११८ भीष्मपराक्रमे

भागसूचना

अष्टादशाधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

भीष्मका अद्‌भुत पराक्रम करते हुए पाण्डव-सेनाका भीषण संहार

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

समं व्यूढेष्वनीकेषु भूयिष्ठेष्वनिवर्तिनः ।
ब्रह्मलोकपराः सर्वे समपद्यन्त भारत ॥ १ ॥

मूलम्

समं व्यूढेष्वनीकेषु भूयिष्ठेष्वनिवर्तिनः ।
ब्रह्मलोकपराः सर्वे समपद्यन्त भारत ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— भरतनन्दन! दोनों पक्षकी सेनाओंको समानरूपसे व्यूहबद्ध करके खड़ा किया गया था। अधिकांश सैनिक उस व्यूहमें ही स्थित थे। वे सब-के-सब युद्धमें पीठ न दिखानेवाले तथा ब्रह्मलोकको ही अपना परम लक्ष्य मानकर युद्धमें तत्पर रहनेवाले थे॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न ह्यनीकमनीकेन समसज्जत संकुले।
रथा न रथिभिः सार्धं पादाता न पदातिभिः ॥ २ ॥

मूलम्

न ह्यनीकमनीकेन समसज्जत संकुले।
रथा न रथिभिः सार्धं पादाता न पदातिभिः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु उस घमासान युद्धमें (सेनाओंका व्यूह भंग हो गया और युद्धके निश्चित नियमोंका उल्लंघन होने लगा) सेना सेनाके साथ योग्यतानुसार नहीं लड़ती थी, न रथी रथियोंके साथ युद्ध करते थे, न पैदल पैदलोंके साथ॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अश्वा नाश्वैरयुध्यन्त गजा न गजयोधिभिः।
उन्मत्तवन्महाराज युध्यन्ते तत्र भारत ॥ ३ ॥

मूलम्

अश्वा नाश्वैरयुध्यन्त गजा न गजयोधिभिः।
उन्मत्तवन्महाराज युध्यन्ते तत्र भारत ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

घुड़सवार घुड़सवारोंके साथ और हाथीसवार हाथीसवारोंके साथ नहीं लड़ते थे। भरतवंशी महाराज! सब लोग उन्मत्त-से होकर वहाँ योग्यताका विचार किये बिना सबके साथ युद्ध करते थे॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महान् व्यतिकरो रौद्रः सेनयोः समपद्यत।
नरनागगणेष्वेवं विकीर्णेषु च सर्वशः ॥ ४ ॥

मूलम्

महान् व्यतिकरो रौद्रः सेनयोः समपद्यत।
नरनागगणेष्वेवं विकीर्णेषु च सर्वशः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन दोनों सेनाओंमें अत्यन्त भयंकर घोलमेल हो गया। इसी तरह मनुष्य और हाथियोंके समूह सब ओर बिखर गये थे॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्षये तस्मिन् महारौद्रे निर्विशेषमजायत।
ततः शल्यः कृपश्चैव चित्रसेनश्च भारत ॥ ५ ॥
दुःशासनो विकर्णश्च रथानास्थाय भास्वरान्।
पाण्डवानां रणे शूरा ध्वजिनीं समकम्पयन् ॥ ६ ॥

मूलम्

क्षये तस्मिन् महारौद्रे निर्विशेषमजायत।
ततः शल्यः कृपश्चैव चित्रसेनश्च भारत ॥ ५ ॥
दुःशासनो विकर्णश्च रथानास्थाय भास्वरान्।
पाण्डवानां रणे शूरा ध्वजिनीं समकम्पयन् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस महाभयंकर युद्धमें किसीकी कोई विशेष पहचान नहीं रह गयी थी। भारत! तदनन्तर शल्य, कृपाचार्य, चित्रसेन, दुःशासन और विकर्ण—ये कौरववीर चमचमाते हुए रथोंपर बैठकर पाण्डवोंपर चढ़ आये और रणक्षेत्रमें उनकी सेनाको कँपाने लगे॥५-६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सा वध्यमाना समरे पाण्डुसेना महात्मभिः।
भ्राम्यते बहुधा राजन् मारुतेनेव नौर्जले ॥ ७ ॥

