भागसूचना
पञ्चनवतितमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
द्रोण और धृष्टद्युम्नका भीषण संग्राम तथा उभय पक्षके प्रमुख वीरोंका परस्पर संकुल युद्ध
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रविष्टयोर्महाराज पार्थवार्ष्णेययो रणे ।
दुर्योधने प्रयाते च पृष्ठतः पुरुषर्षभे ॥ १ ॥
जवेनाभ्यद्रवन् द्रोणं महता निःस्वनेन च।
पाण्डवाः सोमकैः सार्धं ततो युद्धमवर्तत ॥ २ ॥
मूलम्
प्रविष्टयोर्महाराज पार्थवार्ष्णेययो रणे ।
दुर्योधने प्रयाते च पृष्ठतः पुरुषर्षभे ॥ १ ॥
जवेनाभ्यद्रवन् द्रोणं महता निःस्वनेन च।
पाण्डवाः सोमकैः सार्धं ततो युद्धमवर्तत ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— महाराज! उस रणक्षेत्रमें जब श्रीकृष्ण और अर्जुन कौरव-सेनाके भीतर प्रवेश कर गये तथा पुरुषप्रवर दुर्योधन उनका पीछा करता हुआ आगे बढ़ गया, तब सोमकोंसहित पाण्डवोंने बड़ी भारी गर्जनाके साथ द्रोणाचार्यपर वेगपूर्वक धावा किया। फिर तो वहाँ बड़े जोरसे युद्ध होने लगा॥१-२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तद् युद्धमभवत् तीव्रं तुमुलं लोमहर्षणम्।
कुरूणां पाण्डवानां च व्यूहस्य पुरतोऽद्भुतम् ॥ ३ ॥
मूलम्
तद् युद्धमभवत् तीव्रं तुमुलं लोमहर्षणम्।
कुरूणां पाण्डवानां च व्यूहस्य पुरतोऽद्भुतम् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
व्यूहके द्वारपर होनेवाला कौरवों तथा पाण्डवोंका वह अद्भुत युद्ध अत्यन्त तीव्र एवं भयंकर था। उसे देखकर लोगोंके रोंगटे खड़े हो जाते थे॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राजन् कदाचिन्नास्माभिर्दृष्टं तादृङ् न च श्रुतम्।
यादृङ् मध्यगते सूर्ये युद्धमासीद् विशाम्पते ॥ ४ ॥
मूलम्
राजन् कदाचिन्नास्माभिर्दृष्टं तादृङ् न च श्रुतम्।
यादृङ् मध्यगते सूर्ये युद्धमासीद् विशाम्पते ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! प्रजानाथ! वहाँ मध्याह्नकालमें जैसा वह युद्ध हुआ था, वैसा न तो मैंने कभी देखा था और न सुना ही था॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नमुखाः पार्था व्यूढानीकाः प्रहारिणः।
द्रोणस्य सैन्यं ते सर्वे शरवर्षैरवाकिरन् ॥ ५ ॥
मूलम्
धृष्टद्युम्नमुखाः पार्था व्यूढानीकाः प्रहारिणः।
द्रोणस्य सैन्यं ते सर्वे शरवर्षैरवाकिरन् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृष्टद्युम्न आदि पाण्डवपक्षीय सब प्रहारकुशल योद्धा अपनी सेनाका व्यूह बनाकर द्रोणाचार्यकी सेनापर बाणोंकी वर्षा करने लगे॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वयं द्रोणं पुरस्कृत्य सर्वशस्त्रभृतां वरम्।
पार्षतप्रमुखान् पार्थानभ्यवर्षाम सायकैः ॥ ६ ॥
मूलम्
वयं द्रोणं पुरस्कृत्य सर्वशस्त्रभृतां वरम्।
पार्षतप्रमुखान् पार्थानभ्यवर्षाम सायकैः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय हमलोग सम्पूर्ण शस्त्रधारियोंमें श्रेष्ठ द्रोणाचार्यको आगे करके धृष्टद्युम्न आदि पाण्डव-सैनिकोंपर बाण-वर्षा कर रहे थे॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महामेघाविवोदीर्णौ मिश्रवातौ हिमात्यये ।
सेनाग्रे प्रचकाशेते रुचिरे रथभूषिते ॥ ७ ॥
मूलम्
