भागसूचना
अष्टाधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
द्रौपदीपुत्रोंके द्वारा सोमदत्तकुमार शलका वध तथा भीमसेनके द्वारा अलम्बुषकी पराजय
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्रौपदेयान् महेष्वासान् सौमदत्तिर्महायशाः ।
एकैकं पञ्चभिर्विद्ध्वा पुनर्विव्याध सप्तभिः ॥ १ ॥
मूलम्
द्रौपदेयान् महेष्वासान् सौमदत्तिर्महायशाः ।
एकैकं पञ्चभिर्विद्ध्वा पुनर्विव्याध सप्तभिः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— राजन्! महायशस्वी शलने महाधनुर्धर द्रौपदीपुत्रोंमेंसे एक-एकको पाँच-पाँच बाणोंसे बींधकर पुनः सात बाणोंद्वारा घायल कर दिया॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते पीडिता भृशं तेन रौद्रेण सहसा विभो।
प्रमूढा नैव विविदुर्मृधे कृत्यं स्म किंचन ॥ २ ॥
मूलम्
ते पीडिता भृशं तेन रौद्रेण सहसा विभो।
प्रमूढा नैव विविदुर्मृधे कृत्यं स्म किंचन ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रभो! उस भयंकर वीरके द्वारा अत्यन्त पीड़ित होनेके कारण वे सहसा मोहित हो यह नहीं जान सके कि इस समय युद्धमें हमारा कर्तव्य क्या है?॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नाकुलिश्च शतानीकः सौमदत्तिं नरर्षभम्।
द्वाभ्यां विद्ध्वानदद्धृष्टः शराभ्यां शत्रुकर्शनः ॥ ३ ॥
मूलम्
नाकुलिश्च शतानीकः सौमदत्तिं नरर्षभम्।
द्वाभ्यां विद्ध्वानदद्धृष्टः शराभ्यां शत्रुकर्शनः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब नकुलके पुत्र शत्रुसूदन शतानीकने दो बाणोंद्वारा नरश्रेष्ठ शलको घायल करके बड़े हर्षके साथ सिंहनाद किया॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथेतरे रणे यत्तास्त्रिभिस्त्रिभिरजिह्मगैः ।
विव्यधुः समरे तूर्णं सौमदत्तिममर्षणम् ॥ ४ ॥
मूलम्
तथेतरे रणे यत्तास्त्रिभिस्त्रिभिरजिह्मगैः ।
विव्यधुः समरे तूर्णं सौमदत्तिममर्षणम् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार अन्य द्रौपदीपुत्रोंने भी समरांगणमें प्रयत्नशील होकर अमर्षशील शलको तुरंत ही तीन-तीन बाणोंद्वारा बींध डाला॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तान् प्रति महाराज पञ्च चिक्षेप सायकान्।
एकैकं हृदि चाजघ्ने एकैकेन महायशाः ॥ ५ ॥
मूलम्
स तान् प्रति महाराज पञ्च चिक्षेप सायकान्।
एकैकं हृदि चाजघ्ने एकैकेन महायशाः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! तब महायशस्वी शलने उनपर पाँच बाण चलाये, जिनमेंसे एक-एकके द्वारा एक-एककी छाती छेद डाली॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्ते भ्रातरः पञ्च शरैर्विद्धा महात्मना।
परिवार्य रणे वीरं विव्यधुः सायकैर्भृशम् ॥ ६ ॥
मूलम्
ततस्ते भ्रातरः पञ्च शरैर्विद्धा महात्मना।
परिवार्य रणे वीरं विव्यधुः सायकैर्भृशम् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर महामना शलके बाणोंसे घायल हुए उन पाँचों भाइयोंने उस वीरको रणक्षेत्रमें चारों ओरसे घेरकर अपने बाणोंद्वारा अत्यन्त घायल कर दिया॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आर्जुनिस्तु हयांस्तस्य चतुर्भिर्निशितैः शरैः।
