१०९ अलम्बुषवधे

भागसूचना

नवाधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

घटोत्कचद्वारा अलम्बुषका वध और पाण्डव-सेनामें हर्ष-ध्वनि

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

अलम्बुषं तथा युद्धे विचरन्तमभीतवत्।
हैडिम्बिः प्रययौ तूर्णं विव्याध निशितैः शरैः ॥ १ ॥

मूलम्

अलम्बुषं तथा युद्धे विचरन्तमभीतवत्।
हैडिम्बिः प्रययौ तूर्णं विव्याध निशितैः शरैः ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! युद्धमें इस प्रकार निर्भय-से विचरते हुए अलम्बुषके पास हिडिम्बाकुमार घटोत्कच बड़े वेगसे जा पहुँचा और उसे अपने तीखे बाणोंद्वारा बींधने लगा॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तयोः प्रतिभयं युद्धमासीद् राक्षससिंहयोः।
कुर्वतोर्विविधा मायाः शक्रशम्बरयोरिव ॥ २ ॥

मूलम्

तयोः प्रतिभयं युद्धमासीद् राक्षससिंहयोः।
कुर्वतोर्विविधा मायाः शक्रशम्बरयोरिव ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों राक्षसोंमें सिंहके समान पराक्रमी थे और इन्द्र तथा शम्बरासुरके समान नाना प्रकारकी मायाओंका प्रयोग करते थे। उन दोनोंमें बड़ा भयंकर युद्ध हुआ॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अलम्बुषो भृशं क्रुद्धो घटोत्कचमताडयत्।
तयोर्युद्धं समभवद् रक्षोग्रामणिमुख्ययोः ॥ ३ ॥
यादृगेव पुरा वृत्तं रामरावणयोः प्रभो।

मूलम्

अलम्बुषो भृशं क्रुद्धो घटोत्कचमताडयत्।
तयोर्युद्धं समभवद् रक्षोग्रामणिमुख्ययोः ॥ ३ ॥
यादृगेव पुरा वृत्तं रामरावणयोः प्रभो।

अनुवाद (हिन्दी)

अलम्बुषने अत्यन्त कुपित होकर घटोत्कचको घायल कर दिया। वे दोनों राक्षस समाजके मुखिया थे। प्रभो! जैसे पूर्वकालमें श्रीराम और रावणका संग्राम हुआ था, उसी प्रकार उन दोनोंमें भी युद्ध हुआ॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

घटोत्कचस्तु विंशत्या नाराचानां स्तनान्तरे ॥ ४ ॥
अलम्बुषमथो विद्‌ध्वा सिंहवद् व्यनदन्मुहुः।

मूलम्

घटोत्कचस्तु विंशत्या नाराचानां स्तनान्तरे ॥ ४ ॥
अलम्बुषमथो विद्‌ध्वा सिंहवद् व्यनदन्मुहुः।

अनुवाद (हिन्दी)

घटोत्कचने बीस नाराचोंद्वारा अलम्बुषकी छातीमें गहरी चोट पहुँचाकर बारंबार सिंहके समान गर्जना की॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैवालम्बुषो राजन् हैडिम्बिं युद्धदुर्मदम् ॥ ५ ॥
विद्‌ध्वा विद्‌ध्वा नदद्‌धृष्टःपूरयन् खं समन्ततः।

मूलम्

तथैवालम्बुषो राजन् हैडिम्बिं युद्धदुर्मदम् ॥ ५ ॥
विद्‌ध्वा विद्‌ध्वा नदद्‌धृष्टःपूरयन् खं समन्ततः।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इसी प्रकार अलम्बुष भी युद्धदुर्मद घटोत्कचको बारंबार घायल करके समूचे आकाशको हर्षपूर्वक गुँजाता हुआ सिंहनाद करता था॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा तौ भृशसंक्रुद्धौ राक्षसेन्द्रौ महाबलौ ॥ ६ ॥
निर्विशेषमयुध्येतां मायाभिरितरेतरम् ।

