१०९ भीष्मदुर्योधनसंवादे

भागसूचना

नवाधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

भीष्म और दुर्योधनका संवाद तथा भीष्मके द्वारा लाखों सैनिकोंका संहार

मूलम् (वचनम्)

धृतराष्ट्र उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

कथं शिखण्डी गाङ्गेयमभ्यधावत् पितामहम्।
पाञ्चाल्यः समरे क्रुद्धो धर्मात्मानं यतव्रतम् ॥ १ ॥

मूलम्

कथं शिखण्डी गाङ्गेयमभ्यधावत् पितामहम्।
पाञ्चाल्यः समरे क्रुद्धो धर्मात्मानं यतव्रतम् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतराष्ट्रने पूछा— संजय! पांचालराजकुमार शिखण्डीने समरभूमिमें कुपित होकर नियमपूर्वक व्रतका पालन करनेवाले धर्मात्मा पितामह गंगानन्दन भीष्मपर किस प्रकार धावा किया?॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

केऽरक्षन् पाण्डवानीके शिखण्डिनमुदायुधाः ।
त्वरमाणास्त्वराकाले जिगीषन्तो महारथाः ॥ २ ॥

मूलम्

केऽरक्षन् पाण्डवानीके शिखण्डिनमुदायुधाः ।
त्वरमाणास्त्वराकाले जिगीषन्तो महारथाः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डवोंकी सेनाके किन-किन वीर महारथियोंने अस्त्र-शस्त्र लेकर विजयकी अभिलाषासे उस शीघ्रताके समय अपनी शीघ्रकारिताका परिचय देते हुए शिखण्डीका संरक्षण किया?॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कथं शान्तनवो भीष्मः स तस्मिन् दशमेऽहनि।
अयुध्यत महावीर्यः पाण्डवैः सहसृंजयैः ॥ ३ ॥

मूलम्

कथं शान्तनवो भीष्मः स तस्मिन् दशमेऽहनि।
अयुध्यत महावीर्यः पाण्डवैः सहसृंजयैः ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महापराक्रमी शान्तनुनन्दन भीष्मने दसवें दिन पाण्डवों तथा सृंजयोंके साथ किस प्रकार युद्ध किया?॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न मृष्यामि रणे भीष्मं प्रत्युद्यातं शिखण्डिना।
कच्चिन्न रथभङ्गोऽस्य धनुर्वाशीर्यतास्यतः ॥ ४ ॥

मूलम्

न मृष्यामि रणे भीष्मं प्रत्युद्यातं शिखण्डिना।
कच्चिन्न रथभङ्गोऽस्य धनुर्वाशीर्यतास्यतः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रणक्षेत्रमें शिखण्डीने भीष्मपर आक्रमण किया, यह मुझसे सहन नहीं हो रहा है। कहीं उनका रथ तो नहीं टूट गया था अथवा बाणोंका प्रहार करते-करते उनके धनुषके टुकड़े-टुकड़े तो नहीं हो गये थे?॥४॥

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

नाशीर्यत धनुश्चास्य रथभङ्गो न चाप्यभूत्।
युध्यमानस्य संग्रामे भीष्मस्य भरतर्षभ ॥ ५ ॥
निघ्नतः समरे शत्रूञ्शरैः संनतपर्वभिः।

मूलम्

नाशीर्यत धनुश्चास्य रथभङ्गो न चाप्यभूत्।
युध्यमानस्य संग्रामे भीष्मस्य भरतर्षभ ॥ ५ ॥
निघ्नतः समरे शत्रूञ्शरैः संनतपर्वभिः।

अनुवाद (हिन्दी)

संजयने कहा— भरतश्रेष्ठ! संग्राममें युद्ध करते समय भीष्मके न तो धनुषके ही टुकड़े-टुकड़े हुए थे और न उनका रथ ही टूटा था। वे समरभूमिमें झुकी हुई गाँठवाले बाणोंद्वारा शत्रुओंका संहार करते जा रहे थे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनेकशतसाहस्रास्तावकानां महारथाः ॥ ६ ॥
तथा दन्तिगणा राजन् हयाश्चैव सुसज्जिताः।
अभ्यवर्तन्त युद्धाय पुरस्कृत्य पितामहम् ॥ ७ ॥

