०४८ श्वेतवधे

भागसूचना

अष्टचत्वारिंशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

श्वेतका महाभयंकर पराक्रम और भीष्मके द्वारा उसका वध

मूलम् (वचनम्)

धृतराष्ट्र उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं श्वेते महेष्वासे प्राप्ते शल्यरथं प्रति।
कुरवः पाण्डवेयाश्च किमकुर्वत संजय ॥ १ ॥
भीष्मः शान्तनवः किं वा तन्ममाचक्ष्व पृच्छतः।

मूलम्

एवं श्वेते महेष्वासे प्राप्ते शल्यरथं प्रति।
कुरवः पाण्डवेयाश्च किमकुर्वत संजय ॥ १ ॥
भीष्मः शान्तनवः किं वा तन्ममाचक्ष्व पृच्छतः।

अनुवाद (हिन्दी)

धृतराष्ट्रने पूछा— संजय! इस प्रकार महान् धनुर्धर श्वेतके शल्यके रथके समीप पहुँचनेपर कौरवों तथा पाण्डवोंने क्या किया? अथवा शान्तनुनन्दन भीष्मने कौन-सा पुरुषार्थ किया? मेरे पूछनेके अनुसार ये सब बातें मुझसे कहो॥१॥

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

राजन् शतसहस्राणि ततः क्षत्रियपुङ्गवाः ॥ २ ॥
श्वेतं सेनापतिं शूरं पुरस्कृत्य महारथाः।
राज्ञो बलं दर्शयन्तस्तव पुत्रस्य भारत ॥ ३ ॥
शिखण्डिनं पुरस्कृत्य त्रातुमैच्छन्महारथाः ।
अभ्यवर्तन्त भीष्मस्य रथं हेमपरिष्कृतम् ॥ ४ ॥
जिघांसन्तं युधां श्रेष्ठं तदाऽऽसीत् तुमुलं महत्।

मूलम्

राजन् शतसहस्राणि ततः क्षत्रियपुङ्गवाः ॥ २ ॥
श्वेतं सेनापतिं शूरं पुरस्कृत्य महारथाः।
राज्ञो बलं दर्शयन्तस्तव पुत्रस्य भारत ॥ ३ ॥
शिखण्डिनं पुरस्कृत्य त्रातुमैच्छन्महारथाः ।
अभ्यवर्तन्त भीष्मस्य रथं हेमपरिष्कृतम् ॥ ४ ॥
जिघांसन्तं युधां श्रेष्ठं तदाऽऽसीत् तुमुलं महत्।

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! पाण्डवपक्षके लाखों क्षत्रियशिरोमणि महारथी विराट सेनापति शूरवीर श्वेतको आगे करके आपके पुत्र दुर्योधनको अपना बल दिखाते हुए शिखण्डीको सामने रखकर भीष्मके सुवर्णभूषित रथपर चढ़ आये। भारत! वे महारथी श्वेतकी रक्षा करना चाहते थे। इसलिये उसे मारनेकी इच्छावाले योद्धाओंमें श्रेष्ठ भीष्मपर उन्होंने धावा किया। उस समय बड़ा भयंकर युद्ध छिड़ गया॥२—४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत् तेऽहं सम्प्रवक्ष्यामि महावैशसमद्भुतम् ॥ ५ ॥
तावकानां परेषां च यथा युद्धमवर्तत।

मूलम्

तत् तेऽहं सम्प्रवक्ष्यामि महावैशसमद्भुतम् ॥ ५ ॥
तावकानां परेषां च यथा युद्धमवर्तत।

अनुवाद (हिन्दी)

आपके और पाण्डवोंके सैनिकोंमें जो महान् संहारकारी युद्ध जिस प्रकार हुआ, उसका उसी रूपमें आपसे वर्णन करता हूँ॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राकरोद् रथोपस्थान् शून्यान् शान्तनवो बहून् ॥ ६ ॥
तत्राद्भुतं महच्चक्रे शरैरार्च्छद् रथोत्तमान्।
समावृणोच्छरैरर्कमर्कतुल्यप्रतापवान् ॥ ७ ॥