मूलम्

तथा तौ भृशसंक्रुद्धौ राक्षसेन्द्रौ महाबलौ ॥ ६ ॥
निर्विशेषमयुध्येतां मायाभिरितरेतरम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए वे दोनों महाबली राक्षसराज परस्पर मायाओंको प्रयोग करते हुए समानरूपसे युद्ध करने लगे॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मायाशतसृजौ नित्यं मोहयन्तौ परस्परम् ॥ ७ ॥
मायायुद्धेषु कुशलौ मायायुद्धमयुध्यताम् ।

मूलम्

मायाशतसृजौ नित्यं मोहयन्तौ परस्परम् ॥ ७ ॥
मायायुद्धेषु कुशलौ मायायुद्धमयुध्यताम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

वे प्रतिदिन सैकड़ों मायाओंकी सृष्टि करनेवाले थे और दोनों ही मायायुद्धमें कुशल थे। अतः एक-दूसरेको मोहित करते हुए मायाद्वारा ही युद्ध करने लगे॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यां यां घटोत्कचो युद्धे मायां दर्शयते नृप ॥ ८ ॥
तां तामलम्बुषो राजन् माययैव निजघ्निवान्।

मूलम्

यां यां घटोत्कचो युद्धे मायां दर्शयते नृप ॥ ८ ॥
तां तामलम्बुषो राजन् माययैव निजघ्निवान्।

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! घटोत्कच युद्धस्थलमें जो-जो माया दिखाता, उसे अलम्बुष अपनी मायाद्वारा ही नष्ट कर देता था॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं तथा युध्यमानं तु मायायुद्धविशारदम् ॥ ९ ॥
अलम्बुषं राक्षसेन्द्रं दृष्ट्‌वाक्रुध्यन्त पाण्डवाः।

मूलम्

तं तथा युध्यमानं तु मायायुद्धविशारदम् ॥ ९ ॥
अलम्बुषं राक्षसेन्द्रं दृष्ट्‌वाक्रुध्यन्त पाण्डवाः।

अनुवाद (हिन्दी)

मायायुद्धविशारद राक्षसराज अलम्बुषको इस प्रकार युद्ध करते देख समस्त पाण्डव कुपित हो उठे॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त एनं भृशसंविग्नाः सर्वतः प्रवरा रथैः ॥ १० ॥
अभ्यद्रवन्त संक्रुद्धा भीमसेनादयो नृप।

मूलम्

त एनं भृशसंविग्नाः सर्वतः प्रवरा रथैः ॥ १० ॥
अभ्यद्रवन्त संक्रुद्धा भीमसेनादयो नृप।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! वे अत्यन्त उद्विग्न हुए भीमसेन आदि श्रेष्ठ वीर क्रोधमें भरकर रथोंद्वारा सब ओरसे अलम्बुषपर टूट पड़े॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त एनं कोष्ठकीकृत्य रथवंशेन मारिष ॥ ११ ॥
सर्वतो व्यकिरन् बाणैरुल्काभिरिव कुञ्जरम्।

मूलम्

त एनं कोष्ठकीकृत्य रथवंशेन मारिष ॥ ११ ॥
सर्वतो व्यकिरन् बाणैरुल्काभिरिव कुञ्जरम्।

अनुवाद (हिन्दी)

माननीय नरेश! जैसे जलती हुई उल्काओंद्वारा चारों ओरसे घेरकर हाथीपर प्रहार किया जाता है, उसी प्रकार रथसमूहके द्वारा अलम्बुषको कोष्ठबद्ध करके वे सब लोग चारों ओरसे उसपर बाणोंकी वर्षा करने लगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तेषामस्त्रवेगं तं प्रतिहत्यास्त्रमायया ॥ १२ ॥
तस्माद् रथव्रजान्मुक्तो वनदाहादिव द्विपः।

