भागसूचना
षष्टितमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
चौथे दिन—दोनों सेनाओंका व्यूह-निर्माण तथा भीष्म और अर्जुनका द्वैरथ-युद्ध
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
व्युष्टां निशां भारत भारताना-
मनीकिनीनां प्रमुखे महात्मा ।
ययौ सपत्नान् प्रति जातकोपो
वृतः समग्रेण बलेन भीष्मः ॥ १ ॥
मूलम्
व्युष्टां निशां भारत भारताना-
मनीकिनीनां प्रमुखे महात्मा ।
ययौ सपत्नान् प्रति जातकोपो
वृतः समग्रेण बलेन भीष्मः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजय कहते हैं— भारत! जब रात बीती और प्रभात हुआ, तब भरतवंशियोंकी सेनाके अग्रभागमें स्थित हुए महामना भीष्म समग्रसेनासे घिरकर शत्रुओंसे युद्ध करनेके लिये चले। उस समय उनके मनमें शत्रुओंके प्रति बड़ा क्रोध था॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं द्रोणदुर्योधनबाह्लिकाश्च
तथैव दुर्मर्षणचित्रसेनौ ।
जयद्रथश्चातिबलो बलौघै-
र्नृपास्तथान्ये प्रययुः समन्तात् ॥ २ ॥
मूलम्
तं द्रोणदुर्योधनबाह्लिकाश्च
तथैव दुर्मर्षणचित्रसेनौ ।
जयद्रथश्चातिबलो बलौघै-
र्नृपास्तथान्ये प्रययुः समन्तात् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उनके साथ चारों ओरसे द्रोण, दुर्योधन, बाह्लिक, दुर्मर्षण, चित्रसेन, अत्यन्त बलवान् जयद्रथ तथा अन्य नरेश विशाल वाहिनीको साथ लिये प्रस्थित हुए॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तैर्महद्भिश्च महारथैश्च
तेजस्विभिर्वीर्यवद्भिश्च राजन् ।
रराज राजा स तु राजमुख्यै-
र्वृतः स देवैरिव वज्रपाणिः ॥ ३ ॥
मूलम्
स तैर्महद्भिश्च महारथैश्च
तेजस्विभिर्वीर्यवद्भिश्च राजन् ।
रराज राजा स तु राजमुख्यै-
र्वृतः स देवैरिव वज्रपाणिः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इस महान्, तेजस्वी, पराक्रमी और महारथी नरपतियोंसे घिरा हुआ राजा दुर्योधन देवताओंसहित वज्रपाणि इन्द्रके समान शोभा पा रहा था॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तस्मिन्ननीकप्रमुखे विषक्ता
दोधूयमानाश्च महापताकाः ।
सुरक्तपीतासितपाण्डुराभा
महागजस्कन्धगता विरेजुः ॥ ४ ॥
मूलम्
तस्मिन्ननीकप्रमुखे विषक्ता
दोधूयमानाश्च महापताकाः ।
सुरक्तपीतासितपाण्डुराभा
महागजस्कन्धगता विरेजुः ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस सेनाके प्रमुख भागमें बड़े-बड़े गजराजोंके कंधोंपर लगी हुई लाल, पीली, काली और सफेद रंगकी फहराती हुई विशाल पताकाएँ शोभा पा रही थीं॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सा वाहिनी शान्तनवेन गुप्ता
महारथैर्वारणवाजिभिश्च ।
बभौ सविद्युत्स्तनयित्नुकल्पा
जलागमे द्यौरिव जातमेघा ॥ ५ ॥
मूलम्
सा वाहिनी शान्तनवेन गुप्ता
महारथैर्वारणवाजिभिश्च ।
बभौ सविद्युत्स्तनयित्नुकल्पा
जलागमे द्यौरिव जातमेघा ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
शान्तनुनन्दन भीष्मसे रक्षित वह विशाल वाहिनी बड़े-बड़े रथों, हाथियों और घोड़ोंसे ऐसी शोभा पा रही थी, मानो वर्षाकालमें मेघोंकी घटासे आच्छादित आकाश बिजलीसहित बादलोंसे सुशोभित हो॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो रणायाभिमुखी प्रयाता
