११० अर्जुनदुःशासनसमागमे

भागसूचना

दशाधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

अर्जुनके प्रोत्साहनसे शिखण्डीका भीष्मपर आक्रमण और दोनों सेनाओंके प्रमुख वीरोंका परस्पर युद्ध तथा दुःशासनका अर्जुनके साथ घोर युद्ध

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

अर्जुनस्तु रणे राजन् दृष्ट्‌वा भीष्मस्य विक्रमम्।
शिखण्डिनमथोवाच समभ्येहि पितामहम् ॥ १ ॥
न चापि भीस्त्वया कार्या भीष्मादद्य कथंचन।
अहमेनं शरैस्तीक्ष्णैः पातयिष्ये रथोत्तमात् ॥ २ ॥

मूलम्

अर्जुनस्तु रणे राजन् दृष्ट्‌वा भीष्मस्य विक्रमम्।
शिखण्डिनमथोवाच समभ्येहि पितामहम् ॥ १ ॥
न चापि भीस्त्वया कार्या भीष्मादद्य कथंचन।
अहमेनं शरैस्तीक्ष्णैः पातयिष्ये रथोत्तमात् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! रणभूमिमें भीष्मका पराक्रम देखकर अर्जुनने शिखण्डीसे कहा—‘वीर! तुम पितामहका सामना करनेके लिये आगे बढ़ो। आज भीष्मजीसे तुम्हें किसी प्रकार भय नहीं करना चाहिये। मैं स्वयं अपने पैने बाणोंद्वारा इनको उत्तम रथसे मार गिराऊँगा’॥१-२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तस्तु पार्थेन शिखण्डी भरतर्षभ।
अभ्यद्रवत गाङ्गेयं श्रुत्वा पार्थस्य भाषितम् ॥ ३ ॥

मूलम्

एवमुक्तस्तु पार्थेन शिखण्डी भरतर्षभ।
अभ्यद्रवत गाङ्गेयं श्रुत्वा पार्थस्य भाषितम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! जब अर्जुनने शिखण्डीसे ऐसा कहा, तब उसने पार्थके उस कथनको सुनकर गंगानन्दन भीष्मपर धावा किया॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नस्तथा राजन् सौभद्रश्च महारथः।
हृष्टावाद्रवतां भीष्मं श्रुत्वा पार्थस्य भाषितम् ॥ ४ ॥

मूलम्

धृष्टद्युम्नस्तथा राजन् सौभद्रश्च महारथः।
हृष्टावाद्रवतां भीष्मं श्रुत्वा पार्थस्य भाषितम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! पार्थका वह भाषण सुनकर धृष्टद्युम्न तथा सुभद्राकुमार महारथी अभिमन्यु—ये दोनों वीर हर्ष और उत्साहमें भरकर भीष्मकी ओर दौड़े॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विराटद्रुपदौ वृद्धौ कुन्तिभोजश्च दंशितः।
अभ्यद्रवन्त गाङ्गेयं पुत्रस्य तव पश्यतः ॥ ५ ॥

मूलम्

विराटद्रुपदौ वृद्धौ कुन्तिभोजश्च दंशितः।
अभ्यद्रवन्त गाङ्गेयं पुत्रस्य तव पश्यतः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दोनों वृद्ध नरेश विराट और द्रुपद तथा कवचधारी कुन्तिभोज भी आपके पुत्रके देखते-देखते गंगानन्दन भीष्मपर टूट पड़े॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नकुलः सहदेवश्च धर्मराजश्च वीर्यवान्।
तथेतराणि सैन्यानि सर्वाण्येव विशाम्पते ॥ ६ ॥
समाद्रवन्त गाङ्गेयं श्रुत्वा पार्थस्य भाषितम्।

मूलम्

नकुलः सहदेवश्च धर्मराजश्च वीर्यवान्।
तथेतराणि सैन्यानि सर्वाण्येव विशाम्पते ॥ ६ ॥
समाद्रवन्त गाङ्गेयं श्रुत्वा पार्थस्य भाषितम्।

