१११ द्वन्द्वयुद्धे

भागसूचना

एकादशाधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

कौरव-पाण्डवपक्षके प्रमुख महारथियोंके द्वन्द्व-युद्धका वर्णन

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

सात्यकिं दंशितं युद्धे भीष्मायाभ्युद्यतं रणे।
आर्ष्यशृङ्गिर्महेष्वासो वारयामास संयुगे ॥ १ ॥

मूलम्

सात्यकिं दंशितं युद्धे भीष्मायाभ्युद्यतं रणे।
आर्ष्यशृङ्गिर्महेष्वासो वारयामास संयुगे ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! युद्धस्थलमें कवचधारी सात्यकिको भीष्मसे युद्ध करनेके लिये उद्यत देख महाधनुर्धर राक्षस अलम्बुषने आकर उन्हें रोका॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

माधवस्तु सुसंक्रुद्धो राक्षसं नवभिः शरैः।
आजघान रणे राजन् प्रहसन्निव भारत ॥ २ ॥

मूलम्

माधवस्तु सुसंक्रुद्धो राक्षसं नवभिः शरैः।
आजघान रणे राजन् प्रहसन्निव भारत ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! भरतनन्दन! यह देख सात्यकिने अत्यन्त कुपित हो उस रणक्षेत्रमें राक्षस अलम्बुषको हँसते हुए-से नौ बाण मारे॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव राक्षसो राजन् माधवं नवभिः शरैः।
अर्दयामास राजेन्द्र संक्रुद्धः शिनिपुङ्गवम् ॥ ३ ॥

मूलम्

तथैव राक्षसो राजन् माधवं नवभिः शरैः।
अर्दयामास राजेन्द्र संक्रुद्धः शिनिपुङ्गवम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! तब उस राक्षसने भी अत्यन्त कुपित होकर मधुवंशी सात्यकिको नौ बाणोंसे पीड़ित किया॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शैनेयः शरसंघं तु प्रेषयामास संयुगे।
राक्षसाय सुसंक्रुद्धो माधवः परवीरहा ॥ ४ ॥

मूलम्

शैनेयः शरसंघं तु प्रेषयामास संयुगे।
राक्षसाय सुसंक्रुद्धो माधवः परवीरहा ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब शत्रुवीरोंका संहार करनेवाले मधुवंशी सात्यकि-का क्रोध बहुत बढ़ गया और समरभूमिमें उन्होंने राक्षसपर बाणसमूहोंकी वर्षा प्रारम्भ कर दी॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो रक्षो महाबाहुं सात्यकिं सत्यविक्रमम्।
विव्याध विशिखैस्तीक्ष्णैः सिंहनादं ननाद च ॥ ५ ॥

मूलम्

ततो रक्षो महाबाहुं सात्यकिं सत्यविक्रमम्।
विव्याध विशिखैस्तीक्ष्णैः सिंहनादं ननाद च ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर राक्षसने सत्यपराक्रमी महाबाहु सात्यकिको तीखे सायकोंसे बींध डाला और सिंहके समान गर्जना की॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

माधवस्तु भृशं विद्धो राक्षसेन रणे तदा।
वार्यमाणश्च तेजस्वी जहास च ननाद च ॥ ६ ॥

मूलम्

माधवस्तु भृशं विद्धो राक्षसेन रणे तदा।
वार्यमाणश्च तेजस्वी जहास च ननाद च ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय राक्षसके द्वारा रणक्षेत्रमें रोके जाने और अत्यन्त घायल होनेपर भी मधुवंशी तेजस्वी सात्यकि हँसने और गर्जना करने लगे॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भगदत्तस्ततः क्रुद्धो माधवं निशितैः शरैः।
ताडयामास समरे तोत्रैरिव महागजम् ॥ ७ ॥

मूलम्

भगदत्तस्ततः क्रुद्धो माधवं निशितैः शरैः।
ताडयामास समरे तोत्रैरिव महागजम् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब क्रोधमें भरे हुए भगदत्तने पैने बाणोंद्वारा मधुवंशी सात्यकिको समरभूमिमें उसी प्रकार पीड़ित किया, जैसे महावत अंकुशोंद्वारा महान् गजराजको पीड़ा देता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विहाय राक्षसं युद्धे शैनेयो रथिनां वरः।
प्राग्ज्योतिषाय चिक्षेप शरान् संनतपर्वणः ॥ ८ ॥

मूलम्

विहाय राक्षसं युद्धे शैनेयो रथिनां वरः।
प्राग्ज्योतिषाय चिक्षेप शरान् संनतपर्वणः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब रथियोंमें श्रेष्ठ सात्यकिने युद्धमें उस राक्षसको छोड़कर प्राग्ज्योतिषपुरनरेश भगदत्तपर झुकी हुई गाँठवाले बहुत-से बाण चलाये॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य प्राग्ज्योतिषो राजा माधवस्य महद् धनुः।
चिच्छेद शतधारेण भल्लेन कृतहस्तवत् ॥ ९ ॥