प्रत्यर्जुनं शान्तनवाभिगुप्ता ।
सेना महोग्रा सहसा कुरूणां
वेगो यथा भीम इवापगायाः ॥ ६ ॥
मूलम्
ततो रणायाभिमुखी प्रयाता
प्रत्यर्जुनं शान्तनवाभिगुप्ता ।
सेना महोग्रा सहसा कुरूणां
वेगो यथा भीम इवापगायाः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर नदीके भयानक वेगकी भाँति कौरवोंकी वह अत्यन्त भयंकर सेना शान्तनुनन्दन भीष्मसे सुरक्षित हो रणके लिये अर्जुनकी ओर सहसा चली॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं व्यालनानाविधगूढसारं
गजाश्वपादातरथौघपक्षम् ।
व्यूहं महामेघसमं महात्मा
ददर्श दूरात् कपिराजकेतुः ॥ ७ ॥
मूलम्
तं व्यालनानाविधगूढसारं
गजाश्वपादातरथौघपक्षम् ।
व्यूहं महामेघसमं महात्मा
ददर्श दूरात् कपिराजकेतुः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महामना कपिध्वज अर्जुनने दूरसे देखा कि कौरवसेना व्याल नामक व्यूहमें आबद्ध होनेके कारण अनेक प्रकारकी दिखायी दे रही है। उसकी शक्ति छिपी हुई है। उसमें हाथी, घोड़े, पैदल तथा रथियोंके समूह भरे हुए हैं। सेनाका वह व्यूह महान् मेघोंकी घटाके समान जान पड़ता है॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विनिर्ययौ केतुमता रथेन
नरर्षभः श्वेतहयेन वीरः ।
वरूथिना सैन्यमुखे महात्मा
वधे धृतः सर्वसपत्नयूनाम् ॥ ८ ॥
मूलम्
विनिर्ययौ केतुमता रथेन
नरर्षभः श्वेतहयेन वीरः ।
वरूथिना सैन्यमुखे महात्मा
वधे धृतः सर्वसपत्नयूनाम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर नरश्रेष्ठ महामना वीर अर्जुन समस्त शत्रुपक्षीय युवकोंके वधका संकल्प लेकर श्वेत घोड़ोंसे जुते हुए ध्वज एवं आवरणसे युक्त रथपर आरूढ़ हो शत्रुसेनाके सामने चले॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सूपस्करं सोत्तरबन्धुरेषं
यत्तं यदूनामृषभेण संख्ये ।
कपिध्वजं प्रेक्ष्य विषेदुराजौ
सहैव पुत्रैस्तव कौरवेयाः ॥ ९ ॥
मूलम्
सूपस्करं सोत्तरबन्धुरेषं
यत्तं यदूनामृषभेण संख्ये ।
कपिध्वजं प्रेक्ष्य विषेदुराजौ
सहैव पुत्रैस्तव कौरवेयाः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिसमें सब सामग्री सुन्दरतासे सजाकर रखी गयी थी, अच्छी तरह बँधी होनेके कारण जिसकी ईषा अत्यन्त मनोहर दिखायी देती है तथा यदुकुलतिलक श्रीकृष्ण जिसका संचालन करते हैं, उस वानरके चिह्नवाली ध्वजासे युक्त रथको युद्धभूमिमें उपस्थित देख आपके पुत्रोंसहित समस्त कौरवसैनिक विषादमग्न हो गये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रकर्षता गुप्तमुदायुधेन
किरीटिना लोकमहारथेन ।
तं व्यूहराजं ददृशुस्त्वदीया-
श्चतुश्चतुर्व्यालसहस्रकर्णम् ॥ १० ॥
मूलम्
प्रकर्षता गुप्तमुदायुधेन
किरीटिना लोकमहारथेन ।
तं व्यूहराजं ददृशुस्त्वदीया-
श्चतुश्चतुर्व्यालसहस्रकर्णम् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