मूलम्

तत्राकरोद् रथोपस्थान् शून्यान् शान्तनवो बहून् ॥ ६ ॥
तत्राद्भुतं महच्चक्रे शरैरार्च्छद् रथोत्तमान्।
समावृणोच्छरैरर्कमर्कतुल्यप्रतापवान् ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस युद्धमें शान्तनुनन्दन भीष्मने बहुत-से रथोंकी बैठकोंको रथियोंसे शून्य कर दिया। वहाँ उन्होंने अत्यन्त अद्भुत कार्य किया। अपने बाणोंद्वारा बहुत-से श्रेष्ठ रथियोंको बहुत पीड़ा दी। वे सूर्यके समान तेजस्वी थे। उन्होंने अपने सायकोंद्वारा सूर्यदेवको भी आच्छादित कर दिया॥६-७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नुदन् समन्तात् समरे रविरुद्यन् यथा तमः।
तेनाजौ प्रेषिता राजन् शराः शतसहस्रशः ॥ ८ ॥
क्षत्रियान्तकराः संख्ये महावेगा महाबलाः।
शिरांसि पातयामासुर्वीराणां शतशो रणे ॥ ९ ॥

मूलम्

नुदन् समन्तात् समरे रविरुद्यन् यथा तमः।
तेनाजौ प्रेषिता राजन् शराः शतसहस्रशः ॥ ८ ॥
क्षत्रियान्तकराः संख्ये महावेगा महाबलाः।
शिरांसि पातयामासुर्वीराणां शतशो रणे ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे सूर्य उदित होकर अन्धकारको नष्ट कर देते हैं, उसी प्रकार वे सब ओर समरभूमिमें शत्रु-सेनाओंका संहार कर रहे थे। राजन्! उनके द्वारा चलाये हुए महान् वेग और बलसे सम्पन्न तथा क्षत्रियोंका विनाश करनेवाले लाखों बाणोंने रणभूमिमें सैकड़ों श्रेष्ठ वीरोंके मस्तक काट गिराये॥८-९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गजान् कण्टकसन्नाहान् वज्रेणेव शिलोच्चयान्।
रथा रथेषु संसक्ता व्यदृश्यन्त विशाम्पते ॥ १० ॥

मूलम्

गजान् कण्टकसन्नाहान् वज्रेणेव शिलोच्चयान्।
रथा रथेषु संसक्ता व्यदृश्यन्त विशाम्पते ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन बाणोंने वज्रके मारे हुए पर्वतोंकी भाँति काँटेदार कवचोंसे सुसज्जित हाथियोंको भी धराशायी कर दिया। प्रजानाथ! उस समय रथ रथोंसे सटे हुए दिखायी देते थे॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एके रथं पर्यवहंस्तुरगाः सतुरङ्गमम्।
युवानं निहतं वीरं लम्बमानं सकार्मुकम् ॥ ११ ॥

मूलम्

एके रथं पर्यवहंस्तुरगाः सतुरङ्गमम्।
युवानं निहतं वीरं लम्बमानं सकार्मुकम् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कितने ही घोड़े अपनेसहित रथको लिये हुए दूर भागे जा रहे थे और उसपर मरा हुआ नवयुवक वीर रथी धनुषके साथ ही लटक रहा था॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उदीर्णाश्च हया राजन् वहन्तस्तत्र तत्र ह।
बद्धखड्‌गनिषङ्‌गाश्च विध्वस्तशिरसो हताः ॥ १२ ॥
शतशः पतिता भूमौ वीरशय्यासु शेरते।

मूलम्

उदीर्णाश्च हया राजन् वहन्तस्तत्र तत्र ह।
बद्धखड्‌गनिषङ्‌गाश्च विध्वस्तशिरसो हताः ॥ १२ ॥
शतशः पतिता भूमौ वीरशय्यासु शेरते।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! वे प्रचण्ड घोड़े उस रथको लिये-दिये यत्र-तत्र घूम रहे थे। कमरमें तलवार और पीठपर तरकस बाँधे हुए सैकड़ों आहत वीर मस्तक कट जानेके कारण पृथ्वीपर गिरकर वीरोचित शय्याओंपर शयन कर रहे थे॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

परस्परेण धावन्तः पतिताः पुनरुत्थिताः ॥ १३ ॥
उत्थाय च प्रधावन्तो द्वन्द्वयुद्धमवाप्नुवन्।
पीडिताः पुनरन्योन्यं लुठन्तो रणमूर्धनि ॥ १४ ॥

मूलम्

परस्परेण धावन्तः पतिताः पुनरुत्थिताः ॥ १३ ॥
उत्थाय च प्रधावन्तो द्वन्द्वयुद्धमवाप्नुवन्।
पीडिताः पुनरन्योन्यं लुठन्तो रणमूर्धनि ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