मूलम्

तस्य प्राग्ज्योतिषो राजा माधवस्य महद् धनुः।
चिच्छेद शतधारेण भल्लेन कृतहस्तवत् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह देख प्राग्ज्योतिषपुरनरेश भगदत्तने सात्यकिके विशाल धनुषको एक सिद्धहस्त योद्धाकी भाँति सौ धारवाले भल्लके द्वारा काट डाला॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथान्यद् धनुरादाय वेगवत् परवीरहा।
भगदत्तं रणे क्रुद्धं विव्याध निशितैः शरैः ॥ १० ॥

मूलम्

अथान्यद् धनुरादाय वेगवत् परवीरहा।
भगदत्तं रणे क्रुद्धं विव्याध निशितैः शरैः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब शत्रुवीरोंका हनन करनेवाले सात्यकिने दूसरा वेगवान् धनुष लेकर पैने बाणोंद्वारा युद्धमें क्रुद्ध हुए भगदत्तको बींध डाला॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽतिविद्धो महेष्वासः सृक्किणी परिसंलिहन्।
शक्तिं कनकवैदूर्यभूषितामायसीं दृढाम् ॥ ११ ॥
यमदण्डोपमां घोरां चिक्षेप परमाहवे।

मूलम्

सोऽतिविद्धो महेष्वासः सृक्किणी परिसंलिहन्।
शक्तिं कनकवैदूर्यभूषितामायसीं दृढाम् ॥ ११ ॥
यमदण्डोपमां घोरां चिक्षेप परमाहवे।

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार अत्यन्त घायल होनेपर महाधनुर्धर भगदत्त अपने मुँहके दोनों कोने चाटने लगे। फिर उन्होंने उस महायुद्धमें कनक और वैदूर्य मणियोंसे विभूषित लोहेकी बनी हुई सुदृढ़ एवं यमदण्डके समान भयंकर शक्ति चलायी॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तामापतन्तीं सहसा तस्य बाहुबलेरिताम् ॥ १२ ॥
सात्यकिः समरे राजन् द्विधा चिच्छेद सायकैः।

मूलम्

तामापतन्तीं सहसा तस्य बाहुबलेरिताम् ॥ १२ ॥
सात्यकिः समरे राजन् द्विधा चिच्छेद सायकैः।

अनुवाद (हिन्दी)

उनके बाहुबलसे प्रेरित होकर समरभूमिमें सहसा अपने ऊपर गिरती हुई उस शक्तिके सात्यकिने बाणों-द्वारा दो टुकड़े कर दिये॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः पपात सहसा महोल्केव हतप्रभा ॥ १३ ॥
शक्तिं विनिहतां दृष्ट्वा पुत्रस्तव विशाम्पते।
महता रथवंशेन वारयामास माधवम् ॥ १४ ॥

मूलम्

ततः पपात सहसा महोल्केव हतप्रभा ॥ १३ ॥
शक्तिं विनिहतां दृष्ट्वा पुत्रस्तव विशाम्पते।
महता रथवंशेन वारयामास माधवम् ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब वह शक्ति प्रभाहीन हुई बहुत बड़ी उल्काके समान सहसा भूमिपर गिर पड़ी। प्रजानाथ! भगदत्तकी शक्तिको नष्ट हुई देख आपके पुत्रने विशाल रथसेनाके साथ आकर सात्यकिको रोका॥१३-१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा परिवृतं दृष्ट्वा वार्ष्णेयानां महारथम्।
दुर्योधनो भृशं क्रुद्धो भ्रातॄन् सर्वानुवाच ह ॥ १५ ॥

मूलम्

तथा परिवृतं दृष्ट्वा वार्ष्णेयानां महारथम्।
दुर्योधनो भृशं क्रुद्धो भ्रातॄन् सर्वानुवाच ह ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वृष्णिवंशी महारथी सात्यकिको रथसेनासे घिरा हुआ देख दुर्योधनने अत्यन्त कुपित होकर अपने समस्त भाइयोंसे कहो—॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा कुरुत कौरव्या यथा वः सात्यको युधि।
न जीवन् प्रतिनिर्याति महतोऽस्माद् रथव्रजात् ॥ १६ ॥

मूलम्

तथा कुरुत कौरव्या यथा वः सात्यको युधि।
न जीवन् प्रतिनिर्याति महतोऽस्माद् रथव्रजात् ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘कौरवो! तुम ऐसा प्रयत्न करो, जिससे इस समरांगणमें आये हुए सात्यकि हमारे इस महान् रथ-समुदायसे जीवित न निकलने पावें॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिन् हते हतं मन्ये पाण्डवानां महद् बलम्।
तथेति च वचस्तस्य परिगृह्य महारथाः ॥ १७ ॥
शैनेयं योधयामासुर्भीष्मायाभ्युद्यतं रणे ।