प्रेषयामास संक्रुद्धो यमस्य सदनं प्रति ॥ ७ ॥
मूलम्
आर्जुनिस्तु हयांस्तस्य चतुर्भिर्निशितैः शरैः।
प्रेषयामास संक्रुद्धो यमस्य सदनं प्रति ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनकुमार श्रुतकीर्तिने अत्यन्त कुपित हो चार तीखे बाणोंद्वारा शलके चारों घोड़ोंको यमलोक भेज दिया॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भैमसेनिर्धनुश्छित्त्वा सौमदत्तेर्महात्मनः ।
ननाद बलवन्नादं विव्याध च शितैः शरैः ॥ ८ ॥
मूलम्
भैमसेनिर्धनुश्छित्त्वा सौमदत्तेर्महात्मनः ।
ननाद बलवन्नादं विव्याध च शितैः शरैः ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर भीमसेनके पुत्र सुतसोमने पैने बाणोंद्वारा महामना सोमदत्तकुमारके धनुषको काटकर उन्हें भी बींध डाला और बड़े चोरसे गर्जना की॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यौधिष्ठिरिर्ध्वजं तस्य छित्त्वा भूमावपातयत्।
नाकुलिश्चाथ यन्तारं रथनीडादपाहरत् ॥ ९ ॥
मूलम्
यौधिष्ठिरिर्ध्वजं तस्य छित्त्वा भूमावपातयत्।
नाकुलिश्चाथ यन्तारं रथनीडादपाहरत् ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर युधिष्ठिरकुमार प्रतिविन्ध्यने शलकी ध्वजा काटकर पृथ्वीपर गिरा दी। फिर नकुलपुत्र शतानीकने उनके सारथिको मारकर रथकी बैठकसे नीचे गिरा दिया॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
साहदेविस्तु तं ज्ञात्वा भ्रातृभिर्विमुखीकृतम्।
क्षुरप्रेण शिरो राजन् निचकर्त महात्मनः ॥ १० ॥
मूलम्
साहदेविस्तु तं ज्ञात्वा भ्रातृभिर्विमुखीकृतम्।
क्षुरप्रेण शिरो राजन् निचकर्त महात्मनः ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! अन्तमें सहदेवकुमारने यह जानकर कि मेरे भाइयोंने शलको युद्धसे विमुख कर दिया है, महामनस्वी शलके मस्तकको क्षुरप्रसे काट डाला॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तच्छिरो न्यपतद् भूमौ तपनीयविभूषितम्।
भ्राजयत् तं रणोद्देशं बालसूर्यसमप्रभम् ॥ ११ ॥
मूलम्
तच्छिरो न्यपतद् भूमौ तपनीयविभूषितम्।
भ्राजयत् तं रणोद्देशं बालसूर्यसमप्रभम् ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सोमदत्तकुमारका प्रातःकालके सूर्यकी भाँति प्रकाशमान सुवर्णभूषित वह मस्तक उस रणभूमिको प्रकाशित करता हुआ पृथ्वीपर गिर पड़ा॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सौमदत्तेः शिरो दृष्ट्वा निहतं तन्महात्मनः।
वित्रस्तास्तावका राजन् प्रदुद्रुवुरनेकधा ॥ १२ ॥
मूलम्
सौमदत्तेः शिरो दृष्ट्वा निहतं तन्महात्मनः।
वित्रस्तास्तावका राजन् प्रदुद्रुवुरनेकधा ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! महामना शलके मस्तकको कटा हुआ देख आपके सैनिक अत्यन्त भयभीत हो अनेक दलोंमें बँटकर भागने लगे॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अलम्बुषस्तु समरे भीमसेनं महाबलम्।
