भागसूचना
चतुर्थोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
भीष्मजीका कर्णको प्रोत्साहन देकर युद्धके लिये भेजना तथा कर्णके आगमनसे कौरवोंका हर्षोल्लास
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य लालप्यतः श्रुत्वा कुरुवृद्धः पितामहः।
देशकालोचितं वाक्यमब्रवीत् प्रीतमानसः ॥ १ ॥
मूलम्
तस्य लालप्यतः श्रुत्वा कुरुवृद्धः पितामहः।
देशकालोचितं वाक्यमब्रवीत् प्रीतमानसः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— राजन्! इस प्रकार बहुत कुछ बोलते हुए कर्णकी बात सुनकर कुरुकुलके वृद्ध पितामह भीष्मने प्रसन्नचित्त होकर देश और कालके अनुसार यह बात कही—॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समुद्र इव सिन्धूनां ज्योतिषामिव भास्करः।
सत्यस्य च यथा सन्तो बीजानामिव चोर्वरा ॥ २ ॥
पर्जन्य इव भूतानां प्रतिष्ठा सुहृदां भव।
बान्धवास्त्वानुजीवन्तु सहस्राक्षमिवामराः ॥ ३ ॥
मूलम्
समुद्र इव सिन्धूनां ज्योतिषामिव भास्करः।
सत्यस्य च यथा सन्तो बीजानामिव चोर्वरा ॥ २ ॥
पर्जन्य इव भूतानां प्रतिष्ठा सुहृदां भव।
बान्धवास्त्वानुजीवन्तु सहस्राक्षमिवामराः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘कर्ण! जैसे सरिताओंका आश्रय समुद्र, ज्योतिर्मय पदार्थोंका सूर्य, सत्यका साधु पुरुष, बीजोंका उर्वरा भूमि और प्राणियोंकी जीविकाका आधार मेघ है, उसी प्रकार तुम भी अपने सुहृदोंके आश्रयदाता बनो। जैसे देवता सहस्रलोचन इन्द्रका आश्रय लेकर जीवन-निर्वाह करते हैं, उसी प्रकार समस्त बन्धु-बान्धव तुम्हारा आश्रय लेकर जीवन धारण करें॥२-३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मानहा भव शत्रूणां मित्राणां नन्दिवर्धनः।
कौरवाणां भव गतिर्यथा विष्णुर्दिवौकसाम् ॥ ४ ॥
मूलम्
मानहा भव शत्रूणां मित्राणां नन्दिवर्धनः।
कौरवाणां भव गतिर्यथा विष्णुर्दिवौकसाम् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘तुम शत्रुओंका मान मर्दन करनेवाले और मित्रोंका आनन्द बढ़ानेवाले होओ। जैसे भगवान् विष्णु देवताओंके आश्रय हैं, उसी प्रकार तुम कौरवोंके आधार बनो॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वबाहुबलवीर्येण धार्तराष्ट्रजयैषिणा ।
कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजा निर्जितास्त्वया ॥ ५ ॥
मूलम्
स्वबाहुबलवीर्येण धार्तराष्ट्रजयैषिणा ।
कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजा निर्जितास्त्वया ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘कर्ण! तुमने दुर्योधनके लिये विजयकी इच्छा रखकर अपनी भुजाओंके बल और पराक्रमसे राजपुरमें जाकर समस्त काम्बोजोंपर विजय पायी है॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गिरिव्रजगताश्चापि नग्नजित्प्रमुखा नृपाः ।
अम्बष्ठाश्च विदेहाश्च गान्धाराश्च जितास्त्वया ॥ ६ ॥
मूलम्
गिरिव्रजगताश्चापि नग्नजित्प्रमुखा नृपाः ।
अम्बष्ठाश्च विदेहाश्च गान्धाराश्च जितास्त्वया ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘गिरिव्रजके निवासी नग्नजित् आदि नरेश, अम्बष्ठ, विदेह और गान्धारदेशीय क्षत्रियोंको भी तुमने परास्त किया है॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हिमवद्दुर्गनिलयाः किराता रणकर्कशाः ।
