भागसूचना
चतुःषष्टितमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
भीमसेन और घटोत्कचका पराक्रम, कौरवोंकी पराजय तथा चौथे दिनके युद्धकी समाप्ति
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो भूरिश्रवा राजन् सात्यकिं नवभिः शरैः।
प्राविध्यद् भृशसंक्रुद्धस्तोत्रैरिव महाद्विपम् ॥ १ ॥
मूलम्
ततो भूरिश्रवा राजन् सात्यकिं नवभिः शरैः।
प्राविध्यद् भृशसंक्रुद्धस्तोत्रैरिव महाद्विपम् ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— राजन्! तब भूरिश्रवाने अत्यन्त क्रुद्ध होकर सात्यकिको नौ बाणोंसे उसी प्रकार बींध डाला, जैसे महान् गजराजको अंकुशोंद्वारा पीड़ित किया जाता है॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कौरवं सात्यकिश्चैव शरैः संनतपर्वभिः।
अवारयदमेयात्मा सर्वलोकस्य पश्यतः ॥ २ ॥
मूलम्
कौरवं सात्यकिश्चैव शरैः संनतपर्वभिः।
अवारयदमेयात्मा सर्वलोकस्य पश्यतः ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब अमेय आत्मबलसम्पन्न सात्यकिने भी झुकी हुई गाँठवाले बाणोंसे सब लोगोंके देखते-देखते कुरुवंशी भूरिश्रवाको रोक दिया॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो दुर्योधनो राजा सोदर्यैः परिवारितः।
सौमदत्तिं रणे यत्तः समन्तात् पर्यवारयत् ॥ ३ ॥
मूलम्
ततो दुर्योधनो राजा सोदर्यैः परिवारितः।
सौमदत्तिं रणे यत्तः समन्तात् पर्यवारयत् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह देख भाइयोंसहित राजा दुर्योधनने युद्धके लिये उद्यत होकर भूरिश्रवाको चारों ओरसे घेरकर उसकी रक्षामें तत्पर हो गये॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं चैव पाण्डवाः सर्वे सात्यकिं रभसं रणे।
परिवार्य स्थिताः संख्ये समन्तात् सुमहौजसः ॥ ४ ॥
मूलम्
तं चैव पाण्डवाः सर्वे सात्यकिं रभसं रणे।
परिवार्य स्थिताः संख्ये समन्तात् सुमहौजसः ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उधर महान् तेजस्वी समस्त पाण्डव भी युद्धमें वेगपूर्वक आगे बढ़नेवाले सात्यकिको सब ओरसे घेरकर समरभूमिमें डट गये॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनस्तु संक्रुद्धो गदामुद्यम्य भारत।
दुर्योधनमुखान् सर्वान् पुत्रांस्ते पर्यवारयत् ॥ ५ ॥
मूलम्
भीमसेनस्तु संक्रुद्धो गदामुद्यम्य भारत।
दुर्योधनमुखान् सर्वान् पुत्रांस्ते पर्यवारयत् ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! क्रोधमें भरे हुए भीमसेनने गदा उठाकर आपके दुर्योधन आदि सब पुत्रोंको अकेले ही रोक दिया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथैरनेकसाहस्रैः क्रोधामर्षसमन्वितः ।
नन्दकस्तव पुत्रस्तु भीमसेनं महाबलम् ॥ ६ ॥
विव्याध विशिखैः षड्भिः कङ्कपत्रैः शिलाशितैः।
मूलम्
रथैरनेकसाहस्रैः क्रोधामर्षसमन्वितः ।
नन्दकस्तव पुत्रस्तु भीमसेनं महाबलम् ॥ ६ ॥
विव्याध विशिखैः षड्भिः कङ्कपत्रैः शिलाशितैः।
अनुवाद (हिन्दी)
तब क्रोध और अमर्षमें भरे हुए आपके पुत्र नन्दकने कई हजार रथियोंके साथ आकर शिलापर तेज किये हुए कंकपत्रयुक्त छः बाणोंसे महाबली भीमसेनको बींध डाला॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्योधनश्च समरे भीमसेनं महारथम् ॥ ७ ॥
आजघानोरसि क्रुद्धो मार्गणैर्नवभिः शितैः।
मूलम्
दुर्योधनश्च समरे भीमसेनं महारथम् ॥ ७ ॥
आजघानोरसि क्रुद्धो मार्गणैर्नवभिः शितैः।
अनुवाद (हिन्दी)
कुपित हुए दुर्योधनने भी महारथी भीमसेनको उस युद्धमें उनकी छातीको लक्ष्य करके नौ तीखे बाण मारे॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो भीमो महाबाहुः स्वरथं सुमहाबलः ॥ ८ ॥
आरुरोह रथश्रेष्ठं विशोकं चेदमब्रवीत्।
मूलम्
ततो भीमो महाबाहुः स्वरथं सुमहाबलः ॥ ८ ॥
आरुरोह रथश्रेष्ठं विशोकं चेदमब्रवीत्।
अनुवाद (हिन्दी)
तब महाबली महाबाहु भीमसेन अपने श्रेष्ठ रथपर आरूढ़ हो गये और सारथि विशोकसे इस प्रकार बोले—॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एते महारथाः शूरा धार्तराष्ट्राः समागताः ॥ ९ ॥
मामेव भृशसंक्रुद्धा हन्तुमभ्युद्यता युधि।
मूलम्
एते महारथाः शूरा धार्तराष्ट्राः समागताः ॥ ९ ॥
मामेव भृशसंक्रुद्धा हन्तुमभ्युद्यता युधि।
अनुवाद (हिन्दी)
‘ये महारथी शूरवीर धृतराष्ट्रपुत्र अत्यन्त कुपित हो युद्धमें मुझे ही मारनेके लिये उद्यत हो यहाँ आये हैं॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मनोरथद्रुमोऽस्माकं चिन्तितो बहुवार्षिकः ॥ १० ॥
सफलः सूत चाद्येह योऽहं पश्यामि सोदरान्।
मूलम्
मनोरथद्रुमोऽस्माकं चिन्तितो बहुवार्षिकः ॥ १० ॥
सफलः सूत चाद्येह योऽहं पश्यामि सोदरान्।
अनुवाद (हिन्दी)
‘सूत! मेरे मनमें बहुत वर्षोंसे जिसका चिन्तन हो रहा था, वह मनोरथरूपी वृक्ष आज सफल होना चाहता है; क्योंकि इस समय यहाँ मैं दुर्योधनके भाइयोंको एकत्र देख रहा हूँ॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यत्राशोक समुत्क्षिप्ता रेणवो रथनेमिभिः ॥ ११ ॥