मूलम्

सा वध्यमाना समरे पाण्डुसेना महात्मभिः।
भ्राम्यते बहुधा राजन् मारुतेनेव नौर्जले ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! जैसे वायुके थपेड़े खाकर नौका जलमें चक्कर काटने लगती है, उसी प्रकार उन महामनस्वी वीरोंद्वारा समरांगणमें मारी जाती हुई पाण्डवसेना बहुधा इधर-उधर भटक रही थी॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा हि शैशिरः कालो गवां मर्माणि कृन्तति।
तथा पाण्डुसुतानां वै भीष्मो मर्माणि कृन्तति ॥ ८ ॥

मूलम्

यथा हि शैशिरः कालो गवां मर्माणि कृन्तति।
तथा पाण्डुसुतानां वै भीष्मो मर्माणि कृन्तति ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे शिशिरकाल गौओंके मर्मस्थानोंका उच्छेद करने लगता है, उसी प्रकार भीष्म पाण्डवोंके मर्मस्थानोंको विदीर्ण करने लगे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव तव सैन्यस्य पार्थेन च महात्मना।
नवमेघप्रतीकाशाः पातिता बहुधा गजाः ॥ ९ ॥

मूलम्

तथैव तव सैन्यस्य पार्थेन च महात्मना।
नवमेघप्रतीकाशाः पातिता बहुधा गजाः ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार महात्मा अर्जुनने आपकी सेनाके नूतन मेघके समान काले रंगवाले बहुत-से हाथी मार गिराये॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मृद्यमानाश्च दृश्यन्ते पार्थेन नरयूथपाः।
इषुभिस्ताड्यमानाश्च नाराचैश्च सहस्रशः ॥ १० ॥
पेतुरार्तस्वरं घोरं कृत्वा तत्र महागजाः।

मूलम्

मृद्यमानाश्च दृश्यन्ते पार्थेन नरयूथपाः।
इषुभिस्ताड्यमानाश्च नाराचैश्च सहस्रशः ॥ १० ॥
पेतुरार्तस्वरं घोरं कृत्वा तत्र महागजाः।

अनुवाद (हिन्दी)

अर्जुनके द्वारा बहुत-से पैदलोंके यूथपति मिट्टीमें मिलते दिखायी दे रहे थे। नाराचों और बाणोंसे पीड़ित हुए सहस्रों महान् गज घोर आर्तनाद करके पृथ्वीपर गिर रहे थे॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आनद्धाभरणैः कायैर्निहतानां महात्मनाम् ॥ ११ ॥
छन्नमायोधनं रेजे शिरोभिश्च सकुण्डलैः।

मूलम्

आनद्धाभरणैः कायैर्निहतानां महात्मनाम् ॥ ११ ॥
छन्नमायोधनं रेजे शिरोभिश्च सकुण्डलैः।

अनुवाद (हिन्दी)

मारे गये महामनस्वी वीरोंके आभरणभूषित शरीरों और कुण्डलमण्डित मस्तकोंसे आच्छादित हुई वह रणभूमि बड़ी शोभा पा रही थी॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिन्नेव महाराज महावीरवरक्षये ॥ १२ ॥
भीष्मे च युधि विक्रान्ते पाण्डवे च धनंजये।
ते पराक्रान्तमालोक्य राजन् युधि पितामहम् ॥ १३ ॥
अभ्यवर्तन्त ते पुत्राः सर्वे सैन्यपुरस्कृताः।
इच्छन्तो निधनं युद्धे स्वर्गं कृत्वा परायणम् ॥ १४ ॥
पाण्डवानभ्यवर्तन्त तस्मिन् वीरवरक्षये ।

