भागसूचना
षट्चत्वारिंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
अभिमन्युके द्वारा लक्ष्मण तथा क्राथपुत्रका वध और सेनासहित छः महारथियोंका पलायन
मूलम् (वचनम्)
धृतराष्ट्र उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा वदसि मे सूत एकस्य बहुभिः सह।
संग्रामं तुमुलं घोरं जयं चैव महात्मनः ॥ १ ॥
अश्रद्धेयमिवाश्चर्यं सौभद्रस्याथ विक्रमम् ।
किं तु नात्यद्भुतं तेषां येषां धर्मो व्यपाश्रयः ॥ २ ॥
मूलम्
यथा वदसि मे सूत एकस्य बहुभिः सह।
संग्रामं तुमुलं घोरं जयं चैव महात्मनः ॥ १ ॥
अश्रद्धेयमिवाश्चर्यं सौभद्रस्याथ विक्रमम् ।
किं तु नात्यद्भुतं तेषां येषां धर्मो व्यपाश्रयः ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृतराष्ट्र बोले— सूत! जैसा कि तुम बता रहे हो, अकेले महामना अभिमन्युका बहुत-से योद्धाओंके साथ अत्यन्त भयंकर संग्राम हुआ और उसमें विजय भी उसीकी हुई—सुभद्राकुमारका यह पराक्रम आश्चर्यजनक है। उसपर सहसा विश्वास नहीं होता; परंतु जिन लोगोंका धर्म ही आश्रय है, उनके लिये यह कोई अत्यन्त अद्भुत बात नहीं है॥१-२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्योधने च विमुखे राजपुत्रशते हते।
सौभद्रे प्रतिपत्तिं कां प्रत्यपद्यन्त मामकाः ॥ ३ ॥
मूलम्
दुर्योधने च विमुखे राजपुत्रशते हते।
सौभद्रे प्रतिपत्तिं कां प्रत्यपद्यन्त मामकाः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय! जब दुर्योधन भाग गया और सैकड़ों राजकुमार मारे गये, उस समय मेरे पुत्रोंने सुभद्राकुमारका सामना करनेके लिये क्या उपाय किया?॥३॥
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
संशुष्कास्याश्चलन्नेत्राः प्रस्विन्ना लोमहर्षणाः ।
पलायनकृतोत्साहा निरुत्साहा द्विषज्जये ॥ ४ ॥
मूलम्
संशुष्कास्याश्चलन्नेत्राः प्रस्विन्ना लोमहर्षणाः ।
पलायनकृतोत्साहा निरुत्साहा द्विषज्जये ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजयने कहा— महाराज! आपके सभी सैनिकोंके मुँह सूख गये थे, आँखें भयसे चंचल हो रही थीं, सारे अंग पसीने-पसीने हो रहे थे और रोंगटे खड़े हो गये थे। वे भागनेमें ही उत्साह दिखा रहे थे। शत्रुओंको जीतनेका उत्साह उनके मनमें तनिक भी नहीं था॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हतान् भ्रातॄन् पितॄन् पुत्रान् सुहृत्सम्बन्धिबान्धवान्।
उत्सृज्योत्सृज्य संजग्मुस्त्वरयन्तो हयद्विपान् ॥ ५ ॥
मूलम्
हतान् भ्रातॄन् पितॄन् पुत्रान् सुहृत्सम्बन्धिबान्धवान्।
उत्सृज्योत्सृज्य संजग्मुस्त्वरयन्तो हयद्विपान् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे युद्धमें मारे गये भाइयों, पितरों, पुत्रों, सुहृदों, सम्बन्धियों तथा बन्धु-बान्धवोंको छोड़-छोड़कर अपने घोड़े और हाथियोंको उतावलीके साथ हाँकते हुए भाग रहे थे॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तान् प्रभग्नांस्तथा दृष्ट्वा द्रोणो द्रौणिर्बृहद्बलः।
कृपो दुर्योधनः कर्णः कृतवर्माथ सौबलः ॥ ६ ॥
अभ्यधावन् सुसंक्रुद्धाः सौभद्रमपराजितम् ।
ते तु पौत्रेण ते राजन् प्रायशो विमुखीकृताः ॥ ७ ॥
मूलम्
तान् प्रभग्नांस्तथा दृष्ट्वा द्रोणो द्रौणिर्बृहद्बलः।
कृपो दुर्योधनः कर्णः कृतवर्माथ सौबलः ॥ ६ ॥
अभ्यधावन् सुसंक्रुद्धाः सौभद्रमपराजितम् ।
