०१५ शल्यापयाने

भागसूचना

पञ्चदशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

शल्यके साथ भीमसेनका युद्ध तथा शल्यकी पराजय

मूलम् (वचनम्)

धृतराष्ट्र उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

बहूनि सुविचित्राणि द्वन्द्वयुद्धानि संजय।
त्वयोक्तानि निशम्माहं स्पृहयामि सचक्षुषाम् ॥ १ ॥

मूलम्

बहूनि सुविचित्राणि द्वन्द्वयुद्धानि संजय।
त्वयोक्तानि निशम्माहं स्पृहयामि सचक्षुषाम् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतराष्ट्र बोले— संजय! तुमने बहुत-से अत्यन्त विचित्र द्वन्द्वयुद्धोंका वर्णन किया है, उनकी कथा सुनकर मैं नेत्रवाले लोगोंके सौभाग्यकी स्पृहा करता हूँ॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आश्चर्यभूतं लोकेषु कथयिष्यन्ति मानवाः।
कुरूणां पाण्डवानां च युद्धं देवासुरोपमम् ॥ २ ॥

मूलम्

आश्चर्यभूतं लोकेषु कथयिष्यन्ति मानवाः।
कुरूणां पाण्डवानां च युद्धं देवासुरोपमम् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

देवताओं और असुरोंके समान इस कौरव-पाण्डव-युद्धको संसारके मनुष्य अत्यन्त आश्चर्यकी वस्तु बतायेंगे॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न हि मे तृप्तिरस्तीह शृण्वतो युद्धमुत्तमम्।
तस्मादार्तायनेर्युद्धं सौभद्रस्य च शंस मे ॥ ३ ॥

मूलम्

न हि मे तृप्तिरस्तीह शृण्वतो युद्धमुत्तमम्।
तस्मादार्तायनेर्युद्धं सौभद्रस्य च शंस मे ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस समय इस उत्तम युद्ध-वृत्तान्तको सुनकर मुझे तृप्ति नहीं हो रही है; अतः शल्य और सुभद्राकुमारके युद्धका वृत्तान्त मुझसे कहो॥३॥

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

सादितं प्रेक्ष्य यन्तारं शल्यः सर्वायसीं गदाम्।
समुत्क्षिप्य नदन् क्रुद्धः प्रचस्कन्द रथोत्तमात् ॥ ४ ॥

मूलम्

सादितं प्रेक्ष्य यन्तारं शल्यः सर्वायसीं गदाम्।
समुत्क्षिप्य नदन् क्रुद्धः प्रचस्कन्द रथोत्तमात् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजयने कहा— राजन्! राजा शल्य अपने सारथिको मारा गया देख कुपित हो उठे और पूर्णतः लोहेकी बनी हुई गदा उठाकर गर्जते हुए अपने उत्तम रथसे कूद पड़े॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं दीप्तमिव कालाग्निं दण्डहस्तमिवान्तकम्।
जवेनाभ्यपतद् भीमः प्रगृह्य महतीं गदाम् ॥ ५ ॥

मूलम्

तं दीप्तमिव कालाग्निं दण्डहस्तमिवान्तकम्।
जवेनाभ्यपतद् भीमः प्रगृह्य महतीं गदाम् ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्हें प्रलयकालकी प्रज्वलित अग्नि तथा दण्डधारी यमराजके समान आते देख भीमसेन विशाल गदा हाथमें लेकर बड़े वेगसे उनकी ओर दौड़े॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सौभद्रोऽप्यशनिप्रख्यां प्रगृह्य महतीं गदाम्।
एह्येहीत्यब्रवीच्छल्यं यत्नाद् भीमेन वारितः ॥ ६ ॥

मूलम्

सौभद्रोऽप्यशनिप्रख्यां प्रगृह्य महतीं गदाम्।
एह्येहीत्यब्रवीच्छल्यं यत्नाद् भीमेन वारितः ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उधरसे अभिमन्यु भी वज्रके समान विशाल गदा हाथमें लेकर आ पहुँचा और ‘आओ, आओ’ कहकर शल्यको ललकारने लगा। उस समय भीमसेनने बड़े प्रयत्नसे उसको रोका॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वारयित्वा तु सौभद्रं भीमसेनः प्रतापवान्।
शल्यमासाद्य समरे तस्थौ गिरिरिवाचलः ॥ ७ ॥

