०७२ पञ्चमदिवसयुद्धे

भागसूचना

द्विसप्ततितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

दोनों सेनाओंका परस्पर घोर युद्ध

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिखण्डी सह मत्स्येन विराटेन विशाम्पते।
भीष्ममाशु महेष्वासमाससाद सुदुर्जयम् ॥ १ ॥

मूलम्

शिखण्डी सह मत्स्येन विराटेन विशाम्पते।
भीष्ममाशु महेष्वासमाससाद सुदुर्जयम् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— महाराज! मत्स्यनरेश विराटके साथ मिलकर शिखण्डीने अत्यन्त दुर्जय महाधनुर्धर भीष्मपर शीघ्रतापूर्वक चढ़ाई की॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रोणं कृपं विकर्णं च महेष्वासं महाबलम्।
राज्ञश्चान्यान् रणे शूरान् बहूनार्च्छद् धनंजयः ॥ २ ॥

मूलम्

द्रोणं कृपं विकर्णं च महेष्वासं महाबलम्।
राज्ञश्चान्यान् रणे शूरान् बहूनार्च्छद् धनंजयः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय अर्जुनने उस रणभूमिमें महाधनुर्धर एवं महाबली द्रोण, कृपाचार्य, विकर्ण तथा अन्यान्य बहुत-से शूरवीर नरेशोंको अपने बाणोंद्वारा पीड़ा पहुँचायी॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सैन्धवं च महेष्वासं सामात्यं सह बन्धुभिः।
प्राच्यांश्च दाक्षिणात्यांश्च भूमिपान् भूमिपर्षभ ॥ ३ ॥
पुत्रं च ते महेष्वासं दुर्योधनममर्षणम्।
दुःसहं चैव समरे भीमसेनोऽभ्यवर्तत ॥ ४ ॥

मूलम्

सैन्धवं च महेष्वासं सामात्यं सह बन्धुभिः।
प्राच्यांश्च दाक्षिणात्यांश्च भूमिपान् भूमिपर्षभ ॥ ३ ॥
पुत्रं च ते महेष्वासं दुर्योधनममर्षणम्।
दुःसहं चैव समरे भीमसेनोऽभ्यवर्तत ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नृपश्रेष्ठ! इसी प्रकार मन्त्री और बन्धुओंसहित महाधनुर्धर सिंधुराज जयद्रथपर, पूर्व और दक्षिणके भूमिपालोंपर तथा आपके अमर्षशील पुत्र महाधनुर्धर दुर्योधन एवं दुःसहपर भीमसेनने आक्रमण किया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहदेवस्तु शकुनिमुलूकं च महारथम्।
पितापुत्रौ महेष्वासावभ्यवर्तत दुर्जयौ ॥ ५ ॥

मूलम्

सहदेवस्तु शकुनिमुलूकं च महारथम्।
पितापुत्रौ महेष्वासावभ्यवर्तत दुर्जयौ ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सहदेवने शकुनि और महारथी उलूक—इन दोनों दुर्जय महाधनुर्धर पिता-पुत्रोंपर धावा किया॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युधिष्ठिरो महाराज गजानीकं महारथः।
समवर्तत संग्रामे पुत्रेण निकृतस्तव ॥ ६ ॥

मूलम्

युधिष्ठिरो महाराज गजानीकं महारथः।
समवर्तत संग्रामे पुत्रेण निकृतस्तव ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! आपके पुत्रद्वारा ठगे गये महारथी राजा युधिष्ठिरने संग्राममें गजसेनापर आक्रमण किया॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

माद्रीपुत्रस्तु नकुलः शूरसंक्रन्दनो युधि।
त्रिगर्तानां बलैः सार्धं समसज्जत पाण्डवः ॥ ७ ॥

मूलम्

माद्रीपुत्रस्तु नकुलः शूरसंक्रन्दनो युधि।
त्रिगर्तानां बलैः सार्धं समसज्जत पाण्डवः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

माद्रीकुमार पाण्डुनन्दन नकुल युद्धमें बड़े-बड़े शूरवीरोंको रुलानेवाले थे। उन्होंने त्रिगर्तोंकी सेनाके साथ युद्ध ठाना॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभ्यवर्तन्त संक्रुद्धाः समरे शाल्वकेकयान्।
सात्यकिश्चेकितानश्च सौभद्रश्च महारथः ॥ ८ ॥

