१०७ संकुलयुद्धे

भागसूचना

सप्ताधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

कौरव-सेनाके क्षेमधूर्ति, वीरधन्वा, निरमित्र तथा व्याघ्रदत्तका वध और दुर्मुख एवं विकर्णकी पराजय

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

बृहत्क्षत्रमथायान्तं कैकेयं दृढविक्रमम् ।
क्षेमधूर्तिर्महाराज विव्याधोरसि मार्गणैः ॥ १ ॥

मूलम्

बृहत्क्षत्रमथायान्तं कैकेयं दृढविक्रमम् ।
क्षेमधूर्तिर्महाराज विव्याधोरसि मार्गणैः ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— महाराज! तदनन्तर सुदृढ़ पराक्रमी केकयराज बृहत्क्षत्रको आते देख क्षेमधूर्तिने अनेक बाणोंद्वारा उनकी छातीमें गहरी चोट पहुँचायी॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बृहत्क्षत्रस्तु तं राजा नवत्या नतपर्वणाम्।
आजघ्ने त्वरितो राजन् द्रोणानीकबिभित्सया ॥ २ ॥

मूलम्

बृहत्क्षत्रस्तु तं राजा नवत्या नतपर्वणाम्।
आजघ्ने त्वरितो राजन् द्रोणानीकबिभित्सया ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तब राजा बृहत्क्षत्रने भी झुकी हुई गाँठवाले नब्बे बाणोंद्वारा तुरंत ही द्रोणाचार्यके सैन्यव्यूहका विघटन करनेकी इच्छासे क्षेमधूर्तिको घायल कर दिया॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्षेमधूर्तिस्तु संक्रुद्धः कैकेयस्य महात्मनः।
धनुश्चिच्छेद भल्लेन पीतेन निशितेन ह ॥ ३ ॥

मूलम्

क्षेमधूर्तिस्तु संक्रुद्धः कैकेयस्य महात्मनः।
धनुश्चिच्छेद भल्लेन पीतेन निशितेन ह ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इससे क्षेमधूर्ति अत्यन्त कुपित हो उठा और उसने पानीदार तीखे भल्लसे महामनस्वी केकयराजका धनुष काट डाला॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथैनं छिन्नधन्वानं शरेणानतपर्वणा ।
विव्याध समरे तूर्णं प्रवरं सर्वधन्विनाम् ॥ ४ ॥

मूलम्

अथैनं छिन्नधन्वानं शरेणानतपर्वणा ।
विव्याध समरे तूर्णं प्रवरं सर्वधन्विनाम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धनुष कट जानेपर समस्त धनुर्धरोंमें श्रेष्ठ बृहत्क्षत्रको समरांगणमें झुकी हुई गाँठवाले बाणसे उसने तुरंत ही बींध डाला॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथान्यद् धनुरादाय बृहत्क्षत्रो हसन्निव।
व्यश्वसूतरथं चक्रे क्षेमधूर्तिं महारथम् ॥ ५ ॥

मूलम्

अथान्यद् धनुरादाय बृहत्क्षत्रो हसन्निव।
व्यश्वसूतरथं चक्रे क्षेमधूर्तिं महारथम् ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर बृहत्क्षत्रने दूसरा धनुष हाथमें लेकर हँसते-हँसते महारथी क्षेमधूर्तिको घोड़ों, सारथि और रथसे हीन कर दिया॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽपरेण भल्लेन पीतेन निशितेन च।
जहार नृपतेः कायाच्छिरो ज्वलितकुण्डलम् ॥ ६ ॥

मूलम्

ततोऽपरेण भल्लेन पीतेन निशितेन च।
जहार नृपतेः कायाच्छिरो ज्वलितकुण्डलम् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद दूसरे पानीदार तीखे भल्लसे राजा क्षेमधूर्तिके प्रज्वलित कुण्डलोंवाले मस्तकको धड़से अलग कर दिया॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तच्छिन्नं सहसा तस्य शिरः कुञ्चितमूर्धजम्।
सकिरीटं महीं प्राप्य बभौ ज्योतिरिवाम्बरात् ॥ ७ ॥

