११३ भीमपराक्रमे

भागसूचना

त्रयोदशाधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

कौरवपक्षके दस प्रमुख महारथियोंके साथ अकेले घोर युद्ध करते हुए भीमसेनका अद्भुत पराक्रम

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

भगदत्तः कृपः शल्यः कृतवर्मा तथैव च।
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ सैन्धवश्च जयद्रथः ॥ १ ॥
चित्रसेनो विकर्णश्च तथा दुर्मर्षणादयः।
दशैते तावका योधा भीमसेनमयोधयन् ॥ २ ॥

मूलम्

भगदत्तः कृपः शल्यः कृतवर्मा तथैव च।
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ सैन्धवश्च जयद्रथः ॥ १ ॥
चित्रसेनो विकर्णश्च तथा दुर्मर्षणादयः।
दशैते तावका योधा भीमसेनमयोधयन् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! भगदत्त, कृपाचार्य, शल्य, कृतवर्मा, अवन्तीके राजकुमार विन्द और अनुविन्द, सिन्धुराज जयद्रथ, चित्रसेन, विकर्ण तथा दुर्मर्षण—ये दस योद्धा भीमसेनके साथ युद्ध कर रहे थे॥१-२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महत्या सेनया युक्ता नानादेशसमुत्थया।
भीष्मस्य समरे राजन् प्रार्थयाना महद् यशः ॥ ३ ॥

मूलम्

महत्या सेनया युक्ता नानादेशसमुत्थया।
भीष्मस्य समरे राजन् प्रार्थयाना महद् यशः ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! इनके साथ अनेक देशोंसे आयी हुई विशाल सेना मौजूद थी। ये समरभूमिमें भीष्मके महान् यशकी रक्षा करना चाहते थे॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शल्यस्तु नवभिर्बाणैर्भीमसेनमताडयत् ।
कृतवर्मा त्रिभिर्बाणैः कृपश्च नवभिः शरैः ॥ ४ ॥

मूलम्

शल्यस्तु नवभिर्बाणैर्भीमसेनमताडयत् ।
कृतवर्मा त्रिभिर्बाणैः कृपश्च नवभिः शरैः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शल्यने नौ बाणोंसे भीमसेनको गहरी चोट पहुँचायी। फिर कृतवर्माने तीन और कृपाचार्यने उन्हें नौ बाण मारे॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चित्रसेनो विकर्णश्च भगदत्तश्च मारिष।
दशभिर्दशभिर्बाणैर्भीमसेनमताडयन् ॥ ५ ॥

मूलम्

चित्रसेनो विकर्णश्च भगदत्तश्च मारिष।
दशभिर्दशभिर्बाणैर्भीमसेनमताडयन् ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! फिर लगे हाथ चित्रसेन, विकर्ण और भगदत्तने भी दस-दस बाण मारकर भीमसेनको घायल कर दिया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सैन्धवश्च त्रिभिर्बाणैर्भीमसेनमताडयत् ।
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ पञ्चभिः पञ्चभिः शरैः ॥ ६ ॥
दुर्मर्षणस्तु विंशत्या पाण्डवं निशितैः शरैः।

मूलम्

सैन्धवश्च त्रिभिर्बाणैर्भीमसेनमताडयत् ।
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ पञ्चभिः पञ्चभिः शरैः ॥ ६ ॥
दुर्मर्षणस्तु विंशत्या पाण्डवं निशितैः शरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

फिर सिन्धुराज जयद्रथने तीन, अवन्तीके विन्द और अनुविन्दने पाँच-पाँच तथा दुर्मर्षणने बीस तीखे बाणोंद्वारा पाण्डुनन्दन भीमसेनको चोट पहुँचायी॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तान्‌ सर्वान्‌ महाराज राजमानान्‌ पृथक् पृथक् ॥ ७ ॥
प्रवीरान् सर्वलोकस्य धार्तराष्ट्रान् महारथान्।
जघान समरे वीरः पाण्डवः परवीरहा ॥ ८ ॥