मूलम्

तस्मिन् हते हतं मन्ये पाण्डवानां महद् बलम्।
तथेति च वचस्तस्य परिगृह्य महारथाः ॥ १७ ॥
शैनेयं योधयामासुर्भीष्मायाभ्युद्यतं रणे ।

अनुवाद (हिन्दी)

‘सात्यकिके मारे जानेपर मैं पाण्डवोंकी विशाल सेनाको मरी हुई ही मानता हूँ।’ दुर्योधनकी इस बातको मानकर कौरव महारथियोंने रणभूमिमें भीष्मका सामना करनेके लिये उद्यत हुए सात्यकिसे युद्ध आरम्भ किया॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(अभिमन्युं तथाऽऽयान्तं भीष्मस्याभ्युद्यतं वधे।)
काम्बोजराजो बलवान् वारयामास संयुगे ॥ १८ ॥

मूलम्

(अभिमन्युं तथाऽऽयान्तं भीष्मस्याभ्युद्यतं वधे।)
काम्बोजराजो बलवान् वारयामास संयुगे ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार भीष्मका वध करनेके लिये उद्यत होकर आते हुए अर्जुनकुमार अभिमन्युको बलवान् काम्बोजराजने युद्धके मैदानमें आगे बढ़नेसे रोक दिया॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आर्जुनिं नृपतिर्विद्ध्वा शरैः संनतपर्वभिः।
पुनरेव चतुःषष्ट्या राजन् विव्याध तं नृप ॥ १९ ॥

मूलम्

आर्जुनिं नृपतिर्विद्ध्वा शरैः संनतपर्वभिः।
पुनरेव चतुःषष्ट्या राजन् विव्याध तं नृप ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! नरेश्वर! काम्बोजराजने झुकी हुई गाँठवाले अनेक बाणोंद्वारा अभिमन्युको घायल करके पुनः चौंसठ बाणोंसे मारकर उन्हें गहरी चोट पहुँचायी॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुदक्षिणस्तु समरे पुनर्विव्याध पञ्चभिः।
सारथिं चास्य नवभिरिच्छन् भीष्मस्य जीवितम् ॥ २० ॥

मूलम्

सुदक्षिणस्तु समरे पुनर्विव्याध पञ्चभिः।
सारथिं चास्य नवभिरिच्छन् भीष्मस्य जीवितम् ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर समरांगणमें भीष्मके जीवनकी रक्षा चाहनेवाले काम्बोजराज सुदक्षिणने अभिमन्युको पुनः पाँच बाण मारे और नौ बाणोंद्वारा उनके सारथिको भी घायल कर दिया॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तद् युद्धमासीत् सुमहत् तयोस्तत्र समागमे।
यदाभ्यधावद् गाङ्गेयं शिखण्डी शत्रुकर्शनः ॥ २१ ॥

मूलम्

तद् युद्धमासीत् सुमहत् तयोस्तत्र समागमे।
यदाभ्यधावद् गाङ्गेयं शिखण्डी शत्रुकर्शनः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जब शत्रुसूदन शिखण्डीने गंगानन्दन भीष्मपर धावा किया था, उस समय उन दोनों (अभिमन्यु और सुदक्षिण)-के संघर्षमें वहाँ बड़ा भारी युद्ध आरम्भ हो गया॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विराटद्रुपदौ वृद्धौ वारयन्तौ महाचमूम्।
भीष्मं च युधि संरब्धावाद्रवन्तौ महारथौ ॥ २२ ॥

मूलम्

विराटद्रुपदौ वृद्धौ वारयन्तौ महाचमूम्।
भीष्मं च युधि संरब्धावाद्रवन्तौ महारथौ ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बूढ़े राजा महारथी विराट और द्रुपद दुर्योधनकी उस विशाल सेनाको रोकते हुए अत्यन्त क्रोधमें भरकर युद्धस्थलमें भीष्मपर चढ़ आये॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अश्वत्थामा रणे क्रुद्धः समायाद्रथसत्तमः।
ततः प्रववृते युद्धं तयोस्तस्य च भारत ॥ २३ ॥

मूलम्

अश्वत्थामा रणे क्रुद्धः समायाद्रथसत्तमः।
ततः प्रववृते युद्धं तयोस्तस्य च भारत ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब रथियोंमें श्रेष्ठ अश्वत्थामा रणभूमिमें कुपित होकर आया। भारत! फिर अश्वत्थामाका विराट और द्रुपदके साथ भारी युद्ध छिड़ गया॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विराटो दशभिर्भल्लैराजघान परंतप ।
यतमानं महेष्वासं द्रौणिमाहवशोभिनम् ॥ २४ ॥