मूलम्

वारयित्वा तु सौभद्रं भीमसेनः प्रतापवान्।
शल्यमासाद्य समरे तस्थौ गिरिरिवाचलः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुभद्राकुमार अभिमन्युको रोककर प्रतापी भीमसेन राजा शल्यके पास जा पहुँचे और समरभूमिमें पर्वतके समान अविचल भावसे खड़े हो गये॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव मद्रराजोऽपि भीमं दृष्ट्वा महाबलम्।
ससाराभिमुखस्तूर्णं शार्दूल इव कुञ्जरम् ॥ ८ ॥

मूलम्

तथैव मद्रराजोऽपि भीमं दृष्ट्वा महाबलम्।
ससाराभिमुखस्तूर्णं शार्दूल इव कुञ्जरम् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार मद्रराज शल्य भी महाबली भीमसेनको देखकर तुरंत उन्हींकी ओर बढ़े, मानो सिंह किसी गजराजपर आक्रमण कर रहा हो॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तूर्यनिनादाश्च शङ्खानां च सहस्रशः।
सिंहनादाश्च संजज्ञुर्भेरीणां च महास्वनाः ॥ ९ ॥

मूलम्

ततस्तूर्यनिनादाश्च शङ्खानां च सहस्रशः।
सिंहनादाश्च संजज्ञुर्भेरीणां च महास्वनाः ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय सहस्रों रणवाद्यों और शंखोंके शब्द वहाँ गूँज उठे। वीरोंके सिंहनाद प्रकट होने लगे और नगाड़ोंके गम्भीर घोष सर्वत्र व्याप्त हो गये॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पश्यतां शतशो ह्यासीदन्योन्यमभिधावताम् ।
पाण्डवानां कुरूणां च साधु साध्विति निःस्वनः ॥ १० ॥

मूलम्

पश्यतां शतशो ह्यासीदन्योन्यमभिधावताम् ।
पाण्डवानां कुरूणां च साधु साध्विति निःस्वनः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

एक दूसरेकी ओर दौड़ते हुए सैकड़ों दर्शकों, कौरवों और पाण्डवोंके साधुवादका महान् शब्द वहाँ सब ओर गूँजने लगा॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न हि मद्राधिपादन्यः सर्वराजसु भारत।
सोढुमुत्सहते वेगं भीमसेनस्य संयुगे ॥ ११ ॥

मूलम्

न हि मद्राधिपादन्यः सर्वराजसु भारत।
सोढुमुत्सहते वेगं भीमसेनस्य संयुगे ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! समस्त राजाओंमें मद्रराज शल्यके सिवा दूसरा कोई ऐसा नहीं था, जो युद्धमें भीमसेनके वेगको सहनेका साहस कर सके॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा मद्राधिपस्यापि गदावेगं महात्मनः।
सोढुमुत्सहते लोके युधि कोऽन्यो वृकोदरात् ॥ १२ ॥

मूलम्

तथा मद्राधिपस्यापि गदावेगं महात्मनः।
सोढुमुत्सहते लोके युधि कोऽन्यो वृकोदरात् ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार संसारमें भीमसेनके सिवा दूसरा कौन ऐसा वीर है, जो युद्धमें महामनस्वी मद्रराज शल्यकी गदाके वेगको सह सकता है॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पट्‌टैर्जाम्बूनदैर्बद्धा बभूव जनहर्षणी ।
प्रजज्वाल तदाऽऽविद्धा भीमेन महती गदा ॥ १३ ॥

मूलम्

पट्‌टैर्जाम्बूनदैर्बद्धा बभूव जनहर्षणी ।
प्रजज्वाल तदाऽऽविद्धा भीमेन महती गदा ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय भीमसेनके द्वारा घुमायी गयी विशाल गदा सुवर्णपत्रसे जटित होनेके कारण अग्निके समान प्रज्वलित हो रही थी। वह वीरजनोंके हृदयमें हर्ष और उत्साहकी वृद्धि करनेवाली थी॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव चरतो मार्गान् मण्डलानि च सर्वशः।
महाविद्युत्प्रतीकाशा शल्यस्य शुशुभे गदा ॥ १४ ॥

मूलम्

तथैव चरतो मार्गान् मण्डलानि च सर्वशः।
महाविद्युत्प्रतीकाशा शल्यस्य शुशुभे गदा ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार गदायुद्धके विभिन्न मार्गों और मण्डलोंसे विचरते हुए महाराज शल्यकी महाविद्युत्‌के समान प्रकाशमान गदा बड़ी शोभा पा रही थी॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ वृषाविव नर्दन्तौ मण्डलानि विचेरतुः।
आवर्तितगदाशृङ्गावुभौ शल्यवृकोदरौ ॥ १५ ॥