मूलम्

स तान्‌ सर्वान्‌ महाराज राजमानान्‌ पृथक् पृथक् ॥ ७ ॥
प्रवीरान् सर्वलोकस्य धार्तराष्ट्रान् महारथान्।
जघान समरे वीरः पाण्डवः परवीरहा ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! तब शत्रुवीरोंका नाश करनेवाले पाण्डुकुमार वीर भीमसेनने सम्पूर्ण जगत्‌के उन समस्त राजाओं, प्रमुख वीरों तथा आपके महारथी पुत्रोंको पृथक्-पृथक् बाण मारकर समरांगणमें घायल कर दिया॥७-८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सप्तभिः शल्यमाविध्यत् कृतवर्माणमष्टभिः ।
कृपस्य सशरं चापं मध्ये चिच्छेद भारत ॥ ९ ॥

मूलम्

सप्तभिः शल्यमाविध्यत् कृतवर्माणमष्टभिः ।
कृपस्य सशरं चापं मध्ये चिच्छेद भारत ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! भीमसेनने शल्यको सात और कृतवर्माको आठ बाणोंसे बींध डाला। फिर कृपाचार्यके बाणसहित धनुषको बीचसे ही काट दिया॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथैनं छिन्नधन्वानं पुनर्विव्याध सप्तभिः।
विन्दानुविन्दौ च तथा त्रिभिस्त्रिभिरताडयत् ॥ १० ॥

मूलम्

अथैनं छिन्नधन्वानं पुनर्विव्याध सप्तभिः।
विन्दानुविन्दौ च तथा त्रिभिस्त्रिभिरताडयत् ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धनुष कट जानेपर उन्होंने पुनः सात बाणोंसे कृपाचार्यको घायल किया। फिर विन्द और अनुविन्दको तीन-तीन बाण मारे॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्मर्षणं च विंशत्या चित्रसेनं च पञ्चभिः।
विकर्णं दशभिर्बाणैः पञ्चभिश्च जयद्रथम् ॥ ११ ॥
विद्ध्वा भीमोऽनदद्‌धृष्टः सैन्धवं च पुनस्त्रिभिः।

मूलम्

दुर्मर्षणं च विंशत्या चित्रसेनं च पञ्चभिः।
विकर्णं दशभिर्बाणैः पञ्चभिश्च जयद्रथम् ॥ ११ ॥
विद्ध्वा भीमोऽनदद्‌धृष्टः सैन्धवं च पुनस्त्रिभिः।

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् दुर्मर्षणको बीस, चित्रसेनको पाँच, विकर्णको दस तथा जयद्रथको पाँच बाणोंसे बींधकर भीमसेनने बड़े हर्षके साथ सिंहनाद किया और जयद्रथको पुनः तीन बाणोंसे बींध डाला॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथान्यद् धनुरादाय गौतमो रथिनां वरः ॥ १२ ॥
भीमं विव्याध संरब्धो दशभिर्निशितैः शरैः।

मूलम्

अथान्यद् धनुरादाय गौतमो रथिनां वरः ॥ १२ ॥
भीमं विव्याध संरब्धो दशभिर्निशितैः शरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर रथियोंमें श्रेष्ठ कृपाचार्यने दूसरा धनुष लेकर क्रोधपूर्वक चलाये हुए दस तीखे बाणोंद्वारा भीमसेनको बींध डाला॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स विद्धो दशभिर्बाणैस्तोत्रैरिव महाद्विपः ॥ १३ ॥
(व्यनदत् समरे शूरः सिंहवद् रणमूर्धनि।)

मूलम्

स विद्धो दशभिर्बाणैस्तोत्रैरिव महाद्विपः ॥ १३ ॥
(व्यनदत् समरे शूरः सिंहवद् रणमूर्धनि।)

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे महान् गजराज अंकुशोंसे पीड़ित होनेपर चिग्घाड़ उठता है, उसी प्रकार उन दस बाणोंसे घायल होनेपर शूरवीर भीमसेनने युद्धके मुहानेपर सिंहके समान गर्जना की॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः क्रुद्धो महाराज भीमसेनः प्रतापवान्।
गौतमं ताडयामास शरैर्बहुभिराहवे ॥ १४ ॥

