भागसूचना
षड्विंशोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
भीमसेनका भगदत्तके हाथीके साथ युद्ध, हाथी और भगदत्तका भयानक पराक्रम
मूलम् (वचनम्)
धृतराष्ट्र उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेष्वेवं संनिवृत्तेषु प्रत्युद्यातेषु भागशः।
कथं युयुधिरे पार्था मामकाश्च तरस्विनः ॥ १ ॥
किमर्जुनश्चाप्यकरोत् संशप्तकबलं प्रति ।
संशप्तका वा पार्थस्य किमकुर्वत संजय ॥ २ ॥
मूलम्
तेष्वेवं संनिवृत्तेषु प्रत्युद्यातेषु भागशः।
कथं युयुधिरे पार्था मामकाश्च तरस्विनः ॥ १ ॥
किमर्जुनश्चाप्यकरोत् संशप्तकबलं प्रति ।
संशप्तका वा पार्थस्य किमकुर्वत संजय ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृतराष्ट्रने पूछा— संजय! इस प्रकार जब सैनिक पृथक्-पृथक् युद्धके लिये लौटे और कौरव-योद्धा आगे बढ़कर सामना करनेके लिये उद्यत हुए, उस समय मेरे तथा कुन्तीके वेगशाली पुत्रोंने आपसमें किस प्रकार युद्ध किया? संशप्तकोंकी सेनापर चढ़ाई करके अर्जुनने क्या किया? अथवा संशप्तकोंने अर्जुनका क्या कर लिया?॥१-२॥
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा तेषु निवृत्तेषु प्रत्युद्यातेषु भागशः।
स्वयमभ्यद्रवद् भीमं नागानीकेन ते सुतः ॥ ३ ॥
मूलम्
तथा तेषु निवृत्तेषु प्रत्युद्यातेषु भागशः।
स्वयमभ्यद्रवद् भीमं नागानीकेन ते सुतः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजयने कहा— राजन्! इस प्रकार जब पाण्डव-सैनिक पृथक्-पृथक् युद्धके लिये लौटे और कौरव-योद्धा आगे बढ़कर सामना करनेके लिये उद्यत हुए, उस समय आपके पुत्र दुर्योधनने हाथियोंकी सेना साथ लेकर स्वयं ही भीमसेनपर आक्रमण किया॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स नाग इव नागेन गोवृषेणेव गोवृषः।
समाहूतः स्वयं राज्ञा नागानीकमुपाद्रवत् ॥ ४ ॥
मूलम्
स नाग इव नागेन गोवृषेणेव गोवृषः।
समाहूतः स्वयं राज्ञा नागानीकमुपाद्रवत् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे हाथीसे हाथी और साँड़से साँड़ भिड़ जाता है, उसी प्रकार राजा दुर्योधनके ललकारनेपर भीमसेन स्वयं ही हाथियोंकी सेनापर टूट पड़े॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स युद्धकुशलः पार्थो बाहुवीर्येण चान्वितः।
अभिनत् कुञ्जरानीकमचिरेणैव मारिष ॥ ५ ॥
मूलम्
स युद्धकुशलः पार्थो बाहुवीर्येण चान्वितः।
अभिनत् कुञ्जरानीकमचिरेणैव मारिष ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आदरणीय नरेश! कुन्तीकुमार भीमसेन युद्धमें कुशल तथा बाहुबलसे सम्पन्न हैं। उन्होंने थोड़ी ही देरमें हाथियोंकी उस सेनाको विदीर्ण कर डाला॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते गजा गिरिसंकाशाः क्षरन्तः सर्वतो मदम्।
भीमसेनस्य नाराचैर्विमुखा विमदीकृताः ॥ ६ ॥
मूलम्
ते गजा गिरिसंकाशाः क्षरन्तः सर्वतो मदम्।
भीमसेनस्य नाराचैर्विमुखा विमदीकृताः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे पर्वतके समान विशालकाय हाथी सब ओर मदकी धारा बहा रहे थे; परंतु भीमसेनके नाराचोंसे विद्ध होनेपर उनका सारा मद उतर गया। वे युद्धसे विमुख होकर भाग चले॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विधमेदभ्रजालानि यथा वायुः समुद्धतः।
व्यधमत् तान्यनीकानि तथैव पवनात्मजः ॥ ७ ॥
मूलम्
विधमेदभ्रजालानि यथा वायुः समुद्धतः।
व्यधमत् तान्यनीकानि तथैव पवनात्मजः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे जोरसे उठी हुई वायु मेघोंकी घटाको छिन्न-भिन्न कर डालती है, उसी प्रकार पवनपुत्र भीमसेनने उन समस्त गजसेनाओंको तहस-नहस कर डाला॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तेषु विसृजन् बाणान् भीमो नागेष्वशोभत।
भुवनेष्विव सर्वेषु गभस्तीनुदितो रविः ॥ ८ ॥
मूलम्
स तेषु विसृजन् बाणान् भीमो नागेष्वशोभत।
भुवनेष्विव सर्वेषु गभस्तीनुदितो रविः ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे उदित हुए सूर्य समस्त भुवनोंमें अपनी किरणोंका विस्तार करते हैं, उसी प्रकार भीमसेन उन हाथियोंपर बाणोंकी वर्षा करते हुए शोभा पा रहे थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते भीमबाणाभिहताः संस्यूता विबभुर्गजाः।
गभस्तिभिरिवार्कस्य व्योम्नि नानाबलाहकाः ॥ ९ ॥
मूलम्
