भागसूचना
द्वात्रिंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
कौरव-पाण्डव-सेनाओंका घमासान युद्ध, भीमसेनका कौरव महारथियोंके साथ संग्राम, भयंकर संहार, पाण्डवोंका द्रोणाचार्यपर आक्रमण, अर्जुन और कर्णका युद्ध, कर्णके भाइयोंका वध तथा कर्ण और सात्यकिका संग्राम
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रतिघातं तु सैन्यस्य नामृष्यत वृकोदरः।
सोऽभ्याहनद् गुरुं षष्ट्या कर्णं च दशभिः शरैः ॥ १ ॥
मूलम्
प्रतिघातं तु सैन्यस्य नामृष्यत वृकोदरः।
सोऽभ्याहनद् गुरुं षष्ट्या कर्णं च दशभिः शरैः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— महाराज! अपनी सेनाका वह विनाश भीमसेनसे नहीं सहा गया। उन्होंने गुरुदेवको साठ और कर्णको दस बाणोंसे घायल कर दिया॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य द्रोणः शितैर्बाणैस्तीक्ष्णधारैरजिह्मगैः ।
जीवितान्तमभिप्रेप्सुर्मर्माण्याशु जघान ह ॥ २ ॥
मूलम्
तस्य द्रोणः शितैर्बाणैस्तीक्ष्णधारैरजिह्मगैः ।
जीवितान्तमभिप्रेप्सुर्मर्माण्याशु जघान ह ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब द्रोणाचार्यने सीधे जानेवाले, तीखी धारसे युक्त पैने बाणोंद्वारा शीघ्रतापूर्वक भीमसेनके मर्मस्थानोंपर आघात किया। वे भीमसेनके प्राणोंका अन्त कर देना चाहते थे॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आनन्तर्यमभिप्रेप्सुः षड्विंशत्या समार्पयत् ।
कर्णो द्वादशभिर्बाणैरश्वत्थामा च सप्तभिः ॥ ३ ॥
मूलम्
आनन्तर्यमभिप्रेप्सुः षड्विंशत्या समार्पयत् ।
कर्णो द्वादशभिर्बाणैरश्वत्थामा च सप्तभिः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस आघात-प्रतिघातको निरन्तर जारी रखनेकी इच्छासे द्रोणाचार्यने भीमसेनको छब्बीस, कर्णने बारह और अश्वत्थामाने सात बाण मारे॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
षड्भिर्दुर्योधनो राजा तत एनमथाकिरत्।
भीमसेनोऽपि तान् सर्वान् प्रत्यविध्यन्महाबलः ॥ ४ ॥
मूलम्
षड्भिर्दुर्योधनो राजा तत एनमथाकिरत्।
भीमसेनोऽपि तान् सर्वान् प्रत्यविध्यन्महाबलः ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर राजा दुर्योधनने उनके ऊपर छः बाणोंद्वारा प्रहार किया। फिर महाबली भीमसेनने उन सबको अपने बाणोंद्वारा घायल कर दिया॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्रोणं पञ्चाशतेषूणां कर्णं च दशभिः शरैः।
दुर्योधनं द्वादशभिर्द्रौणिमष्टाभिराशुगैः ॥ ५ ॥
मूलम्
द्रोणं पञ्चाशतेषूणां कर्णं च दशभिः शरैः।
दुर्योधनं द्वादशभिर्द्रौणिमष्टाभिराशुगैः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने द्रोणको पचास, कर्णको दस, दुर्योधनको बारह और अश्वत्थामाको आठ बाण मारे॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आरावं तुमुलं कुर्वन्नभ्यवर्तत तान् रणे।
तस्मिन् संत्यजति प्राणान् मृत्युसाधारणीकृते ॥ ६ ॥
अजातशत्रुस्तान् योधान् भीमं त्रातेत्यचोदयत्।
ते ययुर्भीमसेनस्य समीपममितौजसः ॥ ७ ॥
मूलम्
आरावं तुमुलं कुर्वन्नभ्यवर्तत तान् रणे।
तस्मिन् संत्यजति प्राणान् मृत्युसाधारणीकृते ॥ ६ ॥
अजातशत्रुस्तान् योधान् भीमं त्रातेत्यचोदयत्।
ते ययुर्भीमसेनस्य समीपममितौजसः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् भयंकर गर्जना करते हुए भीमने रणक्षेत्रमें उन सबका सामना किया। भीमसेन मृत्युके तुल्य अवस्थामें पहुँच गये थे और अपने प्राणोंका परित्याग करना चाहते थे। उसी समय अजातशत्रु युधिष्ठिरने अपने योद्धाओंको यह कहकर आगे बढ़नेकी आज्ञा दी कि ‘तुम सब लोग भीमसेनकी रक्षा करो।’ यह सुनकर वे अमित तेजस्वी वीर भीमसेनके समीप चले॥६-७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
युयुधानप्रभृतयो माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ।
ते समेत्य सुसंरब्धाः सहिताः पुरुषर्षभाः ॥ ८ ॥
महेष्वासवरैर्गुप्ता द्रोणानीकं बिभित्सवः ।
समापेतुर्महावीर्या भीमप्रभृतयो रथाः ॥ ९ ॥
मूलम्
युयुधानप्रभृतयो माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ।
ते समेत्य सुसंरब्धाः सहिताः पुरुषर्षभाः ॥ ८ ॥
महेष्वासवरैर्गुप्ता द्रोणानीकं बिभित्सवः ।
समापेतुर्महावीर्या भीमप्रभृतयो रथाः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सात्यकि आदि महारथी तथा पाण्डुकुमार माद्रीपुत्र नकुल-सहदेव—ये सभी पुरुषश्रेष्ठ वीर परस्पर मिलकर एक साथ अत्यन्त क्रोधमें भरकर बड़े-बड़े धनुर्धरोंसे सुरक्षित हो द्रोणाचार्यकी सेनाको विदीर्ण कर डालनेकी इच्छासे उसपर टूट पड़े। वे भीम आदि सभी महारथी अत्यन्त पराक्रमी थे॥८-९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तान् प्रत्यगृह्णादव्यग्रो द्रोणोऽपि रथिनां वरः।
महारथानतिबलान् वीरान् समरयोधिनः ॥ १० ॥
मूलम्
तान् प्रत्यगृह्णादव्यग्रो द्रोणोऽपि रथिनां वरः।
महारथानतिबलान् वीरान् समरयोधिनः ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय रथियोंमें श्रेष्ठ आचार्य द्रोणने घबराहट छोड़कर उन अत्यन्त बलवान् समरभूमिमें युद्ध करनेवाले महारथी वीरोंको रोक दिया॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बाह्यं मृत्युभयं कृत्वा तावकान् पाण्डवा ययुः।
