०९४ घटोत्कचयुद्धे

भागसूचना

चतुर्नवतितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

दुर्योधन और भीमसेनका एवं अश्वत्थामा और राजा नीलका युद्ध तथा घटोत्कचकी मायासे मोहित होकर कौरव-सेनाका पलायन

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वसैन्यं निहतं दृष्ट्‌वा राजा दुर्योधनः स्वयम्।
अभ्यधावत संक्रुद्धो भीमसेनमरिंदमम् ॥ १ ॥

मूलम्

स्वसैन्यं निहतं दृष्ट्‌वा राजा दुर्योधनः स्वयम्।
अभ्यधावत संक्रुद्धो भीमसेनमरिंदमम् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! अपनी अधिकांश सेनाको मारी गयी देख क्रोधमें भरे हुए स्वयं राजा दुर्योधनने शत्रुदमन भीमसेनपर धावा किया॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रगृह्य सुमहच्चापमिन्द्राशनिसमस्वनम् ।
महता शरवर्षेण पाण्डवं समवाकिरत् ॥ २ ॥

मूलम्

प्रगृह्य सुमहच्चापमिन्द्राशनिसमस्वनम् ।
महता शरवर्षेण पाण्डवं समवाकिरत् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसने इन्द्रके वज्रकी भाँति भयानक टंकार करनेवाले विशाल धनुषको हाथमें लेकर पाण्डुनन्दन भीमसेनपर बाणोंकी भारी वर्षा आरम्भ की॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अर्धचन्द्रं च संधाय सुतीक्ष्णं लोमवाहिनम्।
भीमसेनस्य चिच्छेद चापं क्रोधसमन्वितः ॥ ३ ॥

मूलम्

अर्धचन्द्रं च संधाय सुतीक्ष्णं लोमवाहिनम्।
भीमसेनस्य चिच्छेद चापं क्रोधसमन्वितः ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इतना ही नहीं, उसने कुपित होकर पंखयुक्त अत्यन्त तीखे अर्धचन्द्राकार बाणका प्रयोग करके भीमसेनके धनुषको काट दिया॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदन्तरं च सम्प्रेक्ष्य त्वरमाणो महारथः।
प्रसंदधे शितं बाणं गिरीणामपि दारणम् ॥ ४ ॥

मूलम्

तदन्तरं च सम्प्रेक्ष्य त्वरमाणो महारथः।
प्रसंदधे शितं बाणं गिरीणामपि दारणम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर उसीको उपयुक्त अवसर समझकर महारथी दुर्योधनने बड़ी उतावलीके साथ एक तीखे बाणका संधान किया, जो पर्वतोंको भी विदीर्ण करनेवाला था॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेनोरसि महाराज भीमसेनमताडयत् ।
स गाढविद्धो व्यथितः सृक्किणी परिसंलिहन् ॥ ५ ॥
समाललम्बे तेजस्वी ध्वजं हेमपरिष्कृतम्।

मूलम्

तेनोरसि महाराज भीमसेनमताडयत् ।
स गाढविद्धो व्यथितः सृक्किणी परिसंलिहन् ॥ ५ ॥
समाललम्बे तेजस्वी ध्वजं हेमपरिष्कृतम्।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! उस बाणके द्वारा दुर्योधनने भीमसेनकी छातीपर गहरी चोट पहुँचायी। उससे अत्यन्त घायल होकर तेजस्वी भीमसेन व्यथित हो उठे और मुँहके दोनों कोनोंको चाटते हुए उन्होंने अपने सुवर्णभूषित ध्वजका सहारा ले लिया॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा विमनसं दृष्ट्‌वा भीमसेनं घटोत्कचः ॥ ६ ॥
क्रोधेनाभिप्रजज्वाल दिधक्षन्निव पावकः ।

मूलम्

तथा विमनसं दृष्ट्‌वा भीमसेनं घटोत्कचः ॥ ६ ॥
क्रोधेनाभिप्रजज्वाल दिधक्षन्निव पावकः ।