ते भीमबाणाभिहताः संस्यूता विबभुर्गजाः।
गभस्तिभिरिवार्कस्य व्योम्नि नानाबलाहकाः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे भीमके बाणोंसे मारे जाकर परस्पर सटे हुए हाथी आकाशमें सूर्यकी किरणोंसे गुँथे हुए नाना प्रकारके मेघोंकी भाँति शोभा पा रहे थे॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा गजानां कदनं कुर्वाणमनिलात्मजम्।
क्रुद्धो दुर्योधनोऽभ्येत्य प्रत्यविध्यच्छितैः शरैः ॥ १० ॥
मूलम्
तथा गजानां कदनं कुर्वाणमनिलात्मजम्।
क्रुद्धो दुर्योधनोऽभ्येत्य प्रत्यविध्यच्छितैः शरैः ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार गजसेनाका संहार करते हुए पवनपुत्र भीमसेनके पास आकर क्रोधमें भरे हुए दुर्योधनने उन्हें पैने बाणोंसे बींध डाला॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः क्षणेन क्षितिपं क्षतजप्रतिमेक्षणः।
क्षयं निनीषुर्निशितैर्भीमो विव्याध पत्रिभिः ॥ ११ ॥
मूलम्
ततः क्षणेन क्षितिपं क्षतजप्रतिमेक्षणः।
क्षयं निनीषुर्निशितैर्भीमो विव्याध पत्रिभिः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह देख भीमसेनकी आँखें खूनके समान लाल हो गयीं। उन्होंने क्षणभरमें राजा दुर्योधनका नाश करनेकी इच्छासे पंखयुक्त पैने बाणोंद्वारा उसे बींध डाला॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स शराचितसर्वाङ्गः क्रुद्धो विव्याध पाण्डवम्।
नाराचैरर्करश्म्याभैर्भीमसेनं स्मयन्निव ॥ १२ ॥
मूलम्
स शराचितसर्वाङ्गः क्रुद्धो विव्याध पाण्डवम्।
नाराचैरर्करश्म्याभैर्भीमसेनं स्मयन्निव ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दुर्योधनके सारे अंग बाणोंसे व्याप्त हो गये थे। अतः उसने कुपित होकर सूर्यकी किरणोंके समान तेजस्वी नाराचोंद्वारा पाण्डुनन्दन भीमसेनको मुसकराते हुए-से घायल कर दिया॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य नागं मणिमयं रत्नचित्रध्वजे स्थितम्।
भल्लाभ्यां कार्मुकं चैव क्षिप्रं चिच्छेद पाण्डवः ॥ १३ ॥
मूलम्
तस्य नागं मणिमयं रत्नचित्रध्वजे स्थितम्।
भल्लाभ्यां कार्मुकं चैव क्षिप्रं चिच्छेद पाण्डवः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! उसके रत्ननिर्मित विचित्र ध्वजके ऊपर मणिमय नाग विराजमान था। उसे पाण्डुनन्दन भीमने शीघ्र ही दो भल्लोंसे काट गिराया और उसके धनुषके भी टुकड़े-टुकड़े कर दिये॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्योधनं पीड्यमानं दृष्ट्वा भीमेन मारिष।
चुक्षोभयिषुरभ्यागादङ्गो मातङ्गमास्थितः ॥ १४ ॥
मूलम्
दुर्योधनं पीड्यमानं दृष्ट्वा भीमेन मारिष।
चुक्षोभयिषुरभ्यागादङ्गो मातङ्गमास्थितः ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आर्य! भीमसेनके द्वारा दुर्योधनको पीड़ित होते देख क्षोभमें डालनेकी इच्छासे मतवाले हाथीपर बैठे हुए राजा अंग उनका सामना करनेके लिये आ गये॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तं नागेन्द्रमम्बुदप्रतिमस्वनम् ।
कुम्भान्तरे भीमसेनो नाराचैरार्दयद् भृशम् ॥ १५ ॥
मूलम्
तमापतन्तं नागेन्द्रमम्बुदप्रतिमस्वनम् ।
कुम्भान्तरे भीमसेनो नाराचैरार्दयद् भृशम् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह गजराज मेघके समान गर्जना करनेवाला था। उसे अपनी ओर आते देख भीमसेनने उसके कुम्भस्थलमें नाराचोंद्वारा बड़ी चोट पहुँचायी॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य कायं विनिर्भिद्य
न्यमज्जद् धरणीतले ।
ततः पपात द्विरदो
वज्राहत इवाचलः ॥ १६ ॥
मूलम्
तस्य कायं विनिर्भिद्य
न्यमज्जद् धरणीतले ।
ततः पपात द्विरदो
वज्राहत इवाचलः ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनका नाराच उस हाथीके शरीरको विदीर्ण करके धरतीमें समा गया, इससे वह गजराज वज्रके मारे हुए पर्वतकी भाँति पृथ्वीपर गिर पड़ा॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्यावर्जितनागस्य
म्लेच्छस्याधः पतिष्यतः ।
शिरश्चिच्छेद भल्लेन
क्षिप्रकारी वृकोदरः ॥ १७ ॥
मूलम्
तस्यावर्जितनागस्य
म्लेच्छस्याधः पतिष्यतः ।
शिरश्चिच्छेद भल्लेन
क्षिप्रकारी वृकोदरः ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह म्लेच्छजातीय अंग हाथीसे अलग नहीं हुआ था। उस हाथीके साथ-साथ वह नीचे गिरना ही चाहता था कि शीघ्रकारी भीमसेनने एक भल्लके द्वारा उसका सिर काट दिया॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिन् निपतिते वीरे सम्प्राद्रवत सा चमूः।