लोकविख्यात महारथी किरीटधारी अर्जुन अस्त्र-शस्त्र लेकर जिसे सुरक्षितरूपसे अपने साथ ले आ रहे थे और जिसमें चार-चार हजार मतवाले हाथी प्रत्येक दिशामें खड़े किये गये थे, उस व्यूहराजको आपके सैनिकोंने देखा॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा हि पूर्वेऽहनि धर्मराज्ञा
व्यूहः कृतः कौरवसत्तमेन ।
तथा न भूतो भुवि मानुषेषु
न दृष्टपूर्वो न च संश्रुतश्च ॥ ११ ॥
मूलम्
यथा हि पूर्वेऽहनि धर्मराज्ञा
व्यूहः कृतः कौरवसत्तमेन ।
तथा न भूतो भुवि मानुषेषु
न दृष्टपूर्वो न च संश्रुतश्च ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुश्रेष्ठ धर्मराज युधिष्ठिरने पहले दिन जैसा व्यूह बनाया था, वैसा ही वह भी था। वैसा व्यूह इस भूतलपर मनुष्योंकी सेनाओंमें न तो पहले कभी देखा गया था और न कभी सुना ही गया था॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो यथादेशमुपेत्य तस्थुः
पाञ्चालमुख्याः सह चेदिमुख्यैः ।
ततः समादेशसमाहतानि
भेरीसहस्राणि विनेदुराजौ ॥ १२ ॥
मूलम्
ततो यथादेशमुपेत्य तस्थुः
पाञ्चालमुख्याः सह चेदिमुख्यैः ।
ततः समादेशसमाहतानि
भेरीसहस्राणि विनेदुराजौ ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर सेनापतिकी आज्ञाके अनुसार यथोचित स्थानपर पहुँचकर पांचाल और चेदिदेशके प्रमुख वीर खड़े हुए। फिर उस युद्धस्थलमें प्रधानके आदेशानुसार सहस्रों रणभेरियाँ एक साथ बज उठीं॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शङ्खस्वनास्तूर्यरथस्वनाश्च
सर्वेष्वनीकेषु ससिंहनादाः ।
ततः सबाणानि महास्वनानि
विस्फार्यमाणानि धनूंषि वीरैः ॥ १३ ॥
मूलम्
शङ्खस्वनास्तूर्यरथस्वनाश्च
सर्वेष्वनीकेषु ससिंहनादाः ।
ततः सबाणानि महास्वनानि
विस्फार्यमाणानि धनूंषि वीरैः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सभी सेनाओंमें शंखनाद, तूर्यनाद (वाद्योंकी ध्वनि) तथा वीरोंके सिंहनादसहित रथोंकी घर-घराहटके शब्द होने लगे। फिर वीरोंके द्वारा खींचे जानेवाले बाणसहित धनुषके महान् टंकार-शब्द गूँज उठे॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
क्षणेन भेरीपणवप्रणादा-
नन्तर्दधुः शङ्खमहास्वनाश्च ।
तच्छङ्खशब्दावृतमन्तरिक्ष-
मुद्धूतभीमाद्भुतरेणुजालम् ॥ १४ ॥
मूलम्
क्षणेन भेरीपणवप्रणादा-
नन्तर्दधुः शङ्खमहास्वनाश्च ।
तच्छङ्खशब्दावृतमन्तरिक्ष-
मुद्धूतभीमाद्भुतरेणुजालम् ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
क्षणभरमें भेरी और पणव आदिके शब्दोंको महान् शंखनादोंने दबा लिया तथा उस शंखध्वनिसे व्याप्त हुए आकाशमें (पृथ्वीसे) उठी हुई धूलोंका भयंकर एवं अद्भुत जाल-सा फैल गया॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महानुभावाश्च ततः प्रकाश-
मालोक्य वीराः सहसाभिपेतुः ।
रथी रथेनाभिहतः ससूतः
पपात साश्वः सरथः सकेतुः ॥ १५ ॥
मूलम्
महानुभावाश्च ततः प्रकाश-
मालोक्य वीराः सहसाभिपेतुः ।
रथी रथेनाभिहतः ससूतः
पपात साश्वः सरथः सकेतुः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर महान् प्रभावशाली वीर सूर्यदेवका प्रकाश देखकर सहसा शत्रुमण्डलीपर टूट पड़े। रथी रथीसे भड़कर सारथि, घोड़े, रथ और ध्वजसहित मरकर गिरने लगा॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गजो गजेनाभिहतः पपात