मूलम्

तच्छिन्नं सहसा तस्य शिरः कुञ्चितमूर्धजम्।
सकिरीटं महीं प्राप्य बभौ ज्योतिरिवाम्बरात् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सहसा कटा हुआ घुँघराले बालोंवाला क्षेमधूर्तिका वह मस्तक मुकुटसहित पृथ्वीपर गिरकर आकाशसे टूटे हुए तारेके समान प्रतीत हुआ॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं निहत्य रणे हृष्टो बृहत्क्षत्रो महारथः।
सहसाभ्यपतत् सैन्यं तावकं पार्थकारणात् ॥ ८ ॥

मूलम्

तं निहत्य रणे हृष्टो बृहत्क्षत्रो महारथः।
सहसाभ्यपतत् सैन्यं तावकं पार्थकारणात् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रणक्षेत्रमें क्षेमधूर्तिका वध करके प्रसन्न हुए महारथी बृहत्क्षत्र यूधिष्ठिरके हितके लिये सहसा आपकी सेनापर टूट पड़े॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टकेतुं तथाऽऽयान्तं द्रोणहेतोः पराक्रमी।
वीरधन्वा महेष्वासो वारयामास भारत ॥ ९ ॥

मूलम्

धृष्टकेतुं तथाऽऽयान्तं द्रोणहेतोः पराक्रमी।
वीरधन्वा महेष्वासो वारयामास भारत ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! इसी प्रकार द्रोणाचार्यके हितके लिये महाधनुर्धर पराक्रमी वीरधन्वाने वहाँ आते हुए धृष्टकेतुको रोका॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ परस्परमासाद्य शरदंष्ट्रौ तरस्विनौ।
शरैरनेकसाहस्रैरन्योन्यमभिजघ्नतुः ॥ १० ॥

मूलम्

तौ परस्परमासाद्य शरदंष्ट्रौ तरस्विनौ।
शरैरनेकसाहस्रैरन्योन्यमभिजघ्नतुः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों वेगशाली वीर बाणरूपी दाढ़ोंसे युक्त हो परस्पर भिड़कर अनेक सहस्र बाणोंद्वारा एक-दूसरेको चोट पहुँचाने लगे॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावुभौ नरशार्दूलौ युयुधाते परस्परम्।
महावने तीव्रमदौ वारणाविव यूथपौ ॥ ११ ॥

मूलम्

तावुभौ नरशार्दूलौ युयुधाते परस्परम्।
महावने तीव्रमदौ वारणाविव यूथपौ ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महान् वनमें तीव्र मदवाले दो यूथपति गजराजोंके समान वे दोनों पुरुषसिंह परस्पर युद्ध करने लगे॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गिरिगह्वरमासाद्य शार्दूलाविव रोषितौ ।
युयुधाते महावीर्यौ परस्परजिघांसया ॥ १२ ॥

मूलम्

गिरिगह्वरमासाद्य शार्दूलाविव रोषितौ ।
युयुधाते महावीर्यौ परस्परजिघांसया ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दोनों ही महान् पराक्रमी थे और एक-दूसरेको मार डालनेकी इच्छासे रोषमें भरकर पर्वतकी गुफामें पहुँचकर लड़नेवाले दो सिंहोंके समान आपसमें जूझ रहे थे॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तद् युद्धमासीत् तुमुलं प्रेक्षणीयं विशाम्पते।
सिद्धचारणसंघानां विस्मयाद्भुतदर्शनम् ॥ १३ ॥

मूलम्

तद् युद्धमासीत् तुमुलं प्रेक्षणीयं विशाम्पते।
सिद्धचारणसंघानां विस्मयाद्भुतदर्शनम् ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! उनका वह घमासान युद्ध देखने ही योग्य था। वह सिद्धों और चारणसमूहोंको भी आश्चर्यजनक एवं अद्भुत दिखायी देता था॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वीरधन्वा ततः क्रुद्धो धृष्टकेतोः शरासनम्।
द्विधा चिच्छेद भल्लेन प्रहसन्निव भारत ॥ १४ ॥

