भागसूचना
एकचत्वारिंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
अभिमन्युके द्वारा कर्णके भाईका वध तथा कौरव-सेनाका संहार और पलायन
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽतिगर्जन् धनुष्पाणिर्ज्यां विकर्षन् पुनः पुनः।
तयोर्महात्मनोस्तूर्णं रथान्तरमवापतत् ॥ १ ॥
मूलम्
सोऽतिगर्जन् धनुष्पाणिर्ज्यां विकर्षन् पुनः पुनः।
तयोर्महात्मनोस्तूर्णं रथान्तरमवापतत् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं—राजन्! कर्णका वह भाई हाथमें धनुष ले अत्यन्त गरजता और प्रत्यंचाको बार-बार खींचता हुआ तुरंत ही उन दोनों महामनस्वी वीरोंके रथोंके बीचमें आ पहुँचा॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽविध्यद् दशभिर्बाणैरभिमन्युं दुरासदम् ।
सच्छत्रध्वजयन्तारं साश्वमाशु स्मयन्निव ॥ २ ॥
मूलम्
सोऽविध्यद् दशभिर्बाणैरभिमन्युं दुरासदम् ।
सच्छत्रध्वजयन्तारं साश्वमाशु स्मयन्निव ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसने मुसकराते हुए-से दस बाण मारकर दुर्जय वीर अभिमन्युको छत्र, ध्वजा, सारथि और घोड़ोंसहित शीघ्र ही घायल कर दिया॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पितृपैतामहं कर्म कुर्वाणमतिमानुषम् ।
दृष्ट्वार्दितं शरैः कार्ष्णिं त्वदीया हृषिताऽभवन् ॥ ३ ॥
मूलम्
पितृपैतामहं कर्म कुर्वाणमतिमानुषम् ।
दृष्ट्वार्दितं शरैः कार्ष्णिं त्वदीया हृषिताऽभवन् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अपने पिता-पितामहोंके अनुसार मानवीय शक्तिसे बढ़कर पराक्रम प्रकट करनेवाले अर्जुनकुमार अभिमन्युको उस समय बाणोंसे पीड़ित देखकर आपके सैनिक हर्षसे खिल उठे॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्याभिमन्युरायम्य स्मयन्नेकेन पत्रिणा ।
शिरः प्रच्यावयामास तद्रथात् प्रापतद् भुवि ॥ ४ ॥
कर्णिकारमिवाधूतं वातेनापतितं नगात् ।
मूलम्
तस्याभिमन्युरायम्य स्मयन्नेकेन पत्रिणा ।
शिरः प्रच्यावयामास तद्रथात् प्रापतद् भुवि ॥ ४ ॥
कर्णिकारमिवाधूतं वातेनापतितं नगात् ।
अनुवाद (हिन्दी)
तब अभिमन्युने मुसकराते हुए-से अपने धनुषको खींचकर एक ही बाणसे कर्णके भाईका मस्तक धड़से अलग कर दिया। उसका वह सिर रथसे नीचे पृथ्वीपर गिर पड़ा, मानो वायुके वेगसे हिलकर उखड़ा हुआ कनेरका वृक्ष पर्वतशिखरसे नीचे गिर गया हो॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भ्रातरं निहतं दृष्ट्वा राजन् कर्णो व्यथां ययौ ॥ ५ ॥
विमुखीकृत्य कर्णं तु सौभद्रः कङ्कपत्रिभिः।
अन्यानपि महेष्वासांस्तूर्णमेवाभिदुद्रुवे ॥ ६ ॥
मूलम्
भ्रातरं निहतं दृष्ट्वा राजन् कर्णो व्यथां ययौ ॥ ५ ॥
विमुखीकृत्य कर्णं तु सौभद्रः कङ्कपत्रिभिः।
अन्यानपि महेष्वासांस्तूर्णमेवाभिदुद्रुवे ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! अपने भाईको मारा गया देख कर्णको बड़ी व्यथा हुई। इधर सुभद्राकुमार अभिमन्युने गीधकी पाँखवाले बाणोंद्वारा कर्णको युद्धसे भगाकर दूसरे-दूसरे महाधनुर्धर वीरोंपर भी तुरंत ही धावा किया॥५-६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तद् विततं सैन्यं हस्त्यश्वरथपत्तिमत्।
क्रुद्धोऽभिमन्युरभिनत् तिग्मतेजा महारथः ॥ ७ ॥
मूलम्
ततस्तद् विततं सैन्यं हस्त्यश्वरथपत्तिमत्।