मूलम्

अभ्यवर्तन्त संक्रुद्धाः समरे शाल्वकेकयान्।
सात्यकिश्चेकितानश्च सौभद्रश्च महारथः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सात्यकि, चेकितान और महारथी अभिमन्युने समरभूमिमें कुपित होकर शाल्वों तथा केकयोंपर धावा किया॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टकेतुश्च समरे राक्षसश्च घटोत्कचः।
(नाकुलिश्च शतानीकः समरे रथपुङ्गवः।)
पुत्राणां ते रथानीकं प्रत्युद्याताः सुदुर्जयाः ॥ ९ ॥

मूलम्

धृष्टकेतुश्च समरे राक्षसश्च घटोत्कचः।
(नाकुलिश्च शतानीकः समरे रथपुङ्गवः।)
पुत्राणां ते रथानीकं प्रत्युद्याताः सुदुर्जयाः ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृष्टकेतु, राक्षस घटोत्कच और नकुलपुत्र श्रेष्ठ रथी शतानीक—इन अत्यन्त दुर्जय वीरोंने समरांगणमें आपकी रथसेनापर आक्रमण किया॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सेनापतिरमेयात्मा धृष्टद्युम्नो महाबलः ।
द्रोणेन समरे राजन् समियायोग्रकर्मणा ॥ १० ॥

मूलम्

सेनापतिरमेयात्मा धृष्टद्युम्नो महाबलः ।
द्रोणेन समरे राजन् समियायोग्रकर्मणा ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! अनन्त आत्मबलसे सम्पन्न पाण्डव-सेनापति महाबली धृष्टद्युम्नने संग्रामभूमिमें भयंकर कर्म करनेवाले द्रोणाचार्यसे लोहा लिया॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवमेते महेष्वासास्तावकाः पाण्डवैः सह।
समेत्य समरे शूराः सम्प्रहारं प्रचक्रिरे ॥ ११ ॥

मूलम्

एवमेते महेष्वासास्तावकाः पाण्डवैः सह।
समेत्य समरे शूराः सम्प्रहारं प्रचक्रिरे ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार ये आपके महाधनुर्धर शूरवीर योद्धा पाण्डवोंके साथ समरभूमिमें युद्ध करने लगे॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मध्यंदिनगते सूर्ये नभस्याकुलतां गते।
कुरवः पाण्डवेयाश्च निजघ्नुरितरेतरम् ॥ १२ ॥

मूलम्

मध्यंदिनगते सूर्ये नभस्याकुलतां गते।
कुरवः पाण्डवेयाश्च निजघ्नुरितरेतरम् ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सूर्यदेव दिनके मध्यभागमें आ गये। आकाश तपने लगा। परंतु उस समय भी कौरव तथा पाण्डव एक-दूसरेको मार रहे थे॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ध्वजिनो हेमचित्राङ्गा विचरन्तो रणाजिरे।
सपताका रथा रेजुर्वैयाघ्रपरिवारणाः ॥ १३ ॥
समेतानां च समरे जिगीषूणां परस्परम्।
बभूव तुमुलः शब्दः सिंहानामिव नर्दताम् ॥ १४ ॥

मूलम्

ध्वजिनो हेमचित्राङ्गा विचरन्तो रणाजिरे।
सपताका रथा रेजुर्वैयाघ्रपरिवारणाः ॥ १३ ॥
समेतानां च समरे जिगीषूणां परस्परम्।
बभूव तुमुलः शब्दः सिंहानामिव नर्दताम् ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनपर ध्वजा और पताकाएँ फहरा रही थीं, जिनका एक-एक अवयव सुवर्णभूषित हो विचित्र शोभा धारण करता था तथा जिनपर व्याघ्रके चर्मका आवरण पड़ा हुआ था, ऐसे अनेक रथ उस समरांगणमें विचरते हुए शोभा पा रहे थे। समरमें एक-दूसरेसे भिड़कर परस्पर विजय पानेकी इच्छावाले शूरवीर सिंहके समान गर्जना कर रहे थे और उनका वह तुमुल नाद सब ओर गूँज रहा था॥१३-१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राद्भुतमपश्याम सम्प्रहारं सुदारुणम् ।
यदकुर्वन् रणे शूराः सृंजयाः कुरुभिः सह ॥ १५ ॥
नैव खं न दिशो राजन् न सूर्यं शत्रुतापन।
विदिशो वापि पश्यामः शरैर्मुक्तैः समन्ततः ॥ १६ ॥