एक-दूसरेपर धावा करनेवाले कितने ही सैनिक गिर पड़ते और फिर उठकर खड़े हो जाते थे। खड़े होकर वे दौड़ते और परस्पर द्वन्द्वयुद्ध करने लगते थे। फिर आपसके प्रहारोंसे पीड़ित हो वे युद्धके मुहानेपर ही गिरकर लुढ़क जाते थे॥१३-१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सचापाः सनिषङ्गाश्च जातरूपपरिष्कृताः ।
विस्रब्धहतवीराश्च शतशः परिपीडिताः ॥ १५ ॥
तेन तेनाभ्यधावन्त विसृजन्तश्च भारत।

मूलम्

सचापाः सनिषङ्गाश्च जातरूपपरिष्कृताः ।
विस्रब्धहतवीराश्च शतशः परिपीडिताः ॥ १५ ॥
तेन तेनाभ्यधावन्त विसृजन्तश्च भारत।

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! सैकड़ों वीर धनुष और तरकस लिये सुवर्णमय आभूषणोंसे विभूषित हो कितने ही विपक्षी वीरोंका विश्वस्त भावसे विनाश करके स्वयं भी शत्रुओंके प्रहारसे अत्यन्त पीड़ित हो रहे थे और स्वयं भी अस्त्र-शस्त्रोंका प्रहार करते हुए विभिन्न मार्गोंसे इधर-उधर भाग-दौड़ कर रहे थे॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मत्तो गजः पर्यवर्तद्धयांश्च हतसादिनः ॥ १६ ॥
सरथा रथिनश्चापि विमृद्‌नन्तः समन्ततः।

मूलम्

मत्तो गजः पर्यवर्तद्धयांश्च हतसादिनः ॥ १६ ॥
सरथा रथिनश्चापि विमृद्‌नन्तः समन्ततः।

अनुवाद (हिन्दी)

मतवाले हाथी उन घोड़ोंके पीछे पड़े थे, जिनके सवार मारे गये थे। इसी प्रकार रथोंसहित रथी चारों ओर भूतलपर पड़ी हुई लाशोंको रौंदते हुए विचरण करते थे॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्यन्दनादपतत् कश्चिन्निहतोऽन्येन सायकैः ॥ १७ ॥
हतसारथिरप्युच्चैः पपात काष्ठवद् रथः।

मूलम्

स्यन्दनादपतत् कश्चिन्निहतोऽन्येन सायकैः ॥ १७ ॥
हतसारथिरप्युच्चैः पपात काष्ठवद् रथः।

अनुवाद (हिन्दी)

कितने ही वीर दूसरोंके बाणोंसे मारे जाकर रथसे गिर पड़ते थे। कहीं सारथिके मारे जानेपर रथ साधारण काष्ठकी भाँति ऊँचेसे नीचे गिर पड़ता था॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युध्यमानस्य संग्रामे व्यूढे रजसि चोत्थिते ॥ १८ ॥
धनुः कूजितविज्ञानं तत्रासीत् प्रतियुद्ध्यतः।
गात्रस्पर्शेन योधानां व्यज्ञास्त परिपन्थिनम् ॥ १९ ॥

मूलम्

युध्यमानस्य संग्रामे व्यूढे रजसि चोत्थिते ॥ १८ ॥
धनुः कूजितविज्ञानं तत्रासीत् प्रतियुद्ध्यतः।
गात्रस्पर्शेन योधानां व्यज्ञास्त परिपन्थिनम् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस संग्राममें इतनी धूल उड़ी कि कुछ सूझ नहीं पड़ता था। केवल धनुषकी टंकारसे ही यह जाना जाता था कि प्रतिद्वन्द्वी युद्ध कर रहा है। कितने ही योद्धा दूसरे योद्धाओंके शरीरका स्पर्श करके ही यह समझ पाते थे कि यह शत्रुदलका है॥१८-१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युद्ध्यमानं शरै राजन् सिञ्जिनीध्वजिनीरवात्।
अन्योन्यं वीरसंशब्दो नाश्रूयत भटैः कृतः ॥ २० ॥

