०८४ सुशर्मार्जुनसमागमे

भागसूचना

चतुरशीतितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

युधिष्ठिरसे राजा श्रुतायुका पराजित होना, युद्धमें चेकितान और कृपाचार्यका मूर्च्छित होना, भूरिश्रवासे धृष्टकेतुका और अभिमन्युसे चित्रसेन आदिका पराजित होना एवं सुशर्मा आदिसे अर्जुनका युद्धारम्भ

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो युधिष्ठिरो राजा मध्यं प्राप्ते दिवाकरे।
श्रुतायुषमभिप्रेक्ष्य प्रेषयामास वाजिनः ॥ १ ॥

मूलम्

ततो युधिष्ठिरो राजा मध्यं प्राप्ते दिवाकरे।
श्रुतायुषमभिप्रेक्ष्य प्रेषयामास वाजिनः ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— महाराज! जब सूर्यदेव दिनके मध्यभागमें आ गये, तब राजा युधिष्ठिरने श्रुतायुको देखकर उसकी ओर अपने घोड़ोंको बढ़ाया॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभ्यधावत् ततो राजा श्रुतायुषमरिंदमम्।
विनिघ्नन् सायकैस्तीक्ष्णैर्नवभिर्नतपर्वभिः ॥ २ ॥

मूलम्

अभ्यधावत् ततो राजा श्रुतायुषमरिंदमम्।
विनिघ्नन् सायकैस्तीक्ष्णैर्नवभिर्नतपर्वभिः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय झुकी हुई गाँठवाले नौ तीखे सायकोंद्वारा शत्रुदमन श्रुतायुको घायल करते हुए राजा युधिष्ठिरने उसपर धावा किया॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स संवार्य रणे राजा प्रेषितान् धर्मसूनुना।
शरान् सप्त महेष्वासः कौन्तेयाय समार्पयत् ॥ ३ ॥

मूलम्

स संवार्य रणे राजा प्रेषितान् धर्मसूनुना।
शरान् सप्त महेष्वासः कौन्तेयाय समार्पयत् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब महाधनुर्धर राजा श्रुतायुने युद्धमें धर्मपुत्र युधिष्ठिरके चलाये हुए बाणोंका निवारण करके उन कुन्तीकुमारको सात बाण मारे॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते तस्य कवचं भित्त्वा पपुः शोणितमाहवे।
असूनिव विचिन्वन्तो देहे तस्य महात्मनः ॥ ४ ॥

मूलम्

ते तस्य कवचं भित्त्वा पपुः शोणितमाहवे।
असूनिव विचिन्वन्तो देहे तस्य महात्मनः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संग्राममें वे बाण महात्मा युधिष्ठिरके शरीरमें उनके प्राणोंको ढूँढ़ते हुए-से कवच छेदकर घुस गये और उनका रक्त पीने लगे॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पाण्डवस्तु भृशं क्रुद्धो विद्धस्तेन महात्मना।
रणे वराहकर्णेन राजानं हृद्यविध्यत ॥ ५ ॥

मूलम्

पाण्डवस्तु भृशं क्रुद्धो विद्धस्तेन महात्मना।
रणे वराहकर्णेन राजानं हृद्यविध्यत ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महामना श्रुतायुके बाणोंसे घायल होनेपर पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर अत्यन्त कुपित हो उठे और उन्होंने रणक्षेत्रमें वराहकर्ण नामक एक बाण चलाकर राजा श्रुतायुकी छातीमें चोट पहुँचायी॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथापरेण भल्लेन केतुं तस्य महात्मनः।
रथश्रेष्ठो रथात् तूर्णं भूमौ पार्थो न्यपातयत् ॥ ६ ॥

मूलम्

अथापरेण भल्लेन केतुं तस्य महात्मनः।
रथश्रेष्ठो रथात् तूर्णं भूमौ पार्थो न्यपातयत् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् रथियोंमें श्रेष्ठ कुन्तीपुत्र युधिष्ठिरने भल्ल नामक दूसरे बाणसे महामना श्रुतायुके ध्वजको काटकर तुरंत ही रथसे पृथ्वीपर गिरा दिया॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

केतुं विपतितं दृष्ट्‌वा श्रुतायुः स तु पार्थिवः।
पाण्डवं विशिखैस्तीक्ष्णै राजन् विव्याध सप्तभिः ॥ ७ ॥

