भागसूचना
एकोननवतितमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
कौरव-पाण्डव-सेनाका घमासान युद्ध और भयानक जनसंहार
मूलम् (वचनम्)
धृतराष्ट्र उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
दृष्ट्वा मे निहतान् पुत्रान् बहूनेकेन संजय।
भीष्मो द्रोणः कृपश्चैव किमकुर्वत संयुगे ॥ १ ॥
मूलम्
दृष्ट्वा मे निहतान् पुत्रान् बहूनेकेन संजय।
भीष्मो द्रोणः कृपश्चैव किमकुर्वत संयुगे ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृतराष्ट्र बोले— संजय! एकमात्र भीमसेनके द्वारा युद्धमें मेरे बहुत-से पुत्रोंको मारा गया देख भीष्म, द्रोण और कृपाचार्यने क्या किया?॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहन्यहनि मे पुत्राः क्षयं गच्छन्ति संजय।
मन्येऽहं सर्वथा सूत दैवेनोपहता भृशम् ॥ २ ॥
मूलम्
अहन्यहनि मे पुत्राः क्षयं गच्छन्ति संजय।
मन्येऽहं सर्वथा सूत दैवेनोपहता भृशम् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मेरे पुत्र प्रतिदिन नष्ट होते जा रहे हैं। सूत! मेरा तो ऐसा विश्वास है कि हमलोग सर्वथा अत्यन्त दुर्भाग्यके मारे हुए हैं॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यत्र मे तनयाः सर्वे जीयन्ते न जयन्त्युत।
यत्र भीष्मस्य द्रोणस्य कृपस्य च महात्मनः ॥ ३ ॥
सौमदत्तेश्च वीरस्य भगदत्तस्य चोभयोः।
अश्वत्थाम्नस्तथा तात शूराणामनिवर्तिनाम् ॥ ४ ॥
अन्येषां चैव शूराणां मध्यगास्तनया मम।
यदहन्यन्त संग्रामे किमन्यद् भागधेयतः ॥ ५ ॥
मूलम्
यत्र मे तनयाः सर्वे जीयन्ते न जयन्त्युत।
यत्र भीष्मस्य द्रोणस्य कृपस्य च महात्मनः ॥ ३ ॥
सौमदत्तेश्च वीरस्य भगदत्तस्य चोभयोः।
अश्वत्थाम्नस्तथा तात शूराणामनिवर्तिनाम् ॥ ४ ॥
अन्येषां चैव शूराणां मध्यगास्तनया मम।
यदहन्यन्त संग्रामे किमन्यद् भागधेयतः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दुर्भाग्यके अधीन होनेके कारण ही मेरे पुत्र हारते जा रहे हैं; विजयी नहीं हो रहे हैं। जहाँ भीष्म, द्रोण, महामना कृपाचार्य, वीरवर भूरिश्रवा, भगदत्त, अश्वत्थामा तथा युद्धमें पीठ न दिखानेवाले अन्य शूरवीरोंके बीचमें रहकर भी मेरे पुत्र प्रतिदिन संग्राममें मारे जाते हैं, वहाँ दुर्भाग्यके सिवा और क्या कारण हो सकता है?॥३—५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न हि दुर्योधनो मन्दः पुरा प्रोक्तमबुध्यत।
वार्यमाणो मया तात भीष्मेण विदुरेण च ॥ ६ ॥
गान्धार्या चैव दुर्मेधाः सततं हितकाम्यया।
नाबुध्यत पुरा मोहात् तस्य प्राप्तमिदं फलम् ॥ ७ ॥
यद् भीमसेनः समरे पुत्रान् मम विचेतसः।
अहन्यहनि संक्रुद्धो नयते यमसादनम् ॥ ८ ॥
मूलम्
न हि दुर्योधनो मन्दः पुरा प्रोक्तमबुध्यत।
वार्यमाणो मया तात भीष्मेण विदुरेण च ॥ ६ ॥
गान्धार्या चैव दुर्मेधाः सततं हितकाम्यया।
नाबुध्यत पुरा मोहात् तस्य प्राप्तमिदं फलम् ॥ ७ ॥
यद् भीमसेनः समरे पुत्रान् मम विचेतसः।