मूलम्

वीरधन्वा ततः क्रुद्धो धृष्टकेतोः शरासनम्।
द्विधा चिच्छेद भल्लेन प्रहसन्निव भारत ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! तत्पश्चात् वीरधन्वाने कुपित होकर हँसते हुए-से ही एक भल्लद्वारा धृष्टकेतुके धनुषके दो टुकड़े कर दिये॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदुत्सृज्य धनुश्छिन्नं चेदिराजो महारथः।
शक्तिं जग्राह विपुलां हेमदण्डामयस्मयीम् ॥ १५ ॥

मूलम्

तदुत्सृज्य धनुश्छिन्नं चेदिराजो महारथः।
शक्तिं जग्राह विपुलां हेमदण्डामयस्मयीम् ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महारथी चेदिराज धृष्टकेतुने उस कटे हुए धनुषको फेंककर एक लोहेकी बनी हुई स्वर्णदण्डविभूषित विशाल शक्ति हाथमें ले ली॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तां तु शक्तिं महावीर्यां दोर्भ्यामायम्य भारत।
चिक्षेप सहसा यत्तो वीरधन्वरथं प्रति ॥ १६ ॥

मूलम्

तां तु शक्तिं महावीर्यां दोर्भ्यामायम्य भारत।
चिक्षेप सहसा यत्तो वीरधन्वरथं प्रति ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! उस अत्यन्त प्रबल शक्तिको दोनों हाथोंसे उठाकर यत्नशील धृष्टकेतुने सहसा वीरधन्वाके रथपर उसे दे मारा॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तया तु वीरघातिन्या शक्त्या त्वभिहतो भृशम्।
निर्भिन्नहृदयस्तूर्णं निपपात रथान्महीम् ॥ १७ ॥

मूलम्

तया तु वीरघातिन्या शक्त्या त्वभिहतो भृशम्।
निर्भिन्नहृदयस्तूर्णं निपपात रथान्महीम् ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस वीरघातिनी शक्तिकी गहरी चोट खाकर वीरधन्वाका वक्षःस्थल विदीर्ण हो गया और वह तुरंत ही रथसे पृथ्वीपर गिर पड़ा॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिन् विनिहते वीरे त्रैगर्तानां महारथे।
बलं तेऽभज्यत विभो पाण्डवेयैः समन्ततः ॥ १८ ॥

मूलम्

तस्मिन् विनिहते वीरे त्रैगर्तानां महारथे।
बलं तेऽभज्यत विभो पाण्डवेयैः समन्ततः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभो! त्रिगर्तदेशके उस महारथी वीरके मारे जानेपर पाण्डव-सैनिकोंने चारों ओरसे आपकी सेनाको विघटित कर दिया॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहदेवे ततः षष्टिं सायकान् दुर्मुखोऽक्षिपत्।
ननाद च महानादं तर्जयन् पाण्डवं रणे ॥ १९ ॥

मूलम्

सहदेवे ततः षष्टिं सायकान् दुर्मुखोऽक्षिपत्।
ननाद च महानादं तर्जयन् पाण्डवं रणे ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर दुर्मुखने रणक्षेत्रमें सहदेवपर साठ बाण चलाये और उन पाण्डुकुमारको डाँट बताते हुए बड़े जोरसे गर्जना की॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

माद्रेयस्तु ततः क्रुद्धो दुर्मुखं च शितैः शरैः।
भ्राता भ्रातरमायान्तं विव्याध प्रहसन्निव ॥ २० ॥