मूलम्

युद्ध्यमानं शरै राजन् सिञ्जिनीध्वजिनीरवात्।
अन्योन्यं वीरसंशब्दो नाश्रूयत भटैः कृतः ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! कुछ लोग धनुषकी टंकार और सेनाका कोलाहल सुनकर ही यह समझ पाते थे कि कोई बाणोंद्वारा युद्ध कर रहा है। योद्धा एक-दूसरेके प्रति जो वीरोचित गर्जना करते थे, वह भी उस समय अच्छी तरह सुनायी नहीं देती थी॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शब्दायमाने संग्रामे पटहे कर्णदारिणि।
युद्ध्यमानस्य संग्रामे कुर्वतः पौरुषं स्वकम् ॥ २१ ॥
नाश्रौषं नामगोत्राणि कीर्तनं च परस्परम्।

मूलम्

शब्दायमाने संग्रामे पटहे कर्णदारिणि।
युद्ध्यमानस्य संग्रामे कुर्वतः पौरुषं स्वकम् ॥ २१ ॥
नाश्रौषं नामगोत्राणि कीर्तनं च परस्परम्।

अनुवाद (हिन्दी)

कानोंका परदा फाड़नेवाले डंकेकी आवाजसे सारी रणभूमि गूँज उठी थी। अतः वहाँ अपने पुरुषार्थको प्रकट करनेवाले किसी योद्धाकी बात मुझे नहीं सुनायी देती थी। वे लोग जो आपसमें नाम-गोत्र आदिका परिचय देते थे, उसे भी मैं नहीं सुन पाता था॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीष्मचापच्युतैर्बाणैरार्तानां युध्यतां मृधे ॥ २२ ॥
परस्परेषां वीराणां मनांसि समकम्पयन्।

मूलम्

भीष्मचापच्युतैर्बाणैरार्तानां युध्यतां मृधे ॥ २२ ॥
परस्परेषां वीराणां मनांसि समकम्पयन्।

अनुवाद (हिन्दी)

युद्धमें भीष्मजीके धनुषसे छूटे हुए बाणोंसे समस्त योद्धा पीड़ित हो रहे थे। उन बाणोंने परस्पर सभी वीरोंके हृदय कँपा दिये थे॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिन्नत्याकुले युद्धे दारुणे लोमहर्षणे ॥ २३ ॥
पिता पुत्रं च समरे नाभिजानाति कश्चन।

मूलम्

तस्मिन्नत्याकुले युद्धे दारुणे लोमहर्षणे ॥ २३ ॥
पिता पुत्रं च समरे नाभिजानाति कश्चन।

अनुवाद (हिन्दी)

वह युद्ध अत्यन्त भयंकर, रोमांचकारी तथा सबको व्याकुल कर देनेवाला था। उसमें कोई पिता अपने पुत्रको भी पहचान नहीं पाता था॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चक्रे भग्ने युगे छिन्ने एकधुर्ये हये हतः ॥ २४ ॥
आक्षिप्तः स्यन्दनाद् वीरः ससारथिरजिह्मगैः।

मूलम्

चक्रे भग्ने युगे छिन्ने एकधुर्ये हये हतः ॥ २४ ॥
आक्षिप्तः स्यन्दनाद् वीरः ससारथिरजिह्मगैः।

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मके बाणोंसे पहिये टूट गये, जूआ कट गया और एकमात्र बचा हुआ रथका घोड़ा भी मारा गया। उस दशामें रथपर बैठा हुआ सारथिसहित वीर रथी भी उनके बाणोंसे आहत होकर स्वर्ग सिधारा॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं च समरे सर्वे वीराश्च विरथीकृताः ॥ २५ ॥
तेन तेन स्म दृश्यन्ते धावमानाः समन्ततः।

मूलम्

एवं च समरे सर्वे वीराश्च विरथीकृताः ॥ २५ ॥
तेन तेन स्म दृश्यन्ते धावमानाः समन्ततः।

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार उस समरांगणमें रथहीन हुए सभी वीर भिन्न-भिन्न मार्गोंसे सब ओर दौड़ते दिखायी देते थे॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गजो हतः शिरश्छिन्नं मर्म भिन्नं हयो हतः ॥ २६ ॥
अहतः कोऽपि नैवासीद् भीष्मे निघ्नति शात्रवान्।

मूलम्

गजो हतः शिरश्छिन्नं मर्म भिन्नं हयो हतः ॥ २६ ॥
अहतः कोऽपि नैवासीद् भीष्मे निघ्नति शात्रवान्।

अनुवाद (हिन्दी)