अहन्यहनि संक्रुद्धो नयते यमसादनम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मूर्ख दुर्योधनने पहले मेरी कही हुई बातोंपर ध्यान नहीं दिया। तात! मैंने, भीष्मने, विदुरने तथा गान्धारीने भी सदा हितकी इच्छासे दुर्बुद्धि दुर्योधनको बार-बार मना किया; परंतु मोहवश पूर्वकालमें हमारी ये बातें उसके समझमें नहीं आयीं। उसीका यह फल अब प्राप्त हुआ है, जिससे भीमसेन समरांगणमें कुपित होकर मेरे मूर्ख पुत्रोंको प्रतिदिन यमलोक भेज रहा है॥६—८॥
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
इदं तत् समनुप्राप्तं क्षत्तुर्वचनमुत्तमम्।
न बुद्धवानसि विभो प्रोच्यमानं हितं तदा ॥ ९ ॥
मूलम्
इदं तत् समनुप्राप्तं क्षत्तुर्वचनमुत्तमम्।
न बुद्धवानसि विभो प्रोच्यमानं हितं तदा ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजयने कहा— प्रभो! उस समय आपने जो विदुरजीके कहे हुए उत्तम एवं हितकारक वचनको नहीं सुना (सुनकर भी उसपर ध्यान नहीं दिया), उसीका यह फल प्राप्त हुआ है॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निवारय सुतान् द्यूतात् पाण्डवान् मा द्रुहेति च।
सुहृदां हितकामानां ब्रुवतां तत् तदेव च ॥ १० ॥
न शुश्रूषसि तद् वाक्यं मर्त्यः पथ्यमिवौषधम्।
तदेव त्वामनुप्राप्तं वचनं साधुभाषितम् ॥ ११ ॥
मूलम्
निवारय सुतान् द्यूतात् पाण्डवान् मा द्रुहेति च।
सुहृदां हितकामानां ब्रुवतां तत् तदेव च ॥ १० ॥
न शुश्रूषसि तद् वाक्यं मर्त्यः पथ्यमिवौषधम्।
तदेव त्वामनुप्राप्तं वचनं साधुभाषितम् ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने कहा था कि ‘आप अपने पुत्रोंको जूआ खेलनेसे रोकिये। पाण्डवोंसे द्रोह न कीजिये।’ आपका हित चाहनेवाले अन्यान्य सुहृदोंने भी आपसे वे ही बातें कही थीं; परंतु जैसे मरणासन्न पुरुषको हितकारक ओषधि अच्छी नहीं लगती, उसी प्रकार आप उन हितकर वचनोंको सुनना भी नहीं चाहते थे। अतः श्रेष्ठ विदुरने जैसा बताया था, वैसा ही परिणाम आपके सामने आया है॥१०-११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विदुरद्रोणभीष्माणां तथान्येषां हितैषिणाम् ।
अकृत्वा वचनं पथ्यं क्षयं गच्छन्ति कौरवाः ॥ १२ ॥
मूलम्
विदुरद्रोणभीष्माणां तथान्येषां हितैषिणाम् ।
अकृत्वा वचनं पथ्यं क्षयं गच्छन्ति कौरवाः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
विदुर, द्रोण, भीष्म तथा अन्य हितैषियोंके हितकर वचनोंको न माननेके कारण इन कौरवोंका विनाश हो रहा है॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तदेतत् समनुप्राप्तं पूर्वमेव विशाम्पते।
तस्मात् त्वं शृणु तत्त्वेन यथा युद्धमवर्तत ॥ १३ ॥
मूलम्
तदेतत् समनुप्राप्तं पूर्वमेव विशाम्पते।
तस्मात् त्वं शृणु तत्त्वेन यथा युद्धमवर्तत ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजापालक नरेश! यह सब तो पहलेसे ही प्राप्त है। अब आप जिस प्रकार युद्ध हुआ, उसका यथावत् समाचार सुनिये॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मध्याह्ने सुमहारौद्रः संग्रामः समपद्यत।
लोकक्षयकरो राजंस्तन्मे निगदतः शृणु ॥ १४ ॥
मूलम्
मध्याह्ने सुमहारौद्रः संग्रामः समपद्यत।
