भागसूचना
त्रिनवतितमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
अर्जुनद्वारा श्रुतायु, अच्युतायु, नियतायु, दीर्घायु, म्लेच्छ-सैनिक और अम्बष्ठ आदिका वध
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
हते सुदक्षिणे राजन् वीरे चैव श्रुतायुधे।
जवेनाभ्यद्रवन् पार्थं कुपिताः सैनिकास्तव ॥ १ ॥
मूलम्
हते सुदक्षिणे राजन् वीरे चैव श्रुतायुधे।
जवेनाभ्यद्रवन् पार्थं कुपिताः सैनिकास्तव ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— राजन्! काम्बोजराज सुदक्षिण और वीर श्रुतायुधके मारे जानेपर आपके सारे सैनिक कुपित हो बड़े वेगसे अर्जुनपर टूट पड़े॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभीषाहाः शूरसेनाः शिबयोऽथ वसातयः।
अभ्यवर्षंस्ततो राजन् शरवर्षैर्धनंजयम् ॥ २ ॥
मूलम्
अभीषाहाः शूरसेनाः शिबयोऽथ वसातयः।
अभ्यवर्षंस्ततो राजन् शरवर्षैर्धनंजयम् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! वहाँ अभीषाह, शूरसेन, शिबि और वसाति-देशीय सैनिकगण अर्जुनपर बाणोंकी वर्षा करने लगे॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां षष्टिशतानन्यान् प्रामथ्नात् पाण्डवः शरैः।
ते स्म भीताः पलायन्ते व्याघ्रात् क्षुद्रमृगा इव ॥ ३ ॥
मूलम्
तेषां षष्टिशतानन्यान् प्रामथ्नात् पाण्डवः शरैः।
ते स्म भीताः पलायन्ते व्याघ्रात् क्षुद्रमृगा इव ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय पाण्डुकुमार अर्जुनने उपर्युक्त सेनाओंके छः हजार सैनिकों तथा अन्य योद्धाओंको भी अपने बाणोंद्वारा मथ डाला। जैसे छोटे-छोटे मृग बाघसे डरकर भागते हैं, उसी प्रकार वे अर्जुनसे भयभीत हो वहाँसे पलायन करने लगे॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते निवृत्ताः पुनः पार्थं सर्वतः पर्यवारयन्।
रणे सपत्नान् निघ्नन्तं जिगीषन्तं परान् युधि ॥ ४ ॥
मूलम्
ते निवृत्ताः पुनः पार्थं सर्वतः पर्यवारयन्।
रणे सपत्नान् निघ्नन्तं जिगीषन्तं परान् युधि ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय अर्जुन रणक्षेत्रमें शत्रुओंपर विजय पानेकी इच्छासे उनका संहार कर रहे थे। यह देख उन भागे हुए सैनिकोंने पुनः लौटकर पार्थको चारों ओरसे घेर लिया॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषामापततां तूर्णं गाण्डीवप्रेषितैः शरैः।
शिरांसि पातयामास बाहूंश्चापि धनंजयः ॥ ५ ॥
मूलम्
तेषामापततां तूर्णं गाण्डीवप्रेषितैः शरैः।
शिरांसि पातयामास बाहूंश्चापि धनंजयः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन आक्रमण करनेवाले योद्धाओंके मस्तकों और भुजाओंको अर्जुनने गाण्डीव-धनुषद्वारा छोड़े हुए बाणोंसे तुरंत ही काट गिराया॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिरोभिः पातितैस्तत्र भूमिरासीन्निरन्तरा ।
अभ्रच्छायेव चैवासीद् ध्वाङ्क्षगृध्रबलैर्युधि ॥ ६ ॥
मूलम्
शिरोभिः पातितैस्तत्र भूमिरासीन्निरन्तरा ।
अभ्रच्छायेव चैवासीद् ध्वाङ्क्षगृध्रबलैर्युधि ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ गिराये हुए मस्तकोंसे वह रणभूमि ठसाठस भर गयी थी और उस युद्धस्थलमें कौओं तथा गीधोंकी सेनाके आ जानेसे वहाँ मेघकी छाया-सी प्रतीत होती थी॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषु तूत्साद्यमानेषु क्रोधामर्षसमन्वितौ ।
श्रुतायुश्चाच्युतायुश्च धनंजयमयुध्यताम् ॥ ७ ॥
मूलम्
तेषु तूत्साद्यमानेषु क्रोधामर्षसमन्वितौ ।
श्रुतायुश्चाच्युतायुश्च धनंजयमयुध्यताम् ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार जब उन समस्त सैनिकोंका संहार होने लगा, तब श्रुतायु तथा अच्युतायु—ये दो वीर क्रोध और अमर्षमें भरकर अर्जुनके साथ युद्ध करने लगे॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बलिनौ स्पर्धिनौ वीरौ कुलजौ बाहुशालिनौ।
तावेनं शरवर्षाणि सव्यदक्षिणमस्यताम् ॥ ८ ॥
मूलम्
बलिनौ स्पर्धिनौ वीरौ कुलजौ बाहुशालिनौ।
तावेनं शरवर्षाणि सव्यदक्षिणमस्यताम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे दोनों बलवान्, अर्जुनसे स्पर्धा रखनेवाले, वीर, उत्तम कुलमें उत्पन्न और अपनी भुजाओंसे सुशोभित होनेवाले थे। उन दोनोंने अर्जुनपर दायें-बायेंसे बाण बरसाना आरम्भ किया॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्वरायुक्तौ महाराज प्रार्थयानौ महद् यशः।
