०९६ द्वन्द्वयुद्धे

भागसूचना

षण्णवतितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

दोनों पक्षोंके प्रधान वीरोंका द्वन्द्व-युद्ध

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

राजन् संग्राममाश्चर्यं श्रृणु कीर्तयतो मम।
कुरूणां पाण्डवानां च यथा युद्धमवर्तत ॥ १ ॥

मूलम्

राजन् संग्राममाश्चर्यं श्रृणु कीर्तयतो मम।
कुरूणां पाण्डवानां च यथा युद्धमवर्तत ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! कौरवों और पाण्डवोंमें जिस प्रकार युद्ध हुआ था, उस आश्चर्यमय संग्रामका मैं वर्णन करता हूँ, ध्यान देकर सुनिये—॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भारद्वाजं समासाद्य व्यूहस्य प्रमुखे स्थितम्।
अयोधयन् रणे पार्था द्रोणानीकं बिभित्सवः ॥ २ ॥

मूलम्

भारद्वाजं समासाद्य व्यूहस्य प्रमुखे स्थितम्।
अयोधयन् रणे पार्था द्रोणानीकं बिभित्सवः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

व्यूहके द्वारपर खड़े हुए द्रोणाचार्यके पास आकर पाण्डवगण उनकी सेनाके व्यूहका भेदन करनेकी इच्छासे रणक्षेत्रमें उनके साथ युद्ध करने लगे॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रक्षमाणः स्वकं व्यूहं दोणोऽपि सह सैनिकैः।
अयोधयद् रणे पार्थान् प्रार्थयानो महद् यशः ॥ ३ ॥

मूलम्

रक्षमाणः स्वकं व्यूहं दोणोऽपि सह सैनिकैः।
अयोधयद् रणे पार्थान् प्रार्थयानो महद् यशः ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

द्रोणाचार्य भी महान् यशकी अभिलाषा रखकर अपने व्यूहकी रक्षा करते हुए बहुत-से सैनिकोंको साथ लेकर समरांगणमें कुन्तीपुत्रोंके साथ युद्धमें संलग्न हो गये॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विन्दानुविन्दावावन्त्यौ विराटं दशभिः शरैः।
आजघ्नतुः सुसंक्रुद्धौ तव पुत्रहितैषिणौ ॥ ४ ॥

मूलम्

विन्दानुविन्दावावन्त्यौ विराटं दशभिः शरैः।
आजघ्नतुः सुसंक्रुद्धौ तव पुत्रहितैषिणौ ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपके पुत्रका हित चाहनेवाले अवन्तीके राजकुमार विन्द और अनुविन्दने अत्यन्त कुपित हो राजा विराटको दस बाण मारे॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विराटश्च महाराज तावुभौ समरे स्थितौ।
पराकान्तौ पराक्रम्य योधयामास सानुगौ ॥ ५ ॥

मूलम्

विराटश्च महाराज तावुभौ समरे स्थितौ।
पराकान्तौ पराक्रम्य योधयामास सानुगौ ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! राजा विराटने भी समरभूमिमें अनुचरोंसहित खड़े हुए उन दोनों पराक्रमी वीरोंके साथ पराक्रमपूर्वक युद्ध किया॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषां युद्धं समभवद् दारुणं शोणितोदकम्।
सिंहस्य द्विपमुख्याभ्यां प्रभिन्नाभ्यां यथा वने ॥ ६ ॥

मूलम्

तेषां युद्धं समभवद् दारुणं शोणितोदकम्।
सिंहस्य द्विपमुख्याभ्यां प्रभिन्नाभ्यां यथा वने ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे वनमें सिंहका दो मदस्रावी महान् हाथियोंके साथ युद्ध हो रहा हो, उसी प्रकार विराट और विन्द-अनुविन्दमें बड़ा भयंकर संग्राम होने लगा, जहाँ पानीकी तरह खून बहाया जा रहा था॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बाह्लीकं रभसं युद्धे याज्ञसेनिर्महाबलः।
आजघ्ने विशिखैस्तीक्ष्णैर्घोरै र्मर्मास्थिभेदिभिः ॥ ७ ॥