लोकक्षयकरो राजंस्तन्मे निगदतः शृणु ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! उस दिन दोपहर होते-होते बड़ा भयंकर संग्राम होने लगा, जो सम्पूर्ण जगत्के योद्धाओंका विनाश करनेवाला था। वह सब मैं कह रहा हूँ, सुनिये॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सर्वाणि सैन्यानि धर्मपुत्रस्य शासनात्।
संरब्धान्यभ्यवर्तन्त भीष्ममेव जिघांसया ॥ १५ ॥
मूलम्
ततः सर्वाणि सैन्यानि धर्मपुत्रस्य शासनात्।
संरब्धान्यभ्यवर्तन्त भीष्ममेव जिघांसया ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर धर्मपुत्र युधिष्ठिरके आदेशसे क्रोधमें भरी हुई उनकी सारी सेनाएँ भीष्मपर ही टूट पड़ीं। वे भीष्मको मार डालना चाहती थीं॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नः शिखण्डी च सात्यकिश्च महारथः।
युक्तानीका महाराज भीष्ममेव समभ्ययुः ॥ १६ ॥
मूलम्
धृष्टद्युम्नः शिखण्डी च सात्यकिश्च महारथः।
युक्तानीका महाराज भीष्ममेव समभ्ययुः ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! धृष्टद्युम्न, शिखण्डी तथा महारथी सात्यकि—इन सबने अपनी सेनाओंके साथ भीष्मपर ही आक्रमण किया॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विराटो द्रुपदश्चैव सहिताः सर्वसोमकैः।
अभ्यद्रवन्त संग्रामे भीष्ममेव महारथम् ॥ १७ ॥
मूलम्
विराटो द्रुपदश्चैव सहिताः सर्वसोमकैः।
अभ्यद्रवन्त संग्रामे भीष्ममेव महारथम् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजा विराट और सम्पूर्ण सोमकोंसहित द्रुपदने संग्राममें महारथी भीष्मपर ही चढ़ाई की॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
केकया धृष्टकेतुश्च कुन्तिभोजश्च दंशितः।
युक्तानीका महाराज भीष्ममेव समभ्ययुः ॥ १८ ॥
मूलम्
केकया धृष्टकेतुश्च कुन्तिभोजश्च दंशितः।
युक्तानीका महाराज भीष्ममेव समभ्ययुः ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नरेश्वर! केकय, धृष्टकेतु और कवचधारी कुन्तिभोज—इन सबने अपनी सेनाओंके साथ भीष्मपर ही धावा किया॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्जुनो द्रौपदेयाश्च चेकितानश्च वीर्यवान्।
दुर्योधनसमादिष्टान् राज्ञः सर्वान् समभ्ययुः ॥ १९ ॥
मूलम्
अर्जुनो द्रौपदेयाश्च चेकितानश्च वीर्यवान्।
दुर्योधनसमादिष्टान् राज्ञः सर्वान् समभ्ययुः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुन, द्रौपदीके पाँचों पुत्र और पराक्रमी चेकितान—ये दुर्योधनके भेजे हुए समस्त राजाओंपर चढ़ आये॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभिमन्युस्तथा शूरो हैडिम्बश्च महारथः।
भीमसेनश्च संक्रुद्धस्तेऽभ्यधावन्त कौरवान् ॥ २० ॥
मूलम्
अभिमन्युस्तथा शूरो हैडिम्बश्च महारथः।
भीमसेनश्च संक्रुद्धस्तेऽभ्यधावन्त कौरवान् ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शूरवीर अभिमन्यु, महारथी घटोत्कच तथा क्रोधमें भरे हुए भीमसेन—इन सबने कौरवोंपर धावा किया॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्रिधाभूतैरवध्यन्त पाण्डवैः कौरवा युधि।