मूलम्

अनेकशतसाहस्रास्तावकानां महारथाः ॥ ६ ॥
तथा दन्तिगणा राजन् हयाश्चैव सुसज्जिताः।
अभ्यवर्तन्त युद्धाय पुरस्कृत्य पितामहम् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! आपके कई लाख महारथी, हाथी और घोड़े सुसज्जित हो पितामह भीष्मको आगे करके युद्धके लिये बढ़ रहे थे॥६-७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथाप्रतिज्ञं कौरव्य स चापि समितिञ्जयः।
पार्थानामकरोद् भीष्मः सततं समितिक्षयम् ॥ ८ ॥

मूलम्

यथाप्रतिज्ञं कौरव्य स चापि समितिञ्जयः।
पार्थानामकरोद् भीष्मः सततं समितिक्षयम् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुरुनन्दन! युद्धविजयी भीष्म अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार रणक्षेत्रमें कुन्तीकुमारोंके सैनिकोंका निरन्तर संहार कर रहे थे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युध्यमानं महेष्वासं विनिघ्नन्तं पराञ्शरैः।
पञ्चालाः पाण्डवैः सार्धं सर्वे ते नाभ्यवारयन् ॥ ९ ॥

मूलम्

युध्यमानं महेष्वासं विनिघ्नन्तं पराञ्शरैः।
पञ्चालाः पाण्डवैः सार्धं सर्वे ते नाभ्यवारयन् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बाणोंद्वारा शत्रुओंको मारते हुए युद्धपरायण महा-धनुर्धर भीष्मको पाण्डवोंसहित सारे पांचाल योद्धा भी आगे बढ़नेसे रोक न सके॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दशमेऽहनि सम्प्राप्ते ततस्तां रिपुवाहिनीम्।
कीर्यमाणां शितैर्बाणैः शतशोऽथ सहस्रशः ॥ १० ॥

मूलम्

दशमेऽहनि सम्प्राप्ते ततस्तां रिपुवाहिनीम्।
कीर्यमाणां शितैर्बाणैः शतशोऽथ सहस्रशः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दसवें दिन शत्रुकी सेनापर भीष्मके द्वारा सैकड़ों और हजारों पैने बाणोंकी वर्षा की जाने लगी परंतु पाण्डव इसे रोक न सके॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न हि भीष्मं महेष्वासं पाण्डवाः पाण्डुपूर्वज।
अशक्नुवन् रणे जेतुं पाशहस्तमिवान्तकम् ॥ ११ ॥

मूलम्

न हि भीष्मं महेष्वासं पाण्डवाः पाण्डुपूर्वज।
अशक्नुवन् रणे जेतुं पाशहस्तमिवान्तकम् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डुके ज्येष्ठ भ्राता धृतराष्ट्र! पाशधारी यमराजके समान महाधनुर्धर भीष्मको युद्धमें जीतनेके लिये पाण्डव कभी समर्थ न हो सके॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथोपायान्महाराज सव्यसाची धनंजयः ।
त्रासयन् रथिनः सर्वान् बीभत्सुरपराजितः ॥ १२ ॥

मूलम्

अथोपायान्महाराज सव्यसाची धनंजयः ।
त्रासयन् रथिनः सर्वान् बीभत्सुरपराजितः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! तदनन्तर किसीसे परास्त न होनेवाले और बायें हाथसे भी बाण चलानेमें समर्थ धनंजय अर्जुन समस्त रथियोंको भयभीत करते हुए उनके निकट आये॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सिंहवद् विनदन्नुच्चैर्धनुर्ज्यां विक्षिपन् मुहुः।
शरौघान्‌ विसृजन् पार्थो व्यचरत्‌ कालवद्‌ रणे ॥ १३ ॥

