भागसूचना
चतुर्दशाधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
कौरवपक्षके प्रमुख महारथियोंके साथ युद्धमें भीमसेन और अर्जुनका अद्भुत पुरुषार्थ
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्जुनस्तु रणे शल्यं यतमानं महारथम्।
छादयामास समरे शरैः संनतपर्वभिः ॥ १ ॥
मूलम्
अर्जुनस्तु रणे शल्यं यतमानं महारथम्।
छादयामास समरे शरैः संनतपर्वभिः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— राजन्! उस समय रणक्षेत्रमें विजयके लिये प्रयत्न करनेवाले महारथी शल्यको अर्जुनने झुकी हुई गाँठवाले बाणोंकी वर्षा करके ढक दिया॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुशर्माणं कृपं चैव त्रिभिस्त्रिभिरविध्यत।
प्राग्ज्योतिषं च समरे सैन्धवं च जयद्रथम् ॥ २ ॥
चित्रसेनं विकर्णं च कृतवर्माणमेव च।
दुर्मर्षणं च राजेन्द्र ह्यावन्त्यौ च महारथौ ॥ ३ ॥
एकैकं त्रिभिरानर्च्छत् कङ्कबर्हिणवाजितैः ।
मूलम्
सुशर्माणं कृपं चैव त्रिभिस्त्रिभिरविध्यत।
प्राग्ज्योतिषं च समरे सैन्धवं च जयद्रथम् ॥ २ ॥
चित्रसेनं विकर्णं च कृतवर्माणमेव च।
दुर्मर्षणं च राजेन्द्र ह्यावन्त्यौ च महारथौ ॥ ३ ॥
एकैकं त्रिभिरानर्च्छत् कङ्कबर्हिणवाजितैः ।
अनुवाद (हिन्दी)
उसके बाद सुशर्मा और कृपाचार्यको भी तीन-तीन बाणोंसे बींध डाला। राजेन्द्र! फिर समरांगणमें प्राग्ज्योतिषनरेश भगदत्त, सिन्धुराज जयद्रथ, चित्रसेन, विकर्ण, कृतवर्मा, दुर्मर्षण तथा महारथी विन्द और अनुविन्द—इनमेंसे प्रत्येकको गीधकी पाँखसे युक्त तीन-तीन बाणोंद्वारा विशेष पीड़ा दी॥२-३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरैरतिरथो युद्धे पीडयन् वाहिनीं तव ॥ ४ ॥
जयद्रथो रणे पार्थं विद्ध्वा भारत सायकैः।
भीमं विव्याध तरसा चित्रसेनरथे स्थितः ॥ ५ ॥
मूलम्
शरैरतिरथो युद्धे पीडयन् वाहिनीं तव ॥ ४ ॥
जयद्रथो रणे पार्थं विद्ध्वा भारत सायकैः।
भीमं विव्याध तरसा चित्रसेनरथे स्थितः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् अतिरथी वीर अर्जुनने युद्धमें आपकी सेनाको बाणसमूहोंद्वारा अत्यन्त पीड़ित कर दिया। भारत! चित्रसेनके रथपर बैठे हुए जयद्रथने रणक्षेत्रमें कुन्तीकुमार अर्जुनको घायल करके भीमसेनको भी बहुत-से सायकोंद्वारा वेगपूर्वक बींध डाला॥४-५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शल्यश्च समरे जिष्णुं कृपश्च रथिनां वरः।
विव्यधाते महाराज बहुधा मर्मभेदिभिः ॥ ६ ॥
मूलम्
शल्यश्च समरे जिष्णुं कृपश्च रथिनां वरः।
विव्यधाते महाराज बहुधा मर्मभेदिभिः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! फिर रथियोंमें श्रेष्ठ कृपाचार्य तथा शल्यने भी समरांगणमें मर्मस्थलको विदीर्ण करनेवाले बाणोंद्वारा अर्जुनको बारंबार घायल किया॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चित्रसेनादयश्चैव पुत्रास्तव विशाम्पते ।
पञ्चभिः पञ्चभिस्तूर्णं संयुगे निशितैः शरैः ॥ ७ ॥
आजघ्नुरर्जुनं संख्ये भीमसेनं च मारिष।
मूलम्
चित्रसेनादयश्चैव पुत्रास्तव विशाम्पते ।
पञ्चभिः पञ्चभिस्तूर्णं संयुगे निशितैः शरैः ॥ ७ ॥
आजघ्नुरर्जुनं संख्ये भीमसेनं च मारिष।
अनुवाद (हिन्दी)