सादिनः सादिनोऽभ्यघ्नंस्तथैव रथिनो रथान् ॥ ११ ॥
मूलम्
बाह्यं मृत्युभयं कृत्वा तावकान् पाण्डवा ययुः।
सादिनः सादिनोऽभ्यघ्नंस्तथैव रथिनो रथान् ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
परंतु पाण्डववीर मौतके भयको बाहर छोड़कर आपके सैनिकोंपर चढ़ आये। घुड़सवार घुड़सवारोंको तथा रथारोही योद्धा रथियोंको मारने लगे॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आसीच्छक्त्यासिसम्पातो युद्धमासीत् परश्वधैः ।
प्रकृष्टमसियुद्धं च बभूव कटुकोदयम् ॥ १२ ॥
मूलम्
आसीच्छक्त्यासिसम्पातो युद्धमासीत् परश्वधैः ।
प्रकृष्टमसियुद्धं च बभूव कटुकोदयम् ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस युद्धमें शक्ति और खड्गोंके घातक प्रहार हो रहे थे। फरसोंसे मार-काट हो रही थी। तलवार खीचंकर उसके द्वारा ऐसा भयंकर युद्ध हो रहा था कि उसका कटु परिणाम प्रत्यक्ष सामने आ रहा था॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कुञ्जराणां च सम्पाते युद्धमासीत् सुदारुणम्।
अपतत् कुञ्जरादन्यो हयादन्यस्त्ववाक्शिराः ॥ १३ ॥
मूलम्
कुञ्जराणां च सम्पाते युद्धमासीत् सुदारुणम्।
अपतत् कुञ्जरादन्यो हयादन्यस्त्ववाक्शिराः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हाथियोंके संघर्षमें अत्यन्त दारुण संग्राम होने लगा। कोई हाथीसे गिरता था तो कोई घोड़ेसे ही औंधे सिर धराशायी हो रहा था॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नरो बाणविनिर्भिन्नो रथादन्यश्च मारिष।
तत्रान्यस्य च सम्मर्दे पतितस्य विवर्मणः ॥ १४ ॥
शिरः प्रध्वंसयामास वक्षस्याक्रम्य कुञ्जरः।
मूलम्
नरो बाणविनिर्भिन्नो रथादन्यश्च मारिष।
तत्रान्यस्य च सम्मर्दे पतितस्य विवर्मणः ॥ १४ ॥
शिरः प्रध्वंसयामास वक्षस्याक्रम्य कुञ्जरः।
अनुवाद (हिन्दी)
आर्य! उस युद्धमें कितने मनुष्य बाणोंसे विदीर्ण होकर रथसे नीचे गिर जाते थे। कितने ही योद्धा कवचशून्य हो धरतीपर गिर पड़ते थे और सहसा कोई हाथी उनकी छातीपर पैर रखकर उनके मस्तकको भी कुचल देता था॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अपरांश्चापरेऽमृद्नन् वारणाः पतितान् नरान् ॥ १५ ॥
विषाणैश्चावनिं गत्वा व्यभिन्दन् रथिनो बहून्।
मूलम्
अपरांश्चापरेऽमृद्नन् वारणाः पतितान् नरान् ॥ १५ ॥
विषाणैश्चावनिं गत्वा व्यभिन्दन् रथिनो बहून्।
अनुवाद (हिन्दी)
दूसरे हाथियोंने भी दूसरे बहुत-से गिरे हुए मनुष्यों-को अपने पैरोंसे रौंद डाला। अपने दाँतोंसे धरतीपर आघात करके बहुत-से रथियोंको चीर डाला॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नरान्त्रैः केचिदपरे विषाणालग्नसंश्रयैः ॥ १६ ॥
बभ्रमुः समरे नागा मृद्नन्तः शतशो नरान्।
मूलम्
नरान्त्रैः केचिदपरे विषाणालग्नसंश्रयैः ॥ १६ ॥
बभ्रमुः समरे नागा मृद्नन्तः शतशो नरान्।
अनुवाद (हिन्दी)
कितने ही गजराज अपने दाँतोंमें लगी हुई मनुष्योंकी आँतें लिये समरभूमिमें सैकड़ों योद्धाओंको कुचलते हुए चक्कर लगा रहे थे॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कार्ष्णायसतनुत्राणान् नराश्वरथकुञ्जरान् ॥ १७ ॥
पतितान् पोथयाञ्चक्रुर्द्विपाः स्थूलनलानिव ।
मूलम्
कार्ष्णायसतनुत्राणान् नराश्वरथकुञ्जरान् ॥ १७ ॥
पतितान् पोथयाञ्चक्रुर्द्विपाः स्थूलनलानिव ।
अनुवाद (हिन्दी)
काले रंगके लोहमय कवच धारण करके रणभूमिमें गिरे हुए कितने ही मनुष्यों, रथों, घोड़ों और हाथियोंको बड़े-बड़े गजराजोंने मोटे नरकुलोंके समान रौंद डाला॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गृध्रपत्राधिवासांसि शयनानि नराधिपाः ॥ १८ ॥
ह्रीमन्तः कालसम्पर्कात् सुदुःखान्यनुशेरते ।
मूलम्
गृध्रपत्राधिवासांसि शयनानि नराधिपाः ॥ १८ ॥
ह्रीमन्तः कालसम्पर्कात् सुदुःखान्यनुशेरते ।
अनुवाद (हिन्दी)
बड़े-बड़े राजा कालसंयोगसे अत्यन्त दुःखदायिनी तथा गीधकी पाँखरूपी बिछौनोंसे युक्त शय्याओंपर लज्जापूर्वक सो रहे थे॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हन्ति स्मात्र पिता पुत्रं रथेनाभ्येत्य संयुगे ॥ १९ ॥
पुत्रश्च पितरं मोहान्निर्मर्यादमवर्तत ।
मूलम्
हन्ति स्मात्र पिता पुत्रं रथेनाभ्येत्य संयुगे ॥ १९ ॥
पुत्रश्च पितरं मोहान्निर्मर्यादमवर्तत ।
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ पिता रथके द्वारा युद्धके मैदानमें आकर पुत्रका ही वध कर डालता था और पुत्र भी मोहवश पिताके प्राण ले रहा था। इस प्रकार वहाँ मर्यादाशून्य युद्ध हो रहा था॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथो भग्नो ध्वजश्छिन्नश्छत्रमुर्व्यां निपातितम् ॥ २० ॥
युगार्धं छिन्नमादाय प्रदुद्राव तथा हयः।
मूलम्
रथो भग्नो ध्वजश्छिन्नश्छत्रमुर्व्यां निपातितम् ॥ २० ॥
युगार्धं छिन्नमादाय प्रदुद्राव तथा हयः।
अनुवाद (हिन्दी)
कितने ही रथ टूट गये, ध्वज कट गये, छत्र पृथ्वीपर गिरा दिये गये और जूए खण्डित हो गये। उन खण्डित हुए आधे जूओंको ही लेकर घोड़े तेजीसे भाग रहे थे॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सासिर्बाहुर्निपतितः शिरश्छिन्नं सकुण्डलम् ॥ २१ ॥