किसीका हाथी मारा गया, किसीका मस्तक कट गया, किसीके मर्मस्थान विदीर्ण हो गये और किसीका घोड़ा ही नष्ट हो गया। जब भीष्मजी शत्रुओंका संहार कर रहे थे, उस समय (उनके सम्मुख आया हुआ) कोई भी ऐसा विपक्षी नहीं बचा, जो घायल न हुआ हो॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्वेतः कुरूणामकरोत् क्षयं तस्मिन् महाहवे ॥ २७ ॥
राजपुत्रान् रथोदारानवधीच्छतसंघशः ।

मूलम्

श्वेतः कुरूणामकरोत् क्षयं तस्मिन् महाहवे ॥ २७ ॥
राजपुत्रान् रथोदारानवधीच्छतसंघशः ।

अनुवाद (हिन्दी)

इसी प्रकार उस महायुद्धमें श्वेत भी कौरवोंका संहार कर रहे थे। उन्होंने सैकड़ों श्रेष्ठ रथी राजकुमारोंका संहार कर डाला॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चिच्छेद रथिनां बाणैः शिरांसि भरतर्षभ ॥ २८ ॥

मूलम्

चिच्छेद रथिनां बाणैः शिरांसि भरतर्षभ ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! श्वेतने अपने बाणोंद्वारा बहुत-से रथियोंके मस्तक काट डाले॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

साङ्गदा बाहवश्चैव धनूंषि च समन्ततः।
रथेषां रथचक्राणि तूणीराणि युगानि च ॥ २९ ॥

मूलम्

साङ्गदा बाहवश्चैव धनूंषि च समन्ततः।
रथेषां रथचक्राणि तूणीराणि युगानि च ॥ २९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने सब ओर बाण मारकर कितने ही योद्धाओंके धनुष और बाजूबंदसहित भुजाएँ काट डालीं। रथके ईषादण्ड, रथ-चक्र, तूणीर और जूए भी छिन्न-भिन्न कर दिये॥२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

छत्राणि च महार्हाणि पताकाश्च विशाम्पते।
हयौघाश्च रथौघाश्च नरौघाश्चैव भारत ॥ ३० ॥
वारणाः शतशश्चैव हताः श्वेतेन भारत।

मूलम्

छत्राणि च महार्हाणि पताकाश्च विशाम्पते।
हयौघाश्च रथौघाश्च नरौघाश्चैव भारत ॥ ३० ॥
वारणाः शतशश्चैव हताः श्वेतेन भारत।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! बहुमूल्य छत्र और पताकाएँ भी उनके बाणोंसे खण्डित हो गयीं। भरतनन्दन! श्वेतने अश्वों, रथों और मनुष्योंके समुदायका तो वध किया ही; सैकड़ों हाथी भी मार गिराये॥३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वयं श्वेतभयाद् भीता विहाय रथसत्तमम् ॥ ३१ ॥
अपयातास्तथा पश्चाद् विभुं पश्याम धृष्णवः।
शरपातमतिक्रम्य कुरवः कुरुनन्दन ॥ ३२ ॥
भीष्मं शान्तनवं युद्धे स्थिताः पश्याम सर्वशः।

मूलम्

वयं श्वेतभयाद् भीता विहाय रथसत्तमम् ॥ ३१ ॥
अपयातास्तथा पश्चाद् विभुं पश्याम धृष्णवः।
शरपातमतिक्रम्य कुरवः कुरुनन्दन ॥ ३२ ॥
भीष्मं शान्तनवं युद्धे स्थिताः पश्याम सर्वशः।

अनुवाद (हिन्दी)

कुरुनन्दन! हमलोग भी श्वेतके भयसे महारथी भीष्मको अकेला छोड़कर भाग खड़े हुए। इसीलिये इस समय जीवित रहकर महाराजका दर्शन कर रहे हैं। हम सभी कौरव श्वेतका बाण जहाँतक पहुँच पाता था, उतनी दूरीको लाँघकर युद्धभूमिमें खड़े हो दर्शककी भाँति शान्तनुनन्दन भीष्मको देख रहे थे॥३१-३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अदीनो दीनसमये भीष्मोऽस्माकं महाहवे ॥ ३३ ॥
एकस्तस्थौ नरव्याघ्रो गिरिर्मेरुरिवाचलः ।

मूलम्

अदीनो दीनसमये भीष्मोऽस्माकं महाहवे ॥ ३३ ॥
एकस्तस्थौ नरव्याघ्रो गिरिर्मेरुरिवाचलः ।

अनुवाद (हिन्दी)