प्रयास्यन्त्यन्तरिक्षं हि शरवृन्दैर्दिगन्तरे ।
तत्र तिष्ठति संनद्धः स्वयं राजा सुयोधनः ॥ १२ ॥
मूलम्
यत्राशोक समुत्क्षिप्ता रेणवो रथनेमिभिः ॥ ११ ॥
प्रयास्यन्त्यन्तरिक्षं हि शरवृन्दैर्दिगन्तरे ।
तत्र तिष्ठति संनद्धः स्वयं राजा सुयोधनः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘विशोक! जहाँ रथके पहियोंसे ऊपर उड़ी हुई धूल बाणसमूहोंके साथ अन्तरिक्ष और दिगन्तमें फैल रही है, वहीं स्वयं राजा दुर्योधन कवच आदिसे सुसज्जित होकर युद्धके लिये खड़ा है॥११-१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भ्रातरश्चास्य संनद्धाः कुलपुत्रा मदोत्कटाः।
एतानद्य हनिष्यामि पश्यतस्ते न संशयः ॥ १३ ॥
तस्मान्ममाश्वान् संग्रामे यत्तः संयच्छ सारथे।
मूलम्
भ्रातरश्चास्य संनद्धाः कुलपुत्रा मदोत्कटाः।
एतानद्य हनिष्यामि पश्यतस्ते न संशयः ॥ १३ ॥
तस्मान्ममाश्वान् संग्रामे यत्तः संयच्छ सारथे।
अनुवाद (हिन्दी)
‘उसके कुलीन और मदोन्मत्त भाई भी वहीं कवच बाँधकर खड़े हैं। आज तुम्हारे देखते-देखते मैं इन सबका विनाश करूँगा, इसमें संशय नहीं है। अतः सारथे! तुम सावधान होकर संग्राममें मेरे घोड़ोंको काबूमें रखो’॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्त्वा ततः पार्थस्तव पुत्रं विशाम्पते ॥ १४ ॥
विव्याध दशभिस्तीक्ष्णैः शरैः कनकभूषणैः।
नन्दकं च त्रिभिर्बाणैरभ्यविध्यत् स्तनान्तरे ॥ १५ ॥
मूलम्
एवमुक्त्वा ततः पार्थस्तव पुत्रं विशाम्पते ॥ १४ ॥
विव्याध दशभिस्तीक्ष्णैः शरैः कनकभूषणैः।
नन्दकं च त्रिभिर्बाणैरभ्यविध्यत् स्तनान्तरे ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! ऐसा कहकर कुन्तीकुमार भीमने स्वर्णभूषित दस तीखे बाणोंद्वारा आपके पुत्र दुर्योधनको बींध डाला और नन्दककी छातीमें भी तीन बाणोंसे गहरी चोट पहुँचायी॥१४-१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं तु दुर्योधनःषष्ट्या विद्ध्वा भीमं महाबलम्।
त्रिभिरन्यैः सुनिशितैर्विशोकं प्रत्यविध्यत ॥ १६ ॥
मूलम्
तं तु दुर्योधनःषष्ट्या विद्ध्वा भीमं महाबलम्।
त्रिभिरन्यैः सुनिशितैर्विशोकं प्रत्यविध्यत ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह देख दुर्योधनने साठ बाणोंसे महाबली भीमसेनको घायल करके अन्य तीन पैने बाणोंसे सारथि विशोकको भी घायल कर दिया॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमस्य च रणे राजन् धनुश्चिच्छेद भासुरम्।
मुष्टिदेशे भृशं तीक्ष्णैस्त्रिभिर्भल्लैर्हसन्निव ॥ १७ ॥
मूलम्
भीमस्य च रणे राजन् धनुश्चिच्छेद भासुरम्।
मुष्टिदेशे भृशं तीक्ष्णैस्त्रिभिर्भल्लैर्हसन्निव ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इसके बाद दुर्योधनने युद्धस्थलमें तीन अत्यन्त तीखे भल्लोंद्वारा हँसते हुए-से भीमके तेजस्वी धनुषको भी बीचसे काट दिया॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समरे प्रेक्ष्य यन्तारं विशोकं तु वृकोदरः।
पीडितं विशिखैस्तीक्ष्णैस्तव पुत्रेण धन्विना ॥ १८ ॥
अमृष्यमाणः संरब्धो धनुर्दिव्यं परामृशत्।
पुत्रस्य ते महाराज वधार्थं भरतर्षभ ॥ १९ ॥
समाधत्त सुसंकुद्धः क्षुरप्रं लोमवाहिनम्।
तेन चिच्छेद नृपतेर्भीमः कार्मुकमुत्तमम् ॥ २० ॥
मूलम्
समरे प्रेक्ष्य यन्तारं विशोकं तु वृकोदरः।
पीडितं विशिखैस्तीक्ष्णैस्तव पुत्रेण धन्विना ॥ १८ ॥
अमृष्यमाणः संरब्धो धनुर्दिव्यं परामृशत्।
पुत्रस्य ते महाराज वधार्थं भरतर्षभ ॥ १९ ॥
समाधत्त सुसंकुद्धः क्षुरप्रं लोमवाहिनम्।
तेन चिच्छेद नृपतेर्भीमः कार्मुकमुत्तमम् ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
आपके धनुर्धर पुत्रद्वारा समरांगणमें अपने सारथि विशोकको तीखे बाणोंके आघातसे पीड़ित होता देख भीमसेन सह न सके। उन्होंने कुपित होकर अपना दिव्य धनुष हाथमें लिया। महाराज! भरतश्रेष्ठ! फिर आपके पुत्रके वधके लिये अत्यन्त कुपित होकर उन्होंने पंखयुक्त क्षुरप्रका संधान किया और उसके द्वारा राजा दुर्योधनके उत्तम धनुषको काट डाला॥१८—२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽपविद्ध्य धनुश्छिन्नं पुत्रस्ते क्रोधमूर्च्छितः।
अन्यत् कार्मुकमादत्त सत्वरं वेगवत्तरम् ॥ २१ ॥
मूलम्
सोऽपविद्ध्य धनुश्छिन्नं पुत्रस्ते क्रोधमूर्च्छितः।
अन्यत् कार्मुकमादत्त सत्वरं वेगवत्तरम् ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! धनुष कटनेपर आपका पुत्र क्रोधसे मूर्च्छित हो उठा। उसने उस कटे हुए धनुषको फेंककर तुरंत ही उससे भी अधिक वेगशाली दूसरा धनुष ले लिया॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संदधे विशिखं घोरं कालमृत्युसमप्रभम्।
तेनाजघान संक्रुद्धो भीमसेनं स्तनान्तरे ॥ २२ ॥
मूलम्
संदधे विशिखं घोरं कालमृत्युसमप्रभम्।
तेनाजघान संक्रुद्धो भीमसेनं स्तनान्तरे ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर उसके ऊपर काल और मृत्युके समान तेजस्वी भयंकर बाण रखा और कुपित हो उसके द्वारा भीमसेनकी छातीमें गहरा आघात किया॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स गाढविद्धो व्यथितः स्यन्दनोपस्थ आविशत्।
