भागसूचना
नवतितमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
अर्जुनके बाणोंसे हताहत होकर सेनासहित दुःशासनका पलायन
मूलम् (वचनम्)
धृतराष्ट्र उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिन् प्रभग्ने सैन्याग्रे वध्यमाने किरीटिना।
के तु तत्र रणे वीराः प्रत्युदीयुर्धनंजयम् ॥ १ ॥
मूलम्
तस्मिन् प्रभग्ने सैन्याग्रे वध्यमाने किरीटिना।
के तु तत्र रणे वीराः प्रत्युदीयुर्धनंजयम् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृतराष्ट्रने पूछा— संजय! किरीटधारी अर्जुनकी मार खाकर उस अग्रगामी सैन्यदलके पलायन कर जानेपर वहाँ रणक्षेत्रमें किन वीरोंने अर्जुनपर धावा किया था?॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आहोस्विच्छकटव्यूहं प्रविष्टा मोघनिश्चयाः ।
द्रोणमाश्रित्य तिष्ठन्तं प्राकारमकुतोभयम् ॥ २ ॥
मूलम्
आहोस्विच्छकटव्यूहं प्रविष्टा मोघनिश्चयाः ।
द्रोणमाश्रित्य तिष्ठन्तं प्राकारमकुतोभयम् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अथवा ऐसा तो नहीं हुआ कि अपना मनोरथ सफल न होनेपर वे परकोटेकी भाँति खड़े हुए द्रोणाचार्यका आश्रय लेकर सर्वथा निर्भय शकटव्यूहमें घुस गये हों॥२॥
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथार्जुनेन सम्भग्ने तस्मिंस्तव बलेऽनघ।
हतवीरे हतोत्साहे पलायनकृतक्षणे ॥ ३ ॥
पाकशासनिनाभीक्ष्णं वध्यमाने शरोत्तमैः ।
न तत्र कश्चित् संग्रामे शशाकार्जुनमीक्षितुम् ॥ ४ ॥
मूलम्
तथार्जुनेन सम्भग्ने तस्मिंस्तव बलेऽनघ।
हतवीरे हतोत्साहे पलायनकृतक्षणे ॥ ३ ॥
पाकशासनिनाभीक्ष्णं वध्यमाने शरोत्तमैः ।
न तत्र कश्चित् संग्रामे शशाकार्जुनमीक्षितुम् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजयने कहा— निष्पाप नरेश! जब इन्द्रपुत्र अर्जुनने पूर्वोक्त प्रकारसे आपकी सेनाके वीरोंको मारकर उसे हतोत्साह एवं भागनेके लिये विवश कर दिया, सभी सैनिक पलायन करनेका ही अवसर देखने लगे तथा उनके ऊपर निरन्तर श्रेष्ठ बाणोंकी मार पड़ने लगी, उस समय वहाँ संग्राममें कोई भी अर्जुनकी ओर आँख उठाकर देख न सका॥३-४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तव सुतो राजन् दृष्ट्वा सैन्यं तथागतम्।
दुःशासनो भृशं क्रुद्धो युद्धायार्जुनमभ्यगात् ॥ ५ ॥
मूलम्
ततस्तव सुतो राजन् दृष्ट्वा सैन्यं तथागतम्।
दुःशासनो भृशं क्रुद्धो युद्धायार्जुनमभ्यगात् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! सेनाकी वह दुरवस्था देखकर आपके पुत्र दुःशासनको बड़ा क्रोध हुआ और वह युद्धके लिये अर्जुनके सामने जा पहुँचा॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स काञ्चनविचित्रेण कवचेन समावृतः।
जाम्बूनदशिरस्त्राणः शूरस्तीव्रपराक्रमः ॥ ६ ॥
मूलम्
स काञ्चनविचित्रेण कवचेन समावृतः।
जाम्बूनदशिरस्त्राणः शूरस्तीव्रपराक्रमः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसने अपने-आपको सुवर्णमय विचित्र कवचके द्वारा ढक लिया था, उसके मस्तकपर जाम्बूनद सुवर्णका बना हुआ शिरस्त्राण (टोप) शोभा पा रहा था। वह दुःसह पराक्रम करनेवाला शूरवीर था॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नागानीकेन महता ग्रसन्निव महीमिमाम्।
दुःशासनो महाराज सव्यसाचिनमावृणोत् ॥ ७ ॥
मूलम्