अर्जुनस्य वधप्रेप्सू पुत्रार्थे तव धन्विनौ ॥ ९ ॥
मूलम्
त्वरायुक्तौ महाराज प्रार्थयानौ महद् यशः।
अर्जुनस्य वधप्रेप्सू पुत्रार्थे तव धन्विनौ ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! वे दोनों वीर महान् यशकी अभिलाषा रखते हुए आपके पुत्रके लिये अर्जुनके वधकी इच्छा रखकर हाथमें धनुष ले बड़ी उतावलीके साथ बाण चला रहे थे॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तावर्जुनं सहस्रेण पत्रिणां नतपर्वणाम्।
पूरयामासतुः क्रुद्धौ तटागं जलदौ यथा ॥ १० ॥
मूलम्
तावर्जुनं सहस्रेण पत्रिणां नतपर्वणाम्।
पूरयामासतुः क्रुद्धौ तटागं जलदौ यथा ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे दो मेघ किसी तालाबको भरते हों, उसी प्रकार क्रोधमें भरे हुए उन दोनों वीरोंने झुकी हुई गाँठवाले सहस्रों बाणोंद्वारा अर्जुनको आच्छादित कर दिया॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रुतायुश्च ततः क्रुद्धस्तोमरेण धनंजयम्।
आजघान रथश्रेष्ठः पीतेन निशितेन च ॥ ११ ॥
मूलम्
श्रुतायुश्च ततः क्रुद्धस्तोमरेण धनंजयम्।
आजघान रथश्रेष्ठः पीतेन निशितेन च ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर रथियोंमें श्रेष्ठ श्रुतायुने कुपित होकर पानीदार तीखी धारवाले तोमरसे अर्जुनपर आघात किया॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽतिविद्धो बलवता शत्रुणा शत्रुकर्शनः।
जगाम परमं मोहं मोहयन् केशवं रणे ॥ १२ ॥
मूलम्
सोऽतिविद्धो बलवता शत्रुणा शत्रुकर्शनः।
जगाम परमं मोहं मोहयन् केशवं रणे ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस बलवान् शत्रुके द्वारा अत्यन्त घायल किये हुए शत्रुसूदन अर्जुन उस रणक्षेत्रमें श्रीकृष्णको मोहित करते हुए स्वयं भी अत्यन्त मूर्च्छित हो गये॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतस्मिन्नेव काले तु सोऽच्युतायुर्महारथः।
शूलेन भृशतीक्ष्णेन ताडयामास पाण्डवम् ॥ १३ ॥
मूलम्
एतस्मिन्नेव काले तु सोऽच्युतायुर्महारथः।
शूलेन भृशतीक्ष्णेन ताडयामास पाण्डवम् ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी समय महारथी अच्युतायुने अत्यन्त तीखे शूलके द्वारा पाण्डुकुमार अर्जुनपर प्रहार किया॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षते क्षारं स हि ददौ पाण्डवस्य महात्मनः।
पार्थोऽपि भृशसंविद्धो ध्वजयष्टिं समाश्रितः ॥ १४ ॥
मूलम्
क्षते क्षारं स हि ददौ पाण्डवस्य महात्मनः।
पार्थोऽपि भृशसंविद्धो ध्वजयष्टिं समाश्रितः ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसने इस प्रहारद्वारा महामना पाण्डुपुत्र अर्जुनके घावपर नमक छिड़क दिया। अर्जुन भी अत्यन्त घायल होकर ध्वज-दण्डके सहारे टिक गये॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सर्वस्य सैन्यस्य तावकस्य विशाम्पते।
सिंहनादो महानासीद्धतं मत्वा धनंजयम् ॥ १५ ॥
मूलम्
ततः सर्वस्य सैन्यस्य तावकस्य विशाम्पते।
सिंहनादो महानासीद्धतं मत्वा धनंजयम् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! उस समय अर्जुनको मरा हुआ मानकर आपके सारे सैनिक जोर-जोरसे सिंहनाद करने लगे॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृष्णश्च भृशसंतप्तो दृष्ट्वा पार्थं विचेतनम्।
आश्वासयत् सुहृद्याभिर्वाग्भिस्तत्र धनंजयम् ॥ १६ ॥
मूलम्
कृष्णश्च भृशसंतप्तो दृष्ट्वा पार्थं विचेतनम्।
आश्वासयत् सुहृद्याभिर्वाग्भिस्तत्र धनंजयम् ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनको अचेत हुआ देख भगवान् श्रीकृष्ण अत्यन्त संतप्त हो उठे और मनको प्रिय लगनेवाले वचनोंद्वारा वहाँ उन्हें आश्वासन देने लगे॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तौ रथिनां श्रेष्ठौ लब्धलक्ष्यौ धनंजयम्।
वासुदेवं च वार्ष्णेयं शरवर्षैः समन्ततः ॥ १७ ॥
सचक्रकूबररथं साश्वध्वजपताकिनम् ।
अदृश्यं चक्रतुर्युद्धे तदद्भुतमिवाभवत् ॥ १८ ॥
मूलम्
ततस्तौ रथिनां श्रेष्ठौ लब्धलक्ष्यौ धनंजयम्।
वासुदेवं च वार्ष्णेयं शरवर्षैः समन्ततः ॥ १७ ॥
सचक्रकूबररथं साश्वध्वजपताकिनम् ।
