भागसूचना
एकनवतितमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
घटोत्कच और दुर्योधनका भयानक युद्ध
मूलम् (वचनम्)
धृतराष्ट्र उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
इरावन्तं तु निहतं दृष्ट्वा पार्था महारथाः।
संग्रामे किमकुर्वन्त तन्ममाचक्ष्व संजय ॥ १ ॥
मूलम्
इरावन्तं तु निहतं दृष्ट्वा पार्था महारथाः।
संग्रामे किमकुर्वन्त तन्ममाचक्ष्व संजय ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृतराष्ट्रने पूछा— संजय! इरावान्को संग्राममें मारा गया देख महारथी कुन्तीपुत्रोंने क्या किया? यह मुझसे कहो॥१॥
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
इरावन्तं तु निहतं संग्रामे वीक्ष्य राक्षसः।
व्यनदत् सुमहानादं भैमसेनिर्घटोत्कचः ॥ २ ॥
मूलम्
इरावन्तं तु निहतं संग्रामे वीक्ष्य राक्षसः।
व्यनदत् सुमहानादं भैमसेनिर्घटोत्कचः ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय बोले— राजन्! इरावान्को युद्धभूमिमें मारा गया देख भीमसेनका पुत्र राक्षस घटोत्कच बड़े जोरसे सिंहनाद करने लगा॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नदतस्तस्य शब्देन पृथिवी सागराम्बरा।
सपर्वतवना राजंश्चचाल सुभृशं तदा ॥ ३ ॥
अन्तरिक्षं दिशश्चैव सर्वाश्च प्रदिशस्तथा।
मूलम्
नदतस्तस्य शब्देन पृथिवी सागराम्बरा।
सपर्वतवना राजंश्चचाल सुभृशं तदा ॥ ३ ॥
अन्तरिक्षं दिशश्चैव सर्वाश्च प्रदिशस्तथा।
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! उस राक्षसकी गर्जनासे समुद्र, आकाश, पर्वत और वनोंसहित यह सारी पृथ्वी जोर-जोरसे हिलने लगी। अन्तरिक्ष, दिशाएँ तथा समस्त कोणोंके प्रदेश भी काँपने लगे॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं श्रुत्वा सुमहानादं तव सैन्यस्य भारत ॥ ४ ॥
ऊरुस्तम्भः समभवद् वेपथुः स्वेद एव च।
मूलम्
तं श्रुत्वा सुमहानादं तव सैन्यस्य भारत ॥ ४ ॥
ऊरुस्तम्भः समभवद् वेपथुः स्वेद एव च।
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! घटोत्कचका महान् सिंहनाद सुनकर आपके सैनिकोंकी जाँघें अकड़ गयीं, शरीर काँपने लगा और सम्पूर्ण अंगोंसे पसीना निकलने लगा॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सर्व एव महाराज तावका दीनचेतसः ॥ ५ ॥
सर्वतः समचेष्टन्त सिंहभीता गजा इव।
मूलम्
सर्व एव महाराज तावका दीनचेतसः ॥ ५ ॥
सर्वतः समचेष्टन्त सिंहभीता गजा इव।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! आपके सभी सैनिक सब ओरसे दीन-चित्त हो सिंहसे डरे हुए हाथियोंकी भाँति भयपूर्ण चेष्टाएँ करने लगे॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नर्दित्वा सुमहानादं निर्घातमिव राक्षसः ॥ ६ ॥
ज्वलितं शूलमुद्यम्य रूपं कृत्वा विभीषणम्।
नानारूपप्रहरणैर्वृतो राक्षसपुङ्गवैः ॥ ७ ॥
आजघान सुसंक्रुद्धः कालान्तकयमोपमः ।
मूलम्
नर्दित्वा सुमहानादं निर्घातमिव राक्षसः ॥ ६ ॥
ज्वलितं शूलमुद्यम्य रूपं कृत्वा विभीषणम्।
नानारूपप्रहरणैर्वृतो राक्षसपुङ्गवैः ॥ ७ ॥
आजघान सुसंक्रुद्धः कालान्तकयमोपमः ।
अनुवाद (हिन्दी)
वज्रकी गड़गड़ाहटके समान भयंकर गर्जना करके काल, अन्तक और यमके समान क्रोधमें भरे हुए उस राक्षसने भीषणरूप बना प्रज्वलित त्रिशूल हाथमें ले भाँति-भाँतिके अस्त्र-शस्त्रोंसे सम्पन्न बड़े-बड़े राक्षसोंके साथ आकर आपकी सेनाका संहार आरम्भ किया॥६-७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य संक्रुद्धं भीमदर्शनम् ॥ ८ ॥
