०६२ भीमयुद्धे

भागसूचना

द्विषष्टितमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

धृष्टद्युम्न और शल्य आदि दोनों पक्षके वीरोंका युद्ध तथा भीमसेनके द्वारा गजसेनाका संहार

मूलम् (वचनम्)

धृतराष्ट्र उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

दैवमेव परं मन्ये पौरुषादपि संजय।
यत् सैन्यं मम पुत्रस्य पाण्डुसैन्येन बाध्यते ॥ १ ॥

मूलम्

दैवमेव परं मन्ये पौरुषादपि संजय।
यत् सैन्यं मम पुत्रस्य पाण्डुसैन्येन बाध्यते ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतराष्ट्र बोले—संजय! मैं पुरुषार्थकी अपेक्षा भी दैवको ही प्रधान मानता हूँ, जिससे मेरे पुत्र दुर्योधनकी सेना पाण्डवोंकी सेनासे पीड़ित हो रही है॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नित्यं हि मामकांस्तात हतानेव हि शंससि।
अव्यग्रांश्च प्रहृष्टांश्च नित्यं शंससि पाण्डवान् ॥ २ ॥

मूलम्

नित्यं हि मामकांस्तात हतानेव हि शंससि।
अव्यग्रांश्च प्रहृष्टांश्च नित्यं शंससि पाण्डवान् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तात! तुम प्रतिदिन मेरे ही सैनिकोंके मारे जानेकी बात कहते हो और पाण्डवोंको सदा व्यग्रतासे रहित तथा हर्षोल्लाससे परिपूर्ण बताते हो॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हीनान् पुरुषकारेण मामकानद्य संजय।
पातितान् पात्यमानांश्च हतानेव च शंससि ॥ ३ ॥

मूलम्

हीनान् पुरुषकारेण मामकानद्य संजय।
पातितान् पात्यमानांश्च हतानेव च शंससि ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! आजकल मेरे पुत्र और सैनिक पुरुषार्थसे हीन हो रहे हैं और शत्रुओंने उन्हें धराशायी किया एवं मार डाला है। प्रतिदिन वे शत्रुओंके हाथसे मारे ही जा रहे हैं। उनके सम्बन्धमें तुम सदा ऐसे ही समाचार देते हो॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युध्यमानान् यथाशक्ति घटमानाञ्जयं प्रति।
पाण्डवा हि जयन्त्येव जीयन्ते चैव मामकाः ॥ ४ ॥

मूलम्

युध्यमानान् यथाशक्ति घटमानाञ्जयं प्रति।
पाण्डवा हि जयन्त्येव जीयन्ते चैव मामकाः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मेरे बेटे विजयके लिये यथाशक्ति चेष्टा करते और लड़ते हैं, तो भी पाण्डव ही विजयी होते और मेरे पुत्रोंकी ही पराजय होती है॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोऽहं तीव्राणि दुःखानि दुर्योधनकृतानि च।
श्रोष्यामि सततं तात दुःसहानि बहूनि च ॥ ५ ॥

मूलम्

सोऽहं तीव्राणि दुःखानि दुर्योधनकृतानि च।
श्रोष्यामि सततं तात दुःसहानि बहूनि च ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तात! ऐसा जान पड़ता है कि मुझे दुर्योधनके कारण सदा अत्यन्त दुःसह एवं तीव्र दुःखकी ही बहुत-सी बातें सुननी पड़ेंगी॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमुपायं न पश्यामि जीयेरन् येन पाण्डवाः।
मामका विजयं युद्धे प्राप्नुयुर्येन संजय ॥ ६ ॥

मूलम्

तमुपायं न पश्यामि जीयेरन् येन पाण्डवाः।
मामका विजयं युद्धे प्राप्नुयुर्येन संजय ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! मैं ऐसा कोई उपाय नहीं देखता, जिससे पाण्डव हार जायँ और मेरे पुत्रोंको युद्धमें विजय प्राप्त हो॥६॥

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्षयं मनुष्यदेहानां गजवाजिरथक्षयम् ।
शृणु राजन् स्थिरो भूत्वा तवैवापनयो महान् ॥ ७ ॥

मूलम्

क्षयं मनुष्यदेहानां गजवाजिरथक्षयम् ।
शृणु राजन् स्थिरो भूत्वा तवैवापनयो महान् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजयने कहा— राजन्! उस युद्धमें मानवशरीरोंका भारी संहार हुआ है। हाथी, घोड़े और रथोंका भी विनाश देखा गया है। वह सब आप स्थिर होकर सुनिये। यह आपके ही महान् अन्यायका फल है॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नस्तु शल्येन पीडितो नवभिः शरैः।
पीडयामास संक्रुद्धो मद्राधिपतिमायसैः ॥ ८ ॥

