०७५ षष्ठदिवसयुद्धारम्भे

भागसूचना

पञ्चसप्ततितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

छठे दिनके युद्धका आरम्भ, पाण्डव तथा कौरव-सेनाका क्रमशः मकरव्यूह एवं क्रौंचव्यूह बनाकर युद्धमें प्रवृत्त होना

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते विश्रम्य ततो राजन् सहिताः कुरुपाण्डवाः।
व्यतीतायां तु शर्वर्यां पुनर्युद्धाय निर्ययुः ॥ १ ॥

मूलम्

ते विश्रम्य ततो राजन् सहिताः कुरुपाण्डवाः।
व्यतीतायां तु शर्वर्यां पुनर्युद्धाय निर्ययुः ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! रातको विश्राम करनेके अनन्तर जब वह रात बीत गयी, तब कौरव और पाण्डव पुनः युद्धके लिये साथ-साथ निकले॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्र शब्दो महानासीत् तव तेषां च भारत।
युज्यतां रथमुख्यानां कल्प्यतां चैव दन्तिनाम् ॥ २ ॥
संनह्यतां पदातीनां हयानां चैव भारत।
शङ्खदुन्दुभिनादश्च तुमुलः सर्वतोऽभवत् ॥ ३ ॥

मूलम्

तत्र शब्दो महानासीत् तव तेषां च भारत।
युज्यतां रथमुख्यानां कल्प्यतां चैव दन्तिनाम् ॥ २ ॥
संनह्यतां पदातीनां हयानां चैव भारत।
शङ्खदुन्दुभिनादश्च तुमुलः सर्वतोऽभवत् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! उस समय वहाँ आपके और पाण्डव-पक्षके सैनिकोंमें बड़ा कोलाहल मचा। कुछ लोग श्रेष्ठ रथोंको जोत रहे थे, कुछ लोग हाथियोंको सुसज्जित करते थे, कहीं पैदल सैनिक और घोड़े कवच बाँधकर साज-बाज धारण कर तैयार किये जा रहे थे। शंखों और दुन्दुभियोंकी ध्वनि बड़े चोर-जोरसे हो रही थी। इन सबका सम्मिलित शब्द सब ओर गूँज उठा था॥२-३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो युधिष्ठिरो राजा धृष्टद्युम्नमभाषत।
व्यूहं व्यूह महाबाहो मकरं शत्रुनाशनम् ॥ ४ ॥

मूलम्

ततो युधिष्ठिरो राजा धृष्टद्युम्नमभाषत।
व्यूहं व्यूह महाबाहो मकरं शत्रुनाशनम् ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर राजा युधिष्ठिरने धृष्टद्युम्नसे कहा—‘महाबाहो! तुम शत्रुनाशक मकरव्यूहकी रचना करो’॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमुक्तस्तु पार्थेन धृष्टद्युम्नो महारथः।
व्यादिदेश महाराज रथिनो रथिनां वरः ॥ ५ ॥

मूलम्

एवमुक्तस्तु पार्थेन धृष्टद्युम्नो महारथः।
व्यादिदेश महाराज रथिनो रथिनां वरः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! कुन्तीपुत्र युधिष्ठिरके ऐसा कहनेपर रथियोंमें श्रेष्ठ महारथी धृष्टद्युम्नने अपने समस्त रथियोंको मकरव्यूह बनानेके लिये आज्ञा दे दी॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिरोऽभूद् द्रुपदस्तस्य पाण्डवश्च धनंजयः।
चक्षुषी सहदेवश्च नकुलश्च महारथः ॥ ६ ॥

मूलम्

शिरोऽभूद् द्रुपदस्तस्य पाण्डवश्च धनंजयः।
चक्षुषी सहदेवश्च नकुलश्च महारथः ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसके मस्तकके स्थानपर राजा द्रुपद तथा पाण्डुपुत्र अर्जुन खड़े हुए। महारथी नकुल और सहदेव नेत्रोंके स्थानमें स्थित हुए॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुण्डमासीन्महाराज भीमसेनो महाबलः ।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च राक्षसश्च घटोत्कचः ॥ ७ ॥
सात्यकिर्धर्मराजश्च व्यूहग्रीवां समास्थिताः ।

