०९६ अष्टमदिवसयुद्धावहारे

भागसूचना

षण्णवतितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

इरावान्‌के वधसे अर्जुनका दुःखपूर्ण उद्‌गार, भीमसेनके द्वारा धृतराष्ट्रके नौ पुत्रोंका वध, अभिमन्यु और अम्बष्ठका युद्ध, युद्धकी भयानक स्थितिका वर्णन तथा आठवें दिनके युद्धका उपसंहार

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुत्रं विनिहतं श्रुत्वा इरावन्तं धनंजयः।
दुःखेन महताऽऽविष्टो निःश्वसन् पन्नगो यथा ॥ १ ॥

मूलम्

पुत्रं विनिहतं श्रुत्वा इरावन्तं धनंजयः।
दुःखेन महताऽऽविष्टो निःश्वसन् पन्नगो यथा ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! अपने पुत्र इरावान्‌के वधका वृत्तान्त सुनकर अर्जुनको बड़ा दुःख हुआ। वे सर्पके समान लंबी साँस खींचने लगे॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अब्रवीत् समरे राजन् वासुदेवमिदं वचः।
इदं नूनं महाप्राज्ञो विदुरो दृष्टवान् पुरा ॥ २ ॥

मूलम्

अब्रवीत् समरे राजन् वासुदेवमिदं वचः।
इदं नूनं महाप्राज्ञो विदुरो दृष्टवान् पुरा ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! तब उन्होंने समरभूमिमें भगवान् वासुदेवसे इस प्रकार कहा—‘भगवन्! निश्चय ही महाज्ञानी विदुरने पहले ही यह सब देख लिया था॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुरूणां पाण्डवानां च क्षयं घोरं महामतिः।
स ततो निवारितवान् धृतराष्ट्रं जनेश्वरम् ॥ ३ ॥

मूलम्

कुरूणां पाण्डवानां च क्षयं घोरं महामतिः।
स ततो निवारितवान् धृतराष्ट्रं जनेश्वरम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘कौरवों और पाण्डवोंका यह भयंकर विनाश परम बुद्धिमान् विदुरकी दृष्टिमें पहले ही आ गया था। इसलिये उन्होंने राजा धृतराष्ट्रको मना किया था॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अन्ये च बहवो वीराः संग्रामे मधुसूदन।
निहताः कौरवैः संख्ये तथास्माभिश्च कौरवाः ॥ ४ ॥

मूलम्

अन्ये च बहवो वीराः संग्रामे मधुसूदन।
निहताः कौरवैः संख्ये तथास्माभिश्च कौरवाः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘मधुसूदन! और भी बहुत-से वीरोंको संग्राममें कौरवोंने मारा और हमने कौरव सैनिकोंका संहार किया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अर्थहेतोर्नरश्रेष्ठ क्रियते कर्म कुत्सितम्।
धिगर्थान् यत्कृते ह्येवं क्रियते ज्ञातिसंक्षयः ॥ ५ ॥

मूलम्

अर्थहेतोर्नरश्रेष्ठ क्रियते कर्म कुत्सितम्।
धिगर्थान् यत्कृते ह्येवं क्रियते ज्ञातिसंक्षयः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘नरश्रेष्ठ! धनके लिये यह कुत्सित कर्म किया जा रहा है। धिक्कार है उस धनको, जिसके लिये इस प्रकार जाति-भाइयोंका विनाश किया जाता है॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अधनस्य मृतं श्रेयो न च ज्ञातिवधाद् धनम्।
किं नु प्राप्स्यामहे कृष्ण हत्वा ज्ञातीन् समागतान् ॥ ६ ॥

मूलम्

अधनस्य मृतं श्रेयो न च ज्ञातिवधाद् धनम्।
किं नु प्राप्स्यामहे कृष्ण हत्वा ज्ञातीन् समागतान् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘मनुष्यका निर्धन रहकर मर जाना अच्छा है, परंतु जाति-भाइयोंके वधसे धन प्राप्त करना कदापि अच्छा नहीं है। कृष्ण! हम यहाँ आये हुए इन जाति-भाइयोंको मारकर क्या प्राप्त कर लेंगे॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्योधनापराधेन शकुनेः सौबलस्य च।
क्षत्रिया निधनं यान्ति कर्णदुर्मन्त्रितेन च ॥ ७ ॥

मूलम्

दुर्योधनापराधेन शकुनेः सौबलस्य च।
क्षत्रिया निधनं यान्ति कर्णदुर्मन्त्रितेन च ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘दुर्योधनके अपराधसे और सुबलपुत्र शकुनि तथा कर्णकी कुमन्त्रणासे ये क्षत्रिय मारे जा रहे हैं॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इदानीं च विजानामि सुकृतं मधुसूदन।
कृतं राज्ञा महाबाहो याचता च सुयोधनम् ॥ ८ ॥

मूलम्

इदानीं च विजानामि सुकृतं मधुसूदन।
कृतं राज्ञा महाबाहो याचता च सुयोधनम् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाबाहु मधुसूदन! राजा युधिष्ठिरने दुर्योधनसे पहले जो याचना की थी, वही उत्तम कार्य था; यह बात अब मेरी समझमें आ रही है॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

राज्यार्धं पञ्च वा ग्रामान् नाकार्षीत् स च दुर्मतिः।
दृष्ट्‌वा हि क्षत्रियान् शूरान् शयानान् धरणीतले ॥ ९ ॥
निन्दामि भृशमात्मानं धिगस्तु क्षत्रजीविकाम्।

मूलम्

राज्यार्धं पञ्च वा ग्रामान् नाकार्षीत् स च दुर्मतिः।
दृष्ट्‌वा हि क्षत्रियान् शूरान् शयानान् धरणीतले ॥ ९ ॥
निन्दामि भृशमात्मानं धिगस्तु क्षत्रजीविकाम्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘युधिष्ठिरने आधा राज्य अथवा पाँच गाँव माँगे थे, परंतु दुर्बुद्धि दुर्योधनने उनकी माँग पूरी नहीं की। आज क्षत्रिय वीरोंको रणभूमिमें सोते देख मैं सबसे अधिक अपनी निन्दा करता हूँ। क्षत्रियोंकी इस जीविकाको धिक्कार है॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अशक्तमिति मामेते ज्ञास्यन्ते क्षत्रिया रणे ॥ १० ॥
युद्धं तु मे न रुचितं ज्ञातिभिर्मधुसूदन।

मूलम्

अशक्तमिति मामेते ज्ञास्यन्ते क्षत्रिया रणे ॥ १० ॥
युद्धं तु मे न रुचितं ज्ञातिभिर्मधुसूदन।