पदातिना चाभिहतः पदातिः ।
आवर्तमानान्यभिवर्तमानै-
र्घोरीकृतान्यद्भुतदर्शनानि ।
प्रासैश्च खड्गैश्च समाहतानि
सदश्ववृन्दानि सदश्ववृन्दैः ॥ १६ ॥
सुवर्णतारागणभूषितानि
सूर्यप्रभाभानि शरावराणि ।
विदार्यमाणानि परश्वधैश्च
प्रासैश्च खड्गैश्च निपेतुरुर्व्याम् ॥ १७ ॥
मूलम्
गजो गजेनाभिहतः पपात
पदातिना चाभिहतः पदातिः ।
आवर्तमानान्यभिवर्तमानै-
र्घोरीकृतान्यद्भुतदर्शनानि ।
प्रासैश्च खड्गैश्च समाहतानि
सदश्ववृन्दानि सदश्ववृन्दैः ॥ १६ ॥
सुवर्णतारागणभूषितानि
सूर्यप्रभाभानि शरावराणि ।
विदार्यमाणानि परश्वधैश्च
प्रासैश्च खड्गैश्च निपेतुरुर्व्याम् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हाथी हाथीके आघातसे और पैदल पैदलकी चोटसे धराशायी होने लगे। श्रेष्ठ घोड़ोंके समूहपर उत्तम अश्वोंके समुदाय आक्रमण-प्रत्याक्रमण करते थे। ये सवारोंद्वारा किये हुए खड्ग और प्रासोंके आघातसे घायल होकर भयंकर और अद्भुत दिखायी देते थे। स्वर्णमय तारागणोंके चिह्नोंसे विभूषित सूर्यके समान चमकीले कवच फरसों, तलवारों और प्रासोंकी चोटसे विदीर्ण होकर धरतीपर गिर रहे थे॥१६-१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गजैर्विषाणैर्वरहस्तरुग्णाः
केचित् ससूता रथिनः प्रपेतुः।
गजर्षभाश्चापि रथर्षभेण
निपातिता बाणहताः पृथिव्याम् ॥ १८ ॥
मूलम्
गजैर्विषाणैर्वरहस्तरुग्णाः
केचित् ससूता रथिनः प्रपेतुः।
गजर्षभाश्चापि रथर्षभेण
निपातिता बाणहताः पृथिव्याम् ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दन्तार हाथियोंके दाँतों और सूँड़ोंके आघातसे रथ चूर-चूर हो जानेके कारण कितने ही रथी सारथि-सहित धरतीपर गिर पड़ते थे। कितने ही श्रेष्ठ रथियोंने बड़े बड़े हाथियोंको अपने बाणोंसे मारकर धराशायी कर दिया॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गजौघवेगोद्धतसादितानां
श्रुत्वा विषेदुः सहसा मनुष्याः।
आर्तस्वनं सादिपदातियूनां
विषाणगात्रावरताडितानाम् ॥ १९ ॥
मूलम्
गजौघवेगोद्धतसादितानां
श्रुत्वा विषेदुः सहसा मनुष्याः।
आर्तस्वनं सादिपदातियूनां
विषाणगात्रावरताडितानाम् ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हाथियोंके वेगसे कुचलकर कितने ही घुड़सवार और पैदल युवक मारे गये। वे उनके दाँतों और नीचेके अंगसे कुचलकर हताहत हो रहे थे। सहसा उनकी आर्त चीत्कार सुनकर सभी मनुष्योंको बड़ा खेद होता था॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सम्भ्रान्तनागाश्वरथे मुहूर्ते
महाक्षये सादिपदातियूनाम् ।
महारथैः सम्परिवार्यमाणो
ददर्श भीष्मः कपिराजकेतुम् ॥ २० ॥
मूलम्
सम्भ्रान्तनागाश्वरथे मुहूर्ते
महाक्षये सादिपदातियूनाम् ।
महारथैः सम्परिवार्यमाणो
ददर्श भीष्मः कपिराजकेतुम् ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस मुहूर्तमें जब कि घुड़सवारों और पैदल युवकोंका विकट संहार हो रहा था तथा हाथी, घोड़े और रथ सभी अत्यन्त घबराहटमें पड़े हुए थे, महा-रथियोंसे घिरे हुए भीष्मने वानरचिह्नसे युक्त ध्वजवाले अर्जुनको देखा॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं पञ्चतालोच्छ्रिततालकेतुः
