दयच्छरैः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! उनके भागनेपर भी आपका पुत्र दुःशासन वहीं निर्भय खड़ा रहा। उसने सात्यकिको अपने बाणोंसे पीड़ित कर दिया॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चतुर्भिर्वाजिनस्तस्य सारथिं च त्रिभिः शरैः।
सात्यकिं च शतेनाजौ विद्ध्वा नादं मुमोच सः ॥ ८ ॥
मूलम्
चतुर्भिर्वाजिनस्तस्य सारथिं च त्रिभिः शरैः।
सात्यकिं च शतेनाजौ विद्ध्वा नादं मुमोच सः ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसने चार बाणोंसे उसके घोड़ोंको, तीनसे सारथिको और सौ बाणोंसे स्वयं सात्यकिको युद्धभूमिमें घायल करके बड़े जोरसे गर्जना की॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः क्रुद्धो महाराज माधवस्तस्य संयुगे।
रथं सूतं ध्वजं तं च चक्रेऽदृश्यमजिह्मगैः ॥ ९ ॥
मूलम्
ततः क्रुद्धो महाराज माधवस्तस्य संयुगे।
रथं सूतं ध्वजं तं च चक्रेऽदृश्यमजिह्मगैः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! तब मधुवंशी सात्यकिने समरांगणमें कुपित होकर दुःशासनके रथ, सारथि और ध्वजको अपने बाणोंद्वारा अदृश्य कर दिया॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तु दुःशासनं शूरं सायकैरावृणोद् भृशम्।
सशङ्कं समनुप्राप्तमूर्णनाभिरिवोर्णया ॥ १० ॥
त्वरन् समावृणोद् बाणैर्दुःशासनममित्रजित् ।
मूलम्
स तु दुःशासनं शूरं सायकैरावृणोद् भृशम्।
सशङ्कं समनुप्राप्तमूर्णनाभिरिवोर्णया ॥ १० ॥
त्वरन् समावृणोद् बाणैर्दुःशासनममित्रजित् ।
अनुवाद (हिन्दी)
इतना ही नहीं, उन्होंने शूरवीर दुःशासनको अपने बाणोंसे अत्यन्त आच्छादित कर दिया। जैसे मकड़ी अपने जालेसे किसी जीवको लपेट देती है, उसी प्रकार शंकितभावसे पास आये हुए दुःशासनको शत्रुविजयी सात्यकिने बड़ी उतावलीके साथ अपने बाणोंद्वारा आवृत कर लिया॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्ट्वा दुःशासनं राजा तथा शरशताचितम् ॥ ११ ॥
त्रिगर्तांश्चोदयामास युयुधानरथं प्रति ।
मूलम्
दृष्ट्वा दुःशासनं राजा तथा शरशताचितम् ॥ ११ ॥
त्रिगर्तांश्चोदयामास युयुधानरथं प्रति ।
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार दुःशासनको सैकड़ों बाणोंसे ढका हुआ देख राजा दुर्योधनने त्रिगर्तोंको युयुधानके रथपर आक्रमण करनेकी आज्ञा दी॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेऽगच्छन् युयुधानस्य समीपं क्रूरकर्मणः ॥ १२ ॥
त्रिगर्तानां त्रिसाहस्रा रथा युद्धविशारदाः।
मूलम्
तेऽगच्छन् युयुधानस्य समीपं क्रूरकर्मणः ॥ १२ ॥
त्रिगर्तानां त्रिसाहस्रा रथा युद्धविशारदाः।
अनुवाद (हिन्दी)
वे त्रिगर्तोंके तीन हजार रथी, जो युद्धमें कुशल थे, कठोर कर्म करनेवाले युयुधानके समीप गये॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते तु तं रथवंशेन महता पर्यवारयन् ॥ १३ ॥
स्थिरां कृत्वा मतिं युद्धे भूत्वा संशप्तका मिथः।
मूलम्
ते तु तं रथवंशेन महता पर्यवारयन् ॥ १३ ॥