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! नकुल, सहदेव, पराक्रमी धर्मराज युधिष्ठिर तथा दूसरे समस्त सैनिक अर्जुनका उपर्युक्त वचन सुनकर भीष्मजीकी ओर बढ़ने लगे॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रत्युद्ययुस्तावकाश्च समेतांस्तान् महारथान् ॥ ७ ॥
यथाशक्ति यथोत्साहं तन्मे निगदतः शृणु।

मूलम्

प्रत्युद्ययुस्तावकाश्च समेतांस्तान् महारथान् ॥ ७ ॥
यथाशक्ति यथोत्साहं तन्मे निगदतः शृणु।

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार एकत्र हुए पाण्डव महारथियोंपर आपके पुत्रोंने भी जिस प्रकार अपनी शक्ति और उत्साहके अनुसार आक्रमण किया, वह सब बताता हूँ, सुनिये॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चित्रसेनो महाराज चेकितानं समभ्ययात् ॥ ८ ॥
भीष्मप्रेप्सुं रणे यान्तं वृषं व्याघ्रशिशुर्यथा।

मूलम्

चित्रसेनो महाराज चेकितानं समभ्ययात् ॥ ८ ॥
भीष्मप्रेप्सुं रणे यान्तं वृषं व्याघ्रशिशुर्यथा।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! चित्रसेनने भीष्मके पास पहुँचनेकी इच्छासे रणमें जाते हुए चेकितानका सामना किया, मानो बाघका बच्चा बैलका सामना कर रहा हो॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नं महाराज भीष्मान्तिकमुपागतम् ॥ ९ ॥
त्वरमाणं रणे यत्तं कृतवर्मा न्यवारयत्।

मूलम्

धृष्टद्युम्नं महाराज भीष्मान्तिकमुपागतम् ॥ ९ ॥
त्वरमाणं रणे यत्तं कृतवर्मा न्यवारयत्।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! कृतवर्माने भीष्मजीके निकट पहुँचकर युद्धके लिये उतावलीपूर्वक प्रयत्न करनेवाले धृष्टद्युम्नको रोका॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमसेनं सुसंक्रुद्धं गाङ्गेयस्य वधैषिणम् ॥ १० ॥
त्वरमाणो महाराज सौमदत्तिर्न्यवारयत् ।

मूलम्

भीमसेनं सुसंक्रुद्धं गाङ्गेयस्य वधैषिणम् ॥ १० ॥
त्वरमाणो महाराज सौमदत्तिर्न्यवारयत् ।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! भीमसेन भी अत्यन्त क्रोधमें भरकर गंगानन्दन भीष्मका वध करना चाहते थे; परंतु सोमदत्तपुत्र भूरिश्रवाने तुरंत आकर उन्हें आगे बढ़नेसे रोक दिया॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव नकुलं शूरं किरन्तं सायकान् बहून् ॥ ११ ॥
विकर्णो वारयामास इच्छन् भीष्मस्य जीवितम्।

मूलम्

तथैव नकुलं शूरं किरन्तं सायकान् बहून् ॥ ११ ॥
विकर्णो वारयामास इच्छन् भीष्मस्य जीवितम्।

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार शूरवीर नकुल बहुत-से सायकोंकी वर्षा कर रहे थे, परंतु भीष्मके जीवनकी रक्षा चाहनेवाले विकर्णने उन्हें रोक दिया॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहदेवं तथा राजन् यान्तं भीष्मरथं प्रति ॥ १२ ॥
वारयामास संक्रुद्धः कृपः शारद्वतो युधि।

मूलम्

सहदेवं तथा राजन् यान्तं भीष्मरथं प्रति ॥ १२ ॥
वारयामास संक्रुद्धः कृपः शारद्वतो युधि।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! युद्धस्थलमें भीष्मके रथकी ओर जाते हुए सहदेवको कुपित हुए शरद्वान्‌के पुत्र कृपाचार्यने रोक दिया॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