माननीय प्रजानाथ! चित्रसेन आदि आपके पुत्रोंने भी युद्धस्थलमें तुरंत ही पाँच-पाँच तीखे बाणोंद्वारा अर्जुन और भीमसेनको घायल कर दिया॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तौ तत्र रथिनां श्रेष्ठौ कौन्तेयौ भरतर्षभौ ॥ ८ ॥
अपीडयेतां समरे त्रिगर्तानां महद् बलम्।
मूलम्
तौ तत्र रथिनां श्रेष्ठौ कौन्तेयौ भरतर्षभौ ॥ ८ ॥
अपीडयेतां समरे त्रिगर्तानां महद् बलम्।
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय वहाँ रथियोंमें श्रेष्ठ भरतकुलभूषण कुन्तीकुमार भीमसेन और अर्जुनने समरभूमिमें त्रिगर्तोंकी विशाल सेनाको पीड़ित कर दिया॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुशर्मापि रणे पार्थं शरैर्नवभिराशुगैः ॥ ९ ॥
ननाद बलवन्नादं त्रासयानो महद् बलम्।
मूलम्
सुशर्मापि रणे पार्थं शरैर्नवभिराशुगैः ॥ ९ ॥
ननाद बलवन्नादं त्रासयानो महद् बलम्।
अनुवाद (हिन्दी)
इधर सुशर्माने भी रणक्षेत्रमें नौ शीघ्रगामी बाणोंद्वारा अर्जुनको घायल करके पाण्डवोंकी विशाल सेनाको भयभीत करते हुए बड़े जोरसे सिंहनाद किया॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अन्ये च रथिनः शूरा भीमसेनधनंजयौ ॥ १० ॥
विव्यधुर्निशितैर्बाणै रुक्मपुङ्खैरजिह्मगैः ।
मूलम्
अन्ये च रथिनः शूरा भीमसेनधनंजयौ ॥ १० ॥
विव्यधुर्निशितैर्बाणै रुक्मपुङ्खैरजिह्मगैः ।
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार अन्य शूरवीर महारथियोंने भीमसेन और अर्जुनको सुवर्णपंखयुक्त, सीधे जानेवाले पैने बाणोंद्वारा बींध डाला॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां च रथिनां मध्ये कौन्तेयौ भरतर्षभौ ॥ ११ ॥
क्रीडमानौ रथोदारौ चित्ररूपौ व्यदृश्यताम्।
मूलम्
तेषां च रथिनां मध्ये कौन्तेयौ भरतर्षभौ ॥ ११ ॥
क्रीडमानौ रथोदारौ चित्ररूपौ व्यदृश्यताम्।
अनुवाद (हिन्दी)
उन समस्त रथियोंके बीचमें खड़े होकर खेल-से करते हुए भरतभूषण उदार महारथी कुन्तीकुमार भीमसेन और अर्जुन विचित्र दिखायी देते थे॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आमिषेप्सू गवां मध्ये सिंहाविव मदोत्कटौ ॥ १२ ॥
मूलम्
आमिषेप्सू गवां मध्ये सिंहाविव मदोत्कटौ ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे मांसकी इच्छा रखनेवाले दो मदोन्मत्त सिंह गौओंके झुंडमें खड़े हुए हों, उसी प्रकार भीमसेन और अर्जुन उस रणभूमिमें सुशोभित हो रहे थे॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
छित्त्वा धनूंषि शूराणां शरांश्च बहुधा रणे।
पातयामासतुर्वीरौ शिरांसि शतशो नृणाम् ॥ १३ ॥
मूलम्
छित्त्वा धनूंषि शूराणां शरांश्च बहुधा रणे।
पातयामासतुर्वीरौ शिरांसि शतशो नृणाम् ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन दोनों वीरोंने रणक्षेत्रमें सैकड़ों शूरवीर मनुष्योंके धनुष और बाणोंको बारंबार छिन्न-भिन्न करके उनके मस्तकोंको भी काट गिराया॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथाश्च बहवो भग्ना हयाश्च शतशो हताः।
गजाश्च सगजारोहाः पेतुरुर्व्यां महाहवे ॥ १४ ॥
मूलम्
रथाश्च बहवो भग्ना हयाश्च शतशो हताः।
गजाश्च सगजारोहाः पेतुरुर्व्यां महाहवे ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस महासमरमें बहुत-से रथ टूट गये, सैकड़ों घोड़े मारे गये तथा कितने ही हाथी और हाथीसवार धराशायी हो गये॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथिनः सादिनश्चापि तत्र तत्र निषूदिताः।