स निषण्णो रथोपस्थे मूर्च्छामभिजगाम ह ॥ २३ ॥
मूलम्
स गाढविद्धो व्यथितः स्यन्दनोपस्थ आविशत्।
स निषण्णो रथोपस्थे मूर्च्छामभिजगाम ह ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस बाणसे अत्यन्त घायल हो भीमसेन व्यथाके मारे रथकी बैठकमें बैठ गये। वहाँ बैठते ही उन्हें मूर्च्छा आ गयी॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं दृष्ट्वा व्यथितं भीममभिमन्युपुरोगमाः।
नामृष्यन्त महेष्वासाः पाण्डवानां महारथाः ॥ २४ ॥
मूलम्
तं दृष्ट्वा व्यथितं भीममभिमन्युपुरोगमाः।
नामृष्यन्त महेष्वासाः पाण्डवानां महारथाः ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनको प्रहारसे पीड़ित हुआ देख अभिमन्यु आदि महाधनुर्धर पाण्डव महारथी यह सहन न कर सके॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तु तुमुलां वृष्टिं शस्त्राणां तिग्मतेजसाम्।
पातयामासुरव्यग्राः पुत्रस्य तव मूर्धनि ॥ २५ ॥
मूलम्
ततस्तु तुमुलां वृष्टिं शस्त्राणां तिग्मतेजसाम्।
पातयामासुरव्यग्राः पुत्रस्य तव मूर्धनि ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर तो सब लोगोंने आपके पुत्रके मस्तकपर निर्भय होकर तेजस्वी शस्त्रोंकी भयंकर वर्षा प्रारम्भ कर दी॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रतिलभ्य ततः संज्ञां भीमसेनो महाबलः।
दुर्योधनं त्रिभिर्विद्ध्वा पुनर्विव्याध पञ्चभिः ॥ २६ ॥
मूलम्
प्रतिलभ्य ततः संज्ञां भीमसेनो महाबलः।
दुर्योधनं त्रिभिर्विद्ध्वा पुनर्विव्याध पञ्चभिः ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् होशमें आनेपर महाबली भीमसेनने दुर्योधनको पहले तीन बाणोंसे बींधकर फिर पाँच बाणोंसे घायल किया॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शल्यं च पञ्चविंशत्या शरैर्विव्याध पाण्डवः।
रुक्मपुङ्खैर्महेष्वासः स विद्धो व्यपयाद् रणात् ॥ २७ ॥
मूलम्
शल्यं च पञ्चविंशत्या शरैर्विव्याध पाण्डवः।
रुक्मपुङ्खैर्महेष्वासः स विद्धो व्यपयाद् रणात् ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर महाधनुर्धर पाण्डुपुत्र भीमने सुवर्णमय पंखसे युक्त पचीस बाणोंद्वारा राजा शल्यको बींध दिया। उन बाणोंसे घायल होकर वे रणभूमिसे भाग गये॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रत्युद्ययुस्ततो भीमं तव पुत्राश्चतुर्दश।
सेनापतिः सुषेणश्च जलसंधः सुलोचनः ॥ २८ ॥
उग्रो भीमरथो भीमो वीरबाहुरलोलुपः।
दुर्मुखो दुष्प्रधर्षश्च विवित्सुर्विकटः समः ॥ २९ ॥
विसृजन्तो बहून् बाणान् क्रोधसंरक्तलोचनाः।
भीमसेनमभिद्रुत्य विव्यधुः सहिता भृशम् ॥ ३० ॥
मूलम्
प्रत्युद्ययुस्ततो भीमं तव पुत्राश्चतुर्दश।
सेनापतिः सुषेणश्च जलसंधः सुलोचनः ॥ २८ ॥
उग्रो भीमरथो भीमो वीरबाहुरलोलुपः।
दुर्मुखो दुष्प्रधर्षश्च विवित्सुर्विकटः समः ॥ २९ ॥
विसृजन्तो बहून् बाणान् क्रोधसंरक्तलोचनाः।
भीमसेनमभिद्रुत्य विव्यधुः सहिता भृशम् ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तब आपके चौदह पुत्रोंने भीमसेनपर धावा किया। उनके नाम ये हैं—सेनापति, सुषेण, जलसंध, सुलोचन, उग्र, भीमरथ, भीम, वीरबाहु, अलोलुप, दुर्मुख, दुष्प्रधर्ष, विवित्सु, विकट और सम—ये सब क्रोधसे लाल आँखें करके बहुत-से बाणोंकी वर्षा करते हुए भीमसेनपर टूट पड़े और एक साथ होकर उन्हें अत्यन्त घायल करने लगे॥२८—३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुत्रांस्तु तव सम्प्रेक्ष्य भीमसेनो महाबलः।
सृक्किणी विलिहन् वीरः पशुमध्ये यथा वृकः ॥ ३१ ॥
अभिपत्य महाबाहुर्गरुत्मानिव वेगितः ।
सेनापतेः क्षुरप्रेण शिरश्चिच्छेद पाण्डवः ॥ ३२ ॥
मूलम्
पुत्रांस्तु तव सम्प्रेक्ष्य भीमसेनो महाबलः।
सृक्किणी विलिहन् वीरः पशुमध्ये यथा वृकः ॥ ३१ ॥
अभिपत्य महाबाहुर्गरुत्मानिव वेगितः ।
सेनापतेः क्षुरप्रेण शिरश्चिच्छेद पाण्डवः ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाबली महाबाहु वीर भीमसेन आपके पुत्रोंको देखकर पशुओंके बीचमें खड़े हुए भेड़ियेके समान अपने मुँहके दोनों कोनोंको चाटते हुए गरुड़के समान बड़े वेगसे उनके सामने गये। वहाँ पहुँचकर पाण्डुकुमारने क्षुरप्र नामक बाणसे सेनापतिका सिर काट लिया॥३१-३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सम्प्रहस्य च हृष्टात्मा त्रिभिर्बाणैर्महाभुजः।
जलसंधं विनिर्भिद्य सोऽनयद् यमसादनम् ॥ ३३ ॥
मूलम्
सम्प्रहस्य च हृष्टात्मा त्रिभिर्बाणैर्महाभुजः।
जलसंधं विनिर्भिद्य सोऽनयद् यमसादनम् ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् प्रसन्नचित्त हो उन महाबाहुने हँसते-हँसते जलसंधको तीन बाणोंसे विदीर्ण करके यमलोक पहुँचा दिया॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुषेणं च ततो हत्वा प्रेषयामास मृत्यवे।
उग्रस्य सशिरस्त्राणं शिरश्चन्द्रोपमं भुवि ॥ ३४ ॥
मूलम्
सुषेणं च ततो हत्वा प्रेषयामास मृत्यवे।