अदृश्यं चक्रतुर्युद्धे तदद्भुतमिवाभवत् ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर रथियोंमें श्रेष्ठ श्रुतायु और अच्युतायुने अपना लक्ष्य सामने पाकर अर्जुन तथा वृष्णिवंशी श्रीकृष्णपर चारों ओरसे बाण-वर्षा करके चक्र, कूबर, रथ, अश्व, ध्वज और पताकासहित उन्हें उस रणक्षेत्रमें अदृश्य कर दिया। वह अद्भुत-सी बात हो गयी॥१७-१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रत्याश्वस्तस्तु बीभत्सुः शनकैरिव भारत।
प्रेतराजपुरं प्राप्य पुनः प्रत्यागतो यथा ॥ १९ ॥
मूलम्
प्रत्याश्वस्तस्तु बीभत्सुः शनकैरिव भारत।
प्रेतराजपुरं प्राप्य पुनः प्रत्यागतो यथा ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! फिर अर्जुन धीरे-धीरे सचेत हुए, मानो यमराजके नगरमें पहुँचकर पुनः वहाँसे लौटे हों॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संछन्नं शरजालेन रथं दृष्ट्वा सकेशवम्।
शत्रू चाभिमुखौ दृष्ट्वा दीप्यमानाविवानलौ ॥ २० ॥
प्रादुश्चक्रे ततः पार्थः शाक्रमस्त्रं महारथः।
तस्मादासन् सहस्राणि शराणां नतपर्वणाम् ॥ २१ ॥
मूलम्
संछन्नं शरजालेन रथं दृष्ट्वा सकेशवम्।
शत्रू चाभिमुखौ दृष्ट्वा दीप्यमानाविवानलौ ॥ २० ॥
प्रादुश्चक्रे ततः पार्थः शाक्रमस्त्रं महारथः।
तस्मादासन् सहस्राणि शराणां नतपर्वणाम् ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय भगवान् श्रीकृष्णसहित अपने रथको बाणसमूहसे आच्छादित और सामने खड़े हुए दोनों शत्रुओंको अग्निके समान देदीप्यमान देखकर महारथी अर्जुनने ऐन्द्रास्त्र प्रकट किया। उससे झुकी हुई गाँठवाले सहस्रों बाण प्रकट होने लगे॥२०-२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते जघ्नुस्तौ महेष्वासौ ताभ्यां मुक्तांश्च सायकान्।
विचेरुराकाशगताः पार्थबाणविदारिताः ॥ २२ ॥
मूलम्
ते जघ्नुस्तौ महेष्वासौ ताभ्यां मुक्तांश्च सायकान्।
विचेरुराकाशगताः पार्थबाणविदारिताः ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन बाणोंने उन दोनों महाधनुर्धरोंको तथा उनके छोड़े हुए सायकोंको भी छिन्न-भिन्न कर दिया। अर्जुनके बाणोंसे टुकड़े-टुकड़े होकर उन शत्रुओंके बाण आकाशमें विचरने लगे॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रतिहत्य शरांस्तूर्णं शरवेगेन पाण्डवः।
प्रतस्थे तत्र तत्रैव योधयन् वै महारथान् ॥ २३ ॥
मूलम्
प्रतिहत्य शरांस्तूर्णं शरवेगेन पाण्डवः।
प्रतस्थे तत्र तत्रैव योधयन् वै महारथान् ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अपने बाणोंके वेगसे शत्रुओंके बाणोंको नष्ट करके पाण्डुकुमार अर्जुनने जहाँ-तहाँ अन्य महारथियोंसे युद्ध करनेके लिये प्रस्थान किया॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तौ च फाल्गुनबाणौघैर्विबाहुशिरसौ कृतौ।
वसुधामन्वपद्येतां वातनुन्नाविव द्रुमौ ॥ २४ ॥
मूलम्
तौ च फाल्गुनबाणौघैर्विबाहुशिरसौ कृतौ।
वसुधामन्वपद्येतां वातनुन्नाविव द्रुमौ ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनके उन बाणसमूहोंसे श्रुतायु और अच्युतायुके मस्तक कट गये। भुजाएँ छिन्न-भिन्न हो गयीं। वे दोनों आँधीके उखाड़े हुए वृक्षोंके समान धराशायी हो गये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रुतायुषश्च निधनं वधश्चैवाच्युतायुषः ।
लोकविस्मापनमभूत् समुद्रस्येव शोषणम् ॥ २५ ॥
मूलम्
श्रुतायुषश्च निधनं वधश्चैवाच्युतायुषः ।
लोकविस्मापनमभूत् समुद्रस्येव शोषणम् ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रुतायु और अच्युतायुका वह वध समुद्रशोषणके समान सब लोगोंको आश्चर्यमें डालनेवाला था॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तयोः पदानुगान् हत्वा पुनः पञ्चाशतं रथान्।
प्रत्यगाद् भारतीं सेनां निघ्नन् पार्थो वरान् वरान् ॥ २६ ॥
मूलम्
तयोः पदानुगान् हत्वा पुनः पञ्चाशतं रथान्।
प्रत्यगाद् भारतीं सेनां निघ्नन् पार्थो वरान् वरान् ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन दोनोंके पीछे आनेवाले पचास रथियोंको मारकर अर्जुनने श्रेष्ठ-श्रेष्ठ वीरोंको चुन-चुनकर मारते हुए पुनः कौरव-सेनामें प्रवेश किया॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रुतायुषं च निहतं प्रेक्ष्य चैवाच्युतायुषम्।
नियतायुश्च संक्रुद्धो दीर्घायुश्चैव भारत ॥ २७ ॥
पुत्रौ तयोर्नरश्रेष्ठौ कौन्तेयं प्रतिजग्मतुः।
किरन्तौ विविधान् बाणान् पितृव्यसनकर्शितौ ॥ २८ ॥
मूलम्
श्रुतायुषं च निहतं प्रेक्ष्य चैवाच्युतायुषम्।
नियतायुश्च संक्रुद्धो दीर्घायुश्चैव भारत ॥ २७ ॥
पुत्रौ तयोर्नरश्रेष्ठौ कौन्तेयं प्रतिजग्मतुः।