मूलम्

बाह्लीकं रभसं युद्धे याज्ञसेनिर्महाबलः।
आजघ्ने विशिखैस्तीक्ष्णैर्घोरै र्मर्मास्थिभेदिभिः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाबली शिखण्डीने युद्धस्थलमें वेगशाली बाह्लीकको मर्मस्थानों और हड्डियोंको विदीर्ण कर देनेवाले भयंकर तीखे बाणोंद्वारा गहरी चोट पहुँचायी॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बाह्लीको याज्ञसेनिं तु हेमपुङ्खैः शिलाशितैः।
आजघान भृशं क्रुद्धो नवभिर्नतपर्वभिः ॥ ८ ॥

मूलम्

बाह्लीको याज्ञसेनिं तु हेमपुङ्खैः शिलाशितैः।
आजघान भृशं क्रुद्धो नवभिर्नतपर्वभिः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इससे बाह्लीक अत्यन्त कुपित हो उठे। उन्होंने शानपर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखसे युक्त और झुकी हुई गाँठवाले नौ बाणोंद्वारा शिखण्डीको घायल कर दिया॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तद् युद्धमभवद् घोरं शरशक्तिसमाकुलम्।
भीरूणां त्रासजननं शूराणां हर्षवर्धनम् ॥ ९ ॥

मूलम्

तद् युद्धमभवद् घोरं शरशक्तिसमाकुलम्।
भीरूणां त्रासजननं शूराणां हर्षवर्धनम् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन दोनोंके उस युद्धने बड़ा भयंकर रूप धारण किया। उसमें बाणों और शक्तियोंका ही अधिक प्रहार हो रहा था। वह भीरु पुरुषोंके हृदयमें भय और शूरवीरोंके हृदयमें हर्षकी वृद्धि करनेवाला था॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ताभ्यां तत्र शरैर्मुक्तैरन्तरिक्षं दिशस्तथा।
अभवत् संवृतं सर्वं न प्राज्ञायत किंचन ॥ १० ॥

मूलम्

ताभ्यां तत्र शरैर्मुक्तैरन्तरिक्षं दिशस्तथा।
अभवत् संवृतं सर्वं न प्राज्ञायत किंचन ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन दोनों भाइयोंके छोड़े हुए बाणोंसे वहाँ आकाश और दिशाएँ—सब कुछ व्याप्त हो गया। कुछ भी सूझ नहीं पड़ता था॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शैब्यो गोवासनो युद्धे काश्यपुत्रं महारथम्।
ससैन्यो योधयामास गजः प्रतिगजं यथा ॥ ११ ॥

मूलम्

शैब्यो गोवासनो युद्धे काश्यपुत्रं महारथम्।
ससैन्यो योधयामास गजः प्रतिगजं यथा ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शिबिदेशीय गोवासनने सेनासहित सामने जा काशिराजके महारथी पुत्रके साथ रणक्षेत्रमें उसी प्रकार युद्ध किया, जैसे एक हाथी अपने प्रतिद्वन्द्वी दूसरे हाथीके साथ युद्ध करता है॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बाह्लीकराजः संक्रुद्धो द्रौपदेयान् महारथान्।
मनः पञ्चेन्द्रियाणीव शुशुभे योधयन् रणे ॥ १२ ॥

मूलम्

बाह्लीकराजः संक्रुद्धो द्रौपदेयान् महारथान्।
मनः पञ्चेन्द्रियाणीव शुशुभे योधयन् रणे ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

क्रोधमें भरे हुए बाह्लीकराज महारथी द्रौपदीपुत्रोंके साथ रण-क्षेत्रमें युद्ध करते हुए उसी प्रकार शोभा पाने लगे, जैसे मन पाँचों इन्द्रियोंसे युद्ध करता हुआ सुशोभित होता है॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अयोधयंस्ते सुभृशं तं शरौघैः समन्ततः।
इन्द्रियार्था यथा देहं शश्वद् देहवतां वर ॥ १३ ॥