मूलम्

ततः क्रुद्धो महाराज भीमसेनः प्रतापवान्।
गौतमं ताडयामास शरैर्बहुभिराहवे ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! तदनन्तर क्रोधमें भरे हुए प्रतापी भीमसेनने रणक्षेत्रमें कृपाचार्यको अनेक बाणोंद्वारा घायल किया॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सैन्धवस्य तथाश्वांश्च सारथिं च त्रिभिः शरैः।
प्राहिणोन्मृत्युलोकाय कालान्तकसमद्युतिः ॥ १५ ॥

मूलम्

सैन्धवस्य तथाश्वांश्च सारथिं च त्रिभिः शरैः।
प्राहिणोन्मृत्युलोकाय कालान्तकसमद्युतिः ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद प्रलयकालीन यमराजके समान तेजस्वी भीमसेनने तीन बाणोंद्वारा सिन्धुराज जयद्रथके घोड़ों तथा सारथिको यमलोक भेज दिया॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हताश्वात् तु रथात् तूर्णमवप्लुत्य महारथः।
शरांश्चिक्षेप निशितान् भीमसेनस्य संयुगे ॥ १६ ॥

मूलम्

हताश्वात् तु रथात् तूर्णमवप्लुत्य महारथः।
शरांश्चिक्षेप निशितान् भीमसेनस्य संयुगे ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब उस अश्वहीन रथसे तुरंत ही कूदकर महारथी जयद्रथने युद्धस्थलमें भीमसेनके ऊपर बहुत-से तीखे बाण चलाये॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य भीमो धनुर्मध्ये द्वाभ्यां चिच्छेद मारिष।
भल्लाभ्यां भरतश्रेष्ठ सैन्धवस्य महात्मनः ॥ १७ ॥

मूलम्

तस्य भीमो धनुर्मध्ये द्वाभ्यां चिच्छेद मारिष।
भल्लाभ्यां भरतश्रेष्ठ सैन्धवस्य महात्मनः ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

माननीय भरतश्रेष्ठ! उस समय भीमसेनने दो भल्ल मारकर महामना सिन्धुराजके धनुषको बीचसे ही काट दिया॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स छिन्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
चित्रसेनरथं राजन्नारुरोह त्वरान्वितः ॥ १८ ॥

मूलम्

स छिन्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
चित्रसेनरथं राजन्नारुरोह त्वरान्वितः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! धनुषके कटने तथा घोड़ों और सारथिके मारे जानेपर रथहीन हुआ जयद्रथ तुरंत ही चित्रसेनके रथपर जा बैठा॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अत्यद्भुतं रणे कर्म कृतवांस्तत्र पाण्डवः।
महारथाञ्शरैर्विद्ध्वा वारयित्वा च मारिष ॥ १९ ॥
विरथं सैन्धवं चक्रे सर्वलोकस्य पश्यतः।

मूलम्

अत्यद्भुतं रणे कर्म कृतवांस्तत्र पाण्डवः।
महारथाञ्शरैर्विद्ध्वा वारयित्वा च मारिष ॥ १९ ॥
विरथं सैन्धवं चक्रे सर्वलोकस्य पश्यतः।

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! वहाँ पाण्डुनन्दन भीमसेनने रणक्षेत्रमें यह अद्भुत कर्म किया कि सब महारथियोंको बाणोंसे घायल करके रोक दिया और सब लोगोंके देखते-देखते सिन्धुराजको रथहीन कर दिया॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदा न ममृषे शल्यो भीमसेनस्य विक्रमम् ॥ २० ॥
स संधाय शरांस्तीक्ष्णान् कर्मारपरिमार्जितान्।
भीमं विव्याध समरे तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ २१ ॥

मूलम्

तदा न ममृषे शल्यो भीमसेनस्य विक्रमम् ॥ २० ॥
स संधाय शरांस्तीक्ष्णान् कर्मारपरिमार्जितान्।
भीमं विव्याध समरे तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय राजा शल्य भीमसेनके उस पराक्रमको न सह सके। उन्होंने लोहारके माँजे हुए पैने बाणोंका संधान करके समरभूमिमें भीमसेनको बींध डाला और कहा—‘खड़ा रह, खड़ा रह’॥२०-२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृपश्च कृतवर्मा च भगदत्तश्च वीर्यवान्।
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ चित्रसेनश्च संयुगे ॥ २२ ॥
दुर्मर्षणो विकर्णश्च सिन्धुराजश्च वीर्यवान्।
भीमं ते विव्यधुस्तूर्णं शल्यहेतोररिंदमाः ॥ २३ ॥