राक्षसं क्रूरकर्माणं भैमसेनिं महाबलम् ॥ १३ ॥
भीष्मस्य निधनं प्रेप्सुं दुर्मुखोऽभ्यद्रवद् बली।

मूलम्

राक्षसं क्रूरकर्माणं भैमसेनिं महाबलम् ॥ १३ ॥
भीष्मस्य निधनं प्रेप्सुं दुर्मुखोऽभ्यद्रवद् बली।

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मकी मृत्यु चाहनेवाले क्रूरकर्मा राक्षस महाबली भीमसेनकुमार घटोत्कचपर बलवान् दुर्मुखने आक्रमण किया॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सात्यकिं समरे यान्तं तव पुत्रो न्यवारयत् ॥ १४ ॥
(भीष्मस्य वधमिच्छन्तं पाण्डवप्रीतिकाम्यया ।)

मूलम्

सात्यकिं समरे यान्तं तव पुत्रो न्यवारयत् ॥ १४ ॥
(भीष्मस्य वधमिच्छन्तं पाण्डवप्रीतिकाम्यया ।)

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डवोंकी प्रसन्नताके लिये भीष्मका वध चाहनेवाले सात्यकिको युद्धके लिये जाते देख आपके पुत्र दुर्योधनने रोका॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभिमन्युं महाराज यान्तं भीष्मरथं प्रति।
सुदक्षिणो महाराज काम्बोजः प्रत्यवारयत् ॥ १५ ॥

मूलम्

अभिमन्युं महाराज यान्तं भीष्मरथं प्रति।
सुदक्षिणो महाराज काम्बोजः प्रत्यवारयत् ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! भीष्मके रथकी ओर अग्रसर होनेवाले अभिमन्युको काम्बोजराज सुदक्षिणने रोका॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विराटद्रुपदौ वृद्धौ समेतावरिमर्दनौ ।
अश्वत्थामा ततः क्रुद्धौ वारयामास भारत ॥ १६ ॥

मूलम्

विराटद्रुपदौ वृद्धौ समेतावरिमर्दनौ ।
अश्वत्थामा ततः क्रुद्धौ वारयामास भारत ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! एक साथ आये हुए शत्रुमर्दन बूढ़े नरेश विराट और द्रुपदको क्रोधमें भरे हुए अश्वत्थामाने रोक दिया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा पाण्डुसुतं ज्येष्ठं भीष्मस्य वधकाङ्‌क्षिणम्।
भारद्वाजो रणे यत्तो धर्मपुत्रमवारयत् ॥ १७ ॥

मूलम्

तथा पाण्डुसुतं ज्येष्ठं भीष्मस्य वधकाङ्‌क्षिणम्।
भारद्वाजो रणे यत्तो धर्मपुत्रमवारयत् ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मके वधकी अभिलाषा रखनेवाले ज्येष्ठ पाण्डव धर्मपुत्र युधिष्ठिरको युद्धमें द्रोणाचार्यने यत्नपूर्वक रोका॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अर्जुनं रभसं युद्धे पुरस्कृत्य शिखण्डिनम्।
भीष्मप्रेप्सुं महाराज भासयन्तं दिशो दश ॥ १८ ॥
दुःशासनो महेष्वासो वारयामास संयुगे।

मूलम्

अर्जुनं रभसं युद्धे पुरस्कृत्य शिखण्डिनम्।
भीष्मप्रेप्सुं महाराज भासयन्तं दिशो दश ॥ १८ ॥
दुःशासनो महेष्वासो वारयामास संयुगे।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! दसों दिशाओंको प्रकाशित करते हुए वेगशाली वीर अर्जुन युद्धमें शिखण्डीको आगे करके भीष्मको मारना चाहते थे। उस समय महाधनुर्धर दुःशासनने युद्धके मैदानमें आकर उन्हें रोका॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अन्ये च तावका योधाः पाण्डवानां महारथान् ॥ १९ ॥
भीष्मस्याभिमुखान् यातान् वारयामासुराहवे ।

