०८८ सुनाभादिधृतराष्ट्रपुत्रवधे

भागसूचना

अष्टाशीतितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

भीष्मका पराक्रम, भीमसेनके द्वारा धृतराष्ट्रके आठ पुत्रोंका वध तथा दुर्योधन और भीष्मकी युद्धविषयक बातचीत

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीष्मं तु समरे क्रुद्धं प्रतपन्तं समन्ततः।
न शेकुः पाण्डवा द्रष्टुं तपन्तमिव भास्करम् ॥ १ ॥

मूलम्

भीष्मं तु समरे क्रुद्धं प्रतपन्तं समन्ततः।
न शेकुः पाण्डवा द्रष्टुं तपन्तमिव भास्करम् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! जैसे तपते हुए सूर्यकी ओर देखना कठिन होता है, उसी प्रकार जब भीष्म उस समरमें कुपित हो सब ओर अपना प्रताप प्रकट करने लगे, उस समय पाण्डवसैनिक उनकी ओर देख न सके॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सर्वाणि सैन्यानि धर्मपुत्रस्य शासनात्।
अभ्यद्रवन्त गाङ्गेयं मर्दयन्तं शितैः शरैः ॥ २ ॥

मूलम्

ततः सर्वाणि सैन्यानि धर्मपुत्रस्य शासनात्।
अभ्यद्रवन्त गाङ्गेयं मर्दयन्तं शितैः शरैः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर धर्मपुत्र युधिष्ठिरकी आज्ञासे समस्त सेनाएँ गंगानन्दन भीष्मपर टूट पड़ीं, जो अपने तीखे बाणोंसे पाण्डव-सेनाका मर्दन कर रहे थे॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तु भीष्मो रणश्लाघी सोमकान् सहसृञ्जयान्।
पञ्चालांश्च महेष्वासान् पातयामास सायकैः ॥ ३ ॥

मूलम्

स तु भीष्मो रणश्लाघी सोमकान् सहसृञ्जयान्।
पञ्चालांश्च महेष्वासान् पातयामास सायकैः ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

युद्धकी स्पृहा रखनेवाले भीष्म अपने बाणोंके द्वारा सोमक, सृंजय और पांचाल महाधनुर्धरोंको रणभूमिमें गिराने लगे॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते वध्यमाना भीष्मेण पञ्चालाः सोमकैः सह।
भीष्ममेवाभ्ययुस्तूर्णं त्यक्त्वा मृत्युकृतं भयम् ॥ ४ ॥

मूलम्

ते वध्यमाना भीष्मेण पञ्चालाः सोमकैः सह।
भीष्ममेवाभ्ययुस्तूर्णं त्यक्त्वा मृत्युकृतं भयम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मके द्वारा घायल किये जाते हुए वे सोमक (सृंजय) और पांचाल भी मृत्युका भय छोड़कर तुरंत भीष्मपर ही टूट पड़े॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तेषां रथिनां वीरो भीष्मः शान्तनवो युधि।
चिच्छेद सहसा राजन् बाहूनथ शिरांसि च ॥ ५ ॥

मूलम्

स तेषां रथिनां वीरो भीष्मः शान्तनवो युधि।
चिच्छेद सहसा राजन् बाहूनथ शिरांसि च ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! वीर शान्तनुनन्दन भीष्म उस युद्धके मैदानमें सहसा उन रथियोंकी भुजाओं और मस्तकोंको काट-काटकर गिराने लगे॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विरथान् रथिनश्चक्रे पिता देवव्रतस्तव।
पतितान्युत्तमाङ्गानि हयेभ्यो हयसादिनाम् ॥ ६ ॥

मूलम्

विरथान् रथिनश्चक्रे पिता देवव्रतस्तव।
पतितान्युत्तमाङ्गानि हयेभ्यो हयसादिनाम् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपके ताऊ देवव्रतने बहुत-से रथियोंको रथहीन कर दिया। घोड़ोंसे घुड़सवारोंके मस्तक कट-कटकर गिरने लगे॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निर्मनुष्यांश्च मातङ्गान् शयानान् पर्वतोपमान्।
अपश्याम महाराज भीष्मास्त्रेण प्रमोहितान् ॥ ७ ॥