तथैव कौरवै राजन्नवध्यन्त परे रणे ॥ २१ ॥
मूलम्
त्रिधाभूतैरवध्यन्त पाण्डवैः कौरवा युधि।
तथैव कौरवै राजन्नवध्यन्त परे रणे ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! पाण्डवोंने तीन दलोंमें विभक्त होकर कौरवोंका वध आरम्भ किया। इसी प्रकार कौरव भी रणभूमिमें शत्रुओंका नाश करने लगे॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्रोणस्तु रथिनः श्रेष्ठान् सोमकान् सृंजयैः सह।
अभ्यधावत संक्रुद्धः प्रेषयिष्यन् यमक्षयम् ॥ २२ ॥
मूलम्
द्रोणस्तु रथिनः श्रेष्ठान् सोमकान् सृंजयैः सह।
अभ्यधावत संक्रुद्धः प्रेषयिष्यन् यमक्षयम् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
द्रोणाचार्यने श्रेष्ठ रथी सोमकों और सृंजयोंको यमलोक भेजनेके लिये क्रोधपूर्वक उनके ऊपर धावा बोल दिया॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्राक्रन्दो महानासीत् सृंजयानां महात्मनाम्।
वध्यतां समरे राजन् भारद्वाजेन धन्विना ॥ २३ ॥
मूलम्
तत्राक्रन्दो महानासीत् सृंजयानां महात्मनाम्।
वध्यतां समरे राजन् भारद्वाजेन धन्विना ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! धनुर्धर द्रोणाचार्यके द्वारा समरभूमिमें मारे जाते हुए महामना सृंजयोंका महान् आर्तनाद सुनायी देने लगा॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
द्रोणेन निहतास्तत्र क्षत्रिया बहवो रणे।
विचेष्टन्तो ह्यदृश्यन्त व्याधिक्लिष्टा नरा इव ॥ २४ ॥
मूलम्
द्रोणेन निहतास्तत्र क्षत्रिया बहवो रणे।
विचेष्टन्तो ह्यदृश्यन्त व्याधिक्लिष्टा नरा इव ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
द्रोणाचार्यके मारे हुए बहुत-से क्षत्रिय रणभूमिमें व्याधिग्रस्त मनुष्योंकी भाँति छटपटाते हुए दिखायी देते थे॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कूजतां क्रन्दतां चैव स्तनतां चैव भारत।
अनिशं शुश्रुवे शब्दः क्षुत्क्लिष्टानां नृणामिव ॥ २५ ॥
मूलम्
कूजतां क्रन्दतां चैव स्तनतां चैव भारत।
अनिशं शुश्रुवे शब्दः क्षुत्क्लिष्टानां नृणामिव ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतनन्दन! भूखसे पीड़ित मनुष्योंकी भाँति कूजते, क्रन्दन करते और गरजते हुए योद्धाओंका शब्द निरन्तर सुनायी देता था॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव कौरवेयाणां भीमसेनो महाबलः।
चकार कदनं घोरं क्रुद्धः काल इवापरः ॥ २६ ॥
मूलम्
तथैव कौरवेयाणां भीमसेनो महाबलः।
चकार कदनं घोरं क्रुद्धः काल इवापरः ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार महाबली भीमसेन क्रोधमें भरे हुए दूसरे कालके समान कौरव सैनिकोंका घोर संहार करने लगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वध्यतां तत्र सैन्यानामन्योन्येन महारणे।
प्रावर्तत नदी घोरा रुधिरौघप्रवाहिनी ॥ २७ ॥
मूलम्
वध्यतां तत्र सैन्यानामन्योन्येन महारणे।
