भागसूचना
त्रिनवतितमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
घटोत्कचकी रक्षाके लिये आये हुए भीम आदि शूरवीरोंके साथ कौरवोंका युद्ध और उनका पलायन
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
विमुखीकृत्य सर्वांस्तु तावकान् युधि राक्षसः।
जिघांसुर्भरतश्रेष्ठ दुर्योधनमुपाद्रवत् ॥ १ ॥
मूलम्
विमुखीकृत्य सर्वांस्तु तावकान् युधि राक्षसः।
जिघांसुर्भरतश्रेष्ठ दुर्योधनमुपाद्रवत् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— भरतश्रेष्ठ! वह राक्षस युद्धस्थलमें आपके समस्त सैनिकोंको संग्रामसे विमुख करके दुर्योधनको मार डालनेकी इच्छा रखकर उसकी ओर दौड़ा॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य राजानं प्रति वेगितम्।
अभ्यधावञ्जिघांसन्तस्तावका युद्धदुर्मदाः ॥ २ ॥
मूलम्
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य राजानं प्रति वेगितम्।
अभ्यधावञ्जिघांसन्तस्तावका युद्धदुर्मदाः ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसे राजा दुर्योधनकी ओर बड़े वेगसे आते देख आपके रणदुर्मद पुत्र और सैनिक मार डालनेकी इच्छासे उसकी ओर दौड़े॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तालमात्राणि चापानि विकर्षन्तो महारथाः।
तमेकमभ्यधावन्त नदन्तः सिंहसंघवत् ॥ ३ ॥
मूलम्
तालमात्राणि चापानि विकर्षन्तो महारथाः।
तमेकमभ्यधावन्त नदन्तः सिंहसंघवत् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन सभी महारथियोंने चार-चार हाथके धनुष खींचते और सिंहोंके समुदायकी भाँति गर्जना करते हुए उस एकमात्र योद्धा घटोत्कचपर धावा किया॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथैनं शरवर्षेण समन्तात् पर्यवाकिरन्।
पर्वतं वारिधाराभिः शरदीव बलाहकाः ॥ ४ ॥
मूलम्
अथैनं शरवर्षेण समन्तात् पर्यवाकिरन्।
पर्वतं वारिधाराभिः शरदीव बलाहकाः ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जैसे शरद्ऋतुमें बादल पर्वतके शिखरपर जलकी धाराएँ गिराते हैं, उसी प्रकार उन सब कौरव वीरोंने चारों ओरसे घटोत्कचपर बाणोंकी वर्षा प्रारम्भ कर दी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स गाढविद्धो व्यथितस्तोत्रार्दित इव द्विपः।
उत्पपात तदाऽऽकाशं समन्ताद् वैनतेयवत् ॥ ५ ॥
मूलम्
स गाढविद्धो व्यथितस्तोत्रार्दित इव द्विपः।
उत्पपात तदाऽऽकाशं समन्ताद् वैनतेयवत् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय उन बाणोंके गहरे आघातसे वह अंकुशकी मार खाये हुए हाथीकी भाँति व्यथित हो उठा और तुरंत ही गरुड़के समान आकाशमें सब ओर उड़ने लगा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
व्यनदत् सुमहानादं जीमूत इव शारदः।
दिशः खं विदिशश्चैव नादयन् भैरवस्वनः ॥ ६ ॥
मूलम्
व्यनदत् सुमहानादं जीमूत इव शारदः।
दिशः खं विदिशश्चैव नादयन् भैरवस्वनः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आकाशमें स्थित होकर शरद्ऋतुके बादलकी भाँति वह अपने भयंकर स्वरसे अन्तरिक्ष, दिशाओं तथा विदिशाओंको गुँजाता हुआ जोर-जोरसे गर्जना करने लगा॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राक्षसस्य तु तं शब्दं श्रुत्वा राजा युधिष्ठिरः।
उवाच भरतश्रेष्ठ भीमसेनमरिंदमम् ॥ ७ ॥
मूलम्
राक्षसस्य तु तं शब्दं श्रुत्वा राजा युधिष्ठिरः।