मूलम्

स तेषामस्त्रवेगं तं प्रतिहत्यास्त्रमायया ॥ १२ ॥
तस्माद् रथव्रजान्मुक्तो वनदाहादिव द्विपः।

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय अलम्बुष अपने अस्त्रोंकी मायासे उनके उस महान् अस्त्रवेगको दबाकर रथसमूहके उस घेरेसे मुक्त हो गया, मानो कोई गजराज दावानलके घेरेसे बाहर हो गया हो॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स विस्फार्य धनुर्घोरमिन्द्राशनिसमस्वनम् ॥ १३ ॥
मारुतिं पञ्चविंशत्या भैमसेनिं च पञ्चभिः।

मूलम्

स विस्फार्य धनुर्घोरमिन्द्राशनिसमस्वनम् ॥ १३ ॥
मारुतिं पञ्चविंशत्या भैमसेनिं च पञ्चभिः।

अनुवाद (हिन्दी)

उसने इन्द्रके वज्रकी भाँति घोर टंकार करनेवाले अपने भयंकर धनुषको तानकर भीमसेनको पचीस और उनके पुत्र घटोत्कचको पाँच बाण मारे॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युधिष्ठिरं त्रिभिर्विद्‌ध्वा सहदेवं च सप्तभिः ॥ १४ ॥
नकुलं च त्रिसप्तत्या द्रौपदेयांश्च मारिष।
पञ्चभिः पञ्चभिर्विद्ध्वा घोरं नादं ननाद ह ॥ १५ ॥

मूलम्

युधिष्ठिरं त्रिभिर्विद्‌ध्वा सहदेवं च सप्तभिः ॥ १४ ॥
नकुलं च त्रिसप्तत्या द्रौपदेयांश्च मारिष।
पञ्चभिः पञ्चभिर्विद्ध्वा घोरं नादं ननाद ह ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! उसने युधिष्ठिरको तीन, सहदेवको सात, नकुलको तिहत्तर और द्रौपदीपुत्रोंको पाँच-पाँच बाणोंसे घायल करके घोर गर्जना की॥१४-१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं भीमसेनो नवभिः सहदेवस्तु पञ्चभिः।
युधिष्ठिरः शतेनैव राक्षसं प्रत्यविध्यत ॥ १६ ॥

मूलम्

तं भीमसेनो नवभिः सहदेवस्तु पञ्चभिः।
युधिष्ठिरः शतेनैव राक्षसं प्रत्यविध्यत ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब भीमसेनने नौ, सहदेवने पाँच और युधिष्ठिरने सौ बाणोंसे राक्षस अलम्बुषको घायल कर दिया॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नकुलस्तु चतुःषष्ट्या द्रौपदेयास्त्रिभिस्त्रिभिः ।
हैडिम्बो राक्षसं विद्‌ध्वा युद्धे पञ्चाशता शरैः ॥ १७ ॥
पुनर्विव्याध सप्तत्या ननाद च महाबलः।

मूलम्

नकुलस्तु चतुःषष्ट्या द्रौपदेयास्त्रिभिस्त्रिभिः ।
हैडिम्बो राक्षसं विद्‌ध्वा युद्धे पञ्चाशता शरैः ॥ १७ ॥
पुनर्विव्याध सप्तत्या ननाद च महाबलः।

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् नकुलने चौंसठ और द्रौपदीकुमारोंने तीन-तीन बाणोंसे अलम्बुषको बींध डाला। तदनन्तर महाबली हिडिम्बाकुमारने युद्धस्थलमें उस राक्षसको पचास बाणोंसे घायल करके पुनः सत्तर बाणोंद्वारा बींध डाला और बड़े जोरसे गर्जना की॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य नादेन महता कम्पितेयं वसुंधरा ॥ १८ ॥
सपर्वतवना राजन् सपादपजलाशया ।