मूलम्

धृष्टद्युम्नस्तु शल्येन पीडितो नवभिः शरैः।
पीडयामास संक्रुद्धो मद्राधिपतिमायसैः ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शल्यके बाणोंसे पीड़ित होकर धृष्टद्युम्न अत्यन्त कुपित हो उठे और उन्होंने लोहेके बने हुए नौ बाणोंसे मद्रराज शल्यको गहरी पीड़ा पहुँचायी॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राद्भुतमपश्याम पार्षतस्य पराक्रमम् ।
न्यवारयत यस्तूर्णं शल्यं समितिशोभनम् ॥ ९ ॥

मूलम्

तत्राद्भुतमपश्याम पार्षतस्य पराक्रमम् ।
न्यवारयत यस्तूर्णं शल्यं समितिशोभनम् ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ हमलोगोंने धृष्टद्युम्नका यह अद्भुत पराक्रम देखा कि उन्होंने संग्रामभूमिमें शोभा पानेवाले राजा शल्यको तुरंत ही आगे बढ़नेसे रोक दिया॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नान्तरं दृश्यते तत्र तयोश्च रथिनोस्तदा।
मुहूर्तमिव तद् युद्धं तयोः सममिवाभवत् ॥ १० ॥

मूलम्

नान्तरं दृश्यते तत्र तयोश्च रथिनोस्तदा।
मुहूर्तमिव तद् युद्धं तयोः सममिवाभवत् ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय उन दोनों महारथियोंमें पराक्रमकी दृष्टिसे कोई अन्तर नहीं दिखायी देता था। दो घड़ीतक दोनोंमें समान-सा युद्ध होता रहा॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शल्यो महाराज धृष्टद्युम्नस्य संयुगे।
धनुश्चिच्छेद भल्लेन पीतेन निशितेन च ॥ ११ ॥

मूलम्

ततः शल्यो महाराज धृष्टद्युम्नस्य संयुगे।
धनुश्चिच्छेद भल्लेन पीतेन निशितेन च ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! तदनन्तर राजा शल्यने युद्धस्थलमें शाणपर तीक्ष्ण किये हुए पीले रंगके भल्ल नामक बाणसे धृष्टद्युम्नका धनुष काट दिया॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथैनं शरवर्षेण च्छादयामास संयुगे।
गिरिं जलागमे यद्वज्जलदा जलवृष्टिभिः ॥ १२ ॥

मूलम्

अथैनं शरवर्षेण च्छादयामास संयुगे।
गिरिं जलागमे यद्वज्जलदा जलवृष्टिभिः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद जैसे बादल बरसातमें पर्वतपर जलकी वर्षा करते हैं, उसी प्रकार उन्होंने धृष्टद्युम्नपर रणभूमिमें बाणोंकी वर्षा करके उन्हें सब ओरसे ढक दिया॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभिमन्युस्ततः क्रुद्धो धृष्टद्युम्ने च पीडिते।
अभिदुद्राव वेगेन मद्रराजरथं प्रति ॥ १३ ॥

मूलम्

अभिमन्युस्ततः क्रुद्धो धृष्टद्युम्ने च पीडिते।
अभिदुद्राव वेगेन मद्रराजरथं प्रति ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर धृष्टद्युम्नके पीड़ित होनेपर क्रोधमें भरे हुए अभिमन्युने मद्रराज शल्यके रथपर बड़े वेगसे आक्रमण किया॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो मद्राधिपरथं कार्ष्णिः प्राप्यातिकोपनः।
आर्तायनिममेयात्मा विव्याध निशितैः शरैः ॥ १४ ॥

मूलम्

ततो मद्राधिपरथं कार्ष्णिः प्राप्यातिकोपनः।
आर्तायनिममेयात्मा विव्याध निशितैः शरैः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मद्रराजके रथके निकट पहुँचकर अत्यन्त क्रोधमें भरे हुए अनन्त आत्मबलसे सम्पन्न अर्जुनकुमारने अपने पैने बाणोंद्वारा ऋतायनपुत्र राजा शल्यको घायल कर दिया॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तु तावका राजन् परीप्सन्तोऽर्जुनिं रणे।
मद्रराजरथं तूर्णं परिवार्यावतस्थिरे ॥ १५ ॥

मूलम्

ततस्तु तावका राजन् परीप्सन्तोऽर्जुनिं रणे।
मद्रराजरथं तूर्णं परिवार्यावतस्थिरे ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तब आपके पुत्र रणभूमिमें अभिमन्युको बन्दी बनानेकी इच्छासे तुरंत वहाँ आये और मद्रराज शल्यके रथको चारों ओरसे घेरकर युद्धके लिये खड़े हो गये॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्योधनो विकर्णश्च दुःशासनविविंशती ।
दुर्मर्षणो दुःसहश्च चित्रसेनोऽथ दुर्मुखः ॥ १६ ॥
सत्यव्रतश्च भद्रं ते पुरुमित्रश्च भारत।
एते मद्राधिपरथं पालयन्तः स्थिता रणे ॥ १७ ॥