प्रावर्तत नदी घोरा रुधिरौघप्रवाहिनी ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस महायुद्धमें परस्पर मारकाट करनेवाले सैनिकोंकी रक्तराशिको प्रवाहित करनेवाली एक भयंकर नदी बह चली॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स संग्रामो महाराज घोररूपोऽभवन्महान्।
कुरूणां पाण्डवानां च यमराष्ट्रविवर्धनः ॥ २८ ॥
मूलम्
स संग्रामो महाराज घोररूपोऽभवन्महान्।
कुरूणां पाण्डवानां च यमराष्ट्रविवर्धनः ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! कौरवों और पाण्डवोंका वह घोर महा-संग्राम यमलोककी वृद्धि करनेवाला था॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो भीमो रणे क्रुद्धो रभसश्च विशेषतः।
गजानीकं समासाद्य प्रेषयामास मृत्यवे ॥ २९ ॥
मूलम्
ततो भीमो रणे क्रुद्धो रभसश्च विशेषतः।
गजानीकं समासाद्य प्रेषयामास मृत्यवे ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब युद्धमें विशेष वेगशाली भीमसेनने कुपित हो हाथियोंकी सेनामें प्रवेशकर उन्हें कालके गालमें भेजना आरम्भ किया॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र भारत भीमेन नाराचाभिहता गजाः।
पेतुर्नेदुश्च सेदुश्च दिशश्च परिबभ्रमुः ॥ ३० ॥
मूलम्
तत्र भारत भीमेन नाराचाभिहता गजाः।
पेतुर्नेदुश्च सेदुश्च दिशश्च परिबभ्रमुः ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! वहाँ भीमके नाराचोंसे पीड़ित हुए हाथी गिरते, चिग्घाड़ते, बैठ जाते अथवा सम्पूर्ण दिशाओंमें चक्कर लगाने लगते थे॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
छिन्नहस्ता महानागाश्छिन्नगात्राश्च मारिष ।
क्रौञ्चवद् व्यनदन् भीताः पृथिवीमधिशेरते ॥ ३१ ॥
मूलम्
छिन्नहस्ता महानागाश्छिन्नगात्राश्च मारिष ।
क्रौञ्चवद् व्यनदन् भीताः पृथिवीमधिशेरते ॥ ३१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आर्य! सूँड़ तथा दूसरे-दूसरे अंगोंके कट जानेसे हाथी भयभीत हो क्रौंच पक्षीकी भाँति चीत्कार करते और धराशायी हो जाते थे॥३१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नकुलः सहदेवश्च हयानीकमभिद्रुतौ ।
ते हयाः काञ्चनापीडा रुक्मभाण्डपरिच्छदाः ॥ ३२ ॥
वध्यमाना व्यदृश्यन्त शतशोऽथ सहस्रशः।
मूलम्
नकुलः सहदेवश्च हयानीकमभिद्रुतौ ।
ते हयाः काञ्चनापीडा रुक्मभाण्डपरिच्छदाः ॥ ३२ ॥
वध्यमाना व्यदृश्यन्त शतशोऽथ सहस्रशः।
अनुवाद (हिन्दी)
नकुल और सहदेवने घुड़सवारोंकी सेनापर आक्रमण किया। राजन्! उन घोड़ोंने सोनेकी कलँगी तथा सोनेके ही अन्यान्य आभूषण धारण किये थे। वे सब सैकड़ों और सहस्रोंकी संख्यामें मरकर गिरते दिखायी देते थे॥३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पतद्भिस्तुरगै राजन् समास्तीर्यत मेदिनी ॥ ३३ ॥
निर्जिह्वैश्च श्वसद्भिश्च कूजद्भिश्च गतासुभिः।
हयैर्बभौ नरश्रेष्ठ नानारूपधरैर्धरा ॥ ३४ ॥
मूलम्
पतद्भिस्तुरगै राजन् समास्तीर्यत मेदिनी ॥ ३३ ॥
निर्जिह्वैश्च श्वसद्भिश्च कूजद्भिश्च गतासुभिः।