अनुवाद (हिन्दी)

‘मधुसूदन! रणक्षेत्रमें मेरे मुखसे ऐसी बात सुनकर ये क्षत्रिय मुझे असमर्थ समझेंगे, परंतु इन जाति-भाइयोंके साथ युद्ध करना मुझे अच्छा नहीं लगता है॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संचोदय हयान् शीघ्रं धार्तराष्ट्रचमूं प्रति ॥ ११ ॥
प्रतरिष्ये महापारं भुजाभ्यां समरोदधिम्।

मूलम्

संचोदय हयान् शीघ्रं धार्तराष्ट्रचमूं प्रति ॥ ११ ॥
प्रतरिष्ये महापारं भुजाभ्यां समरोदधिम्।

अनुवाद (हिन्दी)

(तथापि मैं आपके आदेशानुसार युद्ध करूँगा; अतः) ‘आप शीघ्र ही अपने घोड़ोंको दुर्योधनकी सेनाकी ओर हाँकिये, जिससे इन दोनों भुजाओंद्वारा अपार सैन्यसागरको पार करूँ॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नायं यापयितुं कालो विद्यते माधव क्वचित् ॥ १२ ॥
एवमुक्तस्तु पार्थेन केशवः परवीरहा।
चोदयामास तानश्वान् पाण्डुरान् वातरंहसः ॥ १३ ॥

मूलम्

नायं यापयितुं कालो विद्यते माधव क्वचित् ॥ १२ ॥
एवमुक्तस्तु पार्थेन केशवः परवीरहा।
चोदयामास तानश्वान् पाण्डुरान् वातरंहसः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘माधव! यह समयको व्यर्थ बितानेका अवसर नहीं है।’ अर्जुनके ऐसा कहनेपर शत्रुवीरोंका विनाश करनेवाले केशवने वायुके समान वेगशाली उन श्वेत घोड़ोंको आगे बढ़ाया॥१२-१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथ शब्दो महानासीत् तव सैन्यस्य भारत।
मारुतोद्धतवेगस्य सागरस्येव पर्वणि ॥ १४ ॥

मूलम्

अथ शब्दो महानासीत् तव सैन्यस्य भारत।
मारुतोद्धतवेगस्य सागरस्येव पर्वणि ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! तदनन्तर जैसे पूर्णिमाको वायुकी प्रेरणासे समुद्रका वेग बढ़ जानेसे उसकी भीषण गर्जना सुनायी पड़ती है, उसी प्रकार आपकी सेनाका महान् कोलाहल प्रकट हुआ॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपराह्णे महाराज संग्रामः समपद्यत।
पर्जन्यसमनिर्घोषो भीष्मस्य सह पाण्डवैः ॥ १५ ॥

मूलम्

अपराह्णे महाराज संग्रामः समपद्यत।
पर्जन्यसमनिर्घोषो भीष्मस्य सह पाण्डवैः ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! अपराह्णकालमें पाण्डवोंके साथ भीष्मका भीषण संग्राम आरम्भ हुआ, जिसमें मेघकी गर्जनाके समान गम्भीर घोष हो रहा था॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो राजंस्तव सुता भीमसेनमुपाद्रवन्।
परिवार्य रणे द्रोणं वसवो वासवं यथा ॥ १६ ॥

मूलम्

ततो राजंस्तव सुता भीमसेनमुपाद्रवन्।
परिवार्य रणे द्रोणं वसवो वासवं यथा ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तब आपके पुत्र, जैसे वसुगण इन्द्रके सब ओर खड़े होते हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्यको चारों ओरसे घेरकर रणभूमिमें भीमसेनपर टूट पड़े॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शान्तनवो भीष्मः कृपश्च रथिनां वरः।
भगदत्तः सुशर्मा च धनंजयमुपाद्रवन् ॥ १७ ॥

मूलम्

ततः शान्तनवो भीष्मः कृपश्च रथिनां वरः।
भगदत्तः सुशर्मा च धनंजयमुपाद्रवन् ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् शान्तनुनन्दन भीष्म, रथियोंमें श्रेष्ठ कृपाचार्य, भगदत्त और सुशर्माने अर्जुनपर धावा किया॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हार्दिक्यो बाह्लिकश्चैव सात्यकिं समभिद्रुतौ।
अम्बष्ठकस्तु नृपतिरभिमन्युमवस्थितः ॥ १८ ॥

मूलम्

हार्दिक्यो बाह्लिकश्चैव सात्यकिं समभिद्रुतौ।
अम्बष्ठकस्तु नृपतिरभिमन्युमवस्थितः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कृतवर्मा और बाह्लीक सात्यकिपर टूट पड़े। राजा अम्बष्ठने अभिमन्युका सामना किया॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शेषास्त्वन्ये महाराज शेषानेव महारथान्।
ततः प्रववृते युद्धं घोररूपं भयावहम् ॥ १९ ॥

मूलम्

शेषास्त्वन्ये महाराज शेषानेव महारथान्।
ततः प्रववृते युद्धं घोररूपं भयावहम् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! शेष अन्य महारथियोंने शत्रुपक्षके शेष महारथियोंपर आक्रमण किया। फिर तो उनमें घोर एवं भयंकर युद्ध आरम्भ हुआ॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमसेनस्तु सम्प्रेक्ष्य पुत्रांस्तव जनेश्वर।
प्रजज्वाल रणे क्रुद्धो हविषा हव्यवाडिव ॥ २० ॥

मूलम्

भीमसेनस्तु सम्प्रेक्ष्य पुत्रांस्तव जनेश्वर।
प्रजज्वाल रणे क्रुद्धो हविषा हव्यवाडिव ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जनेश्वर! जैसे घीकी आहुति देनेसे अग्निदेव प्रज्वलित हो उठते हैं, उसी प्रकार रणक्षेत्रमें आपके पुत्रोंको देखकर भीमसेन क्रोधसे जल उठे॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुत्रास्तु तव कौन्तेयं छादयाञ्चक्रिरे शरैः।
प्रावृषीव महाराज जलदा इव पर्वतम् ॥ २१ ॥