किरन्तौ विविधान् बाणान् पितृव्यसनकर्शितौ ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! श्रुतायु तथा अच्युतायुको मारा गया देख उन दोनोंके पुत्र नरश्रेष्ठ नियतायु और दीर्घायु पिताके वधसे दुःखी हो अत्यन्त क्रोधमें भरकर नाना प्रकारके बाणोंकी वर्षा करते हुए कुन्तीकुमार अर्जुनका सामना करनेके लिये आये॥२७-२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तावर्जुनो मुहूर्तेन शरैः संनतपर्वभिः।
प्रैषयत् परमक्रुद्धो यमस्य सदनं प्रति ॥ २९ ॥
मूलम्
तावर्जुनो मुहूर्तेन शरैः संनतपर्वभिः।
प्रैषयत् परमक्रुद्धो यमस्य सदनं प्रति ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब अर्जुनने अत्यन्त कुपित हो झुकी हुई गाँठवाले बाणोंद्वारा दो ही घड़ीमें उन दोनोंको यमराजके घर भेज दिया॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
लोडयन्तमनीकानि द्विपं पद्मसरो यथा।
नाशक्नुवन् वारयितुं पार्थं क्षत्रियपुङ्गवाः ॥ ३० ॥
मूलम्
लोडयन्तमनीकानि द्विपं पद्मसरो यथा।
नाशक्नुवन् वारयितुं पार्थं क्षत्रियपुङ्गवाः ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे हाथी कमलोंसे भरे हुए सरोवरको मथ डालता हो, उसी प्रकार आपकी सेनाओंका मन्थन करते हुए पार्थको आपके क्षत्रियशिरोमणि योद्धा रोक न सके॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अङ्गास्तु गजवारेण पाण्डवं पर्यवारयन्।
क्रुद्धाः सहस्रशो राजन् शिक्षिता हस्तिसादिनः ॥ ३१ ॥
मूलम्
अङ्गास्तु गजवारेण पाण्डवं पर्यवारयन्।
क्रुद्धाः सहस्रशो राजन् शिक्षिता हस्तिसादिनः ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इसी समय युद्धविषयक शिक्षा पाये हुए अंगदेशके सहस्रों गजारोही योद्धाओंने क्रोधमें भरकर हाथियोंके समूहद्वारा पाण्डुकुमार अर्जुनको सब ओरसे घेर लिया॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्योधनसमादिष्टाः कुञ्जरैः पर्वतोपमैः ।
प्राच्याश्च दाक्षिणात्याश्च कलिङ्गप्रमुखा नृपाः ॥ ३२ ॥
मूलम्
दुर्योधनसमादिष्टाः कुञ्जरैः पर्वतोपमैः ।
प्राच्याश्च दाक्षिणात्याश्च कलिङ्गप्रमुखा नृपाः ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर दुर्योधनकी आज्ञा पाकर पूर्व और दक्षिण देशोंके कलिंग आदि नरेशोंने भी अर्जुनपर पर्वताकार हाथियोंद्वारा घेरा डाल दिया॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषामापततां शीघ्रं गाण्डीवप्रेषितैः शरैः।
निचकर्त शिरांस्युग्रो बाहूनपि सुभूषणान् ॥ ३३ ॥
मूलम्
तेषामापततां शीघ्रं गाण्डीवप्रेषितैः शरैः।
निचकर्त शिरांस्युग्रो बाहूनपि सुभूषणान् ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब उग्ररूपधारी अर्जुनने गाण्डीव धनुषसे छोड़े हुए बाणोंद्वारा उन सारे आक्रमणकारियोंके मस्तकों तथा उत्तम भूषणभूषित भुजाओंको भी शीघ्र ही काट डाला॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तैः शिरोभिर्मही कीर्णा बाहुभिश्च सहाङ्गदैः।
बभौ कनकपाषाणा भुजगैरिव संवृता ॥ ३४ ॥
मूलम्
तैः शिरोभिर्मही कीर्णा बाहुभिश्च सहाङ्गदैः।
बभौ कनकपाषाणा भुजगैरिव संवृता ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय उन मस्तकों और भुजबंदसहित भुजाओंसे आच्छादित हुई वहाँकी भूमि सर्पोंसे घिरी हुई स्वर्ण-प्रस्तरयुक्त भूमिके समान शोभा पा रही थी॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बाहवो विशिखैश्छिन्नाः शिरांस्युन्मथितानि च।
पतमानान्यदृश्यन्त द्रुमेभ्य इव पक्षिणः ॥ ३५ ॥
मूलम्
बाहवो विशिखैश्छिन्नाः शिरांस्युन्मथितानि च।
पतमानान्यदृश्यन्त द्रुमेभ्य इव पक्षिणः ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बाणोंसे छिन्न-भिन्न हुई भुजाएँ और कटे हुए मस्तक इस प्रकार गिरते दिखायी दे रहे थे, मानो वृक्षोंसे पक्षी गिर रहे हों॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरैः सहस्रशो विद्धा द्विपाः प्रसृतशोणिताः।
अदृश्यन्ताद्रयः काले गैरिकाम्बुस्रवा इव ॥ ३६ ॥
मूलम्
शरैः सहस्रशो विद्धा द्विपाः प्रसृतशोणिताः।
अदृश्यन्ताद्रयः काले गैरिकाम्बुस्रवा इव ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सहस्रों बाणोंसे बिंधकर खूनकी धारा बहाते हुए हाथी वर्षाकालमें गेरुमिश्रित जलके झरने बहानेवाले पर्वतोंके समान दिखायी देते थे॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निहताः शेरते स्मान्ये बीभत्सोर्निशितैः शरैः।
