०७६ धृतराष्ट्रचिन्तायाम्

भागसूचना

षट्सप्ततितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

धृतराष्ट्रकी चिन्ता

मूलम् (वचनम्)

धृतराष्ट्र उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं बहुगुणं सैन्यमेवं बहुविधं पुरा।
व्यूढमेवं यथाशास्त्रममोघं चैव संजय ॥ १ ॥

मूलम्

एवं बहुगुणं सैन्यमेवं बहुविधं पुरा।
व्यूढमेवं यथाशास्त्रममोघं चैव संजय ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतराष्ट्र बोले— संजय! इस प्रकार हमारी सेना अनेक गुणोंसे सम्पन्न है। अनेक अंगोंसे युक्त और अनेक प्रकारसे संगठित है तथा शास्त्रीय विधिसे उसकी व्यूहरचना की गयी है। अतः वह अमोघ (विजय पानेमें विफल न होनेवाली) है॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हृष्टमस्माकमत्यन्तमभिकामं च नः सदा।
प्रह्वमव्यसनोपेतं पुरस्ताद् दृष्टविक्रमम् ॥ २ ॥

मूलम्

हृष्टमस्माकमत्यन्तमभिकामं च नः सदा।
प्रह्वमव्यसनोपेतं पुरस्ताद् दृष्टविक्रमम् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हमारी यह सेना हमलोगोंपर सदा प्रसन्न और अनुरक्त रहनेवाली है। हमारे प्रति सर्वदा विनीतभाव रखती आयी है। यह किसी भी व्यसनमें नहीं फँसी है। पूर्वकालमें इसका पराक्रम देखा जा चुका है॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नातिवृद्धमबालं च न कृशं न च पीवरम्।
लघुवृत्तायतप्रायं सारयोधमनामयम् ॥ ३ ॥

मूलम्

नातिवृद्धमबालं च न कृशं न च पीवरम्।
लघुवृत्तायतप्रायं सारयोधमनामयम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसमें न कोई अत्यन्त बूढ़ा है, न बालक है, न अत्यन्त दुबला है और न अत्यन्त मोटा ही है। इसमें शीघ्र कार्य करनेवाले, प्रायः ऊँचे कदके लोग हैं। इस सेनाका प्रत्येक सैनिक सारवान् योद्धा और नीरोग है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आत्तसंनाहशस्त्रं च बहुशस्त्रपरिग्रहम् ।
असियुद्धे नियुद्धे च गदायुद्धे च कोविदम् ॥ ४ ॥

मूलम्

आत्तसंनाहशस्त्रं च बहुशस्त्रपरिग्रहम् ।
असियुद्धे नियुद्धे च गदायुद्धे च कोविदम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यहाँ सबने कवच एवं अस्त्र-शस्त्र धारण कर रखा है। अनेक प्रकारके बहुसंख्यक शस्त्रोंका संग्रह किया गया है। यहाँका एक-एक योद्धा खड्‌गयुद्ध, मल्लयुद्ध और गदायुद्धमें कुशल है॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रासर्ष्टितोमरेष्वाजौ परिघेष्वायसेषु च ।
भिन्दिपालेषु शक्तीषु मुसलेषु च सर्वशः ॥ ५ ॥
कम्पनेषु च चापेषु कणपेषु च सर्वशः।
क्षेपणीयेषु चित्रेषु मुष्टियुद्धेषु च क्षमम् ॥ ६ ॥

मूलम्

प्रासर्ष्टितोमरेष्वाजौ परिघेष्वायसेषु च ।
भिन्दिपालेषु शक्तीषु मुसलेषु च सर्वशः ॥ ५ ॥
कम्पनेषु च चापेषु कणपेषु च सर्वशः।
क्षेपणीयेषु चित्रेषु मुष्टियुद्धेषु च क्षमम् ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

ये सैनिक प्रास, ऋष्टि, तोमर, लोहमय परिघ, भिन्दिपाल, शक्ति, मुसल, कम्पन, चाप तथा कणप आदि दूसरोंपर चलानेयोग्य विचित्र अस्त्रोंका युद्धमें प्रयोग करनेकी कलामें कुशल तथा मुष्टियुद्धमें भी सब प्रकारसे समर्थ हैं॥५-६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपरोक्षं च विद्यासु व्यायामे च कृतश्रमम्।
शस्त्रग्रहणविद्यासु सर्वासु परिनिष्ठितम् ॥ ७ ॥