मूलम्

सिंहवद् विनदन्नुच्चैर्धनुर्ज्यां विक्षिपन् मुहुः।
शरौघान्‌ विसृजन् पार्थो व्यचरत्‌ कालवद्‌ रणे ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे कुन्तीकुमार सिंहके समान उच्चस्वरसे गर्जना करते हुए बारंबार अपने धनुषकी डोरी खींचते और बाणसमूहोंकी वर्षा करते हुए रणक्षेत्रमें कालके समान विचरते थे॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य शब्देन वित्रस्तास्तावका भरतर्षभ।
सिंहस्येव मृगा राजन् व्यद्रवन्त महाभयात् ॥ १४ ॥

मूलम्

तस्य शब्देन वित्रस्तास्तावका भरतर्षभ।
सिंहस्येव मृगा राजन् व्यद्रवन्त महाभयात् ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! भरतश्रेष्ठ! जैसे सिंहके शब्दसे अत्यन्त भयभीत होकर मृग भाग जाते हैं, उसी प्रकार अर्जुनके सिंहनादसे संत्रस्त हुए आपके सैनिक महान् भयके कारण भागने लगे॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जयन्तं पाण्डवं दृष्ट्‌वा त्वत्सैन्यं चाभिपीडितम्।
दुर्योधनस्ततो भीष्ममब्रवीद् भृशपीडितः ॥ १५ ॥

मूलम्

जयन्तं पाण्डवं दृष्ट्‌वा त्वत्सैन्यं चाभिपीडितम्।
दुर्योधनस्ततो भीष्ममब्रवीद् भृशपीडितः ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डुनन्दन अर्जुनको जीतते और आपकी सेनाको पीड़ित होती देख दुर्योधन अत्यन्त पीड़ित होकर भीष्मसे बोला—॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एष पाण्डुसुतस्तात श्वेताश्वः कृष्णसारथिः।
दहते मामकान् सर्वान् कृष्णवर्त्मेव काननम् ॥ १६ ॥

मूलम्

एष पाण्डुसुतस्तात श्वेताश्वः कृष्णसारथिः।
दहते मामकान् सर्वान् कृष्णवर्त्मेव काननम् ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘तात! ये श्वेत घोड़ोंवाले पाण्डुपुत्र अर्जुन, जिनके सारथि श्रीकृष्ण हैं, मेरे सारे सैनिकोंको उसी प्रकार दग्ध करते हैं, जैसे दावानल वनको॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पश्य सैन्यानि गाङ्गेय द्रवमाणानि सर्वशः।
पाण्डवेन युधां श्रेष्ठ काल्यमानानि संयुगे ॥ १७ ॥

मूलम्

पश्य सैन्यानि गाङ्गेय द्रवमाणानि सर्वशः।
पाण्डवेन युधां श्रेष्ठ काल्यमानानि संयुगे ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘योद्धाओंमें श्रेष्ठ गंगानन्दन! देखिये, मेरी सेनाएँ सब ओर भाग रही हैं और अर्जुन युद्धस्थलमें खड़े हो उन्हें खदेड़ रहे हैं॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा पशुगणान् पालः संकालयति कानने।
तथेदं मापकं सैन्यं काल्यते शत्रुतापन ॥ १८ ॥

मूलम्

यथा पशुगणान् पालः संकालयति कानने।
तथेदं मापकं सैन्यं काल्यते शत्रुतापन ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘शत्रुओंको संताप देनेवाले पितामह! जैसे चरवाहा जंगलमें पशुओंको हाँकता है, उसी प्रकार मेरी यह सेना अर्जुनके द्वारा हाँकी जा रही है॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनंजयशरैर्भग्नं द्रवमाणं ततस्ततः ।
भीमोऽप्येवं दुराधर्षो विद्रावयति मे बलम् ॥ १९ ॥

मूलम्

धनंजयशरैर्भग्नं द्रवमाणं ततस्ततः ।
भीमोऽप्येवं दुराधर्षो विद्रावयति मे बलम् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘धनंजयके बाणोंसे आहत हो व्यूह भंग करके इधर-उधर भागनेवाली मेरी सेनाको ये दुर्धर्ष वीर भीमसेन भी पीछेसे खदेड़ रहे हैं॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सात्यकिश्चेकितानश्च माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ।
अभिमन्युः सुविक्रान्तो वाहिनीं द्रवते मम ॥ २० ॥