मूलम्

कृपश्च कृतवर्मा च भगदत्तश्च वीर्यवान्।
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ चित्रसेनश्च संयुगे ॥ २२ ॥
दुर्मर्षणो विकर्णश्च सिन्धुराजश्च वीर्यवान्।
भीमं ते विव्यधुस्तूर्णं शल्यहेतोररिंदमाः ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् कृपाचार्य, कृतवर्मा, पराक्रमी भगदत्त, अवन्तीके विन्द और अनुविन्द, चित्रसेन, दुर्मर्षण, विकर्ण और पराक्रमी सिन्धुराज जयद्रथ शत्रुओंका दमन करनेवाले इन वीरोंने राजा शल्यकी रक्षाके लिये भीमसेनको तुरंत ही घायल कर दिया॥२२-२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स च तान् प्रतिविव्याध पञ्चभिः पञ्चभिः शरैः।
शल्यं विव्याध सप्तत्या पुनश्च दशभिः शरैः ॥ २४ ॥

मूलम्

स च तान् प्रतिविव्याध पञ्चभिः पञ्चभिः शरैः।
शल्यं विव्याध सप्तत्या पुनश्च दशभिः शरैः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर भीमसेनने भी उन सबको पाँच-पाँच बाणोंसे घायल करके तुरंत ही बदला लिया। इसके बाद उन्होंने शल्यको पहले सत्तर और फिर दस बाणोंसे बींध डाला॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं शल्यो नवभिर्भित्त्वा पुनर्विव्याध पञ्चभिः।
सारथिं चास्य भल्लेन गाढं विव्याध मर्मणि ॥ २५ ॥

मूलम्

तं शल्यो नवभिर्भित्त्वा पुनर्विव्याध पञ्चभिः।
सारथिं चास्य भल्लेन गाढं विव्याध मर्मणि ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह देख शल्यने भीमसेनको पहले नौ बाणोंसे विदीर्ण करके फिर पाँच बाणोंद्वारा घायल किया। साथ ही एक भल्लके द्वारा उनके सारथिके भी मर्मस्थानोंमें अधिक चोट पहुँचायी॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विशोकं प्रेक्ष्य निर्भिन्नं भीमसेनः प्रतापवान्।
मद्रराजं त्रिभिर्बाणैर्बाह्वोरुरसि चार्पयत् ॥ २६ ॥

मूलम्

विशोकं प्रेक्ष्य निर्भिन्नं भीमसेनः प्रतापवान्।
मद्रराजं त्रिभिर्बाणैर्बाह्वोरुरसि चार्पयत् ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय प्रतापी भीमसेनने अपने सारथि विशोकको अत्यन्त क्षत-विक्षत हुआ देख तीन बाणोंसे मद्रराज शल्यकी भुजाओं तथा छातीमें प्रहार किया॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(भगदत्तं तथा वीरं कृतवर्माणमाहवे।)
तथेतरान् महेष्वासांस्त्रिभिस्त्रिभिरजिह्मगैः ।
ताडयामास समरे सिंहवद् विननाद च ॥ २७ ॥

मूलम्

(भगदत्तं तथा वीरं कृतवर्माणमाहवे।)
तथेतरान् महेष्वासांस्त्रिभिस्त्रिभिरजिह्मगैः ।
ताडयामास समरे सिंहवद् विननाद च ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भगदत्त, वीरवर कृतवर्मा तथा अन्य महाधनुर्धर वीरोंको उन्होंने तीन-तीन सीधे जानेवाले सायकोंद्वारा समरभूमिमें मारा और सिंहके समान गर्जना की॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते हि यत्ता महेष्वासाः पाण्डवं युद्धकोविदम्।
त्रिभिस्त्रिभिरकुण्ठाग्रैर्भृशं मर्मस्वताडयन् ॥ २८ ॥