मूलम्

विराटो दशभिर्भल्लैराजघान परंतप ।
यतमानं महेष्वासं द्रौणिमाहवशोभिनम् ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शत्रुओंको संताप देनेवाले नरेश! राजा विराटने संग्राममें शोभा पानेवाले प्रयत्नशील एवं महाधनुर्धर अश्वत्थामाको भल्ल नामक दस बाणोंसे घायल किया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रुपदश्च त्रिभिर्बाणैर्विव्याध निशितैस्तदा ।
गुरुपुत्रं समासाद्य प्रहरन्तौ महाबलौ ॥ २५ ॥
अश्वत्थामा ततस्तौ तु विव्याध बहुभिः शरैः।
विराटद्रुपदौ वीरौ भीष्मं प्रति समुझतौ ॥ २६ ॥

मूलम्

द्रुपदश्च त्रिभिर्बाणैर्विव्याध निशितैस्तदा ।
गुरुपुत्रं समासाद्य प्रहरन्तौ महाबलौ ॥ २५ ॥
अश्वत्थामा ततस्तौ तु विव्याध बहुभिः शरैः।
विराटद्रुपदौ वीरौ भीष्मं प्रति समुझतौ ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय द्रुपदने भी तीन तीखे बाणोंद्वारा अश्वत्थामाको घायल कर दिया। इस प्रकार प्रहार करते हुए उन दोनों महाबली नरेशोंको अश्वत्थामाने अनेक बाणोंद्वारा बींध डाला। विराट और द्रुपद दोनों वीर भीष्मका वध करनेके लिये उद्यत थे॥२५-२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राद्भुतमपश्याम वृद्धयोश्चरितं महत् ।
यद् द्रौणिसायकान् घोरान् प्रत्यवारयतां युधि ॥ २७ ॥

मूलम्

तत्राद्भुतमपश्याम वृद्धयोश्चरितं महत् ।
यद् द्रौणिसायकान् घोरान् प्रत्यवारयतां युधि ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! वहाँ उन दोनों बूढ़े नरेशोंका हमने अद्‌भुत एवं महान् पराक्रम यह देखा कि वे युद्धमें अश्वत्थामाके भयंकर बाणोंका निवारण करते जा रहे थे॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहदेवं तथा यान्तं कृपः शारद्वतोऽभ्ययात्।
यथा नागो वने नागं मत्तो मत्तमुपाद्रवत् ॥ २८ ॥

मूलम्

सहदेवं तथा यान्तं कृपः शारद्वतोऽभ्ययात्।
यथा नागो वने नागं मत्तो मत्तमुपाद्रवत् ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार भीष्मपर चढ़ाई करनेवाले सहदेवको शरद्वान्‌के पुत्र कृपाचार्यने सामने आकर रोका, मानो वनमें किसी मतवाले हाथीपर मदोन्मत्त गजराजने आक्रमण किया हो॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृपश्च समरे शूरो माद्रीपुत्रं महारथम्।
आजघान शरैस्तूर्णं सप्तत्या रुक्मभूषणैः ॥ २९ ॥

मूलम्

कृपश्च समरे शूरो माद्रीपुत्रं महारथम्।
आजघान शरैस्तूर्णं सप्तत्या रुक्मभूषणैः ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शूरवीर कृपाचार्यने समरभूमिमें महारथी माद्रीकुमार सहदेवको सुवर्णभूषित सत्तर बाणोंसे तुरंत घायल कर दिया॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य माद्रीसुतश्चापं द्विधा चिच्छेद सायकैः।
अथैनं छिन्नधन्वानं विव्याध नवभिः शरैः ॥ ३० ॥

मूलम्

तस्य माद्रीसुतश्चापं द्विधा चिच्छेद सायकैः।
अथैनं छिन्नधन्वानं विव्याध नवभिः शरैः ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब माद्रीकुमार सहदेवने भी अपने सायकोंद्वारा उनके धनुषके दो टुकड़े कर दिये और धनुष कट जानेपर उन्हें नौ बाणोंसे घायल कर दिया॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽन्यत् कार्मुकमादाय समरे भारसाधनम्।
माद्रीपुत्रं सुसंहृष्टो दशभिर्निशितैः शरैः ॥ ३१ ॥
आजघानोरसि क्रुद्ध इच्छन् भीष्मस्य जीवितम्।