मूलम्

सात्यकिश्चेकितानश्च माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ।
अभिमन्युः सुविक्रान्तो वाहिनीं द्रवते मम ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘सात्यकि, चेकितान, पाण्डु और माद्रीके पुत्र नकुल-सहदेव और पराक्रमी अभिमन्यु भी मेरी सेनाको भगा रहे हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नस्तथा शूरो राक्षसश्च घटोत्कचः।
व्यद्रावयेतां सहसा सैन्यं मम महारणे ॥ २१ ॥

मूलम्

धृष्टद्युम्नस्तथा शूरो राक्षसश्च घटोत्कचः।
व्यद्रावयेतां सहसा सैन्यं मम महारणे ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘धृष्टद्युम्न तथा शूरवीर राक्षस घटोत्कचने भी सहसा इस महासमरमें आकर मेरी सेनाको मार भगाया है॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वध्यमानस्य सैन्यस्य सर्वैरेतैर्महारथैः ।
नान्यां गतिं प्रपश्यामि स्थाने युद्धे च भारत ॥ २२ ॥
ऋते त्वां पुरुषव्याघ्र देवतुल्यपराक्रम।
पर्याप्तस्तु भवाञ्शीघ्रं पीडितानां गतिर्भव ॥ २३ ॥

मूलम्

वध्यमानस्य सैन्यस्य सर्वैरेतैर्महारथैः ।
नान्यां गतिं प्रपश्यामि स्थाने युद्धे च भारत ॥ २२ ॥
ऋते त्वां पुरुषव्याघ्र देवतुल्यपराक्रम।
पर्याप्तस्तु भवाञ्शीघ्रं पीडितानां गतिर्भव ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘भारत! इन सब महारथियोंद्वारा मारी जाती हुई अपनी सेनाको मैं युद्धमें ठहरानेके लिये आपके सिवा दूसरा कोई आश्रय नहीं देखता। देवतुल्य पराक्रमी पुरुषसिंह! केवल आप ही उसकी रक्षामें समर्थ हैं। अतः हम पीड़ितोंके लिये आप शीघ्र ही आश्रयदाता होइये’॥२२-२३॥

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तो महाराज पिता देवव्रतस्तव।
चिन्तयित्वा मुहूर्तं तु कृत्वा निश्चयमात्मनः ॥ २४ ॥
तव संधारयन् पुत्रमब्रवीच्छान्तनोः सुतः।
दुर्योधन विजानीहि स्थिरो भूत्वा विशाम्पते ॥ २५ ॥

मूलम्

एवमुक्तो महाराज पिता देवव्रतस्तव।
चिन्तयित्वा मुहूर्तं तु कृत्वा निश्चयमात्मनः ॥ २४ ॥
तव संधारयन् पुत्रमब्रवीच्छान्तनोः सुतः।
दुर्योधन विजानीहि स्थिरो भूत्वा विशाम्पते ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— महाराज! दुर्योधनके ऐसा कहनेपर आपके ताऊ शान्तनुनन्दन देवव्रतने दो घड़ीतक कुछ चिन्तन करनेके पश्चात् अपना एक निश्चय करके आपके पुत्र दुर्योधनको सान्त्वना देते हुए इस प्रकार कहा—‘प्रजानाथ दुर्योधन! सुस्थिर होकर इधर ध्यान दो॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पूर्वकालं तव मया प्रतिज्ञातं महाबल।
हत्वा दशसहस्राणि क्षत्रियाणां महात्मनाम् ॥ २६ ॥
संग्रामाद् व्यपयातव्यमेतत् कर्म ममाह्निकम्।
इति तत् कृतवांश्चाहं यथोक्तं भरतर्षभ ॥ २७ ॥

