११७ संकुलयुद्धे

भागसूचना

सप्तदशाधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

उभय पक्षकी सेनाओंका युद्ध, दुःशासनका पराक्रम तथा अर्जुनके द्वारा भीष्मका मूर्च्छित होना

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिखण्डी तु रणे भीष्ममासाद्य पुरुषर्षभम्।
दशभिर्निशितैर्भल्लैराजघान स्तनान्तरे ॥ १ ॥

मूलम्

शिखण्डी तु रणे भीष्ममासाद्य पुरुषर्षभम्।
दशभिर्निशितैर्भल्लैराजघान स्तनान्तरे ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— महाराज! शिखण्डीने रणक्षेत्रमें पुरुषरत्न भीष्मजीके सामने पहुँचकर उनकी छातीमें दस तीखे भल्ल नामक बाण मारे॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिखण्डिनं तु गाङ्गेयः क्रोधदीप्तेन चक्षुषा।
सम्प्रैक्षत कटाक्षेण निर्दहन्निव भारत ॥ २ ॥

मूलम्

शिखण्डिनं तु गाङ्गेयः क्रोधदीप्तेन चक्षुषा।
सम्प्रैक्षत कटाक्षेण निर्दहन्निव भारत ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! गंगानन्दन भीष्मने क्रोधसे प्रज्वलित हुई दृष्टि एवं कनखियोंसे शिखण्डीकी ओर इस प्रकार देखा, मानो वे उसे भस्म कर डालेंगे॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्त्रीत्वं तस्य स्मरन् राजन् सर्वलोकस्य पश्यतः।
नाजघान रणे भीष्मः स च तन्नावबुद्धवान् ॥ ३ ॥

मूलम्

स्त्रीत्वं तस्य स्मरन् राजन् सर्वलोकस्य पश्यतः।
नाजघान रणे भीष्मः स च तन्नावबुद्धवान् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! किंतु उसके स्त्रीत्वका विचार करके भीष्मजीने युद्धस्थलमें उसपर कोई आघात नहीं किया। इस बातको सब लोगोंने देखा; पर शिखण्डी इस बातको नहीं समझ सका॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अर्जुनस्तु महाराज शिखण्डिनमभाषत ।
अभिद्रवस्व त्वरितं जहि चैनं पितामहम् ॥ ४ ॥

मूलम्

अर्जुनस्तु महाराज शिखण्डिनमभाषत ।
अभिद्रवस्व त्वरितं जहि चैनं पितामहम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! उस समय अर्जुनने शिखण्डीसे कहा—‘वीर! तुम झटपट आगे बढ़ो और इन पितामह भीष्मका वध कर डालो॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

किं ते विवक्षया वीर जहि भीष्मं महारथम्।
न ह्यन्यमनुपश्यामि कञ्चिद् यौधिष्ठिरे बले ॥ ५ ॥
यः शक्तः समरे भीष्मं प्रतियोद्‌धुमिहाहवे।
ऋते त्वां पुरुषव्याघ्र सत्यमेतद् ब्रवीमि ते ॥ ६ ॥

मूलम्

किं ते विवक्षया वीर जहि भीष्मं महारथम्।
न ह्यन्यमनुपश्यामि कञ्चिद् यौधिष्ठिरे बले ॥ ५ ॥
यः शक्तः समरे भीष्मं प्रतियोद्‌धुमिहाहवे।
ऋते त्वां पुरुषव्याघ्र सत्यमेतद् ब्रवीमि ते ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘वीर! इस विषयमें बार-बार विचारने या संदेह निवारणके लिये कुछ कहनेकी आवश्यकता नहीं है। तुम महारथी भीष्मको शीघ्र मार डालो। युधिष्ठिरकी सेनामें तुम्हारे सिवा दूसरे किसीको ऐसा नहीं देखता, जो समरभूमिमें भीष्मका सामना कर सके। पुरुषसिंह! मैं तुमसे यह सच्ची बात कह रहा हूँ’॥५—६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तस्तु पार्थेन शिखण्डी भरतर्षभ।
शरैर्नानाविधैस्तूर्णं पितामहमवाकिरत् ॥ ७ ॥

मूलम्

एवमुक्तस्तु पार्थेन शिखण्डी भरतर्षभ।
शरैर्नानाविधैस्तूर्णं पितामहमवाकिरत् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! अर्जुनके ऐसा कहनेपर शिखण्डी तुरंत ही पितामह भीष्मपर नाना प्रकारके बाणोंकी वर्षा करने लगा॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अचिन्तयित्वा तान् बाणान् पिता देवव्रतस्तव।
अर्जुनं समरे क्रुद्धं वारयामास सायकैः ॥ ८ ॥

मूलम्

अचिन्तयित्वा तान् बाणान् पिता देवव्रतस्तव।
अर्जुनं समरे क्रुद्धं वारयामास सायकैः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु आपके पितृतुल्य देवव्रतने उन बाणोंकी कुछ भी परवा न करके समरमें कुपित हुए अर्जुनको अपने बाणोंद्वारा रोक दिया॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव च चमूं सर्वां पाण्डवानां महारथः।
अप्रैषीत् स शरैस्तीक्ष्णैः परलोकाय मारिष ॥ ९ ॥