गजपृष्ठगता म्लेच्छा नानाविकृतदर्शनाः ॥ ३७ ॥
मूलम्
निहताः शेरते स्मान्ये बीभत्सोर्निशितैः शरैः।
गजपृष्ठगता म्लेच्छा नानाविकृतदर्शनाः ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनके तीखे बाणोंसे मारे जाकर दूसरे-दूसरे म्लेच्छ-सैनिक हाथीकी पीठपर ही लेट गये थे। उनकी नाना प्रकारकी आकृति बड़ी विकृत दिखायी देती थी॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नानावेषधरा राजन् नानाशस्त्रौघसंवृताः ।
रुधिरेणानुलिप्ताङ्गा भान्ति चित्रैः शरैर्हताः ॥ ३८ ॥
मूलम्
नानावेषधरा राजन् नानाशस्त्रौघसंवृताः ।
रुधिरेणानुलिप्ताङ्गा भान्ति चित्रैः शरैर्हताः ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! नाना प्रकारके वेश धारण करनेवाले तथा अनेक प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंसे सम्पन्न योद्धा अर्जुनके विचित्र बाणोंसे मारे जाकर अद्भुत शोभा पा रहे थे। उनके सारे अंग खूनसे लथपथ हो रहे थे॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शोणितं निर्वमन्ति स्म द्विपाः पार्थशराहताः।
सहस्रशश्छिन्नगात्राः सारोहाः सपदानुगाः ॥ ३९ ॥
मूलम्
शोणितं निर्वमन्ति स्म द्विपाः पार्थशराहताः।
सहस्रशश्छिन्नगात्राः सारोहाः सपदानुगाः ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सवारों और अनुचरोंसहित सहस्रों हाथी अर्जुनके बाणोंसे आहत हो मुँहसे रक्त वमन करते थे। उनके सम्पूर्ण अंग छिन्न-भिन्न हो रहे थे॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चुक्रुशुश्च निपेतुश्च बभ्रमुश्चापरे दिशः।
भृशं त्रस्ताश्च बहवः स्वानेव ममृदुर्गजाः ॥ ४० ॥
सान्तरायुधिनश्चैव द्विपास्तीक्ष्णविषोपमाः ।
मूलम्
चुक्रुशुश्च निपेतुश्च बभ्रमुश्चापरे दिशः।
भृशं त्रस्ताश्च बहवः स्वानेव ममृदुर्गजाः ॥ ४० ॥
सान्तरायुधिनश्चैव द्विपास्तीक्ष्णविषोपमाः ।
अनुवाद (हिन्दी)
बहुत-से हाथी चिग्घाड़ रहे थे, बहुतेरे धराशायी हो गये थे, दूसरे कितने ही हाथी सम्पूर्ण दिशाओंमें चक्कर काट रहे थे और बहुत-से गज अत्यन्त भयभीत हो भागते हुए अपने ही पक्षके योद्धाओंको कुचल रहे थे। तीक्ष्ण विषवाले सर्पोंके समान भयंकर वे सभी हाथी गुप्तास्त्रधारी सैनिकोंसे युक्त थे॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विदन्त्यसुरमायां ये सुघोरा घोरचक्षुषः ॥ ४१ ॥
यवनाः पारदाश्चैव शकाश्च सह बाह्लिकैः।
काकवर्णा दुराचाराः स्त्रीलोलाः कलहप्रियाः ॥ ४२ ॥
मूलम्
विदन्त्यसुरमायां ये सुघोरा घोरचक्षुषः ॥ ४१ ॥
यवनाः पारदाश्चैव शकाश्च सह बाह्लिकैः।
काकवर्णा दुराचाराः स्त्रीलोलाः कलहप्रियाः ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो आसुरी मायाको जानते हैं, जिनकी आकृति अत्यन्त भयंकर है तथा जो भयानक नेत्रोंसे युक्त हैं एवं जो कौओंके समान काले, दुराचारी, स्त्रीलम्पट और कलहप्रिय होते हैं वे यवन, पारद, शक और बाह्लीक भी वहाँ युद्धके लिये उपस्थित हुए॥४१-४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्राविडास्तत्र युध्यन्ते मत्तमातङ्गविक्रमाः ।
गोयोनिप्रभवा म्लेच्छाः कालकल्पाः प्रहारिणः ॥ ४३ ॥
मूलम्
द्राविडास्तत्र युध्यन्ते मत्तमातङ्गविक्रमाः ।
गोयोनिप्रभवा म्लेच्छाः कालकल्पाः प्रहारिणः ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मतवाले हाथियोंके समान पराक्रमी द्राविड तथा नन्दिनी गायसे उत्पन्न हुए कालके समान प्रहारकुशल म्लेच्छ भी वहाँ युद्ध कर रहे थे॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दार्वातिसारा दरदाः पुण्ड्राश्चैव सहस्रशः।
ते न शक्याः स्म संख्यातुं व्रात्याः शतसहस्रशः ॥ ४४ ॥
मूलम्
दार्वातिसारा दरदाः पुण्ड्राश्चैव सहस्रशः।
ते न शक्याः स्म संख्यातुं व्रात्याः शतसहस्रशः ॥ ४४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दार्वातिसार, दरद और पुण्ड्र आदि हजारों लाखों संस्कारशून्य म्लेच्छ वहाँ उपस्थित थे, जिनकी गणना नहीं की जा सकती थी॥४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभ्यवर्षन्त ते सर्वे पाण्डवं निशितैः शरैः।
अवाकिरंश्च ते म्लेच्छा नानायुद्धविशारदाः ॥ ४५ ॥
मूलम्
अभ्यवर्षन्त ते सर्वे पाण्डवं निशितैः शरैः।