नागानीकेन महता ग्रसन्निव महीमिमाम्।
दुःशासनो महाराज सव्यसाचिनमावृणोत् ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! दुःशासनने अपनी विशाल गजसेनाद्वारा अर्जुनको इस प्रकार चारों ओरसे घेर लिया, मानो वह सारी पृथ्वीको ग्रस लेनेके लिये उद्यत हो॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ह्रादेन गजघण्टानां शङ्खानां निनदेन च।
ज्याक्षेपनिनदैश्चैव विरावेण च दन्तिनाम् ॥ ८ ॥
भूर्दिशश्चान्तरिक्षं च शब्देनासीत् समावृतम्।
स मुहूर्तं प्रतिभयो दारुणः समपद्यत ॥ ९ ॥
मूलम्
ह्रादेन गजघण्टानां शङ्खानां निनदेन च।
ज्याक्षेपनिनदैश्चैव विरावेण च दन्तिनाम् ॥ ८ ॥
भूर्दिशश्चान्तरिक्षं च शब्देनासीत् समावृतम्।
स मुहूर्तं प्रतिभयो दारुणः समपद्यत ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हाथियोंके घंटोंकी ध्वनि, शंखनाद, धनुषकी टंकार और गजराजोंके चिग्घाड़नेके शब्दसे पृथ्वी, दिशाएँ तथा आकाश—ये सभी गूँज उठे थे। उस समय दुःशासन दो घड़ीके लिये अत्यन्त भयंकर एवं दारुण हो उठा॥८-९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तान् दृष्ट्वा पततस्तूणमङ्कुशैरभिचोदितान् ।
व्यालम्बहस्तान् संरब्धान् सपक्षानिव पर्वतान् ॥ १० ॥
सिंहनादेन महता नरसिंहो धनंजयः।
गजानीकममित्राणामभीतो व्यधमच्छरैः ॥ ११ ॥
मूलम्
तान् दृष्ट्वा पततस्तूणमङ्कुशैरभिचोदितान् ।
व्यालम्बहस्तान् संरब्धान् सपक्षानिव पर्वतान् ॥ १० ॥
सिंहनादेन महता नरसिंहो धनंजयः।
गजानीकममित्राणामभीतो व्यधमच्छरैः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महावतोंद्वारा अंकुशोंसे हाँके जानेपर लम्बी सूँड़ उठाये और क्रोधमें भरे, पंखधारी पर्वतोंके समान उन हाथियोंको बड़े वेगसे अपने ऊपर आते देख मनुष्योंमें सिंहके समान पराक्रमी अर्जुनने बड़े जोरसे सिंहनाद करके शत्रुओंकी उस गजसेनाका बिना किसी भयके बाणोंद्वारा संहार कर डाला॥१०-११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महोर्मिणमिवोद्धूतं श्वसनेन महार्णवम् ।
किरीटी तद् गजानीकं प्राविशन्मकरो यथा ॥ १२ ॥
मूलम्
महोर्मिणमिवोद्धूतं श्वसनेन महार्णवम् ।
किरीटी तद् गजानीकं प्राविशन्मकरो यथा ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वायुद्वारा ऊपर उठाये हुए ऊँची-ऊँची तरंगोंसे युक्त महासागरके समान उस गजसैन्यमें किरीटधारी अर्जुनने मकरके समान प्रवेश किया॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
काष्ठातीत इवादित्यः प्रतपन् स युगक्षये।
ददृशे दिक्षु सर्वासु पार्थः परपुरंजयः ॥ १३ ॥
मूलम्
काष्ठातीत इवादित्यः प्रतपन् स युगक्षये।
ददृशे दिक्षु सर्वासु पार्थः परपुरंजयः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे प्रलयकालमें सूर्यदेव सीमाका उल्लंघन करके तपने लगते हैं, उसी प्रकार शत्रुओंकी राजधानीपर विजय पानेवाले अर्जुन सम्पूर्ण दिशाओंमें असीम पराक्रम करते हुए दिखायी देने लगे॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
खुरशब्देन चाश्वानां नेमिघोषेण तेन च।
तेन चोत्कृष्टशब्देन ज्यानिनादेन तेन च ॥ १४ ॥
नानावादित्रशब्देन पाञ्चजन्यस्वनेन च ।
देवदत्तस्य घोषेण गाण्डीवनिनदेन च ॥ १५ ॥
मन्दवेगा नरा नागा बभूवुस्ते विचेतसः।
शरैराशीविषस्पर्शैर्निर्भिन्नाः सव्यसाचिना ॥ १६ ॥
