भागसूचना
तृतीयोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
भीष्मजीके प्रति कर्णका कथन
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरतल्पे महात्मानं शयानममितौजसम् ।
महावातसमूहेन समुद्रमिव शोषितम् ॥ १ ॥
मूलम्
शरतल्पे महात्मानं शयानममितौजसम् ।
महावातसमूहेन समुद्रमिव शोषितम् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— महाराज! अमित तेजस्वी महात्मा भीष्म बाण-शय्यापर सो रहे थे। उस समय वे प्रलयकालीन महावायुसमूहसे सोख लिये गये समुद्रके समान जान पड़ते थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्ट्वा पितामहं भीष्मं सर्वक्षत्रान्तकं गुरुम्।
दिव्यैरस्त्रैर्महेष्वासं पातितं सव्यसाचिना ॥ २ ॥
जयाशा तव पुत्राणां सम्भग्ना शर्म वर्म च।
अपाराणामिव द्वीपमगाधे गाधमिच्छताम् ॥ ३ ॥
मूलम्
दृष्ट्वा पितामहं भीष्मं सर्वक्षत्रान्तकं गुरुम्।
दिव्यैरस्त्रैर्महेष्वासं पातितं सव्यसाचिना ॥ २ ॥
जयाशा तव पुत्राणां सम्भग्ना शर्म वर्म च।
अपाराणामिव द्वीपमगाधे गाधमिच्छताम् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
समस्त क्षत्रियोंका अन्त करनेमें समर्थ गुरु एवं पितामह महाधनुर्धर भीष्मको सव्यसाची अर्जुनने अपने दिव्यास्त्रोंके द्वारा मार गिराया था। उन्हें उस अवस्थामें देखकर आपके पुत्रोंकी विजयकी आशा भंग हो गयी। उन्हें अपने कल्याणकी भी आशा नहीं रही। उनके रक्षाकवच भी छिन्न-भिन्न हो गये। कहीं पार न पानेवाले तथा अथाह समुद्रमें थाह चाहनेवाले कौरवोंके लिये भीष्मजी द्वीपके समान आश्रय थे, जो पार्थद्वारा धराशायी कर दिये गये थे॥२-३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्रोतसा यामुनेनेव शरौघेण परिप्लुतम्।
महेन्द्रेणेव मैनाकमसह्यं भुवि पातितम् ॥ ४ ॥
मूलम्
स्रोतसा यामुनेनेव शरौघेण परिप्लुतम्।
महेन्द्रेणेव मैनाकमसह्यं भुवि पातितम् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे यमुनाके जलप्रवाहके समान बाणसमूहसे व्याप्त हो रहे थे। उन्हें देखकर ऐसा जान पड़ता था, मानो महेन्द्रने असह्य मैनाक पर्वतको धरतीपर गिरा दिया हो॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नभश्च्युतमिवादित्यं पतितं धरणीतले ।
शतक्रतुमिवाचिन्त्यं पुरा वृत्रेण निर्जितम् ॥ ५ ॥
मूलम्
नभश्च्युतमिवादित्यं पतितं धरणीतले ।
शतक्रतुमिवाचिन्त्यं पुरा वृत्रेण निर्जितम् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे आकाशसे च्युत होकर पृथ्वीपर पड़े हुए सूर्यके समान तथा पूर्वकालमें वृत्रासुरसे पराजित हुए अचिन्त्य देवराज इन्द्रके सदृश प्रतीत होते थे॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मोहनं सर्वसैन्यस्य युधि भीष्मस्य पातनम्।
ककुदं सर्वसैन्यानां लक्ष्म सर्वधनुष्मताम् ॥ ६ ॥
धनंजयशरैर्व्याप्तं पितरं ते महाव्रतम्।
तं वीरशयने वीरं शयानं पुरुषर्षभम् ॥ ७ ॥
भीष्ममाधिरथिर्दृष्ट्वा भरतानां महाद्युतिः ।
अवतीर्य रथादार्तो बाष्पव्याकुलिताक्षरम् ॥ ८ ॥
अभिवाद्याञ्जलिं बद्ध्वा वन्दमानोऽभ्यभाषत ।