मूलम्

निर्मनुष्यांश्च मातङ्गान् शयानान् पर्वतोपमान्।
अपश्याम महाराज भीष्मास्त्रेण प्रमोहितान् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! हमने देखा, भीष्मके अस्त्रसे मूर्च्छित हो बहुत-से पर्वताकार गजराज रणभूमिमें पड़े हैं और उनके पास कोई मनुष्य नहीं है॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न तत्रासीत्‌ पुमान् कश्चित्‌ पाण्डवानां विशाम्पते।
अन्यत्र रथिनां श्रेष्ठाद् भीमसेनान्महाबलात् ॥ ८ ॥

मूलम्

न तत्रासीत्‌ पुमान् कश्चित्‌ पाण्डवानां विशाम्पते।
अन्यत्र रथिनां श्रेष्ठाद् भीमसेनान्महाबलात् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! उस समय वहाँ रथियोंमें श्रेष्ठ महाबली भीमसेनके सिवा पाण्डवपक्षका कोई भी वीर भीष्मके सामने नहीं ठहर सका॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स हि भीष्मं समासाद्य ताडयामास संयुगे।
ततो निष्ठानको घोरो भीष्मभीमसमागमे ॥ ९ ॥
बभूव सर्वसैन्यानां घोररूपो भयानकः।
तथैव पाण्डवा हृष्टाः सिंहनादमथानदन् ॥ १० ॥

मूलम्

स हि भीष्मं समासाद्य ताडयामास संयुगे।
ततो निष्ठानको घोरो भीष्मभीमसमागमे ॥ ९ ॥
बभूव सर्वसैन्यानां घोररूपो भयानकः।
तथैव पाण्डवा हृष्टाः सिंहनादमथानदन् ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे ही युद्धमें भीष्मका सामना करते हुए उनपर अपने बाणोंका प्रहार कर रहे थे। भीष्म और भीमसेनमें युद्ध होते समय सम्पूर्ण सेनाओंमें भयंकर कोलाहल मच गया और पाण्डव हर्षमें भरकर जोर-जोरसे सिंहनाद करने लगे॥९-१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुर्योधनो राजा सोदर्यैः परिवारितः।
भीष्मं जुगोप समरे वर्तमाने जनक्षये ॥ ११ ॥

मूलम्

ततो दुर्योधनो राजा सोदर्यैः परिवारितः।
भीष्मं जुगोप समरे वर्तमाने जनक्षये ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिस समय युद्धमें वह जनसंहार हो रहा था, उसी समय राजा दुर्योधन अपने भाइयोंसे घिरा हुआ वहाँ आ पहुँचा और भीष्मकी रक्षा करने लगा॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमस्तु सारथिं हत्वा भीष्मस्य रथिनां वरः।
प्रद्रुताश्वे रथे तस्मिन् द्रवमाणे समन्ततः ॥ १२ ॥

मूलम्

भीमस्तु सारथिं हत्वा भीष्मस्य रथिनां वरः।
प्रद्रुताश्वे रथे तस्मिन् द्रवमाणे समन्ततः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी समय रथियोंमें श्रेष्ठ भीमसेनने भीष्मके सारथिको मार डाला। फिर तो उनके घोड़े उस रथको लेकर रणभूमिमें चारों ओर दौड़ लगाने लगे॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(चचार युधि राजेन्द्र भीमो भीमपराक्रमः।
सुनाभस्तव पुत्रो वै भीमसेनमुपाद्रवत्॥
जघान निशितैर्बाणैर्भीमं विव्याध सप्तभिः।
भीमसेनः सुसंक्रुद्धः शरेण नतपर्वणा॥)
सुनाभस्य शरेणाशु शिरश्चिच्छेद भारत।
क्षुरप्रेण सुतीक्ष्णेन स हतो न्यपतद् भुवि ॥ १३ ॥