सदश्ववेगाद्भुतवीर्ययानः ।
महास्त्रबाणाशनिदीप्तिमन्तं
किरीटिनं शान्तनवोऽभ्यधावत् ॥ २१ ॥
मूलम्
तं पञ्चतालोच्छ्रिततालकेतुः
सदश्ववेगाद्भुतवीर्ययानः ।
महास्त्रबाणाशनिदीप्तिमन्तं
किरीटिनं शान्तनवोऽभ्यधावत् ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीष्मका ध्वज पाँच तालवृक्षोंसे चिह्नित और ऊँचा था। उनके रथमें अच्छे घोड़े जुते हुए थे, जिनके वेगसे वह रथ अद्भुत शक्तिशाली जान पड़ता था। उसपर आरूढ़ होकर शान्तनुनन्दन भीष्मने किरीटधारी अर्जुनपर धावा किया, जो बाण और अशनि आदि महान् दिव्यास्त्रोंकी दीप्तिसे उद्दीप्त हो रहे थे॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव शक्रप्रतिमप्रभाव-
मिन्द्रात्मजं द्रोणमुखा विसस्रुः ।
कृपश्च शल्यश्च विविंशतिश्च
दुर्योधनः सौमदत्तिश्च राजन् ॥ २२ ॥
मूलम्
तथैव शक्रप्रतिमप्रभाव-
मिन्द्रात्मजं द्रोणमुखा विसस्रुः ।
कृपश्च शल्यश्च विविंशतिश्च
दुर्योधनः सौमदत्तिश्च राजन् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इसी प्रकार इन्द्रतुल्य प्रभावशाली इन्द्रकुमार अर्जुनपर द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, शल्य, विविंशति, दुर्योधन तथा भूरिश्रवाने भी आक्रमण किया॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो रथानां प्रमुखादुपेत्य
सर्वास्त्रवित् काञ्चनचित्रवर्मा ।
जवेन शूरोऽभिससार सर्वां-
स्तानर्जुनस्यात्मसुतोऽभिमन्युः ॥ २३ ॥
मूलम्
ततो रथानां प्रमुखादुपेत्य
सर्वास्त्रवित् काञ्चनचित्रवर्मा ।
जवेन शूरोऽभिससार सर्वां-
स्तानर्जुनस्यात्मसुतोऽभिमन्युः ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर सम्पूर्ण अस्त्रोंके ज्ञाता, सोनेके विचित्र कवच धारण करनेवाले शूरवीर अर्जुनपुत्र अभिमन्युने एक श्रेष्ठ रथके द्वारा वेगपूर्वक वहाँ पहुँचकर उन समस्त कौरव महारथियोंपर धावा किया॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषां महास्त्राणि महारथाना-
मसह्यकर्मा विनिहत्य कार्ष्णिः ।
बभौ महामन्त्रहुतार्चिमाली
सदोगतः सन् भगवानिवाग्निः ॥ २४ ॥
मूलम्
तेषां महास्त्राणि महारथाना-
मसह्यकर्मा विनिहत्य कार्ष्णिः ।
बभौ महामन्त्रहुतार्चिमाली
सदोगतः सन् भगवानिवाग्निः ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनकुमारका पराक्रम दूसरोंके लिये असह्य था। वह उन कौरव महारथियोंके बड़े-बड़े अस्त्रोंको नष्ट करके यज्ञ-मण्डपमें महान् मन्त्रोंद्वारा हविष्यकी आहुति पाकर प्रज्वलित हुई ज्वालामालाओंसे अलंकृत भगवान् अग्निदेवके समान शोभा पाने लगा॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स तूर्णं रुधिरोदफेनां
कृत्वा नदीमाशु रणे रिपूणाम्।
जगाम सौभद्रमतीत्य भीष्मो
महारथं पार्थमदीनसत्त्वः ॥ २५ ॥
मूलम्
ततः स तूर्णं रुधिरोदफेनां
कृत्वा नदीमाशु रणे रिपूणाम्।
जगाम सौभद्रमतीत्य भीष्मो