मूलम्

सोऽन्यत् कार्मुकमादाय समरे भारसाधनम्।
माद्रीपुत्रं सुसंहृष्टो दशभिर्निशितैः शरैः ॥ ३१ ॥
आजघानोरसि क्रुद्ध इच्छन् भीष्मस्य जीवितम्।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर भीष्मके जीवनकी रक्षा चाहनेवाले कृपाचार्यने समरांगणमें भार सहन करनेमें समर्थ दूसरा धनुष लेकर अत्यन्त हर्षके साथ सहदेवकी छातीमें क्रोधपूर्वक दस तीखे बाण मारे॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव पाण्डवो राजञ्छारद्वतममर्षणम् ॥ ३२ ॥
आजघानोरसि क्रुद्धो भीष्मस्य वधकाङ्क्षया।
तयोर्युद्धं समभवद् घोररूपं भयावहम् ॥ ३३ ॥

मूलम्

तथैव पाण्डवो राजञ्छारद्वतममर्षणम् ॥ ३२ ॥
आजघानोरसि क्रुद्धो भीष्मस्य वधकाङ्क्षया।
तयोर्युद्धं समभवद् घोररूपं भयावहम् ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इसी प्रकार पाण्डुकुमार सहदेवने भी कुपित हो भीष्मके वधकी इच्छासे अमर्षशील कृपाचार्यकी छातीमें अपने बाणोंद्वारा प्रहार किया। उन दोनोंका वह युद्ध अत्यन्त घोर एवं भयंकर हो चला॥३२-३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नकुलं तु रणे क्रुद्धो विकर्णः शत्रुतापनः।
विव्याध सायकैः षष्ट्या रक्षन् भीष्मं महाबलम् ॥ ३४ ॥

मूलम्

नकुलं तु रणे क्रुद्धो विकर्णः शत्रुतापनः।
विव्याध सायकैः षष्ट्या रक्षन् भीष्मं महाबलम् ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दूसरी ओर क्रोधमें भरे हुए शत्रुसंतापी विकर्णने युद्धके मैदानमें महाबली भीष्मकी रक्षामें तत्पर हो साठ बाणोंद्वारा नकुलको घायल कर दिया॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नकुलोऽपि भृशं विद्धस्तव पुत्रेण धीमता।
विकर्णं सप्तसप्तत्या निर्बिभेद शिलीमुखैः ॥ ३५ ॥

मूलम्

नकुलोऽपि भृशं विद्धस्तव पुत्रेण धीमता।
विकर्णं सप्तसप्तत्या निर्बिभेद शिलीमुखैः ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपके बुद्धिमान् पुत्र विकर्णद्वारा अत्यन्त घायल होकर नकुलने भी सतहत्तर बाणोंसे विकर्णको क्षत-विक्षत कर दिया॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्र तौ नरशार्दूलौ भीष्महेतोः परंतपौ।
अन्योन्यं जघ्नतुर्वीरौ गोष्ठे गोवृषभाविव ॥ ३६ ॥

मूलम्

तत्र तौ नरशार्दूलौ भीष्महेतोः परंतपौ।
अन्योन्यं जघ्नतुर्वीरौ गोष्ठे गोवृषभाविव ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे गोशालामें दो साँड़ आपसमें लड़ते हों, उसी प्रकार शत्रुओंको संताप देनेवाले दोनों पुरुषसिंह वीर विकर्ण और नकुल भीष्मकी रक्षाके लिये एक-दूसरेपर घातक प्रहार कर रहे थे॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

घटोत्कचं रणे यान्तं निघ्नन्तं तव वाहिनीम्।
दुर्मुखः समरे प्रायाद् भीष्महेतोः पराक्रमी ॥ ३७ ॥

मूलम्

घटोत्कचं रणे यान्तं निघ्नन्तं तव वाहिनीम्।
दुर्मुखः समरे प्रायाद् भीष्महेतोः पराक्रमी ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसी समय पराक्रमी दुर्मुखने समरभूमिमें भीष्मकी रक्षाके लिये राक्षस घटोत्कचपर आक्रमण किया, जो युद्धके मैदानमें आपकी सेनाका संहार करता हुआ आगे बढ़ रहा था॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हैडिम्बस्तु रणे राजन् दुर्मुखं शत्रुतापनम्।
आजघानोरसि क्रुद्धः शरेणानतपर्वणा ॥ ३८ ॥

मूलम्

हैडिम्बस्तु रणे राजन् दुर्मुखं शत्रुतापनम्।
आजघानोरसि क्रुद्धः शरेणानतपर्वणा ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस समय शत्रुओंको संताप देनेवाले दुर्मुखको क्रोधमें भरे हुए हिडिम्बाकुमारने झुकी हुई गाँठवाले बाणसे उसकी छातीमें चोट पहुँचायी॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमसेनसुतं चापि दुर्मुखः सुमुखैः शरैः।
षष्ट्या वीरो नदन् हृष्टो विव्याध रणमूर्धनि ॥ ३९ ॥