मूलम्

तस्य नादेन महता कम्पितेयं वसुंधरा ॥ १८ ॥
सपर्वतवना राजन् सपादपजलाशया ।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उसके महान् सिंहनादसे वृक्षों, जलाशयों, पर्वतों और वनोंसहित यह सारी पृथ्वी काँप उठी॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽतिविद्धो महेष्वासैः सर्वतस्तैर्महारथैः ॥ १९ ॥
प्रतिविव्याध तान् सर्वान् पञ्चभिः पञ्चभिः शरैः।

मूलम्

सोऽतिविद्धो महेष्वासैः सर्वतस्तैर्महारथैः ॥ १९ ॥
प्रतिविव्याध तान् सर्वान् पञ्चभिः पञ्चभिः शरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

उन महाधनुर्धर महारथियोंद्वारा सब ओरसे अत्यन्त घायल होकर बदलेमें अलम्बुषने भी पाँच-पाँच बाणोंसे उन सबको वेध दिया॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं क्रुद्धं राक्षसं युद्धे प्रतिक्रुद्धस्तु राक्षसः ॥ २० ॥
हैडिम्बो भरतश्रेष्ठ शरैर्विव्याध सप्तभिः।

मूलम्

तं क्रुद्धं राक्षसं युद्धे प्रतिक्रुद्धस्तु राक्षसः ॥ २० ॥
हैडिम्बो भरतश्रेष्ठ शरैर्विव्याध सप्तभिः।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! उस युद्धस्थलमें कुपित हुए राक्षस अलम्बुषको क्रोधमें भरे हुए निशाचर घटोत्कचने सात बाणोंसे घायल कर दिया॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽतिविद्धो बलवता राक्षसेन्द्रो महाबलः ॥ २१ ॥
व्यसृजत्‌ सायकांस्तूर्णं रुक्मपुङ्खान् शिलाशितान्।

मूलम्

सोऽतिविद्धो बलवता राक्षसेन्द्रो महाबलः ॥ २१ ॥
व्यसृजत्‌ सायकांस्तूर्णं रुक्मपुङ्खान् शिलाशितान्।

अनुवाद (हिन्दी)

बलवान् घटोत्कचद्वारा अत्यन्त क्षत-विक्षत होकर उस महाबली राक्षसराजने तुरंत ही सानपर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखवाले बाणोंकी वर्षा आरम्भ कर दी॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते शरा नतपर्वाणो विविशू राक्षसं तदा ॥ २२ ॥
रुषिताः पन्नगा यद्वद् गिरिशृङ्गं महाबलाः।

मूलम्

ते शरा नतपर्वाणो विविशू राक्षसं तदा ॥ २२ ॥
रुषिताः पन्नगा यद्वद् गिरिशृङ्गं महाबलाः।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे रोषमें भरे हुए महाबली सर्प पर्वतसे शिखरपर चढ़ जाते हैं, उसी प्रकार अलम्बुषके वे झुकी हुई गाँठवाले बाण उस समय घटोत्कचके शरीरमें घुस गये॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्ते पाण्डवा राजन् समन्तान्निशितान् शरान् ॥ २३ ॥
प्रेषयामासुरुद्विग्ना हैडिम्बश्च घटोत्कचः ।

मूलम्

ततस्ते पाण्डवा राजन् समन्तान्निशितान् शरान् ॥ २३ ॥
प्रेषयामासुरुद्विग्ना हैडिम्बश्च घटोत्कचः ।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तदनन्तर पाण्डव तथा हिडिम्बाकुमार घटोत्कच—सबने उद्विग्न होकर सब ओरसे अलम्बुषपर पैने बाणोंकी वर्षा प्रारम्भ कर दी॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स विध्यमानः समरे पाण्डवैर्जितकाशिभिः ॥ २४ ॥
मर्त्यधर्ममनुप्राप्तः कर्तव्यं नान्वपद्यत ।