मूलम्

अपरोक्षं च विद्यासु व्यायामे च कृतश्रमम्।
शस्त्रग्रहणविद्यासु सर्वासु परिनिष्ठितम् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हमारी इस सेनाको धनुर्वेदका प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त है। इसके सैनिकोंने व्यायाम (अस्त्र-शस्त्रोंके अभ्यास)-में भी अधिक परिश्रम किया है। ये शस्त्रग्रहणसे सम्बन्ध रखनेवाली सभी विद्याओंमें पारंगत हैं॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आरोहे पर्यवस्कन्दे सरणे सान्तप्लुते।
सम्यक् प्रहरणे याने व्यपयाने च कोविदम् ॥ ८ ॥

मूलम्

आरोहे पर्यवस्कन्दे सरणे सान्तप्लुते।
सम्यक् प्रहरणे याने व्यपयाने च कोविदम् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

ये हाथी, घोड़े आदि सवारियोंपर चढ़ने, उतरने, आगे बढ़ने, बीचमें ही कूद पड़ने, अच्छी तरह प्रहार करने, चढ़ाई करने और पीछे हटनेमें भी प्रवीण हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नागाश्वरथयानेषु बहुशः सुपरीक्षितम् ।
परीक्ष्य च यथान्यायं वेतनेनोपपादितम् ॥ ९ ॥

मूलम्

नागाश्वरथयानेषु बहुशः सुपरीक्षितम् ।
परीक्ष्य च यथान्यायं वेतनेनोपपादितम् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हाथी, घोड़े, रथ आदिकी सवारियोंद्वारा रणयात्रा करनेमें इस सेनाकी अनेक प्रकार परीक्षा की जा चुकी है। परीक्षा करके प्रत्येक सैनिकको उसकी योग्यताके अनुकूल यथोचित वेतन दे दिया गया है॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न गोष्ठ्या नोपकारेण न च बन्धुनिमित्ततः।
न सौहृदबलैर्वापि नाकुलीनपरिग्रहैः ॥ १० ॥

मूलम्

न गोष्ठ्या नोपकारेण न च बन्धुनिमित्ततः।
न सौहृदबलैर्वापि नाकुलीनपरिग्रहैः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इनमेंसे किसीको मित्रोंकी गोष्ठीसे लाकर, सामान्य उपकार करके, भाई-बन्धु होनेके कारण, सौहार्दवश अथवा बलप्रयोग करके सेनामें सम्मिलित नहीं किया गया है। जो कुलीन नहीं हैं, ऐसे लोगोंका भी इस सेनामें संग्रह नहीं हुआ है॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

समृद्धजनमार्यं च तुष्टसम्बन्धिबान्धवम् ।
कृतोपकारभूयिष्ठं यशस्वि च मनस्वि च ॥ ११ ॥

मूलम्

समृद्धजनमार्यं च तुष्टसम्बन्धिबान्धवम् ।
कृतोपकारभूयिष्ठं यशस्वि च मनस्वि च ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हमारी सेनामें जो लोग हैं, वे सब समृद्धिशाली और श्रेष्ठ हैं। उनके सगे-सम्बन्धी, भाई-बन्धु भी संतुष्ट हैं। इन सबपर हमारी ओरसे विशेष उपकार किया गया है। ये सभी यशस्वी और मनस्वी हैं॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वजनैस्तु नरैर्मुख्यैर्बहुशो दृष्टकर्मभिः ।
लोकपालोपमैस्तात पालितं लोकविश्रुतम् ॥ १२ ॥

मूलम्

स्वजनैस्तु नरैर्मुख्यैर्बहुशो दृष्टकर्मभिः ।
लोकपालोपमैस्तात पालितं लोकविश्रुतम् ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तात! जिनके कार्य और व्यवहारको कई बार देखा गया है, ऐसे मुख्य-मुख्य स्वजनोंद्वारा, जो लोकपालके समान पराक्रमी हैं, इस सेनाका पालन-पोषण होता है। यह सम्पूर्ण जगत्‌में विख्यात है॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बहुभिः क्षत्रियैर्गुप्तं पृथिव्यां लोकसम्मतैः।
अस्मानभिगतैः कामात् सबलैः सपदानुगैः ॥ १३ ॥