मूलम्

माद्रेयस्तु ततः क्रुद्धो दुर्मुखं च शितैः शरैः।
भ्राता भ्रातरमायान्तं विव्याध प्रहसन्निव ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह देख माद्रीकुमार कुपित हो उठे। वे दुर्मुखके भाई लगते थे। उन्होंने अपने पास आते हुए भ्राता दुर्मुखको हँसते हुए-से तीखे बाणोंद्वारा बींध डाला॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं रणे रभसं दृष्ट्वा सहदेवं महाबलम्।
दुर्मुखो नवभिर्बाणैस्ताडयामास भारत ॥ २१ ॥

मूलम्

तं रणे रभसं दृष्ट्वा सहदेवं महाबलम्।
दुर्मुखो नवभिर्बाणैस्ताडयामास भारत ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! रणक्षेत्रमें महाबली सहदेवका वेग बढ़ता देख दुर्मुखने नौ बाणोंद्वारा उन्हें घायल कर दिया॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्मुखस्य तु भल्लेन छित्त्वा केतुं महाबलः।
जघान चतुरो वाहांश्चतुर्भिर्निशितैः शरैः ॥ २२ ॥

मूलम्

दुर्मुखस्य तु भल्लेन छित्त्वा केतुं महाबलः।
जघान चतुरो वाहांश्चतुर्भिर्निशितैः शरैः ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब महाबली सहदेवने एक भल्लसे दुर्मुखकी ध्वजा काटकर चार तीखे बाणोंद्वारा उसके चारों घोड़ोंको मार डाला॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथापरेण भल्लेन पीतेन निशितेन ह।
चिच्छेद सारथेः कायाच्छिरो ज्वलितकुण्डलम् ॥ २३ ॥

मूलम्

अथापरेण भल्लेन पीतेन निशितेन ह।
चिच्छेद सारथेः कायाच्छिरो ज्वलितकुण्डलम् ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर दूसरे पानीदार एवं तीखे भल्लसे उसके सारथिके चमकीले कुण्डलवाले मस्तकको धड़से काट गिराया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्षुरप्रेण च तीक्ष्णेन कौरव्यस्य महद् धनुः।
सहदेवो रणे छित्त्वा तं च विव्याध पञ्चभिः ॥ २४ ॥

मूलम्

क्षुरप्रेण च तीक्ष्णेन कौरव्यस्य महद् धनुः।
सहदेवो रणे छित्त्वा तं च विव्याध पञ्चभिः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् सहदेवने तीखे क्षुरप्रसे समरांगणमें दुर्मुखके विशाल धनुषको काटकर उसे भी पाँच बाणोंसे घायल कर दिया॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हताश्वं तु रथं त्यक्त्वा दुर्मुखो विमनास्तदा।
आरुरोह रथं राजन् निरमित्रस्य भारत ॥ २५ ॥

मूलम्

हताश्वं तु रथं त्यक्त्वा दुर्मुखो विमनास्तदा।
आरुरोह रथं राजन् निरमित्रस्य भारत ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! भरतनन्दन! तब दुर्मुख दुःखी मनसे उस अश्वहीन रथको त्यागकर निरमित्रके रथपर जा चढ़ा॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहदेवस्ततः क्रुद्धो निरमित्रं महाहवे।
जघान पृतनामध्ये भल्लेन परवीरहा ॥ २६ ॥

मूलम्

सहदेवस्ततः क्रुद्धो निरमित्रं महाहवे।
जघान पृतनामध्ये भल्लेन परवीरहा ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इससे शत्रुवीरोंका संहार करनेवाले सहदेव कुपित हो उठे और उन्होंने उस महासमरमें सेनाके बीचोबीच एक भल्लसे निरमित्रको मार डाला॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स पपात रथोपस्थान्निरमित्रो जनेश्वरः।
त्रिगर्तराजस्य सुतो व्यथयंस्तव वाहिनीम् ॥ २७ ॥

मूलम्

स पपात रथोपस्थान्निरमित्रो जनेश्वरः।
त्रिगर्तराजस्य सुतो व्यथयंस्तव वाहिनीम् ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