मूलम्

पूर्वकालं तव मया प्रतिज्ञातं महाबल।
हत्वा दशसहस्राणि क्षत्रियाणां महात्मनाम् ॥ २६ ॥
संग्रामाद् व्यपयातव्यमेतत् कर्म ममाह्निकम्।
इति तत् कृतवांश्चाहं यथोक्तं भरतर्षभ ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘महाबली नरेश! पूर्वकालमें मैंने तुम्हारे लिये यह प्रतिज्ञा की थी कि दस हजार महामनस्वी क्षत्रियोंका वध करके ही मुझे संग्रामभूमिसे हटना होगा और यह मेरा दैनिक कर्म होगा। भरतश्रेष्ठ! जैसा मैंने कहा था, वैसा अबतक करता आया हूँ॥२६-२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य चापि महत् कर्म प्रकरिष्ये महाबल।
अहं वाद्य हतः शेष्ये हनिष्ये वाद्य पाण्डवान् ॥ २८ ॥

मूलम्

अद्य चापि महत् कर्म प्रकरिष्ये महाबल।
अहं वाद्य हतः शेष्ये हनिष्ये वाद्य पाण्डवान् ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘महाबली वीर! आज भी मैं महान् कर्म करूँगा। या तो आज मैं ही मारा जाकर रणभूमिमें सो जाऊँगा या पाण्डवोंका ही संहार करूँगा॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य ते पुरुषव्याघ्र प्रतिमोक्ष्ये ऋणं तव।
भर्तृपिण्डकृतं राजन् निहतः पृतनामुखे ॥ २९ ॥

मूलम्

अद्य ते पुरुषव्याघ्र प्रतिमोक्ष्ये ऋणं तव।
भर्तृपिण्डकृतं राजन् निहतः पृतनामुखे ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘पुरुषसिंह! नरेश! तुम स्वामी हो, मुझपर तुम्हारे अन्नका ऋण है; आज युद्धके मुहानेपर मारा जाकर मैं तुम्हारे उस ऋणको उतार दूँगा’॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इत्युक्त्वा भरतश्रेष्ठ क्षत्रियान् प्रवपञ्छरैः।
आससाद दुराधर्षः पाण्डवानामनीकिनीम् ॥ ३० ॥

मूलम्

इत्युक्त्वा भरतश्रेष्ठ क्षत्रियान् प्रवपञ्छरैः।
आससाद दुराधर्षः पाण्डवानामनीकिनीम् ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! ऐसा कहकर दुर्धर्ष वीर भीष्मने क्षत्रियोंपर अपने बाणोंकी वर्षा करते हुए पाण्डवोंकी सेनापर आक्रमण किया॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनीकमध्ये तिष्ठन्तं गाङ्गेयं भरतर्षभ।
आशीविषमिव क्रुद्धं पाण्डवाः प्रत्यवारयन् ॥ ३१ ॥

मूलम्

अनीकमध्ये तिष्ठन्तं गाङ्गेयं भरतर्षभ।
आशीविषमिव क्रुद्धं पाण्डवाः प्रत्यवारयन् ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सेनाके मध्यभागमें स्थित हुए विषधर सर्पके समान कुपित भीष्मको पाण्डव सैनिक रोकने लगे॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दशमेऽहनि भीष्मस्तु दर्शयञ्शक्तिमात्मनः ।
राजञ्छतसहस्राणि सोऽवधीत् कुरुनन्दन ॥ ३२ ॥

मूलम्

दशमेऽहनि भीष्मस्तु दर्शयञ्शक्तिमात्मनः ।
राजञ्छतसहस्राणि सोऽवधीत् कुरुनन्दन ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

किंतु राजन्! कुरुनन्दन! दसवें दिन भीष्मने अपनी शक्तिका परिचय देते हुए लाखों पाण्डव-सैनिकोंका संहार कर डाला॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पञ्चालानां च ये श्रेष्ठा राजपुत्रा महारथाः।
तेषामादत्त तेजांसि जलं सूर्य इवांशुभिः ॥ ३३ ॥