मूलम्
मोहनं सर्वसैन्यस्य युधि भीष्मस्य पातनम्।
ककुदं सर्वसैन्यानां लक्ष्म सर्वधनुष्मताम् ॥ ६ ॥
धनंजयशरैर्व्याप्तं पितरं ते महाव्रतम्।
तं वीरशयने वीरं शयानं पुरुषर्षभम् ॥ ७ ॥
भीष्ममाधिरथिर्दृष्ट्वा भरतानां महाद्युतिः ।
अवतीर्य रथादार्तो बाष्पव्याकुलिताक्षरम् ॥ ८ ॥
अभिवाद्याञ्जलिं बद्ध्वा वन्दमानोऽभ्यभाषत ।
अनुवाद (हिन्दी)
उस युद्धस्थलमें भीष्मका गिराया जाना समस्त सैनिकोंको मोहमें डालनेवाला था। आपके ज्येष्ठ पिता महान व्रतधारी भीष्म समस्त सैनिकोंमें श्रेष्ठ तथा सम्पूर्ण धनुर्धरोंके शिरोमणि थे। वे अर्जुनके बाणोंसे व्याप्त होकर वीरशय्यापर सो रहे थे। उन भरतवंशी वीर पुरुषप्रवर भीष्मको उस अवस्थामें देखकर अधिरथपुत्र महातेजस्वी कर्ण अत्यन्त आर्त होकर रथसे उतर पड़ा और अंजलि बाँध अभिवादनपूर्वक प्रणाम करके आँसूसे गद्गद वाणीमें इस प्रकार बोला—॥६—८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कर्णोऽहमस्मि भद्रं ते वद मामभि भारत ॥ ९ ॥
पुण्यया क्षेम्यया वाचा चक्षुषा चावलोकय।
मूलम्
कर्णोऽहमस्मि भद्रं ते वद मामभि भारत ॥ ९ ॥
पुण्यया क्षेम्यया वाचा चक्षुषा चावलोकय।
अनुवाद (हिन्दी)
‘भारत! आपका कल्याण हो। मैं कर्ण हूँ। आप अपनी पवित्र एवं मंगलमयी वाणीद्वारा मुझसे कुछ कहिये और कल्याणमयी दृष्टिद्वारा मेरी ओर देखिये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न नूनं सुकृतस्येह फलं कश्चित् समश्नुते ॥ १० ॥
यत्र धर्मपरो वृद्धः शेते भुवि भवानिह।
मूलम्
न नूनं सुकृतस्येह फलं कश्चित् समश्नुते ॥ १० ॥
यत्र धर्मपरो वृद्धः शेते भुवि भवानिह।
अनुवाद (हिन्दी)
‘निश्चय ही इस लोकमें कोई भी अपने पुण्यकर्मोंका फल यहाँ नहीं भोगता है; क्योंकि आप वृद्धावस्थातक सदा धर्ममें ही तत्पर रहे हैं, तो भी यहाँ इस दशामें धरतीपर सो रहे हैं॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कोशसंचयने मन्त्रे व्यूहे प्रहरणेषु च ॥ ११ ॥
नाहमन्यं प्रपश्यामि कुरूणां कुरुपुङ्गव।
बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो यः कुरूंस्तारयेद् भयात् ॥ १२ ॥
योधांस्तु बहुधा हत्वा पितृलोकं गमिष्यति।
मूलम्
कोशसंचयने मन्त्रे व्यूहे प्रहरणेषु च ॥ ११ ॥
नाहमन्यं प्रपश्यामि कुरूणां कुरुपुङ्गव।
बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो यः कुरूंस्तारयेद् भयात् ॥ १२ ॥
योधांस्तु बहुधा हत्वा पितृलोकं गमिष्यति।
अनुवाद (हिन्दी)
‘कुरुश्रेष्ठ! कोश-संग्रह, मन्त्रणा, व्यूह-रचना तथा अस्त्र-शस्त्रोंके प्रहारमें आपके समान कौरववंशमें दूसरा कोई मुझे नहीं दिखायी देता, जो अपनी विशुद्ध बुद्धिसे युक्त हो समस्त कौरवोंको भयसे उबार सके तथा यहाँ बहुत-से योद्धाओंका वध करके अन्तमें पितृ-लोकको प्राप्त हो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अद्यप्रभृति संक्रुद्धा व्याघ्रा इव मृगक्षयम् ॥ १३ ॥
पाण्डवा भरतश्रेष्ठ करिष्यन्ति कुरुक्षयम्।
मूलम्
अद्यप्रभृति संक्रुद्धा व्याघ्रा इव मृगक्षयम् ॥ १३ ॥