महामेघाविवोदीर्णौ मिश्रवातौ हिमात्यये ।
सेनाग्रे प्रचकाशेते रुचिरे रथभूषिते ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
रथोंसे विभूषित हुई वे दोनों प्रधान एवं सुन्दर सेनाएँ हेमन्तके अन्त (शिशिर)-में उठे हुए वायुयुक्त दो महामेघोंके समान प्रकाशित हो रही थीं॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समेत्य तु महासेने चक्रतुर्वेगमुत्तमम्।
जाह्नवीयमुने नद्यौ प्रावृषीवोल्बणोदके ॥ ८ ॥
मूलम्
समेत्य तु महासेने चक्रतुर्वेगमुत्तमम्।
जाह्नवीयमुने नद्यौ प्रावृषीवोल्बणोदके ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे दोनों विशाल सेनाएँ परस्पर भिड़कर विजयके लिये बड़े वेगसे आगे बढ़नेका प्रयत्न करने लगीं; मानो वर्षा-ऋतुमें जलकी बाढ़ आनेसे बड़ी हुई गंगा और यमुना दोनों नदियाँ बड़े वेगसे मिल रही हों॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नानाशस्त्रपुरोवातो द्विपाश्वरथसंवृतः ।
गदाविद्युन्महारौद्रः संग्रामजलदो महान् ॥ ९ ॥
भारद्वाजानिलोद्धूतः शरधारासहस्रवान् ।
अभ्यवर्षन्महासैन्यः पाण्डुसेनाग्निमुद्धतम् ॥ १० ॥
मूलम्
नानाशस्त्रपुरोवातो द्विपाश्वरथसंवृतः ।
गदाविद्युन्महारौद्रः संग्रामजलदो महान् ॥ ९ ॥
भारद्वाजानिलोद्धूतः शरधारासहस्रवान् ।
अभ्यवर्षन्महासैन्यः पाण्डुसेनाग्निमुद्धतम् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय महान् सैन्यदलसे संयुक्त एवं हाथी, घोड़े और रथोंसे भरा हुआ वह संग्राम महान् मेघके समान जान पड़ता था। नाना प्रकारके शस्त्र पूर्ववात (पुरवैया)-के तुल्य चल रहे थे। गदाएँ विद्युत्के समान प्रकाशित होती थीं। देखनेमें वह संग्राम-मेघ बड़ा भयंकर जान पड़ता था। द्रोणाचार्य वायुके समान उसे संचालित कर रहे थे तथा उससे बाणरूपी जलकी सहस्रों धाराएँ गिर रही थीं और इस प्रकार वह अग्निके समान उठी हुई पाण्डव-सेनापर सब ओरसे वर्षा कर रहा था॥९-१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समुद्रमिव घर्मान्ते विशन् घोरो महानिलः।
व्यक्षोभयदनीकानि पाण्डवानां द्विजोत्तमः ॥ ११ ॥
मूलम्
समुद्रमिव घर्मान्ते विशन् घोरो महानिलः।
व्यक्षोभयदनीकानि पाण्डवानां द्विजोत्तमः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे ग्रीष्म-ऋतुके अन्तमें बड़े जोरसे उठी हुई भयंकर वायु महासागरमें क्षोभ उत्पन्न करके वहाँ ज्वारका दृश्य उपस्थित कर देती है, उसी प्रकार विप्रवर द्रोणाचार्यने पाण्डव-सेनामें हलचल मचा दी॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेऽपि सर्वप्रयत्नेन द्रोणमेव समाद्रवन्।
बिभित्सन्तो महासेतुं वार्योघाः प्रबला इव ॥ १२ ॥
मूलम्
तेऽपि सर्वप्रयत्नेन द्रोणमेव समाद्रवन्।
बिभित्सन्तो महासेतुं वार्योघाः प्रबला इव ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डव-योद्धाओंने भी सारी शक्ति लगाकर द्रोणपर ही धावा किया था; मानो पानीके प्रखर प्रवाह किसी महान् पुलको तोड़ डालना चाहते हों॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वारयामास तान् द्रोणो जलौघमचलो यथा।
पाण्डवान् समरे क्रुद्धान् पञ्चलांश्च सकेकयान् ॥ १३ ॥
मूलम्
वारयामास तान् द्रोणो जलौघमचलो यथा।