मूलम्

केतुं विपतितं दृष्ट्‌वा श्रुतायुः स तु पार्थिवः।
पाण्डवं विशिखैस्तीक्ष्णै राजन् विव्याध सप्तभिः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! ध्वजको गिरा हुआ देख राजा श्रुतायुने अपने सात तीखे बाणोंद्वारा पाण्डुनन्दन युधिष्ठिरको घायल कर दिया॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः क्रोधात् प्रजज्वाल धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।
यथा युगान्ते भूतानि दिधक्षुरिव पावकः ॥ ८ ॥

मूलम्

ततः क्रोधात् प्रजज्वाल धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।
यथा युगान्ते भूतानि दिधक्षुरिव पावकः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह देख धर्मपुत्र युधिष्ठिर प्रलयकालमें सम्पूर्ण भूतोंको जला डालनेकी इच्छावाले अग्निदेवके समान क्रोधसे प्रज्वलित हो उठे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्रुद्धं तु पाण्डवं दृष्ट्‌वा देवगन्धर्वराक्षसाः।
प्रविव्यथुर्महाराज व्याकुलं चाप्यभूज्जगत् ॥ ९ ॥

मूलम्

क्रुद्धं तु पाण्डवं दृष्ट्‌वा देवगन्धर्वराक्षसाः।
प्रविव्यथुर्महाराज व्याकुलं चाप्यभूज्जगत् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! पाण्डुपुत्र युधिष्ठिरको कुपित देख देवता, गन्धर्व और राक्षस व्यथित हो उठे तथा सारा जगत् भी भयसे व्याकुल हो गया॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वेषां चैव भूतानामिदमासीन्मनोगतम् ।
त्रील्ँलोकानद्य संक्रुद्धो नृपोऽयं धक्ष्यतीति वै ॥ १० ॥

मूलम्

सर्वेषां चैव भूतानामिदमासीन्मनोगतम् ।
त्रील्ँलोकानद्य संक्रुद्धो नृपोऽयं धक्ष्यतीति वै ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय समस्त प्राणियोंके मनमें यह विचार उठा कि आज निश्चय ही ये राजा युधिष्ठिर कुपित होकर तीनों लोकोंको भस्म कर डालेंगे॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ऋषयश्चैव देवाश्च चक्रुः स्वस्त्ययनं महत्।
लोकानां नृप शान्त्यर्थं क्रोधिते पाण्डवे तदा ॥ ११ ॥

मूलम्

ऋषयश्चैव देवाश्च चक्रुः स्वस्त्ययनं महत्।
लोकानां नृप शान्त्यर्थं क्रोधिते पाण्डवे तदा ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! पाण्डुपुत्र युधिष्ठिरके कुपित होनेपर उस समय सम्पूर्ण लोकोंकी शान्तिके लिये देवता तथा ऋषिलोग श्रेष्ठ स्वस्तिवाचन करने लगे॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स च क्रोधसमाविष्टः सृक्किणी परिसंलिहन्।
दधारात्मवपुर्घोरं युगान्तादित्यसंनिभम् ॥ १२ ॥

मूलम्

स च क्रोधसमाविष्टः सृक्किणी परिसंलिहन्।
दधारात्मवपुर्घोरं युगान्तादित्यसंनिभम् ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने क्रोधसे व्याप्त हो मुखके दोनों कोनोंको चाटते हुए अपने शरीरको प्रलयकालके सूर्यके समान अत्यन्त भयंकर बना लिया॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सैन्यानि सर्वाणि तावकानि विशाम्पते।
निराशान्यभवंस्तत्र जीवितं प्रति भारत ॥ १३ ॥

मूलम्

ततः सैन्यानि सर्वाणि तावकानि विशाम्पते।
निराशान्यभवंस्तत्र जीवितं प्रति भारत ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! भरतनन्दन! उस समय आपकी सारी सेनाएँ वहाँ अपने जीवनसे निराश हो गयीं॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तु धैर्येण तं कोपं संनिवार्य महायशाः।
श्रुतायुषः प्रचिच्छेद मुष्टिदेशे महाधनुः ॥ १४ ॥