मूलम्

अन्ये च तावका योधाः पाण्डवानां महारथान् ॥ १९ ॥
भीष्मस्याभिमुखान् यातान् वारयामासुराहवे ।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इसी प्रकार आपके अन्य योद्धाओंने भीष्मके सम्मुख गये हुए पाण्डव महारथियोंको युद्धमें आगे बढ़नेसे रोक दिया॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नस्तु सैन्यानि प्राक्रोशत पुनः पुनः ॥ २० ॥
अभिद्रवत संरब्धा भीष्ममेकं महाबलम्।
एषोऽर्जुनो रणे भीष्मं प्रयाति कुरुनन्दनः ॥ २१ ॥
अभिद्रवत मा भैष्ट भीष्मो हि प्राप्स्यते न वः।
अर्जुनं समरे योद्‌धुं नोत्सहेतापि वासवः ॥ २२ ॥
किमु भीष्मो रणे वीरा गतसत्त्वोऽल्पजीवितः।

मूलम्

धृष्टद्युम्नस्तु सैन्यानि प्राक्रोशत पुनः पुनः ॥ २० ॥
अभिद्रवत संरब्धा भीष्ममेकं महाबलम्।
एषोऽर्जुनो रणे भीष्मं प्रयाति कुरुनन्दनः ॥ २१ ॥
अभिद्रवत मा भैष्ट भीष्मो हि प्राप्स्यते न वः।
अर्जुनं समरे योद्‌धुं नोत्सहेतापि वासवः ॥ २२ ॥
किमु भीष्मो रणे वीरा गतसत्त्वोऽल्पजीवितः।

अनुवाद (हिन्दी)

धृष्टद्युम्न अपने सैनिकोंसे बारंबार पुकार-पुकारकर कहने लगे—‘वीरो! तुम सब लोग उत्साहित होकर एकमात्र महाबली भीष्मपर आक्रमण करो। ये कुरुकुलको आनन्दित करनेवाले अर्जुन रणक्षेत्रमें भीष्मपर चढ़ाई करते हैं। तुम भी उनपर टूट पड़ो। डरो मत। भीष्म तुमलोगोंको नहीं पा सकेंगे। इन्द्र भी समरांगणमें अर्जुनके साथ युद्ध करनेमें समर्थ नहीं हो सकते; फिर ये धैर्य और शक्तिसे शून्य भीष्म रणक्षेत्रमें उनका सामना कैसे कर सकते हैं? अब इनका जीवन थोड़ा ही शेष रहा है’॥२०—२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इति सेनापतेः श्रुत्वा पाण्डवानां महारथाः ॥ २३ ॥
अभ्यद्रवन्त संहृष्टा गाङ्गेयस्य रथं प्रति।

मूलम्

इति सेनापतेः श्रुत्वा पाण्डवानां महारथाः ॥ २३ ॥
अभ्यद्रवन्त संहृष्टा गाङ्गेयस्य रथं प्रति।

अनुवाद (हिन्दी)

सेनापतिका यह वचन सुनकर पाण्डव महारथी अत्यन्त हर्षमें भरकर गंगानन्दन भीष्मके रथपर टूट पड़े॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आगच्छमानान् समरे वार्योघान् प्रलयानिव ॥ २४ ॥
अवारयन्त संहृष्टास्तावकाः पुरुषर्षभाः ।

मूलम्

आगच्छमानान् समरे वार्योघान् प्रलयानिव ॥ २४ ॥
अवारयन्त संहृष्टास्तावकाः पुरुषर्षभाः ।

अनुवाद (हिन्दी)

युद्धमें प्रलयकालीन जलप्रवाहके समान आते हुए उन वीरोंको आपकी सेनाके श्रेष्ठ पुरुषोंने हर्ष और उत्साहमें भरकर रोका॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुःशासनो महाराज भयं त्यक्त्वा महारथः ॥ २५ ॥
भीष्मस्य जीविताकाङ्‌क्षी धनंजयमुपाद्रवत् ।