मूलम्

भीमसेनसुतं चापि दुर्मुखः सुमुखैः शरैः।
षष्ट्या वीरो नदन् हृष्टो विव्याध रणमूर्धनि ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब वीर दुर्मुखने हर्षपूर्वक गर्जना करते हुए अपने तीखी नोकवाले बाणोंद्वारा भीमसेनके पुत्र घटोत्कचको युद्धके मुहानेपर साठ बाणोंसे बींध डाला॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नं तथाऽऽयान्तं भीष्मस्य वधकाङ्क्षिणम्।
हार्दिक्यो वारयामास रथश्रेष्ठं महारथः ॥ ४० ॥

मूलम्

धृष्टद्युम्नं तथाऽऽयान्तं भीष्मस्य वधकाङ्क्षिणम्।
हार्दिक्यो वारयामास रथश्रेष्ठं महारथः ॥ ४० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार भीष्मके वधकी इच्छासे आते हुए रथियोंमें श्रेष्ठ धृष्टद्युम्नको महारथी कृतवर्माने रोक दिया॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हार्दिक्यः पार्षतं चापि विद्ध्वा पञ्चभिरायसैः।
पुनः पञ्चाशता तूर्णं तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ ४१ ॥

मूलम्

हार्दिक्यः पार्षतं चापि विद्ध्वा पञ्चभिरायसैः।
पुनः पञ्चाशता तूर्णं तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ ४१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कृतवर्माने द्रुपदकुमारको लोहेके बने हुए पाँच बाणोंसे बींधकर फिर तुरंत ही पचास बाणोंसे घायल किया और कहा—‘खड़ा रह, खड़ा रह’॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आजघान महाबाहुः पार्षतं तं महारथम्।
तं चैव पार्षतो राजन् हार्दिक्यं नवभिः शरैः ॥ ४२ ॥
विव्याध निशितैस्तीक्ष्णैः कङ्कपत्रैरजिह्मगैः ।

मूलम्

आजघान महाबाहुः पार्षतं तं महारथम्।
तं चैव पार्षतो राजन् हार्दिक्यं नवभिः शरैः ॥ ४२ ॥
विव्याध निशितैस्तीक्ष्णैः कङ्कपत्रैरजिह्मगैः ।

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार महाबाहु कृतवर्माने महारथी धृष्टद्युम्नको गहरी चोट पहुँचायी। राजन्! तब धृष्टद्युम्नने भी कंकपत्रविभूषित सीधे जानेवाले तीखे एवं पैने नौ बाणोंसे कृतवर्माको क्षत-विक्षत कर दिया॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तयोः समभवद् युद्धं भीष्महेतोर्महाहवे ॥ ४३ ॥
अन्योन्यातिशये युक्तं यथा वृत्रमहेन्द्रयोः।

मूलम्

तयोः समभवद् युद्धं भीष्महेतोर्महाहवे ॥ ४३ ॥
अन्योन्यातिशये युक्तं यथा वृत्रमहेन्द्रयोः।

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय भीष्मजीके निमित्त उस महान् संग्राममें वृत्रासुर और इन्द्रके समान उन दोनों वीरोंका घोर युद्ध होने लगा, जिसमें वे एक-दूसरेसे आगे बढ़ जानेके प्रयत्नमें लगे थे॥४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमसेनं तथाऽऽयान्तं भीष्मं प्रति महारथम् ॥ ४४ ॥
भूरिश्रवाभ्ययात् तूर्णं तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत्।

मूलम्

भीमसेनं तथाऽऽयान्तं भीष्मं प्रति महारथम् ॥ ४४ ॥
भूरिश्रवाभ्ययात् तूर्णं तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत्।

अनुवाद (हिन्दी)

इसी तरह महारथी भीष्मकी ओर आते हुए भीमसेनपर भूरिश्रवाने तुरंत आक्रमण किया और कहा—‘खड़ा रह, खड़ा रह’॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सौमदत्तिरथो भीममाजघान स्तनान्तरे ॥ ४५ ॥
नाराचेन सुतीक्ष्णेन रुक्मपुङ्खेन संयुगे।

मूलम्

सौमदत्तिरथो भीममाजघान स्तनान्तरे ॥ ४५ ॥
नाराचेन सुतीक्ष्णेन रुक्मपुङ्खेन संयुगे।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर सोमदत्तकुमारने युद्धस्थलमें सुवर्णमय पंखसे युक्त अत्यन्त तीखे नाराचद्वारा भीमसेनकी छातीमें प्रहार किया॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उरःस्थेन बभौ तेन भीमसेनः प्रतापवान् ॥ ४६ ॥
स्कन्दशक्त्या यथा क्रौञ्चः पुरा नृपतिसत्तम।