मूलम्

तथैव च चमूं सर्वां पाण्डवानां महारथः।
अप्रैषीत् स शरैस्तीक्ष्णैः परलोकाय मारिष ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! इसी प्रकार महारथी भीष्मने पाण्डवोंकी उस सारी सेनाको (जो उनके सामने मौजूद थी) अपने तीखे बाणोंद्वारा मारकर परलोक भेज दिया॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव पाण्डवा राजन् सैन्येन महता वृताः।
भीष्मं संछादयामासुर्मेघा इव दिवाकरम् ॥ १० ॥

मूलम्

तथैव पाण्डवा राजन् सैन्येन महता वृताः।
भीष्मं संछादयामासुर्मेघा इव दिवाकरम् ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! फिर विशाल सेनासे घिरे हुए पाण्डवोंने अपने बाणोंद्वारा भीष्मको उसी प्रकार ढक दिया, जैसे बादल सूर्यदेवको आच्छादित कर देते हैं॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स समन्तात् परिवृतो भारतो भरतर्षभ।
निर्ददाह रणे शूरान् वने वह्निरिव ज्वलन् ॥ ११ ॥

मूलम्

स समन्तात् परिवृतो भारतो भरतर्षभ।
निर्ददाह रणे शूरान् वने वह्निरिव ज्वलन् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतभूषण! उस रणक्षेत्रमें सब ओरसे घिरे हुए भीष्म वनमें प्रज्वलित हुए दावानलके समान शूरवीरोंको दग्ध करने लगे॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राद्भुतमपश्याम तव पुत्रस्य पौरुषम्।
अयोधयच्च यत् पार्थं जुगोप च पितामहम् ॥ १२ ॥

मूलम्

तत्राद्भुतमपश्याम तव पुत्रस्य पौरुषम्।
अयोधयच्च यत् पार्थं जुगोप च पितामहम् ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय वहाँ हमने आपके पुत्र दुःशासनका अद्‌भुत पराक्रम देखा! एक तो वह अर्जुनके साथ युद्ध कर रहा था और दूसरे पितामह भीष्मकी रक्षामें भी तत्पर था॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कर्मणा तेन समरे तव पुत्रस्य धन्विनः।
दुःशासनस्य तुतुषुः सर्वे लोका महात्मनः ॥ १३ ॥

मूलम्

कर्मणा तेन समरे तव पुत्रस्य धन्विनः।
दुःशासनस्य तुतुषुः सर्वे लोका महात्मनः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! युद्धमें आपके धनुर्धर महामनस्वी पुत्र दुःशासनके उस पराक्रमसे सब लोग बड़े संतुष्ट हुए॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यदेकः समरे पार्थान् सार्जुनान् समयोधयत्।
न चैनं पाण्डवा युद्धे वारयामासुरुल्बणम् ॥ १४ ॥

मूलम्

यदेकः समरे पार्थान् सार्जुनान् समयोधयत्।
न चैनं पाण्डवा युद्धे वारयामासुरुल्बणम् ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह समरभूमिमें अकेला ही अर्जुनसहित समस्त कुन्तीकुमारोंसे युद्ध कर रहा था; वहाँ पाण्डव उस प्रचण्ड पराक्रमी दुःशासनको रोक नहीं पाते थे॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुःशासनेन समरे रथिनो विरथीकृताः।
सादिनश्च महेष्वासा हस्तिनश्च महाबलाः ॥ १५ ॥
विनिर्भिन्नाः शरैस्तीक्ष्णैर्निपेतुर्वसुधातले ।

मूलम्

दुःशासनेन समरे रथिनो विरथीकृताः।
सादिनश्च महेष्वासा हस्तिनश्च महाबलाः ॥ १५ ॥
विनिर्भिन्नाः शरैस्तीक्ष्णैर्निपेतुर्वसुधातले ।

अनुवाद (हिन्दी)

दुःशासनने वहाँ युद्धके मैदानमें कितने ही रथियोंको रथहीन कर दिया। उसके तीखे बाणोंसे विदीर्ण होकर बहुत-से महाधनुर्धर घुड़सवार और महाबली गजारोही पृथ्वीपर गिर पड़े॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शरातुरास्तथैवान्ये दन्तिनो विद्रुता दिशः ॥ १६ ॥
यथाग्निरिन्धनं प्राप्य ज्वलेद्‌ दीप्तार्चिरुल्बणम्।
तथा जज्वाल पुत्रस्ते पाण्डुसेनां विनिर्दहन् ॥ १७ ॥