मूलम्

तत्राद्भुतमपश्याम सम्प्रहारं सुदारुणम् ।
यदकुर्वन् रणे शूराः सृंजयाः कुरुभिः सह ॥ १५ ॥
नैव खं न दिशो राजन् न सूर्यं शत्रुतापन।
विदिशो वापि पश्यामः शरैर्मुक्तैः समन्ततः ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! हमने वहाँ अत्यन्त भयंकर और अद्भुत संग्राम देखा, जिसे रणवीर सृंजयोंने कौरवोंके साथ किया था। शत्रुओंको संताप देनेवाले नरेश! वहाँ चारों ओर इतने बाण छोड़े गये थे कि उनसे आच्छादित हो जानेके कारण हम आकाश, सूर्य, दिशा तथा विदिशाओंको भी नहीं देख पाते थे॥१५-१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शक्तीनां विमलाग्राणां तोमराणां तथास्यताम्।
निस्त्रिंशानां च पीतानां नीलोत्पलनिभाः प्रभाः ॥ १७ ॥

मूलम्

शक्तीनां विमलाग्राणां तोमराणां तथास्यताम्।
निस्त्रिंशानां च पीतानां नीलोत्पलनिभाः प्रभाः ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

चमकती हुई धारवाली शक्तियाँ, चलाये जाते हुए तोमरों और पानीदार तलवारोंकी प्रभा नील कमलके समान सुशोभित हो रही थीं॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कवचानां विचित्राणां भूषणानां प्रभास्तथा।
खं दिशः प्रदिशश्चैव भासयामासुरोजसा ॥ १८ ॥

मूलम्

कवचानां विचित्राणां भूषणानां प्रभास्तथा।
खं दिशः प्रदिशश्चैव भासयामासुरोजसा ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे तथा विचित्र कवचों और आभूषणोंके प्रभा-समूह आकाश, दिशा एवं कोणोंको अपने तेजसे प्रकाशित कर रहे थे॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वपुर्भिश्च नरेन्द्राणां चन्द्रसूर्यसमप्रभैः ।
विरराज तदा राजंस्तत्र तत्र रणाङ्गणम् ॥ १९ ॥

मूलम्

वपुर्भिश्च नरेन्द्राणां चन्द्रसूर्यसमप्रभैः ।
विरराज तदा राजंस्तत्र तत्र रणाङ्गणम् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! चन्द्रमा और सूर्यके समान प्रकाशित होनेवाले राजाओंके शरीरोंसे वह समरांगण यत्र-तत्र सर्वत्र शोभा पा रहा था॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथसङ्घा नरव्याघ्राः समायान्तश्च संयुगे।
विरेजुः समरे राजन् ग्रहा इव नभस्तले ॥ २० ॥

मूलम्

रथसङ्घा नरव्याघ्राः समायान्तश्च संयुगे।
विरेजुः समरे राजन् ग्रहा इव नभस्तले ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! रथोंके समूह और नरश्रेष्ठ नरेशगण युद्धमें आते हुए उसी प्रकार शोभा पा रहे थे, जैसे आकाशमें ग्रह-नक्षत्र सुशोभित होते हैं॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीष्मस्तु रथिनां श्रेष्ठो भीमसेनं महाबलम्।
अवारयत संक्रुद्धः सर्वसैन्यस्य पश्यतः ॥ २१ ॥

मूलम्

भीष्मस्तु रथिनां श्रेष्ठो भीमसेनं महाबलम्।
अवारयत संक्रुद्धः सर्वसैन्यस्य पश्यतः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रथियोंमें श्रेष्ठ भीष्मने कुपित होकर सब सेनाओंके देखते-देखते महाबली भीमसेनको रोक दिया॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो भीष्मविनिर्मुक्ता रुक्मपुङ्खाः शिलाशिताः।
अभ्यघ्नन् समरे भीमं तैलधौताः सुतेजनाः ॥ २२ ॥

मूलम्

ततो भीष्मविनिर्मुक्ता रुक्मपुङ्खाः शिलाशिताः।
अभ्यघ्नन् समरे भीमं तैलधौताः सुतेजनाः ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय पत्थरपर रगड़कर तेज किये हुए, सुवर्णमय पंखसे युक्त और तेलके धोये तीखे बाण भीष्मके हाथोंसे छूटकर समरभूमिमें भीमसेनको चोट पहुँचाने लगे॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य शक्तिं महावेगां भीमसेनो महाबलः।
क्रुद्धाशीविषसंकाशां प्रेषयामास भारत ॥ २३ ॥