मूलम्

पुत्रास्तु तव कौन्तेयं छादयाञ्चक्रिरे शरैः।
प्रावृषीव महाराज जलदा इव पर्वतम् ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु महाराज! आपके पुत्रोंने कुन्तीनन्दन भीमको अपने बाणोंसे उसी प्रकार आच्छादित कर दिया, जैसे वर्षा-ऋतुमें बादल पर्वतको जलकी धाराओंसे ढक लेते हैं॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स च्छाद्यमानो बहुधा पुत्रैस्तव विशाम्पते।
सृक्किणी संलिहन् वीरः शार्दूल इव दर्पितः ॥ २२ ॥
व्यूढोरस्कं ततो भीमः पातयामास भारत।
क्षुरप्रेण सुतीक्ष्णेन सोऽभवद् गतजीवितः ॥ २३ ॥

मूलम्

स च्छाद्यमानो बहुधा पुत्रैस्तव विशाम्पते।
सृक्किणी संलिहन् वीरः शार्दूल इव दर्पितः ॥ २२ ॥
व्यूढोरस्कं ततो भीमः पातयामास भारत।
क्षुरप्रेण सुतीक्ष्णेन सोऽभवद् गतजीवितः ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! भरतनन्दन! आपके पुत्रोंद्वारा बारंबार बाणोंकी वर्षासे आच्छादित किये जानेपर क्रोधपूर्वक अपने मुँहके कोनोंको चाटते हुए सिंहके समान शौर्यका अभिमान रखनेवाले वीर भीमसेनने एक अत्यन्त तीखे क्षुरप्रके द्वारा आपके पुत्र व्यूढोरस्कको मार गिराया। उसकी जीवन-लीला समाप्त हो गयी॥२२-२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपरेण तु भल्लेन पीतेन निशितेन तु।
अपातयत् कुण्डलिनं सिंहः क्षुद्रमृगं यथा ॥ २४ ॥

मूलम्

अपरेण तु भल्लेन पीतेन निशितेन तु।
अपातयत् कुण्डलिनं सिंहः क्षुद्रमृगं यथा ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् जैसे सिंह छोटे-से मृगको दबोच लेता है, उसी प्रकार भीमने दूसरे पानीदार एवं तीखे भल्लसे आपके पुत्र कुण्डलीको धराशायी कर दिया॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सुनिशितान्‌ पीतान् समादत्त शिलीमुखान्।
ससर्ज त्वरया युक्तः पुत्रांस्ते प्राप्य मारिष ॥ २५ ॥

मूलम्

ततः सुनिशितान्‌ पीतान् समादत्त शिलीमुखान्।
ससर्ज त्वरया युक्तः पुत्रांस्ते प्राप्य मारिष ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! इसके बाद भीमने बड़ी उतावलीके साथ बहुत-से तीखे और पानीदार बाण हाथमें लिये और आपके पुत्रोंको लक्ष्य करके छोड़ दिये॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रेषिता भीमसेनेन शरास्ते दृढधन्वना।
अपातयन्त पुत्रांस्ते रथेभ्यः सुमहारथान् ॥ २६ ॥

मूलम्

प्रेषिता भीमसेनेन शरास्ते दृढधन्वना।
अपातयन्त पुत्रांस्ते रथेभ्यः सुमहारथान् ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुदृढ़ धनुर्धर भीमसेनके द्वारा चलाये हुए उन बाणोंने आपके बहुत-से महारथी पुत्रोंको मारकर रथोंसे नीचे गिरा दिया॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनाधृष्टिं कुण्डभेदिं वैराटं दीर्घलोचनम्।
दीर्घबाहुं सुबाहुं च तथैव कनकध्वजम् ॥ २७ ॥

मूलम्

अनाधृष्टिं कुण्डभेदिं वैराटं दीर्घलोचनम्।
दीर्घबाहुं सुबाहुं च तथैव कनकध्वजम् ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके नाम इस प्रकार हैं—अनाधृष्टि, कुण्डभेदि, वैराट, दीर्घलोचन, दीर्घबाहु, सुबाहु तथा कनकध्वज॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रपतन्त स्म वीरास्ते विरेजुर्भरतर्षभ।
वसन्ते पुष्पशबलाश्चूताः प्रपतिता इव ॥ २८ ॥

मूलम्

प्रपतन्त स्म वीरास्ते विरेजुर्भरतर्षभ।
वसन्ते पुष्पशबलाश्चूताः प्रपतिता इव ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! वे सभी वीर वहाँ गिरकर वसन्त-ऋतुमें धराशायी हुए पुष्पयुक्त आम्रवृक्षोंकी भाँति सुशोभित हो रहे थे॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्रदुद्रुवुः शेषास्तव पुत्रा महाहवे।
तं कालमिव मन्यन्तो भीमसेनं महाबलम् ॥ २९ ॥

मूलम्

ततः प्रदुद्रुवुः शेषास्तव पुत्रा महाहवे।
तं कालमिव मन्यन्तो भीमसेनं महाबलम् ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब उस महायुद्धमें आपके शेष पुत्र महाबली भीमसेनको कालके समान समझकर वहाँसे भाग चले॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रोणस्तु समरे वीरं निर्दहन्तं सुतांस्तव।
यथाद्रिं वारिधाराभिः समन्ताद् व्यकिरच्छरैः ॥ ३० ॥

मूलम्

द्रोणस्तु समरे वीरं निर्दहन्तं सुतांस्तव।
यथाद्रिं वारिधाराभिः समन्ताद् व्यकिरच्छरैः ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर युद्धस्थलमें आपके पुत्रोंको दग्ध करते हुए वीर भीमसेनपर द्रोणाचार्यने सब ओरसे उसी प्रकार बाणोंकी वर्षा आरम्भ की, जैसे बादल पर्वतपर जलकी धाराएँ गिराते हैं॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राद्भुतमपश्याम कुन्तीपुत्रस्य पौरुषम् ।
द्रोणेन वार्यमाणोऽपि निजघ्ने यत् सुतांस्तव ॥ ३१ ॥

मूलम्

तत्राद्भुतमपश्याम कुन्तीपुत्रस्य पौरुषम् ।
द्रोणेन वार्यमाणोऽपि निजघ्ने यत् सुतांस्तव ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! उस समय हमने कुन्तीपुत्र भीमका अद्भुत पराक्रम देखा। यद्यपि द्रोणाचार्य बाणोंकी वर्षा करके उन्हें रोक रहे थे, तो भी उन्होंने आपके पुत्रोंको मार डाला॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा गोवृषभो वर्षं संधारयति खात् पतत्।
भीमस्तथा द्रोणमुक्तं शरवर्षमदीधरत् ॥ ३२ ॥