मूलम्

तौ वृषाविव नर्दन्तौ मण्डलानि विचेरतुः।
आवर्तितगदाशृङ्गावुभौ शल्यवृकोदरौ ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे शल्य और भीमसेन दोनों गदारूप सींगोंको घुमा-घुमाकर साँड़ोंकी भाँति गरजते हुए पैंतरे बदल रहे थे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मण्डलावर्तमार्गेषु गदाविहरणेषु च ।
निर्विशेषमभूद् युद्धं तयोः पुरुषसिंहयोः ॥ १६ ॥

मूलम्

मण्डलावर्तमार्गेषु गदाविहरणेषु च ।
निर्विशेषमभूद् युद्धं तयोः पुरुषसिंहयोः ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मण्डलाकार घूमनेके मार्गों (पैंतरों) और गदाके प्रहारोंमें उन दोनों पुरुषसिंहोंकी योग्यता एक-सी जान पड़ती थी॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ताडिता भीमसेनेन शल्यस्य महती गदा।
साग्निज्वाला महारौद्रा तदा तूर्णमशीर्यत ॥ १७ ॥

मूलम्

ताडिता भीमसेनेन शल्यस्य महती गदा।
साग्निज्वाला महारौद्रा तदा तूर्णमशीर्यत ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय भीमसेनकी गदासे टकराकर शल्यकी विशाल एवं महाभयंकर गदा आगकी चिनगारियाँ छोड़ती हुई तत्काल छिन्न-भिन्न होकर बिखर गयी॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव भीमसेनस्य द्विषताभिहता गदा।
वर्षाप्रदोषे खद्योतैर्वृतो वृक्ष इवाबभौ ॥ १८ ॥

मूलम्

तथैव भीमसेनस्य द्विषताभिहता गदा।
वर्षाप्रदोषे खद्योतैर्वृतो वृक्ष इवाबभौ ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार शत्रुके आघात करनेपर भीमसेनकी गदा भी चिनगारियाँ छोड़ती हुई वर्षाकालकी संध्याके समय जुगनुओंसे जगमगाते हुए वृक्षकी भाँति शोभा पाने लगी॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गदा क्षिप्ता तु समरे मद्रराजेन भारत।
व्योम दीपयमाना सा ससृजे पावकं मुहुः ॥ १९ ॥

मूलम्

गदा क्षिप्ता तु समरे मद्रराजेन भारत।
व्योम दीपयमाना सा ससृजे पावकं मुहुः ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! तब मद्रराज शल्यने समरभूमिमें दूसरी गदा चलायी, जो आकाशको प्रकाशित करती हुई बारंबार अंगारोंकी वर्षा कर रही थी॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव भीमसेनेन द्विषते प्रेषिता गदा।
तापयामास तत् सैन्यं महोल्का पतती यथा ॥ २० ॥

मूलम्

तथैव भीमसेनेन द्विषते प्रेषिता गदा।
तापयामास तत् सैन्यं महोल्का पतती यथा ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार भीमसेनने शत्रुको लक्ष्य करके जो गदा चलायी थी, वह आकाशसे गिरती हुई बड़ी भारी उल्काके समान कौरव-सेनाको संतप्त करने लगी॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते गदे गदिनां श्रेष्ठौ समासाद्य परस्परम्।
श्वसन्त्यौ नागकन्ये वा ससृजाते विभावसुम् ॥ २१ ॥

मूलम्

ते गदे गदिनां श्रेष्ठौ समासाद्य परस्परम्।
श्वसन्त्यौ नागकन्ये वा ससृजाते विभावसुम् ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों गदाएँ गदाधारियोंमें श्रेष्ठ भीमसेन और शल्यको पाकर परस्पर टकराती हुई फुफकारती नागकन्याओंकी भाँति अग्निकी सृष्टि करती थीं॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नखैरिव महाव्याघ्रौ दन्तैरिव महागजौ।
तौ विचेरतुरासाद्य गदाग्र्याभ्यां परस्परम् ॥ २२ ॥

मूलम्

नखैरिव महाव्याघ्रौ दन्तैरिव महागजौ।
तौ विचेरतुरासाद्य गदाग्र्याभ्यां परस्परम् ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे दो बड़े व्याघ्र पंजोंसे और दो विशाल हाथी दाँतोंसे आपसमें प्रहार करते हैं, उसी प्रकार भीमसेन और शल्य गदाओंके अग्रभागसे एक-दूसरेपर प्रहार करते हुए विचर रहे थे॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो गदाग्राभिहतौ क्षणेन रुधिरोक्षितौ।
ददृशाते महात्मानौ किंशुकाविव पुष्पितौ ॥ २३ ॥