मूलम्

दुर्योधनो विकर्णश्च दुःशासनविविंशती ।
दुर्मर्षणो दुःसहश्च चित्रसेनोऽथ दुर्मुखः ॥ १६ ॥
सत्यव्रतश्च भद्रं ते पुरुमित्रश्च भारत।
एते मद्राधिपरथं पालयन्तः स्थिता रणे ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! आपका भला हो। दुर्योधन, विकर्ण, दुःशासन, विविंशति, दुर्मर्षण, दुःसह, चित्रसेन, दुर्मुख, सत्यव्रत तथा पुरुमित्र—ये आपके पुत्र मद्रराजके रथकी रक्षा करते हुए युद्धभूमिमें डटे हुए थे॥१६-१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तान् भीमसेनः संक्रुद्धो धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
द्रौपदेयाऽभिमन्युश्च माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ ॥ १८ ॥
धार्तराष्ट्रान् दश रथान् दशैव प्रत्यवारयन्।
नानारूपाणि शस्त्राणि विसृजन्तो विशाम्पते ॥ १९ ॥

मूलम्

तान् भीमसेनः संक्रुद्धो धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
द्रौपदेयाऽभिमन्युश्च माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ ॥ १८ ॥
धार्तराष्ट्रान् दश रथान् दशैव प्रत्यवारयन्।
नानारूपाणि शस्त्राणि विसृजन्तो विशाम्पते ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपके इन दस महारथी पुत्रोंको क्रोधमें भरे हुए भीमसेन, द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न, माद्रीकुमार पाण्डुपुत्र नकुल-सहदेव, पाँचों भाई द्रौपदीकुमार और अभिमन्यु—इन दस ही महारथियोंने रोका। प्रजानाथ! ये सब लोग नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंका प्रहार कर रहे थे॥१८-१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभ्यवर्तन्त संहृष्टाः परस्परवधैषिणः ।
ते वै समेयुः संग्रामे राजन् दुर्मन्त्रिते तव ॥ २० ॥

मूलम्

अभ्यवर्तन्त संहृष्टाः परस्परवधैषिणः ।
ते वै समेयुः संग्रामे राजन् दुर्मन्त्रिते तव ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! ये सब एक-दूसरेके वधकी इच्छा रखकर हर्ष और उत्साहके साथ क्षत्रियोंका सामना करते थे। आपकी कुमन्त्रणाके फलस्वरूप ही इन सब योद्धाओंकी आपसमें भिड़न्त हुई थी॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिन् दशरथे क्रुद्धे वर्तमाने महाभये।
तावकानां परेषां वा प्रेक्षका रथिनोऽभवन् ॥ २१ ॥

मूलम्

तस्मिन् दशरथे क्रुद्धे वर्तमाने महाभये।
तावकानां परेषां वा प्रेक्षका रथिनोऽभवन् ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिस समय ये दसों महारथी क्रोधमें भरकर अत्यन्त भयंकर युद्धमें लगे हुए थे, उस समय आपकी और पाण्डवोंकी सेनाके दूसरे रथी दर्शक होकर देखते थे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शस्त्राण्यनेकरूपाणि विसृजन्तो महारथाः ।
अन्योन्यमभिनर्दन्तः सम्प्रहारं प्रचक्रिरे ॥ २२ ॥

मूलम्

शस्त्राण्यनेकरूपाणि विसृजन्तो महारथाः ।
अन्योन्यमभिनर्दन्तः सम्प्रहारं प्रचक्रिरे ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

किंतु आपके और पाण्डवोंके वे महारथी वीर एक-दूसरेपर अनेक प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोंकी वर्षा करते हुए गर्जते और युद्ध करते थे॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते तदा जातसंरम्भाः सर्वेऽन्योन्यं जिघांसवः।
अन्योन्यमभिमर्दन्तः स्पर्धमानाः परस्परम् ॥ २३ ॥

मूलम्

ते तदा जातसंरम्भाः सर्वेऽन्योन्यं जिघांसवः।
अन्योन्यमभिमर्दन्तः स्पर्धमानाः परस्परम् ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय उन सबमें क्रोध भरा हुआ था। सभी एक दूसरेके वधकी इच्छा रखते थे। सबमें परस्पर लाग-डाँट थी और सभी सबको कुचलनेकी चेष्टा करते थे॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अन्योन्यस्पर्धया राजन् ज्ञातयः सङ्गता मिथः।
महास्त्राणि विमुञ्चन्तः समापेतुरमर्षिणः ॥ २४ ॥

मूलम्

अन्योन्यस्पर्धया राजन् ज्ञातयः सङ्गता मिथः।
महास्त्राणि विमुञ्चन्तः समापेतुरमर्षिणः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! वे सब आपसमें कुटुम्बी—भाई-बन्धु थे, परंतु परस्पर स्पर्धा रखनेके कारण लड़ रहे थे। एक दूसरेके प्रति अमर्षमें भरकर बड़े-बड़े अस्त्रोंका प्रहार करते हुए आक्रमण-प्रत्याक्रमण करते थे॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्योधनस्तु संक्रुद्धो धृष्टद्युम्नं महारणे।
विव्याध निशितैर्बाणैश्चतुर्भिः समरे द्रुतम् ॥ २५ ॥