उवाच भरतश्रेष्ठ भीमसेनमरिंदमम् ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! राक्षस घटोत्कचकी उस गर्जनाको सुनकर राजा युधिष्ठिरने शत्रुदमन भीमसेनसे इस प्रकार कहा—॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
युध्यते राक्षसो नूनं धार्तराष्ट्रैर्महारथैः।
यथास्य श्रूयते शब्दो नदतो भैरवं स्वनम् ॥ ८ ॥
मूलम्
युध्यते राक्षसो नूनं धार्तराष्ट्रैर्महारथैः।
यथास्य श्रूयते शब्दो नदतो भैरवं स्वनम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘राक्षस घटोत्कच कौरव महारथियोंसे निश्चय ही युद्ध कर रहा है। भैरवनाद करते हुए उस राक्षसका जैसा शब्द सुनायी देता है, उससे यही जान पड़ता है॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अतिभारं च पश्यामि तस्मिन् राक्षसपुङ्गवे।
पितामहश्च संक्रुद्धः पञ्चालान् हन्तुमुद्यतः ॥ ९ ॥
मूलम्
अतिभारं च पश्यामि तस्मिन् राक्षसपुङ्गवे।
पितामहश्च संक्रुद्धः पञ्चालान् हन्तुमुद्यतः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘मैं उस राक्षसशिरोमणिपर बहुत बड़ा भार देख रहा हूँ। उधर पितामह भीष्म भी अत्यन्त क्रोधमें भरकर पांचालोंको मार डालनेके लिये उद्यत हैं॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां च रक्षणार्थाय युध्यते फाल्गुनः परैः।
एतज्ज्ञात्वा महाबाहो कार्यद्वयमुपस्थितम् ॥ १० ॥
गच्छ रक्षस्व हैडिम्बं संशयं परमं गतम्।
मूलम्
तेषां च रक्षणार्थाय युध्यते फाल्गुनः परैः।
एतज्ज्ञात्वा महाबाहो कार्यद्वयमुपस्थितम् ॥ १० ॥
गच्छ रक्षस्व हैडिम्बं संशयं परमं गतम्।
अनुवाद (हिन्दी)
‘उनकी रक्षाके लिये अर्जुन शत्रुओंसे युद्ध करते हैं। महाबाहो! अपने ऊपर दो कार्य उपस्थित हैं, ऐसा जानकर तुम जाओ और अत्यन्त संशयमें पड़े हुए हिडिम्बाकुमारकी रक्षा करो’॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भ्रातुर्वचनमाज्ञाय त्वरमाणो वृकोदरः ॥ ११ ॥
प्रययौ सिंहनादेन त्रासयन् सर्वपार्थिवान्।
मूलम्
भ्रातुर्वचनमाज्ञाय त्वरमाणो वृकोदरः ॥ ११ ॥
प्रययौ सिंहनादेन त्रासयन् सर्वपार्थिवान्।
अनुवाद (हिन्दी)
भाईकी यह आज्ञा मानकर भीमसेन सिंहनादसे सम्पूर्ण नरेशोंको भयभीत करते हुए बड़ी उतावलीके साथ वहाँसे चल दिये॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वेगेन महता राजन् पर्वकाले यथोदधिः ॥ १२ ॥
तमन्वगात् सत्यधृतिः सौचित्तिर्युद्धदुर्मदः ।
श्रेणिमान् वसुदानश्च पुत्रः काश्यस्य चाभिभूः ॥ १३ ॥
अभिमन्युमुखाश्चैव द्रौपदेया महारथाः ।
क्षत्रदेवश्च विक्रान्तः क्षत्रधर्मा तथैव च ॥ १४ ॥
अनूपाधिपतिश्चैव नीलः स्वबलमास्थितः ।
महता रथवंशेन हैडिम्बं पर्यवारयन् ॥ १५ ॥
मूलम्
वेगेन महता राजन् पर्वकाले यथोदधिः ॥ १२ ॥
तमन्वगात् सत्यधृतिः सौचित्तिर्युद्धदुर्मदः ।
श्रेणिमान् वसुदानश्च पुत्रः काश्यस्य चाभिभूः ॥ १३ ॥
अभिमन्युमुखाश्चैव द्रौपदेया महारथाः ।
क्षत्रदेवश्च विक्रान्तः क्षत्रधर्मा तथैव च ॥ १४ ॥
अनूपाधिपतिश्चैव नीलः स्वबलमास्थितः ।
महता रथवंशेन हैडिम्बं पर्यवारयन् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जैसे पूर्णिमाको समुद्र बड़े वेगसे बढ़ता है, उसी प्रकार भीमसेन अत्यन्त वेगसे आगे बढ़े। उनके पीछे सत्यधृति, रणदुर्मद सौचित्ति, श्रेणिमान्, वसुदान, काशिराजके पुत्र अभिभू, अभिमन्यु आदि योद्धा, द्रौपदीके पाँचों महारथी पुत्र, पराक्रमी क्षत्रदेव, क्षत्रधर्मा, अनूपदेशके राजा नील, जिन्हें अपने बलका पूरा भरोसा था—इन सब वीरोंने विशाल रथसेनाके साथ हिडिम्बाकुमार घटोत्कचको सब ओरसे घेर लिया॥१२—१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कुञ्जरैश्च सदा मत्तैः षट्सहस्रैः प्रहारिभिः।