अवाकिरंश्च ते म्लेच्छा नानायुद्धविशारदाः ॥ ४५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नाना प्रकारके युद्धोंमें कुशल वे सभी म्लेच्छगण पाण्डुपुत्र अर्जुनपर तीखे बाणोंकी वर्षा करके उन्हें आच्छादित करने लगे॥४५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषामपि ससर्जाशु शरवृष्टिं धनंजयः।
सृष्टिस्तथाविधा ह्यासीच्छलभानामिवायतिः ॥ ४६ ॥
मूलम्
तेषामपि ससर्जाशु शरवृष्टिं धनंजयः।
सृष्टिस्तथाविधा ह्यासीच्छलभानामिवायतिः ॥ ४६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब अर्जुनने उनके ऊपर भी तुरंत बाणोंकी वर्षा प्रारम्भ की। उनकी वह बाण-वृष्टि टिड्डी-दलोंकी सृष्टि-सी प्रतीत होती थी॥४६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभ्रच्छायामिव शरैः सैन्ये कृत्वा धनंजयः।
मुण्डार्धमुण्डाञ्जटिलानशुचीञ्जटिलाननान् ॥ ४७ ॥
म्लेच्छानशातयत् सर्वान् समेतानस्त्रतेजसा ।
मूलम्
अभ्रच्छायामिव शरैः सैन्ये कृत्वा धनंजयः।
मुण्डार्धमुण्डाञ्जटिलानशुचीञ्जटिलाननान् ॥ ४७ ॥
म्लेच्छानशातयत् सर्वान् समेतानस्त्रतेजसा ।
अनुवाद (हिन्दी)
बाणोंद्वारा उस विशाल सेनापर बादलोंकी छाया-सी करके अर्जुनने अपने अस्त्रके तेजसे मुण्डित, अर्धमुण्डित, जटाधारी, अपवित्र तथा दाढ़ीभरे मुखवाले उन समस्त म्लेच्छोंका, जो वहाँ एकत्र थे, संहार कर डाला॥४७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरैश्च शतशो विद्धास्ते संघा गिरिचारिणः।
प्राद्रवन्त रणे भीता गिरिगह्वरवासिनः ॥ ४८ ॥
मूलम्
शरैश्च शतशो विद्धास्ते संघा गिरिचारिणः।
प्राद्रवन्त रणे भीता गिरिगह्वरवासिनः ॥ ४८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय पर्वतोंपर विचरने और पर्वतीय कन्दराओंमें निवास करनेवाले सैकड़ों म्लेच्छ-संघ अर्जुनके बाणोंसे विद्ध एवं भयभीत हो रणभूमिसे भागने लगे॥४८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गजाश्वसादिम्लेच्छानां पतितानां शितैः शरैः।
बलाः कंका वृका भूमावपिबन् रुधिरं मुदा ॥ ४९ ॥
मूलम्
गजाश्वसादिम्लेच्छानां पतितानां शितैः शरैः।
बलाः कंका वृका भूमावपिबन् रुधिरं मुदा ॥ ४९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनके तीखे बाणोंसे मरकर पृथ्वीपर गिरे हुए उन हाथीसवार और घुड़सवार म्लेच्छोंका रक्त कौए, बगुले और भेड़िये बड़ी प्रसन्नताके साथ पी रहे थे॥४९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पत्त्यश्वरथनागैश्च प्रच्छन्नकृतसंक्रमाम् ।
शरवर्षप्लवां घोरां केशशैवलशाद्वलाम् ।
प्रावर्तयन्नदीमुग्रां शोणितौघतरङ्गिणीम् ॥ ५० ॥
छिन्नाङ्गुलीक्षुद्रमत्स्यां युगान्ते कालसंनिभाम् ।
प्राकरोद् गजसम्बाधां नदीमुत्तरशोणिताम् ॥ ५१ ॥
देहेभ्यो राजपुत्राणां नागाश्वरथसादिनाम् ।
मूलम्
पत्त्यश्वरथनागैश्च प्रच्छन्नकृतसंक्रमाम् ।
शरवर्षप्लवां घोरां केशशैवलशाद्वलाम् ।
प्रावर्तयन्नदीमुग्रां शोणितौघतरङ्गिणीम् ॥ ५० ॥
छिन्नाङ्गुलीक्षुद्रमत्स्यां युगान्ते कालसंनिभाम् ।
प्राकरोद् गजसम्बाधां नदीमुत्तरशोणिताम् ॥ ५१ ॥
देहेभ्यो राजपुत्राणां नागाश्वरथसादिनाम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय अर्जुनने वहाँ रक्तकी एक भयंकर नदी बहा दी, जो प्रलयकालकी नदीके समान डरावनी प्रतीत होती थी। उसमें पैदल मनुष्य, घोड़े, रथ और हाथियोंको बिछाकर मानो पुल तैयार किया गया था, बाणोंकी वर्षा ही नौकाके समान जान पड़ती थी। केश सेवार और घासके समान जान पड़ते थे। उस भयंकर नदीसे रक्त-प्रवाहकी ही तरंगें उठ रही थीं। कटी हुई अँगुलियाँ छोटी-छोटी मछलियोंके समान जान पड़ती थीं। हाथी, घोड़े और रथोंकी सवारी करनेवाले राजकुमारोंके शरीरोंसे बहनेवाले रक्तसे लबालब भरी हुई उस नदीको अर्जुनने स्वयं प्रकट किया था। उसमें हाथियोंकी लाशें व्याप्त हो रही थीं॥५०-५१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथास्थलं च निम्नं च न स्याद् वर्षति वासवे॥५२॥
तथासीत् पृथिवी सर्वा शोणितेन परिप्लुता।
मूलम्
यथास्थलं च निम्नं च न स्याद् वर्षति वासवे॥५२॥
तथासीत् पृथिवी सर्वा शोणितेन परिप्लुता।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे इन्द्रके वर्षा करते समय ऊँचे-नीचे स्थलका भान नहीं होता है, उसी प्रकार वहाँकी सारी पृथ्वी रक्तकी धारामें डूबकर समतल-सी जान पड़ती थी॥५२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