मूलम्

दुर्योधनस्तु संक्रुद्धो धृष्टद्युम्नं महारणे।
विव्याध निशितैर्बाणैश्चतुर्भिः समरे द्रुतम् ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दुर्योधनने कुपित होकर उस महासंग्राममें अपने चार तीखे बाणोंद्वारा तुरंत ही धृष्टद्युम्नको बींध दिया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्मर्षणश्च विंशत्या चित्रसेनश्च पञ्चभिः।
दुर्मुखो नवभिर्बाणैर्दुःसहश्चापि सप्तभिः ॥ २६ ॥
विविंशतिः पञ्चभिश्च त्रिभिर्दुःशासनस्तथा ।
तान् प्रत्यविध्यद् राजेन्द्र पार्षतः शत्रुतापनः ॥ २७ ॥
एकैकं पञ्चविंशत्या दर्शयन् पाणिलाघवम्।

मूलम्

दुर्मर्षणश्च विंशत्या चित्रसेनश्च पञ्चभिः।
दुर्मुखो नवभिर्बाणैर्दुःसहश्चापि सप्तभिः ॥ २६ ॥
विविंशतिः पञ्चभिश्च त्रिभिर्दुःशासनस्तथा ।
तान् प्रत्यविध्यद् राजेन्द्र पार्षतः शत्रुतापनः ॥ २७ ॥
एकैकं पञ्चविंशत्या दर्शयन् पाणिलाघवम्।

अनुवाद (हिन्दी)

दुर्मर्षणने बीस, चित्रसेनने पाँच, दुर्मुखने नौ, दुःसहने सात, विविंशतिने पाँच तथा दुःशासनने तीन बाणोंसे उन सबको बींध डाला। राजेन्द्र! तब शत्रुओंको संताप देनेवाले धृष्टद्युम्नने अपने हाथोंकी फुर्ती दिखाते हुए दुर्योधन आदिमेंसे प्रत्येकको पचीस-पचीस बाणोंसे घायल किया॥२६-२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सत्यव्रतं च समरे पुरुमित्रं च भारत ॥ २८ ॥
अभिमन्युरविध्यत् तु दशभिर्दशभिः शरैः।

मूलम्

सत्यव्रतं च समरे पुरुमित्रं च भारत ॥ २८ ॥
अभिमन्युरविध्यत् तु दशभिर्दशभिः शरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! अभिमन्युने समरभूमिमें सत्यव्रत और पुरुमित्रको दस-दस बाणोंसे पीड़ित किया॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

माद्रीपुत्रौ तु समरे मातुलं मातृनन्दनौ ॥ २९ ॥
अविध्येतां शरैस्तीक्ष्णैस्तदद्भुतमिवाभवत् ।

मूलम्

माद्रीपुत्रौ तु समरे मातुलं मातृनन्दनौ ॥ २९ ॥
अविध्येतां शरैस्तीक्ष्णैस्तदद्भुतमिवाभवत् ।

अनुवाद (हिन्दी)

माताको आनन्दित करनेवाले माद्रीकुमार नकुल और सहदेवने अपने मामा शल्यको पैने बाणोंसे घायल कर दिया। यह अद्भुत-सी बात हुई॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शल्यो महाराज स्वस्रीयौ रथिनां वरौ ॥ ३० ॥
शरैर्बहुभिरानर्च्छत् कृतप्रतिकृतैषिणौ ।
छाद्यमानौ ततस्तौ तु माद्रीपुत्रौ न चेलतुः ॥ ३१ ॥

मूलम्

ततः शल्यो महाराज स्वस्रीयौ रथिनां वरौ ॥ ३० ॥
शरैर्बहुभिरानर्च्छत् कृतप्रतिकृतैषिणौ ।
छाद्यमानौ ततस्तौ तु माद्रीपुत्रौ न चेलतुः ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! तदनन्तर शल्यने किये हुए प्रहारका बदला चुकानेकी इच्छा रखनेवाले रथियोंमें श्रेष्ठ अपने दोनों भानजोंको अनेक बाणोंसे पीड़ित किया। उनके बाणोंसे आच्छादित होनेपर भी नकुल-सहदेव विचलित नहीं हुए॥३०-३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथ दुर्योधनं दृष्ट्‌वा भीमसेनो महाबलः।
विधित्सुः कलहस्यान्तं गदां जग्राह पाण्डवः ॥ ३२ ॥

मूलम्

अथ दुर्योधनं दृष्ट्‌वा भीमसेनो महाबलः।
विधित्सुः कलहस्यान्तं गदां जग्राह पाण्डवः ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर महाबली पाण्डुपुत्र भीमसेनने दुर्योधनको देखकर झगड़ेका अन्त कर डालनेकी इच्छासे गदा उठा ली॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमुद्यतगदं दृष्ट्‌वा कैलासमिव शृङ्गिणम्।
भीमसेनं महाबाहुं पुत्रास्ते प्राद्रवन् भयात् ॥ ३३ ॥

मूलम्

तमुद्यतगदं दृष्ट्‌वा कैलासमिव शृङ्गिणम्।
भीमसेनं महाबाहुं पुत्रास्ते प्राद्रवन् भयात् ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