मूलम्

यथा गोवृषभो वर्षं संधारयति खात् पतत्।
भीमस्तथा द्रोणमुक्तं शरवर्षमदीधरत् ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे साँड़ आकाशसे गिरती हुई जल-वर्षाको अपने शरीरपर शान्त भावसे धारण और सहन करता है, उसी प्रकार भीमसेन द्रोणाचार्यकी छोड़ी हुई बाण-वर्षाको धारण कर रहे थे॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्भुतं च महाराज तत्र चक्रे वृकोदरः।
यत् पुत्रांस्तेऽवधीत् संख्ये द्रोणं चैव न्यवारयत् ॥ ३३ ॥

मूलम्

अद्भुतं च महाराज तत्र चक्रे वृकोदरः।
यत् पुत्रांस्तेऽवधीत् संख्ये द्रोणं चैव न्यवारयत् ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! भीमसेनने उस युद्धस्थलमें आपके पुत्रोंका वध तो किया ही, द्रोणाचार्यको भी आगे बढ़नेसे रोक रखा था। यह उन्होंने अद्भुत पराक्रम किया॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुत्रेषु तव वीरेषु चिक्रीडार्जुनपूर्वजः।
मृगेष्विव महाराज चरन् व्याघ्रो महाबलः ॥ ३४ ॥

मूलम्

पुत्रेषु तव वीरेषु चिक्रीडार्जुनपूर्वजः।
मृगेष्विव महाराज चरन् व्याघ्रो महाबलः ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! जैसे महाबली व्याघ्र मृगोंके झुंडमें विचरता हो, उसी प्रकार भीमसेन आपके वीर पुत्रोंके समुदायमें खेल रहे थे॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा हि पशुमध्यस्थो दारयेत पशून् वृकः।
वृकोदरस्तव सुतांस्तथा व्यद्रावयद् रणे ॥ ३५ ॥

मूलम्

यथा हि पशुमध्यस्थो दारयेत पशून् वृकः।
वृकोदरस्तव सुतांस्तथा व्यद्रावयद् रणे ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे भेड़िया पशुओंके बीचमें रहकर भी उन्हें विदीर्ण कर डालता है, उसी प्रकार भीमसेन रणभूमिमें आपके पुत्रोंको भगा रहे थे॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गाङ्गेयो भगदत्तश्च गौतमश्च महारथाः।
पाण्डवं रभसं युद्धे वारयामासुरर्जुनम् ॥ ३६ ॥

मूलम्

गाङ्गेयो भगदत्तश्च गौतमश्च महारथाः।
पाण्डवं रभसं युद्धे वारयामासुरर्जुनम् ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दूसरी ओर गंगानन्दन भीष्म, भगदत्त और कृपाचार्य—ये तीनों महारथी युद्धमें वेगसे आगे बढ़नेवाले पाण्डुकुमार अर्जुनका निवारण कर रहे थे॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अस्त्रैरस्त्राणि संवार्य तेषां सोऽतिरथो रणे।
प्रवीरांस्तव सैन्येषु प्रेषयामास मृत्यवे ॥ ३७ ॥

मूलम्

अस्त्रैरस्त्राणि संवार्य तेषां सोऽतिरथो रणे।
प्रवीरांस्तव सैन्येषु प्रेषयामास मृत्यवे ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु अतिरथी वीर अर्जुनने रणभूमिमें उनके अस्त्रोंका अस्त्रोंद्वारा निवारण करके आपकी सेनाके प्रमुख वीरोंको यमराजके पास भेज दिया॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभिमन्युस्तु राजानमम्बष्ठं लोकविश्रुतम् ।
विरथं रथिनां श्रेष्ठं वारयामास सायकैः ॥ ३८ ॥

मूलम्

अभिमन्युस्तु राजानमम्बष्ठं लोकविश्रुतम् ।
विरथं रथिनां श्रेष्ठं वारयामास सायकैः ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अभिमन्युने रथियोंमें श्रेष्ठ लोकविख्यात राजा अम्बष्ठको सायकोंद्वारा रथहीन करके आगे बढ़नेसे रोक दिया॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विरथो वध्यमानस्तु सौभद्रेण यशस्विना।
अवप्लुत्य रथात् तूर्णमम्बष्ठो वसुधाधिपः ॥ ३९ ॥
असिं चिक्षेप समरे सौभद्रस्य महात्मनः।
आरुरोह रथं चैव हार्दिक्यस्य महाबलः ॥ ४० ॥

मूलम्

विरथो वध्यमानस्तु सौभद्रेण यशस्विना।
अवप्लुत्य रथात् तूर्णमम्बष्ठो वसुधाधिपः ॥ ३९ ॥
असिं चिक्षेप समरे सौभद्रस्य महात्मनः।
आरुरोह रथं चैव हार्दिक्यस्य महाबलः ॥ ४० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यशस्वी सुभद्राकुमार अभिमन्युसे पीड़ित एवं रथहीन होकर राजा अम्बष्ठ अपने रथसे कूद पड़े और महामना सुभद्राकुमारपर उन्होंने रणक्षेत्रमें तलवार चलायी। फिर वे महाबली नरेश कृतवर्माके रथपर जा बैठे॥३९-४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आपतन्तं तु निस्त्रिंशं युद्धमार्गविशारदः।
लाघवाद् व्यंसयामास सौभद्रः परवीरहा ॥ ४१ ॥

मूलम्

आपतन्तं तु निस्त्रिंशं युद्धमार्गविशारदः।
लाघवाद् व्यंसयामास सौभद्रः परवीरहा ॥ ४१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

युद्धके पैतरोंको जाननेमें कुशल तथा शत्रुवीरोंका संहार करनेवाले सुभद्राकुमारने अपनी ओर आती हुई अम्बष्ठकी तलवारको अपनी फुर्तीके कारण निष्फल कर दिया॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्यंसितं वीक्ष्य निस्त्रिंशं सौभद्रेण रणे तदा।
साधु साध्विति सैन्यानां प्रणादोऽभूद् विशाम्पते ॥ ४२ ॥

मूलम्

व्यंसितं वीक्ष्य निस्त्रिंशं सौभद्रेण रणे तदा।
साधु साध्विति सैन्यानां प्रणादोऽभूद् विशाम्पते ॥ ४२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! उस समय रणक्षेत्रमें अम्बष्ठकी चलायी हुई तलवारको सुभद्राकुमारद्वारा निष्फल की गयी देख समस्त सैनिकोंके मुखसे निकली हुई ‘साधु-साधु’ (वाह-वाह)-की ध्वनि गूँज उठी॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नमुखास्त्वन्ये तव सैन्यमयोधयन् ।
तथैव तावकाः सर्वे पाण्डुसैन्यमयोधयन् ॥ ४३ ॥