मूलम्

तस्मिन्नेव महाराज महावीरवरक्षये ॥ १२ ॥
भीष्मे च युधि विक्रान्ते पाण्डवे च धनंजये।
ते पराक्रान्तमालोक्य राजन् युधि पितामहम् ॥ १३ ॥
अभ्यवर्तन्त ते पुत्राः सर्वे सैन्यपुरस्कृताः।
इच्छन्तो निधनं युद्धे स्वर्गं कृत्वा परायणम् ॥ १४ ॥
पाण्डवानभ्यवर्तन्त तस्मिन् वीरवरक्षये ।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! बड़े-बड़े वीरोंका विनाश करनेवाले उस महायुद्धमें जब एक ओर भीष्म और दूसरी ओर पाण्डुनन्दन धनंजय पराक्रम प्रकट कर रहे थे, उस समय पितामह भीष्मको महान् पराक्रममें प्रवृत्त देख आपके सभी पुत्र सेनाओंके साथ स्वर्गको अपना परम लक्ष्य बनाकर युद्धमें मृत्यु चाहते हुए पाण्डवोंपर चढ़ आये॥१२—१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पाण्डवाऽपि महाराज स्मरन्तो विविधान् बहून् ॥ १५ ॥
क्लेशान् कृतान् सपुत्रेण त्वया पूर्वं नराधिप।
भयं त्यक्त्वा रणे शूरा ब्रह्मलोकाय तत्पराः ॥ १६ ॥
तावकांस्तव पुत्रांश्च योधयन्ति प्रहृष्टवत्।

मूलम्

पाण्डवाऽपि महाराज स्मरन्तो विविधान् बहून् ॥ १५ ॥
क्लेशान् कृतान् सपुत्रेण त्वया पूर्वं नराधिप।
भयं त्यक्त्वा रणे शूरा ब्रह्मलोकाय तत्पराः ॥ १६ ॥
तावकांस्तव पुत्रांश्च योधयन्ति प्रहृष्टवत्।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! नरेश्वर! शूरवीर पाण्डव भी पुत्रोंसहित आपके दिये हुए नाना प्रकारके अनेक क्लेशोंका स्मरण करके युद्धमें भय छोड़कर ब्रह्मलोक जानेके लिये उत्सुक हो बड़ी प्रसन्नताके साथ आपके सैनिकों और पुत्रोंके साथ युद्ध करने लगे॥१५-१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सेनापतिस्तु समरे प्राह सेनां महारथः ॥ १७ ॥
अभिद्रवत गाङ्गेयं सोमकाः सृञ्जयैः सह।

मूलम्

सेनापतिस्तु समरे प्राह सेनां महारथः ॥ १७ ॥
अभिद्रवत गाङ्गेयं सोमकाः सृञ्जयैः सह।

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय समरभूमिमें पाण्डव-सेनापति महारथी धृष्टद्युम्नने अपनी सेनासे कहा—‘सोमको! तुम सृंजय वीरोंको साथ लेकर गंगानन्दन भीष्मपर टूट पड़ो’॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सेनापतिवचः श्रुत्वा सोमकाः सृञ्जयाश्च ते ॥ १८ ॥
अभ्यद्रवन्त गाङ्गेयं शरवृष्ट्या समाहताः।

मूलम्

सेनापतिवचः श्रुत्वा सोमकाः सृञ्जयाश्च ते ॥ १८ ॥
अभ्यद्रवन्त गाङ्गेयं शरवृष्ट्या समाहताः।

अनुवाद (हिन्दी)

सेनापतिकी यह बात सुनकर सोमक और सृंजय वीर बाणोंकी भारी वर्षासे घायल होनेपर भी गंगानन्दन भीष्मकी ओर दौड़े॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वध्यमानस्ततो राजन् पिता शान्तनवस्तव ॥ १९ ॥
अमर्षवशमापन्नो योधयामास सृञ्जयान् ।

मूलम्

वध्यमानस्ततो राजन् पिता शान्तनवस्तव ॥ १९ ॥
अमर्षवशमापन्नो योधयामास सृञ्जयान् ।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तब आपके पितृतुल्य शान्तनुनन्दन भीष्म बाणोंकी मार खाकर अमर्षमें भर गये और सृंजयोंके साथ युद्ध करने लगे॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य कीर्तिमतस्तात पुरा रामेण धीमता ॥ २० ॥
सम्प्रदत्तास्त्रशिक्षा वै परानीकविनाशनी ।
स तां शिक्षामधिष्ठाय कुर्वन् परबलक्षयम् ॥ २१ ॥
अहन्यहनि पार्थानां वृद्धः कुरुपितामहः।
भीष्मो दश सहस्राणि जघान परवीरहा ॥ २२ ॥