मूलम्

(चचार युधि राजेन्द्र भीमो भीमपराक्रमः।
सुनाभस्तव पुत्रो वै भीमसेनमुपाद्रवत्॥
जघान निशितैर्बाणैर्भीमं विव्याध सप्तभिः।
भीमसेनः सुसंक्रुद्धः शरेण नतपर्वणा॥)
सुनाभस्य शरेणाशु शिरश्चिच्छेद भारत।
क्षुरप्रेण सुतीक्ष्णेन स हतो न्यपतद् भुवि ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! भयंकर पराक्रमी भीमसेन युद्धमें सब ओर विचरने लगे। उस समय आपके पुत्र सुनाभने भीमसेनपर धावा किया और उन्हें सात तीखे बाणोंसे बींध डाला। भारत! तब भीमसेनने भी अत्यन्त कुपित होकर झुकी हुई गाँठवाले क्षुरप्र नामक बाणसे शीघ्र ही सुनाभका सिर काट दिया। उस तीखे क्षुरप्रसे मारा जाकर वह पृथ्वीपर गिर पड़ा॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हते तस्मिन् महाराज तव पुत्रे महारथे।
नामृष्यन्त रणे शूराः सोदराः सप्त संयुगे ॥ १४ ॥

मूलम्

हते तस्मिन् महाराज तव पुत्रे महारथे।
नामृष्यन्त रणे शूराः सोदराः सप्त संयुगे ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! आपके उस महारथी पुत्रके मारे जानेपर उसके सात रणवीर भाई, जो वहीं मौजूद थे, भीमसेनका यह अपराध सहन न कर सके॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आदित्यकेतुर्बह्वाशी कुण्डधारो महोदरः ।
अपराजितः पण्डितको विशालाक्षः सुदुर्जयः ॥ १५ ॥
पाण्डवं चित्रसंनाहा विचित्रकवचध्वजाः ।
अभ्यद्रवन्त संग्रामे योद्‌धुकामारिमर्दनाः ॥ १६ ॥

मूलम्

आदित्यकेतुर्बह्वाशी कुण्डधारो महोदरः ।
अपराजितः पण्डितको विशालाक्षः सुदुर्जयः ॥ १५ ॥
पाण्डवं चित्रसंनाहा विचित्रकवचध्वजाः ।
अभ्यद्रवन्त संग्रामे योद्‌धुकामारिमर्दनाः ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आदित्यकेतु, बह्वाशी, कुण्डधार, महोदर, अपराजित, पण्डितक और अत्यन्त दुर्जय वीर विशालाक्ष—ये सातों शत्रुमर्दन भाई विचित्र वेशभूषासे सुसज्जित हो विचित्र कवच और ध्वज धारण किये संग्राम-भूमिमें युद्धकी इच्छासे पाण्डुपुत्र भीमसेनपर टूट पड़े॥१५-१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महोदरस्तु समरे भीमं विव्याध पत्रिभिः।
नवभिर्वज्रसंकाशैर्नमुचिं वृत्रहा यथा ॥ १७ ॥

मूलम्

महोदरस्तु समरे भीमं विव्याध पत्रिभिः।
नवभिर्वज्रसंकाशैर्नमुचिं वृत्रहा यथा ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे वृत्रविनाशक इन्द्रने नमुचि नामक दैत्यपर प्रहार किया था, उसी प्रकार महोदरने समरभूमिमें अपने वज्रसरीखे नौ बाणोंसे भीमसेनको घायल कर दिया॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आदित्यकेतुः सप्तत्या बह्वाशी चापि पञ्चभिः।
नवत्या कुण्डधारश्च विशालाक्षश्च पञ्चभिः ॥ १८ ॥
अपराजितो महाराज पराजिष्णुर्महारथम् ।
शरैर्बहुभिरानर्च्छद् भीमसेनं महाबलम् ॥ १९ ॥