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेनको इस प्रकार व्यथितचित्त देखकर घटोत्कच जलानेकी इच्छावाले अग्निदेवकी भाँति क्रोधसे प्रज्वलित हो उठा॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभिमन्युमुखाश्चापि पाण्डवानां महारथाः ॥ ७ ॥
समभ्यधावन् क्रोशन्तो राजानं जातसम्भ्रमाः।

मूलम्

अभिमन्युमुखाश्चापि पाण्डवानां महारथाः ॥ ७ ॥
समभ्यधावन् क्रोशन्तो राजानं जातसम्भ्रमाः।

अनुवाद (हिन्दी)

साथ ही अभिमन्यु आदि पाण्डव महारथी भी बड़े वेगसे राजा दुर्योधनको ललकारते हुए उसकी ओर दौड़े॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सम्प्रेक्ष्यैतान् सम्पततः संक्रुद्धाञ्जातसम्भ्रमान् ॥ ८ ॥
भारद्वाजोऽब्रवीद् वाक्यं तावकानां महारथान्।
क्षिप्रं गच्छत भद्रं वो राजानं परिरक्षत ॥ ९ ॥
संशयं परमं प्राप्तं मज्जन्तं व्यसनार्णवे।

मूलम्

सम्प्रेक्ष्यैतान् सम्पततः संक्रुद्धाञ्जातसम्भ्रमान् ॥ ८ ॥
भारद्वाजोऽब्रवीद् वाक्यं तावकानां महारथान्।
क्षिप्रं गच्छत भद्रं वो राजानं परिरक्षत ॥ ९ ॥
संशयं परमं प्राप्तं मज्जन्तं व्यसनार्णवे।

अनुवाद (हिन्दी)

क्रोधमें भरे हुए इन समस्त योद्धाओंको वेगपूर्वक धावा करते देख द्रोणाचार्यने आपके महारथियोंसे कहा—‘वीरो! तुम्हारा कल्याण हो। शीघ्र जाओ और संकटके समुद्रमें डूबकर महान् प्राणसंशयमें पड़े हुए राजा दुर्योधनकी रक्षा करो॥८-९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एते क्रुद्धा महेष्वासाः पाण्डवानां महारथाः ॥ १० ॥
भीमसेनं पुरस्कृत्य दुर्योधनमुपाद्रवन् ।
नानाविधानि शस्त्राणि विसृजन्तो जये धृताः ॥ ११ ॥
नदन्तो भैरवान् नादांस्त्रासयन्तश्च भूमिपान्।

मूलम्

एते क्रुद्धा महेष्वासाः पाण्डवानां महारथाः ॥ १० ॥
भीमसेनं पुरस्कृत्य दुर्योधनमुपाद्रवन् ।
नानाविधानि शस्त्राणि विसृजन्तो जये धृताः ॥ ११ ॥
नदन्तो भैरवान् नादांस्त्रासयन्तश्च भूमिपान्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘ये महाधनुर्धर पाण्डव महारथी कुपित हो भीमसेनको आगे करके दुर्योधनपर धावा कर रहे हैं और विजयका दृढ़ संकल्प ले नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंकी वर्षा करते हुए भैरव गर्जना करते तथा भूमिपालोंको त्रास पहुँचाते हैं’॥१०-११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदाचार्यवचः श्रुत्वा सौमदत्तिपुरोगमाः ॥ १२ ॥
तावकाः समवर्तन्त पाण्डवानामनीकिनीम् ।

मूलम्

तदाचार्यवचः श्रुत्वा सौमदत्तिपुरोगमाः ॥ १२ ॥
तावकाः समवर्तन्त पाण्डवानामनीकिनीम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

आचार्यका यह वचन सुनकर भूरिश्रवा आदि आपके प्रमुख योद्धाओंने पाण्डवसेनापर आक्रमण किया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृपो भूरिश्रवाः शल्यो द्रोणपुत्रो विविंशतिः ॥ १३ ॥
चित्रसेनो विकर्णश्च सैन्धवोऽथ बृहद्‌बलः।
आवन्त्यौ च महेष्वासौ कौरवं पर्यवारयन् ॥ १४ ॥