मूलम्

स विध्यमानः समरे पाण्डवैर्जितकाशिभिः ॥ २४ ॥
मर्त्यधर्ममनुप्राप्तः कर्तव्यं नान्वपद्यत ।

अनुवाद (हिन्दी)

विजयसे उल्लसित होनेवाले पाण्डवोंद्वारा समरभूमिमें विद्ध होकर मर्त्यधर्मको प्राप्त हुए अलम्बुषसे कुछ भी करते न बना॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः समरशौण्डो वै भैमसेनिर्महाबलः ॥ २५ ॥
समीक्ष्य तदवस्थं तं वधायास्य मनो दधे।

मूलम्

ततः समरशौण्डो वै भैमसेनिर्महाबलः ॥ २५ ॥
समीक्ष्य तदवस्थं तं वधायास्य मनो दधे।

अनुवाद (हिन्दी)

तब समरकुशल महाबली भीमसेनकुमारने अलम्बुषको उस अवस्थामें देखकर मन-ही-मन उसके वधका निश्चय किया॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वेगं चक्रे महान्तं च राक्षसेन्द्ररथं प्रति ॥ २६ ॥
दग्धाद्रिकूटशृङ्गाभं भिन्नाञ्जनचयोपमम् ।

मूलम्

वेगं चक्रे महान्तं च राक्षसेन्द्ररथं प्रति ॥ २६ ॥
दग्धाद्रिकूटशृङ्गाभं भिन्नाञ्जनचयोपमम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

उसने जले हुए पर्वतशिखर तथा कटे-छटे कोयलेके पहाड़के समान प्रतीत होनेवाले राक्षसराज अलम्बुषके रथपर पहुँचनेके लिये महान् वेग प्रकट किया॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथाद् रथमभिद्रुत्य क्रुद्धो हैडिम्बिराक्षिपत् ॥ २७ ॥
उद्‌बबर्ह रथाच्चापि पन्नगं गरुडो यथा।

मूलम्

रथाद् रथमभिद्रुत्य क्रुद्धो हैडिम्बिराक्षिपत् ॥ २७ ॥
उद्‌बबर्ह रथाच्चापि पन्नगं गरुडो यथा।

अनुवाद (हिन्दी)

क्रोधमें भरे हुए हिडिम्बाकुमारने अपने रथसे अलम्बुषके रथपर कूदकर उसे पकड़ लिया और जैसे गरुड़ सर्पको टाँग लेता है, उसी प्रकार उसने भी अलम्बुषको रथसे उठा लिया॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समुत्क्षिप्य च बाहुभ्यामाविध्य च पुनः पुनः ॥ २८ ॥
निष्पिपेष क्षितौ क्षिप्रं पूर्णकुम्भमिवाश्मनि।

मूलम्

समुत्क्षिप्य च बाहुभ्यामाविध्य च पुनः पुनः ॥ २८ ॥
निष्पिपेष क्षितौ क्षिप्रं पूर्णकुम्भमिवाश्मनि।

अनुवाद (हिन्दी)

दोनों भुजाओंसे अलम्बुषको ऊपर उठाकर घटोत्कचने बारंबार घुमाया और जैसे जलसे भरे हुए घड़ेको पत्थरपर पटक दिया जाय, उसी प्रकार उसे शीघ्र ही पृथ्वीपर दे मारा॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बललाघवसम्पन्नः सम्पन्नो विक्रमेण च ॥ २९ ॥
भैमसेनी रणे क्रुद्धः सर्वसैन्यान्यभीषयत्।

मूलम्

बललाघवसम्पन्नः सम्पन्नो विक्रमेण च ॥ २९ ॥
भैमसेनी रणे क्रुद्धः सर्वसैन्यान्यभीषयत्।

अनुवाद (हिन्दी)