सम्भ्रान्ताश्वद्विपरथा पदातीनवमृद्नती ॥ १८ ॥
मूलम्
तस्मिन् निपतिते वीरे सम्प्राद्रवत सा चमूः।
सम्भ्रान्ताश्वद्विपरथा पदातीनवमृद्नती ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस वीरके धराशायी होते ही उसकी वह सारी सेना भागने लगी। घोड़े, हाथी तथा रथ सभी घबराहटमें पड़कर इधर-उधर चक्कर काटने लगे। वह सेना अपने ही पैदल सिपाहियोंको रौंदती हुई भाग रही थी॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेष्वनीकेषु भग्नेषु विद्रवत्सु समन्ततः।
प्राग्ज्योतिषस्ततो भीमं कुञ्जरेण समाद्रवत् ॥ १९ ॥
मूलम्
तेष्वनीकेषु भग्नेषु विद्रवत्सु समन्ततः।
प्राग्ज्योतिषस्ततो भीमं कुञ्जरेण समाद्रवत् ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार उन सेनाओंके व्यूह भंग होने तथा चारों ओर भागनेपर प्राग्ज्योतिषपुरके राजा भगदत्तने अपने हाथीके द्वारा भीमसेनपर धावा किया॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
येन नागेन मघवानजयद् दैत्यदानवान्।
तदन्वयेन नागेन भीमसेनमुपाद्रवत् ॥ २० ॥
मूलम्
येन नागेन मघवानजयद् दैत्यदानवान्।
तदन्वयेन नागेन भीमसेनमुपाद्रवत् ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इन्द्रने जिस ऐरावत हाथीके द्वारा दैत्यों और दानवोंपर विजय पायी थी, उसीके वंशमें उत्पन्न हुए गजराजपर आरूढ़ हो भगदत्तने भीमसेनपर चढ़ाई की थी॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स नागप्रवरो भीमं सहसा समुपाद्रवत्।
चरणाभ्यामथो द्वाभ्यां संहतेन करेण च ॥ २१ ॥
मूलम्
स नागप्रवरो भीमं सहसा समुपाद्रवत्।
चरणाभ्यामथो द्वाभ्यां संहतेन करेण च ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह गजराज अपने दो पैरों तथा सिकोड़ी हुई सूँड़के द्वारा सहसा भीमसेनपर टूट पड़ा॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
व्यावृत्तनयनः क्रुद्धः प्रमथन्निव पाण्डवम्।
वृकोदररथं साश्वमविशेषमचूर्णयत् ॥ २२ ॥
मूलम्
व्यावृत्तनयनः क्रुद्धः प्रमथन्निव पाण्डवम्।
वृकोदररथं साश्वमविशेषमचूर्णयत् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसके नेत्र सब ओर घूम रहे थे। वह क्रोधमें भरकर पाण्डुनन्दन भीमसेनको मानो मथ डालेगा, इस भावसे भीमसेनके रथकी ओर दौड़ा और उसे घोड़ोंसहित सामान्यतः चूर्ण कर दिया॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पद्भ्यां भीमोऽप्यथो धावंस्तस्य गात्रेष्वलीयत।
जानन्नञ्जलिकावेधं नापाक्रामत पाण्डवः ॥ २३ ॥
मूलम्
पद्भ्यां भीमोऽप्यथो धावंस्तस्य गात्रेष्वलीयत।
जानन्नञ्जलिकावेधं नापाक्रामत पाण्डवः ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेन पैदल दौड़कर उस हाथीके शरीरमें छिप गये। पाण्डुपुत्र भीम अंजलिकावेध1 जानते थे। इसलिये वहाँसे भागे नहीं॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गात्राभ्यन्तरगो भूत्वा करेणाताडयन्मुहुः ।
लालयामास तं नागं वधाकाङ्क्षिणमव्ययम् ॥ २४ ॥
मूलम्
गात्राभ्यन्तरगो भूत्वा करेणाताडयन्मुहुः ।
लालयामास तं नागं वधाकाङ्क्षिणमव्ययम् ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे उसके शरीरके नीचे होकर हाथसे बारंबार थपथपाते हुए वधकी आकांक्षा रखनेवाले उस अविनाशी गजराजको लाड़-प्यार करने लगे॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कुलालचक्रवन्नागस्तदा तूर्णमथाभ्रमत् ।
नागायुतबलः श्रीमान् कालयानो वृकोदरम् ॥ २५ ॥
मूलम्
कुलालचक्रवन्नागस्तदा तूर्णमथाभ्रमत् ।
नागायुतबलः श्रीमान् कालयानो वृकोदरम् ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय वह हाथी तुरंत ही कुम्हारके चाकके समान सब ओर घूमने लगा। उसमें दस हजार हाथियोंका बल था। वह शोभायमान गजराज भीमसेनको मार डालनेका प्रयत्न कर रहा था॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमोऽपि निष्क्रम्य ततः सुप्रतीकाग्रतोऽभवत्।
भीमं करेणावनम्य जानुभ्यामभ्यताडयत् ॥ २६ ॥
मूलम्
भीमोऽपि निष्क्रम्य ततः सुप्रतीकाग्रतोऽभवत्।