मूलम्

शरातुरास्तथैवान्ये दन्तिनो विद्रुता दिशः ॥ १६ ॥
यथाग्निरिन्धनं प्राप्य ज्वलेद्‌ दीप्तार्चिरुल्बणम्।
तथा जज्वाल पुत्रस्ते पाण्डुसेनां विनिर्दहन् ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसके बाणोंसे आतुर होकर बहुत-से दन्तार हाथी भी चारों दिशाओंमें भागने लगे। जैसे आग ईंधन पाकर दहकती हुई लपटोंके साथ प्रचण्ड वेगसे प्रज्वलित हो उठती है, उसी प्रकार पाण्डव-सेनाको दग्ध करता हुआ आपका पुत्र दुःशासन अपने तेजसे प्रज्वलित हो रहा था॥१६-१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं भारतमहामात्रं पाण्डवानां महारथः।
जेतुं नोत्सहते कश्चिन्नाभ्युद्यातुं कथंचन ॥ १८ ॥
ऋते महेन्द्रतनयाच्छ्‌वेताश्वात् कृष्णसारथेः ।

मूलम्

तं भारतमहामात्रं पाण्डवानां महारथः।
जेतुं नोत्सहते कश्चिन्नाभ्युद्यातुं कथंचन ॥ १८ ॥
ऋते महेन्द्रतनयाच्छ्‌वेताश्वात् कृष्णसारथेः ।

अनुवाद (हिन्दी)

कृष्णसारथि, श्वेतवाहन महेन्द्रकुमार अर्जुनको छोड़कर दूसरा कोई भी पाण्डव महारथी भरतकुलके उस महाबली वीरको जीतने या उसके सामने जानेका साहस किसी प्रकार न कर सका॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स हि तं समरे राजन् निर्जित्य विजयोऽर्जुनः ॥ १९ ॥
भीष्ममेवाभिदुद्राव सर्वसैन्यस्य पश्यतः ।

मूलम्

स हि तं समरे राजन् निर्जित्य विजयोऽर्जुनः ॥ १९ ॥
भीष्ममेवाभिदुद्राव सर्वसैन्यस्य पश्यतः ।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! विजयी अर्जुनने समरभूमिमें दुःशासनको जीतकर समस्त सेनाओंके देखते-देखते भीष्मपर ही आक्रमण किया॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विजितस्तव पुत्रोऽपि भीष्मबाहुव्यपाश्रयः ॥ २० ॥
पुनः पुनः समाश्वस्य प्रायुध्यत मदोत्कटः।
अर्जुनस्तु रणे राजन् योधयन् संव्यराजत ॥ २१ ॥

मूलम्

विजितस्तव पुत्रोऽपि भीष्मबाहुव्यपाश्रयः ॥ २० ॥
पुनः पुनः समाश्वस्य प्रायुध्यत मदोत्कटः।
अर्जुनस्तु रणे राजन् योधयन् संव्यराजत ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मकी भुजाओंके आश्रयमें रहनेवाला आपका मदोन्मत्त पुत्र दुःशासन पराजित होनेपर भी बार-बार सुस्ताकर बड़े वेगसे युद्ध करता था। राजन्! अर्जुन उस रणक्षेत्रमें युद्ध करते हुए बड़ी शोभा पा रहे थे॥२०-२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिखण्डी तु रणे राजन्‌ विव्याधैव पितामहम्।
शरैरशनिसंस्पर्शैस्तथा सर्पविषोपमैः ॥ २२ ॥

मूलम्

शिखण्डी तु रणे राजन्‌ विव्याधैव पितामहम्।
शरैरशनिसंस्पर्शैस्तथा सर्पविषोपमैः ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! उस समय रणक्षेत्रमें शिखण्डी वज्रके समान स्पर्शवाले तथा सर्पविषके समान भयंकर बाणोंद्वारा पितामह भीष्मको घायल करने लगा॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न च स्म ते रुजं चक्रुः पितुस्तव जनेश्वर।
स्मयमानस्तु गाङ्गेयस्तान् बाणाञ्जगृहे तदा ॥ २३ ॥

मूलम्

न च स्म ते रुजं चक्रुः पितुस्तव जनेश्वर।
स्मयमानस्तु गाङ्गेयस्तान् बाणाञ्जगृहे तदा ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु जनेश्वर! उसके चलाये हुए वे बाण आपके ताऊके शरीरमें कोई घाव या वेदना नहीं उत्पन्न कर पाते थे। गंगानन्दन भीष्म उस समय मुसकराते हुए उन बाणोंकी चोट सह रहे थे॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उष्णार्तो हि नरो यद्वज्जलधाराः प्रतीच्छति।
तथा जग्राह गाङ्गेयः शरधाराः शिखण्डिनः ॥ २४ ॥

मूलम्

उष्णार्तो हि नरो यद्वज्जलधाराः प्रतीच्छति।
तथा जग्राह गाङ्गेयः शरधाराः शिखण्डिनः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे गर्मीसे कष्ट पानेवाला मनुष्य अपने ऊपर जलकी धारा ग्रहण करता है, उसी प्रकार गंगानन्दन भीष्म शिखण्डीकी बाणधाराको ग्रहण कर रहे थे॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं क्षत्रिया महाराज ददृशुर्घोरमाहवे।
भीष्मं दहन्तं सैन्यानि पाण्डवानां महात्मनाम् ॥ २५ ॥