मूलम्

उरःस्थेन बभौ तेन भीमसेनः प्रतापवान् ॥ ४६ ॥
स्कन्दशक्त्या यथा क्रौञ्चः पुरा नृपतिसत्तम।

अनुवाद (हिन्दी)

नृपश्रेष्ठ! छातीमें लगे हुए उस बाणसे प्रतापी भीमसेन वैसे ही सुशोभित हुए, जैसे पूर्वकालमें कार्तिकेयकी शक्तिसे आविद्ध होनेपर क्रौंच पर्वतकी शोभा हुई थी॥४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ शरान् सूर्यसंकाशान् कर्मारपरिमार्जितान् ॥ ४७ ॥
अन्योन्यस्य रणे क्रुद्धौ चिक्षिपाते नरर्षभौ।

मूलम्

तौ शरान् सूर्यसंकाशान् कर्मारपरिमार्जितान् ॥ ४७ ॥
अन्योन्यस्य रणे क्रुद्धौ चिक्षिपाते नरर्षभौ।

अनुवाद (हिन्दी)

क्रोधमें भरे हुए वे दोनों नरश्रेष्ठ युद्धमें एक-दूसरेपर लोहारके द्वारा माँजकर साफ किये हुए सूर्यके समान तेजस्वी बाणोंका प्रहार कर रहे थे॥४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमो भीष्मवधाकाङ्क्षी सौमदत्तिं महारथम् ॥ ४८ ॥
तथा भीष्मजये गृध्नुः सौमदत्तिस्तु पाण्डवम्।
कृतप्रतिकृते यत्तौ योधयामासतू रणे ॥ ४९ ॥

मूलम्

भीमो भीष्मवधाकाङ्क्षी सौमदत्तिं महारथम् ॥ ४८ ॥
तथा भीष्मजये गृध्नुः सौमदत्तिस्तु पाण्डवम्।
कृतप्रतिकृते यत्तौ योधयामासतू रणे ॥ ४९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेन भीष्मके वधकी इच्छा रखकर महारथी भूरिश्रवापर चोट करते थे और भूरिश्रवा भीष्मकी विजय चाहता हुआ पाण्डुकुमार भीमसेनपर प्रहार करता था। वे दोनों युद्धमें एक-दूसरेके अस्त्रोंका प्रतीकार करते हुए लड़ रहे थे॥४८-४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युधिष्ठिरं तु कौन्तेयं महत्या सेनया वृतम्।
भीष्माभिमुखमायान्तं भारद्वाजो न्यवारयत् ॥ ५० ॥
(तत्र युद्धमभूद् घोरं तयोः पुरुषसिंहयोः।)

मूलम्

युधिष्ठिरं तु कौन्तेयं महत्या सेनया वृतम्।
भीष्माभिमुखमायान्तं भारद्वाजो न्यवारयत् ॥ ५० ॥
(तत्र युद्धमभूद् घोरं तयोः पुरुषसिंहयोः।)

अनुवाद (हिन्दी)

दूसरी ओर कुन्तीनन्दन युधिष्ठिरको विशाल सेनाके साथ भीष्मके सम्मुख आते देख द्रोणाचार्यने रोक दिया; वहाँ उन दोनों पुरुषसिंहोंमें घोर युद्ध हुआ॥५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रोणस्य रथनिर्घोषं पर्जन्यनिनदोपमम् ।
श्रुत्वा प्रभद्रका राजन् समकम्पन्त मारिष ॥ ५१ ॥

मूलम्

द्रोणस्य रथनिर्घोषं पर्जन्यनिनदोपमम् ।
श्रुत्वा प्रभद्रका राजन् समकम्पन्त मारिष ॥ ५१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! द्रोणाचार्यके रथकी घरघराहट मेघकी गर्जनाके समान जान पड़ती थी। आर्य! उसे सुनकर प्रभद्रक वीर काँप उठे॥५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सा सेना महती राजन् पाण्डुपुत्रस्य संयुगे।
द्रोणेन वारिता यत्ता न चचाल पदात् पदम् ॥ ५२ ॥

मूलम्

सा सेना महती राजन् पाण्डुपुत्रस्य संयुगे।
द्रोणेन वारिता यत्ता न चचाल पदात् पदम् ॥ ५२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! उस युद्धस्थलमें पाण्डुपुत्र युधिष्ठिरकी वह विशाल सेना द्रोणके द्वारा जब रोक दी गयी, तब प्रयत्न करनेपर भी वह एक पग भी आगे न बढ़ सकी॥५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चेकितानं रणे यत्तं भीष्मं प्रति जनेश्वर।
चित्रसेनस्तव सुतः क्रुद्धरूपमवारयत् ॥ ५३ ॥