मूलम्

दुःशासनो महाराज भयं त्यक्त्वा महारथः ॥ २५ ॥
भीष्मस्य जीविताकाङ्‌क्षी धनंजयमुपाद्रवत् ।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! महारथी दुःशासनने भय छोड़कर भीष्मकी जीवन-रक्षाके लिये धनंजयपर धावा किया॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव पाण्डवाः शूरा गाङ्गेयस्य रथं प्रति ॥ २६ ॥
अभ्यद्रवन्त संग्रामे तव पुत्रान् महारथाः।

मूलम्

तथैव पाण्डवाः शूरा गाङ्गेयस्य रथं प्रति ॥ २६ ॥
अभ्यद्रवन्त संग्रामे तव पुत्रान् महारथाः।

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार शूरवीर महारथी पाण्डवोंने युद्धमें गंगानन्दन भीष्मके रथकी ओर खड़े हुए आपके पुत्रोंपर आक्रमण किया॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राद्भुतमपश्याम चित्ररूपं विशाम्पते ॥ २७ ॥
दुःशासनरथं प्राप्य यत् पार्थो नात्यवर्तत।

मूलम्

तत्राद्भुतमपश्याम चित्ररूपं विशाम्पते ॥ २७ ॥
दुःशासनरथं प्राप्य यत् पार्थो नात्यवर्तत।

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! वहाँ हमने सबसे अद्भुत और विचित्र बात यह देखी कि अर्जुन दुःशासनके रथके पास पहुँचकर वहाँसे आगे न बढ़ सके॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा वारयते वेला क्षुब्धतोयं महार्णवम् ॥ २८ ॥
तथैव पाण्डवं क्रुद्धं तव पुत्रो न्यवारयत्।

मूलम्

यथा वारयते वेला क्षुब्धतोयं महार्णवम् ॥ २८ ॥
तथैव पाण्डवं क्रुद्धं तव पुत्रो न्यवारयत्।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे तटकी भूमि विक्षुब्ध जलराशिवाले महासागरको रोके रहती है, उसी प्रकार आपके पुत्रने क्रोधमें भरे हुए अर्जुनको रोक दिया था॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उभौ तौ रथिनां श्रेष्ठावुभौ भारत दुर्जयौ ॥ २९ ॥
उभौ चन्द्रार्कसदृशौ कान्त्या दीप्त्या च भारत।
तथा तौ जातसंरम्भावन्योन्यवधकाङ्‌क्षिणौ ॥ ३० ॥
(दुःशासनार्जुनौ वीरौ वृत्रेन्द्रसमतेजसौ ।)
समीयतुर्महासंख्ये मयशक्रौ यथा पुरा।

मूलम्

उभौ तौ रथिनां श्रेष्ठावुभौ भारत दुर्जयौ ॥ २९ ॥
उभौ चन्द्रार्कसदृशौ कान्त्या दीप्त्या च भारत।
तथा तौ जातसंरम्भावन्योन्यवधकाङ्‌क्षिणौ ॥ ३० ॥
(दुःशासनार्जुनौ वीरौ वृत्रेन्द्रसमतेजसौ ।)
समीयतुर्महासंख्ये मयशक्रौ यथा पुरा।

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! वे दोनों रथियोंमें श्रेष्ठ और दुर्जय वीर थे। दोनों ही कान्ति और दीप्तिमें चन्द्रमा और सूर्यके समान जान पड़ते थे और भारत! दुःशासन तथा अर्जुन दोनों वीर वृत्रासुर एवं इन्द्रके समान तेजस्वी थे। वे दोनों क्रोधमें भरकर एक-दूसरेके वधकी अभिलाषा रखते थे। उस महायुद्धमें वे उसी प्रकार एक-दूसरेसे भिड़े हुए थे, जैसे पूर्वकालमें मयासुर और इन्द्र आपसमें लड़ते थे॥२९-३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुःशासनो महाराज पाण्डवं विशिखैस्त्रिभिः ॥ ३१ ॥
वासुदेवं च विंशत्या ताडयामास संयुगे।