घटोत्कचमें बल और फुर्ती दोनों विद्यमान थे। वह अद्भुत पराक्रमसे सम्पन्न था। उसने रणक्षेत्रमें कुपित होकर आपकी समस्त सेनाओंको भयभीत कर दिया॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स विस्फारितसर्वाङ्गश्चूर्णितास्थिर्विभीषणः ॥ ३० ॥
घटोत्कचेन वीरेण हतः शालकटङ्कटः।

मूलम्

स विस्फारितसर्वाङ्गश्चूर्णितास्थिर्विभीषणः ॥ ३० ॥
घटोत्कचेन वीरेण हतः शालकटङ्कटः।

अनुवाद (हिन्दी)

वीर घटोत्कचके द्वारा मारे गये शालकटंकटाके पुत्र अलम्बुषके सारे अंग फट गये थे। उसकी हड्डियाँ चूर-चूर हो गयी थीं और वह बड़ा भयंकर दिखायी देता था॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सुमनसः पार्था हते तस्मिन् निशाचरे ॥ ३१ ॥
चुक्रुशुः सिंहनादांश्च वासांस्यादुधुवुश्च ह।

मूलम्

ततः सुमनसः पार्था हते तस्मिन् निशाचरे ॥ ३१ ॥
चुक्रुशुः सिंहनादांश्च वासांस्यादुधुवुश्च ह।

अनुवाद (हिन्दी)

उस निशाचर अलम्बुषके मारे जानेपर कुन्तीके सभी पुत्र प्रसन्नचित्त हो सिंहनाद करने और वस्त्र हिलाने लगे॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावकाश्च हतं दृष्ट्‌वा राक्षसेन्द्रं महाबलम् ॥ ३२ ॥
अलम्बुषं तथा शूरा विशीर्णमिव पर्वतम्।
हाहाकारमकार्षुश्च सैन्यानि भरतर्षभ ॥ ३३ ॥

मूलम्

तावकाश्च हतं दृष्ट्‌वा राक्षसेन्द्रं महाबलम् ॥ ३२ ॥
अलम्बुषं तथा शूरा विशीर्णमिव पर्वतम्।
हाहाकारमकार्षुश्च सैन्यानि भरतर्षभ ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! टूट-फूटकर गिरे हुए पर्वतके समान महाबली राक्षसराज अलम्बुषको मारा गया देख आपके शूरवीर योद्धा तथा उनकी सारी सेनाएँ हाहाकार करने लगीं॥३२-३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जनाश्च तद् ददृशिरे रक्षः कौतूहलान्विताः।
यदृच्छया निपतितं भूमावङ्गारकं यथा ॥ ३४ ॥

मूलम्

जनाश्च तद् ददृशिरे रक्षः कौतूहलान्विताः।
यदृच्छया निपतितं भूमावङ्गारकं यथा ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पृथ्वीपर अकस्मात् टूटकर गिरे हुए मंगल ग्रहके समान धराशायी हुए उस राक्षसको बहुत-से मनुष्य कौतूहलवश देखने लगे॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

घटोत्कचस्तु तद्धत्वा रक्षो बलवतां वरम्।
मुमोच बलवन्नादं बलं हत्वेव वासवः ॥ ३५ ॥

मूलम्

घटोत्कचस्तु तद्धत्वा रक्षो बलवतां वरम्।
मुमोच बलवन्नादं बलं हत्वेव वासवः ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे इन्द्रने बलासुरका वध करके महान् सिंहनाद किया था, उसी प्रकार घटोत्कचने उस बलवानोंमें श्रेष्ठ अलम्बुषको मारकर बड़े जोरसे गर्जना की॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(ततोऽभिगम्य राजानं धर्मपुत्रं युधिष्ठिरम्।
स्वकर्मावेदयन्मूर्ध्ना साञ्जलिर्निपपात ह ॥
मूर्ध्न्युपाघ्राय तं ज्येष्ठः परिष्वज्य च पाण्डवः।
प्रीतोऽस्मीत्यब्रवीद् राजन् हर्षादुत्फुल्ललोचनः ॥
घटोत्कचेन निष्पिष्टे मृते शालकटङ्कटे।
बभूवुर्मुदिताः सर्वे हते तस्मिन् निशाचरे॥)