मूलम्

धृष्टद्युम्नमुखास्त्वन्ये तव सैन्यमयोधयन् ।
तथैव तावकाः सर्वे पाण्डुसैन्यमयोधयन् ॥ ४३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृष्टद्युम्न आदि अन्य महारथी आपकी सेनाके साथ तथा आपके प्रमुख सैनिक पाण्डव-सेनाके साथ युद्ध करने लगे॥४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राक्रन्दो महानासीत् तव तेषां च भारत।
(पाण्डवानां च राजेन्द्र सैनिकानां सुदारुणः।)
निघ्नतां दृढमन्योन्यं कुर्वतां कर्म दुष्करम् ॥ ४४ ॥

मूलम्

तत्राक्रन्दो महानासीत् तव तेषां च भारत।
(पाण्डवानां च राजेन्द्र सैनिकानां सुदारुणः।)
निघ्नतां दृढमन्योन्यं कुर्वतां कर्म दुष्करम् ॥ ४४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! राजेन्द्र! एक-दूसरेपर सुदृढ़ प्रहार और दुष्कर पराक्रम करनेवाले आपके और पाण्डवोंके सैनिकोंमें अत्यन्त भयंकर महान् संग्राम होने लगा॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अन्योन्यं हि रणे शूराः केशेष्वाक्षिप्य मानिनः।
नखदन्तैरयुध्यन्त मुष्टिभिर्जानुभिस्तथा ॥ ४५ ॥

मूलम्

अन्योन्यं हि रणे शूराः केशेष्वाक्षिप्य मानिनः।
नखदन्तैरयुध्यन्त मुष्टिभिर्जानुभिस्तथा ॥ ४५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कितने ही मानी शूरवीर उस रणक्षेत्रमें एक-दूसरेके केश पकड़कर नखों, दाँतों, मुक्कों और घुटनोंसे प्रहार करते हुए लड़ रहे थे॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तलैश्चैवाथ निस्त्रिंशैर्बाहुभिश्च सुसंस्थितैः ।
विवरं प्राप्य चान्योन्यमनयन् यमसादनम् ॥ ४६ ॥

मूलम्

तलैश्चैवाथ निस्त्रिंशैर्बाहुभिश्च सुसंस्थितैः ।
विवरं प्राप्य चान्योन्यमनयन् यमसादनम् ॥ ४६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‌अवसर पाकर वे थप्पड़ों, तलवारों तथा सुदृढ़ भुजाओंद्वारा भी एक-दूसरेको यमलोक पहुँचा देते थे॥४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न्यहनच्च पिता पुत्रं पुत्रश्च पितरं तथा।
व्याकुलीकृतसर्वाङ्गा युयुधुस्तत्र मानवाः ॥ ४७ ॥

मूलम्

न्यहनच्च पिता पुत्रं पुत्रश्च पितरं तथा।
व्याकुलीकृतसर्वाङ्गा युयुधुस्तत्र मानवाः ॥ ४७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस युद्धमें पिताने पुत्रको और पुत्रने पिताको मार डाला। सबके सभी अंग व्याकुल हो गये थे, तो भी सब लोग युद्ध कर रहे थे॥४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रणे चारूणि चापानि हेमपृष्ठानि मारिष।
हतानामपविद्धानि कलापाश्च महाधनाः ॥ ४८ ॥

मूलम्

रणे चारूणि चापानि हेमपृष्ठानि मारिष।
हतानामपविद्धानि कलापाश्च महाधनाः ॥ ४८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! उस रणक्षेत्रमें मारे गये नरेशोंके सुवर्णमय पृष्ठसे विभूषित सुन्दर धनुष तथा बहुमूल्य तरकस जहाँ-तहाँ पड़े हुए थे॥४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जातरूपमयैः पुङ्खै राजतैर्निशिताः शराः।
तैलधौता व्यराजन्त निर्मुक्तभुजगोपमाः ॥ ४९ ॥

मूलम्

जातरूपमयैः पुङ्खै राजतैर्निशिताः शराः।
तैलधौता व्यराजन्त निर्मुक्तभुजगोपमाः ॥ ४९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सोने अथवा चाँदीके पंखोंसे युक्त तथा तेलके धोये हुए तीखे बाण केचुल छोड़कर निकले हुए सर्पोंके समान सुशोभित होते थे॥४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हस्तिदन्तत्सरून् खड्‌गाञ्जातरूपपरिष्कृतान् ।
चर्माणि चापविद्धानि रुक्मचित्राणि धन्विनाम् ॥ ५० ॥

मूलम्

हस्तिदन्तत्सरून् खड्‌गाञ्जातरूपपरिष्कृतान् ।
चर्माणि चापविद्धानि रुक्मचित्राणि धन्विनाम् ॥ ५० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हमने देखा कि रणभूमिमें धनुर्धर वीरोंकी तलवारें और ढालें फेंकी पड़ी हैं। तलवारोंमें हाथीके दाँतकी मूँठें लगी थीं और उनमें यथास्थान सुवर्ण जड़ा हुआ था। इसी प्रकार ढालोंमें सुवर्णमय विचित्र तारक चिह्न दिखायी देते थे॥५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुवर्णविकृतप्रासान् पट्टिशान् हेमभूषितान् ।
जातरूपमयाश्चर्ष्टीः शक्तीश्च कनकोज्ज्वलाः ॥ ५१ ॥

मूलम्

सुवर्णविकृतप्रासान् पट्टिशान् हेमभूषितान् ।
जातरूपमयाश्चर्ष्टीः शक्तीश्च कनकोज्ज्वलाः ॥ ५१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुवर्णभूषित प्रास, स्वर्णजटित पट्टिश, सोनेकी बनी हुई ऋष्टियाँ तथा स्वर्णभूषित चमकीली शक्तियाँ यत्र-तत्र पड़ी हुई थीं॥५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुसंनाहाश्च पतिता मुसलानि गुरूणि च।
परिघान् पट्टिशांश्चैव भिन्दिपालांश्च मारिष ॥ ५२ ॥

मूलम्

सुसंनाहाश्च पतिता मुसलानि गुरूणि च।
परिघान् पट्टिशांश्चैव भिन्दिपालांश्च मारिष ॥ ५२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! वहाँ सुन्दर कवच पड़े थे। भारी मूसल, परिघ, पट्टिश और भिन्दिपाल भी इधर-उधर बिखरे दिखायी देते थे॥५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पतितान् विविधांश्चापांश्चित्रान्‌ हेमपरिष्कृतान् ।
कुथा बहुविधाकाराश्चामरान् व्यजनानि च ॥ ५३ ॥