मूलम्

स तु धैर्येण तं कोपं संनिवार्य महायशाः।
श्रुतायुषः प्रचिच्छेद मुष्टिदेशे महाधनुः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु महायशस्वी युधिष्ठिरने धैर्यपूर्वक अपने क्रोधको दबा दिया और श्रुतायुके विशाल धनुषको, जहाँ उसे मुट्ठीसे पकड़ा जाता है, उसी जगहसे काट दिया॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथैनं छिन्नधन्वानं नाराचेन स्तनान्तरे।
निर्बिभेद रणे राजा सर्वसैन्यस्य पश्यतः ॥ १५ ॥
सत्वरं च रणे राजंस्तस्य वाहान् महात्मनः।
निजघान शरैः क्षिप्रं सूतं च सुमहाबलः ॥ १६ ॥

मूलम्

अथैनं छिन्नधन्वानं नाराचेन स्तनान्तरे।
निर्बिभेद रणे राजा सर्वसैन्यस्य पश्यतः ॥ १५ ॥
सत्वरं च रणे राजंस्तस्य वाहान् महात्मनः।
निजघान शरैः क्षिप्रं सूतं च सुमहाबलः ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! धनुष कट जानेपर महाबली राजा युधिष्ठिरने श्रुतायुकी छातीमें नाराचसे प्रहार किया। फिर उन्होंने समस्त सेनाओंके देखते-देखते रणक्षेत्रमें महामना श्रुतायुके घोड़ोंको तुरंत मार डाला और उसके सारथिको भी शीघ्र ही मौतके मुखमें डाल दिया॥१५-१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हताश्वं तु रथं त्यक्त्वा दृष्ट्‌वा राज्ञोऽस्य पौरुषम्।
विप्रदुद्राव वेगेन श्रुतायुः समरे तदा ॥ १७ ॥

मूलम्

हताश्वं तु रथं त्यक्त्वा दृष्ट्‌वा राज्ञोऽस्य पौरुषम्।
विप्रदुद्राव वेगेन श्रुतायुः समरे तदा ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रथके घोड़े मारे गये, यह देखकर तथा युद्धमें राजा युधिष्ठिरके पुरुषार्थका भी अवलोकन करके श्रुतायु उस समय बड़े वेगसे रथ छोड़कर भाग गया॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिञ्जिते महेष्वासे धर्मपुत्रेण संयुगे।
दुर्योधनबलं राजन् सर्वमासीत् पराङ्‌मुखम् ॥ १८ ॥

मूलम्

तस्मिञ्जिते महेष्वासे धर्मपुत्रेण संयुगे।
दुर्योधनबलं राजन् सर्वमासीत् पराङ्‌मुखम् ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! संग्राममें धर्मपुत्र युधिष्ठिरद्वारा महाधनुर्धर श्रुतायुके पराजित होनेपर दुर्योधनकी सारी सेना पीठ दिखाकर भागने लगी॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतत् कृत्वा महाराज धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।
व्यात्ताननो यथा कालस्तव सैन्यं जघान ह ॥ १९ ॥

मूलम्

एतत् कृत्वा महाराज धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।
व्यात्ताननो यथा कालस्तव सैन्यं जघान ह ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! ऐसा पराक्रम करके धर्मपुत्र युधिष्ठिर मुँह फैलाये कालके समान आपकी सेनाका संहार करने लगे॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चेकितानस्तु वार्ष्णेयो गौतमं रथिनां वरम्।
प्रेक्षतां सर्वसैन्यानां छादयामास सायकैः ॥ २० ॥

मूलम्

चेकितानस्तु वार्ष्णेयो गौतमं रथिनां वरम्।
प्रेक्षतां सर्वसैन्यानां छादयामास सायकैः ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उधर वृष्णिवंशी चेकितानने रथियोंमें श्रेष्ठ कृपाचार्यको सब सेनाओंके देखते-देखते अपने सायकोंसे आच्छादित कर दिया॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संनिवार्य शरांस्तांस्तु कृपः शारद्वतो युधि।
चेकितानं रणे यत्तं राजन् विव्याध पत्रिभिः ॥ २१ ॥