गजेनाक्षिप्य बलिना रथः संचूर्णितः क्षितौ।
मूलम्
सासिर्बाहुर्निपतितः शिरश्छिन्नं सकुण्डलम् ॥ २१ ॥
गजेनाक्षिप्य बलिना रथः संचूर्णितः क्षितौ।
अनुवाद (हिन्दी)
कितने ही वीरोंकी भुजाएँ तलवारसहित काट गिरायी गयीं, कितनोंके कुण्डलमण्डित मस्तक धड़से अलग कर दिये गये। कहीं किसी बलवान् हाथीने रथको उठाकर फेंक दिया और वह पृथ्वीपर गिरकर चूर-चूर हो गया॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथिना ताडितो नागो नाराचेनापतत् क्षितौ ॥ २२ ॥
सारोहश्चापतद् वाजी गजेनाभ्याहतो भृशम्।
निर्मर्यादं महद् युद्धमवर्तत सुदारुणम् ॥ २३ ॥
मूलम्
रथिना ताडितो नागो नाराचेनापतत् क्षितौ ॥ २२ ॥
सारोहश्चापतद् वाजी गजेनाभ्याहतो भृशम्।
निर्मर्यादं महद् युद्धमवर्तत सुदारुणम् ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
किसी रथीने नाराचके द्वारा गजराजपर आघात किया और वह धराशायी हो गया। किसी हाथीके वेगपूर्वक आघात करनेपर सवारसहित घोड़ा धरतीपर ढेर हो गया। इस प्रकार वहाँ मर्यादाशून्य अत्यन्त भयंकर एवं महान् युद्ध होने लगा॥२२-२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हा तात हा पुत्र सखे क्वासि तिष्ठ क्व धावसि।
प्रहराहर जह्येनं स्मितक्ष्वेडितगर्जितैः ॥ २४ ॥
इत्येवमुच्चरन्ति स्म श्रूयन्ते विविधा गिरः।
मूलम्
हा तात हा पुत्र सखे क्वासि तिष्ठ क्व धावसि।
प्रहराहर जह्येनं स्मितक्ष्वेडितगर्जितैः ॥ २४ ॥
इत्येवमुच्चरन्ति स्म श्रूयन्ते विविधा गिरः।
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय सभी सैनिक ‘हा तात! हा पुत्र! सखे! तुम कहाँ हो? ठहरो, कहाँ भागे जा रहे हो? मारो, लाओ, इसका वध कर डालो’—इस प्रकारकी बातें कह रहे थे। हास्य, उछल-कूद और गर्जनाके साथ उनके मुखसे नाना प्रकारकी बातें सुनायी देती थीं॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नरस्याश्वस्य नागस्य समसज्जत शोणितम् ॥ २५ ॥
उपाशाम्यद् रजो भौमं भीरून् कश्मलमाविशत्।
मूलम्
नरस्याश्वस्य नागस्य समसज्जत शोणितम् ॥ २५ ॥
उपाशाम्यद् रजो भौमं भीरून् कश्मलमाविशत्।
अनुवाद (हिन्दी)
मनुष्य, घोड़े और हाथीके रक्त एक-दूसरेसे मिल रहे थे। उस रक्तप्रवाहसे वहाँकी उड़ती हुई भयंकर धूल शान्त हो गयी। उस रक्तराशिको देखकर भीरु पुरुषोंपर मोह छा जाता था॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चक्रेण चक्रमासाद्य वीरो वीरस्य संयुगे ॥ २६ ॥
अतीतेषुपथे काले जहार गदया शिरः।
मूलम्
चक्रेण चक्रमासाद्य वीरो वीरस्य संयुगे ॥ २६ ॥
अतीतेषुपथे काले जहार गदया शिरः।
अनुवाद (हिन्दी)
किसी वीरने अपने चक्रके द्वारा शत्रुपक्षीय वीरके चक्रका निवारण करके युद्धमें बाणप्रहारके योग्य अवसर न होनेके कारण गदासे ही उसका सिर उड़ा दिया॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आसीत् केशपरामर्शो मुष्टियुद्धं च दारुणम् ॥ २७ ॥
नखैर्दन्तैश्च शूराणामद्वीपे द्वीपमिच्छताम् ।
मूलम्
आसीत् केशपरामर्शो मुष्टियुद्धं च दारुणम् ॥ २७ ॥
नखैर्दन्तैश्च शूराणामद्वीपे द्वीपमिच्छताम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
कुछ लोगोंमें एक-दूसरेके केश पकड़कर युद्ध होने लगा। कितने ही योद्धाओंमें अत्यन्त भयंकर मुक्कोंकी मार होने लगी। कितने ही शूरवीर उस निराश्रय स्थानमें आश्रय ढूँढ़ रहे थे और नखों तथा दाँतोंसे एक-दूसरेको चोट पहुँचा रहे थे॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्राच्छिद्यत शूरस्य सखड्गो बाहुरुद्यतः ॥ २८ ॥
सधनुश्चापरस्यापि सशरः साङ्कुशस्तथा ।
आक्रोशदन्यमन्योऽत्र तथान्यो विमुखोऽद्रवत् ॥ २९ ॥
मूलम्
तत्राच्छिद्यत शूरस्य सखड्गो बाहुरुद्यतः ॥ २८ ॥
सधनुश्चापरस्यापि सशरः साङ्कुशस्तथा ।
आक्रोशदन्यमन्योऽत्र तथान्यो विमुखोऽद्रवत् ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस युद्धमें एक शूरवीरकी खड्गसहित ऊपर उठी हुई भुजा काट डाली गयी। दूसरेकी भी धनुष-बाण और अंकुशसहित बाँह खण्डित हो गयी। वहाँ एक सैनिक दूसरेको पुकारता था और दूसरा युद्धसे विमुख होकर भागा जा रहा था॥२८-२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अन्यः प्राप्तस्य चान्यस्य शिरः कायादपाहरत्।
सशब्दमद्रवच्चान्यः शब्दादन्योऽत्रसद् भृशम् ॥ ३० ॥
मूलम्
अन्यः प्राप्तस्य चान्यस्य शिरः कायादपाहरत्।
सशब्दमद्रवच्चान्यः शब्दादन्योऽत्रसद् भृशम् ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
किसी दूसरे वीरने सामने आये हुए अन्य योद्धाके मस्तकको धड़से अलग कर दिया। यह देख कोई तीसरा वीर बड़े जोरसे कोलाहल करता हुआ भागा। उसके उस आर्तनादसे एक अन्य योद्धा अत्यन्त डर गया॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वानन्योऽथ परानन्यो जघान निशितैः शरैः।
गिरिशृङ्गोपमश्चात्र नाराचेन निपातितः ॥ ३१ ॥
मातङ्गो न्यपतद् भूमौ नदीरोध इवोष्णगे।
मूलम्
स्वानन्योऽथ परानन्यो जघान निशितैः शरैः।
गिरिशृङ्गोपमश्चात्र नाराचेन निपातितः ॥ ३१ ॥
मातङ्गो न्यपतद् भूमौ नदीरोध इवोष्णगे।
अनुवाद (हिन्दी)