मूलम्

तस्य कीर्तिमतस्तात पुरा रामेण धीमता ॥ २० ॥
सम्प्रदत्तास्त्रशिक्षा वै परानीकविनाशनी ।
स तां शिक्षामधिष्ठाय कुर्वन् परबलक्षयम् ॥ २१ ॥
अहन्यहनि पार्थानां वृद्धः कुरुपितामहः।
भीष्मो दश सहस्राणि जघान परवीरहा ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तात! पूर्वकालमें परम बुद्धिमान् परशुरामजीने उन यशस्वी भीष्मको शत्रु-सेनाका विनाश करनेवाली जो अस्त्रशिक्षा प्रदान की थी, उसका आश्रय लेकर पाण्डवपक्षीय शत्रु-सेनाका संहार करते हुए कुरुकुलके वृद्ध पितामह एवं शत्रुवीरोंका नाश करनेवाले भीष्म नित्यप्रति दस हजार मुख्य योद्धाओंका वध करते आ रहे थे॥२०—२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिंस्तु दशमे प्राप्ते दिवसे भरतर्षभ।
भीष्मेणैकेन मत्स्येषु पञ्चालेषु च संयुगे ॥ २३ ॥
गजाश्वममितं हत्वा हताः सप्त महारथाः।
हत्वा पञ्च सहस्राणि रथानां प्रपितामहः ॥ २४ ॥
नराणां च महायुद्धे सहस्राणि चतुर्दश।
दन्तिनां च सहस्राणि हयानामयुतं पुनः ॥ २५ ॥
शिक्षाबलेन निहतं पित्रा तव विशाम्पते।

मूलम्

तस्मिंस्तु दशमे प्राप्ते दिवसे भरतर्षभ।
भीष्मेणैकेन मत्स्येषु पञ्चालेषु च संयुगे ॥ २३ ॥
गजाश्वममितं हत्वा हताः सप्त महारथाः।
हत्वा पञ्च सहस्राणि रथानां प्रपितामहः ॥ २४ ॥
नराणां च महायुद्धे सहस्राणि चतुर्दश।
दन्तिनां च सहस्राणि हयानामयुतं पुनः ॥ २५ ॥
शिक्षाबलेन निहतं पित्रा तव विशाम्पते।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! उस दसवें दिनके आनेपर एकमात्र भीष्मने युद्धमें मत्स्य और पांचालदेशकी सेनाओंके अगणित हाथी, घोड़ोंको मारकर सात महारथियोंका वध कर डाला। प्रजानाथ! फिर पाँच हजार रथियोंका वध करके आपके पितृतुल्य भीष्मने अपने अस्त्र-शिक्षाबलसे उस महायुद्धमें चौदह हजार पैदल सिपाहियों, एक हजार हाथियों और दस हजार घोड़ोंका संहार कर डाला॥२३—२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सर्वमहीपानां क्षपयित्वा वरूथिनीम् ॥ २६ ॥
विराटस्य प्रियो भ्राता शतानीको निपातितः।
शतानीकं च समरे हत्वा भीष्मः प्रतापवान् ॥ २७ ॥
सहस्राणि महाराज राज्ञां भल्लैरपातयत्।

मूलम्

ततः सर्वमहीपानां क्षपयित्वा वरूथिनीम् ॥ २६ ॥
विराटस्य प्रियो भ्राता शतानीको निपातितः।
शतानीकं च समरे हत्वा भीष्मः प्रतापवान् ॥ २७ ॥
सहस्राणि महाराज राज्ञां भल्लैरपातयत्।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर समस्त भूमिपालोंकी सेनाका उच्छेद करके राजा विराटके प्रिय भाई शतानीकको मार गिराया। महाराज! शतानीकको रणक्षेत्रमें मारकर प्रतापी भीष्मने भल्ल नामक बाणोंद्वारा एक हजार नरेशोंको धराशायी कर दिया॥२६-२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उद्विग्नाः समरे योधा विक्रोशन्ति धनंजयम् ॥ २८ ॥
ये च केचन पार्थानामभियाता धनंजयम्।
राजानो भीष्ममासाद्य गतास्ते यमसादनम् ॥ २९ ॥