उग्रस्य सशिरस्त्राणं शिरश्चन्द्रोपमं भुवि ॥ ३४ ॥
Misc Detail
पातयामास भल्लेन कुण्डलाभ्यां विभूषितम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर सुषेणको मारकर मौतके घर भेज दिया और उग्रके कुण्डलमण्डित चन्द्रोपम मस्तकको एक भल्लके द्वारा शिरस्त्राणसहित काटकर पृथ्वीपर गिरा दिया॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वीरबाहुं च सप्तत्या साश्वकेतुं ससारथिम् ॥ ३५ ॥
निनाय समरे वीरः परलोकाय पाण्डवः।
मूलम्
वीरबाहुं च सप्तत्या साश्वकेतुं ससारथिम् ॥ ३५ ॥
निनाय समरे वीरः परलोकाय पाण्डवः।
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद पाण्डुनन्दन वीरवर भीमसेनने समरभूमिमें घोड़े, ध्वज और सारथिसहित वीरबाहुको सत्तर बाणोंसे मारकर परलोक पहुँचा दिया॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमभीमरथौ चोभौ भीमसेनो हसन्निव ॥ ३६ ॥
पुत्री ते दुर्मदौ राजन्ननयद् यमसादनम्।
मूलम्
भीमभीमरथौ चोभौ भीमसेनो हसन्निव ॥ ३६ ॥
पुत्री ते दुर्मदौ राजन्ननयद् यमसादनम्।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तत्पश्चात् भीमसेनने हँसते हुए-से आपके दो पुत्र भीम और भीमरथको भी, जो युद्धमें उन्मत्त होकर लड़नेवाले थे, यमलोक भेज दिया॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सुलोचनं भीमः क्षुरप्रेण महामृधे ॥ ३७ ॥
मिषतां सर्वसैन्यानामनयद् यमसादनम् ।
मूलम्
ततः सुलोचनं भीमः क्षुरप्रेण महामृधे ॥ ३७ ॥
मिषतां सर्वसैन्यानामनयद् यमसादनम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद उस महासमरमें भीमसेनने सम्पूर्ण सेनाओंके देखते-देखते क्षुरप्रसे मारकर सुलोचनको भी यमलोकका अतिथि बना दिया॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुत्रास्तु तव तं दृष्ट्वा भीमसेनपराक्रमम् ॥ ३८ ॥
शेषा येऽन्येऽभवंस्तत्र ते भीमस्य भयार्दिताः।
विप्रद्रुता दिशो राजन् वध्यमाना महात्मना ॥ ३९ ॥
मूलम्
पुत्रास्तु तव तं दृष्ट्वा भीमसेनपराक्रमम् ॥ ३८ ॥
शेषा येऽन्येऽभवंस्तत्र ते भीमस्य भयार्दिताः।
विप्रद्रुता दिशो राजन् वध्यमाना महात्मना ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! आपके जो अन्य शेष पुत्र वहाँ मौजूद थे, वे भीमसेनका पराक्रम देखकर उनके भयसे पीड़ित हो उन महामना पाण्डुकुमारके बाणकी मार खाते हुए सम्पूर्ण दिशाओंमें भाग गये॥३८-३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽब्रवीच्छान्तनवः सर्वानेव महारथान् ।
एष भीमो रणे क्रुद्धो धार्तराष्ट्रान् महारथान् ॥ ४० ॥
यथा प्राग्र्यान् यथा ज्येष्ठान् यथा शूरांश्च संगतान्।
निपातयत्युग्रधन्वा तं प्रगृह्णीत माचिरम् ॥ ४१ ॥
मूलम्
ततोऽब्रवीच्छान्तनवः सर्वानेव महारथान् ।
एष भीमो रणे क्रुद्धो धार्तराष्ट्रान् महारथान् ॥ ४० ॥
यथा प्राग्र्यान् यथा ज्येष्ठान् यथा शूरांश्च संगतान्।
निपातयत्युग्रधन्वा तं प्रगृह्णीत माचिरम् ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर शान्तनुनन्दन भीष्मने सभी महारथियोंसे कहा—‘ये भयंकर धनुर्धर भीमसेन युद्धमें क्रुद्ध होकर सामने आये हुए श्रेष्ठ, ज्येष्ठ एवं शूर महारथी धृतराष्ट्रपुत्रोंको मार गिराते हैं। अतः तुम सब लोग मिलकर इन्हें शीघ्र काबूमें करो’॥४०-४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्तास्ततः सर्वे धार्तराष्ट्रस्य सैनिकाः।
अभ्यद्रवन्त संक्रुद्धा भीमसेनं महाबलम् ॥ ४२ ॥
मूलम्
एवमुक्तास्ततः सर्वे धार्तराष्ट्रस्य सैनिकाः।
अभ्यद्रवन्त संक्रुद्धा भीमसेनं महाबलम् ॥ ४२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनके ऐसा कहनेपर दुर्योधनके सभी सैनिक कुपित हो महाबली भीमसेनकी ओर दौड़े॥४२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगदत्तः प्रभिन्नेन कुञ्जरेण विशाम्पते।
अभ्ययात् सहसा तत्र यत्र भीमो व्यवस्थितः ॥ ४३ ॥
मूलम्
भगदत्तः प्रभिन्नेन कुञ्जरेण विशाम्पते।
अभ्ययात् सहसा तत्र यत्र भीमो व्यवस्थितः ॥ ४३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
प्रजानाथ! राजा भगदत्त मदवर्षी गजराजपर आरूढ़ हो सहसा उस स्थानपर आ पहुँचे, जहाँ भीमसेन खड़े थे॥४३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आपतन्नेव च रणे भीमसेनं शिलीमुखैः।
अदृश्यं समरे चक्रे जीमूत इव भास्करम् ॥ ४४ ॥
मूलम्
आपतन्नेव च रणे भीमसेनं शिलीमुखैः।
अदृश्यं समरे चक्रे जीमूत इव भास्करम् ॥ ४४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
युद्धमें आते ही उन्होंने अपने बाणोंसे भीमसेनको अदृश्य कर दिया, मानो सूर्य बादलोंसे ढक गये हों॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभिमन्युमुखास्तत् तु नामृष्यन्त महारथाः।
भीमस्याच्छादनं संख्ये स्वबाहुबलमाश्रिताः ॥ ४५ ॥
त एनं शरवर्षेण समन्तात् पर्यवारयन्।
गजं च शरवृष्ट्या तु बिभिदुस्ते समन्ततः ॥ ४६ ॥
मूलम्
अभिमन्युमुखास्तत् तु नामृष्यन्त महारथाः।
भीमस्याच्छादनं संख्ये स्वबाहुबलमाश्रिताः ॥ ४५ ॥