स्वबलं च भयात् तस्य प्रायशो विमुखीकृतम्।
मूलम्
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य संक्रुद्धं भीमदर्शनम् ॥ ८ ॥
स्वबलं च भयात् तस्य प्रायशो विमुखीकृतम्।
अनुवाद (हिन्दी)
अत्यन्त क्रोधमें भरे भयंकर दिखायी देनेवाले उस राक्षसको आक्रमण करते देख उसके भयसे अपनी सेना प्रायः युद्धसे विमुख होकर भाग चली॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो दुर्योधनो राजा घटोत्कचमुपाद्रवत् ॥ ९ ॥
प्रगृह्य विपुलं चापं सिंहवद् विनदन् मुहुः।
मूलम्
ततो दुर्योधनो राजा घटोत्कचमुपाद्रवत् ॥ ९ ॥
प्रगृह्य विपुलं चापं सिंहवद् विनदन् मुहुः।
अनुवाद (हिन्दी)
तब राजा दुर्योधनने विशाल धनुष लेकर बारंबार सिंहके समान गर्जना करते हुए वहाँ घटोत्कचपर धावा किया॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पृष्ठतोऽनुययौ चैनं स्रवद्भिः पर्वतोपमैः ॥ १० ॥
कुञ्जरैर्दशसाहस्रैर्वङ्गानामधिपः स्वयम् ।
मूलम्
पृष्ठतोऽनुययौ चैनं स्रवद्भिः पर्वतोपमैः ॥ १० ॥
कुञ्जरैर्दशसाहस्रैर्वङ्गानामधिपः स्वयम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
उसके पीछे मदकी धारा बहानेवाले पर्वताकार दस हजार गजराजोंकी सेना लिये स्वयं वंगदेशका राजा भी गया॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य गजानीकेन संवृतम् ॥ ११ ॥
पुत्रं तव महाराज चुकोप स निशाचरः।
मूलम्
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य गजानीकेन संवृतम् ॥ ११ ॥
पुत्रं तव महाराज चुकोप स निशाचरः।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! हाथियोंकी सेनासे घिरे हुए आपके पुत्र दुर्योधनको आते हुए देख वह निशाचर कुपित हो उठा॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः प्रववृते युद्धं तुमुलं लोमहर्षणम् ॥ १२ ॥
राक्षसानां च राजेन्द्र दुर्योधनबलस्य च।
मूलम्
ततः प्रववृते युद्धं तुमुलं लोमहर्षणम् ॥ १२ ॥
राक्षसानां च राजेन्द्र दुर्योधनबलस्य च।
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! फिर तो दुर्योधनकी सेना तथा राक्षसोंमें भयंकर एवं रोमांचकारी युद्ध होने लगा॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गजानीकं च सम्प्रेक्ष्य मेघवृन्दमिवोदितम् ॥ १३ ॥
अभ्यधावन्त संक्रुद्धा राक्षसाः शस्त्रपाणयः।
मूलम्
गजानीकं च सम्प्रेक्ष्य मेघवृन्दमिवोदितम् ॥ १३ ॥
अभ्यधावन्त संक्रुद्धा राक्षसाः शस्त्रपाणयः।
अनुवाद (हिन्दी)
घिरी हुई मेघोंकी घटाके समान हाथियोंकी सेनाको देखकर क्रोधमें भरे हुए राक्षस हाथमें अस्त्र-शस्त्र लिये उसकी ओर दौड़े॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नदन्तो विविधान् नादान् मेघा इव सविद्युतः ॥ १४ ॥
शरशक्त्यृष्टिनाराचैर्निघ्नन्तो गजयोधिनः ।
भिन्दिपालैस्तथा शूलैर्मुद्गरैः सपरश्वधैः ॥ १५ ॥
पर्वताग्रैश्च वृक्षैश्च निजघ्नुस्ते महागजान्।
मूलम्
नदन्तो विविधान् नादान् मेघा इव सविद्युतः ॥ १४ ॥
शरशक्त्यृष्टिनाराचैर्निघ्नन्तो गजयोधिनः ।
भिन्दिपालैस्तथा शूलैर्मुद्गरैः सपरश्वधैः ॥ १५ ॥
पर्वताग्रैश्च वृक्षैश्च निजघ्नुस्ते महागजान्।
अनुवाद (हिन्दी)
वे भाँति-भाँतिकी गर्जना करते हुए बिजलीसहित मेघोंके समान शोभा पाते थे। बाण, शक्ति, ऋष्टि, नाराच, भिन्दिपाल, शूल, मुद्गर, फरसों, पर्वतशिखर तथा वृक्षोंका प्रहार करके वे गजारोहियों तथा विशाल गजोंका वध करने लगे॥१४-१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भिन्नकुम्भान् विरुधिरान् भिन्नगात्रांश्च वारणान् ॥ १६ ॥