मूलम्

उद्विग्नाः समरे योधा विक्रोशन्ति धनंजयम् ॥ २८ ॥
ये च केचन पार्थानामभियाता धनंजयम्।
राजानो भीष्ममासाद्य गतास्ते यमसादनम् ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस रणक्षेत्रमें समस्त योद्धा भीष्मके भयसे उद्विग्न हो अर्जुनको पुकारने लगे। पाण्डवपक्षके जो कोई नरेश अर्जुनके साथ गये थे, वे भीष्मके सामने पहुँचते ही यमलोकके पथिक हो गये॥२८-२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं दश दिशो भीष्मः शरजालैः समन्ततः।
अतीत्य सेनां पार्थानामवतस्थे चमूमुखे ॥ ३० ॥

मूलम्

एवं दश दिशो भीष्मः शरजालैः समन्ततः।
अतीत्य सेनां पार्थानामवतस्थे चमूमुखे ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार भीष्मने दसों दिशाओंमें सब ओर अपने बाणोंका जाल-सा बिछा दिया और कुन्तीकुमारोंकी सेनाको परास्त करके वे सेनाके प्रमुख भागमें स्थित हो गये॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स कृत्वा सुमहत् कर्म तस्मिन् वै दशमेऽहनि।
सेनयोरन्तरे तिष्ठन् प्रगृहीतशरासनः ॥ ३१ ॥

मूलम्

स कृत्वा सुमहत् कर्म तस्मिन् वै दशमेऽहनि।
सेनयोरन्तरे तिष्ठन् प्रगृहीतशरासनः ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दसवें दिन यह महान् पराक्रम करके हाथमें धनुष लिये वे दोनों सेनाओंके बीचमें खड़े हो गये॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न चैनं पार्थिवाः केचिच्छक्ता राजन् निरीक्षितुम्।
मध्यं प्राप्तं यथा ग्रीष्मे तपन्तं भास्करं दिवि ॥ ३२ ॥

मूलम्

न चैनं पार्थिवाः केचिच्छक्ता राजन् निरीक्षितुम्।
मध्यं प्राप्तं यथा ग्रीष्मे तपन्तं भास्करं दिवि ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! जैसे ग्रीष्म-ऋतुमें आकाशके मध्यभागमें पहुँचे हुए दोपहरके तपते हुए सूर्यकी ओर देखना कठिन होता है, उसी प्रकार उस समय कोई राजा भीष्मकी ओर आँख उठाकर देखनेका भी साहस न कर सके॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा दैत्यचमूं शक्रस्तापयामास संयुगे।
तथा भीष्मः पाण्डवेयांस्तापयामास भारत ॥ ३३ ॥

मूलम्

यथा दैत्यचमूं शक्रस्तापयामास संयुगे।
तथा भीष्मः पाण्डवेयांस्तापयामास भारत ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! जैसे पूर्वकालमें देवराज इन्द्रने संग्रामभूमिमें दैत्योंकी सेनाको संतप्त किया था, उसी प्रकार भीष्मजी पाण्डवयोद्धाओंको संताप दे रहे थे॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा चैनं पराक्रान्तमालोक्य मधुसूदनः।
उवाच देवकीपुत्रः प्रीयमाणो धनंजयम् ॥ ३४ ॥

मूलम्

तथा चैनं पराक्रान्तमालोक्य मधुसूदनः।
उवाच देवकीपुत्रः प्रीयमाणो धनंजयम् ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्हें इस प्रकार पराक्रम करते देख मधु दैत्यको मारनेवाले देवकीनन्दन भगवान् श्रीकृष्णने अर्जुनसे प्रसन्नतापूर्वक कहा—॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एष शान्तनवो भीष्मः सेनयोरन्तरे स्थितः।
संनिहत्य बलादेनं विजयस्ते भविष्यति ॥ ३५ ॥

मूलम्

एष शान्तनवो भीष्मः सेनयोरन्तरे स्थितः।
संनिहत्य बलादेनं विजयस्ते भविष्यति ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘अर्जुन! ये शान्तनुनन्दन भीष्म दोनों सेनाओंके बीचमें खड़े हैं। यदि तुम बलपूर्वक इन्हें मार सको तो तुम्हारी विजय हो जायगी॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बलात् संस्तम्भयस्वैनं यत्रैषा भिद्यते चमूः।
न हि भीष्मशरानन्यः सोढुमुत्सहते विभो ॥ ३६ ॥