त एनं शरवर्षेण समन्तात् पर्यवारयन्।
गजं च शरवृष्ट्या तु बिभिदुस्ते समन्ततः ॥ ४६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय अभिमन्यु आदि महारथी भीमका इस प्रकार बाणोंसे आच्छादित हो जाना सहन न कर सके। वे अपने बाहुबलका आश्रय ले युद्धमें भगदत्तपर सब ओरसे बाणोंकी वर्षा करते हुए उन्हें रोकने लगे। उन्होंने अपने बाणोंकी वृष्टिसे भगदत्तके हाथीको भी सब ओरसे छेद डाला॥४५-४६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स शस्त्रवृष्ट्याभिहतः समस्तैस्तैर्महारथैः ।
प्राग्ज्योतिषगजो राजन् नानालिङ्गैः सुतेजनैः ॥ ४७ ॥
संजातरुधिरोत्पीडः प्रेक्षणीयोऽभवद् रणे ।
गभस्तिभिरिवार्कस्य संस्यूतो जलदो महान् ॥ ४८ ॥
मूलम्
स शस्त्रवृष्ट्याभिहतः समस्तैस्तैर्महारथैः ।
प्राग्ज्योतिषगजो राजन् नानालिङ्गैः सुतेजनैः ॥ ४७ ॥
संजातरुधिरोत्पीडः प्रेक्षणीयोऽभवद् रणे ।
गभस्तिभिरिवार्कस्य संस्यूतो जलदो महान् ॥ ४८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! जो नाना प्रकारके चिह्न धारण करनेवाले और अत्यन्त तेजस्वी थे, उन समस्त महारथियोंद्वारा की हुई अस्त्र-शस्त्रोंकी वर्षासे बहुत ही घायल होकर प्राग्ज्योतिषनरेश भगदत्तका वह हाथी मस्तकपर रक्तसे रंजित हो रणक्षेत्रमें देखने ही योग्य हो रहा था, मानो सूर्यकी अरुण किरणोंसे व्याप्त रँगा हुआ महामेघ हो॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संचोदितो मदस्रावी भगदत्तेन वारणः।
अभ्यधावत तान् सर्वान् कालोत्सृष्ट इवान्तकः ॥ ४९ ॥
द्विगुणं जवमास्थाय कम्पयंश्चरणैर्महीम् ।
मूलम्
संचोदितो मदस्रावी भगदत्तेन वारणः।
अभ्यधावत तान् सर्वान् कालोत्सृष्ट इवान्तकः ॥ ४९ ॥
द्विगुणं जवमास्थाय कम्पयंश्चरणैर्महीम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
भगदत्तसे प्रेरित होकर कालके भेजे हुए यमराजकी भाँति वह मदस्रावी गजराज दूने वेगका आश्रय ले अपने पैरोंकी धमकसे इस पृथ्वीको कँपाता हुआ उन सबकी ओर दौड़ा॥४९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य तत् सुमहद् रूपं दृष्ट्वा सर्वे महारथाः ॥ ५० ॥
असह्यं मन्यमानाश्च नातिप्रमनसोऽभवन् ।
मूलम्
तस्य तत् सुमहद् रूपं दृष्ट्वा सर्वे महारथाः ॥ ५० ॥
असह्यं मन्यमानाश्च नातिप्रमनसोऽभवन् ।
अनुवाद (हिन्दी)
उसके उस विशाल रूपको देखकर सब महारथी अपने लिये असह्य मानते हुए हतोत्साह हो गये॥५०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तु नृपतिः क्रुद्धो भीमसेनं स्तनान्तरे ॥ ५१ ॥
आजघान महाराज शरेणानतपर्वणा ।
मूलम्
ततस्तु नृपतिः क्रुद्धो भीमसेनं स्तनान्तरे ॥ ५१ ॥
आजघान महाराज शरेणानतपर्वणा ।
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! तत्पश्चात् राजा भगदत्तने कुपित होकर झुकी हुई गाँठवाले बाणसे भीमसेनकी छातीमें गहरी चोट पहुँचायी॥५१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोऽतिविद्धो महेष्वासस्तेन राज्ञा महारथः ॥ ५२ ॥
मूर्च्छयाभिपरीतात्मा ध्वजयष्टिं समाश्रयत् ।
मूलम्
सोऽतिविद्धो महेष्वासस्तेन राज्ञा महारथः ॥ ५२ ॥
मूर्च्छयाभिपरीतात्मा ध्वजयष्टिं समाश्रयत् ।
अनुवाद (हिन्दी)
राजा भगदत्तसे इस प्रकार अत्यन्त घायल किये गये महाधनुर्धर महारथी भीमसेनने मूर्च्छासे व्याप्त हो ध्वजका डंडा थाम लिया॥५२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तांस्तु भीतान् समालक्ष्य भीमसेनं च मूर्च्छितम् ॥ ५३ ॥
ननाद बलवन्नादं भगदत्तः प्रतापवान्।
मूलम्
तांस्तु भीतान् समालक्ष्य भीमसेनं च मूर्च्छितम् ॥ ५३ ॥
ननाद बलवन्नादं भगदत्तः प्रतापवान्।
अनुवाद (हिन्दी)
उन सब महारथियोंको भयभीत और भीमसेनको मूर्च्छित हुआ देख प्रतापी भगदत्तने बड़े जोरसे सिंहनाद किया॥५३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो घटोत्कचो राजन् प्रेक्ष्य भीमं तथागतम् ॥ ५४ ॥
संक्रुद्धो राक्षसो घोरस्तत्रैवान्तरधीयत ।
मूलम्
ततो घटोत्कचो राजन् प्रेक्ष्य भीमं तथागतम् ॥ ५४ ॥
संक्रुद्धो राक्षसो घोरस्तत्रैवान्तरधीयत ।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तदनन्तर भीमको वैसी अवस्थामें देखकर भयंकर राक्षस घटोत्कच अत्यन्त कुपित हो वहीं अदृश्य हो गया॥५४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स कृत्वा दारुणां मायां भीरूणां भयवर्धिनीम् ॥ ५५ ॥
अदृश्यत निमेषार्धाद् घोररूपं समास्थितः।
ऐरावणं समारूढः स वै मायाकृतं स्वयम् ॥ ५६ ॥
(कैलासगिरिसंकाशं वज्रपाणिरिवाभ्ययात् ।)
मूलम्
स कृत्वा दारुणां मायां भीरूणां भयवर्धिनीम् ॥ ५५ ॥
अदृश्यत निमेषार्धाद् घोररूपं समास्थितः।
ऐरावणं समारूढः स वै मायाकृतं स्वयम् ॥ ५६ ॥
(कैलासगिरिसंकाशं वज्रपाणिरिवाभ्ययात् ।)
अनुवाद (हिन्दी)
फिर उसने कायरोंका भय बढ़ानेवाली अत्यन्त दारुण माया प्रकट की। वह आधे निमेषमें ही भयंकर रूप धारण करके दृष्टिगोचर हुआ। घटोत्कच अपनी ही मायाद्वारा निर्मित कैलासपर्वतके समान श्वेत वर्णवाले ऐरावत हाथीपर बैठकर वज्रधारी इन्द्रके समान वहाँ आया था॥५५-५६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य चान्येऽपि दिङ्नागा बभूवुरनुयायिनः।