षट् सहस्रान् हयान् वीरान् पुनर्दशशतान् वरान् ॥ ५३ ॥
प्राहिणोन्मृत्युलोकाय क्षत्रियान् क्षत्रियर्षभः ।
मूलम्
षट् सहस्रान् हयान् वीरान् पुनर्दशशतान् वरान् ॥ ५३ ॥
प्राहिणोन्मृत्युलोकाय क्षत्रियान् क्षत्रियर्षभः ।
अनुवाद (हिन्दी)
क्षत्रियशिरोमणि अर्जुनने वहाँ छः हजार घुड़सवारों तथा एक हजार श्रेष्ठ शूरवीर क्षत्रियोंको मृत्युके लोकमें भेज दिया॥५३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरैः सहस्रशो विद्धा विधिवत्कल्पिता द्विपाः ॥ ५४ ॥
शेरते भूमिमासाद्य शैला वज्रहता इव।
मूलम्
शरैः सहस्रशो विद्धा विधिवत्कल्पिता द्विपाः ॥ ५४ ॥
शेरते भूमिमासाद्य शैला वज्रहता इव।
अनुवाद (हिन्दी)
विधिपूर्वक सुसज्जित किये गये हाथी सहस्रों बाणोंसे बिंधकर वज्रके मारे हुए पर्वतोंके समान धराशायी हो रहे थे॥५४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सवाजिरथमातङ्गान् निघ्नन् व्यचरदर्जुनः ॥ ५५ ॥
प्रभिन्न इव मातङ्गो मृद्नन् नलवनं यथा।
मूलम्
सवाजिरथमातङ्गान् निघ्नन् व्यचरदर्जुनः ॥ ५५ ॥
प्रभिन्न इव मातङ्गो मृद्नन् नलवनं यथा।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे मदकी धारा बहानेवाला मतवाला हाथी नरकुलके जंगलोंको रौंदता चलता है, उसी प्रकार अर्जुन घोड़े, रथ और हाथियोंसहित सम्पूर्ण शत्रुओंका संहार करते हुए रणभूमिमें विचर रहे थे॥५५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भूरिद्रुमलतागुल्मं शुष्केन्धनतृणोलपम् ॥ ५६ ॥
निर्दहेदनलोऽरण्यं यथा वायुसमीरितः ।
सेनारण्यं तव तथा कृष्णानिलसमीरितः ॥ ५७ ॥
शरार्चिरदहत् क्रुद्धः पाण्डवाग्निर्धनंजयः ।
मूलम्
भूरिद्रुमलतागुल्मं शुष्केन्धनतृणोलपम् ॥ ५६ ॥
निर्दहेदनलोऽरण्यं यथा वायुसमीरितः ।
सेनारण्यं तव तथा कृष्णानिलसमीरितः ॥ ५७ ॥
शरार्चिरदहत् क्रुद्धः पाण्डवाग्निर्धनंजयः ।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे वायुप्रेरित अग्नि सूखे ईंधन, तृण और लताओंसे युक्त तथा बहुसंख्यक वृक्षों और लतागुल्मोंसे भरे हुए जंगलको जलाकर भस्म कर देती है, उसी प्रकार श्रीकृष्णरूपी वायुसे प्रेरित हो बाणरूपी ज्वालाओंसे युक्त पाण्डुपुत्र अर्जुनरूपी अग्निने कुपित होकर आपकी सेनारूप वनको दग्ध कर दिया॥५६-५७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शून्यान् कुर्वन् रथोपस्थान् मानवैः संस्तरन् महीम् ॥ ५८ ॥
प्रानृत्यदिव सम्बाधे चापहस्तो धनंजयः।
मूलम्
शून्यान् कुर्वन् रथोपस्थान् मानवैः संस्तरन् महीम् ॥ ५८ ॥
प्रानृत्यदिव सम्बाधे चापहस्तो धनंजयः।
अनुवाद (हिन्दी)
रथकी बैठकोंको सूनी करके धरतीपर मनुष्योंकी लाशोंका बिछौना करते हुए चापधारी धनंजय उस युद्धके मैदानमें नृत्य-सा कर रहे थे॥५८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वज्रकल्पैः शरैर्भूमिं कुर्वन्नुत्तरशोणिताम् ॥ ५९ ॥
प्राविशद् भारतीं सेनां संक्रुद्धो वै धनंजयः।
तं श्रुतायुस्तथाम्बष्ठो व्रजमानं न्यवारयत् ॥ ६० ॥
मूलम्
वज्रकल्पैः शरैर्भूमिं कुर्वन्नुत्तरशोणिताम् ॥ ५९ ॥
प्राविशद् भारतीं सेनां संक्रुद्धो वै धनंजयः।
तं श्रुतायुस्तथाम्बष्ठो व्रजमानं न्यवारयत् ॥ ६० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
क्रोधमें भरे हुए धनंजयने वज्रोपम बाणोंद्वारा पृथ्वीको रक्तसे आप्लावित करते हुए कौरवी सेनामें प्रवेश किया। उस समय सेनाके भीतर जाते हुए अर्जुनको श्रुतायु तथा अम्बष्ठने रोका॥५९-६०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्यार्जुनः शरैस्तीक्ष्णैः कङ्कपत्रपरिच्छदैः ।
न्यपातयद्धयान् शीघ्रं यतमानस्य मारिष ॥ ६१ ॥
मूलम्
तस्यार्जुनः शरैस्तीक्ष्णैः कङ्कपत्रपरिच्छदैः ।
न्यपातयद्धयान् शीघ्रं यतमानस्य मारिष ॥ ६१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मान्यवर! तब अर्जुनने कंककी पाँखोंवाले तीखे बाणोंद्वारा विजयके लिये प्रयत्न करनेवाले अम्बष्ठके घोड़ोंको शीघ्र ही मार गिराया॥६१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धनुश्चास्यापरैश्छित्त्वा शरैः पार्थो विचक्रमे।
अम्बष्ठस्तु गदां गृह्य कोपपर्याकुलेक्षणः ॥ ६२ ॥
आससाद रणे पार्थं केशवं च महारथम्।
मूलम्
धनुश्चास्यापरैश्छित्त्वा शरैः पार्थो विचक्रमे।
अम्बष्ठस्तु गदां गृह्य कोपपर्याकुलेक्षणः ॥ ६२ ॥
आससाद रणे पार्थं केशवं च महारथम्।