भीमं करेणावनम्य जानुभ्यामभ्यताडयत् ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेन भी उसके शरीरके नीचेसे निकलकर उस हाथीके सामने खड़े हो गये। उस समय हाथीने अपनी सूँड़से गिराकर उन्हें दोनों घुटनोंसे कुचल डालनेका प्रयत्न किया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ग्रीवायां वेष्टयित्वैनं स गजो हन्तुमैहत।
करवेष्टं भीमसेनो भ्रमं दत्त्वा व्यमोचयत् ॥ २७ ॥
मूलम्
ग्रीवायां वेष्टयित्वैनं स गजो हन्तुमैहत।
करवेष्टं भीमसेनो भ्रमं दत्त्वा व्यमोचयत् ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इतना ही नहीं, उस हाथीने उन्हें गलेमें लपेटकर मार डालनेकी चेष्टा की। तब भीमसेन उसे भ्रममें डालकर उसकी सूँड़के लपेटसे अपने-आपको छुड़ा लिया॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुनर्गात्राणि नागस्य प्रविवेश वृकोदरः।
यावत् प्रतिगजायातं स्वबले प्रत्यवैक्षत ॥ २८ ॥
मूलम्
पुनर्गात्राणि नागस्य प्रविवेश वृकोदरः।
यावत् प्रतिगजायातं स्वबले प्रत्यवैक्षत ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर भीमसेन पुनः उस हाथीके शरीरमें ही छिप गये और अपनी सेनाकी ओरसे उस हाथीका सामना करनेके लिये किसी दूसरे हाथीके आगमनकी प्रतीक्षा करने लगे॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमोऽपि नागगात्रेभ्यो विनिःसृत्यापयाज्जवात् ।
ततः सर्वस्य सैन्यस्य नादः समभवन्महान् ॥ २९ ॥
मूलम्
भीमोऽपि नागगात्रेभ्यो विनिःसृत्यापयाज्जवात् ।
ततः सर्वस्य सैन्यस्य नादः समभवन्महान् ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
थोड़ी देर बाद भीम हाथीके शरीरसे निकलकर बड़े वेगसे भाग गये। उस समय सारी सेनामें बड़े जोरसे कोलाहल होने लगा॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहो धिङ् निहतो भीमः कुञ्जरेणेति मारिष।
तेन नागेन संत्रस्ता पाण्डवानामनीकिनी ॥ ३० ॥
सहसाभ्यद्रवद् राजन् यत्र तस्थौ वृकोदरः।
मूलम्
अहो धिङ् निहतो भीमः कुञ्जरेणेति मारिष।
तेन नागेन संत्रस्ता पाण्डवानामनीकिनी ॥ ३० ॥
सहसाभ्यद्रवद् राजन् यत्र तस्थौ वृकोदरः।
अनुवाद (हिन्दी)
आर्य! उस समय सबके मुँहसे यही बात निकल रही थी—‘अहो! इस हाथीने भीमसेनको मार डाला, यह कितनी बुरी बात है।’ राजन्! उस हाथीसे भयभीत हो पाण्डवोंकी सारी सेना सहसा वहीं भाग गयी, जहाँ भीमसेन खड़े थे॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो युधिष्ठिरो राजा हतं मत्वा वृकोदरम् ॥ ३१ ॥
भगदत्तं सपाञ्चाल्यः सर्वतः समवारयत्।
मूलम्
ततो युधिष्ठिरो राजा हतं मत्वा वृकोदरम् ॥ ३१ ॥
भगदत्तं सपाञ्चाल्यः सर्वतः समवारयत्।
अनुवाद (हिन्दी)
तब राजा युधिष्ठिरने भीमसेनको मारा गया जानकर पांचालदेशीय सैनिकोंको साथ ले भगदत्तको चारों ओरसे घेर लिया॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं रथं रथिनां श्रेष्ठाः परिवार्य परंतपाः ॥ ३२ ॥
अवाकिरन् शरैस्तीक्ष्णैः शतशोऽथ सहस्रशः।
मूलम्
तं रथं रथिनां श्रेष्ठाः परिवार्य परंतपाः ॥ ३२ ॥
अवाकिरन् शरैस्तीक्ष्णैः शतशोऽथ सहस्रशः।
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुओंको संताप देनेवाले वे श्रेष्ठ रथी उन महारथी भगदत्तको सब ओरसे घेरकर उनके ऊपर सैकड़ों और हजारों पैने बाणोंकी वर्षा करने लगे॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स विघातं पृषत्कानामङ्कुशेन समाहरन् ॥ ३३ ॥
गजेन पाण्डुपञ्चालान् व्यधमत् पर्वतेश्वरः।
मूलम्
स विघातं पृषत्कानामङ्कुशेन समाहरन् ॥ ३३ ॥
गजेन पाण्डुपञ्चालान् व्यधमत् पर्वतेश्वरः।
अनुवाद (हिन्दी)
पर्वतराज भगदत्तने उन बाणोंके प्रहारका अंकुशद्वारा निवारण किया और हाथीको आगे बढ़ाकर पाण्डव तथा पांचाल योद्धाओंको कुचल डाला॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदद्भुतमपश्याम भगदत्तस्य संयुगे ॥ ३४ ॥
तथा वृद्धस्य चरितं कुञ्जरेण विशाम्पते।
मूलम्
तदद्भुतमपश्याम भगदत्तस्य संयुगे ॥ ३४ ॥
तथा वृद्धस्य चरितं कुञ्जरेण विशाम्पते।
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! उस युद्धस्थलमें हाथीके द्वारा बूढ़े राजा भगदत्तका हमलोगोंने अद्भुत पराक्रम देखा॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो राजा दशार्णानां प्राग्ज्योतिषमुपाद्रवत् ॥ ३५ ॥
तिर्यग्यातेन नागेन समदेनाशुगामिना ।
मूलम्
ततो राजा दशार्णानां प्राग्ज्योतिषमुपाद्रवत् ॥ ३५ ॥