मूलम्

ते हि यत्ता महेष्वासाः पाण्डवं युद्धकोविदम्।
त्रिभिस्त्रिभिरकुण्ठाग्रैर्भृशं मर्मस्वताडयन् ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब उन सभी महाधनुर्धरोंने एक साथ प्रयत्न करके तीखे अग्रभागवाले तीन-तीन बाणोंद्वारा युद्धकुशल पाण्डुपुत्र भीमके मर्मस्थानोंमें गहरी चोट पहुँचायी॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽतिविद्धो महेष्वासो भीमसेनो न विव्यथे।
पर्वतो वारिधाराभिर्वर्षमाणैरिवाम्बुदैः ॥ २९ ॥

मूलम्

सोऽतिविद्धो महेष्वासो भीमसेनो न विव्यथे।
पर्वतो वारिधाराभिर्वर्षमाणैरिवाम्बुदैः ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके द्वारा अत्यन्त घायल होनेपर भी महाधनुर्धर भीमसेन बादलोंकी बरसायी हुई जलधाराओंसे पर्वतकी भाँति तनिक भी व्यथित एवं विचलित नहीं हुए॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तु क्रोधसमाविष्टः पाण्डवानां महारथः।
मद्रेश्वरं त्रिभिर्बाणैर्भृशं विद्ध्वा महायशाः ॥ ३० ॥
कृपं च नवभिर्बाणैर्भृशं विद्ध्वा समन्ततः।
प्राग्ज्योतिषं शतैराजौ राजन् विव्याध सायकैः ॥ ३१ ॥

मूलम्

स तु क्रोधसमाविष्टः पाण्डवानां महारथः।
मद्रेश्वरं त्रिभिर्बाणैर्भृशं विद्ध्वा महायशाः ॥ ३० ॥
कृपं च नवभिर्बाणैर्भृशं विद्ध्वा समन्ततः।
प्राग्ज्योतिषं शतैराजौ राजन् विव्याध सायकैः ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तब क्रोधमें भरे हुए पाण्डवोंके महारथी महायशस्वी भीमसेनने मद्रराज शल्यको तीन और कृपाचार्यको नौ बाणोंद्वारा सब ओरसे अत्यन्त घायल करके प्राग्ज्योतिषनरेश भगदत्तको सैकड़ों बाणोंद्वारा समरभूमिमें बींध डाला॥३०-३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तु सशरं चापं सात्वतस्य महात्मनः।
क्षुरप्रेण सुतीक्ष्णेन चिच्छेद कृतहस्तवत् ॥ ३२ ॥

मूलम्

ततस्तु सशरं चापं सात्वतस्य महात्मनः।
क्षुरप्रेण सुतीक्ष्णेन चिच्छेद कृतहस्तवत् ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् सिद्धहस्त पुरुषकी भाँति भीमसेनने अत्यन्त तीखे क्षुरप्रके द्वारा महामना कृतवर्माके बाणसहित धनुषको काट डाला॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथान्यद् धनुरादाय कृतवर्मा वृकोदरम्।
आजघान भ्रुवोर्मध्ये नाराचेन परंतपः ॥ ३३ ॥

मूलम्

तथान्यद् धनुरादाय कृतवर्मा वृकोदरम्।
आजघान भ्रुवोर्मध्ये नाराचेन परंतपः ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब शत्रुओंको संताप देनेवाले कृतवर्माने दूसरा धनुष लेकर भीमसेनकी दोनों भौंहोंके मध्यभागमें नाराचके द्वारा प्रहार किया॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमस्तु समरे विद्ध्वा शल्यं नवभिरायसैः।
भगदत्तं त्रिभिश्चैव कृतवर्माणमष्टभिः ॥ ३४ ॥
द्वाभ्यां द्वाभ्यां तु विव्याध गौतमप्रभृतीन् रथान्।
तेऽपि तं समरे राजन् विव्यधुर्निशितैः शरैः ॥ ३५ ॥