मूलम्

पञ्चालानां च ये श्रेष्ठा राजपुत्रा महारथाः।
तेषामादत्त तेजांसि जलं सूर्य इवांशुभिः ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे सूर्य अपनी किरणोंद्वारा धरतीका जल सोख लेते हैं, उसी प्रकार भीष्मजीने पांचालोंमें जो श्रेष्ठ महारथी राजकुमार थे, उन सबके तेज हर लिये॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हत्वा दश सहस्राणि कुञ्जराणां तरस्विनाम्।
सारोहाणां महाराज हयानां चायुतं तथा ॥ ३४ ॥
पूर्णे शतसहस्रे द्वे पादातानां नरोत्तमः।
प्रजज्वाल रणे भीष्मो विधूम इव पावकः ॥ ३५ ॥

मूलम्

हत्वा दश सहस्राणि कुञ्जराणां तरस्विनाम्।
सारोहाणां महाराज हयानां चायुतं तथा ॥ ३४ ॥
पूर्णे शतसहस्रे द्वे पादातानां नरोत्तमः।
प्रजज्वाल रणे भीष्मो विधूम इव पावकः ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! सवारोंसहित दस हजार वेगशाली हाथियों, उतने ही घोड़ों और घुड़सवारों तथा दो लाख पैदल सैनिकोंको नरश्रेष्ठ भीष्मने रणभूमिमें धूमरहित अग्निकी भाँति फूँक डाला॥३४-३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न चैनं पाण्डवेयानां केचिच्छेकुर्निरीक्षितुम्।
उत्तरं मार्गमास्थाय तपन्तमिव भास्करम् ॥ ३६ ॥

मूलम्

न चैनं पाण्डवेयानां केचिच्छेकुर्निरीक्षितुम्।
उत्तरं मार्गमास्थाय तपन्तमिव भास्करम् ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उत्तरायणका आश्रय लेकर तपते हुए सूर्यकी भाँति प्रतापी भीष्मकी ओर पाण्डवोंमेंसे कोई देखनेमें समर्थ न हो सके॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते पाण्डवेयाः संरब्धा महेष्वासेन पीडिताः।
वधायाभ्यद्रवन् भीष्मं सृंजयाश्च महारथाः ॥ ३७ ॥

मूलम्

ते पाण्डवेयाः संरब्धा महेष्वासेन पीडिताः।
वधायाभ्यद्रवन् भीष्मं सृंजयाश्च महारथाः ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाधनुर्धर भीष्मके बाणोंसे पीड़ित हो अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए पाण्डव तथा सृंजय महारथी भीष्मके वधके लिये उनपर टूट पड़े॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संयुद्ध्यमानो बहुभिर्भीष्मः शान्तनवस्तथा ।
अवकीर्णो महामेरुः शैलो मेघैरिवावृतः ॥ ३८ ॥

मूलम्

संयुद्ध्यमानो बहुभिर्भीष्मः शान्तनवस्तथा ।
अवकीर्णो महामेरुः शैलो मेघैरिवावृतः ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बहुत-से योद्धाओंके साथ अकेले युद्ध करते हुए शान्तनुनन्दन भीष्म उस समय बाणोंसे आच्छादित हो मेघोंके समूहसे आवृत हुए महान् पर्वत मेरुकी भाँति शोभा पा रहे थे॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुत्रास्तु तव गाङ्गेयं समन्तात् पर्यवारयन्।
महत्या सेनया सार्धं ततो युद्धमवर्तत ॥ ३९ ॥

मूलम्

पुत्रास्तु तव गाङ्गेयं समन्तात् पर्यवारयन्।
महत्या सेनया सार्धं ततो युद्धमवर्तत ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! आपके पुत्रोंने विशाल सेनाके साथ आकर गंगानन्दन भीष्मको सब ओरसे घेर लिया। तत्पश्चात् वहाँ विकट युद्ध होने लगा॥३९॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि भीष्मदुर्योधनसंवादे नवाधिकशततमोऽध्यायः ॥ १०९ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें भीष्म-दुर्योधन-संवादविषयक एक सौ नवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१०९॥