अञ्जनो वामनश्चैव महापद्मश्च सुप्रभः ॥ ५७ ॥
त्रय एते महानागा राक्षसैः समधिष्ठिताः।
मूलम्
तस्य चान्येऽपि दिङ्नागा बभूवुरनुयायिनः।
अञ्जनो वामनश्चैव महापद्मश्च सुप्रभः ॥ ५७ ॥
त्रय एते महानागा राक्षसैः समधिष्ठिताः।
अनुवाद (हिन्दी)
उसके पीछे अंजन, वामन और उत्तम कान्तिसे युक्त महापद्म—से तीन दिग्गज और थे, जिनपर उसके साथी राक्षस सवार थे॥५७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महाकायास्त्रिधा राजन् प्रस्रवन्तो मदं बहु ॥ ५८ ॥
तेजोवीर्यबलोपेता महाबलपराक्रमाः ।
मूलम्
महाकायास्त्रिधा राजन् प्रस्रवन्तो मदं बहु ॥ ५८ ॥
तेजोवीर्यबलोपेता महाबलपराक्रमाः ।
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! वे सभी विशालकाय दिग्गज तीन स्थानोंसे बहुत मद बहा रहे थे और तेज, वीर्य एवं बलसे सम्पन्न तथा महाबली और महापराक्रमी थे॥५८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
घटोत्कचस्तु स्वं नागं चोदयामास तं तदा ॥ ५९ ॥
सगजं भगदत्तं तु हन्तुकामः परंतपः।
मूलम्
घटोत्कचस्तु स्वं नागं चोदयामास तं तदा ॥ ५९ ॥
सगजं भगदत्तं तु हन्तुकामः परंतपः।
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुओंको संताप देनेवाले घटोत्कचने अपने हाथीको गजारूढ़ राजा भगदत्तकी ओर बढ़ाया। वह उन्हें हाथीसहित मार डालना चाहता था॥५९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते चान्ये चोदिता नागा राक्षसैस्तैर्महाबलैः ॥ ६० ॥
परिपेतुः सुसंरब्धाश्चतुर्दंष्ट्राश्चतुर्दिशम् ।
मूलम्
ते चान्ये चोदिता नागा राक्षसैस्तैर्महाबलैः ॥ ६० ॥
परिपेतुः सुसंरब्धाश्चतुर्दंष्ट्राश्चतुर्दिशम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
महाबली राक्षसोंद्वारा प्रेरित अन्यान्य दिग्गज भी जिनके चार-चार दाँत थे, अत्यन्त कुपित हो चारों दिशाओंमें टूट पड़े॥६०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगदत्तस्य तं नागं विषाणैरभ्यपीडयन् ॥ ६१ ॥
स पीड्यमानस्तैर्नागैर्वेदनार्तः शराहतः ।
अनदत् सुमहानादमिन्द्राशनिसमस्वनम् ॥ ६२ ॥
मूलम्
भगदत्तस्य तं नागं विषाणैरभ्यपीडयन् ॥ ६१ ॥
स पीड्यमानस्तैर्नागैर्वेदनार्तः शराहतः ।
अनदत् सुमहानादमिन्द्राशनिसमस्वनम् ॥ ६२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे सब-के-सब भगदत्तके हाथीको अपने दाँतोंसे पीड़ा देने लगे। वह बाणोंसे बहुत घायल हो चुका था; अतः इन हाथियोंद्वारा पीड़ित होनेपर वेदनासे व्याकुल हो बड़े जोर-जोरसे चीत्कार करने लगा। उसकी आवाज इन्द्रके वज्रकी गड़गड़ाहटके समान जान पड़ती थी॥६१-६२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य तं नदतो नादं सुघोरं भीमनिःस्वनम्।
श्रुत्वा भीष्मोऽब्रवीद् द्रोणं राजानं च सुयोधनम् ॥ ६३ ॥
मूलम्
तस्य तं नदतो नादं सुघोरं भीमनिःस्वनम्।
श्रुत्वा भीष्मोऽब्रवीद् द्रोणं राजानं च सुयोधनम् ॥ ६३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भयंकर आवाजके साथ अत्यन्त घोर शब्द करनेवाले हाथीके उस चीत्कारको सुनकर भीष्मने द्रोणाचार्य तथा राजा दुर्योधनसे कहा—॥६३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एष युध्यति संग्रामे हैडिम्बेन दुरात्मना।
भगदत्तो महेष्वासः कृच्छ्रे च परिवर्तते ॥ ६४ ॥
मूलम्
एष युध्यति संग्रामे हैडिम्बेन दुरात्मना।
भगदत्तो महेष्वासः कृच्छ्रे च परिवर्तते ॥ ६४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘ये महाधनुर्धर राजा भगदत्त युद्धमें दुरात्मा घटोत्कचके साथ जूझ रहे हैं और संकटमें पड़ गये हैं॥६४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राक्षसश्च महाकायः स च राजातिकोपनः।
एतौ समेतौ समरे कालमृत्युसमावुभौ ॥ ६५ ॥
मूलम्
राक्षसश्च महाकायः स च राजातिकोपनः।
एतौ समेतौ समरे कालमृत्युसमावुभौ ॥ ६५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘वह राक्षस विशालकाय है और वे राजा भी अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए हैं। वे दोनों समरमें काल और मृत्युके समान हैं॥६५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रूयते चैव हृष्टानां पाण्डवानां महास्वनः।
हस्तिनश्चैव सुमहान् भीतस्य रुदितध्वनिः ॥ ६६ ॥
मूलम्
श्रूयते चैव हृष्टानां पाण्डवानां महास्वनः।
हस्तिनश्चैव सुमहान् भीतस्य रुदितध्वनिः ॥ ६६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘देखो, हर्षमें भरे हुए पाण्डवोंका महान् सिंहनाद सुनायी पड़ता है और भगदत्तके डरे हुए हाथीके रोनेकी ध्वनि भी बड़े जोर-जोरसे कानोंमें आ रही है॥६६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र गच्छाम भद्रं वो राजानं परिरक्षितुम्।
अरक्ष्यमाणः समरे क्षिप्रं प्राणान् विमोक्ष्यति ॥ ६७ ॥
मूलम्
तत्र गच्छाम भद्रं वो राजानं परिरक्षितुम्।