तिर्यग्यातेन नागेन समदेनाशुगामिना ।
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् दशार्णराजने मदस्रावी, शीघ्रगामी तथा तिरछी दिशा (पार्श्वभाग)-की ओरसे आक्रमण करनेवाले गजराजके द्वारा भगदत्तपर धावा किया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तयोर्युद्धं समभवन्नागयोर्भीमरूपयोः ॥ ३६ ॥
सपक्षयोः पर्वतयोर्यथा सद्रुमयोः पुरा।
मूलम्
तयोर्युद्धं समभवन्नागयोर्भीमरूपयोः ॥ ३६ ॥
सपक्षयोः पर्वतयोर्यथा सद्रुमयोः पुरा।
अनुवाद (हिन्दी)
वे दोनों हाथी बड़े भयंकर रूपवाले थे। उन दोनोंका युद्ध वैसा ही प्रतीत हुआ, जैसा कि पूर्वकालमें पंखयुक्त एवं वृक्षावलीसे विभूषित दो पर्वतोंमें युद्ध हुआ करता था॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्राग्ज्योतिषपतेर्नागः संनिवृत्यापसृत्य च ॥ ३७ ॥
पार्श्वे दशार्णाधिपतेर्भित्त्वा नागमपातयत् ।
मूलम्
प्राग्ज्योतिषपतेर्नागः संनिवृत्यापसृत्य च ॥ ३७ ॥
पार्श्वे दशार्णाधिपतेर्भित्त्वा नागमपातयत् ।
अनुवाद (हिन्दी)
प्राग्ज्योतिषनरेशके हाथीने लौटकर और पीछे हटकर दशार्णराजके हाथीके पार्श्वभागमें गहरा आघात किया और उसे विदीर्ण करके मार गिराया॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तोमरैः सूर्यरश्म्याभैर्भगदत्तोऽथ सप्तभिः ॥ ३८ ॥
जघान द्विरदस्थं तं शत्रुं प्रचलितासनम्।
मूलम्
तोमरैः सूर्यरश्म्याभैर्भगदत्तोऽथ सप्तभिः ॥ ३८ ॥
जघान द्विरदस्थं तं शत्रुं प्रचलितासनम्।
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् राजा भगदत्तने सूर्यकी किरणोंके समान चमकीले सात तोमरोंद्वारा हाथीपर बैठे हुए शत्रु दशार्णराजको, जिसका आसन विचलित हो गया था, मार डाला॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
व्यवच्छिद्य तु राजानं भगदत्तं युधिष्ठिरः ॥ ३९ ॥
रथानीकेन महता सर्वतः पर्यवारयत्।
मूलम्
व्यवच्छिद्य तु राजानं भगदत्तं युधिष्ठिरः ॥ ३९ ॥
रथानीकेन महता सर्वतः पर्यवारयत्।
अनुवाद (हिन्दी)
तब युधिष्ठिरने राजा भगदत्तको अपने बाणोंसे घायल करके विशाल रथसेनाके द्वारा सब ओरसे घेर लिया॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स कुञ्जरस्थो रथिभिः शुशुभे सर्वतो वृतः ॥ ४० ॥
पर्वते वनमध्यस्थो ज्वलन्निव हुताशनः।
मूलम्
स कुञ्जरस्थो रथिभिः शुशुभे सर्वतो वृतः ॥ ४० ॥
पर्वते वनमध्यस्थो ज्वलन्निव हुताशनः।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे वनके भीतर पर्वतके शिखरपर दावानल प्रज्वलित हो रहा हो, उसी प्रकार सब ओर रथियोंसे घिरकर हाथीकी पीठपर बैठे हुए राजा भगदत्त सुशोभित हो रहे थे॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मण्डंल सर्वतः श्लिष्टं रथिनामुग्रधन्विनाम् ॥ ४१ ॥
किरतां शरवर्षाणि स नागः पर्यवर्तत।
मूलम्
मण्डंल सर्वतः श्लिष्टं रथिनामुग्रधन्विनाम् ॥ ४१ ॥
किरतां शरवर्षाणि स नागः पर्यवर्तत।
अनुवाद (हिन्दी)
बाणोंकी वर्षा करते हुए भयंकर धनुर्धर रथियोंका मण्डल उस हाथीपर सब ओरसे आक्रमण कर रहा था और वह हाथी चारों ओर चक्कर काट रहा था॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः प्राग्ज्योतिषो राजा परिगृह्य महागजम् ॥ ४२ ॥
प्रेषयामास सहसा युयुधानरथं प्रति।
मूलम्
ततः प्राग्ज्योतिषो राजा परिगृह्य महागजम् ॥ ४२ ॥
प्रेषयामास सहसा युयुधानरथं प्रति।
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय प्राग्ज्योतिषपुरके राजाने उस महान् गजराजको सब ओरसे काबूमें करके सहसा सात्यकिके रथकी ओर बढ़ाया॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिनेः पौत्रस्य तु रथं परिगृह्य महाद्विपः ॥ ४३ ॥
अभिचिक्षेप वेगेन युयुधानस्त्वपाक्रमत् ।
मूलम्
शिनेः पौत्रस्य तु रथं परिगृह्य महाद्विपः ॥ ४३ ॥
अभिचिक्षेप वेगेन युयुधानस्त्वपाक्रमत् ।
अनुवाद (हिन्दी)
युयुधान (सात्यकि) अपने रथको छोड़कर दूर हट गये और उस महान् गजराजने शिनिपौत्र सात्यकिके उस रथको सूँड़से पकड़कर बड़े वेगसे फेंक दिया॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बृहतः सैन्धवानश्वान् समुत्थाप्याथ सारथिः ॥ ४४ ॥
तस्थौ सात्यकिमासाद्य सम्प्लुतस्तं रथं प्रति।
मूलम्
बृहतः सैन्धवानश्वान् समुत्थाप्याथ सारथिः ॥ ४४ ॥
तस्थौ सात्यकिमासाद्य सम्प्लुतस्तं रथं प्रति।