मूलम्

तस्य शक्तिं महावेगां भीमसेनो महाबलः।
क्रुद्धाशीविषसंकाशां प्रेषयामास भारत ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! तब महाबली भीमसेनने क्रोधमें भरे हुए विषधर सर्पके समान भयंकर महावेगशालिनी शक्ति भीष्मपर छोड़ी॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तामापतन्तीं सहसा रुक्मदण्डां दुरासदाम्।
चिच्छेद समरे भीष्मः शरैः संनतपर्वभिः ॥ २४ ॥

मूलम्

तामापतन्तीं सहसा रुक्मदण्डां दुरासदाम्।
चिच्छेद समरे भीष्मः शरैः संनतपर्वभिः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसमें सोनेका डंडा लगा हुआ था। उसको सह लेना बहुत ही कठिन था। उसे सहसा आते देख भीष्मने झुकी हुई गाँठवाले बाणोंद्वारा युद्धभूमिमें काट गिराया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽपरेण भल्लेन पीतेन निशितेन च।
कार्मुकं भीमसेनस्य द्विधा चिच्छेद भारत ॥ २५ ॥

मूलम्

ततोऽपरेण भल्लेन पीतेन निशितेन च।
कार्मुकं भीमसेनस्य द्विधा चिच्छेद भारत ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! तदनन्तर एक तीखे और पानीदार भल्लसे उन्होंने भीमसेनके धनुषके दो टुकड़े कर दिये॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

(अपास्य तु धनुश्छिन्नं भीमसेनो महाबलः।
शरैर्बहुभिरानर्च्छद् भीष्मं शान्तनवं युधि।)

मूलम्

(अपास्य तु धनुश्छिन्नं भीमसेनो महाबलः।
शरैर्बहुभिरानर्च्छद् भीष्मं शान्तनवं युधि।)

अनुवाद (हिन्दी)

महाबली भीमसेनने उस कटे हुए धनुषको फेंककर दूसरा धनुष ले बहुत-से बाणोंद्वारा युद्धस्थलमें शान्तनुनन्दन भीष्मको अत्यन्त पीड़ा दी।

विश्वास-प्रस्तुतिः

सात्यकिस्तु ततस्तूर्णं भीष्ममासाद्य संयुगे।
आकर्णप्रहितैस्तीक्ष्णैर्निशितैस्तिग्मतेजनैः ॥ २६ ॥
शरैर्बहुभिरानर्च्छत् पितरं ते जनेश्वर।

मूलम्

सात्यकिस्तु ततस्तूर्णं भीष्ममासाद्य संयुगे।
आकर्णप्रहितैस्तीक्ष्णैर्निशितैस्तिग्मतेजनैः ॥ २६ ॥
शरैर्बहुभिरानर्च्छत् पितरं ते जनेश्वर।

अनुवाद (हिन्दी)

जनेश्वर! तत्पश्चात् उस युद्धमें सात्यकिने शीघ्र ही आपके ताऊ भीष्मके पास पहुँचकर धनुषको कानोंतक खींचकर चलाये हुए बहुत-से तीखे एवं तेज सायकोंद्वारा उन्हें बहुत पीड़ा दी॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः संधाय वै तीक्ष्णं शरं परमदारुणम् ॥ २७ ॥
वार्ष्णेयस्य रथाद् भीष्मः पातयामास सारथिम्।

मूलम्

ततः संधाय वै तीक्ष्णं शरं परमदारुणम् ॥ २७ ॥
वार्ष्णेयस्य रथाद् भीष्मः पातयामास सारथिम्।

अनुवाद (हिन्दी)

तब भीष्मने अत्यन्त भयंकर तीक्ष्ण बाणका संधान करके सात्यकिके रथसे उनके सारथिको मार गिराया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्याश्वाः प्रद्रुता राजन् निहते रथसारथौ ॥ २८ ॥

मूलम्

तस्याश्वाः प्रद्रुता राजन् निहते रथसारथौ ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! रथ-सारथिके मारे जानेपर सात्यकिके घोड़े वहाँसे भाग चले॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेन तेनैव धावन्ति मनोमारुतरंहसः।
ततः सर्वस्य सैन्यस्य निस्वनस्तुमुलोऽभवत् ॥ २९ ॥