मूलम्

दुःशासनो महाराज पाण्डवं विशिखैस्त्रिभिः ॥ ३१ ॥
वासुदेवं च विंशत्या ताडयामास संयुगे।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! दुःशासनने तीन बाणोंद्वारा पाण्डुनन्दन अर्जुनको और बीस बाणोंसे वसुदेवनन्दन श्रीकृष्णको युद्धमें घायल किया॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽर्जुनो जातमन्युर्वार्ष्णेयं वीक्ष्य पीडितम् ॥ ३२ ॥
दुःशासनं शतेनाजौ नाराचानां समार्पयत्।

मूलम्

ततोऽर्जुनो जातमन्युर्वार्ष्णेयं वीक्ष्य पीडितम् ॥ ३२ ॥
दुःशासनं शतेनाजौ नाराचानां समार्पयत्।

अनुवाद (हिन्दी)

भगवान् श्रीकृष्णको बाणोंसे पीड़ित हुआ देख अर्जुनका क्रोध उभड़ आया और उन्होंने दुःशासनको युद्धमें सौ नाराचोंसे घायल कर दिया॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते तस्य कवचं भित्त्वा पपुः शोणितमाहवे ॥ ३३ ॥
(यथैव पन्नगा राजंस्तटाकं तृषितास्तथा।)

मूलम्

ते तस्य कवचं भित्त्वा पपुः शोणितमाहवे ॥ ३३ ॥
(यथैव पन्नगा राजंस्तटाकं तृषितास्तथा।)

अनुवाद (हिन्दी)

वे नाराच रणक्षेत्रमें दुःशासनका कवच विदीर्ण करके उसका रक्त पीने लगे, मानो प्यासे सर्प तालाबमें घुस गये हों॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुःशासनस्त्रिभिः क्रुद्धः पार्थं विव्याध पत्रिभिः।
ललाटे भरतश्रेष्ठ शरैः संनतपर्वभिः ॥ ३४ ॥

मूलम्

दुःशासनस्त्रिभिः क्रुद्धः पार्थं विव्याध पत्रिभिः।
ललाटे भरतश्रेष्ठ शरैः संनतपर्वभिः ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! तब दुःशासनने कुपित होकर अर्जुनके ललाटमें झुकी हुई गाँठवाले तीन पंखयुक्त बाण मारे॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ललाटस्थैस्तु तैर्बाणैः शुशुभे पाण्डवो रणे।
यथा मेरुर्महाराज शृङ्गैरत्यर्थमुच्छ्रितैः ॥ ३५ ॥

मूलम्

ललाटस्थैस्तु तैर्बाणैः शुशुभे पाण्डवो रणे।
यथा मेरुर्महाराज शृङ्गैरत्यर्थमुच्छ्रितैः ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

ललाटमें लगे हुए उन बाणोंद्वारा पाण्डुनन्दन अर्जुन युद्धमें उसी प्रकार शोभा पाने लगे, जैसे मेरुपर्वत अपने तीन अत्यन्त ऊँचे शिखरोंसे सुशोभित होता है॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽतिविद्धो महेष्वासः पुत्रेण तव धन्विना।
व्यराजत रणे पार्थः किंशुकः पुष्पवानिव ॥ ३६ ॥

मूलम्

सोऽतिविद्धो महेष्वासः पुत्रेण तव धन्विना।
व्यराजत रणे पार्थः किंशुकः पुष्पवानिव ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपके धनुर्धर पुत्रद्वारा युद्धमें अधिक घायल किये जानेपर महाधनुर्धर अर्जुन खिले हुए पलाशवृक्षके समान शोभा पाने लगे॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुःशासनं ततः क्रुद्धः पीडयामास पाण्डवः।
पर्वणीय सुसंक्रुद्धो राहुः पूर्णं निशाकरम् ॥ ३७ ॥