मूलम्

तं क्षत्रिया महाराज ददृशुर्घोरमाहवे।
भीष्मं दहन्तं सैन्यानि पाण्डवानां महात्मनाम् ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! उस युद्धस्थलमें समस्त क्षत्रियोंने देखा, भयंकर रूपधारी भीष्म महामना पाण्डवोंकी सेनाओंको दग्ध कर रहे थे॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽब्रवीत्तव सुतः सर्वसैन्यानि मारिष।
अभिद्रवत संग्रामे फाल्गुनं सर्वतो रणे ॥ २६ ॥

मूलम्

ततोऽब्रवीत्तव सुतः सर्वसैन्यानि मारिष।
अभिद्रवत संग्रामे फाल्गुनं सर्वतो रणे ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! उस समय आपके पुत्रने अपने समस्त सैनिकोंसे कहा—‘वीरो! तुमलोग समरभूमिमें अर्जुनपर चारों ओरसे धावा करो॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीष्मो वः समरे सर्वान् पालयिष्यति धर्मवित्।
ते भयं सुमहत् त्यक्त्वा पाण्डवान् प्रति युध्यत ॥ २७ ॥

मूलम्

भीष्मो वः समरे सर्वान् पालयिष्यति धर्मवित्।
ते भयं सुमहत् त्यक्त्वा पाण्डवान् प्रति युध्यत ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘धर्मज्ञ भीष्म समरांगणमें तुम सब लोगोंकी रक्षा करेंगे। अतः तुमलोग महान् भयका परित्याग करके पाण्डवोंके साथ युद्ध करो॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हेमतालेन महता भीष्मस्तिष्ठति पालयन्।
सर्वेषां धार्तराष्ट्राणां समरे शर्म वर्म च ॥ २८ ॥

मूलम्

हेमतालेन महता भीष्मस्तिष्ठति पालयन्।
सर्वेषां धार्तराष्ट्राणां समरे शर्म वर्म च ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘सुवर्णमय तालचिह्नसे युक्त विशाल ध्वजसे सुशोभित होनेवाले भीष्मजी हम सबकी रक्षा करते हुए युद्धके मैदानमें खड़े हैं। हम सभी धृतराष्ट्रपुत्रोंके लिये ये ही कल्याणकारी आश्रय और कवच हैं॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्रिदशाऽपि समुद्युक्ता नालं भीष्मं समासितुम्।
किमु पार्था महात्मानं मर्त्यभूता महाबलाः ॥ २९ ॥

मूलम्

त्रिदशाऽपि समुद्युक्ता नालं भीष्मं समासितुम्।
किमु पार्था महात्मानं मर्त्यभूता महाबलाः ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘यदि सम्पूर्ण देवता भी एकत्र हो युद्धके लिये उद्योग करें तो वे भी भीष्मका सामना करनेमें समर्थ नहीं हो सकते; फिर कुन्तीके महाबली पुत्र तो मरणधर्मा मनुष्य ही हैं। वे उन महात्मा भीष्मका सामना क्या कर सकते हैं?॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्माद् द्रवत मा योधाः फाल्गुनं प्राप्य संयुगे।
अहमद्य रणे यत्तो योधयिष्यामि पाण्डवम् ॥ ३० ॥
सहितः सर्वतो यत्तैर्भवद्भिर्वसुधाधिपैः ।

मूलम्

तस्माद् द्रवत मा योधाः फाल्गुनं प्राप्य संयुगे।
अहमद्य रणे यत्तो योधयिष्यामि पाण्डवम् ॥ ३० ॥
सहितः सर्वतो यत्तैर्भवद्भिर्वसुधाधिपैः ।

अनुवाद (हिन्दी)

‘अतः योद्धाओ! युद्धभूमिमें अर्जुनको सामने पाकर पीछे न भागो। मैं स्वयं समरांगणमें प्रयत्नपूर्वक आज पाण्डुकुमार अर्जुनके साथ युद्ध करूँगा। तुम सब नरेश सब ओरसे सावधान होकर मेरे साथ रहो’॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तच्छ्रुत्वा तु वचो राजंस्तव पुत्रस्य धन्विनः ॥ ३१ ॥
सर्वे योधाः सुसंरब्धा बलवन्तो महाबलाः।

मूलम्

तच्छ्रुत्वा तु वचो राजंस्तव पुत्रस्य धन्विनः ॥ ३१ ॥
सर्वे योधाः सुसंरब्धा बलवन्तो महाबलाः।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! आपके धनुर्धर पुत्रकी ये जोशभरी बातें सुनकर वे सभी महाबली और शक्तिशाली योद्धा रोषमें भर गये॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते विदेहाः कलिङ्गाश्च दासेरकगणाश्च ह ॥ ३२ ॥
अभिपेतुर्निषादाश्च सौवीराश्च महारणे ।
बाह्लीका दरदाश्चैव प्रतीच्योदीच्यमालवाः ॥ ३३ ॥
अभीषाहाः शूरसेनाः शिबयोऽथ वसातयः।
शाल्वाः शकास्त्रिगर्ताश्च अम्बष्ठाः केकयैः सह ॥ ३४ ॥
अभिपेतू रणे पार्थं पतङ्गा इव पावकम्।