दृश्यन्ते बहवो राजन् वेपमानाः समन्ततः ॥ १५ ॥
मूलम्
रथिनः सादिनश्चापि तत्र तत्र निषूदिताः।
दृश्यन्ते बहवो राजन् वेपमानाः समन्ततः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! बहुत-से रथी और घुड़सवार जहाँ-तहाँ चारों ओर मारे जाकर काँपते और छटपटाते हुए दिखायी देते थे॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हतैर्गजपदात्योघैर्वाजिभिश्च निषूदितैः ।
रथैश्च बहुधा भग्नैः समास्तीर्यत मेदिनी ॥ १६ ॥
मूलम्
हतैर्गजपदात्योघैर्वाजिभिश्च निषूदितैः ।
रथैश्च बहुधा भग्नैः समास्तीर्यत मेदिनी ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ मरकर गिरे हुए हाथियों, पैदल सिपाहियों, घोड़ों तथा टूटे हुए बहुत-से रथोंद्वारा पृथ्वी आच्छादित हो गयी थी॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
छत्रैश्च बहुधा छिन्नैर्ध्वजैश्च विनिपातितैः।
(चामरैर्हेमदण्डैश्च समास्तीर्यत मेदिनी ।)
अङ्कुशैरपविद्धैश्च परिस्तोमैश्च भारत ॥ १७ ॥
(घण्टाभिश्च कशाभिश्च समास्तीर्यत मेदिनी।)
मूलम्
छत्रैश्च बहुधा छिन्नैर्ध्वजैश्च विनिपातितैः।
(चामरैर्हेमदण्डैश्च समास्तीर्यत मेदिनी ।)
अङ्कुशैरपविद्धैश्च परिस्तोमैश्च भारत ॥ १७ ॥
(घण्टाभिश्च कशाभिश्च समास्तीर्यत मेदिनी।)
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! अनेक टुकड़ोंमें कटकर गिरे हुए छत्रों, ध्वजाओं, स्वर्णमय दण्डसे विभूषित चामरों, फेंके हुए अंकुशों, चाबुकों, घण्टों और झूलोंसे वहाँकी भूमि ढक गयी थी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केयूरैरङ्गदैर्हारै राङ्कवैर्मृदितैस्तथा ।
(कुण्डलैर्मणिचित्रैश्च समास्तीर्यत मेदिनी ।)
उष्णीषैर्ऋष्टिभिश्चैव चामरव्यजनैरपि ॥ १८ ॥
मूलम्
केयूरैरङ्गदैर्हारै राङ्कवैर्मृदितैस्तथा ।
(कुण्डलैर्मणिचित्रैश्च समास्तीर्यत मेदिनी ।)
उष्णीषैर्ऋष्टिभिश्चैव चामरव्यजनैरपि ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
केयूर, अंगद, हार तथा मणिजटित कुण्डल आदि आभूषणों, रंकु मृगके कोमल चर्म, वीरोंकी पगड़ियों, ऋष्टि आदि अस्त्रों तथा चामर और व्यजन आदिसे भी वहाँकी धरती आच्छादित हो गयी थी॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र तत्रापविद्धैश्च बाहुभिश्चन्दनोक्षितैः ।
ऊरुभिश्च नरेन्द्राणां समास्तीर्यत मेदिनी ॥ १९ ॥
मूलम्
तत्र तत्रापविद्धैश्च बाहुभिश्चन्दनोक्षितैः ।
ऊरुभिश्च नरेन्द्राणां समास्तीर्यत मेदिनी ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जहाँ-तहाँ गिरी हुई राजाओंकी चन्दनचर्चित भुजाओं और जाँघोंसे वह रणभूमि पट गयी थी॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्राद्भुतमपश्याम रणे पार्थस्य विक्रमम्।
शरैः संवार्य तान् वीरान् यज्जघान महाबलः ॥ २० ॥
मूलम्
तत्राद्भुतमपश्याम रणे पार्थस्य विक्रमम्।
शरैः संवार्य तान् वीरान् यज्जघान महाबलः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! मैंने उस रणक्षेत्रमें अर्जुनका अद्भुत पराक्रम यह देखा कि उन महाबली वीरने शत्रुपक्षके उन सब प्रमुख वीरोंको बाणोंद्वारा रोककर अनेकों वीरोंको मार डाला था॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुत्रस्तु तव तं दृष्ट्वा भीमार्जुनपराक्रमम्।