मूलम्

संनिवार्य शरांस्तांस्तु कृपः शारद्वतो युधि।
चेकितानं रणे यत्तं राजन् विव्याध पत्रिभिः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! शरद्वान्‌के पुत्र कृपाचार्यने युद्धमें उन सब बाणोंको काटकर सावधानीके साथ युद्ध करनेवाले चेकितानको पंखवाले बाणोंसे बींध डाला॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथापरेण भल्लेन धनुश्चिच्छेद मारिष।
सारथिं चास्य समरे क्षिप्रहस्तो न्यपातयत् ॥ २२ ॥

मूलम्

अथापरेण भल्लेन धनुश्चिच्छेद मारिष।
सारथिं चास्य समरे क्षिप्रहस्तो न्यपातयत् ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! फिर दूसरे भल्लसे उसका धनुष काट दिया और अपने हाथोंकी फुर्ती दिखाते हुए समरमें उसके सारथिको भी मार गिराया॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अश्वांश्चास्यावधीद् राजन्नुभौ तौ पार्ष्णिसारथी।
सोऽवप्लुत्य रथात् तूर्णं गदां जग्राह सात्वतः ॥ २३ ॥

मूलम्

अश्वांश्चास्यावधीद् राजन्नुभौ तौ पार्ष्णिसारथी।
सोऽवप्लुत्य रथात् तूर्णं गदां जग्राह सात्वतः ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तदनन्तर चेकितानके चारों घोड़ों और दोनों पृष्ठरक्षकोंको भी कृपाचार्यने मार डाला। तब सात्वतवंशी चेकितानने रथसे कूदकर तुरंत ही गदा हाथमें ले ली॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तया वीरघातिन्या गदया गदिनां वरः।
गौतमस्य हयान् हत्वा सारथिं च न्यपातयत् ॥ २४ ॥

मूलम्

स तया वीरघातिन्या गदया गदिनां वरः।
गौतमस्य हयान् हत्वा सारथिं च न्यपातयत् ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

गदाधारियोंमें श्रेष्ठ चेकितानने उस वीरघातिनी गदासे कृपाचार्यके घोड़ोंको मारकर उनके सारथिको भी धराशायी कर दिया॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भूमिष्ठो गौतमस्तस्य शरांश्चिक्षेप षोडश।
शरास्ते सात्वतं भित्त्वा प्राविशन् धरणीतलम् ॥ २५ ॥

मूलम्

भूमिष्ठो गौतमस्तस्य शरांश्चिक्षेप षोडश।
शरास्ते सात्वतं भित्त्वा प्राविशन् धरणीतलम् ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब कृपाचार्यने भूमिपर ही खड़े होकर चेकितानको सोलह बाण मारे। वे बाण चेकितानको छेदकर धरतीमें समा गये॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चेकितानस्ततः क्रुद्धः पुनश्चिक्षेप तां गदाम्।
गौतमस्य वधाकाङ्‌क्षी वृत्रस्येव पुरंदरः ॥ २६ ॥

मूलम्

चेकितानस्ततः क्रुद्धः पुनश्चिक्षेप तां गदाम्।
गौतमस्य वधाकाङ्‌क्षी वृत्रस्येव पुरंदरः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब क्रोधमें भरे हुए चेकितानने कृपाचार्यके वधकी इच्छासे उनपर पुनः वैसे ही गदाका प्रहार किया, जैसे इन्द्र वृत्रासुरपर प्रहार करते हैं॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तामापतन्तीं विमलामश्मगर्भां महागदाम् ।
शरैरनेकसाहस्रैर्वारयामास गौतमः ॥ २७ ॥

मूलम्

तामापतन्तीं विमलामश्मगर्भां महागदाम् ।
शरैरनेकसाहस्रैर्वारयामास गौतमः ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस निर्मल एवं लोहेकी बनी हुई विशाल गदाको अपने ऊपर आती देख कृपाचार्यने अनेक सहस्र बाणोंद्वारा दूर गिरा दिया॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चेकितानस्ततः खड्‌गं क्रोधादुद्‌धृत्य भारत।
लाघवं परमास्थाय गौतमं समुपाद्रवत् ॥ २८ ॥