मूलम्

बलात् संस्तम्भयस्वैनं यत्रैषा भिद्यते चमूः।
न हि भीष्मशरानन्यः सोढुमुत्सहते विभो ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘जहाँ ये इस सेनाका संहार कर रहे हैं, वहीं पहुँचकर इन्हें बलपूर्वक स्तम्भित कर दो (जिससे ये आगे या पीछे किसी ओर हट न सकें)। विभो! तुम्हारे सिवा दूसरा कोई ऐसा नहीं है, जो भीष्मके बाणोंकी चोट सह सके’॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तस्मिन् क्षणे राजंश्चोदितो वानरध्वजः।
सध्वजं सरथं साश्वं भीष्ममन्तर्दधे शरैः ॥ ३७ ॥

मूलम्

ततस्तस्मिन् क्षणे राजंश्चोदितो वानरध्वजः।
सध्वजं सरथं साश्वं भीष्ममन्तर्दधे शरैः ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इस प्रकार भगवान्‌से प्रेरित होकर कपिध्वज अर्जुनने उसी क्षण अपने बाणोंद्वारा ध्वज, रथ और घोड़ोंसहित भीष्मको आच्छादित कर दिया॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स चापि कुरुमुख्यानामृषभः पाण्डवेरितान्।
शरव्रातैः शरव्रातान् बहुधा विदुधाव तान् ॥ ३८ ॥

मूलम्

स चापि कुरुमुख्यानामृषभः पाण्डवेरितान्।
शरव्रातैः शरव्रातान् बहुधा विदुधाव तान् ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुरुश्रेष्ठ वीरोंमें प्रधान भीष्मने भी अपने बाणसमूहोंद्वारा अर्जुनके चलाये हुए बाणसमुदायके टुकड़े-टुकड़े कर दिये॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(तथा पुनर्जघानाशु पाण्डवानां महारथान्।
शरैरशनिकल्पैश्च शिताग्रैश्च सुपर्वभिः ॥)

मूलम्

(तथा पुनर्जघानाशु पाण्डवानां महारथान्।
शरैरशनिकल्पैश्च शिताग्रैश्च सुपर्वभिः ॥)

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् उत्तम गाँठ और तीखी धारवाले वज्रतुल्य बाणोंद्वारा वे पुनः पाण्डव महारथियोंका शीघ्रतापूर्वक वध करने लगे।

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः पञ्चालराजश्च धृष्टकेतुश्च वीर्यवान्।
पाण्डवो भीमसेनश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः ॥ ३९ ॥
यमौ च चेकितानश्च केकयाः पञ्च चैव ह।
सात्यकिश्च महाबाहुः सौभद्रोऽथ घटोत्कचः ॥ ४० ॥
द्रौपदेयाः शिखण्डी च कुन्तिभोजश्च वीर्यवान्।
सुशर्मा च विराटश्च पाण्डवेया महाबलाः ॥ ४१ ॥
एते चान्ये च बहवः पीडिता भीष्मसायकैः।
समुद्‌धृताः फाल्गुनेन निमग्नाः शोकसागरे ॥ ४२ ॥

मूलम्

ततः पञ्चालराजश्च धृष्टकेतुश्च वीर्यवान्।
पाण्डवो भीमसेनश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः ॥ ३९ ॥
यमौ च चेकितानश्च केकयाः पञ्च चैव ह।
सात्यकिश्च महाबाहुः सौभद्रोऽथ घटोत्कचः ॥ ४० ॥
द्रौपदेयाः शिखण्डी च कुन्तिभोजश्च वीर्यवान्।
सुशर्मा च विराटश्च पाण्डवेया महाबलाः ॥ ४१ ॥
एते चान्ये च बहवः पीडिता भीष्मसायकैः।
समुद्‌धृताः फाल्गुनेन निमग्नाः शोकसागरे ॥ ४२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी समय पांचालराज द्रुपद, पराक्रमी धृष्टकेतु, पाण्डुनन्दन भीमसेन, द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न, नकुल-सहदेव, चेकितान, पाँच केकयराजकुमार, महाबाहु सात्यकि, सुभद्राकुमार अभिमन्यु, घटोत्कच, द्रौपदीके पाँचों पुत्र, शिखण्डी, पराक्रमी कुन्तिभोज, सुशर्मा तथा विराट—ये और दूसरे भी बहुत-से महाबली पाण्डव-सैनिक भीष्मके बाणोंसे पीड़ित हो शोकके समुद्रमें डूब रहे थे; परंतु अर्जुनने उन सबका उद्धार कर दिया॥३९—४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शिखण्डी वेगेन प्रगृह्य परमायुधम्।
भीष्ममेवाभिदुद्राव रक्ष्यमाणः किरीटिना ॥ ४३ ॥