मूलम्

तुण्डमासीन्महाराज भीमसेनो महाबलः ।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च राक्षसश्च घटोत्कचः ॥ ७ ॥
सात्यकिर्धर्मराजश्च व्यूहग्रीवां समास्थिताः ।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! महाबली भीमसेन उसके मुखकी जगह खड़े हुए। सुभद्राकुमार अभिमन्यु, द्रौपदीके पाँच पुत्र, राक्षस घटोत्कच, सात्यकि और धर्मराज युधिष्ठिर—ये उस मकरव्यूहके ग्रीवाभागमें स्थित हुए॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पृष्ठमासीन्महाराज विराटो वाहिनीपतिः ॥ ८ ॥
धृष्टद्युम्नेन सहितो महत्या सेनयावृतः।

मूलम्

पृष्ठमासीन्महाराज विराटो वाहिनीपतिः ॥ ८ ॥
धृष्टद्युम्नेन सहितो महत्या सेनयावृतः।

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! सेनापति विराट विशाल सेनासे घिरकर धृष्टद्युम्नके साथ उस व्यूहके पृष्ठ भागमें खड़े हुए॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

केकया भ्रातरः पञ्च वामपार्श्वं समाश्रिताः ॥ ९ ॥
धृष्टकेतुर्नरव्याघ्रश्चेकितानश्च वीर्यवान् ।
दक्षिणं पक्षमाश्रित्य स्थितौ व्यूहस्य रक्षणे ॥ १० ॥

मूलम्

केकया भ्रातरः पञ्च वामपार्श्वं समाश्रिताः ॥ ९ ॥
धृष्टकेतुर्नरव्याघ्रश्चेकितानश्च वीर्यवान् ।
दक्षिणं पक्षमाश्रित्य स्थितौ व्यूहस्य रक्षणे ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाँच भाई केकयराजकुमार उनके वामपार्श्वमें खड़े थे। नरश्रेष्ठ धृष्टकेतु और पराक्रमी चेकितान—ये व्यूहके दाहिने भागमें स्थित होकर उसकी रक्षा करते थे॥९-१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पादयोस्तु महाराज स्थितः श्रीमान् महारथः।
कुन्तिभोजः शतानीको महत्या सेनयावृतः ॥ ११ ॥

मूलम्

पादयोस्तु महाराज स्थितः श्रीमान् महारथः।
कुन्तिभोजः शतानीको महत्या सेनयावृतः ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! उसके दोनों पैरोंकी जगह महारथी श्रीमान् कुन्तिभोज और विशाल सेनासहित शतानीक खड़े थे॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिखण्डी तु महेष्वासः सोमकैः संवृतो बली।
इरावांश्च ततः पुच्छे मकरस्य व्यवस्थितौ ॥ १२ ॥

मूलम्

शिखण्डी तु महेष्वासः सोमकैः संवृतो बली।
इरावांश्च ततः पुच्छे मकरस्य व्यवस्थितौ ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सोमकोंसे घिरा हुआ महाधनुर्धर शिखण्डी और बलवान् इरावान्—ये दोनों उस मकरव्यूहके पुच्छ-भागमें खड़े थे॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमेतं महाव्यूहं व्यूह्य भारत पाण्डवाः।
सूर्योदये महाराज पुनर्युद्धाय दंशिताः ॥ १३ ॥

मूलम्

एवमेतं महाव्यूहं व्यूह्य भारत पाण्डवाः।
सूर्योदये महाराज पुनर्युद्धाय दंशिताः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! भरतनन्दन! इस प्रकार उस महान् मकरव्यूहकी रचना करके पाण्डव कवच बाँधकर सूर्योदयके समय पुनः युद्धके लिये तैयार हो गये॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कौरवानभ्ययुस्तूर्णं हस्त्यश्वरथपत्तिभिः ।
समुच्छ्रितैर्ध्वजैश्छत्रैः शस्त्रैश्च विमलैः शितैः ॥ १४ ॥

मूलम्

कौरवानभ्ययुस्तूर्णं हस्त्यश्वरथपत्तिभिः ।
समुच्छ्रितैर्ध्वजैश्छत्रैः शस्त्रैश्च विमलैः शितैः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

ऊँची-ऊँची ध्वजाओं, छत्रों तथा चमकीले और तीखे अस्त्र-शस्त्रोंसे युक्त हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सैनिकोंकी चतुरंगिणी सेनाके साथ पाण्डवोंने कौरवोंपर शीघ्रतापूर्वक आक्रमण किया॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्यूढं दृष्ट्‌वा तु तत् सैन्यं पिता देवव्रतस्तव।
क्रौञ्चेन महता राजन् प्रत्यव्यूहत वाहिनीम् ॥ १५ ॥