मूलम्

चेकितानस्ततः खड्‌गं क्रोधादुद्‌धृत्य भारत।
लाघवं परमास्थाय गौतमं समुपाद्रवत् ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! तब चेकितानने क्रोधपूर्वक तलवार खींच ली और बड़ी फुर्तीके साथ कृपाचार्यपर धावा किया॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गौतमोऽपि धनुस्त्यक्त्वा प्रगृह्यासिं सुसंयतः।
वेगेन महता राजंश्चेकितानमुपाद्रवत् ॥ २९ ॥

मूलम्

गौतमोऽपि धनुस्त्यक्त्वा प्रगृह्यासिं सुसंयतः।
वेगेन महता राजंश्चेकितानमुपाद्रवत् ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! यह देख कृपाचार्यने भी धनुष फेंककर तलवार हाथमें ले ली और पूरी सावधानीके साथ वे बड़े वेगसे चेकितानकी ओर दौड़े॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावुभौ बलसम्पन्नौ निस्त्रिंशवरधारिणौ ।
निस्त्रिंशाभ्यां सुतीक्ष्णाभ्यामन्योन्यं संततक्षतुः ॥ ३० ॥

मूलम्

तावुभौ बलसम्पन्नौ निस्त्रिंशवरधारिणौ ।
निस्त्रिंशाभ्यां सुतीक्ष्णाभ्यामन्योन्यं संततक्षतुः ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों ही बलवान् थे। दोनोंने ही उत्तम खड्‌ग धारण कर रखे थे। अतः अपनी उन अत्यन्त तीखी तलवारोंसे वे एक-दूसरेको काटने लगे॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निस्त्रिंशवेगाभिहतौ ततस्तौ पुरुषर्षभौ ।
धरणीं समनुप्राप्तौ सर्वभूतनिषेविताम् ॥ ३१ ॥

मूलम्

निस्त्रिंशवेगाभिहतौ ततस्तौ पुरुषर्षभौ ।
धरणीं समनुप्राप्तौ सर्वभूतनिषेविताम् ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तलवारकी गहरी चोटसे घायल होकर वे दोनों पुरुषश्रेष्ठ सम्पूर्ण भूतोंकी निवासभूत पृथ्वीपर गिर पड़े॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मूर्छयाभिपरीताङ्गौ व्यायामेन तु मोहितौ।
ततोऽभ्यधावद् वेगेन करकर्षः सुहृत्तया ॥ ३२ ॥
चेकितानं तथाभूतं दृष्ट्‌वा समरदुर्मदः।
रथमारोपयच्चैनं सर्वसैन्यस्य पश्यतः ॥ ३३ ॥

मूलम्

मूर्छयाभिपरीताङ्गौ व्यायामेन तु मोहितौ।
ततोऽभ्यधावद् वेगेन करकर्षः सुहृत्तया ॥ ३२ ॥
चेकितानं तथाभूतं दृष्ट्‌वा समरदुर्मदः।
रथमारोपयच्चैनं सर्वसैन्यस्य पश्यतः ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके सारे अंगोंमें मूर्च्छा व्याप्त हो रही थी। दोनों ही अधिक परिश्रमके कारण अचेत हो गये थे। उस समय युद्धमें उन्मत्त होकर लड़नेवाला करकर्ष चेकितानको वैसी अवस्थामें पड़ा देख सौहार्दके नाते बड़े वेगसे दौड़ा और सम्पूर्ण सेनाके देखते-देखते उसने उन्हें अपने रथपर चढ़ा लिया॥३२-३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव शकुनिः शूरः श्यालस्तव विशाम्पते।
आरोपयद् रथं तूर्णं गौतमं रथिनां वरम् ॥ ३४ ॥

मूलम्

तथैव शकुनिः शूरः श्यालस्तव विशाम्पते।
आरोपयद् रथं तूर्णं गौतमं रथिनां वरम् ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! इसी प्रकार आपके साले शूरवीर शकुनिने रथियोंमें श्रेष्ठ कृपाचार्यको शीघ्र ही अपने रथपर बैठा लिया॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सौमदत्तिं तथा क्रुद्धो धृष्टकेतुर्महाबलः।
नवत्या सायकैः क्षिप्रं राजन् विव्याध वक्षसि ॥ ३५ ॥