मूलम्

कृपो भूरिश्रवाः शल्यो द्रोणपुत्रो विविंशतिः ॥ १३ ॥
चित्रसेनो विकर्णश्च सैन्धवोऽथ बृहद्‌बलः।
आवन्त्यौ च महेष्वासौ कौरवं पर्यवारयन् ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कृपाचार्य, भूरिश्रवा, शल्य, अश्वत्थामा, विविंशति, चित्रसेन, विकर्ण, सिंधुराज जयद्रथ, बृहद्‌बल तथा अवन्तीके राजकुमार महाधनुर्धर विन्द और अनुविन्द—इन सबने दुर्योधनको उसकी रक्षाके लिये सब ओरसे घेर लिया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते विंशतिपदं गत्वा सम्प्रहारं प्रचक्रिरे।
पाण्डवा धार्तराष्ट्राश्च परस्परजिघांसवः ॥ १५ ॥

मूलम्

ते विंशतिपदं गत्वा सम्प्रहारं प्रचक्रिरे।
पाण्डवा धार्तराष्ट्राश्च परस्परजिघांसवः ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे बीस कदम आगे बढ़कर प्रहार करने लगे, फिर तो पाण्डव तथा कौरव योद्धा एक-दूसरेको मार डालनेकी इच्छासे युद्ध करने लगे॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्त्वा महाबाहुर्महद् विस्फार्य कार्मुकम्।
भारद्वाजस्ततो भीमं षड्‌विंशत्या समार्पयत् ॥ १६ ॥

मूलम्

एवमुक्त्वा महाबाहुर्महद् विस्फार्य कार्मुकम्।
भारद्वाजस्ततो भीमं षड्‌विंशत्या समार्पयत् ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कौरव महारथियोंसे पूर्वोक्त बात कहनेके पश्चात् महाबाहु भरद्वाजनन्दन द्रोणाचार्यने अपने विशाल धनुषको खींचकर भीमसेनको छब्बीस बाण मारे॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भूयश्चैनं महाबाहुः शरैः शीघ्रमवाकिरत्।
पर्वतं वारिधाराभिः प्रावृषीव बलाहकः ॥ १७ ॥

मूलम्

भूयश्चैनं महाबाहुः शरैः शीघ्रमवाकिरत्।
पर्वतं वारिधाराभिः प्रावृषीव बलाहकः ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

साथ ही उन महाबाहुने उनके ऊपर शीघ्रतापूर्वक बाणोंकी वर्षा आरम्भ कर दी, मानो वर्षाऋतुमें मेघ पर्वत-शिखरपर जलकी धारा गिरा रहा हो॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं प्रत्यविध्यद् दशभिर्थीमसेनः शिलीमुखैः।
त्वरमाणो महेष्वासः सव्ये पार्श्वे महाबलः ॥ १८ ॥

मूलम्

तं प्रत्यविध्यद् दशभिर्थीमसेनः शिलीमुखैः।
त्वरमाणो महेष्वासः सव्ये पार्श्वे महाबलः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब महाबली महाधनुर्धर भीमसेनने भी बड़ी उतावलीके साथ द्रोणाचार्यकी बायीं पसलीमें दस बाण मारकर उन्हें घायल कर दिया॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स गाढविद्धो व्यथितो वयोवृद्धश्च भारत।
प्रणष्टसंज्ञः सहसा रथोपस्थ उपाविशत् ॥ १९ ॥