कोई अपने ही सैनिकोंको और कोई शत्रु-योद्धाओंको अपने तीखे बाणोंसे मार रहा था। उस युद्धमें पर्वतशिखरके समान विशालकाय हाथी नाराचसे मारा जाकर वर्षाकालमें नदीके तटकी भाँति धरतीपर गिरा और ढेर हो गया॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव रथिनं नागः क्षरन् गिरिरिवारुजन् ॥ ३२ ॥
अभ्यतिष्ठत् पदा भूमौ सहाश्वं सहसारथिम्।
मूलम्
तथैव रथिनं नागः क्षरन् गिरिरिवारुजन् ॥ ३२ ॥
अभ्यतिष्ठत् पदा भूमौ सहाश्वं सहसारथिम्।
अनुवाद (हिन्दी)
झरने बहानेवाले पर्वतकी भाँति किसी मदस्रावी गजराजने सारथि और अश्वोंसहित रथीको पैरोंसे भूमिपर दबाकर उन सबको कुचल डाला॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शूरान् प्रहरतो दृष्ट्वा कृतास्त्रान् रुधिरोक्षितान् ॥ ३३ ॥
बहूनप्याविशन्मोहो भीरून् हृदयदुर्बलान् ।
मूलम्
शूरान् प्रहरतो दृष्ट्वा कृतास्त्रान् रुधिरोक्षितान् ॥ ३३ ॥
बहूनप्याविशन्मोहो भीरून् हृदयदुर्बलान् ।
अनुवाद (हिन्दी)
अस्त्र-विद्यामें निपुण और खूनसे लथपथ हुए शूरवीरोंको परस्पर प्रहार करते देख बहुत-से दुर्बल हृदयवाले भीरु मनुष्योंके मनमें मोहका संचार होने लगा॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्वमाविग्नमभवन्न प्राज्ञायत किञ्चन ॥ ३४ ॥
सैन्येन रजसा ध्वस्तं निर्मर्यादमवर्तत।
मूलम्
सर्वमाविग्नमभवन्न प्राज्ञायत किञ्चन ॥ ३४ ॥
सैन्येन रजसा ध्वस्तं निर्मर्यादमवर्तत।
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय सेनाद्वारा उड़ायी हुई धूलसे व्याप्त होकर सारा जनसमूह उद्विग्न हो रहा था, किसीको कुछ नहीं सूझता था। उस युद्धमें किसी भी नियम या मर्यादाका पालन नहीं हो रहा था॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सेनापतिः शीघ्रमयं काल इति ब्रुवन् ॥ ३५ ॥
नित्याभित्वरितानेव त्वरयामास पाण्डवान् ।
मूलम्
ततः सेनापतिः शीघ्रमयं काल इति ब्रुवन् ॥ ३५ ॥
नित्याभित्वरितानेव त्वरयामास पाण्डवान् ।
अनुवाद (हिन्दी)
तब सेनापति धृष्टद्युम्नने यही उपयुक्त अवसर है, ऐसा कहते हुए सदा शीघ्रता करनेवाले पाण्डवोंको और भी जल्दी करनेके लिये प्रेरित किया॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कुर्वन्तः शासनं तस्य पाण्डवा बाहुशालिनः ॥ ३६ ॥
सरो हंसा इवापेतुर्घ्नन्तो द्रोणरथं प्रति।
मूलम्
कुर्वन्तः शासनं तस्य पाण्डवा बाहुशालिनः ॥ ३६ ॥
सरो हंसा इवापेतुर्घ्नन्तो द्रोणरथं प्रति।
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर अपनी भुजाओंसे सुशोभित होनेवाले पाण्डव सेनापतिकी आज्ञाका पालन करनेके लिये वहाँ द्रोणाचार्यके रथपर प्रहार करते हुए उसी प्रकार टूट पड़े, जैसे बहुत-से हंस किसी सरोवरपर सब ओरसे उड़कर आते हैं॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गृह्णीताद्रवतान्योन्यं विभीता विनिकृन्तत ॥ ३७ ॥
इत्यासीत् तुमुलः शब्दो दुर्धर्षस्य रथं प्रति।
मूलम्
गृह्णीताद्रवतान्योन्यं विभीता विनिकृन्तत ॥ ३७ ॥
इत्यासीत् तुमुलः शब्दो दुर्धर्षस्य रथं प्रति।
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय दुर्धर्ष वीर द्रोणाचार्यके रथके समीप सब ओरसे यही भयानक आवाज आने लगी कि ‘दौड़ो, पकड़ो और निर्भय होकर शत्रुओंको काट डालो’॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो द्रोणः कृपः कर्णो द्रौणी राजा जयद्रथः ॥ ३८ ॥
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ शल्यश्चैतान् न्यवारयन् ।
मूलम्
ततो द्रोणः कृपः कर्णो द्रौणी राजा जयद्रथः ॥ ३८ ॥
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ शल्यश्चैतान् न्यवारयन् ।
अनुवाद (हिन्दी)
तब द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, राजा जयद्रथ, अवन्तीके राजकुमार विन्द और अनुविन्द तथा राजा शल्यने मिलकर इन आक्रमणकारियोंको रोका॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते त्वार्यधर्मसंरब्धा दुर्निवारा दुरासदाः ॥ ३९ ॥
शरार्ता न जहुर्द्रोणं पञ्चालाः पाण्डवैः सह।
मूलम्
ते त्वार्यधर्मसंरब्धा दुर्निवारा दुरासदाः ॥ ३९ ॥
शरार्ता न जहुर्द्रोणं पञ्चालाः पाण्डवैः सह।
अनुवाद (हिन्दी)
वे पाण्डवोंसहित पाञ्चालवीर आर्यधर्मके अनुसार विजयके लिये प्रयत्नशील थे। उन्हें रोकना या पराजित करना बहुत कठिन था। वे बाणोंसे पीड़ित होनेपर भी द्रोणाचार्यको छोड़ न सके॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो द्रोणोऽतिसंक्रुद्धो विसृजञ्छतशः शरान् ॥ ४० ॥
चेदिपञ्चालपाण्डूनामकरोत् कदनं महत् ।
मूलम्
ततो द्रोणोऽतिसंक्रुद्धो विसृजञ्छतशः शरान् ॥ ४० ॥
चेदिपञ्चालपाण्डूनामकरोत् कदनं महत् ।
अनुवाद (हिन्दी)
यह देख अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए द्रोणाचार्यने सैकड़ों बाणोंकी वर्षा करके चेदि, पांचाल तथा पाण्डव-योद्धाओंका महान् संहार आरम्भ किया॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य ज्यातलनिर्घोषः शुश्रुवे दिक्षु मारिष ॥ ४१ ॥
वज्रसंह्रादसंकाशस्त्रासयन् मानवान् बहून् ।
मूलम्
तस्य ज्यातलनिर्घोषः शुश्रुवे दिक्षु मारिष ॥ ४१ ॥
वज्रसंह्रादसंकाशस्त्रासयन् मानवान् बहून् ।
अनुवाद (हिन्दी)