मूलम्

आदित्यकेतुः सप्तत्या बह्वाशी चापि पञ्चभिः।
नवत्या कुण्डधारश्च विशालाक्षश्च पञ्चभिः ॥ १८ ॥
अपराजितो महाराज पराजिष्णुर्महारथम् ।
शरैर्बहुभिरानर्च्छद् भीमसेनं महाबलम् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! आदित्यकेतुने सत्तर, बह्वाशीने पाँच, कुण्डधारने नब्बे, विशालाक्षने पाँच और अपराजितने महारथी महाबली भीमसेनको पराजित करनेके लिये उन्हें बहुत-से बाणोंद्वारा पीड़ित किया॥१८-१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रणे पण्डितकश्चैनं त्रिभिर्बाणैः समार्पयत्।
स तन्न ममृषे भीमः शत्रुभिर्वधमाहवे ॥ २० ॥

मूलम्

रणे पण्डितकश्चैनं त्रिभिर्बाणैः समार्पयत्।
स तन्न ममृषे भीमः शत्रुभिर्वधमाहवे ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पण्डितकने उस युद्धमें तीन बाणोंसे भीमसेनको घायल कर दिया। तब भीम उस रणक्षेत्रमें शत्रुओंद्वारा किये हुए प्रहारको सहन न कर सके॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनुः प्रपीड्य वामेन करेणामित्रकर्शनः।
शिरश्चिच्छेद समरे शरेणानतपर्वणा ॥ २१ ॥
अपराजितस्य सुनसं तव पुत्रस्य संयुगे।

मूलम्

धनुः प्रपीड्य वामेन करेणामित्रकर्शनः।
शिरश्चिच्छेद समरे शरेणानतपर्वणा ॥ २१ ॥
अपराजितस्य सुनसं तव पुत्रस्य संयुगे।

अनुवाद (हिन्दी)

उन शत्रुसूदन वीरने बायें हाथसे धनुषको अच्छी तरह दबाकर झुकी हुई गाँठवाले बाणसे समरभूमिमें आपके पुत्र अपराजितका सुन्दर नासिकासे युक्त मस्तक काट डाला॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पराजितस्य भीमेन निपपात शिरो महीम् ॥ २२ ॥
अथापरेण भल्लेन कुण्डधारं महारथम्।
प्राहिणोन्मृत्युलोकाय सर्वलोकस्य पश्यतः ॥ २३ ॥

मूलम्

पराजितस्य भीमेन निपपात शिरो महीम् ॥ २२ ॥
अथापरेण भल्लेन कुण्डधारं महारथम्।
प्राहिणोन्मृत्युलोकाय सर्वलोकस्य पश्यतः ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेनसे पराजित हुए अपराजितका मस्तक धरतीपर जा गिरा। तत्पश्चात् भीमसेनने एक-दूसरे भल्लके द्वारा सब लोगोंके देखते-देखते महारथी कुण्डधारको यमराजके लोकमें भेज दिया॥२२-२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः पुनरमेयात्मा प्रसंधाय शिलीमुखम्।
प्रेषयामास समरे पण्डितं प्रति भारत ॥ २४ ॥

मूलम्

ततः पुनरमेयात्मा प्रसंधाय शिलीमुखम्।
प्रेषयामास समरे पण्डितं प्रति भारत ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! तब अमेय आत्मबलसे सम्पन्न भीमने समरमें पुनः एक बाणका संधान करके उसे पण्डितककी ओर चलाया॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स शरः पण्डितं हत्वा विवेश धरणीतलम्।
यथा नरं निहत्याशु भुजगः कालचोदितः ॥ २५ ॥

मूलम्

स शरः पण्डितं हत्वा विवेश धरणीतलम्।
यथा नरं निहत्याशु भुजगः कालचोदितः ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे कालप्रेरित सर्प किसी मनुष्यको शीघ्र ही डँसकर लापता हो जाता है, उसी प्रकार वह बाण पण्डितककी हत्या करके धरतीमें समा गया॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विशालाक्षशिरश्छित्त्वा पातयामास भूतले ।
त्रिभिः शरैरदीनात्मा स्मरन् क्लेशं पुरातनम् ॥ २६ ॥