गदा उठाये हुए महाबाहु भीमसेनको एक शिखरसे युक्त कैलास पर्वतके समान उपस्थित देख आपके सभी पुत्र भयके मारे भाग गये॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्योधनस्तु संक्रुद्धो मागधं समचोदयत्।
अनीकं दशसाहस्रं कुञ्जराणां तरस्विनाम् ॥ ३४ ॥

मूलम्

दुर्योधनस्तु संक्रुद्धो मागधं समचोदयत्।
अनीकं दशसाहस्रं कुञ्जराणां तरस्विनाम् ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब दुर्योधनने कुपित होकर मगधदेशीय दस हजार हाथियोंकी वेगशाली सेनाको युद्धके लिये प्रेरित किया॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गजानीकेन सहितस्तेन राजा सुयोधनः।
मागधं पुरतः कृत्वा भीमसेनं समभ्ययात् ॥ ३५ ॥

मूलम्

गजानीकेन सहितस्तेन राजा सुयोधनः।
मागधं पुरतः कृत्वा भीमसेनं समभ्ययात् ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस गजसेनाके साथ मागधको आगे करके दुर्योधनने भीमसेनपर आक्रमण किया॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आपतन्तं च तं दृष्ट्‌वा गजानीकं वृकोदरः।
गदापाणिरवारोहद् रथात् सिंह इवोन्नदन् ॥ ३६ ॥

मूलम्

आपतन्तं च तं दृष्ट्‌वा गजानीकं वृकोदरः।
गदापाणिरवारोहद् रथात् सिंह इवोन्नदन् ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस गजसेनाको आते देख भीमसेन हाथमें गदा लेकर सिंहके समान गर्जना करते हुए रथसे उतर पड़े॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्रिसारमयीं गुर्वीं प्रगृह्य महतीं गदाम्।
अभ्यधावद् गजानीकं व्यादितास्य इवान्तकः ॥ ३७ ॥

मूलम्

अद्रिसारमयीं गुर्वीं प्रगृह्य महतीं गदाम्।
अभ्यधावद् गजानीकं व्यादितास्य इवान्तकः ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

लोहेकी उस विशाल एवं भारी गदाको लेकर वे मुँह बाये हुए कालके समान उस गजसेनाकी ओर दौड़े॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स गजान् गदया निघ्नन् व्यचरत् समरे बली।
भीमसेनो महाबाहुः सवज्र इव वासवः ॥ ३८ ॥

मूलम्

स गजान् गदया निघ्नन् व्यचरत् समरे बली।
भीमसेनो महाबाहुः सवज्र इव वासवः ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बलवान् महाबाहु भीमसेन वज्रधारी इन्द्रके समान गदासे हाथियोंका संहार करते हुए समरांगणमें विचरने लगे॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य नादेन महता मनोहृदयकम्पिना।
व्यत्यचेष्टन्त संहत्य गजा भीमस्य गर्जतः ॥ ३९ ॥

मूलम्

तस्य नादेन महता मनोहृदयकम्पिना।
व्यत्यचेष्टन्त संहत्य गजा भीमस्य गर्जतः ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मन और हृदयको कँपा देनेवाली गर्जते हुए भीमसेनकी उस भीषण गर्जनासे सब हाथी एकत्र हो भयके मारे निश्चेष्ट एवं अचेत-से हो गये॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तु द्रौपदीपुत्राः सौभद्रश्च महारथः।
नकुलः सहदेवश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः ॥ ४० ॥
पृष्ठं भीमस्य रक्षन्तः शरवर्षेण वारणान्।
अभ्यवर्षन्त धावन्तो मेघा इव गिरीन् यथा ॥ ४१ ॥

मूलम्

ततस्तु द्रौपदीपुत्राः सौभद्रश्च महारथः।
नकुलः सहदेवश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः ॥ ४० ॥
पृष्ठं भीमस्य रक्षन्तः शरवर्षेण वारणान्।
अभ्यवर्षन्त धावन्तो मेघा इव गिरीन् यथा ॥ ४१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् द्रौपदीके पाँचों पुत्र, महारथी अभिमन्यु, नकुल-सहदेव तथा द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न—ये सब लोग भीमसेनके पृष्ठभागकी रक्षा करते हुए हाथियोंपर उसी प्रकार दौड़-दौड़कर बाण-वर्षा करने लगे, जैसे बादल पर्वतोंपर पानीकी बूँदें बरसाते हैं॥४०-४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्षुरैः क्षुरप्रैर्भल्लैश्च पीतैश्चाञ्जलिकैः शितैः।
व्यहरन्नुत्तमाङ्गानि पाण्डवा गजयोधिनाम् ॥ ४२ ॥