योधयामास संक्रुद्धो लक्ष्मणं रावणिर्यथा ॥ १३ ॥
मूलम्
अलम्बुषस्तु समरे भीमसेनं महाबलम्।
योधयामास संक्रुद्धो लक्ष्मणं रावणिर्यथा ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर जैसे पूर्वकालमें रावणकुमार मेघनादने लक्ष्मणके साथ युद्ध किया था, उसी प्रकार अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए राक्षस अलम्बुषने महाबली भीमसेनके साथ संग्राम आरम्भ किया॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सम्प्रयुद्धौ रणे दृष्ट्वा तावुभौ नरराक्षसौ।
विस्मयः सर्वभूतानां प्रहर्षः समजायत ॥ १४ ॥
मूलम्
सम्प्रयुद्धौ रणे दृष्ट्वा तावुभौ नरराक्षसौ।
विस्मयः सर्वभूतानां प्रहर्षः समजायत ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस रणक्षेत्रमें उन दोनों मनुष्य एवं राक्षसको युद्ध करते देख समस्त प्राणियोंको अत्यन्त आश्चर्य और हर्ष हुआ॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आर्ष्यशृङ्गिं ततो भीमो नवभिर्निशितैः शरैः।
विव्याध प्रहसन् राजन् राक्षसेन्द्रममर्षणम् ॥ १५ ॥
मूलम्
आर्ष्यशृङ्गिं ततो भीमो नवभिर्निशितैः शरैः।
विव्याध प्रहसन् राजन् राक्षसेन्द्रममर्षणम् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! फिर भीमसेनने हँसते हुए नौ पैने बाणों-द्वारा ऋष्यशृंगकुमार अमर्षशील राक्षसराज अलम्बुषको घायल कर दिया॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तद् रक्षः समरे विद्धं कृत्वा नादं भयावहम्।
अभ्यद्रवत् ततो भीमं ये च तस्य पदानुगाः ॥ १६ ॥
मूलम्
तद् रक्षः समरे विद्धं कृत्वा नादं भयावहम्।
अभ्यद्रवत् ततो भीमं ये च तस्य पदानुगाः ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब समरांगणमें घायल हुआ वह राक्षस भयंकर गर्जना करके भीमसेनकी ओर दौड़ा। उसके सेवकोंने भी उसीका साथ दिया॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स भीमं पञ्चभिर्विद्ध्वा शरैः संनतपर्वभिः।
भैमान् परिजघानाशु रथांस्त्रिशतमाहवे ॥ १७ ॥
मूलम्
स भीमं पञ्चभिर्विद्ध्वा शरैः संनतपर्वभिः।
भैमान् परिजघानाशु रथांस्त्रिशतमाहवे ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसने झुकी हुई गाँठवाले पाँच बाणोंद्वारा भीमसेनको घायल करके उनके साथ आये हुए तीन सौ रथियोंका समरभूमिमें शीघ्र ही संहार कर डाला॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुनश्चतुःशतान् हत्वा भीमं विव्याध पत्रिणा।
सोऽतिविद्धस्तथा भीमो राक्षसेन महाबलः ॥ १८ ॥
निपपात रथोपस्थे मूर्च्छयाभिपरिप्लुतः ।
मूलम्
पुनश्चतुःशतान् हत्वा भीमं विव्याध पत्रिणा।
सोऽतिविद्धस्तथा भीमो राक्षसेन महाबलः ॥ १८ ॥
निपपात रथोपस्थे मूर्च्छयाभिपरिप्लुतः ।
अनुवाद (हिन्दी)
फिर चार सौ योद्धाओंको मारकर भीमसेनको भी एक बाणसे घायल किया। इस प्रकार राक्षसके द्वारा अत्यन्त घायल किये जानेपर महाबली भीमसेन मूर्छित हो रथकी बैठकमें गिर पड़े॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रतिलभ्य ततः संज्ञां मारुतिः क्रोधमूर्च्छितः ॥ १९ ॥