अभ्यरक्षन्त सहिता राक्षसेन्द्रं घटोत्कचम् ॥ १६ ॥
मूलम्
कुञ्जरैश्च सदा मत्तैः षट्सहस्रैः प्रहारिभिः।
अभ्यरक्षन्त सहिता राक्षसेन्द्रं घटोत्कचम् ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सदा उन्मत्त रहनेवाले, प्रहारकुशल छः हजार गजराजोंके साथ आकर उपर्युक्त वीरोंने एक साथ ही राक्षसराज घटोत्कचकी रक्षा की॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सिंहनादेन महता नेमिघोषेण चैव ह।
खुरशब्दनिपातैश्च कम्पयन्तो वसुन्धराम् ॥ १७ ॥
मूलम्
सिंहनादेन महता नेमिघोषेण चैव ह।
खुरशब्दनिपातैश्च कम्पयन्तो वसुन्धराम् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे महान् सिंहनाद, रथके पहियोंकी घरघराहट और घोड़ोंकी टाप पड़नेसे होनेवाले महान् शब्दके द्वारा वसुधाको कम्पित कर रहे थे॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषामापततां श्रुत्वा शब्दं तं तावकं बलम्।
भीमसेनभयोद्विग्नं विवर्णवदनं तथा ॥ १८ ॥
मूलम्
तेषामापततां श्रुत्वा शब्दं तं तावकं बलम्।
भीमसेनभयोद्विग्नं विवर्णवदनं तथा ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन सबके आनेसे जो कोलाहल हुआ, उसे सुनकर भीमसेनके भयसे उद्विग्न हुए आपके सैनिकोंका मुख उदास हो गया॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
परिवृत्तं महाराज परित्यज्य घटोत्कचम्।
ततः प्रववृते युद्धं तत्र तेषां महात्मनाम् ॥ १९ ॥
तावकानां परेषां च संग्रामेष्वनिवर्तिनाम्।
मूलम्
परिवृत्तं महाराज परित्यज्य घटोत्कचम्।
ततः प्रववृते युद्धं तत्र तेषां महात्मनाम् ॥ १९ ॥
तावकानां परेषां च संग्रामेष्वनिवर्तिनाम्।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! उस समय रक्षकोंद्वारा सब ओरसे घिरे हुए घटोत्कचको छोड़कर संग्राममें कभी पीठ न दिखानेवाले आपके तथा शत्रुपक्षके उन महामनस्वी योद्धाओंमें भारी युद्ध छिड़ गया॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नानारूपाणि शस्त्राणि विसृजन्तो महारथाः ॥ २० ॥
अन्योन्यमभिधावन्तः सम्प्रहारं प्रचक्रिरे ।
मूलम्
नानारूपाणि शस्त्राणि विसृजन्तो महारथाः ॥ २० ॥
अन्योन्यमभिधावन्तः सम्प्रहारं प्रचक्रिरे ।
अनुवाद (हिन्दी)
नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंको छोड़ते और एक-दूसरेकी ओर दौड़ते हुए उभय पक्षके महारथी भीषण युद्ध करने लगे॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
व्यतिषक्तं महारौद्रं युद्धं भीरुभयावहम् ॥ २१ ॥
हया गजैः समाजग्मुः पादाता रथिभिः सह।
मूलम्
व्यतिषक्तं महारौद्रं युद्धं भीरुभयावहम् ॥ २१ ॥
हया गजैः समाजग्मुः पादाता रथिभिः सह।
अनुवाद (हिन्दी)
धीरे-धीरे अत्यन्त भयंकर युद्ध छिड़ गया, जो भीरु मनुष्योंको डरानेवाला था। घुड़सवार हाथीसवारोंके और पैदल रथियोंके साथ भिड़ गये॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अन्योन्यं समरे राजन् प्रार्थयानाः समभ्ययुः ॥ २२ ॥
सहसा चाभवत् तीव्रं संनिपातान्महद् रजः।
गजाश्वरथपत्तीनां पदनेमिसमुद्धतम् ॥ २३ ॥
मूलम्
अन्योन्यं समरे राजन् प्रार्थयानाः समभ्ययुः ॥ २२ ॥
सहसा चाभवत् तीव्रं संनिपातान्महद् रजः।