मूलम्

व्यूढं दृष्ट्‌वा तु तत् सैन्यं पिता देवव्रतस्तव।
क्रौञ्चेन महता राजन् प्रत्यव्यूहत वाहिनीम् ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तब आपके ताऊ देवव्रतने पाण्डवोंका वह व्यूह देखकर उसके मुकाबिलेमें अपनी सेनाको महान् क्रौंचव्यूहके रूपमें संगठित किया॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य तुण्डे महेष्वासो भारद्वाजो व्यरोचत।
अश्वत्थामा कृपश्चैव चक्षुरासीन्नरेश्वर ॥ १६ ॥

मूलम्

तस्य तुण्डे महेष्वासो भारद्वाजो व्यरोचत।
अश्वत्थामा कृपश्चैव चक्षुरासीन्नरेश्वर ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसकी चोंचके स्थानमें महाधनुर्धर द्रोणाचार्य सुशोभित हुए। नरेश्वर! अश्वत्थामा और कृपाचार्य नेत्रोंके स्थानमें खड़े हुए॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृतवर्मा तु सहितः काम्बोजवरबाह्लिकैः।
शिरस्यासीन्नरश्रेष्ठः श्रेष्ठः सर्वधनुष्मताम् ॥ १७ ॥

मूलम्

कृतवर्मा तु सहितः काम्बोजवरबाह्लिकैः।
शिरस्यासीन्नरश्रेष्ठः श्रेष्ठः सर्वधनुष्मताम् ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

काम्बोज और बाह्लिकदेशके उत्तम सैनिकोंके साथ समस्त धनुर्धरोंमें श्रेष्ठ नरप्रवर कृतवर्मा व्यूहके शिरोभागमें स्थित हुए॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ग्रीवायां शूरसेनश्च तव पुत्रश्च मारिष।
दुर्योधनो महाराज राजभिर्बहुभिर्वृतः ॥ १८ ॥

मूलम्

ग्रीवायां शूरसेनश्च तव पुत्रश्च मारिष।
दुर्योधनो महाराज राजभिर्बहुभिर्वृतः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! महाराज! राजा शूरसेन तथा आपका पुत्र दुर्योधन—ये दोनों बहुत-से राजाओंके साथ क्रौंचव्यूहके ग्रीवाभागमें स्थित हुए॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्राग्ज्योतिषस्तु सहितो मद्रसौवीरकेकयैः ।
उरस्यभून्नरश्रेष्ठ महत्या सेनयावृतः ॥ १९ ॥

मूलम्

प्राग्ज्योतिषस्तु सहितो मद्रसौवीरकेकयैः ।
उरस्यभून्नरश्रेष्ठ महत्या सेनयावृतः ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरश्रेष्ठ! मद्र, सौवीर और केकय योद्धाओंके साथ विशाल सेनासे घिरे हुए प्राग्ज्योतिषपुरके राजा भगदत्त उस व्यूहके वक्षःस्थलमें स्थित हुए॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वसेनया च सहितः सुशर्मा प्रस्थलाधिपः।
वामपक्षं समाश्रित्य दंशितः समवस्थितः ॥ २० ॥

मूलम्

स्वसेनया च सहितः सुशर्मा प्रस्थलाधिपः।
वामपक्षं समाश्रित्य दंशितः समवस्थितः ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रस्थलाधिपति (त्रिगर्तराज) सुशर्मा कवच धारण करके अपनी सेनाके साथ व्यूहके वामपक्षका आश्रय लेकर खड़े थे॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुषारा यवनाश्चैव शकाश्च सह चूचुपैः।
दक्षिणं पक्षमाश्रित्य स्थिता व्यूहस्य भारत ॥ २१ ॥

मूलम्

तुषारा यवनाश्चैव शकाश्च सह चूचुपैः।
दक्षिणं पक्षमाश्रित्य स्थिता व्यूहस्य भारत ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! तुषार, यवन, शक और चूचुपदेशके सैनिक व्यूहके दाहिने पक्षका आश्रय लेकर स्थित हुए॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रुतायुश्च शतायुश्च सौमदत्तिश्च मारिष।
व्यूहस्य जघने तस्थू रक्षमाणाः परस्परम् ॥ २२ ॥

मूलम्

श्रुतायुश्च शतायुश्च सौमदत्तिश्च मारिष।
व्यूहस्य जघने तस्थू रक्षमाणाः परस्परम् ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मारिष! श्रुतायु, शतायु तथा सोमदत्तकुमार भूरिश्रवा—ये परस्पर एक-दूसरेकी रक्षा करते हुए व्यूहके जघनप्रदेशमें स्थित हुए॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो युद्धाय संजग्मुः पाण्डवाः कौरवैः सह।
सूर्योदये महाराज ततो युद्धमभून्महत् ॥ २३ ॥