स्थिरां कृत्वा मतिं युद्धे भूत्वा संशप्तका मिथः।
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने युद्धके लिये दृढ़ निश्चय करके परस्पर शपथ ग्रहण करनेके अनन्तर विशाल रथसेनाके द्वारा उन्हें घेर लिया॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां प्रपततां युद्धे शरवर्षाणि मुञ्चताम् ॥ १४ ॥
योधान् पञ्चशतान् मुख्यानग्र्यानीके व्यपोथयत्।
मूलम्
तेषां प्रपततां युद्धे शरवर्षाणि मुञ्चताम् ॥ १४ ॥
योधान् पञ्चशतान् मुख्यानग्र्यानीके व्यपोथयत्।
अनुवाद (हिन्दी)
तब सात्यकिने युद्धमें बाण-वर्षा करते हुए आक्रमण करनेवाले पाँच सौ प्रमुख योद्धाओंको सेनाके मुहानेपर मार गिराया॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेऽपतन् निहतास्तूर्णं शिनिप्रवरसायकैः ॥ १५ ॥
महामारुतवेगेन भग्ना इव नगाद् द्रुमाः।
मूलम्
तेऽपतन् निहतास्तूर्णं शिनिप्रवरसायकैः ॥ १५ ॥
महामारुतवेगेन भग्ना इव नगाद् द्रुमाः।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे आँधीके वेगसे टूटे हुए वृक्ष पर्वतसे नीचे गिरते हैं, उसी प्रकार शिनिश्रेष्ठ सात्यकिके बाणोंसे मारे गये वे त्रिगर्त योद्धा तुरंत ही धराशायी हो गये॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नागैश्च बहुधा च्छिन्नैर्ध्वजैश्चैव विशाम्पते ॥ १६ ॥
हयैश्च कनकापीडैः पतितैस्तत्र मेदिनी।
शैनेयशरसंकृत्तैः शोणितौघपरिप्लुतैः ॥ १७ ॥
अशोभत महाराज किंशुकैरिव पुष्पितैः।
मूलम्
नागैश्च बहुधा च्छिन्नैर्ध्वजैश्चैव विशाम्पते ॥ १६ ॥
हयैश्च कनकापीडैः पतितैस्तत्र मेदिनी।
शैनेयशरसंकृत्तैः शोणितौघपरिप्लुतैः ॥ १७ ॥
अशोभत महाराज किंशुकैरिव पुष्पितैः।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! प्रजापालक नरेश! उस समय गिरे हुए गजराजों, अनेक टुकड़ोंमें कटी हुई ध्वजाओं तथा धरतीपर पड़े हुए, सोनेकी कलंगियोंसे सुशोभित घोड़ोंसे, जो सात्यकिके बाणोंसे क्षत-विक्षत होकर खूनसे लथपथ हो रहे थे, आच्छादित हुई यह पृथ्वी वैसी ही शोभा पा रही थी, मानो वह लाल फूलोंसे भरे हुए पलाशके वृक्षोंद्वारा ढक गयी हो॥१६-१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते वध्यमानाः समरे युयुधानेन तावकाः ॥ १८ ॥
त्रातारं नाध्यगच्छन्त पङ्कमग्ना इव द्विपाः।
मूलम्
ते वध्यमानाः समरे युयुधानेन तावकाः ॥ १८ ॥
त्रातारं नाध्यगच्छन्त पङ्कमग्ना इव द्विपाः।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे कीचड़में फँसे हुए हाथियोंको कोई रक्षक नहीं मिलता है, उसी प्रकार समरांगणमें युयुधानकी मार खाते हुए आपके सैनिक कोई रक्षक न पा सके॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्ते पर्यवर्तन्त सर्वे द्रोणरथं प्रति ॥ १९ ॥
भयात् पतगराजस्य गर्तानीव महोरगाः।
मूलम्
ततस्ते पर्यवर्तन्त सर्वे द्रोणरथं प्रति ॥ १९ ॥