क्रुद्धोऽभिमन्युरभिनत् तिग्मतेजा महारथः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय क्रोधमें भरे हुए प्रचण्ड तेजस्वी महारथी अभिमन्युने हाथी, घोड़े, रथ और पैदलोंसे युक्त उस विशाल चतुरंगिणी सेनाको विदीर्ण कर डाला॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कर्णस्तु बहुभिर्बाणैरर्द्यमानोऽभिमन्युना ।
अपायाज्जवनैरश्वैस्ततोऽनीकमभज्यत ॥ ८ ॥
मूलम्
कर्णस्तु बहुभिर्बाणैरर्द्यमानोऽभिमन्युना ।
अपायाज्जवनैरश्वैस्ततोऽनीकमभज्यत ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अभिमन्युके चलाये हुए बहुसंख्यक बाणोंसे पीड़ित हुआ कर्ण अपने वेगशाली घोड़ोंकी सहायतासे शीघ्र ही रणभूमिसे भाग गया। इससे सारी सेनामें भगदड़ मच गयी॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शलभैरिव चाकाशे धाराभिरिव चावृते।
अभिमन्योः शरै राजन् न प्राज्ञायत किंचन ॥ ९ ॥
मूलम्
शलभैरिव चाकाशे धाराभिरिव चावृते।
अभिमन्योः शरै राजन् न प्राज्ञायत किंचन ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! उस दिन अभिमन्युके बाणोंसे सारा आकाशमण्डल इस प्रकार आच्छादित हो गया था, मानो टिड्डीदलोंसे अथवा वर्षाकी धाराओंसे व्याप्त हो गया हो। उस आकाशमें कुछ भी सूझता नहीं था॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तावकानां तु योधानां वध्यतां निशितैः शरैः।
अन्यत्र सैन्धवाद् राजन् न स्म कश्चिदतिष्ठत ॥ १० ॥
मूलम्
तावकानां तु योधानां वध्यतां निशितैः शरैः।
अन्यत्र सैन्धवाद् राजन् न स्म कश्चिदतिष्ठत ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! पैने बाणोंद्वारा मारे जाते हुए आपके योद्धाओंमेंसे सिंधुराज जयद्रथको छोड़कर दूसरा कोई वहाँ ठहर न सका॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सौभद्रस्तु ततः शङ्खं प्रध्माप्य पुरुषर्षभः।
शीघ्रमभ्यपतत् सेनां भारतीं भरतर्षभ ॥ ११ ॥
मूलम्
सौभद्रस्तु ततः शङ्खं प्रध्माप्य पुरुषर्षभः।
शीघ्रमभ्यपतत् सेनां भारतीं भरतर्षभ ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! तब पुरुषप्रवर सुभद्राकुमार अभिमन्युने शंख बजाकर पुनः शीघ्र ही भारतीय सेनापर धावा किया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स कक्षेऽग्निरिवोत्सृष्टो निर्दहंस्तरसा रिपून्।
मध्ये भारतसैन्यानामार्जुनिः पर्यवर्तत ॥ १२ ॥
मूलम्
स कक्षेऽग्निरिवोत्सृष्टो निर्दहंस्तरसा रिपून्।
मध्ये भारतसैन्यानामार्जुनिः पर्यवर्तत ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सूखे जंगलमें छोड़ी हुई आगके समान वेगसे शत्रुओंको दग्ध करता हुआ अभिमन्यु कौरव-सेनाके बीचमें विचरने लगा॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथनागाश्वमनुजानर्दयन् निशितैः शरैः ।
सम्प्रविश्याकरोद् भूमिं कबन्धगणसंकुलाम् ॥ १३ ॥
मूलम्
रथनागाश्वमनुजानर्दयन् निशितैः शरैः ।
सम्प्रविश्याकरोद् भूमिं कबन्धगणसंकुलाम् ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस सेनामें प्रवेश करके उसने अपने तीखे बाणोंद्वारा रथों, हाथियों, घोड़ों और पैदल मनुष्योंको पीड़ित करते हुए सारी रणभूमिको बिना मस्तकके शरीरोंसे पाट दिया॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सौभद्रचापप्रभवैर्निकृत्ताः परमेषुभिः ।
स्वानेवाभिमुखान् घ्नन्तः प्राद्रवन् जीवितार्थिनः ॥ १४ ॥