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर सारथिने अपने रथके विशाल सिंधी घोड़ोंको उठाकर खड़ा किया और कूदकर रथपर जा चढ़ा। फिर रथसहित सात्यकिके पास जाकर खड़ा हो गया॥४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तु लब्ध्वान्तरं नागस्त्वरितो रथमण्डलात् ॥ ४५ ॥
निश्चक्राम ततः सर्वान् परिचिक्षेप पार्थिवान्।
मूलम्
स तु लब्ध्वान्तरं नागस्त्वरितो रथमण्डलात् ॥ ४५ ॥
निश्चक्राम ततः सर्वान् परिचिक्षेप पार्थिवान्।
अनुवाद (हिन्दी)
इसी बीचमें अवसर पाकर वह गजराज बड़ी उतावलीके साथ रथोंके घेरेसे पार निकल गया और समस्त राजाओंको उठा-उठाकर फेंकने लगा॥४५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते त्वाशुगतिना तेन त्रास्यमाना नरर्षभाः ॥ ४६ ॥
तमेकं द्विरदं संख्ये मेनिरे शतशो द्विपान्।
मूलम्
ते त्वाशुगतिना तेन त्रास्यमाना नरर्षभाः ॥ ४६ ॥
तमेकं द्विरदं संख्ये मेनिरे शतशो द्विपान्।
अनुवाद (हिन्दी)
उस शीघ्रगामी गजराजसे डराये हुए नरश्रेष्ठ नरेश युद्धस्थलमें उस एकको ही सैकड़ों हाथियोंके समान मानने लगे॥४६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते गजस्थेन काल्यन्ते भगदत्तेन पाण्डवाः ॥ ४७ ॥
ऐरावतस्थेन यथा देवराजेन दानवाः।
मूलम्
ते गजस्थेन काल्यन्ते भगदत्तेन पाण्डवाः ॥ ४७ ॥
ऐरावतस्थेन यथा देवराजेन दानवाः।
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे देवराज इन्द्र ऐरावत हाथीपर बैठकर दानवोंका नाश करते हैं, उसी प्रकार अपने हाथीकी पीठपर बैठे हुए राजा भगदत्त पाण्डव-सैनिकोंका संहार कर रहे थे॥४७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां प्रद्रवतां भीमः पञ्चालानामितस्ततः ॥ ४८ ॥
गजवाजिकृतः शब्दः सुमहान् समजायत।
मूलम्
तेषां प्रद्रवतां भीमः पञ्चालानामितस्ततः ॥ ४८ ॥
गजवाजिकृतः शब्दः सुमहान् समजायत।
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय इधर-उधर भागते हुए पांचाल-सैनिकोंके हाथी-घोड़ोंका महान् भयंकर चीत्कार शब्द प्रकट हुआ॥४८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगदत्तेन समरे काल्यमानेषु पाण्डुषु ॥ ४९ ॥
प्राग्ज्योतिषमभिक्रुद्धः पुनर्भीमः समभ्ययात् ।
मूलम्
भगदत्तेन समरे काल्यमानेषु पाण्डुषु ॥ ४९ ॥
प्राग्ज्योतिषमभिक्रुद्धः पुनर्भीमः समभ्ययात् ।
अनुवाद (हिन्दी)
भगदत्तके द्वारा समरभूमिमें पाण्डव-सैनिकोंके खदेड़े जानेपर भीमसेन कुपित हो पुनः प्राग्ज्योतिषके स्वामी भगदत्तपर चढ़ आये॥४९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्याभिद्रवतो वाहान् हस्तमुक्तेन वारिणा ॥ ५० ॥
सिक्त्वा व्यत्रासयन्नागस्ते पार्थमहरंस्ततः ।
मूलम्
तस्याभिद्रवतो वाहान् हस्तमुक्तेन वारिणा ॥ ५० ॥
सिक्त्वा व्यत्रासयन्नागस्ते पार्थमहरंस्ततः ।
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय आक्रमण करनेवाले भीमसेनके घोड़ोंपर उस हाथीने सूँड़से जल छोड़कर उन्हें भयभीत कर दिया। फिर तो वे घोड़े भीमसेनको लेकर दूर भाग गये॥५०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तमभ्ययात् तूर्णं रुचिपर्वाऽऽकृतीसुतः ॥ ५१ ॥
समघ्नञ्छरवर्षेण रथस्थोऽन्तकसंनिभः ।
मूलम्
ततस्तमभ्ययात् तूर्णं रुचिपर्वाऽऽकृतीसुतः ॥ ५१ ॥
समघ्नञ्छरवर्षेण रथस्थोऽन्तकसंनिभः ।
अनुवाद (हिन्दी)
तब आकृतीपुत्र रुचिपर्वाने तुरंत ही उस हाथीपर आक्रमण किया। वह रथपर बैठकर साक्षात् यमराजके समान जान पड़ता था। उसने बाणोंकी वर्षासे उस हाथीको गहरी चोट पहुँचायी॥५१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स रुचिपर्वाणं शरेणानतपर्वणा ॥ ५२ ॥
सुपर्वा पर्वतपतिर्निन्ये वैवस्वतक्षयम् ।
मूलम्
ततः स रुचिपर्वाणं शरेणानतपर्वणा ॥ ५२ ॥
सुपर्वा पर्वतपतिर्निन्ये वैवस्वतक्षयम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
यह देख जिनके अंगोंकी जोड़ सुन्दर है उन पर्वतराज भगदत्तने झुकी हुई गाँठवाले बाणके द्वारा रुचिपर्वाको यमलोक पहुँचा दिया॥५२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिन् निपतिते वीरे सौभद्रो द्रौपदीसुतः ॥ ५३ ॥
चेकितानो धृष्टकेतुर्युयुत्सुश्चार्दयन् द्विपम् ।
त एनं शरधाराभिर्धाराभिरिव तोयदाः ॥ ५४ ॥
सिषिचुर्भैरवान् नादान् विनदन्तो जिघांसवः।
मूलम्
तस्मिन् निपतिते वीरे सौभद्रो द्रौपदीसुतः ॥ ५३ ॥