मूलम्

चेकितानं रणे यत्तं भीष्मं प्रति जनेश्वर।
चित्रसेनस्तव सुतः क्रुद्धरूपमवारयत् ॥ ५३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जनेश्वर! दूसरी ओर भीष्मके प्रति प्रयत्नपूर्वक आक्रमण करनेवाले क्रोधमें भरे हुए चेकितानको रणभूमिमें आपके पुत्र चित्रसेनने रोक दिया॥५३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीष्महेतोः पराक्रान्तश्चित्रसेनः पराक्रमी ।
चेकितानं परं शक्त्या योधयामास भारत ॥ ५४ ॥
तथैव चेकितानोऽपि चित्रसेनमवारयत् ।
तद् युद्धमासीत् सुमहत् तयोस्तत्र समागमे ॥ ५५ ॥

मूलम्

भीष्महेतोः पराक्रान्तश्चित्रसेनः पराक्रमी ।
चेकितानं परं शक्त्या योधयामास भारत ॥ ५४ ॥
तथैव चेकितानोऽपि चित्रसेनमवारयत् ।
तद् युद्धमासीत् सुमहत् तयोस्तत्र समागमे ॥ ५५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पराक्रमी चित्रसेन भीष्मकी रक्षाके लिये पराक्रम दिखा रहा था। भारत! उसने पूरी शक्ति लगाकर चेकितानके साथ युद्ध किया। इसी प्रकार चेकितानने भी चित्रसेनकी गति रोक दी। उन दोनोंकी मुठभेड़में वहाँ महान् युद्ध होने लगा॥५४-५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अर्जुनो वार्यमाणस्तु बहुशस्तत्र भारत।
विमुखीकृत्य पुत्रं ते सेनां तव ममर्द ह ॥ ५६ ॥

मूलम्

अर्जुनो वार्यमाणस्तु बहुशस्तत्र भारत।
विमुखीकृत्य पुत्रं ते सेनां तव ममर्द ह ॥ ५६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! वहाँ बारंबार रोके जानेपर भी अर्जुनने आपके पुत्रको युद्धसे विमुख करके आपकी सेनाको रौंद डाला॥५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुःशासनोऽपि परया शक्त्या पार्थमवारयत्।
कथं भीष्मं न नो हन्यादिति निश्चित्य भारत ॥ ५७ ॥

मूलम्

दुःशासनोऽपि परया शक्त्या पार्थमवारयत्।
कथं भीष्मं न नो हन्यादिति निश्चित्य भारत ॥ ५७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! उस समय दुःशासन भी यह निश्चय करके कि ये किसी प्रकार हमारे भीष्मको मार न सकें, पूरी शक्ति लगाकर अर्जुनको रोकनेका प्रयत्न करता रहा॥५७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(पार्थोऽपि समरे राजन् दुःशासनमताडयत्।
ताडिते बहुधा पुत्रे पार्थबाणैरजिह्मगैः॥
बभूव व्यथिता सेना दृष्ट्वा पार्थपराक्रमम्।
पुनश्च ताडिता तेन पार्थेनामिततेजसा॥)

मूलम्

(पार्थोऽपि समरे राजन् दुःशासनमताडयत्।
ताडिते बहुधा पुत्रे पार्थबाणैरजिह्मगैः॥
बभूव व्यथिता सेना दृष्ट्वा पार्थपराक्रमम्।
पुनश्च ताडिता तेन पार्थेनामिततेजसा॥)

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! अर्जुनने भी समरमें दुःशासनको अपने बाणोंसे बहुत घायल किया। सीधे जानेवाले अर्जुनके बाणोंसे आपके पुत्रके बार-बार घायल होनेपर पार्थके उस पराक्रमको देखकर आपकी सारी सेना व्यथित हो उठी। अमित तेजस्वी अर्जुनने उसे बारंबार पीड़ित किया।

विश्वास-प्रस्तुतिः

सा वध्यमाना समरे पुत्रस्य तव वाहिनी।
लोड्यते रथिभिः श्रेष्ठैस्तत्र तत्रैव भारत ॥ ५८ ॥

मूलम्

सा वध्यमाना समरे पुत्रस्य तव वाहिनी।
लोड्यते रथिभिः श्रेष्ठैस्तत्र तत्रैव भारत ॥ ५८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! उस संग्राममें आपके पुत्रकी सारी सेनाको जहाँ-तहाँ श्रेष्ठ रथियोंने बाणोंसे विद्ध करके मथ डाला था॥५८॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि द्वन्द्वयुद्धे एकादशाधिकशततमोऽध्यायः ॥ १११ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें द्वन्द्वयुद्धविषयक एक सौ ग्यारहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१११॥

सूचना (हिन्दी)

[दाक्षिणात्य अधिक पाठके ३ श्लोक मिलाकर कुल ६१ श्लोक हैं।]