दुर्योधनस्य वशगास्त्वया कर्ण पुरा कृताः ॥ ७ ॥
मूलम्
हिमवद्दुर्गनिलयाः किराता रणकर्कशाः ।
दुर्योधनस्य वशगास्त्वया कर्ण पुरा कृताः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘कर्ण! पूर्वकालमें तुमने हिमालयके दुर्गमें निवास करनेवाले रणकर्कश किरातोंको भी जीतकर दुर्योधनके अधीन कर दिया था॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उत्कला मेकलाः पौण्ड्राः कलिङ्गान्ध्राश्च संयुगे।
निषादाश्च त्रिगर्ताश्च बाह्लीकाश्च जितास्त्वया ॥ ८ ॥
मूलम्
उत्कला मेकलाः पौण्ड्राः कलिङ्गान्ध्राश्च संयुगे।
निषादाश्च त्रिगर्ताश्च बाह्लीकाश्च जितास्त्वया ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘उत्कल, मेकल, पौण्ड्र, कलिंग, अंध्र, निषाद, त्रिगर्त और बाह्लीक आदि देशोंके राजाओंको भी तुमने परास्त किया है॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र तत्र च संग्रामे दुर्योधनहितैषिणा।
बहवश्च जिताः कर्ण त्वया वीरा महौजसा ॥ ९ ॥
मूलम्
तत्र तत्र च संग्रामे दुर्योधनहितैषिणा।
बहवश्च जिताः कर्ण त्वया वीरा महौजसा ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘कर्ण! इनके सिवा और भी जहाँ-तहाँ संग्राम-भूमिमें दुर्योधनका हित चाहनेवाले तुम महापराक्रमी शूरवीरने बहुत-से वीरोंपर विजय पायी है॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा दुर्योधनस्तात सज्ञातिकुलबान्धवः ।
तथा त्वमपि सर्वेषां कौरवाणां गतिर्भव ॥ १० ॥
मूलम्
यथा दुर्योधनस्तात सज्ञातिकुलबान्धवः ।
तथा त्वमपि सर्वेषां कौरवाणां गतिर्भव ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘तात! कुटुम्बी, कुल और बन्धु-बान्धवोंसहित दुर्योधन जैसे सब कौरवोंका आधार है, उसी प्रकार तुम भी कौरवोंके आश्रयदाता बनो॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिवेनाभिवदामि त्वां गच्छ युध्यस्व शत्रुभिः।
अनुशाधि कुरून् संख्ये धत्स्व दुर्योधने जयम् ॥ ११ ॥
मूलम्
शिवेनाभिवदामि त्वां गच्छ युध्यस्व शत्रुभिः।
अनुशाधि कुरून् संख्ये धत्स्व दुर्योधने जयम् ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘मैं तुम्हारा कल्याणचिन्तन करते हुए तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ, जाओ, शत्रुओंके साथ युद्ध करो। रणक्षेत्रमें कौरव सैनिकोंको कर्तव्यका आदेश दो और दुर्योधनको विजय प्राप्त कराओ॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भवान् पौत्रसमोऽस्माकं यथा दुर्योधनस्तथा।
तवापि धर्मतः सर्वे यथा तस्य वयं तथा ॥ १२ ॥
मूलम्
भवान् पौत्रसमोऽस्माकं यथा दुर्योधनस्तथा।
तवापि धर्मतः सर्वे यथा तस्य वयं तथा ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘दुर्योधनकी तरह तुम भी मेरे पौत्रके समान हो। धर्मतः जैसे मैं उसका हितैषी हूँ, उसी प्रकार तुम्हारा भी हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यौनात् सम्बन्धकाल्लोके विशिष्टं संगतं सताम्।
सद्भिः सह नरश्रेष्ठ प्रवदन्ति मनीषिणः ॥ १३ ॥
मूलम्