आर्य! उनके धनुषकी प्रत्यंचाका गम्भीर घोष सम्पूर्ण दिशाओंमें सुनायी देता था। वह वज्रकी गर्जनाके समान घोर शब्द बहुसंख्यक मनुष्योंको भयभीत कर रहा था॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतस्मिन्नन्तरे जिष्णुर्जित्वा संशप्तकान् बहून् ॥ ४२ ॥
अभ्ययात् तत्र यत्रासौ द्रोणः पाण्डून् प्रमर्दति।
मूलम्
एतस्मिन्नन्तरे जिष्णुर्जित्वा संशप्तकान् बहून् ॥ ४२ ॥
अभ्ययात् तत्र यत्रासौ द्रोणः पाण्डून् प्रमर्दति।
अनुवाद (हिन्दी)
इसी समय अर्जुन बहुत-से संशप्तकोंपर विजय प्राप्त करके उस स्थानपर आये, जहाँ आचार्य द्रोण पाण्डव-सैनिकोंका मर्दन कर रहे थे॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ताञ्छरौघान् महावर्तान् शोणितोदान् महाह्रदान् ॥ ४३ ॥
तीर्णः संशप्तकान् हत्वा प्रत्यदृश्यत फाल्गुनः।
मूलम्
ताञ्छरौघान् महावर्तान् शोणितोदान् महाह्रदान् ॥ ४३ ॥
तीर्णः संशप्तकान् हत्वा प्रत्यदृश्यत फाल्गुनः।
अनुवाद (हिन्दी)
संशप्तक योद्धा महान् सरोवरोंके समान थे, बाणोंके समूह ही उनके जल-प्रवाह थे, धनुष ही उनमें उठी हुई बड़ी-बड़ी भँवरोंके समान जान पड़ते थे तथा प्रवाहित होनेवाला रक्त ही उन सरोवरोंका जल था। अर्जुन संशप्तकोंका वध करके उन महान् सरोवरोंके पार होकर वहाँ आते दिखायी दिये थे॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य कीर्तिमतो लक्ष्म सूर्यप्रतिमतेजसः ॥ ४४ ॥
दीप्यमानमपश्याम तेजसा वानरध्वजम् ।
मूलम्
तस्य कीर्तिमतो लक्ष्म सूर्यप्रतिमतेजसः ॥ ४४ ॥
दीप्यमानमपश्याम तेजसा वानरध्वजम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
सूर्यके समान तेजस्वी एवं यशस्वी अर्जुनके चिह्नस्वरूप वानरध्वजको हमने दूरसे ही देखा, जो अपने दिव्य तेजसे उद्भासित हो रहा था॥४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संशप्तकसमुद्रं तमुच्छोष्यास्त्रगभस्तिभिः ॥ ४५ ॥
स पाण्डवयुगान्तार्कः कुरूनप्यभ्यतीतपत् ।
मूलम्
संशप्तकसमुद्रं तमुच्छोष्यास्त्रगभस्तिभिः ॥ ४५ ॥
स पाण्डवयुगान्तार्कः कुरूनप्यभ्यतीतपत् ।
अनुवाद (हिन्दी)
वे पाण्डुवंशके प्रलयकालीन सूर्य अपनी अस्त्रमयी किरणोंसे उस संशप्तकरूपी समुद्रको सोखकर कौरव-सैनिकोंको भी संतप्त करने लगे॥४५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रददाह कुरून् सर्वानर्जुनः शस्त्रतेजसा ॥ ४६ ॥
युगान्ते सर्वभूतानि धूमकेतुरिवोत्थितः ।
मूलम्
प्रददाह कुरून् सर्वानर्जुनः शस्त्रतेजसा ॥ ४६ ॥
युगान्ते सर्वभूतानि धूमकेतुरिवोत्थितः ।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे प्रलयकालमें प्रकट हुई अग्नि सम्पूर्ण भूतोंको दग्ध कर देती है, उसी प्रकार अर्जुनने अपने अस्त्र-शस्त्रोंके तेजसे समस्त कौरव-सैनिकोंको जलाना आरम्भ किया॥४६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेन बाणसहस्रौघैर्गजाश्वरथयोधिनः ॥ ४७ ॥
ताड्यमानाः क्षितिं जग्मुर्मुक्तकेशाः शरार्दिताः।
मूलम्
तेन बाणसहस्रौघैर्गजाश्वरथयोधिनः ॥ ४७ ॥
ताड्यमानाः क्षितिं जग्मुर्मुक्तकेशाः शरार्दिताः।
अनुवाद (हिन्दी)
हाथी, घोड़े तथा रथपर आरूढ़ होकर युद्ध करनेवाले बहुत-से योद्धा अर्जुनके सहस्रों बाणसमूहोंसे आहत एवं पीड़ित हो बाल खोले हुए पृथ्वीपर गिर पड़े॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केचिदार्तस्वनं चक्रुर्विनेशुरपरे पुनः ॥ ४८ ॥
पार्थबाणहताः केचिन्निपेतुर्विगतासवः ।
मूलम्
केचिदार्तस्वनं चक्रुर्विनेशुरपरे पुनः ॥ ४८ ॥
पार्थबाणहताः केचिन्निपेतुर्विगतासवः ।
अनुवाद (हिन्दी)
कोई आर्तनाद करने लगे, कोई नष्ट हो गये, कोई अर्जुनके बाणोंसे मारे जाकर प्राणशून्य हो पृथ्वीपर गिर पड़े॥४८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषामुत्पतितान् कांश्चित् पतितांश्च पराङ्मुखान् ॥ ४९ ॥
न जघानार्जुनो योधान् योधव्रतमनुस्मरन्।
मूलम्
तेषामुत्पतितान् कांश्चित् पतितांश्च पराङ्मुखान् ॥ ४९ ॥
न जघानार्जुनो योधान् योधव्रतमनुस्मरन्।
अनुवाद (हिन्दी)
उन योद्धाओंमेंसे जो लोग रथसे कूद पड़े थे या धरतीपर गिर गये थे अथवा युद्धसे विमुख होकर भाग चले थे, उन सबको एक वीर सैनिकके लिये निश्चित नियमका निरन्तर स्मरण रखते हुए अर्जुनने नहीं मारा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते विकीर्णरथाश्चित्राः प्रायशश्च पराङ्मुखाः ॥ ५० ॥
कुरवः कर्ण कर्णेति हाहेति च विचुक्रुशुः।
मूलम्
ते विकीर्णरथाश्चित्राः प्रायशश्च पराङ्मुखाः ॥ ५० ॥
कुरवः कर्ण कर्णेति हाहेति च विचुक्रुशुः।
अनुवाद (हिन्दी)
कौरव-सैनिकोंके रथ टूट-फूटकर बिखर गये। उनकी विचित्र अवस्था हो गयी। वे प्रायः युद्धसे विमुख हो गये और ‘हा कर्ण, हा कर्ण’ कहकर पुकारने लगे॥५०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमाधिरथिराक्रन्दं विज्ञाय शरणैषिणाम् ॥ ५१ ॥
मा भैष्टेति प्रतिश्रुत्य ययावभिमुखोऽर्जुनम्।
मूलम्
तमाधिरथिराक्रन्दं विज्ञाय शरणैषिणाम् ॥ ५१ ॥
मा भैष्टेति प्रतिश्रुत्य ययावभिमुखोऽर्जुनम्।
अनुवाद (हिन्दी)
तब अधिरथपुत्र कर्णने उन शरणार्थी सैनिकोंकी करुण पुकार सुनकर ‘डरो मत’ इस प्रकार उन्हें आश्वासन देकर अर्जुनका सामना करनेके लिये प्रस्थान किया॥५१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स भारतरथश्रेष्ठः सर्वभारतहर्षणः ॥ ५२ ॥