मूलम्

(ततोऽभिगम्य राजानं धर्मपुत्रं युधिष्ठिरम्।
स्वकर्मावेदयन्मूर्ध्ना साञ्जलिर्निपपात ह ॥
मूर्ध्न्युपाघ्राय तं ज्येष्ठः परिष्वज्य च पाण्डवः।
प्रीतोऽस्मीत्यब्रवीद् राजन् हर्षादुत्फुल्ललोचनः ॥
घटोत्कचेन निष्पिष्टे मृते शालकटङ्कटे।
बभूवुर्मुदिताः सर्वे हते तस्मिन् निशाचरे॥)

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर घटोत्कच धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिरके पास जाकर हाथ जोड़ मस्तक नवाकर अपना कर्म निवेदन करता हुआ उनके चरणोंमें गिर पड़ा। राजन्! तब ज्येष्ठ पाण्डवने उसका मस्तक सूँघकर उसे हृदयसे लगा लिया और कहा—‘वत्स! मैं तुमपर बहुत प्रसन्न हूँ।’ उस समय युधिष्ठिरके नेत्र हर्षसे खिल उठे थे। शालकटंकटाके पुत्र राक्षस अलम्बुषको जब घटोत्कचने पृथ्वीपर रगड़कर मार डाला, तब सब लोग बहुत प्रसन्न हुए।

विश्वास-प्रस्तुतिः

स पूज्यमानः पितृभिः सबान्धवै-
र्घटोत्कचः कर्मणि दुष्करे कृते।
रिपुं निहत्याभिननन्द वै तदा
ह्यलम्बुषं पक्वमलम्बुषं यथा ॥ ३६ ॥

मूलम्

स पूज्यमानः पितृभिः सबान्धवै-
र्घटोत्कचः कर्मणि दुष्करे कृते।
रिपुं निहत्याभिननन्द वै तदा
ह्यलम्बुषं पक्वमलम्बुषं यथा ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पके हुए अलम्बुष (मुंडीर) फलके समान अपने शत्रु अलम्बुषको मारकर घटोत्कच वह दुष्कर पराक्रम करनेके कारण अपने पिता पाण्डवों तथा बन्धु-बान्धवोंसे सम्मानित एवं प्रशंसित हो उस समय बड़ी प्रसन्नताका अनुभव करने लगा॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो निनादः सुमहान् समुत्थितः
सशङ्खनानाविधबाणघोषवान् ।
निशम्य तं प्रत्यनदंस्तु पाण्डवा-
स्ततो ध्वनिर्भुवनमथास्पृशद् भृशम् ॥ ३७ ॥

मूलम्

ततो निनादः सुमहान् समुत्थितः
सशङ्खनानाविधबाणघोषवान् ।
निशम्य तं प्रत्यनदंस्तु पाण्डवा-
स्ततो ध्वनिर्भुवनमथास्पृशद् भृशम् ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् पाण्डवपक्षमें शंखध्वनि तथा नाना प्रकारके बाणोंकी सनसनाहटके शब्दसे मिला हुआ बड़ा भारी आनन्द-कोलाहल प्रकट हुआ। उसे सुनकर समस्त पाण्डव बड़े प्रसन्न हुए। वह आनन्दध्वनि जगत्‌में बहुत दूरतक फैल गयी॥३७॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि अलम्बुषवधे नवाधिकशततमोऽध्यायः ॥ १०९ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत जयद्रथवधपर्वमें अलम्बुषवधविषयक एक सौ नवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१०९॥

सूचना (हिन्दी)

(दाक्षिणात्य अधिक पाठके ३ श्लोक मिलाकर कुल ४० श्लोक हैं)