मूलम्
खुरशब्देन चाश्वानां नेमिघोषेण तेन च।
तेन चोत्कृष्टशब्देन ज्यानिनादेन तेन च ॥ १४ ॥
नानावादित्रशब्देन पाञ्चजन्यस्वनेन च ।
देवदत्तस्य घोषेण गाण्डीवनिनदेन च ॥ १५ ॥
मन्दवेगा नरा नागा बभूवुस्ते विचेतसः।
शरैराशीविषस्पर्शैर्निर्भिन्नाः सव्यसाचिना ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
घोड़ोंकी टापोंके शब्दसे, रथके पहियोंकी उस घरघराहटसे, उच्चस्वरसे किये जानेवाले गर्जन-तर्जनकी उस आवाजसे, धनुषकी प्रत्यंचाकी उस टंकारसे, भाँति-भाँतिके वाद्योंकी ध्वनिसे, पांचजन्यके हुंकारसे, देवदत्त नामक शंखके गम्भीर घोषसे तथा गाण्डीवकी टंकार-ध्वनिसे मनुष्यों और हाथियोंके वेग मन्द पड़ गये और वे सब-के-सब भयके मारे अचेत हो गये। सव्यसाची अर्जुनने विषधर सर्पके समान भयंकर बाणोंद्वारा उन्हें विदीर्ण कर दिया॥१४—१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते गजा विशिखैस्तीक्ष्णैर्युधि गाण्डीवचोदितैः।
अनेकशतसाहस्रैः सर्वाङ्गेषु समर्पिताः ॥ १७ ॥
मूलम्
ते गजा विशिखैस्तीक्ष्णैर्युधि गाण्डीवचोदितैः।
अनेकशतसाहस्रैः सर्वाङ्गेषु समर्पिताः ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
गाण्डीव धनुषद्वारा चलाये हुए लाखों तीखे बाण युद्ध-स्थलमें खड़े हुए उन हाथियोंके सम्पूर्ण अंगोंमें बिंध गये थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आरावं परमं कृत्वा वध्यमानाः किरीटिना।
निपेतुरनिशं भूमौ छिन्नपक्षा इवाद्रयः ॥ १८ ॥
मूलम्
आरावं परमं कृत्वा वध्यमानाः किरीटिना।
निपेतुरनिशं भूमौ छिन्नपक्षा इवाद्रयः ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनके बाणोंकी मार खाकर बड़े चोरसे चीत्कार करके वे हाथी पंख कटे हुए पर्वतोंके समान पृथ्वीपर निरन्तर गिर रहे थे॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अपरे दन्तवेष्टेषु कुम्भेषु च कटेषु च।
शरैः समर्पिता नागाः क्रौञ्चवद् व्यनदन् मुहुः ॥ १९ ॥
मूलम्
अपरे दन्तवेष्टेषु कुम्भेषु च कटेषु च।
शरैः समर्पिता नागाः क्रौञ्चवद् व्यनदन् मुहुः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुछ दूसरे गजराज नीचेके ओठोंमें, कुम्भस्थलोंमें और कनपटियोंमें बाणोंसे छिद जानेके कारण कुरर पक्षीके समान बारंबार आर्तनाद कर रहे थे॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गजस्कन्धगतानां च पुरुषाणां किरीटिना।
छिद्यन्ते चोत्तमाङ्गानि भल्लैः संनतपर्वभिः ॥ २० ॥
मूलम्
गजस्कन्धगतानां च पुरुषाणां किरीटिना।
छिद्यन्ते चोत्तमाङ्गानि भल्लैः संनतपर्वभिः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
किरीटधारी अर्जुन झुकी हुई गाँठवाले भल्ल नामक बाणोंद्वारा हाथीकी पीठपर बैठे हुए पुरुषोंके मस्तक भी धड़ाधड़ काटते जा रहे थे॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सकुण्डलानां पततां शिरसां धरणीतले।
पद्मानामिव संघातैः पार्थश्चक्रे निवेदनम् ॥ २१ ॥
मूलम्
सकुण्डलानां पततां शिरसां धरणीतले।
पद्मानामिव संघातैः पार्थश्चक्रे निवेदनम् ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पृथ्वीपर गिरते हुए कुण्डलयुक्त मस्तक कमलपुष्पोंके ढेरके समान जान पड़ते थे, मानो अर्जुनने उन मस्तकोंके रूपमें पृथ्वीको पद्मके समूह भेंट किये हों॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यन्त्रबद्धा विकवचा व्रणार्ता रुधिरोक्षिताः।