ते तु पौत्रेण ते राजन् प्रायशो विमुखीकृताः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! उन सबको भागते देख द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, बृहद्बल, कृपाचार्य, दुर्योधन, कर्ण, कृतवर्मा और शकुनि—ये सब अत्यन्त क्रोधमें भरकर अपराजित वीर अभिमन्युपर टूट पड़े; परंतु आपके उस पौत्र अभिमन्युने उन सबको प्रायः युद्धसे भगा दिया॥६-७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एकस्तु सुखसंवृद्धो बाल्याद् दर्पाच्च निर्भयः।
इष्वस्त्रविन्महातेजा लक्ष्मणोऽऽर्जुनिमभ्ययात् ॥ ८ ॥
मूलम्
एकस्तु सुखसंवृद्धो बाल्याद् दर्पाच्च निर्भयः।
इष्वस्त्रविन्महातेजा लक्ष्मणोऽऽर्जुनिमभ्ययात् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय सुखमें पला हुआ, धनुर्वेदका ज्ञाता, एकमात्र महातेजस्वी लक्ष्मण अपने बालस्वभाव तथा अभिमानके कारण निर्भय हो अभिमन्युके सामने आ गया॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमन्वगेवास्य पिता पुत्रगृद्धी न्यवर्तत।
अनुदुर्योधनं चान्ये न्यवर्तन्त महारथाः ॥ ९ ॥
मूलम्
तमन्वगेवास्य पिता पुत्रगृद्धी न्यवर्तत।
अनुदुर्योधनं चान्ये न्यवर्तन्त महारथाः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पुत्रकी रक्षा चाहनेवाला पिता दुर्योधन भी उसीके साथ-साथ लौट पड़ा। फिर दुर्योधनके पीछे दूसरे महारथी लौट आये॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं तेऽभिषिषिचुर्बाणैर्मेघा गिरिमिवाम्बुभिः ।
स तु तान् प्रममाथैको विष्वग्वातो यथाम्बुदान् ॥ १० ॥
मूलम्
तं तेऽभिषिषिचुर्बाणैर्मेघा गिरिमिवाम्बुभिः ।
स तु तान् प्रममाथैको विष्वग्वातो यथाम्बुदान् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे बादल किसी पर्वतको अपने जलकी धाराओंसे सींचते हैं, उसी प्रकार वे महारथी अभिमन्युपर बाणोंकी वर्षा करने लगे। जैसे चारों ओरसे बहनेवाली हवा (चौवाई) बादलोंको उड़ा देती है, उसी प्रकार अकेले अभिमन्युने उन सबको मथ डाला॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पौत्रं तव च दुर्धर्षं लक्ष्मणं प्रियदर्शनम्।
पितुः समीपे तिष्ठन्तं शूरमुद्यतकार्मुकम् ॥ ११ ॥
अत्यन्तसुखसंवृद्धं धनेश्वरसुतोपमम् ।
आससाद रणे कार्ष्णिर्मत्तो मत्तमिव द्विपम् ॥ १२ ॥
मूलम्
पौत्रं तव च दुर्धर्षं लक्ष्मणं प्रियदर्शनम्।
पितुः समीपे तिष्ठन्तं शूरमुद्यतकार्मुकम् ॥ ११ ॥
अत्यन्तसुखसंवृद्धं धनेश्वरसुतोपमम् ।
आससाद रणे कार्ष्णिर्मत्तो मत्तमिव द्विपम् ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! आपका प्रियदर्शन पौत्र लक्ष्मण बड़ा दुर्धर्ष वीर था। वह धनुष उठाये अपने पिताके ही पास खड़ा था। अत्यन्त सुखमें पला हुआ वह वीर कुबेरके पुत्रके समान जान पड़ता था। जैसे मतवाला हाथी किसी मदोन्मत्त गजराजसे भिड़ जाय, उसी प्रकार अर्जुनकुमारने लक्ष्मणपर आक्रमण किया॥११-१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
लक्ष्मणेन तु संगम्य सौभद्रः परवीरहा।
शरैः सुनिशितैस्तीक्ष्णैर्बाह्वोरुरसि चार्पितः ॥ १३ ॥
मूलम्
लक्ष्मणेन तु संगम्य सौभद्रः परवीरहा।
शरैः सुनिशितैस्तीक्ष्णैर्बाह्वोरुरसि चार्पितः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
लक्ष्मणसे भिड़नेपर उसके द्वारा शत्रुवीरोंका संहार करनेवाले सुभद्राकुमारकी भुजाओं और छातीमें अत्यन्त तीखे बाणोंद्वारा प्रहार किया गया॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संक्रुद्धो वै महाराज दण्डाहत इवोरगः।
पौत्रस्तव महाराज तव पौत्रमभाषत ॥ १४ ॥
मूलम्
संक्रुद्धो वै महाराज दण्डाहत इवोरगः।