उस महान् संग्राममें हमलोगोंके लिये कातरताका समय आ गया था, तो भी अकेले नरश्रेष्ठ भीष्म ही दीनतासे रहित हो मेरुपर्वतकी भाँति वहाँ अविचलभावसे खड़े रहे॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आददान इव प्राणान् सविता शिशिरात्यये ॥ ३४ ॥
गभस्तिभिरिवादित्यस्तस्थौ शरमरीचिमान् ।

मूलम्

आददान इव प्राणान् सविता शिशिरात्यये ॥ ३४ ॥
गभस्तिभिरिवादित्यस्तस्थौ शरमरीचिमान् ।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे सर्दीके अन्तमें सूर्यदेव धरतीका जल सोखने लगते हैं, उसी प्रकार भीष्म समस्त सैनिकोंके प्राणोंका अपहरण-सा कर रहे थे। किरणोंसे सुशोभित सूर्यदेवकी भाँति भीष्म बाणरूपी रश्मियोंसे शोभा पाते हुए वहाँ खड़े थे॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स मुमोच महेष्वासः शरसंघाननेकशः ॥ ३५ ॥
निघ्नन्नमित्रान् समरे वज्रपाणिरिवासुरान् ।

मूलम्

स मुमोच महेष्वासः शरसंघाननेकशः ॥ ३५ ॥
निघ्नन्नमित्रान् समरे वज्रपाणिरिवासुरान् ।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे वज्रपाणि इन्द्र असुरोंका संहार करते हैं, उसी प्रकार महाधनुर्धर भीष्म उस रणक्षेत्रमें शत्रुओंका विनाश करते हुए बारंबार बाणसमूहोंकी वर्षा कर रहे थे॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते वध्यमाना भीष्मेण प्रजहुस्तं महाबलम् ॥ ३६ ॥
स्वयूथादिव ते यूथान्मुक्तं भूमिषु दारुणम्।

मूलम्

ते वध्यमाना भीष्मेण प्रजहुस्तं महाबलम् ॥ ३६ ॥
स्वयूथादिव ते यूथान्मुक्तं भूमिषु दारुणम्।

अनुवाद (हिन्दी)

महाबली भीष्मजी अपने झुंडसे बिछुड़े हुए हाथीकी भाँति आपकी सेनासे विलग होकर उस रणभूमिमें अत्यन्त भयंकर हो रहे थे; उनकी मार खाकर सम्पूर्ण शत्रु उन्हें छोड़कर भाग गये॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमेवमुपलक्ष्यैको हृष्टः पुष्टः परंतप ॥ ३७ ॥
दुर्योधनप्रिये युक्तः पाण्डवान् परिशोचयन्।
जीवितं दुस्त्यजं त्यक्त्वा भयं च सुमहाहवे ॥ ३८ ॥

मूलम्

तमेवमुपलक्ष्यैको हृष्टः पुष्टः परंतप ॥ ३७ ॥
दुर्योधनप्रिये युक्तः पाण्डवान् परिशोचयन्।
जीवितं दुस्त्यजं त्यक्त्वा भयं च सुमहाहवे ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतप! श्वेतको पूर्वोक्तरूपसे कौरव-सेनाका संहार करते देख एकमात्र भीष्म ही उत्साहित और प्रफुल्ल हो पाण्डवोंको शोकमें डालते हुए जीवनका मोह और भय छोड़कर उस महासमरमें दुर्योधनके प्रिय कार्यमें जुट गये॥३७-३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पातयामास सैन्यानि पाण्डवानां विशाम्पते।
प्रहरन्तमनीकानि पिता देवव्रतस्तव ॥ ३९ ॥
दृष्ट्‌वा सेनापतिं भीष्मस्त्वरितः श्वेतमभ्ययात्।

मूलम्

पातयामास सैन्यानि पाण्डवानां विशाम्पते।
प्रहरन्तमनीकानि पिता देवव्रतस्तव ॥ ३९ ॥
दृष्ट्‌वा सेनापतिं भीष्मस्त्वरितः श्वेतमभ्ययात्।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! भीष्मजीने पाण्डवोंके बहुत-से सैनिकोंको मार गिराया। आपके पिता देवव्रतने जब देखा कि सेनापति श्वेत हमारी सेनापर प्रहार कर रहे हैं, तब वे तुरंत उनका सामना करनेके लिये गये॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स भीष्मं शरजालेन महता समवाकिरत् ॥ ४० ॥
श्वेतं चापि तथा भीष्मः शरौघैः समवाकिरत्।