मूलम्

क्षुरैः क्षुरप्रैर्भल्लैश्च पीतैश्चाञ्जलिकैः शितैः।
व्यहरन्नुत्तमाङ्गानि पाण्डवा गजयोधिनाम् ॥ ४२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डव रथी क्षुर, क्षुरप्र, पीले रंगके भल्ल तथा तीखे आंजलिक नामक बाणोंद्वारा हाथीसवार योद्धाओंके मस्तक काट-काटकर गिराने लगे॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिरोभिः प्रपतद्भिश्च बाहुभिश्च विभूषितैः।
अश्मवृष्टिरिवाभाति पाणिभिश्च सहाङ्कुशैः ॥ ४३ ॥

मूलम्

शिरोभिः प्रपतद्भिश्च बाहुभिश्च विभूषितैः।
अश्मवृष्टिरिवाभाति पाणिभिश्च सहाङ्कुशैः ॥ ४३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके शिरों, बाजूबन्दविभूषित भुजाओं और अंकुशोंसहित हाथोंके गिरनेसे ऐसा जान पड़ता था, मानो आकाशसे ओले और पत्थरोंकी वर्षा हो रही हो॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हृतोत्तमाङ्गाः स्कन्धेषु गजानां गजयोधिनः।
अदृश्यन्ताचलाग्रेषु द्रुमा भग्नशिखा इव ॥ ४४ ॥

मूलम्

हृतोत्तमाङ्गाः स्कन्धेषु गजानां गजयोधिनः।
अदृश्यन्ताचलाग्रेषु द्रुमा भग्नशिखा इव ॥ ४४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मस्तक कट जानेपर भी हाथियोंकी पीठपर टिके हुए गजारोही योद्धाओंके धड़ पर्वतके शिखरोंपर स्थित हुए शिखाहीन वृक्षोंके समान दृष्टिगोचर हो रहे थे॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नहतानन्यानपश्याम महागजान् ।
पततः पात्यमानांश्च पार्षतेन महात्मना ॥ ४५ ॥

मूलम्

धृष्टद्युम्नहतानन्यानपश्याम महागजान् ।
पततः पात्यमानांश्च पार्षतेन महात्मना ॥ ४५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हमलोगोंने धृष्टद्युम्नके द्वारा मारे गये बहुत-से हाथियोंको देखा, महामना द्रुपदकुमारकी मार खाकर बहुत-से हाथी गिरे और गिराये जा रहे थे॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मागधोऽथ महीपालो गजमैरावणोपमम् ।
प्रेषयामास समरे सौभद्रस्य रथं प्रति ॥ ४६ ॥

मूलम्

मागधोऽथ महीपालो गजमैरावणोपमम् ।
प्रेषयामास समरे सौभद्रस्य रथं प्रति ॥ ४६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी समय मगधदेशीय भूपालने युद्धस्थलमें अभिमन्युके रथकी ओर ऐरावतके समान एक विशाल हाथीको प्रेरित किया॥४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य मागधस्य महागजम्।
जघानैकेषुणा वीरः सौभद्रः परवीरहा ॥ ४७ ॥

मूलम्

तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य मागधस्य महागजम्।
जघानैकेषुणा वीरः सौभद्रः परवीरहा ॥ ४७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मगधनरेशके उस विशाल गजको आते देख शत्रुवीरोंका नाश करनेवाले वीर सुभद्राकुमारने उसे एक ही बाणसे मार डाला॥४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्यावर्जितनागस्य कार्ष्णिः परपुरंजयः ।
राज्ञो रजतपुङ्खेन भल्लेनापाहरच्छिरः ॥ ४८ ॥

मूलम्

तस्यावर्जितनागस्य कार्ष्णिः परपुरंजयः ।
राज्ञो रजतपुङ्खेन भल्लेनापाहरच्छिरः ॥ ४८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर शत्रु-नगरीपर विजय पानेवाले अर्जुनपुत्र अभिमन्युने मरनेपर भी हाथीको न छोड़नेवाले मगधराजका मस्तक रजतमय पंखवाले भल्लके द्वारा काट गिराया॥४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विगाह्य तद् गजानीकं भीमसेनोऽपि पाण्डवः।
व्यचरत् समरे मृद्‌नन् गजानिन्द्रो गिरीनिव ॥ ४९ ॥

मूलम्

विगाह्य तद् गजानीकं भीमसेनोऽपि पाण्डवः।
व्यचरत् समरे मृद्‌नन् गजानिन्द्रो गिरीनिव ॥ ४९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उधर पाण्डुनन्दन भीमसेन भी गजसेनामें घुसकर पर्वतोंको विदीर्ण करनेवाले देवेन्द्रके समान हाथियोंको रौंदते हुए समरांगणमें विचरने लगे॥४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एकप्रहारनिहतान् भीमसेनेन दन्तिनः ।
अपश्याम रणे तस्मिन् गिरीन् वज्रहतानिव ॥ ५० ॥