मूलम्

स गाढविद्धो व्यथितो वयोवृद्धश्च भारत।
प्रणष्टसंज्ञः सहसा रथोपस्थ उपाविशत् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! उन बाणोंसे उन्हें गहरा आघात लगा। वे वयोवृद्ध तो थे ही, सहसा व्यथित एवं अचेत होकर रथके पिछले भागमें बैठ गये॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गुरुं प्रव्यथितं दृष्ट्‌वा राजा दुर्योधनः स्वयम्।
द्रौणायनिश्च संक्रुद्धौ भीमसेनमभिद्रुतौ ॥ २० ॥

मूलम्

गुरुं प्रव्यथितं दृष्ट्‌वा राजा दुर्योधनः स्वयम्।
द्रौणायनिश्च संक्रुद्धौ भीमसेनमभिद्रुतौ ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आचार्य द्रोणको व्यथासे पीड़ित देख स्वयं राजा दुर्योधन और अश्वत्थामा दोनों अत्यन्त कुपित हो भीमसेनपर टूट पड़े॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावापतन्तौ सम्प्रेक्ष्य कालान्तकयमोपमौ ।
भीमसेनो महाबाहुर्गदामादाय सत्वरम् ॥ २१ ॥
अवप्लुत्य रथात् तूर्णं तस्थौ गिरिरिवाचलः।

मूलम्

तावापतन्तौ सम्प्रेक्ष्य कालान्तकयमोपमौ ।
भीमसेनो महाबाहुर्गदामादाय सत्वरम् ॥ २१ ॥
अवप्लुत्य रथात् तूर्णं तस्थौ गिरिरिवाचलः।

अनुवाद (हिन्दी)

प्रलयकालीन यमराजके समान भयंकर उन दोनों महारथियोंको आक्रमण करते देख महाबाहु भीमसेनने तुरंत ही गदा हाथमें ले ली और वे रथसे कूदकर पर्वतके समान अविचल भावसे खड़े हो गये॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समुद्यम्य गदां गुर्वीं यमदण्डोपमां रणे ॥ २२ ॥
तमुद्यतगदं दृष्ट्‌वा कैलासमिव शृङ्गिणम्।
कौरवो द्रोणपुत्रश्च सहितावभ्यधावताम् ॥ २३ ॥

मूलम्

समुद्यम्य गदां गुर्वीं यमदण्डोपमां रणे ॥ २२ ॥
तमुद्यतगदं दृष्ट्‌वा कैलासमिव शृङ्गिणम्।
कौरवो द्रोणपुत्रश्च सहितावभ्यधावताम् ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने हाथमें जो भारी गदा उठायी थी, वह रणभूमिमें यमदण्डके समान भयानक जान पड़ती थी। शृंगधारी कैलास पर्वतके समान ऊपर गदा उठाये हुए भीमसेनको देखकर दुर्योधन और अश्वत्थामाने एक साथ उनपर धावा किया॥२२-२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावापतन्तौ सहितौ त्वरितौ बलिनां वरौ।
अभ्यधावत वेगेन त्वरमाणो वृकोदरः ॥ २४ ॥

मूलम्

तावापतन्तौ सहितौ त्वरितौ बलिनां वरौ।
अभ्यधावत वेगेन त्वरमाणो वृकोदरः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बलवानोंमें श्रेष्ठ उन दोनों वीरोंको एक साथ शीघ्रतापूर्वक आते देख भीमसेन भी उतावले होकर बड़े वेगसे उनकी ओर बढ़े॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य संक्रुद्धं भीमदर्शनम्।
समभ्यधावंस्त्वरिताः कौरवाणां महारथाः ॥ २५ ॥

मूलम्

तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य संक्रुद्धं भीमदर्शनम्।
समभ्यधावंस्त्वरिताः कौरवाणां महारथाः ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

क्रोधमें भरकर भयंकर दिखायी देनेवाले भीमसेनको देखकर कौरव महारथी बड़ी उतावलीके साथ उनकी ओर दौड़े॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भारद्वाजमुखाः सर्वे भीमसेनजिघांसया ।
नानाविधानि शस्त्राणि भीमस्योरस्यपातयन् ॥ २६ ॥