पाण्डवान् समरे क्रुद्धान् पञ्चलांश्च सकेकयान् ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे सामने खड़ा हुआ पर्वत आती हुर्ह जलराशिको रोक देता है, उसी प्रकार समरांगणमें द्रोणाचार्यने कुपित हुए पाण्डवों, पांचालों तथा केकयोंको रोक दिया था॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथापरे च राजानः परिवृत्य समन्ततः।
महाबला रणे शूराः पञ्चालानन्ववारयन् ॥ १४ ॥
मूलम्
अथापरे च राजानः परिवृत्य समन्ततः।
महाबला रणे शूराः पञ्चालानन्ववारयन् ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार दूसरे महाबली शूरवीर नरेश भी उस युद्धस्थलमें सब ओरसे लौटकर पांचालोंका ही प्रतिरोध करने लगे॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो रणे नरव्याघ्रः पार्षतः पाण्डवैः सह।
संजघानासकृद् द्रोणं बिभित्सुररिवाहिनीम् ॥ १५ ॥
मूलम्
ततो रणे नरव्याघ्रः पार्षतः पाण्डवैः सह।
संजघानासकृद् द्रोणं बिभित्सुररिवाहिनीम् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर रणक्षेत्रमें पाण्डवोंसहित नरश्रेष्ठ धृष्टद्युम्नने शत्रुसेनाके व्यूहका भेदन करनेकी इच्छासे द्रोणाचार्यपर बारंबार प्रहार किया॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथैव शरवर्षाणि द्रोणो वर्षति पार्षते।
तथैव शरवर्षाणि धृष्टद्युम्नोऽप्यवर्षत ॥ १६ ॥
मूलम्
यथैव शरवर्षाणि द्रोणो वर्षति पार्षते।
तथैव शरवर्षाणि धृष्टद्युम्नोऽप्यवर्षत ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आचार्य द्रोण धृष्टद्युम्नपर जैसे बाणोंकी वर्षा करते थे, धृष्टद्युम्न भी द्रोणपर वैसे ही बाण बरसाते थे॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सनिस्त्रिंशपुरोवातः शक्तिप्रासर्ष्टिसंवृतः ।
ज्याविद्युच्चापसंह्रादो धृष्टद्युम्नबलाहकः ॥ १७ ॥
शरधाराश्मवर्षाणि व्यसृजत् सर्वतो दिशम्।
निघ्नन् रथवराश्वौघान् प्लावयामास वाहिनीम् ॥ १८ ॥
मूलम्
सनिस्त्रिंशपुरोवातः शक्तिप्रासर्ष्टिसंवृतः ।
ज्याविद्युच्चापसंह्रादो धृष्टद्युम्नबलाहकः ॥ १७ ॥
शरधाराश्मवर्षाणि व्यसृजत् सर्वतो दिशम्।
निघ्नन् रथवराश्वौघान् प्लावयामास वाहिनीम् ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय धृष्टद्युम्न एक महामेघके समान जान पड़ते थे। उनकी तलवार पुरवैया हवाके समान चल रही थी। वे शक्ति, प्रास एवं ऋष्टि आदि अस्त्र-शस्त्रोंसे सम्पन्न थे। उनकी प्रत्यंचा विद्युत्के समान प्रकाशित होती थी। धनुषकी टंकार मेघगर्जनाके समान जान पड़ती थी। उस धृष्टद्युम्नरूपी मेघने श्रेष्ठ रथी और घुड़सवारोंके समूहरूपी खेतीको नष्ट करनेके लिये सम्पूर्ण दिशाओंमें बाणरूपी जलकी धारा और अस्त्र-शस्त्ररूपी पत्थर बरसाते हुए शत्रु-सेनाको आप्लावित कर दिया॥१७-१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यं यमार्च्छच्छरैर्द्रोणः पाण्डवानां रथव्रजम्।
ततस्ततः शरैर्द्रोणमपाकर्षत पार्षतः ॥ १९ ॥
मूलम्
यं यमार्च्छच्छरैर्द्रोणः पाण्डवानां रथव्रजम्।
ततस्ततः शरैर्द्रोणमपाकर्षत पार्षतः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