प्रादुश्चक्रे तदाग्नेयमस्त्रमस्त्रविदां वरः ।
मूलम्
स भारतरथश्रेष्ठः सर्वभारतहर्षणः ॥ ५२ ॥
प्रादुश्चक्रे तदाग्नेयमस्त्रमस्त्रविदां वरः ।
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय अस्त्रवेत्ताओंमें श्रेष्ठ, भरतवंशियोंके श्रेष्ठ महारथी तथा सम्पूर्ण भारतीय सेनाका हर्ष बढ़ानेवाले कर्णने आग्नेयास्त्र प्रकट किया॥५२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य दीप्तशरौघस्य दीप्तचापधरस्य च ॥ ५३ ॥
शरौघाञ्छरजालेन विदुधाव धनंजयः ।
मूलम्
तस्य दीप्तशरौघस्य दीप्तचापधरस्य च ॥ ५३ ॥
शरौघाञ्छरजालेन विदुधाव धनंजयः ।
अनुवाद (हिन्दी)
प्रज्वलित बाणसमूह तथा देदीप्यमान धनुष धारण करनेवाले कर्णके उन बाणसमूहोंको अर्जुनने अपने बाणोंके समुदायद्वारा छिन्न-भिन्न कर दिया॥५३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैवाधिरथिस्तस्य बाणाञ्ज्वलिततेजसः ॥ ५४ ॥
अस्त्रमस्त्रेण संवार्य प्राणदद् विसृजञ्छरान्।
मूलम्
तथैवाधिरथिस्तस्य बाणाञ्ज्वलिततेजसः ॥ ५४ ॥
अस्त्रमस्त्रेण संवार्य प्राणदद् विसृजञ्छरान्।
अनुवाद (हिन्दी)
उसी प्रकार अधिरथकुमार कर्णने भी प्रज्वलित तेजवाले अर्जुनके बाणोंका तथा उनके प्रत्येक अस्त्रका अपने अस्त्रोंद्वारा निवारण करके बाणोंकी वर्षा करते हुए बड़े जोरसे सिंहनाद किया॥५४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नश्च भीमश्च सात्यकिश्च महारथः ॥ ५५ ॥
विव्यधुः कर्णमासाद्य त्रिभिस्त्रिभिरजिह्मगैः ।
मूलम्
धृष्टद्युम्नश्च भीमश्च सात्यकिश्च महारथः ॥ ५५ ॥
विव्यधुः कर्णमासाद्य त्रिभिस्त्रिभिरजिह्मगैः ।
अनुवाद (हिन्दी)
इसी समय धृष्टद्युम्न, भीम तथा महारथी सात्यकिने भी कर्णके पास पहुँचकर उसे तीन-तीन बाणोंसे घायल कर दिया॥५५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्जुनास्त्रं तु राधेयः संवार्य शरवृष्टिभिः ॥ ५६ ॥
तेषां त्रयाणां चापानि चिच्छेद विशिखैस्त्रिभिः।
मूलम्
अर्जुनास्त्रं तु राधेयः संवार्य शरवृष्टिभिः ॥ ५६ ॥
तेषां त्रयाणां चापानि चिच्छेद विशिखैस्त्रिभिः।
अनुवाद (हिन्दी)
तब राधानन्दन कर्णने अपने बाणोंकी वर्षाद्वारा अर्जुनके बाणोंका निवारण करके अपने तीन बाणोंद्वारा धृष्टद्युम्न आदि तीनों वीरोंके धनुषोंको भी काट दिया॥५६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते निकृत्तायुधाः शूरा निर्विषा भुजगा इव ॥ ५७ ॥
रथशक्तीः समुत्क्षिप्य भृशं सिंहा इवानदन्।
मूलम्
ते निकृत्तायुधाः शूरा निर्विषा भुजगा इव ॥ ५७ ॥
रथशक्तीः समुत्क्षिप्य भृशं सिंहा इवानदन्।
अनुवाद (हिन्दी)
अपने धनुष कट जानेपर विषहीन भुजंगमोंके समान उन शूरवीरोंने रथ-शक्तियोंको ऊपर उठाकर सिंहोंके समान भयंकर गर्जना की॥५७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ता भुजाग्रैर्महावेगा निसृष्टा भुजगोपमाः ॥ ५८ ॥
दीप्यमाना महाशक्त्यो जग्मुराधिरथिं प्रति।
मूलम्
ता भुजाग्रैर्महावेगा निसृष्टा भुजगोपमाः ॥ ५८ ॥
दीप्यमाना महाशक्त्यो जग्मुराधिरथिं प्रति।
अनुवाद (हिन्दी)
उनके हाथोंसे छूटी हुई वे अत्यन्त वेगशालिनी सर्पाकार महाशक्तियाँ अपनी प्रभासे प्रकाशित होती हुई कर्णकी ओर चलीं॥५८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ता निकृत्य शरव्रातैस्त्रिभिस्त्रिभिरजिह्मगैः ॥ ५९ ॥
ननाद बलवान् कर्णः पार्थाय विसृजञ्छरान्।
मूलम्
ता निकृत्य शरव्रातैस्त्रिभिस्त्रिभिरजिह्मगैः ॥ ५९ ॥
ननाद बलवान् कर्णः पार्थाय विसृजञ्छरान्।
अनुवाद (हिन्दी)
परंतु बलवान् कर्णने सीधे जानेवाले तीन-तीन बाणसमूहोंद्वारा उन शक्तियोंके टुकड़े-टुकड़े करके अर्जुनपर बाणोंकी वर्षा करते हुए सिंहनाद किया॥५९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्जुनश्चापि राधेयं विद्ध्वा सप्तभिराशुगैः ॥ ६० ॥
कर्णादवरजं बाणैर्जघान निशितैः शरैः।
मूलम्
अर्जुनश्चापि राधेयं विद्ध्वा सप्तभिराशुगैः ॥ ६० ॥
कर्णादवरजं बाणैर्जघान निशितैः शरैः।
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनने भी राधानन्दन कर्णको सात शीघ्रगामी बाणोंद्वारा बींधकर अपने पैने बाणोंसे उसके छोटे भाईको मार डाला॥६०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः शत्रुंजयं हत्वा पार्थः षड्भिरजिह्मगैः ॥ ६१ ॥
जहार सद्यो भल्लेन विपाटस्य शिरो रथात्।
मूलम्
ततः शत्रुंजयं हत्वा पार्थः षड्भिरजिह्मगैः ॥ ६१ ॥
जहार सद्यो भल्लेन विपाटस्य शिरो रथात्।
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् सीधे जानेवाले छः सायकोंद्वारा शत्रुंजयका संहार करके एक भल्लद्वारा रथपर बैठे हुए विपाटका मस्तक तत्काल काट गिराया॥६१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पश्यतां धार्तराष्ट्राणामेकेनैव किरीटिना ॥ ६२ ॥
प्रमुखे सूतपुत्रस्य सोदर्या निहतास्त्रयः।
मूलम्
पश्यतां धार्तराष्ट्राणामेकेनैव किरीटिना ॥ ६२ ॥
प्रमुखे सूतपुत्रस्य सोदर्या निहतास्त्रयः।