मूलम्

अयोधयंस्ते सुभृशं तं शरौघैः समन्ततः।
इन्द्रियार्था यथा देहं शश्वद् देहवतां वर ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

देहधारियोंमें श्रेष्ठ महाराज! द्रौपदीके पुत्र भी चारों ओरसे बाणसमूहोंकी वर्षा करते हुए वहाँ बाह्लीकराजके साथ उसी प्रकार बड़े वेगसे युद्ध करने लगे, जैसे इन्द्रियोंके विषय शरीरके साथ सदा जूझते रहते हैं॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वार्ष्णेयं सात्यकिं युद्धे पुत्रो दुःशासनस्तव।
आजघ्ने सायकैस्तीक्ष्णैर्नवभिर्नतपर्वभिः ॥ १४ ॥

मूलम्

वार्ष्णेयं सात्यकिं युद्धे पुत्रो दुःशासनस्तव।
आजघ्ने सायकैस्तीक्ष्णैर्नवभिर्नतपर्वभिः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपके पुत्र दुःशासनने युद्धस्थलमें झुकी हुई गाँठवाले नौ तीखे बाणोंद्वारा वृष्णिवंशी सात्यकिको घायल कर दिया॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽतिविद्धो बलवता महेष्वासेन धन्विना।
ईषन्मूर्च्छां जगामाशु सात्यकिः सत्यविक्रमः ॥ १५ ॥

मूलम्

सोऽतिविद्धो बलवता महेष्वासेन धन्विना।
ईषन्मूर्च्छां जगामाशु सात्यकिः सत्यविक्रमः ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बलवान् एवं महान् धनुर्धर दुःशासनके बाणोंसे अत्यन्त बिंध जानेके कारण सत्यपराक्रमी सात्यकिको तुरंत ही थोड़ी-सी मूर्च्छा आ गयी॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समाश्वस्तस्तु वार्ष्णेयस्तव पुत्र महारथम्।
विव्याध दशभिस्तूर्णं सायकैः कङ्कपत्रिभिः ॥ १६ ॥

मूलम्

समाश्वस्तस्तु वार्ष्णेयस्तव पुत्र महारथम्।
विव्याध दशभिस्तूर्णं सायकैः कङ्कपत्रिभिः ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

थोड़ी देरमें स्वस्थ होनेपर सात्यकिने आपके महारथी पुत्र दुःशासनको कंककी पाँखवाले दस बाणोंद्वारा तुरंत ही घायल कर दिया॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावन्योन्यं दृढं विद्धावन्योन्यशरपीडितौ ।
रेजतुः समरे राजन् पुष्पिताविव किंशुकौ ॥ १७ ॥

मूलम्

तावन्योन्यं दृढं विद्धावन्योन्यशरपीडितौ ।
रेजतुः समरे राजन् पुष्पिताविव किंशुकौ ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! वे दोनों एक-दूसरेके बाणोंसे पीड़ित और अत्यन्त घायल हो समरांगणमें दो खिले हुए पलाशके वृक्षोंकी भाँति शोभा पाने लगे॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अलम्बुषस्तु संक्रुद्धः कुन्तिभोजशरार्दितः ।
अशोभत भृशं लक्ष्म्या पुष्पाढ्य इव किंशुकः ॥ १८ ॥

मूलम्

अलम्बुषस्तु संक्रुद्धः कुन्तिभोजशरार्दितः ।
अशोभत भृशं लक्ष्म्या पुष्पाढ्य इव किंशुकः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजा कुन्तिभोजके बाणोंसे पीड़ित हो अत्यन्त क्रोधमें भरा हुआ राक्षस अलम्बुष फूलोंसे लदे हुए पलाश वृक्षके समान एक विशेष शोभासे सम्पन्न दिखायी देने लगा॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुन्तिभोजं ततो रक्षो विद्‌ध्व बहुभिरायसैः।
अनदद् भैरवं नादं वाहिन्याः प्रमुखे तव ॥ १९ ॥