पाण्डवा भरतश्रेष्ठ करिष्यन्ति कुरुक्षयम्।
अनुवाद (हिन्दी)
‘भरतश्रेष्ठ! आजसे क्रोधमें भरे हुए पाण्डव उसी प्रकार कौरवोंका विनाश करेंगे, जैसे व्याघ्र हिरनोंका॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अद्य गाण्डीवघोषस्य वीर्यज्ञाः सव्यसाचिनः ॥ १४ ॥
कुरवः संत्रसिष्यन्ति वज्रपाणेरिवासुराः ।
मूलम्
अद्य गाण्डीवघोषस्य वीर्यज्ञाः सव्यसाचिनः ॥ १४ ॥
कुरवः संत्रसिष्यन्ति वज्रपाणेरिवासुराः ।
अनुवाद (हिन्दी)
‘आज गाण्डीवकी टंकार करनेवाले सव्यसाची अर्जुनके पराक्रमको जाननेवाले कौरव उनसे उसी प्रकार डरेंगे, जैसे वज्रधारी इन्द्रसे असुर भयभीत होते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अद्य गाण्डीवमुक्ताना-
मशनीनामिव स्वनः ॥ १५ ॥
त्रासयिष्यति बाणानां
कुरूनन्यांश्च पार्थिवान् ।
मूलम्
अद्य गाण्डीवमुक्ताना-
मशनीनामिव स्वनः ॥ १५ ॥
त्रासयिष्यति बाणानां
कुरूनन्यांश्च पार्थिवान् ।
अनुवाद (हिन्दी)
‘आज गाण्डीव धनुषसे छूटे हुए बाणोंका वज्रपातके समान शब्द कौरवों तथा अन्य राजाओंको भयभीत कर देगा॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समिद्धोऽग्निर्यथा वीर
महाज्वालो द्रुमान् दहेत् ॥ १६ ॥
धार्तराष्ट्रान् प्रधक्ष्यन्ति
तथा बाणाः किरीटिनः ।
मूलम्
समिद्धोऽग्निर्यथा वीर
महाज्वालो द्रुमान् दहेत् ॥ १६ ॥
धार्तराष्ट्रान् प्रधक्ष्यन्ति
तथा बाणाः किरीटिनः ।
अनुवाद (हिन्दी)
‘वीर! जैसे बड़ी-बड़ी लपटोंसे युक्त प्रज्वलित हुई आग वृक्षोंको जलाकर भस्म कर देती है, उसी प्रकार अर्जुनके बाण धृतराष्ट्रके पुत्रों तथा उनके सैनिकोंको जला डालेंगे॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
येन येन प्रसरतो वाय्वग्नी सहितौ वने ॥ १७ ॥
तेन तेन प्रदहतो भूरिगुल्मतृणद्रुमान्।
मूलम्
येन येन प्रसरतो वाय्वग्नी सहितौ वने ॥ १७ ॥
तेन तेन प्रदहतो भूरिगुल्मतृणद्रुमान्।
अनुवाद (हिन्दी)
‘वायु और अग्निदेव—ये दोनों एक साथ वनमें जिस-जिस मार्गसे फैलते हैं, उसी-उसीके द्वारा बहुत-से तृण, वृक्ष और लताओंको भस्म करते जाते हैं॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यादृशोऽग्निः समुद्भूस्तादृक् पार्थो न संशयः ॥ १८ ॥
यथा वायुर्नरव्याघ्र तथा कृष्णो न संशयः।
मूलम्
यादृशोऽग्निः समुद्भूस्तादृक् पार्थो न संशयः ॥ १८ ॥
यथा वायुर्नरव्याघ्र तथा कृष्णो न संशयः।
अनुवाद (हिन्दी)
‘पुरुषसिंह! जैसी प्रज्वलित अग्नि होती है, वैसे ही कुन्तीकुमार अर्जुन हैं—इसमें संशय नहीं है और जैसी वायु होती है, वैसे ही श्रीकृष्ण हैं, इसमें भी संशय नहीं है॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नदतः पाञ्चजन्यस्य रसतो गाण्डिवस्य च ॥ १९ ॥
श्रुत्वा सर्वाणि सैन्यानि त्रासं यास्यन्ति भारत।
मूलम्
नदतः पाञ्चजन्यस्य रसतो गाण्डिवस्य च ॥ १९ ॥
श्रुत्वा सर्वाणि सैन्यानि त्रासं यास्यन्ति भारत।
अनुवाद (हिन्दी)
‘भारत! बजते हुए पांचजन्य और टंकारते हुए गाण्डीव धनुषकी भयंकर ध्वनि सुनकर आज सारी कौरव सेनाएँ भयभीत हो उठेंगी॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कपिध्वजस्योत्यततो रथस्यामित्रकर्षिणः ॥ २० ॥