मूलम्

सौमदत्तिं तथा क्रुद्धो धृष्टकेतुर्महाबलः।
नवत्या सायकैः क्षिप्रं राजन् विव्याध वक्षसि ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! दूसरी ओर महाबली धृष्टकेतुने क्रोधमें भरकर नब्बे बाणोंसे शीघ्रतापूर्वक भूरिश्रवाकी छातीमें चोट पहुँचायी॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सौमदत्तिरुरःस्थैस्तैर्भृशं बाणैरशोभत ।
मध्यन्दिने महाराज रश्मिभिस्तपनो यथा ॥ ३६ ॥

मूलम्

सौमदत्तिरुरःस्थैस्तैर्भृशं बाणैरशोभत ।
मध्यन्दिने महाराज रश्मिभिस्तपनो यथा ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! छातीमें धँसे हुए उन बाणोंसे भूरिश्रवा उसी प्रकार शोभा पाने लगा, जैसे दोपहरके समय सूर्य अपनी किरणोंद्वारा अधिक प्रकाशित होता है॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भूरिश्रवास्तु समरे धृष्टकेतुं महारथम्।
हतसूतहयं चक्रे विरथं सायकोत्तमैः ॥ ३७ ॥

मूलम्

भूरिश्रवास्तु समरे धृष्टकेतुं महारथम्।
हतसूतहयं चक्रे विरथं सायकोत्तमैः ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब भूरिश्रवाने समरभूमिमें उत्तम सायकोंद्वारा महारथी धृष्टकेतुके घोड़ों और सारथिको मारकर उन्हें रथहीन कर दिया॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विरथं तं समालोक्य हताश्वं हतसारथिम्।
महता शरवर्षेण च्छादयामास संयुगे ॥ ३८ ॥

मूलम्

विरथं तं समालोक्य हताश्वं हतसारथिम्।
महता शरवर्षेण च्छादयामास संयुगे ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भूरिश्रवाने धृष्टकेतुको घोड़े और सारथिके मारे जानेसे रथहीन हुआ देख युद्धस्थलमें बाणोंकी बड़ी भारी वर्षा करके ढक दिया॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तु तं रथमुत्सृज्य धृष्टकेतुर्महामनाः।
आरुरोह ततो यानं शतानीकस्य मारिष ॥ ३९ ॥

मूलम्

स तु तं रथमुत्सृज्य धृष्टकेतुर्महामनाः।
आरुरोह ततो यानं शतानीकस्य मारिष ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! तत्पश्चात् महामना धृष्टकेतु उस रथको छोड़कर शतानीककी सवारीपर जा बैठे॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चित्रसेनो विकर्णश्च राजन् दुर्मर्षणस्तथा।
रथिनो हेमसंनाहाः सौभद्रमभिदुद्रुवुः ॥ ४० ॥

मूलम्

चित्रसेनो विकर्णश्च राजन् दुर्मर्षणस्तथा।
रथिनो हेमसंनाहाः सौभद्रमभिदुद्रुवुः ॥ ४० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इसी समय चित्रसेन, विकर्ण तथा दुर्मर्षण—इन तीन रथियोंने सोनेके कवच बाँधकर सुभद्राकुमार अभिमन्युपर धावा किया॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभिमन्योस्ततस्तैस्तु घोरं युद्धमवर्तत ।
शरीरस्य यथा राजन् वातपित्तकफैस्त्रिभिः ॥ ४१ ॥

मूलम्

अभिमन्योस्ततस्तैस्तु घोरं युद्धमवर्तत ।
शरीरस्य यथा राजन् वातपित्तकफैस्त्रिभिः ॥ ४१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! तब उनके साथ अभिमन्युका भयंकर युद्ध आरम्भ हुआ, ठीक उसी तरह, जैसे शरीरका वात, पित्त और कफ—इन तीनों धातुओंके साथ युद्ध होता रहता है॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विरथांस्तव पुत्रांस्तु कृत्वा राजन् महाहवे।
न जघान नरव्याघ्रः स्मरन् भीमवचस्तदा ॥ ४२ ॥