पौत्रस्तव महाराज तव पौत्रमभाषत ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! उस प्रहारसे लाठीकी चोट खाये हुए सर्पके समान अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए आपके पौत्र अभिमन्युने आपके दूसरे पौत्र लक्ष्मणसे कहा—॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुदृष्टः क्रियतां लोको ह्यमुं लोकं गमिष्यसि।
पश्यतां बान्धवानां त्वां नयामि यमसादनम् ॥ १५ ॥
मूलम्
सुदृष्टः क्रियतां लोको ह्यमुं लोकं गमिष्यसि।
पश्यतां बान्धवानां त्वां नयामि यमसादनम् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘लक्ष्मण! इस संसारको अच्छी तरह देख लो। अब शीघ्र ही परलोककी यात्रा करोगे। इन बान्धव-जनोंके देखते-देखते मैं तुम्हें यमलोक पहुँचाये देता हूँ’॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्त्वा ततो भल्लं सौभद्रः परवीरहा।
उद्बबर्ह महाबाहुर्निर्मुक्तोरगसंनिभम् ॥ १६ ॥
मूलम्
एवमुक्त्वा ततो भल्लं सौभद्रः परवीरहा।
उद्बबर्ह महाबाहुर्निर्मुक्तोरगसंनिभम् ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ऐसा कहकर शत्रुवीरोंका संहार करनेवाले महाबाहु सुभद्राकुमारने केंचुलसे निकले हुए सर्पके समान एक भल्लको तरकससे निकाला॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तस्य भुजनिर्मुक्तो लक्ष्मणस्य सुदर्शनम्।
सुनसं सुभ्रु केशान्तं शिरोऽहार्षीत् सकुण्डलम् ॥ १७ ॥
मूलम्
स तस्य भुजनिर्मुक्तो लक्ष्मणस्य सुदर्शनम्।
सुनसं सुभ्रु केशान्तं शिरोऽहार्षीत् सकुण्डलम् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अभिमन्युके हाथोंसे छूटे हुए उस भल्लने लक्ष्मणके देखनेमें सुन्दर, सुघड़ नासिका, मनोहर भौंह, सुन्दर केशान्तभाग और रुचिर कुण्डलोंसे युक्त मस्तकको धड़से अलग कर दिया॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
लक्ष्मणं निहतं दृष्ट्वा हाहेत्युच्चुक्रुशुर्जनाः।
ततो दुर्योधनः क्रुद्धः प्रिये पुत्रे निपातिते ॥ १८ ॥
घ्नतैनमिति चुक्रोश क्षत्रियान् क्षत्रियर्षभः।
मूलम्
लक्ष्मणं निहतं दृष्ट्वा हाहेत्युच्चुक्रुशुर्जनाः।
ततो दुर्योधनः क्रुद्धः प्रिये पुत्रे निपातिते ॥ १८ ॥
घ्नतैनमिति चुक्रोश क्षत्रियान् क्षत्रियर्षभः।
अनुवाद (हिन्दी)
लक्ष्मणको मारा गया देख सब लोग जोर-जोरसे हाहाकार करने लगे। अपने प्यारे पुत्रके मारे जानेपर क्षत्रियशिरोमणि दुर्योधन कुपित हो उठा और समस्त क्षत्रियोंसे बोला—‘अहो! इस अभिमन्युको मार डालो’॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो द्रोणः कृपः कर्णो द्रोणपुत्रो बृहद्बलः ॥ १९ ॥
कृतवर्मा च हार्दिक्यः षड् रथाः पर्यवारयन्।
मूलम्
ततो द्रोणः कृपः कर्णो द्रोणपुत्रो बृहद्बलः ॥ १९ ॥
कृतवर्मा च हार्दिक्यः षड् रथाः पर्यवारयन्।
अनुवाद (हिन्दी)
तब द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, बृहद्बल और हृदिकपुत्र कृतवर्मा—इन छः महारथियोंने अभिमन्युको घेर लिया॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तांस्तु विद्ध्वा शितैर्बाणैर्विमुखीकृत्य चार्जुनिः ॥ २० ॥
वेगेनाभ्यपतत् क्रुद्धः सैन्धवस्य महद् बलम्।
मूलम्
तांस्तु विद्ध्वा शितैर्बाणैर्विमुखीकृत्य चार्जुनिः ॥ २० ॥
वेगेनाभ्यपतत् क्रुद्धः सैन्धवस्य महद् बलम्।
अनुवाद (हिन्दी)
यह देख अर्जुनकुमारने अपने पैने बाणोंद्वारा उन सबको घायल करके भगा दिया और क्रोधमें भरकर बड़े वेगसे जयद्रथकी विशाल सेनापर धावा किया॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आवव्रुस्तस्य पन्थानं गजानीकेन दंशिताः ॥ २१ ॥
कलिङ्गाश्च निषादाश्च क्राथपुत्रश्च वीर्यवान्।
मूलम्