अपश्याम महाराज वध्यमानान् निशाचरैः।
मूलम्
भिन्नकुम्भान् विरुधिरान् भिन्नगात्रांश्च वारणान् ॥ १६ ॥
अपश्याम महाराज वध्यमानान् निशाचरैः।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! निशाचरोंद्वारा मारे जानेवाले गजराजोंको हमने देखा था। उनके कुम्भस्थल फट गये थे, शरीर रक्तहीन हो गये और उनके भिन्न-भिन्न अंग छिन्न-भिन्न हो गये थे॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषु प्रक्षीयमाणेषु भग्नेषु गजयोधिषु ॥ १७ ॥
दुर्योधनो महाराज राक्षसान् समुपाद्रवत्।
अमर्षवशमापन्नस्त्यक्त्वा जीवितमात्मनः ॥ १८ ॥
मूलम्
तेषु प्रक्षीयमाणेषु भग्नेषु गजयोधिषु ॥ १७ ॥
दुर्योधनो महाराज राक्षसान् समुपाद्रवत्।
अमर्षवशमापन्नस्त्यक्त्वा जीवितमात्मनः ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! इस प्रकार गजारोहियोंके भग्न एवं नष्ट हो जानेपर दुर्योधनने अमर्षके वशीभूत हो अपने जीवनका मोह छोड़कर उन राक्षसोंपर धावा किया॥१७-१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मुमोच निशितान् बाणान् राक्षसेषु परंतप।
जघान च महेष्वासः प्रधानांस्तत्र राक्षसान् ॥ १९ ॥
मूलम्
मुमोच निशितान् बाणान् राक्षसेषु परंतप।
जघान च महेष्वासः प्रधानांस्तत्र राक्षसान् ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुओंको संताप देनेवाले नरेश! महाधनुर्धर दुर्योधनने राक्षसोंपर तीखे बाणोंका प्रहार किया और उनमेंसे प्रधान-प्रधान राक्षसोंको मार डाला॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संक्रुद्धो भरतश्रेष्ठ पुत्रो दुर्योधनस्तव।
वेगवन्तं महारौद्रं विद्युज्जिह्वं प्रमाथिनम् ॥ २० ॥
शरैश्चतुर्भिश्चतुरो निजघान महाबलः ।
मूलम्
संक्रुद्धो भरतश्रेष्ठ पुत्रो दुर्योधनस्तव।
वेगवन्तं महारौद्रं विद्युज्जिह्वं प्रमाथिनम् ॥ २० ॥
शरैश्चतुर्भिश्चतुरो निजघान महाबलः ।
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! क्रोधमें भरे हुए आपके महाबली पुत्र दुर्योधनने वेगवान्, महारौद्र, विद्युज्जिह्व और प्रमाथी—इन चार राक्षसोंको चार बाणोंसे मार डाला॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः पुनरमेयात्मा शरवर्षं दुरासदम् ॥ २१ ॥
मुमोच भरतश्रेष्ठो निशाचरबलं प्रति।
मूलम्
ततः पुनरमेयात्मा शरवर्षं दुरासदम् ॥ २१ ॥
मुमोच भरतश्रेष्ठो निशाचरबलं प्रति।
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् अमेय आत्मबलसे सम्पन्न भरतश्रेष्ठ दुर्योधनने उस निशाचरसेनाके ऊपर दुर्धर्ष बाणोंकी वर्षा आरम्भ की॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत् तु दृष्ट्वा महत् कर्म पुत्रस्य तव मारिष॥२२॥
क्रोधेनाभिप्रजज्वाल भैमसेनिर्महाबलः ।
मूलम्
तत् तु दृष्ट्वा महत् कर्म पुत्रस्य तव मारिष॥२२॥
क्रोधेनाभिप्रजज्वाल भैमसेनिर्महाबलः ।
अनुवाद (हिन्दी)
आर्य! आपके पुत्रका वह महान् कर्म देखकर भीमसेनका महाबली पुत्र घटोत्कच क्रोधसे जल उठा॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स विस्फार्य महच्चापमिन्द्राशनिसमप्रभम् ॥ २३ ॥
अभिदुद्राव वेगेन दुर्योधनमरिंदमम् ।
मूलम्
स विस्फार्य महच्चापमिन्द्राशनिसमप्रभम् ॥ २३ ॥
अभिदुद्राव वेगेन दुर्योधनमरिंदमम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