मूलम्

भीमस्तु समरे विद्ध्वा शल्यं नवभिरायसैः।
भगदत्तं त्रिभिश्चैव कृतवर्माणमष्टभिः ॥ ३४ ॥
द्वाभ्यां द्वाभ्यां तु विव्याध गौतमप्रभृतीन् रथान्।
तेऽपि तं समरे राजन् विव्यधुर्निशितैः शरैः ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् भीमसेनने समरांगणमें लोहेके बने हुए नौ बाणोंसे राजा शल्यको बेधकर तीन बाणोंसे भगदत्तको, आठसे कृतवर्माको और दो-दो बाणोंद्वारा कृपाचार्य आदि रथियोंको बींध डाला। राजन्! फिर उन्होंने भी अपने तीखे बाणोंद्वारा भीमसेनको घायल कर दिया॥३४-३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तथा पीड्यमानोऽपि सर्वशस्त्रैर्महारथैः।
मत्वा तृणेन तांस्तुल्यान् विचचार गतव्यथः ॥ ३६ ॥

मूलम्

स तथा पीड्यमानोऽपि सर्वशस्त्रैर्महारथैः।
मत्वा तृणेन तांस्तुल्यान् विचचार गतव्यथः ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन महारथियोंद्वारा सब प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंसे पीड़ित किये जानेपर भी भीमसेन उन्हें तिनकोंके समान मानकर व्यथारहित हो विचरण करने लगे॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते चापि रथिनां श्रेष्ठा भीमाय निशिताञ्छरान्।
प्रेषयामासुरव्यग्राः शतशोऽथ सहस्रशः ॥ ३७ ॥

मूलम्

ते चापि रथिनां श्रेष्ठा भीमाय निशिताञ्छरान्।
प्रेषयामासुरव्यग्राः शतशोऽथ सहस्रशः ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रथियोंमें श्रेष्ठ उन वीरोंने भी व्यग्रतारहित हो भीमसेनपर सैकड़ों और हजारोंकी संख्यामें तीखे बाण चलाये॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य शक्तिं महावेगां भगदत्तो महारथः।
चिक्षेप समरे वीरः स्वर्णदण्डां महामते ॥ ३८ ॥

मूलम्

तस्य शक्तिं महावेगां भगदत्तो महारथः।
चिक्षेप समरे वीरः स्वर्णदण्डां महामते ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महामते! उस समरभूमिमें वीर महारथी भगदत्तने भीमसेनपर स्वर्णमय दण्डसे विभूषित एक महावेगशालिनी शक्ति चलायी॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तोमरं सैन्धवो राजा पट्टिशं च महाभुजः।
शतघ्नीं च कृपो राजञ्छरं शल्यश्च संयुगे ॥ ३९ ॥

मूलम्

तोमरं सैन्धवो राजा पट्टिशं च महाभुजः।
शतघ्नीं च कृपो राजञ्छरं शल्यश्च संयुगे ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सिन्धुदेशके राजा महाबाहु जयद्रथने तोमर और पट्टिश चलाया। राजन्! कृपाचार्यने शतघ्नीका प्रयोग किया तथा राजा शल्पने युद्धस्थलमें एक बाण मारा॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथेतरे महेष्वासाः पञ्च पञ्च शिलीमुखान्।
भीमसेनं समुद्दिश्य प्रेषयामासुरोजसा ॥ ४० ॥

मूलम्

अथेतरे महेष्वासाः पञ्च पञ्च शिलीमुखान्।
भीमसेनं समुद्दिश्य प्रेषयामासुरोजसा ॥ ४० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इनके सिवा दूसरे धनुर्धर वीरोंने भी भीमसेनको लक्ष्य करके बलपूर्वक पाँच-पाँच बाण चलाये॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तोमरं च द्विधा चक्रे क्षुरप्रेणानिलात्मजः।
पट्टिशं च त्रिभिर्बाणैश्चिच्छेद तिलकाण्डवत् ॥ ४१ ॥