गजाश्वरथपत्तीनां पदनेमिसमुद्धतम् ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! वे समरांगणमें एक-दूसरेको ललकारते हुए जूझ रहे थे। उस समय उस भीषण संघर्षसे सहसा बड़े जोरकी धूल उठी, जो हाथी, घोड़े और पैदलोंके पैरों तथा रथके पहियोंके धक्केसे उठायी गयी थी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धूम्रारुणं रजस्तीव्रं रणभूमिं समावृणोत्।
नैव स्वे न परे राजन् समजानम् परस्परम् ॥ २४ ॥
मूलम्
धूम्रारुणं रजस्तीव्रं रणभूमिं समावृणोत्।
नैव स्वे न परे राजन् समजानम् परस्परम् ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! काले और लाल रंगकी उस दुःसह धूलने समस्त रणभूमिको ढक लिया। उस समय अपने और शत्रुपक्षके योद्धा एक-दूसरेको पहचान नहीं पाते थे॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पिता पुत्रं न जानीते पुत्रो वा पितरं तथा।
निर्मर्यादे तथाभूते वैशसे लोमहर्षणे ॥ २५ ॥
मूलम्
पिता पुत्रं न जानीते पुत्रो वा पितरं तथा।
निर्मर्यादे तथाभूते वैशसे लोमहर्षणे ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस मर्यादाशून्य रोमांचकारी जनसंहारमें पिता पुत्रको और पुत्र पिताको नहीं पहचान पाता था॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शस्त्राणां भरतश्रेष्ठ मनुष्याणां च गर्जताम्।
सुमहानभवच्छब्दः प्रेतानामिव भारत ॥ २६ ॥
मूलम्
शस्त्राणां भरतश्रेष्ठ मनुष्याणां च गर्जताम्।
सुमहानभवच्छब्दः प्रेतानामिव भारत ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! शस्त्रोंके आघात और मनुष्योंकी गर्जनाका महान् शब्द भूत-प्रेतोंकी गर्जनाके समान जान पड़ता था॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गजवाजिमनुष्याणां शोणितान्त्रतरङ्गिणी ।
प्रावर्तत नदी तत्र केशशैवलशाद्वला ॥ २७ ॥
मूलम्
गजवाजिमनुष्याणां शोणितान्त्रतरङ्गिणी ।
प्रावर्तत नदी तत्र केशशैवलशाद्वला ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हाथी, घोड़े और मनुष्योंके रक्त और आँतोंकी एक भयंकर नदी बह चली, जिसमें केश सेवार और घासके समान जान पड़ते थे॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नराणां चैव कायेभ्यः शिरसां पततां रणे।
शुश्रुवे सुमहाञ्छब्दः पततामश्मनामिव ॥ २८ ॥
मूलम्
नराणां चैव कायेभ्यः शिरसां पततां रणे।
शुश्रुवे सुमहाञ्छब्दः पततामश्मनामिव ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मनुष्योंके शरीरोंसे रणभूमिमें कटकर गिरते हुए मस्तकोंका महान् शब्द पत्थरोंकी वर्षाके समान जान पड़ता था॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विशिरस्कैर्मनुष्यैश्च च्छिन्नगात्रैश्च वारणैः ।
अश्वैः सम्भिन्नदेहैश्च संकीर्णाभूद् वसुन्धरा ॥ २९ ॥
मूलम्
विशिरस्कैर्मनुष्यैश्च च्छिन्नगात्रैश्च वारणैः ।
अश्वैः सम्भिन्नदेहैश्च संकीर्णाभूद् वसुन्धरा ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बिना सिरके मनुष्यों, कटे हुए अंगोंवाले हाथियों तथा छिन्न-भिन्न शरीरवाले घोड़ोंसे वहाँकी सारी भूमि पट गयी थी॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नानाविधानि शस्त्राणि विसृजन्तो महारथाः।
अन्योन्यमभिधावन्तः सम्प्रहारार्थमुद्यताः ॥ ३० ॥
मूलम्
नानाविधानि शस्त्राणि विसृजन्तो महारथाः।
अन्योन्यमभिधावन्तः सम्प्रहारार्थमुद्यताः ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नाना प्रकारके शस्त्रोंको चलाते और एक-दूसरेकी ओर दौड़ते हुए महारथी सर्वथा युद्धके लिये उद्यत थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हया हयान् समासाद्य प्रेषिता हयसादिभिः।