मूलम्

विरथांस्तव पुत्रांस्तु कृत्वा राजन् महाहवे।
न जघान नरव्याघ्रः स्मरन् भीमवचस्तदा ॥ ४२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस महासमरमें आपके पुत्रोंको रथहीन करके पुरुषसिंह अभिमन्युने उस समय भीमसेनकी प्रतिज्ञाका स्मरण करके उनका वध नहीं किया॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो राज्ञां बहुशतैर्गजाश्वरथयायिभिः ।
संवृतं समरे भीष्मं देवैरपि दुरासदम् ॥ ४३ ॥
प्रयान्तं शीघ्रमुद्वीक्ष्य परित्रातुं सुतांस्तव।
अभिमन्युं समुद्दिश्य बालमेकं महारथम् ॥ ४४ ॥
वासुदेवमुवाचेदं कौन्तेयः श्वेतवाहनः ।

मूलम्

ततो राज्ञां बहुशतैर्गजाश्वरथयायिभिः ।
संवृतं समरे भीष्मं देवैरपि दुरासदम् ॥ ४३ ॥
प्रयान्तं शीघ्रमुद्वीक्ष्य परित्रातुं सुतांस्तव।
अभिमन्युं समुद्दिश्य बालमेकं महारथम् ॥ ४४ ॥
वासुदेवमुवाचेदं कौन्तेयः श्वेतवाहनः ।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर हाथी, घोड़े और रथपर यात्रा करनेवाले करोड़ों राजाओंसे घिरे हुए भीष्म, जो युद्धमें देवताओंके लिये भी दुर्जय थे, आपके पुत्रोंको बचानेके लिये एकमात्र बालक महारथी अभिमन्युको लक्ष्य करके तीव्र वेगसे आगे बढ़े। उनको उस ओर जाते देख श्वेतवाहन कुन्तीपुत्र अर्जुनने वसुदेवनन्दन भगवान् श्रीकृष्णसे इस प्रकार कहा—॥४३-४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चोदयाश्वान् हृषीकेश यत्रैते बहुला रथाः ॥ ४५ ॥
एते हि बहवः शूराः कृतास्त्रा युद्धदुर्मदाः।
यथा हन्युर्न नः सेनां तथा माधव चोदय ॥ ४६ ॥

मूलम्

चोदयाश्वान् हृषीकेश यत्रैते बहुला रथाः ॥ ४५ ॥
एते हि बहवः शूराः कृतास्त्रा युद्धदुर्मदाः।
यथा हन्युर्न नः सेनां तथा माधव चोदय ॥ ४६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘हृषीकेश! जहाँ ये बहुत-से रथ जा रहे हैं, उधर ही अपने घोड़ोंको हाँकिये। माधव! ये अस्त्र-विद्याके विद्वान् तथा रण-दुर्मद बहुसंख्यक शूरवीर जिस प्रकार हमारी सेनाका विनाश न कर सकें, उसी तरह इस रथको वहाँ ले चलिये’॥४५-४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तः स वार्ष्णेयः कौन्तेयेनामितौजसा।
रथं श्वेतहयैर्युक्तं प्रेषयामास संयुगे ॥ ४७ ॥

मूलम्

एवमुक्तः स वार्ष्णेयः कौन्तेयेनामितौजसा।
रथं श्वेतहयैर्युक्तं प्रेषयामास संयुगे ॥ ४७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अमिततेजस्वी कुन्तीकुमार अर्जुनके इस प्रकार कहनेपर वृष्णिकुलनन्दन भगवान् श्रीकृष्णने युद्धमें श्वेत घोड़ोंसे जुते हुए रथको आगे बढ़ाया॥४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निष्ठानको महानासीत् तव सैन्यस्य मारिष।
यदर्जुनो रणे क्रुद्धः संयातस्तावकान् प्रति ॥ ४८ ॥

मूलम्

निष्ठानको महानासीत् तव सैन्यस्य मारिष।
यदर्जुनो रणे क्रुद्धः संयातस्तावकान् प्रति ॥ ४८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! रणभूमिमें क्रुद्ध हुए अर्जुन आपके सैनिकोंकी ओर जाने लगे, उस समय आपकी सेनामें बड़े जोरसे हाहाकार होने लगा॥४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समासाद्य तु कौन्तेयो राज्ञस्तान् भीष्मरक्षिणः।
सुशर्माणमथो राजन्निदं वचनमब्रवीत् ॥ ४९ ॥