मूलम्

ततो युद्धाय संजग्मुः पाण्डवाः कौरवैः सह।
सूर्योदये महाराज ततो युद्धमभून्महत् ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! तत्पश्चात् सूर्योदयकालमें पाण्डवोंने कौरवोंके साथ युद्धके लिये उनकी सेनापर आक्रमण किया; फिर तो बड़ा भयंकर युद्ध प्रारम्भ हुआ॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रतीयू रथिनो नागा नागांश्च रथिनो ययुः।
हयारोहान् रथारोहा रथिनश्चापि सादिनः ॥ २४ ॥

मूलम्

प्रतीयू रथिनो नागा नागांश्च रथिनो ययुः।
हयारोहान् रथारोहा रथिनश्चापि सादिनः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रथियोंकी ओर हाथी और हाथियोंकी ओर रथी बढ़े। घुड़सवारोंपर रथारोही तथा रथारोहियोंपर घुड़-सवार चढ़ आये॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सादिनश्च हयान् राजन् रथिनश्च महारणे।
हस्त्यारोहान् हयारोहा रथिनः सादिनस्तथा ॥ २५ ॥

मूलम्

सादिनश्च हयान् राजन् रथिनश्च महारणे।
हस्त्यारोहान् हयारोहा रथिनः सादिनस्तथा ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस महायुद्धमें घुड़सवार योद्धा घुड़सवारों तथा रथियोंपर भी चढ़ दौड़े। इसी प्रकार अश्वारोही हाथीसवारों तथा रथियोंपर भी टूट पड़े॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथिनः पत्तिभिः सार्धं सादिनश्चापि पत्तिभिः।
अन्योन्यं समरे राजन् प्रत्यधावन्नमर्षिताः ॥ २६ ॥

मूलम्

रथिनः पत्तिभिः सार्धं सादिनश्चापि पत्तिभिः।
अन्योन्यं समरे राजन् प्रत्यधावन्नमर्षिताः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रथी और घुड़सवार दोनों ही पैदल सेनाओंपर आक्रमण करने लगे। राजन्! इस प्रकार अमर्षमें भरे हुए ये समस्त सैनिक एक-दूसरेपर धावा करने लगे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमसेनार्जुनयमैर्गुप्ता चान्यैर्महारथैः ।
शुशुभे पाण्डवी सेना नक्षत्रैरिव शर्वरी ॥ २७ ॥

मूलम्

भीमसेनार्जुनयमैर्गुप्ता चान्यैर्महारथैः ।
शुशुभे पाण्डवी सेना नक्षत्रैरिव शर्वरी ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव तथा अन्य महारथियोंसे सुरक्षित हुई पाण्डवसेना नक्षत्रोंसे रात्रिकी भाँति सुशोभित हो रही थी॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथा भीष्मकृपद्रोणशल्यदुर्योधनादिभिः ।
तवापि च बभौ सेना ग्रहैर्द्यौरिव संवृता ॥ २८ ॥

मूलम्

तथा भीष्मकृपद्रोणशल्यदुर्योधनादिभिः ।
तवापि च बभौ सेना ग्रहैर्द्यौरिव संवृता ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, शल्य और दुर्योधन आदिसे घिरी हुई आपकी सेना ग्रहोंसे आकाशकी भाँति शोभा पा रही थी॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमसेनस्तु कौन्तेयो द्रोणं दृष्ट्वा पराक्रमी।
अभ्ययाज्जवनैरश्वैर्भारद्वाजस्य वाहिनीम् ॥ २९ ॥

मूलम्

भीमसेनस्तु कौन्तेयो द्रोणं दृष्ट्वा पराक्रमी।
अभ्ययाज्जवनैरश्वैर्भारद्वाजस्य वाहिनीम् ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पराक्रमी कुन्तीकुमार भीमसेनने द्रोणाचार्यको देखकर वेगशाली अश्वोंद्वारा द्रोणकी सेनापर धावा किया॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रोणस्तु समरे क्रुद्धो भीमं नवभिरायसैः।
विव्याध समरश्लाघी मर्माण्युद्दिश्य वीर्यवान् ॥ ३० ॥