मूलम्

पतितान् विविधांश्चापांश्चित्रान्‌ हेमपरिष्कृतान् ।
कुथा बहुविधाकाराश्चामरान् व्यजनानि च ॥ ५३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नाना प्रकारके विचित्र एवं स्वर्णभूषित धनुष गिरे हुए थे। हाथीकी पीठपर बिछाये जानेवाले भाँति-भाँतिके कम्बल तथा चँवर और व्यजन भी यत्र-तत्र गिरे दिखायी देते थे॥५३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नानाविधानि शस्त्राणि प्रगृह्य पतिता नराः।
जीवन्त इव दृश्यन्ते गतसत्त्वा महारथाः ॥ ५४ ॥

मूलम्

नानाविधानि शस्त्राणि प्रगृह्य पतिता नराः।
जीवन्त इव दृश्यन्ते गतसत्त्वा महारथाः ॥ ५४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भाँति-भाँतिके अस्त्र-शस्त्रोंको हाथोंमें लेकर पृथ्वीपर पड़े हुए प्राणहीन महारथी सैनिक जीवित-से दिखायी देते थे॥५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गदाविमथितैर्गात्रैर्मुसलैर्भिन्नमस्तकाः ।
गजवाजिरथक्षुण्णाः शेरते स्म नराः क्षितौ ॥ ५५ ॥

मूलम्

गदाविमथितैर्गात्रैर्मुसलैर्भिन्नमस्तकाः ।
गजवाजिरथक्षुण्णाः शेरते स्म नराः क्षितौ ॥ ५५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

किन्हींके शरीर गदाकी चोटसे चूर-चूर हो गये थे, किन्हींके मस्तक मूसलोंकी मारसे फट गये थे तथा कितने ही मनुष्य घोड़े, हाथी एवं रथोंसे कुचल गये थे। ये सभी वहाँ पृथ्वीपर प्राणहीन होकर सो गये थे॥५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैवाश्वनृनागानां शरीरैर्विबभौ तदा ।
संछन्ना वसुधा राजन् पर्वतैरिव सर्वशः ॥ ५६ ॥

मूलम्

तथैवाश्वनृनागानां शरीरैर्विबभौ तदा ।
संछन्ना वसुधा राजन् पर्वतैरिव सर्वशः ॥ ५६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इसी प्रकार घोड़े, हाथी और मनुष्योंके मृत शरीरोंसे सारी वसुधा आच्छादित हो उस समय पर्वतोंसे ढकी हुई-सी जान पड़ती थी॥५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समरे पतितैश्चैव शक्त्यृष्टिशरतोमरैः ।
निस्त्रिंशैः पट्टिशैः प्रासैरयस्कुन्तैः परश्वधैः ॥ ५७ ॥
परिघैर्भिन्दिपालैश्च शतघ्नीभिश्च मारिष ।
शरीरैः शस्त्रनिर्भिन्नैः समास्तीर्यत मेदिनी ॥ ५८ ॥

मूलम्

समरे पतितैश्चैव शक्त्यृष्टिशरतोमरैः ।
निस्त्रिंशैः पट्टिशैः प्रासैरयस्कुन्तैः परश्वधैः ॥ ५७ ॥
परिघैर्भिन्दिपालैश्च शतघ्नीभिश्च मारिष ।
शरीरैः शस्त्रनिर्भिन्नैः समास्तीर्यत मेदिनी ॥ ५८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! समरभूमिमें गिरे हुए बाण, तोमर, शक्ति, ऋष्टि, खड्‌ग, पट्टिश, प्रास, लोहेके भाले, फरसे, परिघ, भिन्दिपाल तथा शतघ्नी (तोप)—इन अस्त्र-शस्त्रों तथा इनके द्वारा विदीर्ण हुए मृत शरीरोंसे सारी पृथ्वी पट गयी थी॥५७-५८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विशब्दैरल्पशब्दैश्च शोणितौघपरिप्लुतैः ।
गतासुभिरमित्रघ्न विबभौ निचिता मही ॥ ५९ ॥

मूलम्

विशब्दैरल्पशब्दैश्च शोणितौघपरिप्लुतैः ।
गतासुभिरमित्रघ्न विबभौ निचिता मही ॥ ५९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शत्रुओंका नाश करनेवाले महाराज! वहाँ पृथ्वीपर कुछ ऐसे लोग गिरे थे, जिनके मुखसे शब्द नहीं निकल पाता था। कुछ ऐसे थे, जो बहुत थोड़ा बोल पाते थे। प्रायः सभी लोग खूनसे लथपथ हो रहे थे और बहुत-से ऐसे शरीर पड़े थे, जो सर्वथा प्राणहीन हो चुके थे। इन सबके द्वारा वहाँकी भूमि मानो चुन दी गयी थी॥५९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सतलत्रैः सकेयूरैर्बाहुभिश्चन्दनोक्षितैः ।
हस्तिहस्तोपमैश्छिन्नैरूरुभिश्च तरस्विनाम् ॥ ६० ॥
बद्धचूडामणिवरैः शिरोभिश्च सकुण्डलैः ।
पातितैर्ऋषभाक्षाणां बभौ भारत मेदिनी ॥ ६१ ॥

मूलम्

सतलत्रैः सकेयूरैर्बाहुभिश्चन्दनोक्षितैः ।
हस्तिहस्तोपमैश्छिन्नैरूरुभिश्च तरस्विनाम् ॥ ६० ॥
बद्धचूडामणिवरैः शिरोभिश्च सकुण्डलैः ।
पातितैर्ऋषभाक्षाणां बभौ भारत मेदिनी ॥ ६१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! रणभूमिमें गिरे हुए बैलके समान विशाल नेत्रोंवाले वेगशाली वीरोंकी दस्तानों और केयूरोंसे युक्त चन्दनचर्चित भुजाओंसे, हाथीकी सूँड़के समान प्रतीत होनेवाली छिन्न-भिन्न हुई जाँघोंसे तथा उत्तम चूड़ामणि (मुकुट)-से आबद्ध कुण्डलमण्डित मस्तकोंसे वहाँकी भूमि अद्भुत शोभा पा रही थी॥६०-६१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कवचैः शोणितादिग्धैर्विप्रकीर्णैश्च काञ्चनैः ।
रराज सुभृशं भूमिः शान्तार्चिभिरिवानलैः ॥ ६२ ॥