मूलम्

एकप्रहारनिहतान् भीमसेनेन दन्तिनः ।
अपश्याम रणे तस्मिन् गिरीन् वज्रहतानिव ॥ ५० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! उस युद्धस्थलमें हमने वज्रके मारे हुए पर्वतोंकी भाँति भीमसेनके एक ही प्रहारसे दन्तार हाथियोंको भी मरते देखा था॥५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भग्नदन्तान् भग्नकरान् भग्नसक्थांश्च वारणान्।
भग्नपृष्ठत्रिकानन्यान् निहतान् पर्वतोपमान् ॥ ५१ ॥
नदतः सीदतश्चान्यान् विमुखान् समरे गतान्।
विद्रुतान् भयसंविग्नांस्तथा विशकृतोऽपरान् ॥ ५२ ॥

मूलम्

भग्नदन्तान् भग्नकरान् भग्नसक्थांश्च वारणान्।
भग्नपृष्ठत्रिकानन्यान् निहतान् पर्वतोपमान् ॥ ५१ ॥
नदतः सीदतश्चान्यान् विमुखान् समरे गतान्।
विद्रुतान् भयसंविग्नांस्तथा विशकृतोऽपरान् ॥ ५२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

किन्हींके दाँत टूट गये, किन्हींकी सूँड़ कट गयी, कितनोंकी जाँघें टूट गयीं, किन्हींकी पीठ टूट गयी और कितने ही पर्वतोंके समान विशालकाय गजराज मारे गये, कुछ चिग्घाड़ रहे थे, कुछ कष्टसे कराह रहे थे, कुछ युद्धभूमिसे विमुख होकर भागने लगे थे और कुछ भयसे व्याकुल होकर मल-मूत्र कर रहे थे। इन सबको मैंने अपनी आँखों देखा था॥५१-५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमसेनस्य मार्गेषु पतितान् पर्वतोपमान्।
अपश्यं निहतान्‌ नागान् राजन् निष्ठीवतोऽपरान् ॥ ५३ ॥

मूलम्

भीमसेनस्य मार्गेषु पतितान् पर्वतोपमान्।
अपश्यं निहतान्‌ नागान् राजन् निष्ठीवतोऽपरान् ॥ ५३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेनके मार्गोंमें उनके द्वारा मारे गये पर्वतोपम हाथी पड़े दिखायी दिये। राजन्! अन्य बहुत-से हाथियोंको मैंने मुँहसे फेन फेंकते देखा था॥५३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वमन्तो रुधिरं चान्ये भिन्नकुम्भा महागजाः।
विह्वलन्तो गता भूमिं शैला इव धरातले ॥ ५४ ॥

मूलम्

वमन्तो रुधिरं चान्ये भिन्नकुम्भा महागजाः।
विह्वलन्तो गता भूमिं शैला इव धरातले ॥ ५४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कितने ही विशालकाय हाथी खून उगल रहे थे और उनके कुम्भस्थल फट गये थे। बहुत-से व्याकुल होकर इस भूतलपर पर्वतोंके समान पड़े थे॥५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मेदोरुधिरदिग्धाङ्गो वसामज्जासमुक्षितः ।
व्यचरत् समरे भीमो दण्डपाणिरिवान्तकः ॥ ५५ ॥

मूलम्

मेदोरुधिरदिग्धाङ्गो वसामज्जासमुक्षितः ।
व्यचरत् समरे भीमो दण्डपाणिरिवान्तकः ॥ ५५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेनका सारा शरीर मेदा तथा रक्तसे लिए हो रहा था। वे वसा और मज्जासे नहा गये थे और हाथमें गदा लिये दण्डपाणि यमराजके समान उस युद्धभूमिमें विचर रहे थे॥५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गजानां रुधिरक्लिन्नां गदां बिभ्रद् वृकोदरः।
घोरः प्रतिभयश्चासीत् पिनाकीव पिनाकधृक् ॥ ५६ ॥

मूलम्

गजानां रुधिरक्लिन्नां गदां बिभ्रद् वृकोदरः।
घोरः प्रतिभयश्चासीत् पिनाकीव पिनाकधृक् ॥ ५६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

हाथियोंके खूनसे भीगी हुई गदा धारण किये भीमसेन पिनाकधारी भगवान् रुद्रके समान घोर एवं भयंकर दिखायी देते थे॥५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सम्मथ्यमानाः क्रुद्धेन भीमसेनेन दन्तिनः।
सहसा प्राद्रवन् क्लिष्टा मृद्‌नन्तस्तव वाहिनीम् ॥ ५७ ॥

मूलम्

सम्मथ्यमानाः क्रुद्धेन भीमसेनेन दन्तिनः।
सहसा प्राद्रवन् क्लिष्टा मृद्‌नन्तस्तव वाहिनीम् ॥ ५७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

क्रोधमें भरे हुए भीमसेन हाथियोंको मथे डालते थे; अतः वे उनके द्वारा अत्यन्त क्लेश पाकर आपकी सेनाको कुचलते हुए सहसा युद्धस्थलसे भाग चले॥५७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं हि वीरं महेष्वासं सौभद्रप्रमुखा रथाः।
पर्यरक्षन्त युध्यन्तं वज्रायुधमिवामराः ॥ ५८ ॥