मूलम्

ते विदेहाः कलिङ्गाश्च दासेरकगणाश्च ह ॥ ३२ ॥
अभिपेतुर्निषादाश्च सौवीराश्च महारणे ।
बाह्लीका दरदाश्चैव प्रतीच्योदीच्यमालवाः ॥ ३३ ॥
अभीषाहाः शूरसेनाः शिबयोऽथ वसातयः।
शाल्वाः शकास्त्रिगर्ताश्च अम्बष्ठाः केकयैः सह ॥ ३४ ॥
अभिपेतू रणे पार्थं पतङ्गा इव पावकम्।

अनुवाद (हिन्दी)

वे विदेह, कलिंग, दासेरक, निषाद, सौवीर, बाह्लीक, दरद, प्रतीच्य, उदीच्य, मालव, अभीषाह, शूरसेन, शिबि, वसाति, शाल्व, शक, त्रिगर्त, अम्बष्ठ और केकयदेशोंके नरेशगण उस महायुद्धमें कुन्तीकुमार अर्जुनपर उसी प्रकार धावा करने लगे, जैसे पतंग प्रज्वलित आगपर टूटे पड़ते हैं॥३२—३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शलभा इव राजेन्द्र पार्थमप्रतिमं रणे।
एतान् सर्वान् सहानीकान् महाराज महारथान् ॥ ३५ ॥
दिव्यान्यस्त्राणि संचिन्त्य प्रसंधाय धनंजयः।
स तैरस्त्रैर्महावेगैर्ददाह सुमहाबलः ॥ ३६ ॥
शरप्रतापैर्बीभत्सुः पतङ्गानिव पावकः ।

मूलम्

शलभा इव राजेन्द्र पार्थमप्रतिमं रणे।
एतान् सर्वान् सहानीकान् महाराज महारथान् ॥ ३५ ॥
दिव्यान्यस्त्राणि संचिन्त्य प्रसंधाय धनंजयः।
स तैरस्त्रैर्महावेगैर्ददाह सुमहाबलः ॥ ३६ ॥
शरप्रतापैर्बीभत्सुः पतङ्गानिव पावकः ।

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! उस रणक्षेत्रमें कुन्तीकुमार अर्जुन अप्रतिम तेजस्वी वीर थे और पूर्वोक्त नरेश उनके सामने पतंगोंके समान दौड़े चले आ रहे थे। महाराज! महाबली धनंजयने दिव्यास्त्रोंका चिन्तन करके उनका धनुषपर संधान किया और उन महावेगशाली अस्त्रोंद्वारा सेनासहित इन समस्त महारथियोंको जलाकर भस्म कर डाला। जैसे आग पतंगोंको जलाती है, उसी प्रकार अर्जुनने अपने बाणोंके प्रतापसे उन सबको दग्ध कर दिया॥३५-३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य बाणसहस्राणि सृजतो दृढधन्विनः ॥ ३७ ॥
दीप्यमानमिवाकाशे गाण्डीवं समदृश्यत ।

मूलम्

तस्य बाणसहस्राणि सृजतो दृढधन्विनः ॥ ३७ ॥
दीप्यमानमिवाकाशे गाण्डीवं समदृश्यत ।

अनुवाद (हिन्दी)

सुदृढ़ धनुष धारण करनेवाले अर्जुन जब सहस्रों बाणोंकी सृष्टि करने लगे, उस समय उनका गाण्डीव धनुष आकाशमें प्रज्वलित-सा दिखायी देने लगा॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते शरार्ता महाराज विप्रकीर्णमहाध्वजाः ॥ ३८ ॥
नाभ्यवर्तन्त राजानः सहिता वानरध्वजम्।

मूलम्

ते शरार्ता महाराज विप्रकीर्णमहाध्वजाः ॥ ३८ ॥
नाभ्यवर्तन्त राजानः सहिता वानरध्वजम्।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! वे सब नरेश बाणोंसे पीड़ित हो गये थे। उनके विशाल ध्वज छिन्न-भिन्न होकर बिखर गये थे। वे सब राजा एक साथ मिलकर भी कपिध्वज अर्जुनके सामने टिक न सके॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सध्वजा रथिनः पेतुर्हयारोहा हयैः सह ॥ ३९ ॥
सगजाश्च गजारोहाः किरीटिशरताडिताः ।
ततोऽर्जुनभुजोत्सृष्टैरावृताऽऽसीद् वसुन्धरा ॥ ४० ॥
विद्रवद्भिश्च बहुधा बलै राज्ञां समन्ततः।

मूलम्

सध्वजा रथिनः पेतुर्हयारोहा हयैः सह ॥ ३९ ॥
सगजाश्च गजारोहाः किरीटिशरताडिताः ।
ततोऽर्जुनभुजोत्सृष्टैरावृताऽऽसीद् वसुन्धरा ॥ ४० ॥
विद्रवद्भिश्च बहुधा बलै राज्ञां समन्ततः।

अनुवाद (हिन्दी)