मूलम्

कुन्तिभोजं ततो रक्षो विद्‌ध्व बहुभिरायसैः।
अनदद् भैरवं नादं वाहिन्याः प्रमुखे तव ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर राक्षसने बहुत-से लोहेके बाणोंद्वारा राजा कुन्तिभोजको घायल करके आपकी सेनाके प्रमुख भागमें बड़ी भयंकर गर्जना की॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तौ समरे शूरौ योधयन्तौ परस्परम्।
ददृशुः सर्वसैन्यानि शक्रजम्भौ यथा पुरा ॥ २० ॥

मूलम्

ततस्तौ समरे शूरौ योधयन्तौ परस्परम्।
ददृशुः सर्वसैन्यानि शक्रजम्भौ यथा पुरा ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर सम्पूर्ण सेनाएँ पूर्वकालमें एक-दूसरेसे युद्ध करनेवाले इन्द्र और जम्भासुरके समान समरांगणमें परस्पर जूझते हुए उन दोनों शूरवीरोंको देखने लगीं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शकुनिं रभसं युद्धे कृतवैरं च भारत।
माद्रीपुत्रौ च संरब्धौ शरैश्चार्दयतां भृशम् ॥ २१ ॥

मूलम्

शकुनिं रभसं युद्धे कृतवैरं च भारत।
माद्रीपुत्रौ च संरब्धौ शरैश्चार्दयतां भृशम् ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! क्रोधमें भरे हुए दोनों माद्रीकुमारोंने पहलेसे वैर बाँधनेवाले और युद्धमें वेगपूर्वक आगे बढ़नेवाले शकुनिको अपने बाणोंसे अत्यन्त पीड़ित किया॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुमुलः स महान् राजन् प्रावर्तत जनक्षयः।
त्वया संजनितोऽत्यर्थं कणेन च विवर्धितः ॥ २२ ॥

मूलम्

तुमुलः स महान् राजन् प्रावर्तत जनक्षयः।
त्वया संजनितोऽत्यर्थं कणेन च विवर्धितः ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इस प्रकार वह महाभयंकर जनसंहार चालू हो गया, जिसकी परिस्थितिको आपने ही उत्पन्न किया है और कर्णने उसे अत्यन्त बढ़ावा दिया है॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रक्षितस्तव पुत्रैश्च क्रोधमूलो हुताशनः।
य इमां पृथिवीं राजन् दग्धुं सर्वां समुद्यतः ॥ २३ ॥

मूलम्

रक्षितस्तव पुत्रैश्च क्रोधमूलो हुताशनः।
य इमां पृथिवीं राजन् दग्धुं सर्वां समुद्यतः ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! आपके पुत्रोंने उस क्रोधमूलक वैरकी आगको सुरक्षित रखा है, जो इस सारी पृथ्वीको भस्म कर डालनेके लिये उद्यत है॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शकुनिः पाण्डुपुत्राभ्यां कृतः स विमुखः शरैः।
न स्म जानाति कर्तव्यं युद्धे किंचित् पराक्रमम् ॥ २४ ॥

मूलम्

शकुनिः पाण्डुपुत्राभ्यां कृतः स विमुखः शरैः।
न स्म जानाति कर्तव्यं युद्धे किंचित् पराक्रमम् ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डुकुमार नकुल और सहदेवने अपने बाणोंद्वारा शकुनिको युद्धसे विमुख कर दिया। उस समय उसे युद्धविषयक कर्तव्यका ज्ञान न रहा और न कुछ पराक्रमका ही भान हुआ॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विमुखं चैनमालोक्य माद्रीपुत्रौ महारथौ।
ववर्षतुः पुनर्बाणैर्यथा मेघौ महागिरिम् ॥ २५ ॥