भयात् पतगराजस्य गर्तानीव महोरगाः।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे बड़े-बड़े सर्प गरुड़के भयसे बिलोंमें घुस जाते हैं, उसी प्रकार आपके वे सभी पराजित सैनिक द्रोणाचार्यके रथके पास इकट्ठे हो गये॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हत्वा पञ्चशतान् योधान् शरैराशीविषोपमैः ॥ २० ॥
प्रायात् स शनकैर्वीरो धनंजयरथं प्रति।
मूलम्
हत्वा पञ्चशतान् योधान् शरैराशीविषोपमैः ॥ २० ॥
प्रायात् स शनकैर्वीरो धनंजयरथं प्रति।
अनुवाद (हिन्दी)
विषधर सर्पके समान भयंकर बाणोंद्वारा पाँच सौ योद्धाओंका संहार करके वीर सात्यकि धीरे-धीरे धनंजयके रथकी ओर बढ़ने लगे॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं प्रयान्तं नरश्रेष्ठं पुत्रो दुःशासनस्तव ॥ २१ ॥
विव्याध नवभिस्तूर्णं शरैः संनतपर्वभिः।
मूलम्
तं प्रयान्तं नरश्रेष्ठं पुत्रो दुःशासनस्तव ॥ २१ ॥
विव्याध नवभिस्तूर्णं शरैः संनतपर्वभिः।
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय आपके पुत्र दुःशासनने वहाँसे जाते हुए नरश्रेष्ठ सात्यकिको झुकी हुई गाँठवाले नौ बाणोंद्वारा शीघ्र ही बींध डाला॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तु तं प्रतिविव्याध पञ्चभिर्निशितैः शरैः ॥ २२ ॥
रुक्मपुङ्खैर्महेष्वासो गार्ध्रपत्रैरजिह्मगैः ।
मूलम्
स तु तं प्रतिविव्याध पञ्चभिर्निशितैः शरैः ॥ २२ ॥
रुक्मपुङ्खैर्महेष्वासो गार्ध्रपत्रैरजिह्मगैः ।
अनुवाद (हिन्दी)
तब महाधनुर्धर सात्यकिने भी सोनेके पुंख तथा गीधकी पाँखवाले पाँच तीखे और सीधे जानेवाले बाणोंद्वारा दुःशासनको वेधकर बदला चुकाया॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सात्यकिं तु महाराज प्रहसन्निव भारत ॥ २३ ॥
दुःशासनस्त्रिभिर्विद्ध्वा पुनर्विव्याध पञ्चभिः ।
मूलम्
सात्यकिं तु महाराज प्रहसन्निव भारत ॥ २३ ॥
दुःशासनस्त्रिभिर्विद्ध्वा पुनर्विव्याध पञ्चभिः ।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतवंशी महाराज! इसके बाद दुःशासनने हँसते हुए-से ही वहाँ तीन बाणोंद्वारा सात्यकिको घायल करके पुनः पाँच बाणोंसे बींध डाला॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शैनेयस्तव पुत्रं तु हत्वा पञ्चभिराशुगैः ॥ २४ ॥
धनुश्चास्य रणे छित्त्वा विस्मयन्नर्जुनं ययौ।
मूलम्
शैनेयस्तव पुत्रं तु हत्वा पञ्चभिराशुगैः ॥ २४ ॥
धनुश्चास्य रणे छित्त्वा विस्मयन्नर्जुनं ययौ।
अनुवाद (हिन्दी)
तब शिनिपौत्र सात्यकि पाँच बाणोंसे आपके पुत्रको रणक्षेत्रमें घायल करके उसका धनुष काटकर मुसकराते हुए वहाँसे अर्जुनकी ओर चल दिये॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो दुःशासनः क्रुद्धो वृष्णिवीराय गच्छते ॥ २५ ॥
सर्वपारशवीं शक्तिं विससर्ज जिघांसया।
मूलम्
ततो दुःशासनः क्रुद्धो वृष्णिवीराय गच्छते ॥ २५ ॥
सर्वपारशवीं शक्तिं विससर्ज जिघांसया।
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर दुःशासनने वहाँसे जाते हुए वृष्णिवीर सात्यकिपर कुपित हो उन्हें मार डालनेकी इच्छासे सम्पूर्णतः लोहेकी बनी हुई शक्ति चलायी॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तां तु शक्तिं तदा घोरां तव पुत्रस्य सात्यकिः॥२६॥