त्रिगर्तराजका पुत्र राजा निरमित्र अपने वियोगसे आपकी सेनाको व्यथित करता हुआ रथकी बैठकसे नीचे गिर पड़ा॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं तु हत्वा महाबाहुः सहदेवो व्यरोचत।
यथा दाशरथी रामः खरं हत्वा महाबलम् ॥ २८ ॥

मूलम्

तं तु हत्वा महाबाहुः सहदेवो व्यरोचत।
यथा दाशरथी रामः खरं हत्वा महाबलम् ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे पूर्वकालमें दशरथनन्दन भगवान् श्रीराम महाबली खरका वध करके सुशोभित हुए थे, उसी प्रकार महाबाहु सहदेव निरमित्रको मारकर शोभा पा रहे थे॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हाहाकारो महानासीत् त्रिगर्तानां जनेश्वर।
राजपुत्रं हतं दृष्ट्वा निरमित्रं महारथम् ॥ २९ ॥

मूलम्

हाहाकारो महानासीत् त्रिगर्तानां जनेश्वर।
राजपुत्रं हतं दृष्ट्वा निरमित्रं महारथम् ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! महारथी राजकुमार निरमित्रको मारा गया देख त्रिगर्तोंके दलमें महान् हाहाकार मच गया॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नकुलस्ते सुतं राजन् विकर्णं पृथुलोचनम्।
मुहूर्ताज्जितवाल्ँलोके तदद्भुतमिवाभवत् ॥ ३० ॥

मूलम्

नकुलस्ते सुतं राजन् विकर्णं पृथुलोचनम्।
मुहूर्ताज्जितवाल्ँलोके तदद्भुतमिवाभवत् ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! नकुलने विशाल नेत्रोंवाले आपके पुत्र विकर्णको दो ही घड़ीमें पराजित कर दिया; यह अद्‌भुत-सी बात हुई॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सात्यकिं व्याघ्रदत्तस्तु शरैः संनतपर्वभिः।
चक्रेऽदृश्यं साश्वसूतं सध्वजं पृतनान्तरे ॥ ३१ ॥

मूलम्

सात्यकिं व्याघ्रदत्तस्तु शरैः संनतपर्वभिः।
चक्रेऽदृश्यं साश्वसूतं सध्वजं पृतनान्तरे ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

व्याघ्रदत्तने झुकी हुई गाँठवाले बाणोंद्वारा सेनाके मध्यभागमें घोड़ों, सारथि और ध्वजसहित सात्यकिको अदृश्य कर दिया॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तान् निवार्य शरान् शूरः शैनेयः कृतहस्तवत्।
साश्वसूतध्वजं बाणैर्व्याघ्रदत्तमपातयत् ॥ ३२ ॥

मूलम्

तान् निवार्य शरान् शूरः शैनेयः कृतहस्तवत्।
साश्वसूतध्वजं बाणैर्व्याघ्रदत्तमपातयत् ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब शूरवीर शिनिनन्दन सात्यकिने सिद्धहस्त पुरुषकी भाँति उन बाणोंका निवारण करके अपने बाणोंद्वारा घोड़ों, सारथि और ध्वजसहित व्याघ्रदत्तको मार गिराया॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुमारे निहते तस्मिन् मागधस्य सुते प्रभो।
मागधाः सर्वतो यत्ता युयुधानमुपाद्रवन् ॥ ३३ ॥

मूलम्

कुमारे निहते तस्मिन् मागधस्य सुते प्रभो।
मागधाः सर्वतो यत्ता युयुधानमुपाद्रवन् ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभो! मगधनरेशके पुत्र राजकुमार व्याघ्रदत्तके मारे जानेपर मगधदेशीय वीरोंने सब ओरसे प्रयत्नशील होकर युयुधानपर धावा किया॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विसृजन्तः शरांश्चैव तोमरांश्च सहस्रशः।
भिन्दिपालांस्तथा प्रासान् मुद्‌गरान् मुसलानपि ॥ ३४ ॥
अयोधयन् रणे शूराः सात्वतं युद्धदुर्मदम्।