मूलम्

दुःशासनं ततः क्रुद्धः पीडयामास पाण्डवः।
पर्वणीय सुसंक्रुद्धो राहुः पूर्णं निशाकरम् ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर कुपित हुए पाण्डुपुत्र अर्जुन दुःशासनको उसी प्रकार पीड़ा देने लगे, जैसे पूर्णिमाके दिन अत्यन्त क्रोधमें भरा हुआ राहु पूर्ण चन्द्रमाको पीड़ा देता है॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पीड्यमानो बलवता पुत्रस्तव विशाम्पते।
विव्याध समरे पार्थं कङ्कपत्रैः शिलाशितैः ॥ ३८ ॥

मूलम्

पीड्यमानो बलवता पुत्रस्तव विशाम्पते।
विव्याध समरे पार्थं कङ्कपत्रैः शिलाशितैः ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! बलवान् अर्जुनके द्वारा पीड़ित होनेपर आपके पुत्रने शानपर चढ़ाकर तेज किये हुए कंक-पत्रयुक्त बाणोंद्वारा समरभूमिमें उन कुन्तीकुमारको बींध डाला॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य पार्थो धनुश्छित्त्वा रथं चास्य त्रिभिः शरैः।
आजघान ततः पश्चात् पुत्रं ते निशितैः शरैः ॥ ३९ ॥

मूलम्

तस्य पार्थो धनुश्छित्त्वा रथं चास्य त्रिभिः शरैः।
आजघान ततः पश्चात् पुत्रं ते निशितैः शरैः ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब अर्जुनने तीन बाणोंसे दुःशासनके रथ और धनुषको छिन्न-भिन्न करके आपके उस पुत्रको पैने बाणोंद्वारा अच्छी तरह घायल किया॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽन्यत्‌ कार्मुकमादाय भीष्मस्य प्रमुखे स्थितः।
अर्जुनं पञ्चविंशत्या बाह्वोरुरसि चार्पयत् ॥ ४० ॥

मूलम्

सोऽन्यत्‌ कार्मुकमादाय भीष्मस्य प्रमुखे स्थितः।
अर्जुनं पञ्चविंशत्या बाह्वोरुरसि चार्पयत् ॥ ४० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब दुःशासनने दूसरा धनुष ले भीष्मके सामने खड़े होकर अर्जुनकी दोनों भुजाओं और छातीमें पचीस बाण मारे॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य क्रुद्धो महाराज पाण्डवः शत्रुतापनः।
अप्रैषीद्‌ विशिखान् घोरान् यमदण्डोपमान् बहून् ॥ ४१ ॥

मूलम्

तस्य क्रुद्धो महाराज पाण्डवः शत्रुतापनः।
अप्रैषीद्‌ विशिखान् घोरान् यमदण्डोपमान् बहून् ॥ ४१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! तब शत्रुओंको संताप देनेवाले पाण्डुनन्दन अर्जुनने कुपित हो दुःशासनपर यमदण्डके समान भयंकर बहुत-से बाण चलाये॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अप्राप्तानेव तान् बाणांश्चिच्छेद तनयस्तव।
यतमानस्य पार्थस्य तदद्भुतमिवाभवत् ॥ ४२ ॥

मूलम्

अप्राप्तानेव तान् बाणांश्चिच्छेद तनयस्तव।
यतमानस्य पार्थस्य तदद्भुतमिवाभवत् ॥ ४२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु आपके पुत्रने अर्जुनके प्रयत्नशील होते हुए भी उन बाणोंको अपने पास आनेके पहले ही काट डाला। वह एक अद्भुत-सी बात थी॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पार्थं च निशितैर्बाणैरविध्यत् तनयस्तव।
ततः क्रुद्धो रणे पार्थः शरान् संधाय कार्मुके ॥ ४३ ॥
प्रेषयामास समरे स्वर्णपुङ्खाञ्छिलाशितान् ।