द्रोणाचार्य बाणोंद्वारा पाण्डवोंकी जिस-जिस रथसेनापर आक्रमण करते थे, धृष्टद्युम्न तत्काल बाणोंकी वर्षा करके उस-उस ओरसे उन्हें लौटा देते थे॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा तु यतमानस्य द्रोणस्य युधि भारत।
धृष्टद्युम्नं समासाद्य त्रिधा सैन्यमभिद्यत ॥ २० ॥
मूलम्
तथा तु यतमानस्य द्रोणस्य युधि भारत।
धृष्टद्युम्नं समासाद्य त्रिधा सैन्यमभिद्यत ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! युद्धमें इस प्रकार विजयके लिये प्रयत्नशील हुए द्रोणाचार्यकी सेना धृष्टद्युम्नके पास पहुँचकर तीन भागोंमें बँट गयी॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भोजमेकेऽभ्यवर्तन्त जलसंधं तथापरे ।
पाण्डवैर्हन्यमानाश्च द्रोणमेवापरे ययुः ॥ २१ ॥
मूलम्
भोजमेकेऽभ्यवर्तन्त जलसंधं तथापरे ।
पाण्डवैर्हन्यमानाश्च द्रोणमेवापरे ययुः ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डव-योद्धाओंकी मार खाकर कुछ सैनिक कृतवर्माके पास चले गये, दूसरे जलसंधके पास भाग गये और शेष सभी योद्धा द्रोणाचार्यका ही अनुसरण करने लगे॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संघट्टयति सैन्यानि द्रोणस्तु रथिनां वरः।
व्यधमच्चापि तान्यस्य धृष्टद्युम्नो महारथः ॥ २२ ॥
मूलम्
संघट्टयति सैन्यानि द्रोणस्तु रथिनां वरः।
व्यधमच्चापि तान्यस्य धृष्टद्युम्नो महारथः ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
रथियोंमें श्रेष्ठ द्रोण बारंबार अपनी सेनाओंको संगठित करते और महारथी धृष्टद्युम्न उनकी सब सेनाओंको छिन्न-भिन्न कर देते थे॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धार्तराष्ट्रास्तथाभूता वध्यन्ते पाण्डुसृञ्जयैः ।
अगोपाः पशवोऽरण्ये बहुभिः श्वापदैरिव ॥ २३ ॥
मूलम्
धार्तराष्ट्रास्तथाभूता वध्यन्ते पाण्डुसृञ्जयैः ।
अगोपाः पशवोऽरण्ये बहुभिः श्वापदैरिव ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे वनमें बिना रक्षकके पशुओंको बहुत-से हिंसक जन्तु मार डालते हैं, उसी प्रकार पाण्डव और सृंजय आपके सैनिकोंका वध कर रहे थे॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कालः स्म ग्रसते योधान् धृष्टद्युम्नेन मोहितान्।
संग्रामे तुमुले तस्मिन्निति सम्मेनिरे जनाः ॥ २४ ॥
मूलम्
कालः स्म ग्रसते योधान् धृष्टद्युम्नेन मोहितान्।
संग्रामे तुमुले तस्मिन्निति सम्मेनिरे जनाः ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस भयंकर संग्राममें सब लोग ऐसा मानने लगे कि काल ही धृष्टद्युम्नके द्वारा कौरवयोद्धाओंको मोहित करके उन्हें अपना ग्रास बना रहा है॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कुनृपस्य यथा राष्ट्रं दुर्भिक्षव्याधितस्करैः।
द्राव्यते तद्वदापन्ना पाण्डवैस्तव वाहिनी ॥ २५ ॥
मूलम्
कुनृपस्य यथा राष्ट्रं दुर्भिक्षव्याधितस्करैः।
द्राव्यते तद्वदापन्ना पाण्डवैस्तव वाहिनी ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे दुष्ट राजाका राज्य दुर्भिक्ष, भाँति-भाँतिकी बीमारी और चोर-डाकुओंके उपद्रवके कारण उजाड़ हो जाता है, उसी प्रकार पाण्डव-सैनिकोंद्वारा विपत्तिमें पड़ी हुई आपकी सेना इधर-उधर खदेड़ी जा रही थी॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्करश्मिविमिश्रेषु शस्त्रेषु कवचेषु च।