मूलम्

विमुखं चैनमालोक्य माद्रीपुत्रौ महारथौ।
ववर्षतुः पुनर्बाणैर्यथा मेघौ महागिरिम् ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसे युद्धसे विमुख हुआ देखकर भी महारथी माद्रीकुमार नकुल-सहदेव उसके ऊपर पुनः उसी प्रकार बाणोंकी वर्षा करने लगे, जैसे दो मेघ किसी महान् पर्वतपर जलकी धारा बरसा रहे हों॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स वध्यमानो बहुभिः शरैः संनतपर्वभिः।
सम्प्रायाज्जवनैरश्वैर्द्रोणानीकाय सौबलः ॥ २६ ॥

मूलम्

स वध्यमानो बहुभिः शरैः संनतपर्वभिः।
सम्प्रायाज्जवनैरश्वैर्द्रोणानीकाय सौबलः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

झुकी हुई गाँठवाले बहुत-से बाणोंकी मार खाकर सुबलपुत्र शकुनि वेगशाली घोड़ोंकी सहायतासे द्रोणाचार्यकी सेनाके पास जा पहुँचा॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

घटोत्कचस्तथा शूरं राक्षसं तमलायुधम्।
अभ्ययाद् रभसं युद्धे वेगमास्थाय मध्यमम् ॥ २७ ॥

मूलम्

घटोत्कचस्तथा शूरं राक्षसं तमलायुधम्।
अभ्ययाद् रभसं युद्धे वेगमास्थाय मध्यमम् ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इधर घटोत्कचने अपने प्रतिद्वन्द्वी शूर राक्षस अलायुधका जो युद्धमें बड़ा वेगशाली था, मध्यम वेगका आश्रय ले सामना किया॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तयोर्युद्धं महाराज चित्ररूपमिवाभवत् ।
यादृशं हि पुरा वृत्तं रामरावणयोर्मृधे ॥ २८ ॥

मूलम्

तयोर्युद्धं महाराज चित्ररूपमिवाभवत् ।
यादृशं हि पुरा वृत्तं रामरावणयोर्मृधे ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! पूर्वकालमें श्रीराम और रावणके युद्धमें जैसी आश्चर्यजनक घटना घटित हुई थी, उसी प्रकार उन दोनों राक्षसोंका युद्ध भी विचित्र-सा ही हुआ॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो युधिष्ठिरो राजा मद्रराजानमाहवे।
विद्‌ध्वा पञ्चाशता बाणैः पुनर्विव्याध सप्तभिः ॥ २९ ॥

मूलम्

ततो युधिष्ठिरो राजा मद्रराजानमाहवे।
विद्‌ध्वा पञ्चाशता बाणैः पुनर्विव्याध सप्तभिः ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर राजा युधिष्ठिरने युद्धमें मद्रराज शल्यको पचास बाणोंसे घायल करके पुनः सात बाणोंद्वारा उन्हें बींध डाला॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्रववृते युद्धं तयोरत्यद्भुतं नृप।
यथा पूर्वं महद् युद्धं शम्बरामरराजयोः ॥ ३० ॥

मूलम्

ततः प्रववृते युद्धं तयोरत्यद्भुतं नृप।
यथा पूर्वं महद् युद्धं शम्बरामरराजयोः ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! जैसे पूर्वकालमें शम्बरासुर और देवराज इन्द्रमें महान् युद्ध हुआ था, उसी प्रकार उस समय उन दोनोंमें अत्यन्त अद्भुत संग्राम होने लगा॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विविंशतिश्चित्रसेनो विकर्णश्च तवात्मजः ।
अयोधयन् भीमसेनं महत्या सेनया वृताः ॥ ३१ ॥

मूलम्

विविंशतिश्चित्रसेनो विकर्णश्च तवात्मजः ।
अयोधयन् भीमसेनं महत्या सेनया वृताः ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपके पुत्र विविंशति, चित्रसेन और विकर्ण—ये तीनों विशाल सेनाके साथ रहकर भीमसेनके साथ युद्ध करने लगे॥३१॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि द्वन्द्वयुद्धे षण्णवतितमोऽध्यायः ॥ ९६ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत जयद्रथवधपर्वमें द्वन्द्वयुद्धविषयक छानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥९६॥