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार धृतराष्ट्रपुत्रोंके देखते-देखते एकमात्र अर्जुनने युद्धके मुहानेपर सूतपुत्र कर्णके तीन भाइयोंका वध कर डाला॥६२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो भीमः समुत्पत्य स्वरथाद् वैनतेयवत् ॥ ६३ ॥
वरासिना कर्णपक्षान् जघान दश पञ्च च।
मूलम्
ततो भीमः समुत्पत्य स्वरथाद् वैनतेयवत् ॥ ६३ ॥
वरासिना कर्णपक्षान् जघान दश पञ्च च।
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर भीमसेनने गरुड़की भाँति अपने रथसे उछलकर उत्तम खड्गद्वारा कर्णपक्षके पंद्रह योद्धाओंको मार डाला॥६३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुनस्तु रथमास्थाय धनुरादाय चापरम् ॥ ६४ ॥
विव्याध दशभिः कर्णं सूतमश्वांश्च पञ्चभिः।
मूलम्
पुनस्तु रथमास्थाय धनुरादाय चापरम् ॥ ६४ ॥
विव्याध दशभिः कर्णं सूतमश्वांश्च पञ्चभिः।
अनुवाद (हिन्दी)
फिर भी उन्होंने अपने रथपर बैठकर दूसरा धनुष हाथमें ले लिया और दस बाणोंद्वारा कर्णको तथा पाँच बाणोंसे उसके सारथि और घोड़ोंको भी घायल कर दिया॥६४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नोऽप्यसिवरं चर्म चादाय भास्वरम् ॥ ६५ ॥
जघान चन्द्रवर्माणं बृहत्क्षत्रं च नैषधम्।
मूलम्
धृष्टद्युम्नोऽप्यसिवरं चर्म चादाय भास्वरम् ॥ ६५ ॥
जघान चन्द्रवर्माणं बृहत्क्षत्रं च नैषधम्।
अनुवाद (हिन्दी)
धृष्टद्युम्नने भी श्रेष्ठ खड्ग और चमकीली ढाल लेकर चन्द्रवर्मा तथा निषधराज बृहत्क्षत्रका काम तमाम कर दिया॥६५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स्वरथमास्थाय पाञ्चाल्योऽन्यच्च कार्मुकम् ॥ ६६ ॥
आदाय कर्णं विव्याध त्रिसप्तत्या नदन् रणे।
मूलम्
ततः स्वरथमास्थाय पाञ्चाल्योऽन्यच्च कार्मुकम् ॥ ६६ ॥
आदाय कर्णं विव्याध त्रिसप्तत्या नदन् रणे।
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर पाञ्चालराजकुमार धृष्टद्युम्नने अपने रथपर बैठकर दूसरा धनुष ले रणक्षेत्रमें गर्जना करते हुए तिहत्तर बाणोंद्वारा कर्णको बींध डाला॥६६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शैनेयोऽप्यन्यदादाय धनुरिन्दुसमद्युतिः ॥ ६७ ॥
सूतपुत्रं चतुःषष्ट्या विद्ध्वा सिंह इवानदत्।
मूलम्
शैनेयोऽप्यन्यदादाय धनुरिन्दुसमद्युतिः ॥ ६७ ॥
सूतपुत्रं चतुःषष्ट्या विद्ध्वा सिंह इवानदत्।
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् चन्द्रमाके समान कान्तिमान् सात्यकिने भी दूसरा धनुष हाथमें लेकर सूतपुत्र कर्णको चौंसठ बाणोंसे घायल करके सिंहके समान गर्जना की॥६७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भल्लाभ्यां साधुमुक्ताभ्यां छित्त्वा कर्णस्य कार्मुकम् ॥ ६८ ॥
पुनः कर्णं त्रिभिर्बाणैर्बाह्वोरुरसि चार्पयत्।
मूलम्
भल्लाभ्यां साधुमुक्ताभ्यां छित्त्वा कर्णस्य कार्मुकम् ॥ ६८ ॥
पुनः कर्णं त्रिभिर्बाणैर्बाह्वोरुरसि चार्पयत्।
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद उन्होंने अच्छी तरह छोड़े हुए दो भल्लोंद्वारा कर्णके धनुषको काटकर पुनः तीन बाणोंद्वारा कर्णकी दोनों भुजाओं तथा छातीमें भी चोट पहुँचायी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो दुर्योधनो द्रोणो राजा चैव जयद्रथः ॥ ६९ ॥
निमज्जमानं राधेयमुज्जह्रुः सात्यकार्णवात् ।
मूलम्
ततो दुर्योधनो द्रोणो राजा चैव जयद्रथः ॥ ६९ ॥
निमज्जमानं राधेयमुज्जह्रुः सात्यकार्णवात् ।
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् दुर्योधन, द्रोणाचार्य तथा राजा जयद्रथने डूबते हुए राधानन्दन कर्णका सात्यकिरूपी समुद्रसे उद्धार किया॥६९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पत्त्यश्वरथमातङ्गास्त्वदीयाः शतशोऽपरे ॥ ७० ॥
कर्णमेवाभ्यधावन्त त्रास्यमानाः प्रहारिणः ।
मूलम्
पत्त्यश्वरथमातङ्गास्त्वदीयाः शतशोऽपरे ॥ ७० ॥
कर्णमेवाभ्यधावन्त त्रास्यमानाः प्रहारिणः ।
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय आपकी सेनाके अन्य सैकड़ों पैदल, घुड़सवार, रथी और गजारोही योद्धा सात्यकिसे संत्रस्त होकर कर्णके ही पीछे दौड़े गये॥७०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नश्च भीमश्च सौभद्रोऽर्जुन एव च ॥ ७१ ॥
नकुलः सहदेवश्च सात्यकिं जुगुपू रणे।
मूलम्
धृष्टद्युम्नश्च भीमश्च सौभद्रोऽर्जुन एव च ॥ ७१ ॥
नकुलः सहदेवश्च सात्यकिं जुगुपू रणे।
अनुवाद (हिन्दी)
उधर धृष्टद्युम्न, भीमसेन, अभिमन्यु, अर्जुन, नकुल तथा सहदेवने रणक्षेत्रमें सात्यकिका संरक्षण आरम्भ किया॥७१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमेष महारौद्रः क्षयार्थं सर्वधन्विनाम् ॥ ७२ ॥
तावकानां परेषां च त्यक्त्वा प्राणानभूद् रणः।
मूलम्
एवमेष महारौद्रः क्षयार्थं सर्वधन्विनाम् ॥ ७२ ॥
तावकानां परेषां च त्यक्त्वा प्राणानभूद् रणः।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! इस प्रकार आपके तथा शत्रुपक्षके सम्पूर्ण धनुर्धरोंके विनाशके लिये उनमें परस्पर प्राणोंकी परवा न करके अत्यन्त भयंकर युद्ध होने लगा॥७२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पदातिरथनागाश्वा गजाश्वरथपत्तिभिः ॥ ७३ ॥
रथिनो नागपत्त्यश्वै रथपत्ती रथद्विपैः।
मूलम्
पदातिरथनागाश्वा गजाश्वरथपत्तिभिः ॥ ७३ ॥