विकृष्य कार्मुकं घोरं भारसाधनमुत्तमम्।
अलम्बुषं शरैस्तीक्ष्णैरर्दयामास सर्वतः ॥ २० ॥
मूलम्
प्रतिलभ्य ततः संज्ञां मारुतिः क्रोधमूर्च्छितः ॥ १९ ॥
विकृष्य कार्मुकं घोरं भारसाधनमुत्तमम्।
अलम्बुषं शरैस्तीक्ष्णैरर्दयामास सर्वतः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर पुनः होशमें आकर क्रोधसे व्याकुल हुए वायुपुत्र भीमने भार वहन करनेमें समर्थ, उत्तम तथा भयंकर धनुष तानकर पैने बाणोंद्वारा सब ओरसे अलम्बुषको पीड़ित कर दिया॥१९-२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स विद्धो बहुभिर्बाणैर्नीलाञ्जनचयोपमः ।
शुशुभे सर्वतो राजन् प्रफुल्ल इव किंशुकः ॥ २१ ॥
मूलम्
स विद्धो बहुभिर्बाणैर्नीलाञ्जनचयोपमः ।
शुशुभे सर्वतो राजन् प्रफुल्ल इव किंशुकः ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! काले काजलके ढेरके समान वह राक्षस बहुत-से बाणोंद्वारा सब ओरसे घायल होकर लहूलुहान हो खिले हुए पलाशके वृक्षके समान सुशोभित होने लगा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स वध्यमानः समरे भीमचापच्युतैः शरैः।
स्मरन् भ्रातृवधं चैव पाण्डवेन महात्मना ॥ २२ ॥
घोरं रूपमथो कृत्वा भीमसेनमभाषत।
मूलम्
स वध्यमानः समरे भीमचापच्युतैः शरैः।
स्मरन् भ्रातृवधं चैव पाण्डवेन महात्मना ॥ २२ ॥
घोरं रूपमथो कृत्वा भीमसेनमभाषत।
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनके धनुषसे छूटे हुए बाणोंद्वारा समरभूमिमें घायल होकर और महात्मा पाण्डुकुमार भीमके द्वारा किये गये अपने भाईके वधका स्मरण करके उस राक्षसने भयंकर रूप धारण कर लिया और भीमसेनसे कहा—॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तिष्ठेदानीं रणे पार्थ पश्य मेऽद्य पराक्रमम् ॥ २३ ॥
बको नाम सुदुर्बुद्धे राक्षसप्रवरो बली।
परोक्षं मम तद् वृत्तं यद् भ्राता मे हतस्त्वया॥२४॥
मूलम्
तिष्ठेदानीं रणे पार्थ पश्य मेऽद्य पराक्रमम् ॥ २३ ॥
बको नाम सुदुर्बुद्धे राक्षसप्रवरो बली।
परोक्षं मम तद् वृत्तं यद् भ्राता मे हतस्त्वया॥२४॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘पार्थ! इस समय तुम रणक्षेत्रमें डटे रहो और आज मेरा पराक्रम देखो। दुर्मते! मेरे बलवान् भाई राक्षसराज बकको जो तुमने मार डाला था, वह सब कुछ मेरी आँखोंकी ओटमें हुआ था (मेरे सामने तुम कुछ नहीं कर सकते थे)’॥२३-२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्त्वा ततो भीममन्तर्धानं गतस्तदा।
महता शरवर्षेण भृशं तं समवाकिरत् ॥ २५ ॥
मूलम्
एवमुक्त्वा ततो भीममन्तर्धानं गतस्तदा।
महता शरवर्षेण भृशं तं समवाकिरत् ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनसे ऐसा कहकर वह राक्षस उसी समय अन्तर्धान हो गया और फिर उनके ऊपर बाणोंकी भारी वर्षा करने लगा॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमस्तु समरे राजन्नदृश्ये राक्षसे तदा।
आकाशं पूरयामास शरैः संनतपर्वभिः ॥ २६ ॥