गाङ्गेयस्य रथाभ्याशमुपजग्मे महाबलः ॥ २१ ॥
मूलम्
पुत्रस्तु तव तं दृष्ट्वा भीमार्जुनपराक्रमम्।
गाङ्गेयस्य रथाभ्याशमुपजग्मे महाबलः ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आपका पुत्र महाबली दुर्योधन भीमसेन और अर्जुनका वह पराक्रम देखकर स्वयं भी गंगानन्दन भीष्मके रथके समीप जा पहुँचा॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृपश्च कृतवर्मा च सैन्धवश्च जयद्रथः।
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ नाजहुः संयुगं तदा ॥ २२ ॥
मूलम्
कृपश्च कृतवर्मा च सैन्धवश्च जयद्रथः।
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ नाजहुः संयुगं तदा ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय कृपाचार्य, कृतवर्मा, सिन्धुराज जयद्रथ तथा अवन्तीके विन्द और अनुविन्दने भी युद्धको नहीं छोड़ा॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो भीमो महेष्वासः फाल्गुनश्च महारथः।
कौरवाणां चमूं घोरां भृशं दुद्रुवतू रणे ॥ २३ ॥
मूलम्
ततो भीमो महेष्वासः फाल्गुनश्च महारथः।
कौरवाणां चमूं घोरां भृशं दुद्रुवतू रणे ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर महाधनुर्धर भीमसेन तथा महारथी अर्जुन रणक्षेत्रमें कौरवोंकी उस भयंकर सेनाको जोर-जोरसे खदेड़ने लगे॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो बर्हिणवाजानामयुतान्यर्बुदानि च ।
धनंजयरथे तूर्णं पातयन्ति स्म भूमिपाः ॥ २४ ॥
मूलम्
ततो बर्हिणवाजानामयुतान्यर्बुदानि च ।
धनंजयरथे तूर्णं पातयन्ति स्म भूमिपाः ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब बहुत-से भूमिपाल मिलकर तुरंत ही अर्जुनके रथपर मोरपंखयुक्त अनेक अयुत एवं अर्बुद बाणोंकी वर्षा करने लगे॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्ताञ्शरजालेन संनिवार्य महारथान् ।
पार्थः समन्तात् समरे प्रेषयामास मृत्यवे ॥ २५ ॥
मूलम्
ततस्ताञ्शरजालेन संनिवार्य महारथान् ।
पार्थः समन्तात् समरे प्रेषयामास मृत्यवे ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब अर्जुनने सब ओरसे बाणोंका जाल-सा बिछाकर उन महारथी भूमिपालोंको रोक दिया और तुरंत ही उन्हें मृत्युके लोकमें पहुँचा दिया॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शल्यस्तु समरे जिष्णुं क्रीडन्निव महारथः।
आजघानोरसि क्रुद्धो भल्लैः संनतपर्वभिः ॥ २६ ॥
मूलम्
शल्यस्तु समरे जिष्णुं क्रीडन्निव महारथः।
आजघानोरसि क्रुद्धो भल्लैः संनतपर्वभिः ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब महारथी शल्यने क्रीड़ा करते हुए-से कुपित हो समरभूमिमें झुकी हुई गाँठवाले भल्लोंद्वारा अर्जुनकी छातीमें गहरी चोट पहुँचायी॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य पार्थो धनुश्छित्त्वा हस्तावापं च पञ्चभिः।
अथैनं सायकैस्तीक्ष्णैर्भृशं विव्याध मर्मणि ॥ २७ ॥
मूलम्
तस्य पार्थो धनुश्छित्त्वा हस्तावापं च पञ्चभिः।
अथैनं सायकैस्तीक्ष्णैर्भृशं विव्याध मर्मणि ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह देख अर्जुनने पाँच बाणोंसे उनके धनुष और दस्तानेको काटकर तीखे सायकोंद्वारा उनके मर्मस्थलमें गहरी चोट पहुँचायी॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथान्यद् धनुरादाय समरे भारसाधनम्।