मूलम्

विशालाक्षशिरश्छित्त्वा पातयामास भूतले ।
त्रिभिः शरैरदीनात्मा स्मरन् क्लेशं पुरातनम् ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसके बाद उदार हृदयवाले भीमने अपने पूर्व-क्लेशोंका स्मरण करके तीन बाणोंद्वारा विशालाक्षके मस्तकको काटकर धरतीपर गिरा दिया॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महोदरं महेष्वासं नाराचेन स्तनान्तरे।
विव्याध समरे राजन् स हतो न्यपतद् भुवि ॥ २७ ॥

मूलम्

महोदरं महेष्वासं नाराचेन स्तनान्तरे।
विव्याध समरे राजन् स हतो न्यपतद् भुवि ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तत्पश्चात् उन्होंने महाधनुर्धर महोदरकी छातीमें एक नाराचसे प्रहार किया। उससे मारा जाकर वह युद्धमें धरतीपर गिर पड़ा॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आदित्यकेतोः केतुं च छित्त्वा बाणेन संयुगे।
भल्लेन भृशतीक्ष्णेन शिरश्चिच्छेद भारत ॥ २८ ॥

मूलम्

आदित्यकेतोः केतुं च छित्त्वा बाणेन संयुगे।
भल्लेन भृशतीक्ष्णेन शिरश्चिच्छेद भारत ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! तदनन्तर भीमने रणक्षेत्रमें एक बाणसे आदित्यकेतुकी ध्वजा काटकर अत्यन्त तीखे भल्लके द्वारा उसका मस्तक भी काट दिया॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बह्वाशिनं ततो भीमः शरेणानतपर्वणा।
प्रेषयामास संक्रुद्धो यमस्य सदनं प्रति ॥ २९ ॥

मूलम्

बह्वाशिनं ततो भीमः शरेणानतपर्वणा।
प्रेषयामास संक्रुद्धो यमस्य सदनं प्रति ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद क्रोधमें भरे हुए भीमसेनने झुकी हुई गाँठवाले बाणसे मारकर बह्वाशीको यमलोक भेज दिया॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रदुद्रुवुस्ततस्तेऽन्ये पुत्रास्तव विशाम्पते ।
मन्यमाना हि तत् सत्यं सभायां तस्य भाषितम् ॥ ३० ॥

मूलम्

प्रदुद्रुवुस्ततस्तेऽन्ये पुत्रास्तव विशाम्पते ।
मन्यमाना हि तत् सत्यं सभायां तस्य भाषितम् ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! तब आपके दूसरे पुत्र भीमसेनके द्वारा सभामें की हुई उस प्रतिज्ञाको सत्य मानकर वहाँसे भाग खड़े हुए॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुर्योधनो राजा भ्रातृव्यसनकर्शितः।
अबवीत्‌ तावकान् योधान्‌ भीमोऽयं युधि वध्यताम् ॥ ३१ ॥

मूलम्

ततो दुर्योधनो राजा भ्रातृव्यसनकर्शितः।
अबवीत्‌ तावकान् योधान्‌ भीमोऽयं युधि वध्यताम् ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भाइयोंके मरनेसे राजा दुर्योधनको बड़ा कष्ट हुआ। अतः उसने आपके समस्त सैनिकोंको आज्ञा दी कि इस भीमसेनको युद्धमें मार डालो॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमेते महेष्वासाः पुत्रास्तव विशाम्पते।
भ्रातॄन् संदृश्य निहतान् प्रास्मरंस्ते हि तद् वचः ॥ ३२ ॥
यदुक्तवान् महाप्राज्ञः क्षत्ता हितमनामयम्।
तदिदं समनुप्राप्तं वचनं दिव्यदर्शिनः ॥ ३३ ॥