मूलम्

ततो गदाग्राभिहतौ क्षणेन रुधिरोक्षितौ।
ददृशाते महात्मानौ किंशुकाविव पुष्पितौ ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

एक ही क्षणमें गदाके अग्रभागसे घायल होकर वे दोनों महामनस्वी वीर खूनसे लथपथ हो फूलोंसे भरे हुए दो पलाश वृक्षोंके समान दिखायी देने लगे॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शुश्रुवे दिक्षु सर्वासु तयोः पुरुषसिंहयोः।
गदाभिघातसंह्रादः शक्राशनिरवोपमः ॥ २४ ॥

मूलम्

शुश्रुवे दिक्षु सर्वासु तयोः पुरुषसिंहयोः।
गदाभिघातसंह्रादः शक्राशनिरवोपमः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन दोनों पुरुषसिंहोंकी गदाओंके टकरानेका शब्द इन्द्रके वज्रकी गड़गड़ाहटके समान सम्पूर्ण दिशाओंमें सुनायी देता था॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गदया मद्रराजेन सव्यदक्षिणमाहतः ।
नाकम्पत तदा भीमो भिद्यमान इवाचलः ॥ २५ ॥

मूलम्

गदया मद्रराजेन सव्यदक्षिणमाहतः ।
नाकम्पत तदा भीमो भिद्यमान इवाचलः ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय मद्रराजकी गदासे बायें-दायें चोट खाकर भी भीमसेन विचलित नहीं हुए। जैसे पर्वत वज्रका आघात सहकर भी अविचलभावसे खड़ा रहता है॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा भीमगदावेगैस्ताड्यमानो महाबलः ।
धैर्यान्मद्राधिपस्तस्थौ वज्रैर्गिरिरिवाहतः ॥ २६ ॥

मूलम्

तथा भीमगदावेगैस्ताड्यमानो महाबलः ।
धैर्यान्मद्राधिपस्तस्थौ वज्रैर्गिरिरिवाहतः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार भीमसेनकी गदाके वेगसे आहत होकर महाबली मद्रराज वज्राघातसे पीड़ित पर्वतकी भाँति धैर्यपूर्वक खड़े रहे॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आपेततुर्महावेगौ समुच्छ्रितगदावुभौ ।
पुनरन्तरमार्गस्थौ मण्डलानि विचेरतुः ॥ २७ ॥

मूलम्

आपेततुर्महावेगौ समुच्छ्रितगदावुभौ ।
पुनरन्तरमार्गस्थौ मण्डलानि विचेरतुः ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों महावेगशाली वीर गदा उठाये एक-दूसरेपर टूट पड़े। फिर अन्तर्मार्गमें स्थित हो मण्डलाकार गतिसे विचरने लगे॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथाप्लुत्य पदान्यष्टौ संनिपत्य गजाविव।
सहसा लोहदण्डाभ्यामन्योन्यमभिजघ्नतुः ॥ २८ ॥

मूलम्

अथाप्लुत्य पदान्यष्टौ संनिपत्य गजाविव।
सहसा लोहदण्डाभ्यामन्योन्यमभिजघ्नतुः ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् आठ पग चलकर दोनों दो हाथियोंकी भाँति परस्पर टूट पड़े और सहसा लोहेके डंडोंसे एक-दूसरेको मारने लगे॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ परस्परवेगाच्च गदाभ्यां च भृशाहतौ।
युगपत् पेततुर्वीरौ क्षिताविन्द्रध्वजाविव ॥ २९ ॥

मूलम्

तौ परस्परवेगाच्च गदाभ्यां च भृशाहतौ।
युगपत् पेततुर्वीरौ क्षिताविन्द्रध्वजाविव ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों वीर परस्परके वेगसे और गदाओंद्वारा अत्यन्त घायल हो दो इन्द्रध्वजोंके समान एक ही समय पृथ्वीपर गिर पड़े॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो विह्वलमानं तं निःश्वसन्तं पुनः पुनः।
शल्यमभ्यपतत् तूर्णं कृतवर्मा महारथः ॥ ३० ॥

मूलम्

ततो विह्वलमानं तं निःश्वसन्तं पुनः पुनः।
शल्यमभ्यपतत् तूर्णं कृतवर्मा महारथः ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय शल्य अत्यन्त विह्वल होकर बारंबार लम्बी साँस खींच रहे थे। इतनेहीमें महारथी कृतवर्मा तुरंत राजा शल्यके पास आ पहुँचा॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दृष्ट्वा चैनं महाराज गदयाभिनिपीडितम्।
विचेष्टन्तं यथा नागं मूर्च्छयाभिपरिप्लुतम् ॥ ३१ ॥