हयैर्बभौ नरश्रेष्ठ नानारूपधरैर्धरा ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! वहाँ गिरते हुए घोड़ोंकी लाशोंसे सारी पृथ्वी पट गयी। किन्हींकी जीभ निकल आयी थी, कोई लंबी साँस खींच रहे थे, कोई धीरे-धीरे अव्यक्त शब्द करते और कितनोंके प्राण निकल गये थे। नरश्रेष्ठ! इस प्रकार विभिन्न रूपधारी घोड़ोंसे आच्छादित होनेके कारण इस पृथ्वीकी अद्भुत शोभा हो रही थी॥३३-३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अर्जुनेन हतैः संख्ये तथा भारत राजभिः।
प्रबभौ वसुधा घोरा तत्र तत्र विशाम्पते ॥ ३५ ॥
मूलम्
अर्जुनेन हतैः संख्ये तथा भारत राजभिः।
प्रबभौ वसुधा घोरा तत्र तत्र विशाम्पते ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! प्रजानाथ! जहाँ-तहाँ अर्जुनके द्वारा युद्धमें मारे गये राजाओंसे भरी हुई वह रणभूमि बड़ी भयानक जान पड़ती थी॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथैर्भग्नैर्ध्वजैश्छिन्नैर्निकृत्तैश्च महायुधैः ।
चामरैर्व्यजनैश्चैव छत्रैश्च सुमहाप्रभैः ॥ ३६ ॥
हारैर्निष्कैः सकेयूरैः शिरोभिश्च सकुण्डलैः।
उष्णीषैरपविद्धैश्च पताकाभिश्च सर्वशः ॥ ३७ ॥
अनुकर्षैः शुभै राजन् योक्त्रैश्चैव सरश्मिभिः।
संकीर्णा वसुधा भाति वसन्ते कुसुमैरिव ॥ ३८ ॥
मूलम्
रथैर्भग्नैर्ध्वजैश्छिन्नैर्निकृत्तैश्च महायुधैः ।
चामरैर्व्यजनैश्चैव छत्रैश्च सुमहाप्रभैः ॥ ३६ ॥
हारैर्निष्कैः सकेयूरैः शिरोभिश्च सकुण्डलैः।
उष्णीषैरपविद्धैश्च पताकाभिश्च सर्वशः ॥ ३७ ॥
अनुकर्षैः शुभै राजन् योक्त्रैश्चैव सरश्मिभिः।
संकीर्णा वसुधा भाति वसन्ते कुसुमैरिव ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! टूटे हुए रथ, कटे हुए ध्वज, छिन्न-भिन्न हुए बड़े-बड़े आयुध, चँवर, व्यजन, अत्यन्त प्रकाशमान छत्र, सोनेके हार, केयूर, कुण्डलमण्डित मस्तक, गिरे हुए शिरोभूषण (पगड़ी आदि), पताका, सुन्दर अनुकर्ष,[^*] जोत और बागडोर आदिसे आच्छादित हुई वह संग्रामभूमि ऐसी जान पड़ती थी, मानो वसन्तऋतुमें उसपर भाँति-भाँतिके फूल गिरे हुए हों॥३६—३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमेष क्षयो वृत्तः पाण्डूनामपि भारत।
क्रुद्धे शान्तनवे भीष्मे द्रोणे च रथसत्तमे ॥ ३९ ॥
अश्वत्थाम्नि कृपे चैव तथैव कृतवर्मणि।
तथेतरेषु क्रुद्धेषु तावकानामपि क्षयः ॥ ४० ॥
मूलम्
एवमेष क्षयो वृत्तः पाण्डूनामपि भारत।
क्रुद्धे शान्तनवे भीष्मे द्रोणे च रथसत्तमे ॥ ३९ ॥
अश्वत्थाम्नि कृपे चैव तथैव कृतवर्मणि।
तथेतरेषु क्रुद्धेषु तावकानामपि क्षयः ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! शान्तनुनन्दन भीष्म, रथियोंमें श्रेष्ठ द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा—इनके कुपित होनेसे पाण्डव सैनिकोंका भी इस प्रकार यह संहार हुआ था। साथ ही पाण्डवोंके कुपित होनेसे आपके योद्धाओंका भी ऐसा ही विकट विनाश हुआ था॥३९-४०॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि अष्टमदिवसयुद्धे एकोननवतितमोऽध्यायः ॥ ८९ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें आठवें दिनके युद्धसे सम्बन्ध रखनेवाला नवासीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥८९॥