मद्रेश्वरो रणे जिष्णुं ताडयामास रोषितः ॥ २८ ॥
त्रिभिः शरैर्महाराज वासुदेवं च पञ्चभिः।
भीमसेनं च नवभिर्बाह्वोरुरसि चार्पयत् ॥ २९ ॥
मूलम्
अथान्यद् धनुरादाय समरे भारसाधनम्।
मद्रेश्वरो रणे जिष्णुं ताडयामास रोषितः ॥ २८ ॥
त्रिभिः शरैर्महाराज वासुदेवं च पञ्चभिः।
भीमसेनं च नवभिर्बाह्वोरुरसि चार्पयत् ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! फिर मद्रराजने भी भारसाधनमें समर्थ दूसरा धनुष लेकर रणभूमिमें अर्जुनपर रोषपूर्वक तीन बाणोंद्वारा प्रहार किया। वसुदेवनन्दन श्रीकृष्णको पाँच बाणोंसे घायल करके उन्होंने भीमसेनकी भुजाओं तथा छातीमें नौ बाण मारे॥२८-२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो द्रोणो महाराज मागधश्च महारथः।
दुर्योधनसमादिष्टौ तं देशमुपजग्मतुः ॥ ३० ॥
यत्र पार्थो महाराज भीमसेनश्च पाण्डवः।
कौरव्यस्य महासेनां जघ्नतुः सुमहारथौ ॥ ३१ ॥
मूलम्
ततो द्रोणो महाराज मागधश्च महारथः।
दुर्योधनसमादिष्टौ तं देशमुपजग्मतुः ॥ ३० ॥
यत्र पार्थो महाराज भीमसेनश्च पाण्डवः।
कौरव्यस्य महासेनां जघ्नतुः सुमहारथौ ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! तदनन्तर दुर्योधनकी आज्ञा पाकर द्रोण तथा महारथी मगधनरेश उसी स्थानपर आये, जहाँ पाण्डुकुमार अर्जुन और भीमसेन—ये दोनों महारथी दुर्योधनकी विशाल सेनाका संहार कर रहे थे॥३०-३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जयत्सेनस्तु समरे भीमं भीमायुधं युधि।
विव्याध निशितैर्बाणैरष्टभिर्भरतर्षभ ॥ ३२ ॥
मूलम्
जयत्सेनस्तु समरे भीमं भीमायुधं युधि।
विव्याध निशितैर्बाणैरष्टभिर्भरतर्षभ ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! मगधराज जयत्सेनने1 युद्धके मैदानमें भयानक अस्त्र-शस्त्र धारण करनेवाले भीमसेनको आठ पैने बाणोंद्वारा बींध डाला॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं भीमो दशभिर्विद्ध्वा पुनर्विव्याध पञ्चभिः।
सारथिं चास्य भल्लेन रथनीडादपातयत् ॥ ३३ ॥
मूलम्
तं भीमो दशभिर्विद्ध्वा पुनर्विव्याध पञ्चभिः।
सारथिं चास्य भल्लेन रथनीडादपातयत् ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब भीमसेनने जयत्सेनको दस बाणोंसे बींधकर फिर पाँच बाणोंसे घायल कर दिया और एक भल्ल मारकर उसके सारथिको भी रथकी बैठकसे नीचे गिरा दिया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उद्भ्रान्तैस्तुरगैः सोऽथ द्रवमाणैः समन्ततः।
मागधोऽपसृतो राजा सर्वसैन्यस्य पश्यतः ॥ ३४ ॥
मूलम्
उद्भ्रान्तैस्तुरगैः सोऽथ द्रवमाणैः समन्ततः।
मागधोऽपसृतो राजा सर्वसैन्यस्य पश्यतः ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर तो उसके घबराये हुए घोड़े चारों ओर भागने लगे और इस प्रकार वह मगधदेशका राजा सारी सेनाके देखते-देखते रणभूमिसे दूर हटा दिया गया॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्रोणश्च विवरं दृष्ट्वा भीमसेनं शिलीमुखैः।
विव्याध बाणैर्निशितैः पञ्चषष्टिभिरायसैः ॥ ३५ ॥
मूलम्
द्रोणश्च विवरं दृष्ट्वा भीमसेनं शिलीमुखैः।
विव्याध बाणैर्निशितैः पञ्चषष्टिभिरायसैः ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी समय द्रोणाचार्यने अवसर देखकर लोहेके बने हुए पैंसठ पैने बाणोंद्वारा भीमसेनको बींध डाला॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं भीमः समरश्लाघी गुरुं पितृसमं रणे।