समाहत्य रणेऽन्योन्यं निपेतुर्गतजीविताः ॥ ३१ ॥
मूलम्
हया हयान् समासाद्य प्रेषिता हयसादिभिः।
समाहत्य रणेऽन्योन्यं निपेतुर्गतजीविताः ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
घुड़सवारोंद्वारा प्रेरित हुए घोड़े घोड़ोंसे भिड़कर आपसमें टक्कर लेकर प्राणशून्य हो रणक्षेत्रमें गिर पड़ते थे॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नरा नरान् समासाद्य क्रोधरक्तेक्षणा भृशम्।
उरांस्युरोभिरन्योन्यं समाश्लिष्य निजघ्निरे ॥ ३२ ॥
मूलम्
नरा नरान् समासाद्य क्रोधरक्तेक्षणा भृशम्।
उरांस्युरोभिरन्योन्यं समाश्लिष्य निजघ्निरे ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मनुष्य मनुष्योंपर आक्रमण करके अत्यन्त क्रोधसे लाल आँखें किये छातीसे छाती भिड़ाकर एक-दूसरेको मारने लगे॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रेषिताश्च महामात्रैर्वारणाः परवारणैः।
अभ्यघ्नन्त विषाणाग्रैर्वारणानेव संयुगे ॥ ३३ ॥
मूलम्
प्रेषिताश्च महामात्रैर्वारणाः परवारणैः।
अभ्यघ्नन्त विषाणाग्रैर्वारणानेव संयुगे ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महावतोंके द्वारा आगे बढ़ाने हुए हाथी विपक्षी हाथियोंसे टक्कर लेकर युद्धस्थलमें अपने दाँतोंके अग्रभागसे हाथियोंपर ही चोट करते थे॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते जातरुधिरोत्पीडाः पताकाभिरलंकृताः ।
संसक्ताः प्रत्यदृश्यन्त मेघा इव सविद्युतः ॥ ३४ ॥
मूलम्
ते जातरुधिरोत्पीडाः पताकाभिरलंकृताः ।
संसक्ताः प्रत्यदृश्यन्त मेघा इव सविद्युतः ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय उनके मस्तकसे रक्तकी धारा बहने लगती थी। परस्पर भिड़े हुए वे हाथी पताकाओंसे अलंकृत होनेके कारण विद्युत्सहित मेघोंके समान दिखायी देते थे॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केचिद् भिन्ना विषाणाग्रैर्भिन्नकुम्भाश्च तोमरैः।
विनदन्तोऽभ्यधावन्त गर्जमाना घना इव ॥ ३५ ॥
मूलम्
केचिद् भिन्ना विषाणाग्रैर्भिन्नकुम्भाश्च तोमरैः।
विनदन्तोऽभ्यधावन्त गर्जमाना घना इव ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कितने ही हाथी दाँतोंके अग्रभागसे विदीर्ण हो रहे थे। कितनोंके कुम्भस्थल तोमरोंकी मारसे फट गये थे और वे गर्जते हुए बादलोंके समान चीत्कार करते हुए इधर-उधर भाग रहे थे॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केचिद्धस्तैर्द्विधा च्छिन्नैश्छिन्नगात्रास्तथापरे ।
निपेतुस्तुमुले तस्मिंश्छिन्नपक्षा इवाद्रयः ॥ ३६ ॥
मूलम्
केचिद्धस्तैर्द्विधा च्छिन्नैश्छिन्नगात्रास्तथापरे ।
निपेतुस्तुमुले तस्मिंश्छिन्नपक्षा इवाद्रयः ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
किन्हींकी सूँड़ोंके दो टुकड़े हो गये थे, किन्हींके सभी अंग छिन्न-भिन्न हो गये थे, ऐसे हाथी पंख कटे पर्वतोंके समान उस भयानक युद्धमें धड़ाधड़ गिर रहे थे॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पार्श्वैस्तु दारितैरन्ये वारणैर्वरवारणाः ।
मुमुचुः शोणितं भूरि धातूनिव महीधराः ॥ ३७ ॥
मूलम्
पार्श्वैस्तु दारितैरन्ये वारणैर्वरवारणाः ।