मूलम्
सौभद्रचापप्रभवैर्निकृत्ताः परमेषुभिः ।
स्वानेवाभिमुखान् घ्नन्तः प्राद्रवन् जीवितार्थिनः ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सुभद्राकुमारके धनुषसे छूटे हुए उत्तम बाणोंसे क्षत-विक्षत हो आपके सैनिक अपने जीवनकी रक्षाके लिये सामने आये हुए अपने ही पक्षके योद्धाओंको मारते हुए भाग चले॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते घोरा रौद्रकर्माणो विपाठा बहवः शिताः।
निघ्नन्तो रथनागाश्वान् जग्मुराशु वसुंधराम् ॥ १५ ॥
मूलम्
ते घोरा रौद्रकर्माणो विपाठा बहवः शिताः।
निघ्नन्तो रथनागाश्वान् जग्मुराशु वसुंधराम् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अभिमन्युके वे भयंकर कर्म करनेवाले, घोर, तीक्ष्ण और बहुसंख्यक विपाठ नामक बाण आपके रथों, हाथियों और घोड़ोंको नष्ट करते हुए शीघ्र ही धरतीमें समा जाते थे॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सायुधाः साङ्गुलित्राणाः सगदाः साङ्गदा रणे।
दृश्यन्ते बाहवश्छिन्ना हेमाभरणभूषिताः ॥ १६ ॥
मूलम्
सायुधाः साङ्गुलित्राणाः सगदाः साङ्गदा रणे।
दृश्यन्ते बाहवश्छिन्ना हेमाभरणभूषिताः ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस युद्धमें आयुध, दस्ताने, गदा और बाजूबंदसहित वीरोंकी सुवर्णभूषण-भूषित भुजाएँ कटकर गिरी दिखायी देती थीं॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शराश्चापानि खड्गाश्च शरीराणि शिरांसि च।
सकुण्डलानि स्रग्वीणि भूमावासन् सहस्रशः ॥ १७ ॥
मूलम्
शराश्चापानि खड्गाश्च शरीराणि शिरांसि च।
सकुण्डलानि स्रग्वीणि भूमावासन् सहस्रशः ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस युद्धभूमिमें धनुष, बाण, खड्ग, शरीर तथा हार और कुण्डलोंसे विभूषित मस्तक सहस्रोंकी संख्यामें छिन्न-भिन्न होकर पड़े थे॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोपस्करैरधिष्ठानैरीषादण्डैश्च बन्धुरैः ।
अक्षैर्विमथितैश्चक्रैर्बहुधा पतितैर्युगैः ॥ १८ ॥
शक्तिचापासिभिश्चैव पतितैश्च महाध्वजैः ।
चर्मचापशरैश्चैव व्यवकीर्णैः समन्ततः ॥ १९ ॥
निहतैः क्षत्रियैरश्वैर्वारणैश्च विशाम्पते ।
अगम्यरूपा पृथिवी क्षणेनासीत् सुदारुणा ॥ २० ॥
मूलम्
सोपस्करैरधिष्ठानैरीषादण्डैश्च बन्धुरैः ।
अक्षैर्विमथितैश्चक्रैर्बहुधा पतितैर्युगैः ॥ १८ ॥
शक्तिचापासिभिश्चैव पतितैश्च महाध्वजैः ।
चर्मचापशरैश्चैव व्यवकीर्णैः समन्ततः ॥ १९ ॥
निहतैः क्षत्रियैरश्वैर्वारणैश्च विशाम्पते ।
अगम्यरूपा पृथिवी क्षणेनासीत् सुदारुणा ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आवश्यक सामग्री, बैठक, ईषादण्ड, बन्धुर, अक्ष, पहिए और जूए चूर-चूर और टुकड़े-टुकड़े होकर गिरे थे। शक्ति, धनुष, खड्ग, गिरे हुए विशाल ध्वज, ढाल और बाण भी छिन्न-भिन्न होकर सब ओर बिखरे पड़े थे। प्रजानाथ! बहुत-से क्षत्रिय, घोड़े और हाथी भी मारे गये थे। इन सबके कारण वहाँकी भूमि क्षणभरमें अत्यन्त भयंकर और अगम्य हो गयी थी॥१८—२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वध्यतां राजपुत्राणां क्रन्दतामितरेतरम् ।
प्रादुरासीन्महाशब्दो भीरूणां भयवर्धनः ॥ २१ ॥
मूलम्
वध्यतां राजपुत्राणां क्रन्दतामितरेतरम् ।