मूलम्

समासाद्य तु कौन्तेयो राज्ञस्तान् भीष्मरक्षिणः।
सुशर्माणमथो राजन्निदं वचनमब्रवीत् ॥ ४९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! कुन्तीकुमार अर्जुनने भीष्मकी रक्षा करनेवाले उन राजाओंके पास जाकर सुशर्मासे इस प्रकार कहा—॥४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जानामि त्वां युधां श्रेष्ठमत्यन्तं पूर्ववैरिणम्।
अनयस्याद्य सम्प्राप्तं फलं पश्य सुदारुणम् ॥ ५० ॥
अद्य ते दर्शयिष्यामि पूर्वप्रेतान् पितामहान्।

मूलम्

जानामि त्वां युधां श्रेष्ठमत्यन्तं पूर्ववैरिणम्।
अनयस्याद्य सम्प्राप्तं फलं पश्य सुदारुणम् ॥ ५० ॥
अद्य ते दर्शयिष्यामि पूर्वप्रेतान् पितामहान्।

अनुवाद (हिन्दी)

‘वीर! मैं जानता हूँ, तुम पाण्डवोंके पूर्ववैरी और योद्धाओंमें अत्यन्त उत्तम हो। तुमलोगोंने जो अन्याय किया है, उसका यह अत्यन्त भयंकर फल आज प्राप्त हुआ है, इसे देखो। आज मैं तुम्हें तुम्हारे पहलेके मरे हुए पितामहोंका दर्शन कराऊँगा’॥५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं संजल्पतस्तस्य बीभत्सोः शत्रुघातिनः ॥ ५१ ॥
श्रुत्वापि परुषं वाक्यं सुशर्मा रथयूथपः।
न चैनमब्रवीत् किंचिच्छुभं वा यदि वाशुभम् ॥ ५२ ॥

मूलम्

एवं संजल्पतस्तस्य बीभत्सोः शत्रुघातिनः ॥ ५१ ॥
श्रुत्वापि परुषं वाक्यं सुशर्मा रथयूथपः।
न चैनमब्रवीत् किंचिच्छुभं वा यदि वाशुभम् ॥ ५२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

ऐसा कहते हुए शत्रुघाती अर्जुनके परुष वचनको सुनकर भी रथयूथपति सुशर्मा उनसे भला या बुरा कुछ भी न बोला॥५१-५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभिगम्यार्जुनं वीरं राजभिर्बहुभिर्वृतः ।
पुरस्तात् पृष्ठतश्चैव पार्श्वतश्चैव सर्वतः ॥ ५३ ॥
परिवार्यार्जुनं संख्ये तव पुत्रैर्महारथः।
शरैः संछादयामास मेघैरिव दिवाकरम् ॥ ५४ ॥

मूलम्

अभिगम्यार्जुनं वीरं राजभिर्बहुभिर्वृतः ।
पुरस्तात् पृष्ठतश्चैव पार्श्वतश्चैव सर्वतः ॥ ५३ ॥
परिवार्यार्जुनं संख्ये तव पुत्रैर्महारथः।
शरैः संछादयामास मेघैरिव दिवाकरम् ॥ ५४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अनेक राजाओंसे घिरे हुए उस महारथीने आपके पुत्रोंको साथ ले युद्धमें वीर अर्जुनके सामने जाकर उन्हें आगे, पीछे और पार्श्वभाग—सब ओरसे घेर लिया और जैसे बादल सूर्यको ढक लेते हैं, उसी प्रकार बाणोंसे अर्जुनको आच्छादित कर दिया॥५३-५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्रवृत्तः सुमहान् संग्रामः शोणितोदकः।
तावकानां च समरे पाण्डवानां च भारत ॥ ५५ ॥

मूलम्

ततः प्रवृत्तः सुमहान् संग्रामः शोणितोदकः।
तावकानां च समरे पाण्डवानां च भारत ॥ ५५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! तत्पश्चात् रणक्षेत्रमें आपके पुत्रों और पाण्डवोंमें खूनको पानीकी तरह बहानेवाला महान् संग्राम छिड़ गया॥५५॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि सप्तमयुद्धदिवसे सुशर्मार्जुनसमागमे चतुरशीतितमोऽध्यायः ॥ ८४ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें सातवें दिनके युद्धमें सुशर्मा और अर्जुनकी भिड़ंतसे सम्बन्ध रखनेवाला चौरासीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥८४॥