मुमुचुः शोणितं भूरि धातूनिव महीधराः ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बहुत-से श्रेष्ठ हाथी हाथियोंके आघातसे ही अपना पार्श्वभाग विदीर्ण हो जानेके कारण उसी प्रकार प्रचुरमात्रामें अपना रक्त बहा रहे थे, जैसे पर्वत गेरु आदि धातुओंसे मिश्रित झरने बहाते हों॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नाराचनिहतास्त्वन्ये तथा विद्धाश्च तोमरैः।
विनदन्तोऽभ्यधावन्त विशृंगा इव पर्वताः ॥ ३८ ॥
मूलम्
नाराचनिहतास्त्वन्ये तथा विद्धाश्च तोमरैः।
विनदन्तोऽभ्यधावन्त विशृंगा इव पर्वताः ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुछ हाथी नाराचोंसे घायल किये गये थे, कितनोंके शरीरोंमें तोमर धँसे हुए थे और वे सब-के-सब घोर चीत्कार करते हुए इधर-उधर दौड़ रहे थे। उस समय वे शृंगहीन पर्वतोंके समान जान पड़ते थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केचित् क्रोधसमाविष्टा मदान्धा निरवग्रहाः।
रथान् हयान् पदातींश्च ममृदुः शतशो रणे ॥ ३९ ॥
मूलम्
केचित् क्रोधसमाविष्टा मदान्धा निरवग्रहाः।
रथान् हयान् पदातींश्च ममृदुः शतशो रणे ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कितने ही मदान्ध गजराज क्रोधमें भरे होनेके कारण काबूमें नहीं आते थे। उन्होंने रणभूमिमें सैकड़ों रथों, घोड़ों और पैदल सिपाहियोंको पैरों तले रौंद डाला॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा हया हयारोहैस्ताडिताः प्रासतोमरैः।
तेन तेनाभ्यवर्तन्त कुर्वन्तो व्याकुला दिशः ॥ ४० ॥
मूलम्
तथा हया हयारोहैस्ताडिताः प्रासतोमरैः।
तेन तेनाभ्यवर्तन्त कुर्वन्तो व्याकुला दिशः ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार घुड़सवारोंद्वारा प्रास और तोमरोंकी मारसे घायल किये हुए घोड़े सम्पूर्ण दिशाओंको व्याकुल करते हुए इधर-उधर भाग रहे थे॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथिनो रथिभिः सार्धं कुलपुत्रास्तनुत्यजः।
परां शक्तिं समास्थाय चक्रुः कर्माण्यभीतवत् ॥ ४१ ॥
मूलम्
रथिनो रथिभिः सार्धं कुलपुत्रास्तनुत्यजः।
परां शक्तिं समास्थाय चक्रुः कर्माण्यभीतवत् ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कितने ही कुलीन रथी अपने शरीरोंको निछावर करके भारी-से-भारी शक्ति लगाकर विपक्षी रथियोंके साथ निर्भयकी भाँति महान् पराक्रम प्रकट कर रहे थे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्वयंवर इवामर्दे प्रजह्रुरितरेतरम् ।
प्रार्थयाना यशो राजन् स्वर्गं वा युद्धशालिनः ॥ ४२ ॥
मूलम्
स्वयंवर इवामर्दे प्रजह्रुरितरेतरम् ।
प्रार्थयाना यशो राजन् स्वर्गं वा युद्धशालिनः ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! युद्धमें शोभा पानेवाले वीर स्वर्ग अथवा यश पानेकी इच्छा रखकर स्वयंवरकी भाँति उस युद्धमें एक-दूसरेपर प्रहार कर रहे थे॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिंस्तथा वर्तमाने संग्रामे लोमहर्षणे।
धार्तराष्ट्रं महत् सैन्यं प्रायशो विमुखीकृतम् ॥ ४३ ॥
मूलम्
तस्मिंस्तथा वर्तमाने संग्रामे लोमहर्षणे।
धार्तराष्ट्रं महत् सैन्यं प्रायशो विमुखीकृतम् ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार चलनेवाले उस रोमांचकारी संग्राममें दुर्योधनकी विशाल सेना प्रायः युद्धसे विमुख होकर भाग गयी॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि संकुलयुद्धे त्रिनवतितमोऽध्यायः ॥ १३ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें संकुलयुद्धविषयक तिरानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥९३॥