मूलम्

द्रोणस्तु समरे क्रुद्धो भीमं नवभिरायसैः।
विव्याध समरश्लाघी मर्माण्युद्दिश्य वीर्यवान् ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

युद्धकी स्पृहा रखनेवाले पराक्रमी द्रोणाचार्यने रणभूमिमें कुपित हो भीमके मर्मस्थानोंको लोहेके नौ बाणोंसे घायल कर दिया॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दृढाहतस्ततो भीमो भारद्वाजस्य संयुगे।
सारथिं प्रेषयामास यमस्य सदनं प्रति ॥ ३१ ॥

मूलम्

दृढाहतस्ततो भीमो भारद्वाजस्य संयुगे।
सारथिं प्रेषयामास यमस्य सदनं प्रति ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब युद्धमें द्रोणाचार्यके द्वारा अत्यन्त आहत होकर भीमसेनने उनके सारथिको यमलोक भेज दिया॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स संगृह्य स्वयं वाहान् भारद्वाजः प्रतापवान्।
व्यधमत् पाण्डवीं सेनां तूलराशिमिवानलः ॥ ३२ ॥

मूलम्

स संगृह्य स्वयं वाहान् भारद्वाजः प्रतापवान्।
व्यधमत् पाण्डवीं सेनां तूलराशिमिवानलः ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब प्रतापी द्रोणाचार्य स्वयं ही घोड़ोंकी बागडोर सँभालते हुए पाण्डवसेनाका उसी प्रकार संहार करने लगे, जैसे आग रुईके ढेरको भस्म कर डालती है॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते वध्यमाना द्रोणेन भीष्मेण च नरोत्तमाः।
सृञ्जयाः केकयैः सार्धं पलायनपराऽभवन् ॥ ३३ ॥

मूलम्

ते वध्यमाना द्रोणेन भीष्मेण च नरोत्तमाः।
सृञ्जयाः केकयैः सार्धं पलायनपराऽभवन् ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे नरश्रेष्ठ सृंजय और केकय द्रोणाचार्य तथा भीष्मकी मार खाकर रणभूमिसे भागने लगे॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव तावकं सैन्यं भीमार्जुनपरिक्षतम्।
मुह्यते तत्र तत्रैव समदेव वराङ्गना ॥ ३४ ॥

मूलम्

तथैव तावकं सैन्यं भीमार्जुनपरिक्षतम्।
मुह्यते तत्र तत्रैव समदेव वराङ्गना ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार भीम और अर्जुनके बाणोंसे क्षत-विक्षत हुई आपकी सेना मतवाली स्त्रीकी भाँति जहाँ-तहाँ मूर्च्छित होने लगी॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभिद्येतां ततो व्यूहौ तस्मिन् वीरवरक्षये।
आसीद् व्यतिकरो घोरस्तव तेषां च भारत ॥ ३५ ॥

मूलम्

अभिद्येतां ततो व्यूहौ तस्मिन् वीरवरक्षये।
आसीद् व्यतिकरो घोरस्तव तेषां च भारत ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! बड़े-बड़े वीरोंका संहार करनेवाले उस युद्धमें दोनों सेनाओंके व्यूह टूट गये और आपके तथा पाण्डवोंके सैनिकोंका भयंकर सम्मिश्रण हो गया॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदद्भुतमपश्याम तावकानां परैः सह।
एकायनगताः सर्वे यदयुध्यन्त भारत ॥ ३६ ॥

मूलम्

तदद्भुतमपश्याम तावकानां परैः सह।
एकायनगताः सर्वे यदयुध्यन्त भारत ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! हमने आपके पुत्रोंका शत्रुओंके साथ अद्भुत पराक्रम देखा था। वे सब-के-सब एक पंक्तिमें खड़े होकर युद्ध कर रहे थे॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रतिसंवार्य चास्त्राणि तेऽन्योन्यस्य विशाम्पते।
युयुधुः पाण्डवाश्चैव कौरवाश्च महाबलाः ॥ ३७ ॥

मूलम्

प्रतिसंवार्य चास्त्राणि तेऽन्योन्यस्य विशाम्पते।
युयुधुः पाण्डवाश्चैव कौरवाश्च महाबलाः ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! महाबली कौरव तथा पाण्डव एक-दूसरेके अस्त्र-शस्त्रोंका निवारण करते हुए जूझ रहे थे॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि षष्ठदिवसयुद्धारम्भे पञ्चसप्ततितमोऽध्यायः ॥ ७५ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें छठे दिनके युद्धका आरम्भविषयक पचहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥७५॥