किरीटधारी अर्जुनके बाणोंसे पीड़ित हो रथी अपने ध्वजोंके साथ ही पृथ्वीपर गिर पड़े, घुड़सवार घोड़ोंके साथ ही धराशायी हो गये और हाथियोंसहित हाथीसवार भी ढह गये। अर्जुनकी भुजाओंसे छूटे हुए बाणोंसे एवं अनेक भागोंमें विभक्त होकर चारों ओर भागती हुई राजाओंकी सेनाओंसे वहाँकी सारी पृथ्वी व्याप्त हो रही थी॥३९-४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथ पार्थो महाराज द्रावयित्वा वरूथिनीम् ॥ ४१ ॥
दुःशासनाय सुबहून् प्रेषयामास सायकान्।

मूलम्

अथ पार्थो महाराज द्रावयित्वा वरूथिनीम् ॥ ४१ ॥
दुःशासनाय सुबहून् प्रेषयामास सायकान्।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! उस समय अर्जुनने आपकी सेनाको भगाकर दुःशासनपर बहुत-से सायकोंका प्रहार किया॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते तु भित्त्वा तव सुतं दुःशासनमयोमुखाः ॥ ४२ ॥
धरणीं विविशुः सर्वे वल्मीकमिव पन्नगाः।

मूलम्

ते तु भित्त्वा तव सुतं दुःशासनमयोमुखाः ॥ ४२ ॥
धरणीं विविशुः सर्वे वल्मीकमिव पन्नगाः।

अनुवाद (हिन्दी)

वे समस्त लोहमुख बाण आपके पुत्र दुःशासनको विदीर्ण करके उसी प्रकार धरतीमें समा गये, जैसे सर्प बाँबीमें प्रवेश करते हैं॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हयांश्चास्य ततो जघ्ने सारथिं च न्यपातयत् ॥ ४३ ॥
विविंशतिं च विंशत्या विरथं कृतवान् प्रभुः।
आजघान भृशं चैव पञ्चभिर्नतपर्वभिः ॥ ४४ ॥

मूलम्

हयांश्चास्य ततो जघ्ने सारथिं च न्यपातयत् ॥ ४३ ॥
विविंशतिं च विंशत्या विरथं कृतवान् प्रभुः।
आजघान भृशं चैव पञ्चभिर्नतपर्वभिः ॥ ४४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् शक्तिशाली अर्जुनने दुःशासनके घोड़ों तथा सारथिको भी मार गिराया और विविंशतिको भी बीस बाणोंसे मारकर उसे रथहीन कर दिया। इसके बाद पुनः झुकी हुई गाँठवाले पाँच बाणोंद्वारा उसे अत्यन्त घायल कर दिया॥४३-४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृपं विकर्णं शल्यं च विद्ध्वा बहुभिरायसैः।
चकार विरथांश्चैव कौन्तेयः श्वेतवाहनः ॥ ४५ ॥

मूलम्

कृपं विकर्णं शल्यं च विद्ध्वा बहुभिरायसैः।
चकार विरथांश्चैव कौन्तेयः श्वेतवाहनः ॥ ४५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर श्वेतवाहन कुन्तीकुमार अर्जुनने कृपाचार्य, विकर्ण तथा शल्यको भी लोहेके बने हुए बहुत-से बाणोंद्वारा रथहीन कर दिया॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं ते विरथाः सर्वे कृपः शल्यश्च मारिष।
दुःशासनो विकर्णश्च तथैव च विविंशतिः ॥ ४६ ॥
सम्प्राद्रवन्त समरे निर्जिताः सव्यसाचिना।

मूलम्

एवं ते विरथाः सर्वे कृपः शल्यश्च मारिष।
दुःशासनो विकर्णश्च तथैव च विविंशतिः ॥ ४६ ॥
सम्प्राद्रवन्त समरे निर्जिताः सव्यसाचिना।

अनुवाद (हिन्दी)

माननीय नरेश! इस प्रकार रथहीन हुए वे सब महारथी कृपाचार्य, शल्य, विकर्ण, दुःशासन तथा विविंशति अर्जुनसे परास्त हो उस समरभूमिमें इधर-उधर भाग गये॥४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पूर्वाह्णे भरतश्रेष्ठ पराजित्य महारथान् ॥ ४७ ॥
प्रजज्वाल रणे पार्थो विधूम इव पावकः।

मूलम्

पूर्वाह्णे भरतश्रेष्ठ पराजित्य महारथान् ॥ ४७ ॥
प्रजज्वाल रणे पार्थो विधूम इव पावकः।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! इस प्रकार दसवें दिनके पूर्वाह्णकालमें उन महारथियोंको पराजित करके कुन्तीकुमार अर्जुन रणभूमिमें धूमरहित अग्निके समान प्रकाशित होने लगे॥४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव शरवर्षेण भास्करो रश्मिवानिव ॥ ४८ ॥
अन्यानपि महाराज तापयामास पार्थिवान्।

मूलम्

तथैव शरवर्षेण भास्करो रश्मिवानिव ॥ ४८ ॥
अन्यानपि महाराज तापयामास पार्थिवान्।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! इसी प्रकार अंशुमाली सूर्यके समान अन्यान्य राजाओंको भी वे अपने बाणोंकी वर्षासे संतप्त करने लगे॥४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पराङ्‌मुखीकृत्य तथा शरवर्षैर्महारथान् ॥ ४९ ॥
प्रावर्तयत संग्रामे शोणितोदां महानदीम्।
मध्येन कुरुसैन्यानां पाण्डवानां च भारत ॥ ५० ॥