अनुवाद (हिन्दी)
फिर दूसरे बाणोंसे उसके धनुषको भी काटकर पार्थने विशेष बल-विक्रमका परिचय दिया। तब अम्बष्ठकी आँखें क्रोधसे व्याप्त हो गयीं। उसने गदा लेकर रणक्षेत्रमें महारथी श्रीकृष्ण और अर्जुनपर आक्रमण किया॥६२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सम्प्रहरन् वीरो गदामुद्यम्य भारत ॥ ६३ ॥
रथमावार्य गदया केशवं समताडयत्।
मूलम्
ततः सम्प्रहरन् वीरो गदामुद्यम्य भारत ॥ ६३ ॥
रथमावार्य गदया केशवं समताडयत्।
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! तदनन्तर वीर अम्बष्ठने प्रहार करनेके लिये उद्यत हो गदा उठाये आगे बढ़कर अर्जुनके रथको रोक दिया और भगवान् श्रीकृष्णपर गदासे आघात किया॥६३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गदया ताडितं दृष्ट्वा केशवं परवीरहा ॥ ६४ ॥
अर्जुनोऽथ भृशं क्रुद्धः सोऽम्बष्ठं प्रति भारत।
मूलम्
गदया ताडितं दृष्ट्वा केशवं परवीरहा ॥ ६४ ॥
अर्जुनोऽथ भृशं क्रुद्धः सोऽम्बष्ठं प्रति भारत।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! शत्रुवीरोंका संहार करनेवाले अर्जुन भगवान् श्रीकृष्णको गदासे आहत हुआ देख अम्बष्ठके प्रति अत्यन्त कुपित हो उठे॥६४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः शरैर्हेमपुङ्खैः सगदं रथिनां वरम् ॥ ६५ ॥
छादयामास समरे मेघः सूर्यमिवोदितम्।
मूलम्
ततः शरैर्हेमपुङ्खैः सगदं रथिनां वरम् ॥ ६५ ॥
छादयामास समरे मेघः सूर्यमिवोदितम्।
अनुवाद (हिन्दी)
फिर तो जैसे बादल उदित हुए सूर्यको ढक लेता है, उसी प्रकार अर्जुनने समरांगणमें सोनेके पंखवाले बाणोंद्वारा गदासहित रथियोंमें श्रेष्ठ अम्बष्ठको आच्छादित कर दिया॥६५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथापरैः शरैश्चापि गदां तस्य महात्मनः ॥ ६६ ॥
अचूर्णयत् तदा पार्थस्तदद्भुतमिवाभवत् ।
मूलम्
अथापरैः शरैश्चापि गदां तस्य महात्मनः ॥ ६६ ॥
अचूर्णयत् तदा पार्थस्तदद्भुतमिवाभवत् ।
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् दूसरे बहुत-से बाण मारकर अर्जुनने महामना अम्बष्ठकी उस गदाको उसी समय चूर-चूर कर दिया। वह अद्भुत-सी घटना हुई॥६६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ तां पतितां दृष्ट्वा गृह्यान्यां च महागदाम् ॥ ६७ ॥
अर्जुनं वासुदेवं च पुनः पुनरताडयत्।
मूलम्
अथ तां पतितां दृष्ट्वा गृह्यान्यां च महागदाम् ॥ ६७ ॥
अर्जुनं वासुदेवं च पुनः पुनरताडयत्।
अनुवाद (हिन्दी)
उस गदाको गिरी हुई देख अम्बष्ठने दूसरी विशाल गदा ले ली और श्रीकृष्ण तथा अर्जुनपर बारंबार प्रहार किया॥६७ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्यार्जुनः क्षुरप्राभ्यां सगदावुद्यतौ भुजौ ॥ ६८ ॥
चिच्छेदेन्द्रध्वजाकारौ शिरश्चान्येन पत्रिणा ।
मूलम्
तस्यार्जुनः क्षुरप्राभ्यां सगदावुद्यतौ भुजौ ॥ ६८ ॥
चिच्छेदेन्द्रध्वजाकारौ शिरश्चान्येन पत्रिणा ।
अनुवाद (हिन्दी)
तब अर्जुनने उसकी गदासहित, इन्द्रध्वजके समान उठी हुई दोनों भुजाओंको दो क्षुरप्रोंसे काट डाला और पंखयुक्त दूसरे बाणसे उसके मस्तकको भी काट गिराया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स पपात हतो राजन् वसुधामनुनादयन् ॥ ६९ ॥
इन्द्रध्वज इवोत्सृष्टो यन्त्रनिर्मुक्तबन्धनः ।
मूलम्
स पपात हतो राजन् वसुधामनुनादयन् ॥ ६९ ॥
इन्द्रध्वज इवोत्सृष्टो यन्त्रनिर्मुक्तबन्धनः ।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! यन्त्रद्वारा बन्धनमुक्त होकर गिरे हुए इन्द्रध्वजके समान वह मरकर पृथ्वीपर धमाकेकी आवाज करता हुआ गिर पड़ा॥६९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथानीकावगाढश्च वारणाश्वशतैर्वृतः ।
अदृश्यत तदा पार्थो घनैः सूर्य इवावृतः ॥ ७० ॥
मूलम्
रथानीकावगाढश्च वारणाश्वशतैर्वृतः ।
अदृश्यत तदा पार्थो घनैः सूर्य इवावृतः ॥ ७० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय रथियोंकी सेनामें घुसकर सैकड़ों हाथियों और घोड़ोंसे घिरे हुए कुन्तीकुमार अर्जुन बादलोंमें छिपे हुए सूर्यके समान दिखायी देते थे॥७०॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि अम्बष्ठवधे त्रिनवतितमोऽध्यायः ॥ ९३ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत जयद्रथवधपर्वमें अम्बष्ठवधविषयक तिरानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥९३॥