चक्षूंषि प्रत्यहन्यन्त सैन्येन रजसा तथा ॥ २६ ॥
मूलम्
अर्करश्मिविमिश्रेषु शस्त्रेषु कवचेषु च।
चक्षूंषि प्रत्यहन्यन्त सैन्येन रजसा तथा ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
योद्धाओंके अस्त्र-शस्त्रों और कवचोंपर सूर्यकी किरणें पड़नेसे वहाँ आँखें चौंधिया जाती थीं और सेनासे इतनी धूल उठती थी कि उससे सबके नेत्र बंद हो जाते थे॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्रिधाभूतेषु सैन्येषु वध्यमानेषु पाण्डवैः।
अमर्षितस्ततो द्रोणः पञ्चालान् व्यधमच्छरैः ॥ २७ ॥
मूलम्
त्रिधाभूतेषु सैन्येषु वध्यमानेषु पाण्डवैः।
अमर्षितस्ततो द्रोणः पञ्चालान् व्यधमच्छरैः ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जब पाण्डवोंके द्वारा मारी जाती हुई कौरव-सेना तीन भागोंमें बँट गयी, तब द्रोणाचार्यने अत्यन्त कुपित होकर अपने बाणोंद्वारा पांचालोंका विनाश आरम्भ किया॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मृद्नतस्तान्यनीकानि निघ्नतश्चापि सायकैः ।
बभूव रूपं द्रोणस्य कालाग्नेरिव दीप्यतः ॥ २८ ॥
मूलम्
मृद्नतस्तान्यनीकानि निघ्नतश्चापि सायकैः ।
बभूव रूपं द्रोणस्य कालाग्नेरिव दीप्यतः ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पांचालोंकी उन सेनाओंको रौंदते और बाणोंद्वारा उनका संहार करते हुए द्रोणाचार्यका स्वरूप प्रलयकालकी प्रज्वलित अग्निके समान जान पड़ता था॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथं नागं हयं चापि पत्तिनश्च विशाम्पते।
एकैकेनेषुणा संख्ये निर्बिभेद महारथः ॥ २९ ॥
मूलम्
रथं नागं हयं चापि पत्तिनश्च विशाम्पते।
एकैकेनेषुणा संख्ये निर्बिभेद महारथः ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! महारथी द्रोणने उस युद्धस्थलमें शत्रुसेनाके प्रत्येक रथ, हाथी, अश्व और पैदल सैनिकको एक-एक बाणसे घायल कर दिया॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पाण्डवानां तु सैन्येषु नास्ति कश्चित् स भारत।
दधार यो रणे बाणान् द्रोणचापच्युतान् प्रभो ॥ ३० ॥
मूलम्
पाण्डवानां तु सैन्येषु नास्ति कश्चित् स भारत।
दधार यो रणे बाणान् द्रोणचापच्युतान् प्रभो ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! प्रभो! उस समय पाण्डवोंकी सेनामें कोई ऐसा वीर नहीं था, जो रणक्षेत्रमें द्रोणाचार्यके धनुषसे छूटे हुए बाणोंको धैर्यपूर्वक सह सका हो॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत् पच्यमानमर्केण द्रोणसायकतापितम् ।
बभ्राम पार्षतं सैन्यं तत्र तत्रैव भारत ॥ ३१ ॥
मूलम्
तत् पच्यमानमर्केण द्रोणसायकतापितम् ।
बभ्राम पार्षतं सैन्यं तत्र तत्रैव भारत ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! सूर्यके द्वारा अपनी किरणोंसे पकायी जाती हुई-सी धृष्टद्युम्नकी सेना द्रोणाचार्यके बाणोंसे संतप्त हो जहाँ-तहाँ चक्कर काटने लगी॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव पार्षतेनापि काल्यमानं बलं तव।
अभवत् सर्वतो दीप्तं शुष्कं वनमिवाग्निना ॥ ३२ ॥
मूलम्
तथैव पार्षतेनापि काल्यमानं बलं तव।