मूलम्

ततः शिखण्डी वेगेन प्रगृह्य परमायुधम्।
भीष्ममेवाभिदुद्राव रक्ष्यमाणः किरीटिना ॥ ४३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब शिखण्डी अपने उत्तम अस्त्र-शस्त्रोंको लेकर बड़े वेगसे भीष्मकी ही ओर दौड़ा। उस समय किरीटधारी अर्जुन उसकी रक्षा कर रहे थे॥४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽस्यानुचरान् हत्वा सर्वान् रणविभागवित्।
भीष्ममेवाभिदुद्राव बीभत्सुरपराजितः ॥ ४४ ॥

मूलम्

ततोऽस्यानुचरान् हत्वा सर्वान् रणविभागवित्।
भीष्ममेवाभिदुद्राव बीभत्सुरपराजितः ॥ ४४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् युद्धविभागके अच्छे ज्ञाता और किसीसे भी परास्त न होनेवाले अर्जुनने भीष्मके पीछे चलनेवाले समस्त योद्धाओंको मारकर स्वयं भी भीष्मपर ही धावा किया॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सात्यकिश्चेकितानश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः ।
विराटो द्रुपदश्चैव माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ ॥ ४५ ॥
दुद्रुवुर्भीष्ममेवाजौ रक्षिता दृढधन्वना ।

मूलम्

सात्यकिश्चेकितानश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः ।
विराटो द्रुपदश्चैव माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ ॥ ४५ ॥
दुद्रुवुर्भीष्ममेवाजौ रक्षिता दृढधन्वना ।

अनुवाद (हिन्दी)

इनके साथ सात्यकि, चेकितान, द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न, विराट, द्रुपद, माद्रीकुमार पाण्डुपुत्र नकुल-सहदेवने भी युद्धमें भीष्मपर ही आक्रमण किया। ये सब-के-सब सुदृढ़ धनुष धारण करनेवाले अर्जुनसे सुरक्षित थे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभिमन्युश्च समरे द्रौपद्याः पञ्च चात्मजाः ॥ ४६ ॥
दुद्रुवुः समरे भीष्मं समुद्यतमहायुधाः।

मूलम्

अभिमन्युश्च समरे द्रौपद्याः पञ्च चात्मजाः ॥ ४६ ॥
दुद्रुवुः समरे भीष्मं समुद्यतमहायुधाः।

अनुवाद (हिन्दी)

द्रौपदीके पाँचों पुत्र और अभिमन्यु भी महान् अस्त्र-शस्त्र लिये उस समरांगणमें भीष्मकी ही ओर दौड़े॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते सर्वे दृढधन्वानः संयुगेष्वपलायिनः ॥ ४७ ॥
बहुधा भीष्ममानर्च्छुर्मार्गणैः क्षतमार्गणैः ।

मूलम्

ते सर्वे दृढधन्वानः संयुगेष्वपलायिनः ॥ ४७ ॥
बहुधा भीष्ममानर्च्छुर्मार्गणैः क्षतमार्गणैः ।

अनुवाद (हिन्दी)

ये सभी वीर सुदृढ़ धनुष धारण करनेवाले और युद्धसे कभी पीछे न हटनेवाले थे। इन्होंने शत्रुओंके बाणोंको नष्ट करनेवाले सायकोंद्वारा भीष्मको बारंबार पीड़ित किया॥४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विधूय तान् बाणगणान् ये मुक्ताः पार्थिवोत्तमैः ॥ ४८ ॥
पाण्डवानामदीनात्मा व्यगाहत वरूथिनीम् ।