रथिनो नागपत्त्यश्वै रथपत्ती रथद्विपैः।
अनुवाद (हिन्दी)
पैदल, रथ, हाथी और घोड़े क्रमशः हाथी, घोड़े, रथ और पैदलोंके साथ युद्ध करने लगे। रथी हाथियों, पैदलों और घोड़ोंके साथ भिड़ गये। रथी और पैदल सैनिक रथियों और हाथियोंका सामना करने लगे॥७३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अश्वैरश्वा गजैर्नागा रथिनो रथिभिः सह ॥ ७४ ॥
संयुक्ताः समदृश्यन्त पत्तयश्चापि पत्तिभिः।
मूलम्
अश्वैरश्वा गजैर्नागा रथिनो रथिभिः सह ॥ ७४ ॥
संयुक्ताः समदृश्यन्त पत्तयश्चापि पत्तिभिः।
अनुवाद (हिन्दी)
घोड़ोंसे घोड़े, हाथियोंसे हाथी, रथियोंसे रथी और पैदलोंसे पैदल जूझते दिखायी दे रहे थे॥७४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं सुकलिलं युद्धमासीत् क्रव्यादहर्षणम्।
महद्भिस्तैरभीतानां यमराष्ट्रविवर्धनम् ॥ ७५ ॥
मूलम्
एवं सुकलिलं युद्धमासीत् क्रव्यादहर्षणम्।
महद्भिस्तैरभीतानां यमराष्ट्रविवर्धनम् ॥ ७५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार उन निर्भीक सैनिकोंका महान् शक्तिशाली विपक्षी योद्धाओंके साथ अत्यन्त घमासान युद्ध हो रहा था, जो कच्चा मांस खानेवाले पशु-पक्षियों तथा पिशाचोंके हर्षकी वृद्धि और यमराजके राष्ट्रकी समृद्धि करनेवाला था॥७५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो हता नररथवाजिकुञ्जरै-
रनेकशो द्विपरथपत्तिवाजिनः ।
गजैर्गजा रथिभिरुदायुधा रथा
हयैर्हयाः पत्तिगणैश्च पत्तयः ॥ ७६ ॥
मूलम्
ततो हता नररथवाजिकुञ्जरै-
रनेकशो द्विपरथपत्तिवाजिनः ।
गजैर्गजा रथिभिरुदायुधा रथा
हयैर्हयाः पत्तिगणैश्च पत्तयः ॥ ७६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय पैदल, रथी, घुड़सवार और हाथीसवारोंके द्वारा बहुत-से हाथीसवार, रथी, पैदल और घुड़सवार मारे गये। हाथियोंने हाथियोंको, रथियोंने शस्त्र उठाये हुए रथियोंको, घुड़सवारोंने घुड़सवारोंको और पैदल योद्धाओंने पैदल योद्धाओंको मार गिराया॥७६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथैर्द्विपा द्विरदवरैर्महाहया
हयैर्नरा वररथिभिश्च वाजिनः ।
निरस्तजिह्वादशनेक्षणाः क्षितौ
क्षयं गताः प्रमथितवर्मभूषणाः ॥ ७७ ॥
मूलम्
रथैर्द्विपा द्विरदवरैर्महाहया
हयैर्नरा वररथिभिश्च वाजिनः ।
निरस्तजिह्वादशनेक्षणाः क्षितौ
क्षयं गताः प्रमथितवर्मभूषणाः ॥ ७७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
रथियोंने हाथियोंको, गजराजोंने बड़े-बड़े घोड़ोंको, घुड़सवारोंने पैदलोंको तथा श्रेष्ठ रथियोंने घुड़सवारोंको धराशायी कर दिया। उनकी जिह्वा, दाँत और नेत्र—ये सब बाहर निकल आये थे। कवच और आभूषण टुकड़े टुकड़े होकर पड़े थे। ऐसी अवस्थामें वे सब योद्धा पृथ्वीपर गिरकर नष्ट हो गये थे॥७७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा परैर्बहुकरणैर्वरायुधै-
र्हता गताः प्रतिभयदर्शनाः क्षितिम्।
विपोथिता हयगजपादताडिता
भृशाकुला रथमुखनेमिभिः क्षताः ॥ ७८ ॥
मूलम्
तथा परैर्बहुकरणैर्वरायुधै-
र्हता गताः प्रतिभयदर्शनाः क्षितिम्।
विपोथिता हयगजपादताडिता
भृशाकुला रथमुखनेमिभिः क्षताः ॥ ७८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुओंके पास बहुत-से साधन थे। उनके हाथमें उत्तम अस्त्र-शस्त्र थे। उनके द्वारा मारे जाकर पृथ्वीपर पड़े हुए सैनिक बड़े भयंकर दिखायी देते थे। कितने ही योद्धा हाथियों और घोड़ोंके पैरोंसे आहत होकर धरतीपर गिर पड़ते थे। कितने ही बड़े-बड़े रथोंके पहियोंसे कुचलकर क्षत-विक्षत हो अत्यन्त व्याकुल हो रहे थे॥७८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रमोदने श्वापदपक्षिरक्षसां
जनक्षये वर्तति तत्र दारुणे।
महाबलास्ते कुपिताः परस्परं
निषूदयन्तः प्रविचेरुरोजसा ॥ ७९ ॥
मूलम्
प्रमोदने श्वापदपक्षिरक्षसां
जनक्षये वर्तति तत्र दारुणे।
महाबलास्ते कुपिताः परस्परं
निषूदयन्तः प्रविचेरुरोजसा ॥ ७९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ वह भयंकर जनसंहार हिंसक जन्तुओं, पक्षियों तथ राक्षसोंको आनन्द प्रदान करनेवाला था। उसमें कुपित हुए वे महाबली शूरवीर एक-दूसरेको मारते हुए बलपूर्वक विचरण कर रहे थे॥७९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो बले भृशलुलिते परस्परं
निरीक्षमाणे रुधिरौघसम्प्लुते ।
दिवाकरेऽस्तंगिरिमास्थिते शनै-
रुभे प्रयाते शिबिराय भारत ॥ ८० ॥
मूलम्
ततो बले भृशलुलिते परस्परं
निरीक्षमाणे रुधिरौघसम्प्लुते ।
दिवाकरेऽस्तंगिरिमास्थिते शनै-
रुभे प्रयाते शिबिराय भारत ॥ ८० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! दोनों ओरकी सेनाएँ अत्यन्त आहत होकर खूनसे लथपथ हो एक-दूसरीकी ओर देख रही थीं, इतनेहीमें सूर्यदेव अस्ताचलको जा पहुँचे। फिर तो वे दोनों ही धीरे-धीरे अपने-अपने शिविरकी ओर चल दीं॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि संशप्तकवधपर्वणि द्वादशदिवसावहारे द्वात्रिंशोऽध्यायः ॥ ३२ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत संशप्तकवधपर्वमें बारहवें दिनके युद्धमें सेनाका युद्धसे विरत हो अपने शिविरको प्रस्थानविषयक बत्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥३२॥