भ्रमत्सु युधि नागेषु मनुष्या विललम्बिरे ॥ २२ ॥
मूलम्
यन्त्रबद्धा विकवचा व्रणार्ता रुधिरोक्षिताः।
भ्रमत्सु युधि नागेषु मनुष्या विललम्बिरे ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युद्धके मैदानमें चक्कर काटते हुए हाथियोंपर बहुत-से मनुष्य इस प्रकार लटक रहे थे, मानो उन्हें किसी यन्त्रसे वहाँ जड़ दिया गया हो। उनके कवच नष्ट हो गये थे। वे घावसे पीड़ित और खूनसे लथपथ हो रहे थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केचिदेकेन बाणेन सुयुक्तेन सुपत्रिणा।
द्वौ त्रयश्च विनिर्भिन्ना निपेतुर्धरणीतले ॥ २३ ॥
मूलम्
केचिदेकेन बाणेन सुयुक्तेन सुपत्रिणा।
द्वौ त्रयश्च विनिर्भिन्ना निपेतुर्धरणीतले ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुछ हाथी तो अच्छी तरहसे चलाये हुए सुन्दर पंखयुक्त एक ही बाणद्वारा दो-दो तीन-तीनकी संख्यामें एक साथ विदीर्ण होकर पृथ्वीपर गिर पड़ते थे॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अतिविद्धाश्च नाराचैर्वमन्तो रुधिरं मुखैः।
सारोहा न्यपतन् भूमौ द्रुमवन्त इवाचलाः ॥ २४ ॥
मूलम्
अतिविद्धाश्च नाराचैर्वमन्तो रुधिरं मुखैः।
सारोहा न्यपतन् भूमौ द्रुमवन्त इवाचलाः ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सवारोंसहित कितने ही हाथी नाराचोंसे अत्यन्त घायल होकर मुँहसे रक्त वमन करते हुए वृक्षयुक्त पर्वतोंके समान धराशायी हो रहे थे॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मौर्वीं ध्वजं धनुश्चैव युगमीषां तथैव च।
रथिनां कुट्टयामास भल्लैः संनतपर्वभिः ॥ २५ ॥
मूलम्
मौर्वीं ध्वजं धनुश्चैव युगमीषां तथैव च।
रथिनां कुट्टयामास भल्लैः संनतपर्वभिः ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर अर्जुनने झुकी हुई गाँठवाले भल्लोंद्वारा रथियोंकी प्रत्यंचा, ध्वजा, धनुष, जुआ तथा ईषादण्डके टुकड़े-टुकड़े कर डाले॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न संदधन् न चाकर्षन् न विमुञ्चन् न चोद्वहन्।
मण्डलेनैव धनुषा नृत्यन् पार्थः स्म दृश्यते ॥ २६ ॥
मूलम्
न संदधन् न चाकर्षन् न विमुञ्चन् न चोद्वहन्।
मण्डलेनैव धनुषा नृत्यन् पार्थः स्म दृश्यते ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय अर्जुन मण्डलाकार धनुषके साथ सब ओर नृत्य करते हुए-से दृष्टिगोचर हो रहे थे। वे कब धनुषपर बाणोंको रखते, कब प्रत्यंचा खींचते, कब बाण छोड़ते और कब उन्हें तरकशसे निकालते हैं, यह कोई नहीं देख पाता था॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अतिविद्धाश्च नाराचैर्वमन्तो रुधिरं मुखैः।
मुहूर्तान्न्यपतन्नन्ये वारणा वसुधातले ॥ २७ ॥
मूलम्
अतिविद्धाश्च नाराचैर्वमन्तो रुधिरं मुखैः।
मुहूर्तान्न्यपतन्नन्ये वारणा वसुधातले ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दो ही घड़ीमें और भी बहुत-से हाथी नाराचोंकी मारसे अत्यन्त क्षत-विक्षत होकर मुँहसे रक्त वमन करते हुए धरतीपर लोटने लगे॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उत्थितान्यगणेयानि कबन्धानि समन्ततः ।
अदृश्यन्त महाराज तस्मिन् परमसंकुले ॥ २८ ॥