मूलम्

तं हि वीरं महेष्वासं सौभद्रप्रमुखा रथाः।
पर्यरक्षन्त युध्यन्तं वज्रायुधमिवामराः ॥ ५८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे देवता वज्रधारी इन्द्रकी रक्षा करते हैं, उसी प्रकार सुभद्राकुमार आदि पाण्डव योद्धा युद्धमें तत्पर हुए महाधनुर्धर वीर भीमसेनकी सब ओरसे रक्षा करते थे॥५८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शोणिताक्तां गदां बिभ्रदुक्षितां गजशोणितैः।
कृतान्त इव रौद्रात्मा भीमसेनो व्यदृश्यत ॥ ५९ ॥

मूलम्

शोणिताक्तां गदां बिभ्रदुक्षितां गजशोणितैः।
कृतान्त इव रौद्रात्मा भीमसेनो व्यदृश्यत ॥ ५९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

खूनमें सनी तथा हाथियोंके रक्तसे भीगी हुई गदा लिये रौद्ररूपधारी भीमसेन यमराजके समान दिखायी देते थे॥५९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्यायच्छमानं गदया दिक्षु सर्वासु भारत।
अपश्याम रणे भीमं नृत्यन्तमिव शंकरम् ॥ ६० ॥

मूलम्

व्यायच्छमानं गदया दिक्षु सर्वासु भारत।
अपश्याम रणे भीमं नृत्यन्तमिव शंकरम् ॥ ६० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! भीमसेन गदा लेकर सम्पूर्ण दिशाओंमें व्यायाम-सा कर रहे थे। समरभूमिमें भीमको हमलोगोंने ताण्डव-नृत्य करते हुए भगवान् शंकरके समान देखा था॥६०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यमदण्डोपमां गुर्वीमिन्द्राशनिसमस्वनाम् ।
अपश्याम महाराज रौद्रां विशसनीं गदाम् ॥ ६१ ॥

मूलम्

यमदण्डोपमां गुर्वीमिन्द्राशनिसमस्वनाम् ।
अपश्याम महाराज रौद्रां विशसनीं गदाम् ॥ ६१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! भीमसेनकी भारी और भयंकर गदा सबका संहार करनेवाली है। हमें तो वह यमदण्डके समान दिखायी देती थी। प्रहार करनेपर उससे इन्द्रके वज्रकी गड़गड़ाहटके समान आवाज होती थी॥६१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विमिश्रां केशमज्जाभिः प्रदिग्धां रुधिरेण च।
पिनाकमिव रुद्रस्य क्रुद्धस्याभिघ्नतः पशून् ॥ ६२ ॥

मूलम्

विमिश्रां केशमज्जाभिः प्रदिग्धां रुधिरेण च।
पिनाकमिव रुद्रस्य क्रुद्धस्याभिघ्नतः पशून् ॥ ६२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

रक्तसे भीगी तथा केश और मज्जासे मिली हुई उस गदाको हमने प्रलयकालमें क्रोधसे भरकर समस्त पशुओं (जीवों)-का संहार करनेवाले रुद्रदेवके पिनाकके समान समझा था॥६२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा पशूनां संघातं यष्ट्या पालः प्रकालयेत्।
तभा भीमो गजानीकं गदया समकालयत् ॥ ६३ ॥

मूलम्

यथा पशूनां संघातं यष्ट्या पालः प्रकालयेत्।
तभा भीमो गजानीकं गदया समकालयत् ॥ ६३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे चरवाहा पशुओंके झुंडको डंडेसे हाँकता है, उसी प्रकार भीमसेन हाथियोंके समूहको अपनी गदासे हाँक रहे थे॥६३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गदया वध्यमानास्ते मार्गणैश्च समन्ततः।
स्वान्यनीकानि मृद्‌नन्तः प्राद्रवन् कुञ्जरास्तव ॥ ६४ ॥

मूलम्

गदया वध्यमानास्ते मार्गणैश्च समन्ततः।
स्वान्यनीकानि मृद्‌नन्तः प्राद्रवन् कुञ्जरास्तव ॥ ६४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! चारों ओरसे गदा और बाणोंकी मार पड़नेपर आपकी सेनाके वे समस्त हाथी अपने ही सैनिकोंको कुचलते हुए भाग रहे थे॥६४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महावात इवाभ्राणि विधमित्वा स वारणान्।
अतिष्ठत् तुमुले भीमः श्मशान इव शूलभृत् ॥ ६५ ॥

मूलम्

महावात इवाभ्राणि विधमित्वा स वारणान्।
अतिष्ठत् तुमुले भीमः श्मशान इव शूलभृत् ॥ ६५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे आँधी बादलोंको छिन्न-भिन्न करके उड़ा देती है, उसी प्रकार भीमसेन उस भयंकर युद्धमें हाथियोंकी सेनाको नष्ट करके श्मशानभूमिमें त्रिशूलधारी भगवान् शंकरके समान खड़े थे॥६५॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि चतुर्थदिवसे भीमयुद्धे द्विषष्टितमोऽध्यायः ॥ ६२ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें चौथे दिन भीमसेनका युद्धविषयक बासठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥६२॥