मूलम्

कवचैः शोणितादिग्धैर्विप्रकीर्णैश्च काञ्चनैः ।
रराज सुभृशं भूमिः शान्तार्चिभिरिवानलैः ॥ ६२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रक्तमें सनकर इधर-उधर बिखरे हुए सुवर्णमय कवचोंसे वह युद्धभूमि ऐसे सुशोभित हो रही थी, मानो वहाँ जिसकी लपटें शान्त हो गयी हैं, ऐसी आग जगह-जगह पड़ी हो॥६२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विप्रविद्धैः कलापैश्च पतितैश्च शरासनैः।
विप्रकीर्णैः शरैश्चैव रुक्मपुङ्खैः समन्ततः ॥ ६३ ॥

मूलम्

विप्रविद्धैः कलापैश्च पतितैश्च शरासनैः।
विप्रकीर्णैः शरैश्चैव रुक्मपुङ्खैः समन्ततः ॥ ६३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

चारों ओर तरकस फेंके पड़े थे, धनुष गिरे थे और सोनेके पंखवाले बाण बिखरे हुए थे॥६३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथैश्च सर्वतो भग्नैः किङ्किणीजालभूषितैः।
वाजिभिश्च हतैर्बाणैः स्रस्तजिह्वैः सशोणितैः ॥ ६४ ॥

मूलम्

रथैश्च सर्वतो भग्नैः किङ्किणीजालभूषितैः।
वाजिभिश्च हतैर्बाणैः स्रस्तजिह्वैः सशोणितैः ॥ ६४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सब ओर क्षुद्रघण्टिकाओंके जालसे विभूषित टूटे-फूटे रथ पड़े थे। बाणोंसे मारे गये घोड़े खूनसे लथपथ हो जीभ निकाले ढेर हो रहे थे॥६४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनुकर्षैः पताकाभिरुपासङ्गैर्ध्वजैरपि ।
प्रवीराणां महाशङ्खैर्विप्रकीर्णैश्च पाण्डुरैः ॥ ६५ ॥

मूलम्

अनुकर्षैः पताकाभिरुपासङ्गैर्ध्वजैरपि ।
प्रवीराणां महाशङ्खैर्विप्रकीर्णैश्च पाण्डुरैः ॥ ६५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अनुकर्ष, पताका, उपासंग, ध्वज तथा बड़े-बड़े वीरोंके श्वेत महाशंख बिखरे पड़े थे॥६५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्रस्तहस्तैश्च मातङ्गैः शयानैर्विबभौ मही।
नानारूपैरलंकारैः प्रमदेवाभ्यलंकृता ॥ ६६ ॥

मूलम्

स्रस्तहस्तैश्च मातङ्गैः शयानैर्विबभौ मही।
नानारूपैरलंकारैः प्रमदेवाभ्यलंकृता ॥ ६६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनकी सूँड़ें कट गयी थीं, ऐसे मतवाले हाथी धराशायी हो रहे थे। उन सबके द्वारा वह रणभूमि भाँति-भाँतिके अलंकारोंसे अलंकृत युवतीके समान सुशोभित हो रही थी॥६६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दन्तिभिश्चापरैस्तत्र सप्रासैर्गाढवेदनैः ।
करैः शब्दं विमुञ्चद्भिः शीकरं मुहुर्मुहुः ॥ ६७ ॥

मूलम्

दन्तिभिश्चापरैस्तत्र सप्रासैर्गाढवेदनैः ।
करैः शब्दं विमुञ्चद्भिः शीकरं मुहुर्मुहुः ॥ ६७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुछ दन्तार हाथी प्रास धँस जानेके कारण गहरी व्यथासे युक्त सूँड़ोंद्वारा बारंबार शब्द करते और पानीके कण फेंकते थे॥६७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विबभौ तद् रणस्थानं स्यन्दमानैरिवाचलैः।
नानारागैः कम्बलैश्च परिस्तोमैश्च दन्तिनाम् ॥ ६८ ॥
वैदूर्यमणिदण्डैश्च पतितैरङ्‌कुशैः शुभैः ।

मूलम्

विबभौ तद् रणस्थानं स्यन्दमानैरिवाचलैः।
नानारागैः कम्बलैश्च परिस्तोमैश्च दन्तिनाम् ॥ ६८ ॥
वैदूर्यमणिदण्डैश्च पतितैरङ्‌कुशैः शुभैः ।

अनुवाद (हिन्दी)

उनके कारण वह युद्धस्थल जलके स्रोत बहानेवाले पर्वतोंसे युक्त-सा प्रतीत होता था। वहाँ नाना प्रकारके रंगवाले कम्बल, हाथियोंके झूल तथा वैदूर्यमणिके दण्डवाले सुन्दर अंकुश गिरे हुए थे॥६८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

घण्टाभिश्च गजेन्द्राणां पतिताभिः समन्ततः ॥ ६९ ॥
विपाटितविचित्राभिः कुथाभिरङ्‌कुशैस्तथा ।
ग्रैवेयैश्चित्ररूपैश्च रुक्मकक्ष्याभिरेव च ॥ ७० ॥

मूलम्

घण्टाभिश्च गजेन्द्राणां पतिताभिः समन्ततः ॥ ६९ ॥
विपाटितविचित्राभिः कुथाभिरङ्‌कुशैस्तथा ।
ग्रैवेयैश्चित्ररूपैश्च रुक्मकक्ष्याभिरेव च ॥ ७० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

चारों ओर गजराजोंके घंटे पड़े हुए थे। हाथियोंकी पीठपर बिछाये जानेवाले फटे हुए विचित्र कम्बल और अंकुश सब ओर गिरे हुए थे। गलेके विचित्र आभूषण और सुनहरे रस्से भी जहाँ-तहाँ बिखरे पड़े थे॥६९-७०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यन्त्रैश्च बहुधाच्छिन्नैस्तोमरैश्चापि काञ्चनैः ।
अश्वानां रेणुकपिलै रुक्मच्छन्नैरुरश्छदैः ॥ ७१ ॥
सादिनां भुजगैश्छिन्नैः पतितैः साङ्गदैस्तथा।
प्रासैश्च विमलैस्तीक्ष्णैर्विमलाभिस्तथर्ष्टिभिः ॥ ७२ ॥