मूलम्

भारद्वाजमुखाः सर्वे भीमसेनजिघांसया ।
नानाविधानि शस्त्राणि भीमस्योरस्यपातयन् ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

द्रोणाचार्य आदि सभी योद्धा भीमसेनके वधकी इच्छासे उनकी छातीपर नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंका प्रहार करने लगे॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहिताः पाण्डवं सर्वे पीडयन्तः समन्ततः।
तं दृष्ट्‌वा संशयं प्राप्तं पीड्यमानं महारथम् ॥ २७ ॥
अभिमन्युप्रभृतयः पाण्डवानां महारथाः ।
अभ्यधावन् परीप्सन्तः प्राणांस्त्यक्त्वा सुदुस्त्यजान् ॥ २८ ॥

मूलम्

सहिताः पाण्डवं सर्वे पीडयन्तः समन्ततः।
तं दृष्ट्‌वा संशयं प्राप्तं पीड्यमानं महारथम् ॥ २७ ॥
अभिमन्युप्रभृतयः पाण्डवानां महारथाः ।
अभ्यधावन् परीप्सन्तः प्राणांस्त्यक्त्वा सुदुस्त्यजान् ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे सब एक साथ होकर चारों ओरसे पाण्डुकुमार भीमसेनको पीड़ा देने लगे। महारथी भीमसेनको पीड़ित और उनके प्राणोंको संकटमें पड़ा देख अभिमन्यु आदि पाण्डव महारथी अपने दुस्त्यज प्राणोंका मोह छोड़कर उनकी रक्षाके लिये दौड़े आये॥२७-२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनूपाधिपतिः शूरो भीमस्य दयितः सखा।
नीलो नीलाम्बुदप्रख्यः संक्रुद्धो दौणिमभ्ययात् ॥ २९ ॥

मूलम्

अनूपाधिपतिः शूरो भीमस्य दयितः सखा।
नीलो नीलाम्बुदप्रख्यः संक्रुद्धो दौणिमभ्ययात् ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अनूप देशका शूरवीर राजा नील भीमसेनका प्रिय सखा था। उसकी अंगकान्ति श्याम मेघके समान सुन्दर थी। उसने अत्यन्त कुपित होकर अश्वत्थामापर आक्रमण किया॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्पर्धते हि महेष्वासो नित्यं द्रोणसुतेन सः।
स विस्फार्य महच्चापं द्रौणिं विव्याध पत्रिणा ॥ ३० ॥
यथा शक्रो महाराज पुरा विव्याध दानवम्।
विप्रचित्तिं दुराधर्षं देवतानां भयंकरम् ॥ ३१ ॥
येन लोकत्रयं क्रोधात् त्रासितं स्वेन तेजसा।

मूलम्

स्पर्धते हि महेष्वासो नित्यं द्रोणसुतेन सः।
स विस्फार्य महच्चापं द्रौणिं विव्याध पत्रिणा ॥ ३० ॥
यथा शक्रो महाराज पुरा विव्याध दानवम्।
विप्रचित्तिं दुराधर्षं देवतानां भयंकरम् ॥ ३१ ॥
येन लोकत्रयं क्रोधात् त्रासितं स्वेन तेजसा।

अनुवाद (हिन्दी)

वह महाधनुर्धर वीर प्रतिदिन द्रोणपुत्र अश्वत्थामाके साथ स्पर्धा रखता था। महाराज! उसने अपने विशाल धनुषको खींचकर एक पंखयुक्त बाणसे अश्वत्थामाको उसी प्रकार घायल कर दिया, जैसे इन्द्रने पूर्वकालमें देवताओंके लिये भयंकर विप्रचित्ति नामक दुर्धर्ष दानवको घायल किया था, उस दानवने अपने क्रोध एवं तेजसे तीनों लोकोंको भयभीत कर रखा था॥३०-३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा नीलेन निर्भिन्नः सुमुक्तेन पतत्त्रिणा ॥ ३२ ॥
संजातरुधिरोत्पीडो द्रौणिः क्रोधसमन्वितः ।