चेकितानो धृष्टकेतुर्युयुत्सुश्चार्दयन् द्विपम् ।
त एनं शरधाराभिर्धाराभिरिव तोयदाः ॥ ५४ ॥
सिषिचुर्भैरवान् नादान् विनदन्तो जिघांसवः।
अनुवाद (हिन्दी)
उस वीरके मारे जानेपर अभिमन्यु, द्रौपदीकुमार, चेकितान, धृष्टकेतु तथा युयुत्सुने भी उस हाथीको पीड़ा देना आरम्भ किया। ये सब लोग उस हाथीको मार डालनेकी इच्छासे विकट गर्जना करते हुए अपने बाणोंकी धारासे सींचने लगे, मानो मेघ पर्वतको जलकी धारासे नहला रहे हों॥५३-५४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः पार्ष्ण्यङ्कुशाङ्गुष्ठैः कृतिना चोदितो द्विपः ॥ ५५ ॥
प्रसारितकरः प्रायात् स्तब्धकर्णेक्षणो द्रुतम्।
सोऽधिष्ठाय पदा वाहान् युयुत्सोः सूतमारुजत् ॥ ५६ ॥
मूलम्
ततः पार्ष्ण्यङ्कुशाङ्गुष्ठैः कृतिना चोदितो द्विपः ॥ ५५ ॥
प्रसारितकरः प्रायात् स्तब्धकर्णेक्षणो द्रुतम्।
सोऽधिष्ठाय पदा वाहान् युयुत्सोः सूतमारुजत् ॥ ५६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर विद्वान् राजा भगदत्तने अपने पैरोंकी एँड़ी, अंकुश एवं अंगुष्ठसे प्रेरित करके हाथीको आगे बढ़ाया। फिर तो अपने कानोंको खड़े करके एकटक आँखोंसे देखते हुए सूँड़ फैलाकर उस हाथीने शीघ्रतापूर्वक धावा किया और युयुत्सुके घोड़ोंको पैरोंसे दबाकर उनके सारथिको मार डाला॥५५-५६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
युयुत्सुस्तु रथाद् राजन्नपाक्रामत् त्वरान्वितः।
ततः पाण्डवयोधास्ते नागराजं शरैर्द्रुतम् ॥ ५७ ॥
सिषिचुर्भैरवान् नादान् विनदन्तो जिघांसवः।
मूलम्
युयुत्सुस्तु रथाद् राजन्नपाक्रामत् त्वरान्वितः।
ततः पाण्डवयोधास्ते नागराजं शरैर्द्रुतम् ॥ ५७ ॥
सिषिचुर्भैरवान् नादान् विनदन्तो जिघांसवः।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! युयुत्सु बड़ी उतावलीके साथ रथसे उतरकर दूर चले गये थे। तत्पश्चात् पाण्डव-योद्धा उस गजराजको शीघ्रतापूर्वक मार डालनेकी इच्छासे भैरव-गर्जना करते हुए अपने बाणोंकी वर्षाद्वारा उसे सींचने लगे॥५७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुत्रस्तु तव सम्भ्रान्तः सौभद्रस्याप्लुतो रथम् ॥ ५८ ॥
स कुञ्जरस्थो विसृजन्निषूनरिषु पार्थिवः।
बभौ रश्मीनिवादित्यो भुवनेषु समुत्सृजन् ॥ ५९ ॥
मूलम्
पुत्रस्तु तव सम्भ्रान्तः सौभद्रस्याप्लुतो रथम् ॥ ५८ ॥
स कुञ्जरस्थो विसृजन्निषूनरिषु पार्थिवः।
बभौ रश्मीनिवादित्यो भुवनेषु समुत्सृजन् ॥ ५९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय घबराये हुए आपके पुत्र युयुत्सु अभिमन्युके रथपर जा बैठे। हाथीकी पीठपर बैठे हुए राजा भगदत्त शत्रुओंपर बाण-वर्षा करते हुए सम्पूर्ण लोकोंमें अपनी किरणोंका विस्तार करनेवाले सूर्यके समान शोभा पा रहे थे॥५८-५९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमार्जुनिर्द्वादशभिर्युयुत्सुर्दशभिः शरैः ।
त्रिभिस्त्रिभिर्द्रौपदेया धृष्टकेतुश्च विव्यधुः ॥ ६० ॥
मूलम्
तमार्जुनिर्द्वादशभिर्युयुत्सुर्दशभिः शरैः ।
त्रिभिस्त्रिभिर्द्रौपदेया धृष्टकेतुश्च विव्यधुः ॥ ६० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनकुमार अभिमन्युने बारह, युयुत्सुने दस और द्रौपदीके पुत्रों तथा धृष्टकेतुने तीन-तीन बाणोंसे भगदत्तके उस हाथीको घायल कर दिया॥६०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽतियत्नार्पितैर्बाणैराचितो द्विरदो बभौ ।
संस्यूत इव सूर्यस्य रश्मिभिर्जलदो महान् ॥ ६१ ॥
मूलम्
सोऽतियत्नार्पितैर्बाणैराचितो द्विरदो बभौ ।
संस्यूत इव सूर्यस्य रश्मिभिर्जलदो महान् ॥ ६१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अत्यन्त प्रयत्नपूर्वक चलाये हुए उन बाणोंसे हाथीका सारा शरीर व्याप्त हो रहा था। उस अवस्थामें वह सूर्यकी किरणोंमें पिरोये हुए महामेघके समान शोभा पा रहा था॥६१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नियन्तुः शिल्पयत्नाभ्यां प्रेरितोऽरिशरार्दितः ।
परिचिक्षेप तान् नागः स रिपून् सव्यदक्षिणम् ॥ ६२ ॥
मूलम्
नियन्तुः शिल्पयत्नाभ्यां प्रेरितोऽरिशरार्दितः ।
परिचिक्षेप तान् नागः स रिपून् सव्यदक्षिणम् ॥ ६२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महावतके कौशल और प्रयत्नसे प्रेरित होकर वह हाथी शत्रुओंके बाणोंसे पीड़ित होनेपर भी उन विपक्षियोंको दायें-बायें उठाकर फेंकने लगा॥६२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गोपाल इव दण्डेन यथा पशुगणान् वने।