मूलम्

तोमरं च द्विधा चक्रे क्षुरप्रेणानिलात्मजः।
पट्टिशं च त्रिभिर्बाणैश्चिच्छेद तिलकाण्डवत् ॥ ४१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु वायुपुत्र भीमसेनने एक क्षुरप्रसे जयद्रथके चलाये हुए तोमरके दो टुकड़े कर दिये; फिर तीन बाण मारकर पट्टिशको तिलके डंठलके समान टूक-टूक कर डाला॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स बिभेद शतघ्नीं च नवभिः कङ्कपत्रिभिः।
मद्रराजप्रयुक्तं च शरं छित्त्वा महारथः ॥ ४२ ॥
शक्तिं चिच्छेद सहसा भगदत्तेरितां रणे।

मूलम्

स बिभेद शतघ्नीं च नवभिः कङ्कपत्रिभिः।
मद्रराजप्रयुक्तं च शरं छित्त्वा महारथः ॥ ४२ ॥
शक्तिं चिच्छेद सहसा भगदत्तेरितां रणे।

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् कंकपत्रयुक्त नौ बाणोंद्वारा शतघ्नीको छिन्न-भिन्न कर दिया। इसके बाद महारथी भीमसेनने मद्रराज शल्यके चलाये हुए बाणको काटकर रणक्षेत्रमें भगदत्तकी चलायी हुई शक्तिके भी सहसा टुकड़े-टुकड़े कर डाले॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथेतराञ्छरान् घोरान् शरैः संनतपर्वभिः ॥ ४३ ॥
भीमसेनो रणश्लाघी त्रिधैकैकं समाच्छिनत्।
तांश्च सर्वान् महेष्वासांस्त्रिभिस्त्रिभिरताडयत् ॥ ४४ ॥

मूलम्

तथेतराञ्छरान् घोरान् शरैः संनतपर्वभिः ॥ ४३ ॥
भीमसेनो रणश्लाघी त्रिधैकैकं समाच्छिनत्।
तांश्च सर्वान् महेष्वासांस्त्रिभिस्त्रिभिरताडयत् ॥ ४४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर झुकी हुई गाँठवाले बहुत-से बाणोंद्वारा अन्यान्य योद्धाओंके चलाये हुए भयंकर शरसमूहोंको भी युद्धकी श्लाघा रखनेवाले भीमसेनने काटकर एक-एकके तीन-तीन टुकड़े कर दिये। इस प्रकार शत्रुओंके अस्त्र-शस्त्रोंका निवारण करके भीमसेनने उन सभी महाधनुर्धर वीरोंको तीन-तीन बाणोंसे घायल कर दिया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो धनंजयस्तत्र वर्तमाने महारणे।
आजगाम रथेनाजौ भीमं दृष्ट्वा महारथम् ॥ ४५ ॥
निघ्नन्तं समरे शत्रून् योधयानं च सायकैः।

मूलम्

ततो धनंजयस्तत्र वर्तमाने महारणे।
आजगाम रथेनाजौ भीमं दृष्ट्वा महारथम् ॥ ४५ ॥
निघ्नन्तं समरे शत्रून् योधयानं च सायकैः।

अनुवाद (हिन्दी)

तब उस महासमरमें महारथी भीमसेनको, जो समरभूमिमें सायकोंद्वारा शत्रुओंका संहार करते हुए उनके साथ युद्ध कर रहे थे, देखकर रथके द्वारा अर्जुन भी वहीं आ पहुँचे॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ तु तत्र महात्मानौ समेतौ वीक्ष्य पाण्डवौ ॥ ४६ ॥
न शशंसुर्जयं तत्र तावकाः पुरुषर्षभाः।

मूलम्

तौ तु तत्र महात्मानौ समेतौ वीक्ष्य पाण्डवौ ॥ ४६ ॥
न शशंसुर्जयं तत्र तावकाः पुरुषर्षभाः।

अनुवाद (हिन्दी)

उन दोनों महामनस्वी पाण्डव बन्धुओंको एकत्र हुआ देख आपकी सेनाके श्रेष्ठ पुरुषोंने वहाँ अपनी विजयकी आशा त्याग दी॥४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथार्जुनो रणे भीमं योधयन्तं महारथान् ॥ ४७ ॥
भीष्मस्य निधनाकाङ्क्षी पुरस्कृत्य शिखण्डिनम्।
आससाद रणे वीरांस्तावकान् दश भारत ॥ ४८ ॥