मूलम्
भीमस्तु समरे राजन्नदृश्ये राक्षसे तदा।
आकाशं पूरयामास शरैः संनतपर्वभिः ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! उस समय समरांगणमें राक्षसके अदृश्य हो जानेपर भीमसेनने झुकी हुई गाँठवाले बाणोंद्वारा वहाँके समूचे आकाशको भर दिया॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स वध्यमानो भीमेन निमेषाद् रथमास्थितः।
जगाम धरणीं चैव क्षुद्रः खं सहसागमत् ॥ २७ ॥
मूलम्
स वध्यमानो भीमेन निमेषाद् रथमास्थितः।
जगाम धरणीं चैव क्षुद्रः खं सहसागमत् ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनके बाणोंकी मार खाकर राक्षस अलम्बुष पलक मारते-मारते अपने रथपर आ बैठा। वह क्षुद्र निशाचर कभी तो धरतीपर आ जाता और कभी सहसा आकाशमें पहुँच जाता था॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उच्चावचानि रूपाणि चकार सुबहूनि च।
अणुर्बृहत् पुनः स्थूलो नादान् मुञ्चन्निवाम्बुदः ॥ २८ ॥
मूलम्
उच्चावचानि रूपाणि चकार सुबहूनि च।
अणुर्बृहत् पुनः स्थूलो नादान् मुञ्चन्निवाम्बुदः ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसने वहाँ छोटे-बड़े बहुत-से रूप धारण किये। वह मेघके समान गर्जना करता हुआ कभी बहुत छोटा हो जाता और कभी महान्, कभी सूक्ष्मरूप धारण करता और कभी स्थूल बन जाता था॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उच्चावचास्तथा वाचो व्याजहार समन्ततः।
निपेतुर्गगनाच्चैव शरधाराः सहस्रशः ॥ २९ ॥
मूलम्
उच्चावचास्तथा वाचो व्याजहार समन्ततः।
निपेतुर्गगनाच्चैव शरधाराः सहस्रशः ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार वहाँ सब ओर घूम-घूमकर वह भिन्न-भिन्न प्रकारकी बोलियाँ भी बोलता था। उस समय भीमसेनपर आकाशसे बाणोंकी सहस्रों धाराएँ गिरने लगीं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शक्तयः कणपाः प्रासाः शूलपट्टिशतोमराः।
शतघ्न्यः परिघाश्चैव भिन्दिपालाः परश्वधाः ॥ ३० ॥
शिलाः खड्गा गुडाश्चैव ऋष्टीर्वज्राणि चैव ह।
सा राक्षसविसृष्टा तु शस्त्रवृष्टिः सुदारुणा ॥ ३१ ॥
जघान पाण्डुपुत्रस्य सैनिकान् रणमूर्धनि।
मूलम्
शक्तयः कणपाः प्रासाः शूलपट्टिशतोमराः।
शतघ्न्यः परिघाश्चैव भिन्दिपालाः परश्वधाः ॥ ३० ॥
शिलाः खड्गा गुडाश्चैव ऋष्टीर्वज्राणि चैव ह।
सा राक्षसविसृष्टा तु शस्त्रवृष्टिः सुदारुणा ॥ ३१ ॥
जघान पाण्डुपुत्रस्य सैनिकान् रणमूर्धनि।
अनुवाद (हिन्दी)
शक्ति, कणप, प्रास, शूल, पट्टिश, तोमर, शतघ्नी, परिघ, भिन्दिपाल, फरसे, शिलाएँ, खड्ग, लोहेकी गोलियाँ, ऋष्टि और वज्र आदि अस्त्र-शस्त्रोंकी वर्षा होने लगी। राक्षसद्वारा की हुई उस भयंकर शस्त्रवर्षाने युद्धके मुहानेपर पाण्डुपुत्र भीमके बहुत-से सैनिकोंका संहार कर डाला॥३०-३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेन पाण्डवसैन्यानां सूदिता युधि वारणाः ॥ ३२ ॥
हयाश्च बहवो राजन् पत्तयश्च तथा पुनः।
रथेभ्यो रथिनः पेतुस्तस्य नुन्नाः स्म सायकैः ॥ ३३ ॥
मूलम्
तेन पाण्डवसैन्यानां सूदिता युधि वारणाः ॥ ३२ ॥