आवेष्टयत तां सेनां भगदत्तस्तथा मुहुः ॥ ६३ ॥
मूलम्
गोपाल इव दण्डेन यथा पशुगणान् वने।
आवेष्टयत तां सेनां भगदत्तस्तथा मुहुः ॥ ६३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे ग्वाला जंगलमें पशुओंको डंडेसे हाँकता है, उसी प्रकार भगदत्तने पाण्डव-सेनाको बार-बार घेर लिया॥६३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षिप्रं श्येनाभिपन्नानां वायसानामिव स्वनः।
बभूव पाण्डवेयानां भृशं विद्रवतां स्वनः ॥ ६४ ॥
मूलम्
क्षिप्रं श्येनाभिपन्नानां वायसानामिव स्वनः।
बभूव पाण्डवेयानां भृशं विद्रवतां स्वनः ॥ ६४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे बाज पक्षीके चंगुलमें फँसे हुए अथवा उसके आक्रमणसे त्रस्त हुए कौओंमें शीघ्र ही काँव-काँवका कोलाहल होने लगता है, उसी प्रकार भागते हुए पाण्डव योद्धाओंका आर्तनाद जोर-जोरसे सुनायी दे रहा था॥६४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स नागराजः प्रवराङ्कुशाहतः
पुरा सपक्षोऽद्रिवरो यथा नृप।
भयं तदा रिपुषु समादधद् भृशं
वणिग्जनानां क्षुभितो यथार्णवः ॥ ६५ ॥
मूलम्
स नागराजः प्रवराङ्कुशाहतः
पुरा सपक्षोऽद्रिवरो यथा नृप।
भयं तदा रिपुषु समादधद् भृशं
वणिग्जनानां क्षुभितो यथार्णवः ॥ ६५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! उस समय विशाल अंकुशकी मार खाकर वह गजराज पूर्वकालके पंखधारी श्रेष्ठ पर्वतकी भाँति शत्रुओंको उसी प्रकार अत्यन्त भयभीत करने लगा, जैसे विक्षुब्ध महासागर व्यापारियोंको भयमें डाल देता है॥६५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो ध्वनिर्द्विरदरथाश्वपार्थिवै-
र्भयाद् द्रवद्भिर्जनितोऽतिभैरवः ।
क्षितिं वियद् द्यां विदिशो दिशस्तथा
समावृणोत् पार्थिव संयुगे ततः ॥ ६६ ॥
मूलम्
ततो ध्वनिर्द्विरदरथाश्वपार्थिवै-
र्भयाद् द्रवद्भिर्जनितोऽतिभैरवः ।
क्षितिं वियद् द्यां विदिशो दिशस्तथा
समावृणोत् पार्थिव संयुगे ततः ॥ ६६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! तदनन्तर भयसे भागते हुए हाथी, रथ, घोड़े तथा राजाओंने वहाँ अत्यन्त भयंकर आर्तनाद फैला दिया। उनके उस भयंकर शब्दने युद्धस्थलमें पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग तथा दिशा-विदिशाओंको सब ओरसे आच्छादित कर दिया॥६६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तेन नागप्रवरेण पार्थिवो
भृशं जगाहे द्विषतामनीकिनीम् ।
पुरा सुगुप्तां विबुधैरिवाहवे
विरोचनो देववरूथिनीमिव ॥ ६७ ॥
मूलम्
स तेन नागप्रवरेण पार्थिवो
भृशं जगाहे द्विषतामनीकिनीम् ।
पुरा सुगुप्तां विबुधैरिवाहवे
विरोचनो देववरूथिनीमिव ॥ ६७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस गजराजके द्वारा राजा भगदत्तने शत्रुओंकी सेनामें अच्छी तरह प्रवेश किया। जैसे पूर्वकालमें देवासुर-संग्रामके समय देवताओंद्वारा सुरक्षित देव-सेनामें विरोचनने प्रवेश किया था॥६७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भृशं ववौ ज्वलनसखो वियद् रजः
समावृणोन्मुहुरपि चैव सैनिकान् ।
तमेकनागं गणशो यथा गजान्
समन्ततो द्रुतमथ मेनिरे जनाः ॥ ६८ ॥
मूलम्
भृशं ववौ ज्वलनसखो वियद् रजः
समावृणोन्मुहुरपि चैव सैनिकान् ।
तमेकनागं गणशो यथा गजान्
समन्ततो द्रुतमथ मेनिरे जनाः ॥ ६८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय वहाँ बड़े चोरसे वायु चलने लगी। आकाशमें धूल छा गयी। उस धूलने समस्त सैनिकोंको ढक दिया। उस समय सब लोग चारों ओर दौड़ लगानेवाले उस एकमात्र हाथीको हाथियोंके झुंड-सा मानने लगे॥६८॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि संशप्तकवधपर्वणि भगदत्तयुद्धे षड्विंशोऽध्यायः ॥ २६ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत संशप्तकवधपर्वमें भगदत्तका युद्धविषयक छब्बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥२६॥
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हाथीके निचले भागमें कोई ऐसा स्थान होता है, जिसमें दोनों हाथोंके द्वारा थपथपानेसे हाथीको सुख मिलता है। इस अवस्थामें वह महावतके मारनेपर भी टस-से-मस नहीं होता। भीमसेन इस कलाको जानते थे। इसीका नाम ‘अंजलिकावेध’ है। ↩︎