चिच्छेद शतधा राजन् निशितैः कङ्कपत्रिभिः।
मूलम्
तां तु शक्तिं तदा घोरां तव पुत्रस्य सात्यकिः॥२६॥
चिच्छेद शतधा राजन् निशितैः कङ्कपत्रिभिः।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! आपके पुत्रकी उस भयंकर शक्तिको उस समय सात्यकिने कंकपत्रयुक्त तीखे बाणोंद्वारा सौ टुकड़ोंमें खण्डित कर दिया॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथान्यद् धनुरादाय पुत्रस्तव जनेश्वर ॥ २७ ॥
सात्यकिं च शरैर्विद्ध्वा सिंहनादं ननर्द ह।
मूलम्
अथान्यद् धनुरादाय पुत्रस्तव जनेश्वर ॥ २७ ॥
सात्यकिं च शरैर्विद्ध्वा सिंहनादं ननर्द ह।
अनुवाद (हिन्दी)
जनेश्वर! तत्पश्चात् आपके पुत्रने दूसरा धनुष लेकर सात्यकिको अपने बाणोंद्वारा घायल करके सिंहके समान गर्जना की॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सात्यकिस्तु रणे क्रुद्धो मोहयित्वा सुतं तव ॥ २८ ॥
शरैरग्निशिखाकारैराजघान स्तनान्तरे ।
त्रिभिरेव महाभागः शरैः संनतपर्वभिः।
मूलम्
सात्यकिस्तु रणे क्रुद्धो मोहयित्वा सुतं तव ॥ २८ ॥
शरैरग्निशिखाकारैराजघान स्तनान्तरे ।
त्रिभिरेव महाभागः शरैः संनतपर्वभिः।
अनुवाद (हिन्दी)
इससे महाभाग सात्यकिने समरांगणमें कुपित होकर आपके पुत्रको मोहित करते हुए झुकी हुई गाँठवाले अग्निकी लपटोंके समान प्रज्वलित तीन बाणोंद्वारा उसकी छातीमें गहरी चोट पहुँचायी॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्वायसैस्तीक्ष्णवक्त्रैः पुनर्विव्याध चाष्टभिः ॥ २९ ॥
दुःशासनस्तु विंशत्या सात्यकिं प्रत्यविध्यत।
मूलम्
सर्वायसैस्तीक्ष्णवक्त्रैः पुनर्विव्याध चाष्टभिः ॥ २९ ॥
दुःशासनस्तु विंशत्या सात्यकिं प्रत्यविध्यत।
अनुवाद (हिन्दी)
फिर लोहेके बने हुए तीखी धारवाले आठ बाणोंसे उसे पुनः घायल कर दिया। तब दुःशासनने भी बीस बाण मारकर सात्यकिको क्षत-विक्षत कर दिया॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सात्वतोऽपि महाराज तं विव्याध स्तनान्तरे ॥ ३० ॥
त्रिभिरेव महाभागः शरैः संनतपर्वभिः।
मूलम्
सात्वतोऽपि महाराज तं विव्याध स्तनान्तरे ॥ ३० ॥
त्रिभिरेव महाभागः शरैः संनतपर्वभिः।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! इधर महाभाग सात्यकिने भी झुकी हुई गाँठवाले तीन बाणोंद्वारा दुःशासनकी छातीमें चोट पहुँचायी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽस्य वाहान् निशितैः शरैर्जघ्ने महारथः ॥ ३१ ॥
सारथिं च सुसंक्रुद्धः शरैः संनतपर्वभिः।
मूलम्
ततोऽस्य वाहान् निशितैः शरैर्जघ्ने महारथः ॥ ३१ ॥
सारथिं च सुसंक्रुद्धः शरैः संनतपर्वभिः।
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद महारथी युयुधानने अत्यन्त कुपित हो पैने बाणोंसे उसके चारों घोड़ोंको मार डाला। फिर झुकी हुई गाँठवाले बाणोंसे सारथिको भी यमलोक पहुँचा दिया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धनुरेकेन भल्लेन हस्तावापं च पञ्चभिः ॥ ३२ ॥