मूलम्
उत्थितान्यगणेयानि कबन्धानि समन्ततः ।
अदृश्यन्त महाराज तस्मिन् परमसंकुले ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! उस अत्यन्त भयानक युद्धमें चारों ओर असंख्य कबन्ध (धड़) उठे दिखायी देते थे॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सचापाः साङ्गुलित्राणाः सखङ्गाः साङ्गदा रणे।
अदृश्यन्त भूजाश्छिन्ना हेमाभरणभूषिताः ॥ २९ ॥
मूलम्
सचापाः साङ्गुलित्राणाः सखङ्गाः साङ्गदा रणे।
अदृश्यन्त भूजाश्छिन्ना हेमाभरणभूषिताः ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वीरोंकी कटी हुई स्वर्णमय आभूषणोंसे विभूषित भुजाएँ धनुष, दस्ताने, तलवार और भुजबन्दोंसहित कटकर रणभूमिमें पड़ी दिखायी देती थीं॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सूपस्करैरधिष्ठानैरीषादण्डकबन्धुरैः ।
चक्रैर्विमथितैरक्षैर्भग्नैश्च बहुधा युगे ॥ ३० ॥
चर्मचापधरैश्चैव व्यवकीर्णैस्ततस्ततः ।
स्रग्भिराभरणैर्वस्त्रैः पतितैश्च महाध्वजैः ॥ ३१ ॥
निहतैर्वारणैरश्वैः क्षत्रियैश्च निपातितैः ।
अदृश्यत मही तत्र दारुणप्रतिदर्शना ॥ ३२ ॥
मूलम्
सूपस्करैरधिष्ठानैरीषादण्डकबन्धुरैः ।
चक्रैर्विमथितैरक्षैर्भग्नैश्च बहुधा युगे ॥ ३० ॥
चर्मचापधरैश्चैव व्यवकीर्णैस्ततस्ततः ।
स्रग्भिराभरणैर्वस्त्रैः पतितैश्च महाध्वजैः ॥ ३१ ॥
निहतैर्वारणैरश्वैः क्षत्रियैश्च निपातितैः ।
अदृश्यत मही तत्र दारुणप्रतिदर्शना ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सुन्दर उपकरणों, बैठकों, ईषादण्ड, बन्धनरज्जुओं और पहियोंसहित रथ चूर-चूर हो रहे थे। उनके धुरे टूट गये थे और जूए टुकड़े-टुकड़े होकर पड़े थे। बहुत-सी ढालों और धनुषोंको लिये-दिये वे टूटे हुए रथ इधर-उधर बिखरे पड़े थे। बहुत-से हार, आभूषण, वस्त्र और बड़े-बड़े ध्वज धरतीपर गिरे हुए थे। अनेक हाथी और घोड़े मारे गये थे तथा बहुत-से क्षत्रिय भी धराशायी कर दिये गये थे। इन सबके कारण वहाँकी भूमि देखनेमें अत्यन्त भयंकर जान पड़ती थी॥३०—३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं दुःशासनबलं वध्यमानं किरीटिना।
सम्प्राद्रवन्महाराज व्यथितं सहनायकम् ॥ ३३ ॥
मूलम्
एवं दुःशासनबलं वध्यमानं किरीटिना।
सम्प्राद्रवन्महाराज व्यथितं सहनायकम् ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! इस प्रकार किरीटधारी अर्जुनकी मार खाकर अत्यन्त व्यथित हुई दुःशासनकी सेना अपने नायकसहित भाग चली॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो दुःशासनस्त्रस्तः सहानीकः शरार्दितः।
द्रोणं त्रातारमाकाङ्क्षन् शकटव्यूहमभ्यगात् ॥ ३४ ॥
मूलम्
ततो दुःशासनस्त्रस्तः सहानीकः शरार्दितः।
द्रोणं त्रातारमाकाङ्क्षन् शकटव्यूहमभ्यगात् ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब अर्जुनके बाणोंसे अत्यन्त पीड़ित और भयभीत हो सेनाओंसहित दुःशासन अपने रक्षक द्रोणाचार्यके आश्रयमें जानेकी इच्छा रखकर शकटव्यूहके भीतर घुस गया॥३४॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि जयद्रथवधपर्वणि दुःशासनसैन्यपराभवे नवतितमोऽध्यायः ॥ ९० ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत जयद्रथवधपर्वमें दुःशासनकी सेनाका पराभवविषयक नब्बेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥९०॥