मूलम्

विसृजन्तः शरांश्चैव तोमरांश्च सहस्रशः।
भिन्दिपालांस्तथा प्रासान् मुद्‌गरान् मुसलानपि ॥ ३४ ॥
अयोधयन् रणे शूराः सात्वतं युद्धदुर्मदम्।

अनुवाद (हिन्दी)

वे शूरवीर मागध-सैनिक बहुत-से बाणों, सहस्रों तोमरों, भिन्दिपालों, प्रासों, मुद्‌गरों और मूसलोंका प्रहार करते हुए समरांगणमें रणदुर्जय सात्यकिके साथ युद्ध करने लगे॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तांस्तु सर्वान् स बलवान् सात्यकिर्युद्धदुर्मदः ॥ ३५ ॥
नातिकृच्छ्राद्धसन्नेव विजिग्ये पुरुषर्षभः ।

मूलम्

तांस्तु सर्वान् स बलवान् सात्यकिर्युद्धदुर्मदः ॥ ३५ ॥
नातिकृच्छ्राद्धसन्नेव विजिग्ये पुरुषर्षभः ।

अनुवाद (हिन्दी)

बलवान् युद्धदुर्मद पुरुषप्रवर सात्यकिने हँसते हुए ही उन सबको अधिक कष्ट उठाये बिना ही परास्त कर दिया॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मागधान् द्रवतो दृष्ट्वा हतशेषान् समन्ततः ॥ ३६ ॥
बलं तेऽभज्यत विभो युयुधानशरार्दितम्।

मूलम्

मागधान् द्रवतो दृष्ट्वा हतशेषान् समन्ततः ॥ ३६ ॥
बलं तेऽभज्यत विभो युयुधानशरार्दितम्।

अनुवाद (हिन्दी)

प्रभो! मरनेसे बचे हुए मागध-सैनिकोंको चारों ओर भागते देख सात्यकिके बाणोंसे पीड़ित हुई आपकी सेनाका व्यूह भंग हो गया॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नाशयित्वा रणे सैन्यं त्वदीयं माधवोत्तमः ॥ ३७ ॥
विधुन्वानो धनुः श्रेष्ठं व्यभ्राजत महायशाः।

मूलम्

नाशयित्वा रणे सैन्यं त्वदीयं माधवोत्तमः ॥ ३७ ॥
विधुन्वानो धनुः श्रेष्ठं व्यभ्राजत महायशाः।

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार मधुवंशके श्रेष्ठ वीर महायशस्वी सात्यकि रणक्षेत्रमें आपकी सेनाका विनाश करके अपने उत्तम धनुषको हिलाते हुए बड़ी शोभा पा रहे थे॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भज्यमानं बलं राजन् सात्वतेन महात्मना ॥ ३८ ॥
नाभ्यवर्तत युद्धाय त्रासितं दीर्घबाहुना।

मूलम्

भज्यमानं बलं राजन् सात्वतेन महात्मना ॥ ३८ ॥
नाभ्यवर्तत युद्धाय त्रासितं दीर्घबाहुना।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! महामना महाबाहु सात्यकिके द्वारा डरायी गयी और तितत-बितर की हुई आपकी सेना फिर युद्धके लिये सामने नहीं आयी॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो द्रोणो भृशं क्रुद्धः सहसोद्‌वृत्य चक्षुषी।
सात्यकिं सत्यकर्माणं स्वयमेवाभिदुद्रुवे ॥ ३९ ॥

मूलम्

ततो द्रोणो भृशं क्रुद्धः सहसोद्‌वृत्य चक्षुषी।
सात्यकिं सत्यकर्माणं स्वयमेवाभिदुद्रुवे ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए द्रोणाचार्यने सहसा आँखें घुमाकर सत्यकर्मा सात्यकिपर स्वयं ही आक्रमण किया॥३९॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि संकुलयुद्धे सप्ताधिकशततमोऽध्यायः ॥ १०७ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत जयद्रथवधपर्वमें संकुलयुद्धविषयक एक सौ सातवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१०७॥