आवव्रुस्तस्य पन्थानं गजानीकेन दंशिताः ॥ २१ ॥
कलिङ्गाश्च निषादाश्च क्राथपुत्रश्च वीर्यवान्।
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय कलिंगदेशीय सैनिक, निषादगण तथा पराक्रमी क्राथपुत्र—इन सबने कवच धारण करके गजसेनाके द्वारा अभिमन्युका रास्ता रोक दिया॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत् प्रसक्तमिवात्यर्थं युद्धमासीद् विशाम्पते ॥ २२ ॥
ततस्तत् कुञ्जरानीकं व्यधमद् धृष्टमार्जुनिः।
यथा वायुर्नित्यगतिर्जलदान् शतशोऽम्बरे ॥ २३ ॥
मूलम्
तत् प्रसक्तमिवात्यर्थं युद्धमासीद् विशाम्पते ॥ २२ ॥
ततस्तत् कुञ्जरानीकं व्यधमद् धृष्टमार्जुनिः।
यथा वायुर्नित्यगतिर्जलदान् शतशोऽम्बरे ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! तब वहाँ अत्यन्त निकटसे घोर युद्ध आरम्भ हो गया। अर्जुनकुमारने पैने बाणोंद्वारा उस धृष्ट गजसेनाको उसी प्रकार नष्ट कर दिया, जैसे सदागति वायु आकाशमें सैकड़ों मेघखण्डोंको छिन्न-भिन्न कर देती है॥२२-२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः क्राथः शरव्रातैरार्जुनिं समवाकिरत्।
अथेतरे संनिवृत्ताः पुनर्द्रोणमुखा रथाः ॥ २४ ॥
मूलम्
ततः क्राथः शरव्रातैरार्जुनिं समवाकिरत्।
अथेतरे संनिवृत्ताः पुनर्द्रोणमुखा रथाः ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर क्राथने अर्जुनकुमार अभिमन्युपर बाणोंकी वर्षा आरम्भ कर दी। इतनेहीमें द्रोण आदि दूसरे महारथी भी पुनः लौट आये॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
परमास्त्राणि धुन्वानाः सौभद्रमभिदुद्रुवुः ।
तान् निवार्यार्जुनिर्बाणैः क्राथपुत्रमथार्दयत् ॥ २५ ॥
मूलम्
परमास्त्राणि धुन्वानाः सौभद्रमभिदुद्रुवुः ।
तान् निवार्यार्जुनिर्बाणैः क्राथपुत्रमथार्दयत् ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन सबने अपने उत्तम अस्त्रोंका प्रयोग करते हुए सुभद्राकुमारपर आक्रमण किया। अभिमन्युने अपने बाणोंद्वारा उन सबका निवारण करके क्राथपुत्रको अधिक पीड़ा दी॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरौघेणाप्रमेयेण त्वरमाणो जिघांसया ।
सधनुर्बाणकेयूरो बाहू समुकुटं शिरः ॥ २६ ॥
सच्छत्रध्वजयन्तारं रथं चाश्वान् न्यपातयत्।
मूलम्
शरौघेणाप्रमेयेण त्वरमाणो जिघांसया ।
सधनुर्बाणकेयूरो बाहू समुकुटं शिरः ॥ २६ ॥
सच्छत्रध्वजयन्तारं रथं चाश्वान् न्यपातयत्।
अनुवाद (हिन्दी)
फिर उसने असंख्य बाणसमूहोंद्वारा क्राथपुत्रको मार डालनेकी इच्छासे जल्दी करते हुए उसकी धनुष-बाणों और केयूरसहित दोनों भुजाओं, मुकुटमण्डित मस्तक, छत्र, ध्वज और सारथिसहित रथ तथा घोड़ोंको भी मार गिराया॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कुलशीलश्रुतिबलैः कीर्त्या चास्त्रबलेन च।
युक्ते तस्मिन् हते वीराः प्रायशो विमुखाऽभवन् ॥ २७ ॥
मूलम्
कुलशीलश्रुतिबलैः कीर्त्या चास्त्रबलेन च।
युक्ते तस्मिन् हते वीराः प्रायशो विमुखाऽभवन् ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुल, शील, शास्त्रज्ञान, बल, कीर्ति तथा अस्त्र-बलसे सम्पन्न उस वीर क्राथपुत्रके मारे जानेपर आपकी सेनाके प्रायः सभी शूरवीर सैनिक युद्ध छोड़कर भाग गये॥२७॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि लक्ष्मणवधे षट्चत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ४६ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत अभिमन्युवधपर्वमें लक्ष्मणवधविषयक छियालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥४६॥