ध्वजं च रथशक्तिं च भल्लाभ्यां परमास्त्रवित्।
चिच्छेद विशिखैस्तीक्ष्णैस्तथोभौ पार्ष्णिसारथी ॥ ३३ ॥
मूलम्
धनुरेकेन भल्लेन हस्तावापं च पञ्चभिः ॥ ३२ ॥
ध्वजं च रथशक्तिं च भल्लाभ्यां परमास्त्रवित्।
चिच्छेद विशिखैस्तीक्ष्णैस्तथोभौ पार्ष्णिसारथी ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर महान् अस्त्रवेत्ता सात्यकिने एक भल्लसे दुःशासनका धनुष, पाँचसे उसके दस्ताने तथा दो भल्लोंसे उसकी ध्वजा एवं रथशक्तिके भी टुकड़े-टुकड़े कर दिये। इतना ही नहीं, उन्होंने तीखे बाणोंद्वारा उसके दोनों पार्श्वरक्षकोंको भी मार डाला॥३२-३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स च्छिन्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
त्रिगर्तसेनापतिना स्वरथेनापवाहितः ॥ ३४ ॥
मूलम्
स च्छिन्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
त्रिगर्तसेनापतिना स्वरथेनापवाहितः ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धनुष कट जानेपर रथ, घोड़े और सारथिसे हीन हुए दुःशासनको त्रिगर्त-सेनापतिने अपने रथपर बिठाकर वहाँसे दूर हटा दिया॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमभिद्रुत्य शैनेयो मुहूर्तमिव भारत।
न जघान महाबाहुर्भीमसेनवचः स्मरन् ॥ ३५ ॥
मूलम्
तमभिद्रुत्य शैनेयो मुहूर्तमिव भारत।
न जघान महाबाहुर्भीमसेनवचः स्मरन् ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! उस समय महाबाहु सात्यकिने लगभग दो घड़ीतक दुःशासनका पीछा किया; परंतु भीमसेनकी बात याद आ जानेसे उसका वध नहीं किया॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनेन तु वधः सुतानां तव भारत।
प्रतिज्ञातः सभामध्ये सर्वेषामेव संयुगे ॥ ३६ ॥
मूलम्
भीमसेनेन तु वधः सुतानां तव भारत।
प्रतिज्ञातः सभामध्ये सर्वेषामेव संयुगे ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! भीमसेनने सभामें सबके सामने ही युद्धस्थलमें आपके पुत्रोंका वध करनेकी प्रतिज्ञा की थी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो दुःशासनं जित्वा सात्यकिः संयुगे प्रभो।
जगाम त्वरितो राजन् येन यातो धनंजयः ॥ ३७ ॥
मूलम्
ततो दुःशासनं जित्वा सात्यकिः संयुगे प्रभो।
जगाम त्वरितो राजन् येन यातो धनंजयः ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! प्रभो! इस प्रकार समरांगणमें दुःशासनपर विजय पाकर सात्यकि तत्काल ही उसी मार्गपर चल दिये, जिससे अर्जुन गये थे॥३७॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि सात्यकिप्रवेशे दुःशासनपराजये त्रयोविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १२३ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत जयद्रथवधपर्वमें सात्यकिका प्रवेश और दुःशासनकी पराजयविषयक एक सौ तेईसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१२३॥