मूलम्

बहुभिः क्षत्रियैर्गुप्तं पृथिव्यां लोकसम्मतैः।
अस्मानभिगतैः कामात् सबलैः सपदानुगैः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो अपने वीरताके लिये भूमण्डलमें विख्यात तथा लोकमें सम्मानित हैं, ऐसे बहुत-से क्षत्रिय अपनी इच्छासे ही सेना और सेवकोंके साथ हमारे पास आये हैं, उनके द्वारा यह कौरव-सेना सुरक्षित है॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महोदधिमिवापूर्णमापगाभिः समन्ततः ।
अपक्षैः पक्षिसंकाशै रथैर्नागैश्च संवृतम् ॥ १४ ॥

मूलम्

महोदधिमिवापूर्णमापगाभिः समन्ततः ।
अपक्षैः पक्षिसंकाशै रथैर्नागैश्च संवृतम् ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हमारी यह सेना महासागरके समान सब ओरसे परिपूर्ण है। इसमें बिना पंखके ही पक्षियोंके समान तीव्र गतिसे चलनेवाले रथ और हाथी इस प्रकार आकर मिलते हैं, जैसे समुद्रमें सब ओरसे नदियाँ आकर गिरती हैं॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नानायोधजलं भीमं वाहनोर्मितरङ्गिणम् ।
क्षेपण्यसिगदाशक्तिशरप्राससमाकुलम् ॥ १५ ॥

मूलम्

नानायोधजलं भीमं वाहनोर्मितरङ्गिणम् ।
क्षेपण्यसिगदाशक्तिशरप्राससमाकुलम् ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नाना प्रकारके योद्धा ही इस सैन्यसागरके जल हैं, वाहन ही उसमें उठती हुई छोटी-बड़ी तरंगें हैं। इसमें क्षेपणी, खड्ग, गदा, शक्ति, बाण और प्रास आदि अस्त्र-शस्त्र जल-जन्तुओंके समान भरे पड़े हैं॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ध्वजभूषणसम्बाधं रत्नपट्टसुसंचितम् ।
परिधावद्भिरश्वैश्च वायुवेगविकम्पितम् ॥ १६ ॥
अपारमिव गर्जन्तं सागरप्रतिमं महत्।

मूलम्

ध्वजभूषणसम्बाधं रत्नपट्टसुसंचितम् ।
परिधावद्भिरश्वैश्च वायुवेगविकम्पितम् ॥ १६ ॥
अपारमिव गर्जन्तं सागरप्रतिमं महत्।

अनुवाद (हिन्दी)

ध्वज और आभूषणोंसे भरी हुई यह सेना रत्नजटित पताकाओंसे व्याप्त है। दौड़ते हुए घोड़ोंसे जो इस सेनाका चंचल होना है, वही वायुवेगसे इस समुद्रका कम्पन है। सागरसदृश यह विशाल सेना देखनेमें अपार है और निरन्तर गर्जन करती रहती है॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रोणभीष्माभिसंगुप्तं गुप्तं च कृतवर्मणा ॥ १७ ॥
कृपदुःशासनाभ्यां च जयद्रथमुखैस्तथा ।
भगदत्तविकर्णाभ्यां द्रौणिसौबलबाह्लिकैः ॥ १८ ॥
गुप्तं प्रवीरैर्लोकैश्च सारवद्भिर्महात्मभिः ।
यदहन्यत संग्रामे दैवमत्र पुरातनम् ॥ १९ ॥

मूलम्

द्रोणभीष्माभिसंगुप्तं गुप्तं च कृतवर्मणा ॥ १७ ॥
कृपदुःशासनाभ्यां च जयद्रथमुखैस्तथा ।
भगदत्तविकर्णाभ्यां द्रौणिसौबलबाह्लिकैः ॥ १८ ॥
गुप्तं प्रवीरैर्लोकैश्च सारवद्भिर्महात्मभिः ।
यदहन्यत संग्रामे दैवमत्र पुरातनम् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

द्रोणाचार्य, भीष्म, कृतवर्मा, कृपाचार्य, दुःशासन, जयद्रथ, भगदत्त, विकर्ण, अश्वत्थामा, शकुनि तथा बाह्लिक आदि प्रमुख वीरों तथा अन्य शक्तिशाली महामनस्वी लोगोंद्वारा मेरी सेना सदा सुरक्षित रहती है। ऐसी सेना भी यदि संग्राममें मारी गयी तो इसमें हमलोगोंका पुरातन प्रारब्ध ही कारण है॥१७—१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नैतादृशं समुद्योगं दृष्टवन्तो हि मानुषाः।
ऋषयो वा महाभागाः पुराणा भुवि संजय ॥ २० ॥