शब्दं सोढुं न शक्ष्यन्ति त्वामृते वीर पार्थिवाः।
मूलम्
कपिध्वजस्योत्यततो रथस्यामित्रकर्षिणः ॥ २० ॥
शब्दं सोढुं न शक्ष्यन्ति त्वामृते वीर पार्थिवाः।
अनुवाद (हिन्दी)
‘वीर! शत्रुसूदन कपिध्वज अर्जुनके उड़ते हुए रथकी घरघराहटको आपके सिवा दूसरे राजा नहीं सह सकेंगे॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
को ह्यर्जुनं योधयितुं त्वदन्यः पार्थिवोऽर्हति ॥ २१ ॥
यस्य दिव्यानि कर्माणि प्रवदन्ति मनीषिणः।
अमानुषैश्च संग्रामस्त्र्यम्बकेण महात्मना ॥ २२ ॥
तस्माच्चैव वरं प्राप्तो दुष्प्रापमकृतात्मभिः।
कोऽन्यः शक्तो रणे जेतुं पूर्वं यो न जितस्त्वया॥२३॥
मूलम्
को ह्यर्जुनं योधयितुं त्वदन्यः पार्थिवोऽर्हति ॥ २१ ॥
यस्य दिव्यानि कर्माणि प्रवदन्ति मनीषिणः।
अमानुषैश्च संग्रामस्त्र्यम्बकेण महात्मना ॥ २२ ॥
तस्माच्चैव वरं प्राप्तो दुष्प्रापमकृतात्मभिः।
कोऽन्यः शक्तो रणे जेतुं पूर्वं यो न जितस्त्वया॥२३॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘आपके सिवा दूसरा कौन राजा अर्जुनसे युद्ध कर सकता है? मनीषी पुरुष जिनके दिव्य कर्मोंका बखान करते हैं, जो मानवेतर प्राणियों—असुरों तथा दैत्योंसे भी संग्राम कर चुके हैं, त्रिनेत्रधारी महात्मा भगवान् शंकरके साथ भी जिन्होंने युद्ध किया है और उनसे वह उत्तम वर प्राप्त किया है, जो अजितेन्द्रिय पुरुषोंके लिये सर्वथा दुर्लभ है, जिन्हें पहले आप भी जीत नहीं सके हैं, उन्हें आज दूसरा कौन युद्धमें जीत सकता है?॥२१—२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जितो येन रणे रामो भवता वीर्यशालिना।
क्षत्रियान्तकरो घोरो देवदानवदर्पहा ॥ २४ ॥
मूलम्
जितो येन रणे रामो भवता वीर्यशालिना।
क्षत्रियान्तकरो घोरो देवदानवदर्पहा ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘आप अपने पराक्रमसे शोभा पानेवाले वीर थे। आपने देवताओं तथा दानवोंका दर्प दलन करनेवाले क्षत्रियहन्ता घोर परशुरामजीको भी युद्धमें जीत लिया है॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमद्याहं पाण्डवं युद्धशौण्ड-
ममृष्यमाणो भवता चानुशिष्टः ।
आशीविषं दृष्टिहरं सुघोरं
शूरं शक्ष्याम्यस्त्रबलान्निहन्तुम् ॥ २५ ॥
मूलम्
तमद्याहं पाण्डवं युद्धशौण्ड-
ममृष्यमाणो भवता चानुशिष्टः ।
आशीविषं दृष्टिहरं सुघोरं
शूरं शक्ष्याम्यस्त्रबलान्निहन्तुम् ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘आज यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं अमर्षमें भरकर दृष्टि हर लेनेवाले विषधर सर्पके समान अत्यन्त भयंकर युद्धकुशल शूरवीर पाण्डुपुत्र अर्जुनको अपने अस्त्रबलसे मार सकूँगा’॥२५॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि द्रोणाभिषेकपर्वणि कर्णवाक्ये तृतीयोऽध्यायः ॥ ३ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तर्गत द्रोणाभिषेक पर्वमें कर्णवाक्यविषयक तीसरा अध्याय पूरा हुआ॥३॥