मूलम्

तथा नीलेन निर्भिन्नः सुमुक्तेन पतत्त्रिणा ॥ ३२ ॥
संजातरुधिरोत्पीडो द्रौणिः क्रोधसमन्वितः ।

अनुवाद (हिन्दी)

नीलके छोड़े हुए उस पंखयुक्त बाणसे विदीर्ण होकर अश्वत्थामाके शरीरसे रक्तका प्रवाह बह चला। इससे अश्वत्थामाको बड़ा क्रोध हुआ॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स विस्फार्य धनुश्चित्रमिन्द्राशनिसमस्वनम् ॥ ३३ ॥
दध्रे नीलविनाशाय मतिं मतिमतां वरः।

मूलम्

स विस्फार्य धनुश्चित्रमिन्द्राशनिसमस्वनम् ॥ ३३ ॥
दध्रे नीलविनाशाय मतिं मतिमतां वरः।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ अश्वत्थामाने इन्द्रके वज्रकी भाँति भयंकर टंकार करनेवाले अपने विचित्र धनुषको खींचकर नीलको मार डालनेका विचार किया॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः संधाय विमलान् भल्लान् कर्मारमार्जितान् ॥ ३४ ॥
जघान चतुरो वाहान् सारथिं ध्वजमेव च।
सप्तमेन च भल्लेन नीलं विव्याध वक्षसि ॥ ३५ ॥

मूलम्

ततः संधाय विमलान् भल्लान् कर्मारमार्जितान् ॥ ३४ ॥
जघान चतुरो वाहान् सारथिं ध्वजमेव च।
सप्तमेन च भल्लेन नीलं विव्याध वक्षसि ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् उसने लोहारके माँजे हुए सात चमकीले भल्लोंको धनुषपर रखकर चलाया। उनमेंसे चारके द्वारा उसने नीलके चारों घोड़ोंको और पाँचवेंसे सारथिको मार डाला। छठेसे ध्वजको काट गिराया और सातवें भल्लसे नीलकी छातीमें प्रहार किया॥३४-३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स गाढविद्धो व्यथितो रथोपस्थ उपाविशत्।
मोहितं वीक्ष्य राजानं नीलमभ्रचयोपमम् ॥ ३६ ॥
घटोत्कचोऽभिसंक्रुद्धो ज्ञातिभिः परिवारितः ।
अभिदुद्राव वेगेन द्रौणिमाहवशोभिनम् ॥ ३७ ॥
तथेतरे चाभ्यधावन् राक्षसा युद्धदुर्मदाः।

मूलम्

स गाढविद्धो व्यथितो रथोपस्थ उपाविशत्।
मोहितं वीक्ष्य राजानं नीलमभ्रचयोपमम् ॥ ३६ ॥
घटोत्कचोऽभिसंक्रुद्धो ज्ञातिभिः परिवारितः ।
अभिदुद्राव वेगेन द्रौणिमाहवशोभिनम् ॥ ३७ ॥
तथेतरे चाभ्यधावन् राक्षसा युद्धदुर्मदाः।

अनुवाद (हिन्दी)

उस बाणसे अधिक घायल हो जानेके कारण वे व्यथित हो रथके पिछले भागमें बैठ गये। नील मेघसमूहके समान श्याम वर्णवाले राजा नीलको अचेत हुआ देख अपने भाई-बन्धुओंसे घिरा हुआ घटोत्कच अत्यन्त कुपित हो युद्धमें शोभा पानेवाले अश्वत्थामाकी ओर बड़े वेगसे दौड़ा। उसके साथ ही दूसरे-दूसरे रणदुर्मद राक्षसोंने भी उसपर धावा किया॥३६-३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य राक्षसं घोरदर्शनम् ॥ ३८ ॥
अभ्यधावत तेजस्वी भारद्वाजात्मजस्त्वरन् ।