विव्याध पञ्चभिर्भल्लैस्तथा षष्ट्या च भारत ॥ ३६ ॥
मूलम्
तं भीमः समरश्लाघी गुरुं पितृसमं रणे।
विव्याध पञ्चभिर्भल्लैस्तथा षष्ट्या च भारत ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! तब युद्धकी श्लाघा रखनेवाले भीमसेनने भी रणक्षेत्रमें पिताके समान पूजनीय गुरु द्रोणाचार्यको पैंसठ भल्लोंद्वारा घायल कर दिया॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्जुनस्तु सुशर्माणं विद्ध्वा बहुभिरायसैः।
व्यधमत् तस्य तत्सैन्यं महाभ्राणि यथानिलः ॥ ३७ ॥
मूलम्
अर्जुनस्तु सुशर्माणं विद्ध्वा बहुभिरायसैः।
व्यधमत् तस्य तत्सैन्यं महाभ्राणि यथानिलः ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इधर अर्जुनने लोहेके बने हुए बहुत-से बाणोंद्वारा सुशर्माको घायल करके जैसे वायु महान् मेघोंको छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार उसकी सेनाकी धज्जियाँ उड़ा दीं॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो भीष्मश्च राजा च कौसल्यश्च बृहद्बलः।
समवर्तन्त संक्रुद्धा भीमसेनधनंजयौ ॥ ३८ ॥
मूलम्
ततो भीष्मश्च राजा च कौसल्यश्च बृहद्बलः।
समवर्तन्त संक्रुद्धा भीमसेनधनंजयौ ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब भीष्म, राजा दुर्योधन और कोसलनरेश बृहद्बल—ये तीनों अत्यन्त कुपित होकर भीमसेन और अर्जुनपर चढ़ आये॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव पाण्डवाः शूरा धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
अभ्यद्रवन् रणे भीष्मं व्यादितास्यमिवान्तकम् ॥ ३९ ॥
मूलम्
तथैव पाण्डवाः शूरा धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
अभ्यद्रवन् रणे भीष्मं व्यादितास्यमिवान्तकम् ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार शूरवीर पाण्डव तथा द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न—ये रणक्षेत्रमें मुँह फैलाये हुए यमराजके समान प्रतीत होनेवाले भीष्मपर टूट पड़े॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिखण्डी तु समासाद्य भरतानां पितामहम्।
अभ्यद्रवत संहृष्टो भयं त्यक्त्वा महारथात् ॥ ४० ॥
मूलम्
शिखण्डी तु समासाद्य भरतानां पितामहम्।
अभ्यद्रवत संहृष्टो भयं त्यक्त्वा महारथात् ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शिखण्डीने भरतकुलके पितामह भीष्मके निकट पहुँचकर उन महारथी भीष्मसे सम्भावित भयको त्यागकर बड़े हर्षके साथ उनपर धावा किया॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
युधिष्ठिरमुखाः पार्थाः पुरस्कृत्य शिखण्डिनम्।
अयोधयन् रणे भीष्मं सहिताः सर्वसृंजयैः ॥ ४१ ॥
मूलम्
युधिष्ठिरमुखाः पार्थाः पुरस्कृत्य शिखण्डिनम्।
अयोधयन् रणे भीष्मं सहिताः सर्वसृंजयैः ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युधिष्ठिर आदि कुन्तीपुत्र रणभूमिमें शिखण्डीको आगे करके समस्त सृंजयोंको साथ ले भीष्मके साथ युद्ध करने लगे॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव तावकाः सर्वे पुरस्कृत्य यतव्रतम्।
शिखण्डिप्रमुखान् पार्थान् योधयन्ति स्म संयुगे ॥ ४२ ॥
मूलम्
तथैव तावकाः सर्वे पुरस्कृत्य यतव्रतम्।