मूलम्

एवमेते महेष्वासाः पुत्रास्तव विशाम्पते।
भ्रातॄन् संदृश्य निहतान् प्रास्मरंस्ते हि तद् वचः ॥ ३२ ॥
यदुक्तवान् महाप्राज्ञः क्षत्ता हितमनामयम्।
तदिदं समनुप्राप्तं वचनं दिव्यदर्शिनः ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! इस प्रकार ये आपके महाधनुर्धर पुत्र अपने भाइयोंको मारा गया देख उन बातोंकी याद करने लगे, जिन्हें महाज्ञानी विदुरने कहा था। वे सोचने लगे—दिव्यदर्शी विदुरने हमारे कुशल एवं हितके लिये जो बात कही थी, वह आज सिरपर आ गयी॥३२-३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

लोभमोहसमाविष्टः पुत्रप्रीत्या जनाधिप ।
न बुध्यसे पुरा यत् तत् तथ्यमुक्तं वचो महत्॥३४॥

मूलम्

लोभमोहसमाविष्टः पुत्रप्रीत्या जनाधिप ।
न बुध्यसे पुरा यत् तत् तथ्यमुक्तं वचो महत्॥३४॥

अनुवाद (हिन्दी)

जनेश्वर! आपने अपने पुत्रोंके प्रति प्रेमके कारण लोभ और मोहके वशीभूत हो, विदुरने पहले जो सत्य एवं हितकी महत्त्वपूर्ण बात बतायी थी, उसपर ध्यान नहीं दिया॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव च वधार्थाय पुत्राणां पाण्डवो बली।
नूनं जातो महाबाहुर्यथा हन्ति स्म कौरवान् ॥ ३५ ॥

मूलम्

तथैव च वधार्थाय पुत्राणां पाण्डवो बली।
नूनं जातो महाबाहुर्यथा हन्ति स्म कौरवान् ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके कथनानुसार ही बलवान् पाण्डुपुत्र महाबाहु भीम आपके पुत्रोंके वधका कारण बनते जा रहे हैं और उसी प्रकार वे कौरवोंका सर्वनाश कर रहे हैं॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुर्योधनो राजा भीष्ममासाद्य संयुगे।
दुःखेन महताऽऽविष्टो विललाप सुदुःखितः ॥ ३६ ॥

मूलम्

ततो दुर्योधनो राजा भीष्ममासाद्य संयुगे।
दुःखेन महताऽऽविष्टो विललाप सुदुःखितः ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय राजा दुर्योधन युद्धभूमिमें भीष्मके पास जाकर महान् दुःखसे व्याप्त एवं अत्यन्त शोकमग्न होकर विलाप करने लगा—॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निहता भ्रातरः शूरा भीमसेनेन मे युधि।
यतमानास्तथान्येऽपि हन्यन्ते सर्वसैनिकाः ॥ ३७ ॥

मूलम्

निहता भ्रातरः शूरा भीमसेनेन मे युधि।
यतमानास्तथान्येऽपि हन्यन्ते सर्वसैनिकाः ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘पितामह! भीमसेनने युद्धमें मेरे शूरवीर बन्धुओंको मार डाला और दूसरे भी समस्त सैनिक विजयके लिये पूर्ण प्रयत्न करते हुए भी असफल हो उनके हाथसे मारे जा रहे हैं॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भवांश्च मध्यस्थतया नित्यमस्मानुपेक्षते ।
सोऽहं कुपथमारूढः पश्य दैवमिदं मम ॥ ३८ ॥

मूलम्

भवांश्च मध्यस्थतया नित्यमस्मानुपेक्षते ।
सोऽहं कुपथमारूढः पश्य दैवमिदं मम ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘आप मध्यस्थ बने रहनेके कारण सदा हम-लोगोंकी उपेक्षा करते हैं। मैं बड़े बुरे मार्गपर चढ़ आया। मेरे इस दुर्भाग्यको देखिये’॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतच्छ्रुत्वा वचः क्रूरं पिता देवव्रतस्तव।
दुर्योधनमिदं वाक्यमब्रवीत् साश्रुलोचनः ॥ ३९ ॥

मूलम्

एतच्छ्रुत्वा वचः क्रूरं पिता देवव्रतस्तव।
दुर्योधनमिदं वाक्यमब्रवीत् साश्रुलोचनः ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह क्रूरतापूर्ण वचन सुनकर आपके ताऊ भीष्म अपने नेत्रोंसे आँसू बहाते हुए वहाँ दुर्योधनसे इस प्रकार बोले—॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उक्तमेतन्मया पूर्वं द्रोणेन विदुरेण च।
गान्धार्या च यशस्विन्या तत् त्वं तात न बुद्धवान्॥४०॥