मूलम्

दृष्ट्वा चैनं महाराज गदयाभिनिपीडितम्।
विचेष्टन्तं यथा नागं मूर्च्छयाभिपरिप्लुतम् ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! आकर उसने देखा कि राजा शल्य गदासे पीड़ित एवं मूर्च्छासे अचेत हो आहत हुए नागकी भाँति छटपटा रहे हैं॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः स्वरथमारोप्य मद्राणामधिपं रणे।
अपोवाह रणात् तूर्णं कृतवर्मा महारथः ॥ ३२ ॥

मूलम्

ततः स्वरथमारोप्य मद्राणामधिपं रणे।
अपोवाह रणात् तूर्णं कृतवर्मा महारथः ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह देख महारथी कृतवर्मा युद्धस्थलमें मद्रराज शल्यको अपने रथपर बिठाकर तुरंत ही रणभूमिसे बाहर हटा ले गया॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्षीबवद् विह्वलो वीरो निमेषात् पुनरुत्थितः।
भीमोऽपि सुमहाबाहुर्गदापाणिरदृश्यत ॥ ३३ ॥

मूलम्

क्षीबवद् विह्वलो वीरो निमेषात् पुनरुत्थितः।
भीमोऽपि सुमहाबाहुर्गदापाणिरदृश्यत ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर महाबाहु वीर भीमसेन भी मदोन्मत्तकी भाँति विह्वल हो पलक मारते-मारते उठकर खड़े हो गये और हाथमें गदा लिये दिखायी देने लगे॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो मद्राधिपं दृष्ट्वा तव पुत्राः पराङ्‌मुखम्।
सनागपत्त्यश्वरथाः समकम्पन्त मारिष ॥ ३४ ॥

मूलम्

ततो मद्राधिपं दृष्ट्वा तव पुत्राः पराङ्‌मुखम्।
सनागपत्त्यश्वरथाः समकम्पन्त मारिष ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! उस समय मद्रराज शल्यको युद्धसे विमुख हुआ देख हाथी, घोड़े, रथ और पैदल-सेनाओंसहित आपके सारे पुत्र भयसे काँप उठे॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते पाण्डवैरर्द्यमानास्तावका जितकाशिभिः ।
भीता दिशोऽन्वपद्यन्त वातनुन्ना घना इव ॥ ३५ ॥

मूलम्

ते पाण्डवैरर्द्यमानास्तावका जितकाशिभिः ।
भीता दिशोऽन्वपद्यन्त वातनुन्ना घना इव ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

विजयसे सुशोभित होनेवाले पाण्डवोंद्वारा पीड़ित हो आपके सभी सैनिक भयभीत हो हवाके उड़ाये हुए बादलोंकी भाँति चारों दिशाओंमें भाग गये॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निर्जित्य धार्तराष्ट्रांस्तु पाण्डवेया महारथाः।
व्यरोचन्त रणे राजन् दीप्यमाना इवाग्नयः ॥ ३६ ॥

मूलम्

निर्जित्य धार्तराष्ट्रांस्तु पाण्डवेया महारथाः।
व्यरोचन्त रणे राजन् दीप्यमाना इवाग्नयः ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इस प्रकार आपके पुत्रोंको जीतकर महारथी पाण्डव प्रज्वलित अग्नियोंकी भाँति रणक्षेत्रमें प्रकाशित होने लगे॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सिंहनादान् भृशं चक्रुः शङ्खान्‌ दध्मुश्च हर्षिताः।
भेरीश्च वादयामासुर्मृदङ्गांश्चानकैः सह ॥ ३७ ॥

मूलम्

सिंहनादान् भृशं चक्रुः शङ्खान्‌ दध्मुश्च हर्षिताः।
भेरीश्च वादयामासुर्मृदङ्गांश्चानकैः सह ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने हर्षित होकर बारंबार सिंहनाद किये और बहुत-से शंख बजाये; साथ ही उन्होंने भेरी, मृदंग और आनक आदि वाद्योंको भी बजवाया॥३७॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि द्रोणाभिषेकपर्वणि शल्यापयाने पञ्चदशोऽध्यायः ॥ १५ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत द्रोणाभिषेकपर्वमें शल्यका पलायनविषयक पंद्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१५॥