मूलम्

तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य राक्षसं घोरदर्शनम् ॥ ३८ ॥
अभ्यधावत तेजस्वी भारद्वाजात्मजस्त्वरन् ।

अनुवाद (हिन्दी)

देखनेमें अत्यन्त भयंकर राक्षस घटोत्कचको धावा करते देख तेजस्वी अश्वत्थामाने बड़ी उतावलीके साथ उसपर आक्रमण किया॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निजघान च संक्रुद्धो राक्षसान् भीमदर्शनान् ॥ ३९ ॥
येऽभवन्नग्रतः क्रुद्धा राक्षसस्य पुरःसराः।

मूलम्

निजघान च संक्रुद्धो राक्षसान् भीमदर्शनान् ॥ ३९ ॥
येऽभवन्नग्रतः क्रुद्धा राक्षसस्य पुरःसराः।

अनुवाद (हिन्दी)

उसने कुपित हो उन भयंकर राक्षसोंको मारना आरम्भ किया, जो घटोत्कचके आगे खड़े होकर क्रोधपूर्वक युद्ध कर रहे थे॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विमुखांश्चैव तान्‌ दृष्ट्‌वा द्रौणिचापच्युतैःशरैः ॥ ४० ॥
अक्रुद्ध्यत महाकायो भैमसेनिर्घटोत्कचः ।

मूलम्

विमुखांश्चैव तान्‌ दृष्ट्‌वा द्रौणिचापच्युतैःशरैः ॥ ४० ॥
अक्रुद्ध्यत महाकायो भैमसेनिर्घटोत्कचः ।

अनुवाद (हिन्दी)

अश्वत्थामाके धनुषसे छूटे हुए बाणोंद्वारा घायल हो उन राक्षसोंको भागते देख विशालकाय भीमसेनकुमार घटोत्कच कुपित हो उठा॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रादुश्चक्रे ततो मायां घोररूपां सुदारुणाम् ॥ ४१ ॥
मोहयन् समरे द्रौणिं मायावी राक्षसाधिपः।

मूलम्

प्रादुश्चक्रे ततो मायां घोररूपां सुदारुणाम् ॥ ४१ ॥
मोहयन् समरे द्रौणिं मायावी राक्षसाधिपः।

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् उस मायावी राक्षसराजने समरांगणमें अश्वत्थामाको मोहित करते हुए अत्यन्त दारुण घोर माया प्रकट की॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्ते तावकाः सर्वे मायया विमुखीकृताः ॥ ४२ ॥
अन्योन्यं समपश्यन्त निकृत्ता मेदिनीतले।
विचेष्टमानाः कृपणाः शोणितेन परिप्लुताः ॥ ४३ ॥
द्रोणं दुर्योधनं शल्यमश्वत्थामानमेव च।
प्रायशश्च महेष्वासा ये प्रधानाः स्म कौरवाः ॥ ४४ ॥
विध्वस्ता रथिनः सर्वे राजानश्च निपातिताः।
हयाश्चैव हयारोहाः संनिकृत्ताः सहस्रशः ॥ ४५ ॥

मूलम्

ततस्ते तावकाः सर्वे मायया विमुखीकृताः ॥ ४२ ॥
अन्योन्यं समपश्यन्त निकृत्ता मेदिनीतले।
विचेष्टमानाः कृपणाः शोणितेन परिप्लुताः ॥ ४३ ॥
द्रोणं दुर्योधनं शल्यमश्वत्थामानमेव च।
प्रायशश्च महेष्वासा ये प्रधानाः स्म कौरवाः ॥ ४४ ॥
विध्वस्ता रथिनः सर्वे राजानश्च निपातिताः।
हयाश्चैव हयारोहाः संनिकृत्ताः सहस्रशः ॥ ४५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब उस मायासे डरकर आपके सभी सैनिक युद्धसे विमुख हो गये। उन्होंने एक-दूसरेको तथा द्रोण, दुर्योधन, शल्य और अश्वत्थामाको भी इस प्रकार देखा—सब-के-सब छिन्न-भिन्न हो पृथ्वीपर गिरकर छटपटा रहे हैं और खूनसे लथपथ होकर दयनीय दशाको पहुँच गये हैं। कौरवोंमें जो महान् धनुर्धर एवं प्रधान वीर हैं, प्रायः वे सभी रथी विध्वंसको प्राप्त हो गये हैं। सब राजा मार गिराये गये हैं तथा हजारों घोड़े और घुड़सवार टुकड़े-टुकड़े होकर पड़े हैं॥४२—४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तद् दृष्ट्‌वा तावकं सैन्यं विद्रुतं शिबिरं प्रति।
मम प्राक्रोशतो राजंस्तथा देवव्रतस्य च ॥ ४६ ॥
युध्यध्वं मा पलायध्वं मायैषा राक्षसी रणे।
घटोत्कचप्रमुक्तेति नातिष्ठन्त विमोहिताः ॥ ४७ ॥