मूलम्

पार्थं च निशितैर्बाणैरविध्यत् तनयस्तव।
ततः क्रुद्धो रणे पार्थः शरान् संधाय कार्मुके ॥ ४३ ॥
प्रेषयामास समरे स्वर्णपुङ्खाञ्छिलाशितान् ।

अनुवाद (हिन्दी)

बाणोंको काटनेके पश्चात् आपके पुत्रने कुन्तीकुमार अर्जुनको तीखे बाणोंद्वारा बींध डाला, तब रणक्षेत्रमें अर्जुनने कुपित होकर अपने धनुषपर स्वर्णमय पंखसे युक्त एवं शिलापर रगड़कर तेज किये हुए बाणोंका संधान किया और उन्हें दुःशासनपर चलाया॥४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न्यमज्जंस्ते महाराज तस्य काये महात्मनः ॥ ४४ ॥
यथा हंसा महाराज तडागं प्राप्य भारत।

मूलम्

न्यमज्जंस्ते महाराज तस्य काये महात्मनः ॥ ४४ ॥
यथा हंसा महाराज तडागं प्राप्य भारत।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! भरतनन्दन! जैसे हंस तालाबमें पहुँचकर उसके भीतर गोते लगाते हैं, उसी प्रकार वे बाण महामना दुःशासनके शरीरमें धँस गये॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पीडितश्चैव पुत्रस्ते पाण्डवेन महात्मना ॥ ४५ ॥
हित्वा पार्थं रणे तूर्णं भीष्मस्य रथमाव्रजत्।
अगाधे मज्जतस्तस्य द्वीपो भीष्मोऽभवत् तदा ॥ ४६ ॥

मूलम्

पीडितश्चैव पुत्रस्ते पाण्डवेन महात्मना ॥ ४५ ॥
हित्वा पार्थं रणे तूर्णं भीष्मस्य रथमाव्रजत्।
अगाधे मज्जतस्तस्य द्वीपो भीष्मोऽभवत् तदा ॥ ४६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार महामना पाण्डुनन्दन अर्जुनके द्वारा पीड़ित होकर आपका पुत्र दुःशासन युद्धमें अर्जुनको छोड़कर तुरंत ही भीष्मके रथपर जा बैठा। उस समय अगाध समुद्रमें डूबते हुए दुःशासनके लिये भीष्मजी द्वीप हो गये॥४५-४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रतिलभ्य ततः संज्ञां पुत्रस्तव विशाम्पते।
अवारयत् ततः शूरो भूय एव पराक्रमी ॥ ४७ ॥
शरैः सुनिशितैः पार्थं यथा वृत्रं पुरंदरः।
निर्बिभेद महाकायो विव्यथे नैव चार्जुनः ॥ ४८ ॥

मूलम्

प्रतिलभ्य ततः संज्ञां पुत्रस्तव विशाम्पते।
अवारयत् ततः शूरो भूय एव पराक्रमी ॥ ४७ ॥
शरैः सुनिशितैः पार्थं यथा वृत्रं पुरंदरः।
निर्बिभेद महाकायो विव्यथे नैव चार्जुनः ॥ ४८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! तदनन्तर होश-हवास ठीक होनेपर आपके पराक्रमी एवं शूरवीर पुत्र दुःशासनने पुनः अत्यन्त तीखे बाणोंद्वारा कुन्तीकुमार अर्जुनको रोका, मानो इन्द्रने वृत्रासुरकी गतिको अवरुद्ध कर दिया हो। महाकाय दुःशासनने अर्जुनको अपने बाणोंसे क्षत-विक्षत कर दिया; परंतु वे तनिक भी व्यथित नहीं हुए॥४७-४८॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि अर्जुनदुःशासनसमागमे दशाधिकशततमोऽध्यायः ॥ ११० ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें अर्जुन और दुःशासनका युद्धविषयक एक सौ दसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥११०॥

सूचना (हिन्दी)

[दाक्षिणात्य अधिक पाठके १ श्लोक मिलाकर कुल ४९ श्लोक हैं।]