अभवत् सर्वतो दीप्तं शुष्कं वनमिवाग्निना ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार धृष्टद्युम्नके द्वारा खदेड़ी जाती हुई आपकी सेना भी सब ओरसे आग लग जानेके कारण प्रज्वलित हुए सूखे वनकी भाँति दग्ध हो रही थी॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बाध्यमानेषु सैन्येषु द्रोणपार्षतसायकैः ।
त्यक्त्वा प्राणान् परं शक्त्या युध्यन्ते सर्वतोमुखाः ॥ ३३ ॥
मूलम्
बाध्यमानेषु सैन्येषु द्रोणपार्षतसायकैः ।
त्यक्त्वा प्राणान् परं शक्त्या युध्यन्ते सर्वतोमुखाः ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्नके बाणोंद्वारा सेनाओंके पीड़ित होनेपर भी सब लोग प्राणोंका मोह छोड़कर पूरी शक्तिसे सब ओर युद्ध कर रहे थे॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तावकानां परेषां च युध्यतां भरतर्षभ।
नासीत् कश्चिन्महाराज योऽत्याक्षीत् संयुगं भयात् ॥ ३४ ॥
मूलम्
तावकानां परेषां च युध्यतां भरतर्षभ।
नासीत् कश्चिन्महाराज योऽत्याक्षीत् संयुगं भयात् ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतभूषण! महाराज! वहाँ युद्ध करते हुए आपके और शत्रुओंके योद्धाओंमें कोई ऐसा नहीं था, जिसने भयके कारण युद्धका मैदान छोड़ दिया हो॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनं तु कौन्तेयं सोदर्याः पर्यवारयन्।
विविंशतिश्चित्रसेनो विकर्णश्च महारथः ॥ ३५ ॥
मूलम्
भीमसेनं तु कौन्तेयं सोदर्याः पर्यवारयन्।
विविंशतिश्चित्रसेनो विकर्णश्च महारथः ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय विविंशति, चित्रसेन तथा महारथी विकर्ण—इन तीनों भाइयोंने कुन्तीपुत्र भीमसेनको घेर लिया॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ क्षेमधूर्तिश्च वीर्यवान् ।
त्रयाणां तव पुत्राणां त्रय एवानुयायिनः ॥ ३६ ॥
मूलम्
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ क्षेमधूर्तिश्च वीर्यवान् ।
त्रयाणां तव पुत्राणां त्रय एवानुयायिनः ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अवन्तीके राजकुमार विन्द और अनुविन्द तथा पराक्रमी क्षेमधूर्ति—ये तीनों ही आपके पूर्वोक्त तीनों पुत्रोंके अनुयायी थे॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बाह्लीकराजस्तेजस्वी कुलपुत्रो महारथः ।
सहसेनः सहामात्यो द्रौपदेयानवारयत् ॥ ३७ ॥
मूलम्
बाह्लीकराजस्तेजस्वी कुलपुत्रो महारथः ।
सहसेनः सहामात्यो द्रौपदेयानवारयत् ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उत्तम कुलमें उत्पन्न हुए तेजस्वी महारथी बाह्लीकराजने सेना और मन्त्रियोंसहित जाकर द्रौपदी-पुत्रोंको रोका॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शैब्यो गोवासनो राजा योधैर्दशशतावरैः।
काश्यस्याभिभुवः पुत्रं पराक्रान्तमवारयत् ॥ ३८ ॥
मूलम्
शैब्यो गोवासनो राजा योधैर्दशशतावरैः।
काश्यस्याभिभुवः पुत्रं पराक्रान्तमवारयत् ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शिबिदेशीय राजा गोवासनने कम-से-कम एक सहस्र योद्धा साथ लेकर काशिराज अभिभूके पराक्रमी पुत्रका सामना किया॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अजातशत्रुं कौन्तेयं ज्वलन्तमिव पावकम्।