मूलम्

तद् दृष्ट्‌वा तावकं सैन्यं विद्रुतं शिबिरं प्रति।
मम प्राक्रोशतो राजंस्तथा देवव्रतस्य च ॥ ४६ ॥
युध्यध्वं मा पलायध्वं मायैषा राक्षसी रणे।
घटोत्कचप्रमुक्तेति नातिष्ठन्त विमोहिताः ॥ ४७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह सब देखकर आपकी सेना शिविरकी ओर भाग चली। राजन्! उस समय मैं और देवव्रत भीष्म भी पुकार-पुकारकर कह रहे थे—‘वीरो! युद्ध करो। भागो मत। रणभूमिमें तुम जो कुछ देख रहे हो, वह घटोत्कचद्वारा छोड़ी हुई राक्षसी माया है।’ परंतु वे अचेत होनेके कारण ठहर न सके॥४६-४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नैव ते श्रद्दधुर्भीता वदतोरावयोर्वचः।
तांश्च प्रद्रवतो दृष्ट्‌वा जयं प्राप्ताश्च पाण्डवाः ॥ ४८ ॥
घटोत्कचेन सहिताः सिंहनादान् प्रचक्रिरे।

मूलम्

नैव ते श्रद्दधुर्भीता वदतोरावयोर्वचः।
तांश्च प्रद्रवतो दृष्ट्‌वा जयं प्राप्ताश्च पाण्डवाः ॥ ४८ ॥
घटोत्कचेन सहिताः सिंहनादान् प्रचक्रिरे।

अनुवाद (हिन्दी)

वे इतने डर गये थे कि हम दोनोंकी बातोंपर विश्वास नहीं करते थे। उन्हें भागते देख विजयी पाण्डव घटोत्कचके साथ सिंहनाद करने लगे॥४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शङ्खदुन्दुभिनिर्घोषैः समन्तान्नेदिरे भृशम् ॥ ४९ ॥
एवं तव बलं सर्वं हैडिम्बेन दुरात्मना।
सूर्यास्तमनवेलायां प्रभग्नं विद्रुतं दिशः ॥ ५० ॥

मूलम्

शङ्खदुन्दुभिनिर्घोषैः समन्तान्नेदिरे भृशम् ॥ ४९ ॥
एवं तव बलं सर्वं हैडिम्बेन दुरात्मना।
सूर्यास्तमनवेलायां प्रभग्नं विद्रुतं दिशः ॥ ५० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

चारों ओर शंख और दुन्दुभि आदि बाजे जोर-जोरसे बजने लगे। इस प्रकार सूर्यास्तके समय दुरात्मा घटोत्कचसे खदेड़ी गयी आपकी सारी सेना सम्पूर्ण दिशाओंमें भाग गयी॥४९-५०॥

Misc Detail

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि अष्टमयुद्धदिवसे घटोत्कचयुद्धे चतुर्नवतितमोऽध्यायः ॥ ९४ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें आठवें दिनके युद्धमें घटोत्कचका युद्धविषयक चौरानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥९४॥