अरक्ष्यमाणः समरे क्षिप्रं प्राणान् विमोक्ष्यति ॥ ६७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘तुम सब लोगोंका कल्याण हो। हम राजा भगदत्तकी रक्षा करनेके लिये वहाँ चलें; अन्यथा अरक्षित होनेपर वे समरभूमिमें शीघ्र ही प्राण त्याग देंगे॥६७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते त्वरध्वं महावीर्याः किं चिरेण प्रयामहे।
महान् हि वर्तते रौद्रः संग्रामो लोमहर्षणः ॥ ६८ ॥
मूलम्
ते त्वरध्वं महावीर्याः किं चिरेण प्रयामहे।
महान् हि वर्तते रौद्रः संग्रामो लोमहर्षणः ॥ ६८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘महापराक्रमी वीरो! जल्दी करो। विलम्बसे क्या लाभ? हमें जल्दी चलना चाहिये; क्योंकि वह संग्राम अत्यन्त भयंकर तथा रोमांचकारी है॥६८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भक्तश्च कुलपुत्रश्च शूरश्च पृतनापतिः।
युक्तं तस्य परित्राणं कर्तुमस्माभिरच्युत ॥ ६९ ॥
मूलम्
भक्तश्च कुलपुत्रश्च शूरश्च पृतनापतिः।
युक्तं तस्य परित्राणं कर्तुमस्माभिरच्युत ॥ ६९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘राजा भगदत्त कुलीन, शूरवीर, हमारे भक्त और सेनापति हैं। अतः अच्युत! हमें उनकी रक्षा अवश्य करनी चाहिये’॥६९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीष्मस्य तद् वचः श्रुत्वा सर्व एव महारथाः।
द्रोणभीष्मौ पुरस्कृत्य भगदत्तपरीप्सया ॥ ७० ॥
उत्तमं जवमास्थाय प्रययुर्यत्र सोऽभवत्।
मूलम्
भीष्मस्य तद् वचः श्रुत्वा सर्व एव महारथाः।
द्रोणभीष्मौ पुरस्कृत्य भगदत्तपरीप्सया ॥ ७० ॥
उत्तमं जवमास्थाय प्रययुर्यत्र सोऽभवत्।
अनुवाद (हिन्दी)
भीष्मका यह वचन सुनकर सभी महारथी द्रोणाचार्य और भीष्मको आगे करके भगदत्तकी रक्षाके लिये बड़े वेगसे उस स्थानपर गये, जहाँ भगदत्त थे॥७०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तान् प्रयातान् समालोक्य युधिष्ठिरपुरोगमाः ॥ ७१ ॥
पञ्चालाः पाण्डवैः सार्धं पृष्ठतोऽनुययुः परान्।
मूलम्
तान् प्रयातान् समालोक्य युधिष्ठिरपुरोगमाः ॥ ७१ ॥
पञ्चालाः पाण्डवैः सार्धं पृष्ठतोऽनुययुः परान्।
अनुवाद (हिन्दी)
उन्हें जाते देख युधिष्ठिर आदि पाण्डवों तथा पांचालोंने भी शत्रुओंका पीछा किया॥७१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तान्यनीकान्यथालोक्य राक्षसेन्द्रः प्रतापवान् ॥ ७२ ॥
ननाद सुमहानादं विस्फोटमशनेरिव ।
मूलम्
तान्यनीकान्यथालोक्य राक्षसेन्द्रः प्रतापवान् ॥ ७२ ॥
ननाद सुमहानादं विस्फोटमशनेरिव ।
अनुवाद (हिन्दी)
उन सेनाओंको आते देख प्रतापी राक्षसराज घटोत्कचने बड़े जोरसे सिंहनाद किया, मानो वज्र फट पड़ा हो॥७२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्य तं निनदं श्रुत्वा दृष्ट्वा नागांश्च युध्यतः ॥ ७३ ॥
भीष्मः शान्तनवो भूयो भारद्वाजमभाषत।
मूलम्
तस्य तं निनदं श्रुत्वा दृष्ट्वा नागांश्च युध्यतः ॥ ७३ ॥
भीष्मः शान्तनवो भूयो भारद्वाजमभाषत।
अनुवाद (हिन्दी)
घटोत्कचकी वह गर्जना सुनकर तथा जूझते हुए हाथियोंको देखकर शान्तनुनन्दन भीष्मने पुनः द्रोणाचार्यसे कहा—॥७३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न रोचते मे संग्रामो हैडिम्बेन दुरात्मना ॥ ७४ ॥
बलवीर्यसमाविष्टः ससहायश्च साम्प्रतम् ।
मूलम्
न रोचते मे संग्रामो हैडिम्बेन दुरात्मना ॥ ७४ ॥
बलवीर्यसमाविष्टः ससहायश्च साम्प्रतम् ।
अनुवाद (हिन्दी)
‘मुझे इस समय दुरात्मा घटोत्कचके साथ युद्ध करना अच्छा नहीं लगता; क्योंकि वह बल और पराक्रमसे सम्पन्न है और इस समय उसे प्रबल सहायक भी मिल गये हैं॥७४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नैष शक्यो युधा जेतुमपि वज्रभृता स्वयम् ॥ ७५ ॥
लब्धलक्ष्यः प्रहारी च वयं च श्रान्तवाहनाः।
पाञ्चालैः पाण्डवेयैश्च दिवसं क्षतविक्षताः ॥ ७६ ॥
मूलम्
नैष शक्यो युधा जेतुमपि वज्रभृता स्वयम् ॥ ७५ ॥
लब्धलक्ष्यः प्रहारी च वयं च श्रान्तवाहनाः।
पाञ्चालैः पाण्डवेयैश्च दिवसं क्षतविक्षताः ॥ ७६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘ऐसी दशामें साक्षात् वज्रधारी इन्द्र भी उसे युद्धमें पराजित नहीं कर सकते। यह प्रहार करनेमें कुशल तथा लक्ष्य भेदनेमें सफल है। इधर हमलोगोंके वाहन थक गये हैं। पाण्डवों और पांचालोंके द्वारा दिनभर क्षत-विक्षत होते रहे हैं॥७५-७६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तन्न मे रोचते युद्धं पाण्डवैर्जितकाशिभिः।
घुष्यतामवहारोऽद्य श्वो योत्स्यामः परैः सह ॥ ७७ ॥
मूलम्
तन्न मे रोचते युद्धं पाण्डवैर्जितकाशिभिः।
घुष्यतामवहारोऽद्य श्वो योत्स्यामः परैः सह ॥ ७७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘इसलिये विजयसे सुशोभित होनेवाले पाण्डवोंके साथ इस समय युद्ध करना मुझे पसंद नहीं आता। आज युद्धका विराम घोषित कर दिया जाय। कल सबेरे हमलोग शत्रुओंके साथ युद्ध करेंगे’॥७७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पितामहवचः श्रुत्वा तथा चक्रुः स्म कौरवाः।