मूलम्

यन्त्रैश्च बहुधाच्छिन्नैस्तोमरैश्चापि काञ्चनैः ।
अश्वानां रेणुकपिलै रुक्मच्छन्नैरुरश्छदैः ॥ ७१ ॥
सादिनां भुजगैश्छिन्नैः पतितैः साङ्गदैस्तथा।
प्रासैश्च विमलैस्तीक्ष्णैर्विमलाभिस्तथर्ष्टिभिः ॥ ७२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अनेक टुकड़ोंमें कटे हुए यन्त्र, सुवर्णमय तोमर, धूलसे कपिल वर्णके दिखायी देनेवाले अश्वोंकी छातीको ढकनेवाले सुनहरे कवच, बाजूबंदसहित घुड़सवारोंके हाथोंमें धारण किये हुए तीखे और चमकीले प्रास तथा चमचमाती हुई ऋष्टियाँ छिन्न-भिन्न होकर यत्र-तत्र पड़ी थीं॥७१-७२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उष्णीषैश्च तथा चित्रैर्विप्रविद्धैस्ततस्ततः ।
विचित्रैर्बाणवषैश्च जातरूपपरिष्कृतैः ॥ ७३ ॥
अश्वास्तरपरिस्तोमै राङ्कवैर्मृदितैस्तथा ।
नरेन्द्रचूडामणिभिर्विचित्रैश्च महाधनैः ॥ ७४ ॥

मूलम्

उष्णीषैश्च तथा चित्रैर्विप्रविद्धैस्ततस्ततः ।
विचित्रैर्बाणवषैश्च जातरूपपरिष्कृतैः ॥ ७३ ॥
अश्वास्तरपरिस्तोमै राङ्कवैर्मृदितैस्तथा ।
नरेन्द्रचूडामणिभिर्विचित्रैश्च महाधनैः ॥ ७४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जहाँ-तहाँ गिरे हुए विचित्र उष्णीष (पगड़ी आदि), पानीकी तरह बरसाये गये सुवर्णभूषित नाना प्रकारके बाण, घोड़ोंकी जीन, झूल और उनकी पीठपर बिछाने योग्य रंकु नामक मृगोंके कोमल चर्ममय आसन, जो पैरोंसे कुचलकर धूलमें सन गये थे तथा नरेशोंके मुकुटमें आबद्ध बहुमूल्य एवं विचित्र मणिरत्न सब ओर बिखरे पड़े थे॥७३-७४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

छत्रैस्तथापविद्धैश्च चामरैर्व्यजनैरपि ।
पद्मेन्दुद्युतिभिश्चैव वदनैश्चारुकुण्डलैः ॥ ७५ ॥
क्लृप्तश्मश्रुभिरत्यर्थं वीराणां समलंकृतैः ।
अपविद्धैर्महाराज सुवर्णोज्ज्वलकुण्डलैः ॥ ७६ ॥
ग्रहनक्षत्रशबला द्यौरिवासीद् वसुन्धरा ।

मूलम्

छत्रैस्तथापविद्धैश्च चामरैर्व्यजनैरपि ।
पद्मेन्दुद्युतिभिश्चैव वदनैश्चारुकुण्डलैः ॥ ७५ ॥
क्लृप्तश्मश्रुभिरत्यर्थं वीराणां समलंकृतैः ।
अपविद्धैर्महाराज सुवर्णोज्ज्वलकुण्डलैः ॥ ७६ ॥
ग्रहनक्षत्रशबला द्यौरिवासीद् वसुन्धरा ।

अनुवाद (हिन्दी)

इधर-उधर गिरे हुए राजाओंके छत्र, चँवर, व्यजन, वीर योद्धाओंके मनोहर कुण्डलोंसे विभूषित, कमल एवं चन्द्रमाके समान कान्तिमान् तथा मूँछोंसे युक्त और अत्यन्त अलंकृत कटे हुए मस्तक, जिनमें सोनेके सुन्दर कुण्डल जगमगा रहे थे, फेंके हुए-से पड़े थे। महाराज! इन सब वस्तुओंसे आच्छादित हुई वहाँकी भूमि ग्रहों और नक्षत्रोंसे भरे हुए आकाशके समान विचित्र शोभा धारण कर रही थी॥७५-७६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमेते महासेने मृदिते तत्र भारत ॥ ७७ ॥
परस्परं समासाद्य तव तेषां च संयुगे।

मूलम्

एवमेते महासेने मृदिते तत्र भारत ॥ ७७ ॥
परस्परं समासाद्य तव तेषां च संयुगे।

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! इस प्रकार आपकी और पाण्डवोंकी वे दोनों विशाल सेनाएँ एक-दूसरीसे भिड़कर युद्धस्थलमें रौंदी जा रही थी॥७७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषु श्रान्तेषु भग्नेषु मृदितेषु च भारत ॥ ७८ ॥
रात्रिः समभवत् तत्र नापश्याम ततोऽनुगान्।
ततोऽवहारं सैन्यानां प्रचक्रुः कुरुपाण्डवाः ॥ ७९ ॥

मूलम्

तेषु श्रान्तेषु भग्नेषु मृदितेषु च भारत ॥ ७८ ॥
रात्रिः समभवत् तत्र नापश्याम ततोऽनुगान्।
ततोऽवहारं सैन्यानां प्रचक्रुः कुरुपाण्डवाः ॥ ७९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! उस समय जब अधिकांश सैनिक परिश्रमसे चूर-चूर हो रहे थे, कितने ही भाग गये थे और बहुतेरे योद्धा रौंद डाले गये थे, रात हो गयी थी एवं हमें अपने सेवक नहीं दिखायी दे रहे थे, तब कौरवों और पाण्डवोंने अपनी-अपनी सेनाको युद्धभूमिसे लौटनेका आदेश दे दिया॥७८-७९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रजनीमुखे सुरौद्रे तु वर्तमाने महाभये।
अवहारं ततः कृत्वा सहिताः कुरुपाण्डवाः।
न्यविशन्त यथाकालं गत्वा स्वशिबिरं तदा ॥ ८० ॥

मूलम्

रजनीमुखे सुरौद्रे तु वर्तमाने महाभये।
अवहारं ततः कृत्वा सहिताः कुरुपाण्डवाः।
न्यविशन्त यथाकालं गत्वा स्वशिबिरं तदा ॥ ८० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर उस महाभयानक तथा अत्यन्त रौद्र रूपवाले प्रदोषकालमें कौरव तथा पाण्डव एक साथ अपनी सेनाओंको लौटाकर यथासमय शिविरमें जा पहुँचे और विश्राम करने लगे॥८०॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि अष्टमदिवसयुद्धावहारे षण्णवतितमोऽध्यायः ॥ ९६ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें आठवें दिनके युद्धमें सेनाके शिविरमें लौटनेसे सम्बन्ध रखनेवाला छानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥९६॥

सूचना (हिन्दी)

[दाक्षिणात्य अधिक पाठका श्लोक मिलाकर कुल ८० श्लोक हैं।]