महारथं पार्थमदीनसत्त्वः ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर उदार शक्तिशाली भीष्मने रणभूमिमें तुरंत ही शत्रुओंके रक्तरूपी जल एवं फेनसे भरी नदी बहाकर सुभद्राकुमार अभिमन्युको टालकर महारथी अर्जुनपर आक्रमण किया॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः प्रहस्याद्भुतविक्रमेण
गाण्डीवमुक्तेन शिलाशितेन ।
विपाठजालेन महास्त्रजालं
विनाशयामास किरीटमाली ॥ २६ ॥
मूलम्
ततः प्रहस्याद्भुतविक्रमेण
गाण्डीवमुक्तेन शिलाशितेन ।
विपाठजालेन महास्त्रजालं
विनाशयामास किरीटमाली ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तब किरीटधारी अर्जुनने हँसकर अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए गाण्डीव धनुषसे छोड़े और शिलापर रगड़कर तेज किये हुए विपाठ नामक बाणोंके समूहसे शत्रुओंके बड़े-बड़े अस्त्रोंके जालको छिन्न-भिन्न कर दिया॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमुत्तमं सर्वधनुर्धराणा-
मसक्तकर्मा कपिराजकेतुः ।
भीष्मं महात्माभिववर्ष तूर्णं
शरौघजालैर्विमलैश्च भल्लैः ॥ २७ ॥
मूलम्
तमुत्तमं सर्वधनुर्धराणा-
मसक्तकर्मा कपिराजकेतुः ।
भीष्मं महात्माभिववर्ष तूर्णं
शरौघजालैर्विमलैश्च भल्लैः ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् अप्रतिहत पराक्रमवाले महामना कपि-ध्वज अर्जुनने सम्पूर्ण धनुर्धरोंमें श्रेष्ठ भीष्मपर तुरंत ही निर्मल भल्लों तथा बाणसमूहोंकी वर्षा आरम्भ कर दी॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथैव भीष्माहतमन्तरिक्षे
महास्त्रजालं कपिराजकेतोः ।
विशीर्यमाणं ददृशुस्त्वदीया
दिवाकरेणेव तमोऽभिभूतम् ॥ २८ ॥
मूलम्
तथैव भीष्माहतमन्तरिक्षे
महास्त्रजालं कपिराजकेतोः ।
विशीर्यमाणं ददृशुस्त्वदीया
दिवाकरेणेव तमोऽभिभूतम् ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसी प्रकार आपके सैनिकोंने देखा कि आकाशमें कपिध्वज अर्जुनके बिछाये हुए महान् अस्त्रजालको भीष्मजीने अपने अस्त्रोंके आघातसे उसी प्रकार छिन्न-भिन्न कर दिया है, जैसे भगवान् सूर्य अन्धकारराशिको नष्ट कर देते हैं॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवंविधं कार्मुकभीमनाद-
मदीनवत् सत्पुरुषोत्तमाभ्याम् ।
ददर्श लोकः कुरुसृंजयाश्च
तद् द्वैरथं भीष्मधनंजयाभ्याम् ॥ २९ ॥
मूलम्
एवंविधं कार्मुकभीमनाद-
मदीनवत् सत्पुरुषोत्तमाभ्याम् ।
ददर्श लोकः कुरुसृंजयाश्च
तद् द्वैरथं भीष्मधनंजयाभ्याम् ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस तरह सत्पुरुषोंमें श्रेष्ठ भीष्म और अर्जुनमें धनुषोंकी भयंकर टंकारसे युक्त, दैन्यरहित द्वैरथ-युद्ध होने लगा, जिसे कौरव और सृंजय वीरों तथा दूसरे लोगोंने भी देखा॥२९॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि भीष्मार्जुनद्वैरथे षष्टितमोऽध्यायः ॥ ६० ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें भीष्म और अर्जुनके द्वैरथ-युद्धसे सम्बन्ध रखनेवाला साठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥६०॥