मूलम्

उक्तमेतन्मया पूर्वं द्रोणेन विदुरेण च।
गान्धार्या च यशस्विन्या तत् त्वं तात न बुद्धवान्॥४०॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘तात! मैंने, द्रोणाचार्यने, विदुरने तथा यशस्विनी गान्धारी देवीने भी पहले ही यह सब बात कह दी थी, परंतु तुमने इसपर ध्यान नहीं दिया॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समयश्च मया पूर्वं कृतो वै शत्रुकर्शन।
नाहं युधि नियोक्तव्यो नाप्याचार्यः कथंचन ॥ ४१ ॥

मूलम्

समयश्च मया पूर्वं कृतो वै शत्रुकर्शन।
नाहं युधि नियोक्तव्यो नाप्याचार्यः कथंचन ॥ ४१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘शत्रुसूदन! मैंने पहले ही यह निश्चय प्रकट कर दिया था कि तुम्हें मुझे या द्रोणाचार्यको युद्धमें किसी प्रकार भी नहीं लगाना चाहिये (क्योंकि हमलोगोंका कौरवों तथा पाण्डवोंके प्रति समान स्नेह है)॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यं यं हि धार्तराष्ट्राणां भीमो द्रक्ष्यति संयुगे।
हनिष्यति रणे नित्यं सत्यमेतद् ब्रवीमि ते ॥ ४२ ॥

मूलम्

यं यं हि धार्तराष्ट्राणां भीमो द्रक्ष्यति संयुगे।
हनिष्यति रणे नित्यं सत्यमेतद् ब्रवीमि ते ॥ ४२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘मैं तुमसे यह सत्य कहता हूँ कि भीमसेन धृतराष्ट्रके पुत्रोंमेंसे जिस-जिसको युद्धमें (अपने सामने आया हुआ) देख लेंगे, उसे प्रतिदिनके संग्राममें अवश्य मार डालेंगे॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स त्वं राजन् स्थिरो भूत्वा रणे कृत्वा दृढां मतिम्।
योधयस्व रणे पार्थान् स्वर्गं कृत्वा परायणम् ॥ ४३ ॥

मूलम्

स त्वं राजन् स्थिरो भूत्वा रणे कृत्वा दृढां मतिम्।
योधयस्व रणे पार्थान् स्वर्गं कृत्वा परायणम् ॥ ४३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘अतः राजन्! तुम स्थिर होकर युद्धके विषयमें अपना दृढ़ निश्चय बना लो और स्वर्गको ही अन्तिम आश्रय मानकर रणभूमिमें पाण्डवोंके साथ युद्ध करो॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न शक्याः पाण्डवा जेतुं सेन्द्रैरपि सुरासुरैः।
तस्माद् युद्धे स्थिरां कृत्वा मतिं युद्ध्यस्व भारत ॥ ४४ ॥

मूलम्

न शक्याः पाण्डवा जेतुं सेन्द्रैरपि सुरासुरैः।
तस्माद् युद्धे स्थिरां कृत्वा मतिं युद्ध्यस्व भारत ॥ ४४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘भारत! इन्द्रसहित सम्पूर्ण देवता और असुर मिलकर भी पाण्डवोंको जीत नहीं सकते। अतः युद्धके लिये पहले अपनी बुद्धिको स्थिर कर लो। उसके बाद युद्ध करो’॥४४॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि सुनाभादिधृतराष्ट्रपुत्रवधे अष्टाशीतितमोऽध्यायः ॥ ८८ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें सुनाभ आदि धृतराष्ट्रके पुत्रोंका वधविषयक अट्ठासीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥८८॥

सूचना (हिन्दी)

[दाक्षिणात्य अधिक पाठके २ श्लोक मिलाकर कुल ४६ श्लोक हैं]