मद्राणामीश्वरः शल्यो राजा राजानमावृणोत् ॥ ३९ ॥
मूलम्
अजातशत्रुं कौन्तेयं ज्वलन्तमिव पावकम्।
मद्राणामीश्वरः शल्यो राजा राजानमावृणोत् ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रज्वलित अग्निके समान तेजस्वी अजातशत्रु कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिरका सामना मद्रदेशके स्वामी राजा शल्यने किया॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुःशासनस्त्ववस्थाप्य स्वमनीकममर्षणः ।
सात्यकिं प्रत्ययौ क्रुद्धः शूरो रथवरं युधि ॥ ४० ॥
मूलम्
दुःशासनस्त्ववस्थाप्य स्वमनीकममर्षणः ।
सात्यकिं प्रत्ययौ क्रुद्धः शूरो रथवरं युधि ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अमर्षशील शूरवीर दुःशासनने अपनी भागती हुई सेनाको पुनः स्थिरतापूर्वक स्थापित करके कुपित हो युद्धस्थलमें रथियोंमें श्रेष्ठ सात्यकिपर आक्रमण किया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वकेनाहमनीकेन संनद्धः कवचावृतः ।
चतुःशतैर्महेष्वासैश्चेकितानमवारयम् ॥ ४१ ॥
मूलम्
स्वकेनाहमनीकेन संनद्धः कवचावृतः ।
चतुःशतैर्महेष्वासैश्चेकितानमवारयम् ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अपनी सेना तथा चार सौ महाधनुर्धरोंके साथ कवच धारण करके सुसज्जित हो मैंने चेकितानको रोका॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शकुनिस्तु सहानीको माद्रीपुत्रमवारयत् ।
गान्धारकैः सप्तशतैश्चापशक्त्यसिपाणिभिः ॥ ४२ ॥
मूलम्
शकुनिस्तु सहानीको माद्रीपुत्रमवारयत् ।
गान्धारकैः सप्तशतैश्चापशक्त्यसिपाणिभिः ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सेनासहित शकुनिने माद्रीपुत्र नकुलका प्रतिरोध किया। उसके साथ हाथोंमें धनुष, शक्ति और तलवार लिये सात सौ गान्धार-देशीय योद्धा मौजूद थे॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ विराटं मत्स्यमार्च्छताम् ।
प्राणांस्त्यक्त्वा महेष्वासौ मित्रार्थेऽभ्युद्यतायुधौ ॥ ४३ ॥
मूलम्
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ विराटं मत्स्यमार्च्छताम् ।
प्राणांस्त्यक्त्वा महेष्वासौ मित्रार्थेऽभ्युद्यतायुधौ ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अवन्तीके राजकुमार विन्द और अनुविन्दने मत्स्य-नरेश विराटपर आक्रमण किया। उन दोनों महाधनुर्धर वीरोंने प्राणोंका मोह छोड़कर अपने मित्र दुर्योधनके लिये हथियार उठाया था॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिखण्डिनं याज्ञसेनिं रुन्धानमपराजितम् ।
बाह्लीकः प्रतिसंयत्तः पराक्रान्तमवारयत् ॥ ४४ ॥
मूलम्
शिखण्डिनं याज्ञसेनिं रुन्धानमपराजितम् ।
बाह्लीकः प्रतिसंयत्तः पराक्रान्तमवारयत् ॥ ४४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
किसीसे परास्त न होनेवाले पराक्रमी यज्ञसेन-कुमार शिखण्डीको, जो राह रोककर खड़ा था, बाह्लीकने पूर्ण प्रयत्नशील होकर रोका॥४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नं तु पाञ्चाल्यं क्रूरैः सार्धं प्रभद्रकैः।
आवन्त्यः सहसौवीरैः क्रुद्धरूपमवारयत् ॥ ४५ ॥
मूलम्
धृष्टद्युम्नं तु पाञ्चाल्यं क्रूरैः सार्धं प्रभद्रकैः।