उपायेनापयानं ते घटोत्कचभयार्दिताः ॥ ७८ ॥
मूलम्
पितामहवचः श्रुत्वा तथा चक्रुः स्म कौरवाः।
उपायेनापयानं ते घटोत्कचभयार्दिताः ॥ ७८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पितामह भीष्मकी यह बात सुनकर कौरवोंने उपाय-पूर्वक युद्धसे हट जाना स्वीकार कर लिया; क्योंकि उस समय वे घटोत्कचके भयसे पीड़ित थे॥७८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कौरवेषु निवृत्तेषु पाण्डवा जितकाशिनः।
सिंहनादान् भृशं चक्रुः शङ्खान् दध्मुश्च भारत ॥ ७९ ॥
मूलम्
कौरवेषु निवृत्तेषु पाण्डवा जितकाशिनः।
सिंहनादान् भृशं चक्रुः शङ्खान् दध्मुश्च भारत ॥ ७९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! कौरवोंके निवृत्त हो जानेपर विजयसे उल्लसित होनेवाले पाण्डव बारंबार सिंहनाद करने और शंख बजाने लगे॥७९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं तदभवद् युद्धं दिवसं भरतर्षभ।
पाण्डवानां कुरूणां च पुरस्कृत्य घटोत्कचम् ॥ ८० ॥
मूलम्
एवं तदभवद् युद्धं दिवसं भरतर्षभ।
पाण्डवानां कुरूणां च पुरस्कृत्य घटोत्कचम् ॥ ८० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! इस प्रकार उस दिन दिनभर घटोत्कचको आगे करके कौरवों और पाण्डवोंका युद्ध चलता रहा॥८०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कौरवास्तु ततो राजन् प्रययुः शिबिरं स्वकम्।
व्रीडमाना निशाकाले पाण्डवेयैः पराजिताः ॥ ८१ ॥
मूलम्
कौरवास्तु ततो राजन् प्रययुः शिबिरं स्वकम्।
व्रीडमाना निशाकाले पाण्डवेयैः पराजिताः ॥ ८१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! तदनन्तर निशाके प्रारम्भकालमें पाण्डवोंसे पराजित होकर कौरव लज्जित हो अपने शिबिरको गये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शरविक्षतगात्रास्तु पाण्डुपुत्रा महारथाः ।
युद्धे सुमनसो भूत्वा जग्मुः स्वशिबिरं प्रति ॥ ८२ ॥
मूलम्
शरविक्षतगात्रास्तु पाण्डुपुत्रा महारथाः ।
युद्धे सुमनसो भूत्वा जग्मुः स्वशिबिरं प्रति ॥ ८२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महारथी पाण्डवोंके शरीर भी युद्धमें बाणोंसे क्षत-विक्षत हो गये थे, तथापि वे प्रसन्नचित्त होकर अपने शिबिरको लौटे॥८२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुरस्कृत्य महाराज भीमसेनघटोत्कचौ ।
पूजयन्तस्तदान्योन्यं मुदा परमया युताः ॥ ८३ ॥
नदन्तो विविधान् नादांस्तूर्यस्वनविमिश्रितान् ।
सिंहनादांश्च कुर्वन्तो विमिश्रान् शङ्खनिःस्वनैः ॥ ८४ ॥
मूलम्
पुरस्कृत्य महाराज भीमसेनघटोत्कचौ ।
पूजयन्तस्तदान्योन्यं मुदा परमया युताः ॥ ८३ ॥
नदन्तो विविधान् नादांस्तूर्यस्वनविमिश्रितान् ।
सिंहनादांश्च कुर्वन्तो विमिश्रान् शङ्खनिःस्वनैः ॥ ८४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! भीमसेन और घटोत्कचको आगे करके परस्पर एक दूसरेकी प्रशंसा करते हुए पाण्डवसैनिक बड़ी प्रसन्नताके साथ नाना प्रकारके सिंहनाद करते हुए गये। उनकी उस गर्जनाके साथ विविध वाद्योंकी ध्वनि तथा शंखोंके शब्द भी मिले हुए थे॥८३-८४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विनदन्तो महात्मानः कम्पयन्तश्च मेदिनीम्।
घट्टयन्तश्च मर्माणि तव पुत्रस्य मारिष ॥ ८५ ॥
प्रयाताः शिबिरायैव निशाकाले परंतप।
मूलम्
विनदन्तो महात्मानः कम्पयन्तश्च मेदिनीम्।
घट्टयन्तश्च मर्माणि तव पुत्रस्य मारिष ॥ ८५ ॥
प्रयाताः शिबिरायैव निशाकाले परंतप।
अनुवाद (हिन्दी)
शत्रुओंको संताप देनेवाले श्रेष्ठ नरेश! महात्मा पाण्डव गर्जते, पृथ्वीको कँपाते और आपके पुत्रके मर्मस्थानोंपर चोट पहुँचाते हुए निशाकालमें शिबिरको ही लौट गये॥८५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्योधनस्तु नृपतिर्दीनो भ्रातृवधेन च ॥ ८६ ॥
मुहूर्तं चिन्तयामास बाष्पशोकसमाकुलः ।
मूलम्
दुर्योधनस्तु नृपतिर्दीनो भ्रातृवधेन च ॥ ८६ ॥
मुहूर्तं चिन्तयामास बाष्पशोकसमाकुलः ।
अनुवाद (हिन्दी)
अपने भाइयोंके मारे जानेसे राजा दुर्योधन अत्यन्त दीन हो रहा था। वह नेत्रोंसे आँसू बहाता हुआ शोकसे व्याकुल हो दो घड़ीतक भारी चिन्तामें पड़ा रहा॥८६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः कृत्वा विधिं सर्वं शिबिरस्य यथाविधि।
प्रदध्यौ शोकसंतप्तो भ्रातृव्यसनकर्शितः ॥ ८७ ॥
मूलम्
ततः कृत्वा विधिं सर्वं शिबिरस्य यथाविधि।
प्रदध्यौ शोकसंतप्तो भ्रातृव्यसनकर्शितः ॥ ८७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह शिबिरकी यथायोग्य सारी आवश्यक व्यवस्था करके भाइयोंके मारे जानेसे दुःखी एवं शोकसंतप्त हो चिन्तामें डूब गया॥८७॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि चतुर्थदिवसावहारे चतुःषष्टितमोऽध्यायः ॥ ६४ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें चौथे दिनका युद्धविरामविषयक चौसठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥६४॥
सूचना (हिन्दी)
[दाक्षिणात्य अधिक पाठका श्लोक मिलाकर कुल ८७ श्लोक हैं।]