मूलम्

अथार्जुनो रणे भीमं योधयन्तं महारथान् ॥ ४७ ॥
भीष्मस्य निधनाकाङ्क्षी पुरस्कृत्य शिखण्डिनम्।
आससाद रणे वीरांस्तावकान् दश भारत ॥ ४८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! उस रणक्षेत्रमें भीम जिनके साथ युद्ध कर रहे थे, आपके पक्षके उन दस महारथी वीरोंके सामने भीष्मके वधकी इच्छा रखनेवाले अर्जुन भी शिखण्डीको आगे किये आ पहुँचे॥४७-४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये स्म भीमं रणे राजन् योधयन्तो व्यवस्थिताः।
बीभत्सुस्तानथाविध्यद् भीमस्य प्रियकाम्यया ॥ ४९ ॥

मूलम्

ये स्म भीमं रणे राजन् योधयन्तो व्यवस्थिताः।
बीभत्सुस्तानथाविध्यद् भीमस्य प्रियकाम्यया ॥ ४९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! जो लोग रणक्षेत्रमें भीमसेनके साथ युद्ध करते हुए खड़े थे, उन सबको अर्जुनने भीमका प्रिय करनेकी इच्छासे अच्छी तरह घायल कर दिया॥४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुर्योधनो राजा सुशर्माणमचोदयत्।
अर्जुनस्य वधार्थाय भीमसेनस्य चोभयोः ॥ ५० ॥

मूलम्

ततो दुर्योधनो राजा सुशर्माणमचोदयत्।
अर्जुनस्य वधार्थाय भीमसेनस्य चोभयोः ॥ ५० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब राजा दुर्योधनने अर्जुन और भीमसेन दोनोंके वधके लिये सुशर्माको भेजा॥५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुशर्मन् गच्छ शीघ्रं त्वं बलौघैः परिवारितः।
जहि पाण्डुसुतावेतौ धनंजयवृकोदरौ ॥ ५१ ॥

मूलम्

सुशर्मन् गच्छ शीघ्रं त्वं बलौघैः परिवारितः।
जहि पाण्डुसुतावेतौ धनंजयवृकोदरौ ॥ ५१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भेजते समय उसने कहा—‘सुशर्मन्! तुम विशाल सेनाके साथ शीघ्र जाओ और अर्जुन तथा भीमसेन इन दोनों पाण्डुकुमारोंको मार डालो’॥५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तच्छ्रुत्वा वचनं तस्य त्रैगर्तः प्रस्थलाधिपः।
अभिद्रुत्य रणे भीममर्जुनं चैव धन्विनौ ॥ ५२ ॥
रथैरनेकसाहस्रैः समन्तात् पर्यवारयत् ।
ततः प्रववृते युद्धमर्जुनस्य परैः सह ॥ ५३ ॥

मूलम्

तच्छ्रुत्वा वचनं तस्य त्रैगर्तः प्रस्थलाधिपः।
अभिद्रुत्य रणे भीममर्जुनं चैव धन्विनौ ॥ ५२ ॥
रथैरनेकसाहस्रैः समन्तात् पर्यवारयत् ।
ततः प्रववृते युद्धमर्जुनस्य परैः सह ॥ ५३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दुर्योधनकी यह बात सुनकर प्रस्थलाके स्वामी त्रिगर्तराज सुशर्माने रणक्षेत्रमें धावा करके भीमसेन और अर्जुन दोनों धनुर्धर वीरोंको अनेक सहस्र रथोंद्वारा सब ओरसे घेर लिया। उस समय अर्जुनका शत्रुओंके साथ घोर युद्ध होने लगा॥५२-५३॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि भीमपराक्रमे त्रयोदशाधिकशततमोऽध्यायः ॥ ११३ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें भीमसेनका पराक्रमविषयक एक सौ तेरहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥११३॥

सूचना (हिन्दी)

[दाक्षिणात्य अधिक पाठका १ श्लोक मिलाकर कुल ५४ श्लोक हैं।]