प्रादुरासीन्महाशब्दो भीरूणां भयवर्धनः ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बाणोंकी चोट खाकर परस्पर क्रन्दन करते हुए राजकुमारोंका महान् शब्द सुनायी पड़ता था, जो कायरोंका भय बढ़ानेवाला था॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स शब्दो भरतश्रेष्ठ दिशः सर्वा व्यनादयत्।
सौभद्रश्चाद्रवत् सेनां घ्नन् वराश्वरथद्विपान् ॥ २२ ॥
मूलम्
स शब्दो भरतश्रेष्ठ दिशः सर्वा व्यनादयत्।
सौभद्रश्चाद्रवत् सेनां घ्नन् वराश्वरथद्विपान् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! वह शब्द सम्पूर्ण दिशाओंको प्रतिध्वनित कर रहा था। सुभद्राकुमार श्रेष्ठ घोड़ों, रथों और हाथियोंका संहार करता हुआ कौरव-सेनापर टूट पड़ा था॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कक्षमग्निरिवोत्सृष्टो निर्दहंस्तरसा रिपून् ।
मध्ये भारतसैन्यानामार्जुनिः प्रत्यदृश्यत ॥ २३ ॥
मूलम्
कक्षमग्निरिवोत्सृष्टो निर्दहंस्तरसा रिपून् ।
मध्ये भारतसैन्यानामार्जुनिः प्रत्यदृश्यत ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सूखे जंगलमें छोड़ी हुई आगकी भाँति अर्जुनकुमार अभिमन्यु वेगसे शत्रुओंको दग्ध करता हुआ कौरव-सेनाओंके बीचमें दृष्टिगोचर हो रहा था॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विचरन्तं दिशः सर्वाः प्रदिशश्चापि भारत।
तं तदा नानुपश्यामः सैन्ये च रजसाऽऽवृते ॥ २४ ॥
मूलम्
विचरन्तं दिशः सर्वाः प्रदिशश्चापि भारत।
तं तदा नानुपश्यामः सैन्ये च रजसाऽऽवृते ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! धूलसे आच्छादित हुई सेनाके भीतर सम्पूर्ण दिशाओं और विदिशाओंमें विचरते हुए अभिमन्युको उस समय हमलोग देख नहीं पाते थे॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आददानं गजाश्वानां नृणां चायूंषि भारत।
क्षणेन भूयः पश्यामः सूर्यं मध्यंदिने यथा ॥ २५ ॥
अभिमन्युं महाराज प्रतपन्तं द्विषद्गणान्।
स वासवसमः संख्ये वासवस्यात्मजात्मजः।
अभिमन्युर्महाराज सैन्यमध्ये व्यरोचत ॥ २६ ॥
(यथा पुरा वह्निसुतोऽसुरसैन्येषु वीर्यवान्।)
मूलम्
आददानं गजाश्वानां नृणां चायूंषि भारत।
क्षणेन भूयः पश्यामः सूर्यं मध्यंदिने यथा ॥ २५ ॥
अभिमन्युं महाराज प्रतपन्तं द्विषद्गणान्।
स वासवसमः संख्ये वासवस्यात्मजात्मजः।
अभिमन्युर्महाराज सैन्यमध्ये व्यरोचत ॥ २६ ॥
(यथा पुरा वह्निसुतोऽसुरसैन्येषु वीर्यवान्।)
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! हाथियों, घोड़ों और पैदलसैनिकोंकी आयुको छीनते हुए अभिमन्युको हमने क्षणभरमें दोपहरके सूर्यकी भाँति शत्रुसेनाको पुनः तपाते देखा था। महाराज! इन्द्रकुमार अर्जुनका वह पुत्र युद्धमें इन्द्रके समान पराक्रमी जान पड़ता था। जैसे पूर्वकालमें पराक्रमी कुमार कार्तिकेय असुरोंकी सेनामें उसका संहार करते हुए सुशोभित होते थे, उसी प्रकार अभिमन्यु कौरव-सेनामें विचरता हुआ शोभा पा रहा था॥२५-२६॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि अभिमन्युपराक्रमे एकचत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ४१ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत अभिमन्युवधपर्वमें अभिमन्युका पराक्रमविषयक इकतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥४१॥
सूचना (हिन्दी)
(दाक्षिणात्य अधिक पाठका श्लोक मिलाकर कुल २६ श्लोक हैं।)