मूलम्

तेन तेनैव धावन्ति मनोमारुतरंहसः।
ततः सर्वस्य सैन्यस्य निस्वनस्तुमुलोऽभवत् ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मन और वायुके समान वेगवाले वे घोड़े जिधर राह मिली, उधर ही दौड़ने लगे। इससे सारी सेनामें कोलाहल मच गया॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हाहाकारश्च संजज्ञे पाण्डवानां महात्मनाम्।
अभ्यद्रवत गृह्णीत हयान् यच्छत धावत ॥ ३० ॥
इत्यासीत् तुमुलः शब्दो युयुधानरथं प्रति।

मूलम्

हाहाकारश्च संजज्ञे पाण्डवानां महात्मनाम्।
अभ्यद्रवत गृह्णीत हयान् यच्छत धावत ॥ ३० ॥
इत्यासीत् तुमुलः शब्दो युयुधानरथं प्रति।

अनुवाद (हिन्दी)

महात्मा पाण्डवोंके दलमें हाहाकार होने लगा। अरे! दौड़ो, पकड़ो, घोड़ोंको रोको, भागो। सात्यकिके रथकी ओर इस तरहका शब्द गूँजने लगा॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतस्मिन्नेव काले तु भीष्मः शान्तनवस्तदा ॥ ३१ ॥
न्यहनत् पाण्डवीं सेनामासुरीमिव वृत्रहा।

मूलम्

एतस्मिन्नेव काले तु भीष्मः शान्तनवस्तदा ॥ ३१ ॥
न्यहनत् पाण्डवीं सेनामासुरीमिव वृत्रहा।

अनुवाद (हिन्दी)

इसी बीचमें शान्तनुनन्दन भीष्मने पाण्डव-सेनाका उसी प्रकार विनाश आरम्भ किया, जैसे देवराज इन्द्र आसुरीसेनाका संहार करते हैं॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते वध्यमाना भीष्मेण पञ्चालाः सोमकैः सह ॥ ३२ ॥
स्थिरां युद्धे मतिं कृत्वा भीष्ममेवाभिदुद्रुवुः।

मूलम्

ते वध्यमाना भीष्मेण पञ्चालाः सोमकैः सह ॥ ३२ ॥
स्थिरां युद्धे मतिं कृत्वा भीष्ममेवाभिदुद्रुवुः।

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मके द्वारा पीड़ित हुए पांचाल और सोमक युद्धका दृढ़ निश्चय लेकर भीष्मकी ही ओर दौड़े॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नमुखाश्चापि पार्थाः शान्तनवं रणे ॥ ३३ ॥
अभ्यधावञ्जिगीषन्तस्तव पुत्रस्य वाहिनीम् ।

मूलम्

धृष्टद्युम्नमुखाश्चापि पार्थाः शान्तनवं रणे ॥ ३३ ॥
अभ्यधावञ्जिगीषन्तस्तव पुत्रस्य वाहिनीम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

धृष्टद्युम्न आदि समस्त पाण्डव योद्धा आपके पुत्रकी सेनाको जीतनेकी इच्छासे युद्धमें शान्तनुनन्दन भीष्मपर ही चढ़ आये॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव कौरवा राजन् भीष्मद्रोणपुरोगमाः ॥ ३४ ॥
अभ्यधावन्त वेगेन ततो युद्धमवर्तत ॥ ३५ ॥

मूलम्

तथैव कौरवा राजन् भीष्मद्रोणपुरोगमाः ॥ ३४ ॥
अभ्यधावन्त वेगेन ततो युद्धमवर्तत ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! इसी प्रकार भीष्म, द्रोण आदि कौरव योद्धा भी बड़े वेगसे पाण्डव-सेनापर टूट पड़े; फिर तो दोनों दलोंमें भयंकर युद्ध होने लगा॥३४-३५॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि पञ्चमदिवसयुद्धे द्विसप्ततितमोऽध्यायः ॥ ७२ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें पाँचवें दिनके युद्धसे सम्बन्ध रखनेवाला बहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥७२॥

सूचना (हिन्दी)

[दाक्षिणात्य अधिक पाठका १ श्लोक मिलाकर कुल ३६ श्लोक हैं।]