मूलम्

पराङ्‌मुखीकृत्य तथा शरवर्षैर्महारथान् ॥ ४९ ॥
प्रावर्तयत संग्रामे शोणितोदां महानदीम्।
मध्येन कुरुसैन्यानां पाण्डवानां च भारत ॥ ५० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

और भारत! उन सब महारथियोंको बाणवर्षाद्वारा विमुख करके अर्जुनने संग्रामभूमिमें कौरव-पाण्डवोंकी सेनाओंके बीच रक्तकी बहुत बड़ी नदी बहा दी॥४९-५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गजाश्च रथसङ्घाश्च बहुधा रथिभिर्हताः।
रथाश्च निहता नागैर्हयाश्चैव पदातिभिः ॥ ५१ ॥

मूलम्

गजाश्च रथसङ्घाश्च बहुधा रथिभिर्हताः।
रथाश्च निहता नागैर्हयाश्चैव पदातिभिः ॥ ५१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रथियोंद्वारा बहुत-से हाथी तथा रथसमूह नष्ट कर दिये गये। हाथियोंने कितने ही रथ चौपट कर दिये और पैदल सिपाहियोंने सवारोंसहित बहुत-से घोड़े मार गिराये॥५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अन्तराच्छिद्यमानानि शरीराणि शिरांसि च।
निपेतुर्दिक्षु सर्वासु गजाश्वरथयोधिनाम् ॥ ५२ ॥

मूलम्

अन्तराच्छिद्यमानानि शरीराणि शिरांसि च।
निपेतुर्दिक्षु सर्वासु गजाश्वरथयोधिनाम् ॥ ५२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हाथी, घोड़े तथा रथोंपर बैठकर युद्ध करनेवाले सैनिकोंके शरीर और मस्तक बीच-बीचसे कटकर सब दिशाओंमें गिर रहे थे॥५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

छन्नमायोधनं राजन् कुण्डलाङ्गदधारिभिः ।
पतितैः पात्यमानैश्च राजपुत्रैर्महारथैः ॥ ५३ ॥

मूलम्

छन्नमायोधनं राजन् कुण्डलाङ्गदधारिभिः ।
पतितैः पात्यमानैश्च राजपुत्रैर्महारथैः ॥ ५३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! वहाँ गिरे और गिराये जाते हुए कुण्डल और अंगदधारी महारथी राजकुमारोंके मृत शरीरोंसे सारी युद्धभूमि आच्छादित हो रही थी॥५३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथनेमिनिकृत्तैश्च गजैश्चैवावपोथितैः ।
पादाताश्चाप्यधावन्त साश्वाश्च हययोधिनः ॥ ५४ ॥

मूलम्

रथनेमिनिकृत्तैश्च गजैश्चैवावपोथितैः ।
पादाताश्चाप्यधावन्त साश्वाश्च हययोधिनः ॥ ५४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनमेंसे कितने ही रथोंके पहियोंसे कट गये थे और कितनोंहीको हाथियोंने अपनी सूँड़ोंसे पकड़कर धरतीपर दे मारा था एवं कितने ही पैदल सैनिक तथा अपने अश्वोंसहित घुड़सवार योद्धा वहाँसे भाग गये थे॥५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गजाश्च रथयोधाश्च परिपेतुः समन्ततः।
विकीर्णाश्च रथा भूमौ भग्नचक्रयुगध्वजाः ॥ ५५ ॥

मूलम्

गजाश्च रथयोधाश्च परिपेतुः समन्ततः।
विकीर्णाश्च रथा भूमौ भग्नचक्रयुगध्वजाः ॥ ५५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ सब ओर हाथी तथा रथयोद्धा धराशायी हो रहे थे। पहिये, जुए और ध्वजोंके छिन्न-भिन्न हो जानेसे बहुसंख्यक रथ धरतीपर बिखरे पड़े थे॥५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तद् गजाश्वरथौघानां रुधिरेण समुक्षितम्।
छन्नमायोधनं रेजे रक्ताभ्रमिव शारदम् ॥ ५६ ॥

मूलम्

तद् गजाश्वरथौघानां रुधिरेण समुक्षितम्।
छन्नमायोधनं रेजे रक्ताभ्रमिव शारदम् ॥ ५६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हाथी, घोड़े तथा रथियोंके समुदायके रक्तसे ढकी और भीगी हुई वह सारी युद्धभूमि शरद्-ऋतुकी संध्याके लाल बादलोंके समान शोभा पा रही थी॥५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्वानः काकाश्च गृध्राश्च वृका गोमायुभिः सह।
प्रणेदुर्भक्ष्यमासाद्य विकृताश्च मृगद्विजाः ॥ ५७ ॥