हयाश्च बहवो राजन् पत्तयश्च तथा पुनः।
रथेभ्यो रथिनः पेतुस्तस्य नुन्नाः स्म सायकैः ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! राक्षस अलम्बुषने युद्धस्थलमें पाण्डव-सेनाके बहुत-से हाथियों, घोड़ों और पैदल सैनिकोंका बारंबार संहार किया, उसके बाणोंसे छिन्न-भिन्न होकर बहुतेरे रथी रथोंसे गिर पड़े॥३२-३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शोणितोदां रथावर्तां हस्तिग्राहसमाकुलाम् ।
छत्रहंसां कर्दमिनीं बाहुपन्नगसंकुलाम् ॥ ३४ ॥
नदीं प्रावर्तयामास रक्षोगणसमाकुलाम् ।
वहन्तीं बहुधा राजंश्चेदिपञ्चालसृञ्जयान् ॥ ३५ ॥
मूलम्
शोणितोदां रथावर्तां हस्तिग्राहसमाकुलाम् ।
छत्रहंसां कर्दमिनीं बाहुपन्नगसंकुलाम् ॥ ३४ ॥
नदीं प्रावर्तयामास रक्षोगणसमाकुलाम् ।
वहन्तीं बहुधा राजंश्चेदिपञ्चालसृञ्जयान् ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसने युद्धस्थलमें खूनकी नदी बहा दी, जिसमें रक्त ही पानीके समान बहता था, रथ भँवरोंके समान जान पड़ते थे, हाथियोंके शरीर उस नदीमें ग्राहके समान सब ओर छा रहे थे, छत्र हंसोंका भ्रम उत्पन्न करते थे, वहाँ कीच जम गयी थी, कटी हुई भुजाएँ सर्पोंके समान सब ओर व्याप्त हो रही थीं। राजन्! बारंबार चेदि, पांचाल और सृंजयोंको बहाती हुई वह नदी राक्षसोंसे घिरी हुई थी॥३४-३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं तथा समरे राजन् विचरन्तमभीतवत्।
पाण्डवा भृशसंविग्नाः प्रापश्यंस्तस्य विक्रमम् ॥ ३६ ॥
मूलम्
तं तथा समरे राजन् विचरन्तमभीतवत्।
पाण्डवा भृशसंविग्नाः प्रापश्यंस्तस्य विक्रमम् ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! उस निशाचरको समरांगणमें इस प्रकार निर्भय-सा विचरते देख पाण्डव अत्यन्त उद्विग्न हो उसका पराक्रम देखने लगे॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तावकानां तु सैन्यानां प्रहर्षः समजायत।
वादित्रनिनदश्चोग्रः सुमहान् रोमहर्षणः ॥ ३७ ॥
मूलम्
तावकानां तु सैन्यानां प्रहर्षः समजायत।
वादित्रनिनदश्चोग्रः सुमहान् रोमहर्षणः ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय आपके सैनिकोंको महान् हर्ष हो रहा था। वहाँ रणवाद्योंका रोमांचकारी एवं भयंकर शब्द बड़े जोर-जोरसे होने लगा॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं श्रुत्वा निनदं घोरं तव सैन्यस्य पाण्डवः।
नामृष्यत यथा नागस्तलशब्दं समीरितम् ॥ ३८ ॥
मूलम्
तं श्रुत्वा निनदं घोरं तव सैन्यस्य पाण्डवः।
नामृष्यत यथा नागस्तलशब्दं समीरितम् ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आपकी सेनाका वह घोर हर्षनाद सुनकर पाण्डुकुमार भीमसेन नहीं सहन कर सके। ठीक उसी तरह, जैसे हाथी ताल ठोंकनेका शब्द नहीं सह सकता॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः क्रोधाभिताम्राक्षो निर्दहन्निव पावकः।
संदधे त्वाष्ट्रमस्त्रं स स्वयं त्वष्टेव मारुतिः ॥ ३९ ॥
मूलम्
ततः क्रोधाभिताम्राक्षो निर्दहन्निव पावकः।