उसने इन्द्रके वज्रके समान कान्तिमान् विशाल धनुषको खींचकर शत्रुदमन दुर्योधनपर बड़े वेगसे धावा किया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमापतन्तमुद्वीक्ष्य कालसृष्टमिवान्तकम् ॥ २४ ॥
न विव्यथे महाराज पुत्रो दुर्योधनस्तव।
मूलम्
तमापतन्तमुद्वीक्ष्य कालसृष्टमिवान्तकम् ॥ २४ ॥
न विव्यथे महाराज पुत्रो दुर्योधनस्तव।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! कालप्रेरित मृत्युके समान उस घटोत्कचको आते देख आपका पुत्र दुर्योधन तनिक भी व्यथित नहीं हुआ॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथैनमब्रवीत् क्रुद्धः क्रूरः संरक्तलोचनः ॥ २५ ॥
अद्यानृण्यं गमिष्यामि पितॄणां मातुरेव च।
ये त्वया सुनृशंसेन दीर्घकालं प्रवासिताः ॥ २६ ॥
यच्च ते पाण्डवा राजंश्छलद्यूते पराजिताः।
यच्चैव द्रौपदी कृष्णा एकवस्त्रा रजस्वला ॥ २७ ॥
सभामानीय दुर्बुद्धे बहुधा क्लेशिता त्वया।
तव च प्रियकामेन आश्रमस्था दुरात्मना ॥ २८ ॥
सैन्धवेन परामृष्टा परिभूय पितॄन् मम।
एतेषामपमानानामन्येषां च कुलाधम ॥ २९ ॥
अन्तमद्य गमिष्यामि यदि नोत्सृजसे रणम्।
मूलम्
अथैनमब्रवीत् क्रुद्धः क्रूरः संरक्तलोचनः ॥ २५ ॥
अद्यानृण्यं गमिष्यामि पितॄणां मातुरेव च।
ये त्वया सुनृशंसेन दीर्घकालं प्रवासिताः ॥ २६ ॥
यच्च ते पाण्डवा राजंश्छलद्यूते पराजिताः।
यच्चैव द्रौपदी कृष्णा एकवस्त्रा रजस्वला ॥ २७ ॥
सभामानीय दुर्बुद्धे बहुधा क्लेशिता त्वया।
तव च प्रियकामेन आश्रमस्था दुरात्मना ॥ २८ ॥
सैन्धवेन परामृष्टा परिभूय पितॄन् मम।
एतेषामपमानानामन्येषां च कुलाधम ॥ २९ ॥
अन्तमद्य गमिष्यामि यदि नोत्सृजसे रणम्।
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर क्रूर घटोत्कच क्रोधसे लाल आँखें करके दुर्योधनसे बोला—‘ओ दुष्ट! आज मैं अपने उन पितरों और माताके ऋणसे उऋण हो जाऊँगा, जिन्हें तूने दीर्घकालतक वनमें रहनेके लिये विवश कर दिया था। तू बड़ा क्रूर है। दुर्बुद्धि नरेश! तूने जो पाण्डवोंको द्यूतमें छलपूर्वक हराया था और जो एक ही वस्त्र धारण करनेवाली द्रुपदकुमारी कृष्णाको रजस्वला-अवस्थामें सभाके भीतर ले जाकर नाना प्रकारके क्लेश दिये थे तथा तेरा ही प्रिय करनेकी इच्छावाले दुरात्मा सिन्धुराजने मेरे पितरोंकी अवहेलना करके आश्रममें रहनेवाली द्रौपदीका अपहरण किया था, कुलाधम! यदि तू युद्ध छोड़कर भाग नहीं जायगा तो इन अपमानोंका और अन्य सब अत्याचारोंका भी आज मैं बदला चुका लूँगा’॥२५—२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्त्वा तु हैडिम्बो महद् विस्फार्य कार्मुकम् ॥ ३० ॥
संदश्य दशनैरोष्ठं सृक्किणी परिसंलिहन्।
शरवर्षेण महता दुर्योधनमवाकिरत् ।
पर्वतं वारिधाराभिः प्रावृषीव बलाहकः ॥ ३१ ॥
मूलम्
एवमुक्त्वा तु हैडिम्बो महद् विस्फार्य कार्मुकम् ॥ ३० ॥
संदश्य दशनैरोष्ठं सृक्किणी परिसंलिहन्।
शरवर्षेण महता दुर्योधनमवाकिरत् ।
पर्वतं वारिधाराभिः प्रावृषीव बलाहकः ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ऐसा कहकर हिडिम्बाकुमारने दाँतोंसे ओठ चबाते और जीभसे मुँहके कोनोंको चाटते हुए अपने विशाल धनुषको खींचकर दुर्योधनपर बाणोंकी बड़ी भारी वृष्टि की। ठीक उसी तरह, जैसे वर्षा-ऋतुमें मेघ पर्वतके शिखरपर जलकी धाराएँ गिराता है॥३०-३१॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि हैडिम्बयुद्धे एकनवतितमोऽध्यायः ॥ ९१ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें घटोत्कच-युद्धविषयक इक्यानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥९१॥