आवन्त्यः सहसौवीरैः क्रुद्धरूपमवारयत् ॥ ४५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अवन्तीके एक दूसरे वीरने क्रूर स्वभाववाले प्रभद्रकों और सौवीरदेशीय सैनिकोंके साथ आकर क्रोधमें भरे हुए पांचालराजकुमार धृष्टद्युम्नको रोका॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
घटोत्कचं तथा शूरं राक्षसं क्रूरकर्मिणम्।
अलायुधोऽद्रवत् तूर्णं क्रुद्धमायान्तमाहवे ॥ ४६ ॥
मूलम्
घटोत्कचं तथा शूरं राक्षसं क्रूरकर्मिणम्।
अलायुधोऽद्रवत् तूर्णं क्रुद्धमायान्तमाहवे ॥ ४६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
क्रोधमें भरकर युद्धके लिये आते हुए क्रूरकर्मा तथा शूरवीर राक्षस घटोत्कचपर अलायुधने शीघ्रतापूर्वक आक्रमण किया॥४६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अलम्बुषं राक्षसेन्द्रं कुन्तिभोजो महारथः।
सैन्येन महता युक्तः क्रुद्धरूपमवारयत् ॥ ४७ ॥
मूलम्
अलम्बुषं राक्षसेन्द्रं कुन्तिभोजो महारथः।
सैन्येन महता युक्तः क्रुद्धरूपमवारयत् ॥ ४७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डवपक्षके महारथी राजा कुन्तिभोजने विशाल सेनाके साथ आकर कुपित हुए कौरवपक्षीय राक्षसराज अलम्बुषका सामना किया॥४७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सैन्धवः पृष्ठतस्त्वासीत् सर्वसैन्यस्य भारत।
रक्षितः परमेष्वासैः कृपप्रभृतिभी रथैः ॥ ४८ ॥
मूलम्
सैन्धवः पृष्ठतस्त्वासीत् सर्वसैन्यस्य भारत।
रक्षितः परमेष्वासैः कृपप्रभृतिभी रथैः ॥ ४८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! उस समय सिंधुराज जयद्रथ सारी सेनाके पीछे महाधनुर्धर कृपाचार्य आदि रथियोंसे सुरक्षित था॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्यास्तां चक्ररक्षौ द्वौ सैन्धवस्य बृहत्तमौ।
दौणिर्दक्षिणतो राजन् सूतपुत्रश्च वामतः ॥ ४९ ॥
मूलम्
तस्यास्तां चक्ररक्षौ द्वौ सैन्धवस्य बृहत्तमौ।
दौणिर्दक्षिणतो राजन् सूतपुत्रश्च वामतः ॥ ४९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जयद्रथके दो महान् चक्ररक्षक थे। उसके दाहिने चक्रकी अश्वत्थामा और बायें चक्रकी रक्षा सूतपुत्र कर्ण कर रहा था॥४९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पृष्ठगोपास्तु तस्यासन् सौमदत्तिपुरोगमाः ।
कृपश्च वृषसेनश्च शलः शल्यश्च दुर्जयः ॥ ५० ॥
नीतिमन्तो महेष्वासाः सर्वे युद्धविशारदाः।
सैन्धवस्य विधायैवं रक्षां युयुधिरे ततः ॥ ५१ ॥
मूलम्
पृष्ठगोपास्तु तस्यासन् सौमदत्तिपुरोगमाः ।
कृपश्च वृषसेनश्च शलः शल्यश्च दुर्जयः ॥ ५० ॥
नीतिमन्तो महेष्वासाः सर्वे युद्धविशारदाः।
सैन्धवस्य विधायैवं रक्षां युयुधिरे ततः ॥ ५१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भूरिश्रवा आदि वीर उसके पृष्ठ भागकी रक्षा करते थे। कृप, वृषसेन, शल और दुर्जय वीर शल्य—ये सभी नीतिज्ञ, महान् धनुर्धर एवं युद्धकुशल थे और इस प्रकार सिंधुराजकी रक्षाका प्रबन्ध करके वहाँ युद्ध कर रहे थे॥५०-५१॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि संकुलयुद्धे पञ्चनवतितमोऽध्यायः ॥ ९५ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत जयद्रथवधपर्वमें संकुलयुद्धविषयक पंचानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥९५॥