मूलम्

विधूय तान् बाणगणान् ये मुक्ताः पार्थिवोत्तमैः ॥ ४८ ॥
पाण्डवानामदीनात्मा व्यगाहत वरूथिनीम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु उदारचेता भीष्म उन श्रेष्ठ राजाओंके छोड़े हुए समस्त बाणसमूहोंका नाश करके पाण्डवोंकी विशाल सेनामें घुस गये॥४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चक्रे शरविघातं च क्रीडन्निव पितामहः ॥ ४९ ॥
नाभिसंधत्त पाञ्चाल्ये स्मयमानो मुहुर्मुहुः।
स्त्रीत्वं तस्यानुसंस्कृत्य भीष्मो बाणात् शिखण्डिने ॥ ५० ॥

मूलम्

चक्रे शरविघातं च क्रीडन्निव पितामहः ॥ ४९ ॥
नाभिसंधत्त पाञ्चाल्ये स्मयमानो मुहुर्मुहुः।
स्त्रीत्वं तस्यानुसंस्कृत्य भीष्मो बाणात् शिखण्डिने ॥ ५० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ पितामह भीष्म खेल-सा करते हुए अपने बाणोंद्वारा पाण्डवसैनिकोंके अस्त्र-शस्त्रोंका विनाश करने लगे। परंतु शिखण्डीके स्त्रीत्वका स्मरण करके वे बारंबार मुसकराकर रह जाते थे; उसपर बाण नहीं चलाते थे॥४९-५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जघान द्रुपदानीके रथान् सप्त महारथः।
ततः किलकिलाशब्दः क्षणेन समभूत् तदा ॥ ५१ ॥
मत्स्यपाञ्चालचेदीनां तमेकमभिधावताम् ।

मूलम्

जघान द्रुपदानीके रथान् सप्त महारथः।
ततः किलकिलाशब्दः क्षणेन समभूत् तदा ॥ ५१ ॥
मत्स्यपाञ्चालचेदीनां तमेकमभिधावताम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

महारथी भीष्मने द्रुपदकी सेनाके सात रथियोंको मार डाला। तब एकमात्र भीष्मपर धावा करनेवाले मत्स्य, पांचाल और चेदिदेशके योद्धाओंका महान् कोलाहल क्षणभरमें वहाँ गूँज उठा॥५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते नराश्वरथव्रातैर्मार्गणैश्च परंतप ॥ ५२ ॥
तमेकं छादयामासुर्मेघा इव दिवाकरम्।
भीष्मं भागीरथीपुत्रं प्रतपन्तं रणे रिपून् ॥ ५३ ॥

मूलम्

ते नराश्वरथव्रातैर्मार्गणैश्च परंतप ॥ ५२ ॥
तमेकं छादयामासुर्मेघा इव दिवाकरम्।
भीष्मं भागीरथीपुत्रं प्रतपन्तं रणे रिपून् ॥ ५३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतप! जैसे बादल सूर्यको ढक लेते हैं, उसी प्रकार उन वीरोंने पैदल, घुड़सवार तथा रथियोंके समुदायसे एवं बहुसंख्यक बाणोंद्वारा भीष्मको आच्छादित कर दिया। उस समय गंगानन्दन भीष्म अकेले युद्धके मैदानमें शत्रुओंको अत्यन्त संतप्त कर रहे थे॥५२-५३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तस्य च तेषां च युद्धे देवासुरोपमे।
किरीटी भीष्ममागच्छत्‌ पुरस्कृत्य शिखण्डिनम् ॥ ५४ ॥

मूलम्

ततस्तस्य च तेषां च युद्धे देवासुरोपमे।
किरीटी भीष्ममागच्छत्‌ पुरस्कृत्य शिखण्डिनम् ॥ ५४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर भीष्म तथा उन योद्धाओंमें देवासुर-संग्रामके समान भयंकर युद्ध होने लगा। इसी बीचमें किरीटधारी अर्जुन शिखण्डीको आगे करके भीष्मके समीप जा पहुँचे॥५४॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि भीष्मपराक्रमे अष्टादशाधिकशततमोऽध्यायः ॥ ११८ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें भीष्मपराक्रमविषयक एक सौ अठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥११८॥

सूचना (हिन्दी)

[दाक्षिणात्य अधिक पाठका १ श्लोक मिलाकर कुल ५५ श्लोक हैं।]