मूलम्

स भीष्मं शरजालेन महता समवाकिरत् ॥ ४० ॥
श्वेतं चापि तथा भीष्मः शरौघैः समवाकिरत्।

अनुवाद (हिन्दी)

श्वेतने अपने असंख्य बाणोंका जाल-सा बिछाकर भीष्मको ढक दिया। तब भीष्मने भी श्वेतपर बाण-समूहोंकी वर्षा की॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ वृषाविव नर्दन्तौ मत्ताविव महाद्विपौ ॥ ४१ ॥
व्याघ्राविव सुसंरब्धावन्योन्यमभिजघ्नतुः ।

मूलम्

तौ वृषाविव नर्दन्तौ मत्ताविव महाद्विपौ ॥ ४१ ॥
व्याघ्राविव सुसंरब्धावन्योन्यमभिजघ्नतुः ।

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों वीर गर्जते हुए दो साँड़ों, मदसे उन्मत्त हुए दो गजराजों तथा क्रोधमें भरे हुए दो सिंहोंकी भाँति एक-दूसरेपर चोट करने लगे॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अस्त्रैरस्त्राणि संवार्य ततस्तौ पुरुषर्षभौ ॥ ४२ ॥
भीष्मः श्वेतश्च युयुधे परस्परवधैषिणौ।

मूलम्

अस्त्रैरस्त्राणि संवार्य ततस्तौ पुरुषर्षभौ ॥ ४२ ॥
भीष्मः श्वेतश्च युयुधे परस्परवधैषिणौ।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर वे दोनों पुरुषश्रेष्ठ भीष्म और श्वेत अपने अस्त्रोंद्वारा विपक्षीके अस्त्रोंका निवारण करके एक-दूसरेको मार डालनेकी इच्छासे युद्ध करने लगे॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एकाह्ना निर्दहेद् भीष्मः पाण्डवानामनीकिनीम् ॥ ४३ ॥
शरैः परमसंक्रुद्धो यदि श्वेतो न पालयेत्।

मूलम्

एकाह्ना निर्दहेद् भीष्मः पाण्डवानामनीकिनीम् ॥ ४३ ॥
शरैः परमसंक्रुद्धो यदि श्वेतो न पालयेत्।

अनुवाद (हिन्दी)

यदि श्वेत पाण्डव-सेनाकी रक्षा न करते तो भीष्मजी अत्यन्त क्रुद्ध होकर एक ही दिनमें उसे भस्म कर डालते॥४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पितामहं ततो दृष्ट्‌वा श्वेतेन विमुखीकृतम् ॥ ४४ ॥
प्रहर्षं पाण्डवा जग्मुः पुत्रस्ते विमनाऽभवत्।

मूलम्

पितामहं ततो दृष्ट्‌वा श्वेतेन विमुखीकृतम् ॥ ४४ ॥
प्रहर्षं पाण्डवा जग्मुः पुत्रस्ते विमनाऽभवत्।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर पितामह भीष्मको श्वेतके द्वारा युद्धसे विमुख किया हुआ देख समस्त पाण्डवोंको बड़ा हर्ष हुआ; परंतु आपके पुत्र दुर्योधनका मन उदास हो गया॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुर्योधनः क्रुद्धः पार्थिवैः परिवारितः ॥ ४५ ॥
ससैन्यः पाण्डवानीकमभ्यद्रवत संयुगे ।

मूलम्

ततो दुर्योधनः क्रुद्धः पार्थिवैः परिवारितः ॥ ४५ ॥
ससैन्यः पाण्डवानीकमभ्यद्रवत संयुगे ।

अनुवाद (हिन्दी)

तब दुर्योधनने कुपित हो समस्त राजाओं तथा सेनाके साथ उस युद्धभूमिमें पाण्डव-सेनापर आक्रमण किया॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्मुखः कृतवर्मा च कृपः शल्यो विशाम्पतिः ॥ ४६ ॥
भीष्मं जुगुपुरासाद्य तव पुत्रेण नोदिताः।

मूलम्

दुर्मुखः कृतवर्मा च कृपः शल्यो विशाम्पतिः ॥ ४६ ॥
भीष्मं जुगुपुरासाद्य तव पुत्रेण नोदिताः।

अनुवाद (हिन्दी)