शिखण्डिप्रमुखान् पार्थान् योधयन्ति स्म संयुगे ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार आपके समस्त योद्धा ब्रह्मचर्य-व्रतका पालन करनेवाले भीष्मको युद्धमें आगे रखकर शिखण्डी आदि पाण्डव महारथियोंका सामना करने लगे॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः प्रववृते युद्धं कौरवाणां भयावहम्।
तत्र पाण्डुसुतैः सार्धं भीष्मस्य विजयं प्रति ॥ ४३ ॥
मूलम्
ततः प्रववृते युद्धं कौरवाणां भयावहम्।
तत्र पाण्डुसुतैः सार्धं भीष्मस्य विजयं प्रति ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर वहाँ भीष्मकी विजयके उद्देश्यसे कौरवोंका पाण्डवोंके साथ भयंकर युद्ध होने लगा॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तावकानां जये भीष्मो ग्लह आसीद् विशाम्पते।
तत्र हि द्यूतमासक्तं विजयायेतराय वा ॥ ४४ ॥
मूलम्
तावकानां जये भीष्मो ग्लह आसीद् विशाम्पते।
तत्र हि द्यूतमासक्तं विजयायेतराय वा ॥ ४४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! उस युद्धरूपी जूएमें आपके पुत्रोंकी ओरसे विजयके लिये भीष्मको ही दाँवपर लगाया था। इस प्रकार वहाँ विजय अथवा पराजयके लिये रणद्यूत उपस्थित हो गया॥४४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नस्तु राजेन्द्र सर्वसैन्यान्यचोदयत् ।
अभ्यद्रवत गाङ्गेयं मा भैष्ट रथसत्तमाः ॥ ४५ ॥
मूलम्
धृष्टद्युम्नस्तु राजेन्द्र सर्वसैन्यान्यचोदयत् ।
अभ्यद्रवत गाङ्गेयं मा भैष्ट रथसत्तमाः ॥ ४५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! उस समय धृष्टद्युम्नने अपनी समस्त सेनाओंको प्रेरणा देते हुए कहा—‘श्रेष्ठ रथियो! गंगानन्दन भीष्मपर धावा करो। उनसे तनिक भी भय न मानो’॥४५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सेनापतिवचः श्रुत्वा पाण्डवानां वरूथिनी।
भीष्मं समभ्ययात् तूर्णं प्राणांस्त्यक्त्वा महाहवे ॥ ४६ ॥
मूलम्
सेनापतिवचः श्रुत्वा पाण्डवानां वरूथिनी।
भीष्मं समभ्ययात् तूर्णं प्राणांस्त्यक्त्वा महाहवे ॥ ४६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सेनापतिका यह वचन सुनकर पाण्डवोंकी विशाल वाहिनी उस महासमरमें प्राणोंका मोह छोड़कर तुरंत ही भीष्मकी ओर बढ़ चली॥४६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीष्मोऽपि रथिनां श्रेष्ठः प्रतिजग्राह तां चमूम्।
आपतन्तीं महाराज वेलामिव महोदधिः ॥ ४७ ॥
मूलम्
भीष्मोऽपि रथिनां श्रेष्ठः प्रतिजग्राह तां चमूम्।
आपतन्तीं महाराज वेलामिव महोदधिः ॥ ४७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! रथियोंमें श्रेष्ठ भीष्मने भी अपने ऊपर आती हुई उस विशाल सेनाको युद्धके लिये उसी प्रकार ग्रहण किया, जैसे तटभूमिको महासागर॥४७॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि भीमार्जुनपराक्रमे चतुर्दशाधिकशततमोऽध्यायः ॥ ११४ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें भीमसेन और अर्जुनका पराक्रमविषयक एक सौ चौदहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥११४॥
सूचना (हिन्दी)
[दाक्षिणात्य अधिक पाठके १ श्लोक मिलाकर कुल ४८ श्लोक हैं।]
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जयत्सेन नामके दो व्यक्ति प्रतीत होते हैं, एक पाण्डवपक्षमें और दूसरे कौरवपक्षमें रहे होंगे। ↩︎