मूलम्

नैतादृशं समुद्योगं दृष्टवन्तो हि मानुषाः।
ऋषयो वा महाभागाः पुराणा भुवि संजय ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! इस भूतलपर इतनी बड़ी सेनाका जमाव मनुष्योंने कभी नहीं देखा होगा अथवा प्राचीन महाभाग ऋषियोंने भी नहीं देखा होगा॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ईदृशोऽपि बलौघस्तु संयुक्तः शस्त्रसम्पदा।
वध्यते यत्र संग्रामे किमन्यद् भागधेयतः ॥ २१ ॥

मूलम्

ईदृशोऽपि बलौघस्तु संयुक्तः शस्त्रसम्पदा।
वध्यते यत्र संग्रामे किमन्यद् भागधेयतः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इतना बड़ा सैन्यसमुदाय शस्त्रसम्पत्तिसे संयुक्त होनेपर भी यदि संग्राममें विनष्ट हो रहा है, तो इसमें भाग्यके सिवा और क्या कारण हो सकता है?॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विपरीतमिदं सर्वं प्रतिभाति हि संजय।
यत्रेदृशं बलं घोरं पाण्डवान्नातरद् रणे ॥ २२ ॥

मूलम्

विपरीतमिदं सर्वं प्रतिभाति हि संजय।
यत्रेदृशं बलं घोरं पाण्डवान्नातरद् रणे ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! यह सब कुछ मुझे विपरीत जान पड़ता है कि ऐसा भयंकर सैन्यसमूह भी वहाँ युद्धमें पाण्डवोंसे पार नहीं पा सका॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पाण्डवार्थाय नियतं देवास्तत्र समागताः।
युध्यन्ते मामकं सैन्यं यथावध्यत संजय ॥ २३ ॥

मूलम्

पाण्डवार्थाय नियतं देवास्तत्र समागताः।
युध्यन्ते मामकं सैन्यं यथावध्यत संजय ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! निश्चय ही पाण्डवोंके लिये देवता आकर मेरी सेनाके साथ युद्ध करते हैं, तभी तो वह प्रतिदिन मारी जा रही है॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उक्तो हि विदुरेणाहं हितं पथ्यं च नित्यशः।
न च जग्राह तन्मन्दः पुत्रो दुर्योधनो मम ॥ २४ ॥
तस्य मन्ये मतिः पूर्वं सर्वज्ञस्य महात्मनः।
आसीद् यथागतं तात येन दृष्टमिदं पुरा ॥ २५ ॥

मूलम्

उक्तो हि विदुरेणाहं हितं पथ्यं च नित्यशः।
न च जग्राह तन्मन्दः पुत्रो दुर्योधनो मम ॥ २४ ॥
तस्य मन्ये मतिः पूर्वं सर्वज्ञस्य महात्मनः।
आसीद् यथागतं तात येन दृष्टमिदं पुरा ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

विदुरने नित्य ही हित और लाभकी बातें बतायीं; परंतु मेरे मूर्ख पुत्र दुर्योधनने नहीं माना। तात! मैं समझता हूँ, महात्मा विदुर सर्वज्ञ हैं। इसीलिये पहले ही उनकी बुद्धिमें ये सब बातें आ गयी थीं। आज जो कुछ प्राप्त हुआ है, यह पहले ही उनकी दृष्टिमें आ गया था॥२४-२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथवा भाव्यमेवं हि संजयैतेन सर्वथा।
पुरा धात्रा यथा सृष्टं तत् तथा नैतदन्यथा ॥ २६ ॥

मूलम्

अथवा भाव्यमेवं हि संजयैतेन सर्वथा।
पुरा धात्रा यथा सृष्टं तत् तथा नैतदन्यथा ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! अथवा यह सब प्रकारसे ऐसा ही होनेवाला था। विधाताने जो पहलेसे रच रखा है, वह उसी रूपमें होता है, उसे कोई बदल नहीं सकता॥२६॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि धृतराष्ट्रचिन्तायां षट्‌सप्ततितमोऽध्यायः ॥ ७६ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें धृतराष्ट्रकी चिन्ताविषयक छिहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥७६॥