मूलम्

श्वानः काकाश्च गृध्राश्च वृका गोमायुभिः सह।
प्रणेदुर्भक्ष्यमासाद्य विकृताश्च मृगद्विजाः ॥ ५७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुत्ते, कौए, गीध, भेड़िये तथा गीदड़ आदि विकराल पशु-पक्षी वहाँ अपना आहार पाकर हर्षनाद करने लगे॥५७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ववुर्बहुविधाश्चैव दिक्षु सर्वासु मारुताः।
दृश्यमानेषु रक्षःसु भूतेषु च नदत्सु च ॥ ५८ ॥

मूलम्

ववुर्बहुविधाश्चैव दिक्षु सर्वासु मारुताः।
दृश्यमानेषु रक्षःसु भूतेषु च नदत्सु च ॥ ५८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सम्पूर्ण दिशाओंमें अनेक प्रकारकी वायु प्रवाहित हो रही थी। सब ओर राक्षस और भूतगण गरजते दिखायी देते थे॥५८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

काञ्चनानि च दामानि पताकाश्च महाधनाः।
धूयमाना व्यदृश्यन्त सहसा मारुतेरिताः ॥ ५९ ॥

मूलम्

काञ्चनानि च दामानि पताकाश्च महाधनाः।
धूयमाना व्यदृश्यन्त सहसा मारुतेरिताः ॥ ५९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सोनेके हार बिखरे पड़े थे, बहुमूल्य पताकाएँ सहसा वायुसे प्रेरित होकर फहराती दिखायी देती थीं॥५९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्वेतच्छत्रसहस्राणि सध्वजाश्च महारथाः ।
विकीर्णाः समदृश्यन्त शतशोऽथ सहस्रशः ॥ ६० ॥

मूलम्

श्वेतच्छत्रसहस्राणि सध्वजाश्च महारथाः ।
विकीर्णाः समदृश्यन्त शतशोऽथ सहस्रशः ॥ ६० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सहस्रों सफेद छत्र इधर-उधर गिरे थे, ध्वजों-सहित सैकड़ों और हजारों महारथी सब ओर बिखरे दिखायी देते थे॥६०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सपताकाश्च मातङ्गा दिशो जग्मुः शरातुराः।
क्षत्रियाश्च मनुष्येन्द्र गदाशक्तिधनुर्धराः ॥ ६१ ॥
समन्ततश्च दृश्यन्ते पतिता धरणीतले।

मूलम्

सपताकाश्च मातङ्गा दिशो जग्मुः शरातुराः।
क्षत्रियाश्च मनुष्येन्द्र गदाशक्तिधनुर्धराः ॥ ६१ ॥
समन्ततश्च दृश्यन्ते पतिता धरणीतले।

अनुवाद (हिन्दी)

बाणोंकी वेदनासे आतुर हो पताकाओंसहित बड़े-बड़े हाथी चारों दिशाओंमें चक्कर काट रहे थे। नरेन्द्र! गदा, शक्ति और धनुष धारण किये हुए बहुत-से क्षत्रिय सब ओर पृथ्वीपर पड़े दृष्टिगोचर हो रहे थे॥६१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो भीष्मो महाराज दिव्यमस्त्रमुदीरयन् ॥ ६२ ॥
अभ्यधावत कौन्तेयं मिषतां सर्वधन्विनाम्।

मूलम्

ततो भीष्मो महाराज दिव्यमस्त्रमुदीरयन् ॥ ६२ ॥
अभ्यधावत कौन्तेयं मिषतां सर्वधन्विनाम्।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! तदनन्तर भीष्मने दिव्य अस्त्र प्रकट करते हुए वहाँ समस्त धनुर्धरोंके देखते-देखते कुन्तीकुमार अर्जुनपर धावा किया॥६२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं शिखण्डी रणे यान्तमभ्यद्रवत दंशितः ॥ ६३ ॥
ततः समाहरद् भीष्मस्तदस्त्रं पावकोपमम्।

मूलम्

तं शिखण्डी रणे यान्तमभ्यद्रवत दंशितः ॥ ६३ ॥
ततः समाहरद् भीष्मस्तदस्त्रं पावकोपमम्।

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय कवचधारी शिखण्डीने युद्धके लिये आगे बढ़ते हुए भीष्मपर आक्रमण किया। शिखण्डीको सामने देख भीष्मने अपने अग्निके समान तेजस्वी उस दिव्यास्त्रको समेट लिया॥६३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्वरितः पाण्डवो राजन् मध्यमः श्वेतवाहनः।
निजघ्ने तावकं सैन्यं मोहयित्वा पितामहम् ॥ ६४ ॥

मूलम्

त्वरितः पाण्डवो राजन् मध्यमः श्वेतवाहनः।
निजघ्ने तावकं सैन्यं मोहयित्वा पितामहम् ॥ ६४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इसी बीचमें मध्यम पाण्डव श्वेतवाहन अर्जुन तुरंत ही पितामह भीष्मको मूर्च्छित करके आपकी सेनाका संहार करने लगे॥६४॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि संकुलयुद्धे सप्तदशाधिकशततमोऽध्यायः ॥ ११७ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें संकुलयुद्धविषयक एक सौ सत्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥११७॥