संदधे त्वाष्ट्रमस्त्रं स स्वयं त्वष्टेव मारुतिः ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब वायुकुमार भीमसेनने जलानेको उद्यत हुए अग्निके समान क्रोधसे लाल आँखें करके त्वाष्ट्र नामक अस्त्रका संधान किया, मानो साक्षात् त्वष्टा ही उसका प्रयोग कर रहे हों॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः शरसहस्राणि प्रादुरासन् समन्ततः।
तैः शरैस्तव सैन्यस्य विद्रवः सुमहानभूत् ॥ ४० ॥
मूलम्
ततः शरसहस्राणि प्रादुरासन् समन्ततः।
तैः शरैस्तव सैन्यस्य विद्रवः सुमहानभूत् ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उससे चारों ओर सहस्रों बाण प्रकट होने लगे। उन बाणोंद्वारा आपकी सेनाका महान् संहार होने लगा॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदस्त्रं प्रेरितं तेन भीमसेनेन संयुगे।
राक्षसस्य महामायां हत्वा राक्षसमार्दयत् ॥ ४१ ॥
मूलम्
तदस्त्रं प्रेरितं तेन भीमसेनेन संयुगे।
राक्षसस्य महामायां हत्वा राक्षसमार्दयत् ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युद्धस्थलमें भीमसेनके द्वारा चलाये हुए उस अस्त्रने राक्षसकी महामायाको नष्ट करके उसे गहरी पीड़ा दी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स वध्यमानो बहुधा भीमसेनेन राक्षसः।
संत्यज्य समरे भीमं द्रोणानीकमुपाद्रवत् ॥ ४२ ॥
मूलम्
स वध्यमानो बहुधा भीमसेनेन राक्षसः।
संत्यज्य समरे भीमं द्रोणानीकमुपाद्रवत् ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बारंबार भीमसेनकी मार खाकर राक्षसराज अलम्बुष रणक्षेत्रमें उनका सामना छोड़कर द्रोणाचार्यकी सेनामें भाग गया॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिंस्तु निर्जिते राजन् राक्षसेन्द्रे महात्मना।
अनादयन् सिंहनादैः पाण्डवाः सर्वतो दिशम् ॥ ४३ ॥
मूलम्
तस्मिंस्तु निर्जिते राजन् राक्षसेन्द्रे महात्मना।
अनादयन् सिंहनादैः पाण्डवाः सर्वतो दिशम् ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! महामना भीमसेनके द्वारा राक्षसराज अलम्बुषके पराजित हो जानेपर पाण्डव-सैनिकोंने सम्पूर्ण दिशाओंको अपने सिंहनादोंसे निनादित कर दिया॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अपूजयन् मारुतिं च संहृष्टास्ते महाबलम्।
प्रह्रादं समरे जित्वा यथा शक्रं मरुद्गणाः ॥ ४४ ॥
मूलम्
अपूजयन् मारुतिं च संहृष्टास्ते महाबलम्।
प्रह्रादं समरे जित्वा यथा शक्रं मरुद्गणाः ॥ ४४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने अत्यन्त हर्षमें भरकर महाबली भीमसेनकी उसी प्रकार भूरि-भूरि प्रशंसा की, जैसे मरुद्गणोंने समरांगणमें प्रह्लादको जीतकर आये हुए देवराज इन्द्रकी स्तुति की थी॥४४॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि अलम्बुषपराजये अष्टाधिकशततमोऽध्यायः ॥ १०८ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत जयद्रथवधपर्वमें अलम्बुषकी पराजयविषयक एक सौ आठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१०८॥