यौनात् सम्बन्धकाल्लोके विशिष्टं संगतं सताम्।
सद्भिः सह नरश्रेष्ठ प्रवदन्ति मनीषिणः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘नरश्रेष्ठ! संसारमें यौन (कौटुम्बिक)-सम्बन्धकी अपेक्षा साधु पुरुषोंके साथ की हुई मैत्रीका सम्बन्ध श्रेष्ठ है; यह मनीषी महात्मा कहते हैं॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स सत्यसंगतो भूत्वा ममेदमिति निश्चितः।
कुरूणां पालय बलं यथा दुर्योधनस्तथा ॥ १४ ॥
मूलम्
स सत्यसंगतो भूत्वा ममेदमिति निश्चितः।
कुरूणां पालय बलं यथा दुर्योधनस्तथा ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘तुम सच्चे मित्र होकर और यह सब कुछ मेरा ही है, ऐसा निश्चित विचार रखकर दुर्योधनके ही समान समस्त कौरवदलकी रक्षा करो’॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निशम्य वचनं तस्य चरणावभिवाद्य च।
ययौ वैकर्तनः कर्णः समीपं सर्वधन्विनाम् ॥ १५ ॥
मूलम्
निशम्य वचनं तस्य चरणावभिवाद्य च।
ययौ वैकर्तनः कर्णः समीपं सर्वधन्विनाम् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीष्मजीका यह वचन सुनकर विकर्तनपुत्र कर्णने उनके चरणोंमें प्रणाम किया और वह फिर सम्पूर्ण धनुर्धर सैनिकोंके समीप चला गया॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽभिवीक्ष्य नरौघाणां स्थानमप्रतिमं महत्।
व्यूढप्रहरणोरस्कं सैन्यं तत् समबृंहयत् ॥ १६ ॥
मूलम्
सोऽभिवीक्ष्य नरौघाणां स्थानमप्रतिमं महत्।
व्यूढप्रहरणोरस्कं सैन्यं तत् समबृंहयत् ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ कर्णने कौरव सैनिकोंका वह अनुपम एवं विशाल स्थान देखा। समस्त सैनिक व्यूहाकारमें खड़े थे और अपने वक्षःस्थलके समीप अनेक प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंको बाँधे हुए थे। कर्णने उस समय सारी कौरव-सेनाको उत्साहित किया॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हृषिताः कुरवः सर्वे दुर्योधनपुरोगमाः।
उपागतं महाबाहुं सर्वानीकपुरःसरम् ॥ १७ ॥
कर्णं दृष्ट्वा महात्मानं युद्धाय समुपस्थितम्।
मूलम्
हृषिताः कुरवः सर्वे दुर्योधनपुरोगमाः।
उपागतं महाबाहुं सर्वानीकपुरःसरम् ॥ १७ ॥
कर्णं दृष्ट्वा महात्मानं युद्धाय समुपस्थितम्।
अनुवाद (हिन्दी)
समस्त सेनाओंके आगे चलनेवाले महाबाहु, महामनस्वी कर्णको आया और युद्धके लिये उपस्थित हुआ देख दुर्योधन आदि समस्त कौरव हर्षसे खिल उठे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्ष्वेडितास्फोटितरवैः सिंहनादरवैरपि ।
धनुःशब्दैश्च विविधैः कुरवः समपूजयन् ॥ १८ ॥
मूलम्
क्ष्वेडितास्फोटितरवैः सिंहनादरवैरपि ।
धनुःशब्दैश्च विविधैः कुरवः समपूजयन् ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन समस्त कौरवोंने उस समय गर्जने, ताल ठोकने, सिंहनाद करने तथा नाना प्रकारसे धनुषकी टंकार फैलाने आदिके द्वारा कर्णका स्वागत-सत्कार किया॥१८॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि द्रोणाभिषेकपर्वणि कर्णाश्वासे चतुर्थोऽध्यायः ॥ ४ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत द्रोणाभिषेकपर्वमें कर्णका आश्वासनविषयक चौथा अध्याय पूरा हुआ॥४॥