दुर्मुख, कृतवर्मा, कृपाचार्य तथा राजा शल्य आपके पुत्रकी आज्ञासे आकर भीष्मकी रक्षा करने लगे॥४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दृष्ट्‌वा तु पार्थिवैः सर्वैर्दुर्योधनपुरोगमैः ॥ ४७ ॥
पाण्डवानामनीकानि वध्यमानानि संयुगे ।
श्वेतो गाङ्गेयमुत्सृज्य तव पुत्रस्य वाहिनीम् ॥ ४८ ॥
नाशयामास वेगेन वायुर्वृक्षानिवौजसा ।

मूलम्

दृष्ट्‌वा तु पार्थिवैः सर्वैर्दुर्योधनपुरोगमैः ॥ ४७ ॥
पाण्डवानामनीकानि वध्यमानानि संयुगे ।
श्वेतो गाङ्गेयमुत्सृज्य तव पुत्रस्य वाहिनीम् ॥ ४८ ॥
नाशयामास वेगेन वायुर्वृक्षानिवौजसा ।

अनुवाद (हिन्दी)

दुर्योधन आदि सब राजाओंके द्वारा पाण्डवसेनाको युद्धमें मारी जाती देख श्वेतने गंगापुत्र भीष्मको छोड़कर आपके पुत्रकी सेनाका उसी प्रकार वेगपूर्वक विनाश आरम्भ किया, जैसे आँधी अपनी शक्तिसे वृक्षोंको उखाड़ फेंकती है॥४७-४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रावयित्वा चमूं राजन् वैराटिः क्रोधमूर्च्छितः ॥ ४९ ॥
आपतत् सहसा भूयो यत्र भीष्मो व्यवस्थितः।

मूलम्

द्रावयित्वा चमूं राजन् वैराटिः क्रोधमूर्च्छितः ॥ ४९ ॥
आपतत् सहसा भूयो यत्र भीष्मो व्यवस्थितः।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! विराटपुत्र श्वेत उस समय क्रोधसे मूर्च्छित हो रहे थे। वे आपकी सेनाको दूर भगाकर फिर सहसा वहीं आ पहुँचे, जहाँ भीष्म खड़े थे॥४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ तत्रोपगतौ राजन् शरदीप्तौ महाबलौ ॥ ५० ॥
अयुध्येतां महात्मानौ यथोभौ वृत्रवासवौ।
अन्योन्यं तु महाराज परस्परवधैषिणौ ॥ ५१ ॥

मूलम्

तौ तत्रोपगतौ राजन् शरदीप्तौ महाबलौ ॥ ५० ॥
अयुध्येतां महात्मानौ यथोभौ वृत्रवासवौ।
अन्योन्यं तु महाराज परस्परवधैषिणौ ॥ ५१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! वे दोनों महाबली महामना वीर बाणोंसे उद्दीप्त हो एक-दूसरेको मार डालनेकी इच्छासे समीप आकर वृत्रासुर और इन्द्रके समान युद्ध करने लगे॥५०-५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निगृह्य कार्मुकं श्वेतो भीष्मं विव्याध सप्तभिः।
पराक्रमं ततस्तस्य पराक्रम्य पराक्रमी ॥ ५२ ॥
तरसा वारयामास मत्तो मत्तमिव द्विपम्।

मूलम्

निगृह्य कार्मुकं श्वेतो भीष्मं विव्याध सप्तभिः।
पराक्रमं ततस्तस्य पराक्रम्य पराक्रमी ॥ ५२ ॥
तरसा वारयामास मत्तो मत्तमिव द्विपम्।

अनुवाद (हिन्दी)

श्वेतने धनुष खींचकर सात बाणोंद्वारा भीष्मको बेध डाला। तब पराक्रमी भीष्मने श्वेतके उस पराक्रमको स्वयं पराक्रम करके वेगपूर्वक रोक दिया; मानो किसी मतवाले हाथीने दूसरे मतवाले हाथीको रोक दिया हो॥५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्वेतः शान्तनवं भूयः शरैः संनतपर्वभिः ॥ ५३ ॥
विव्याध पञ्चविंशत्या तदद्भुतमिवाभवत् ।

मूलम्

श्वेतः शान्तनवं भूयः शरैः संनतपर्वभिः ॥ ५३ ॥
विव्याध पञ्चविंशत्या तदद्भुतमिवाभवत् ।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर श्वेतने पुनः झुकी हुई गाँठवाले पचीस बाणोंसे शान्तनुनन्दन भीष्मको बींध डाला। वह एक अद्भुत-सी घटना हुई॥५३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं प्रत्यविध्यद् दशभिर्भीष्मः शान्तनवस्तदा ॥ ५४ ॥
स विद्धस्तेन बलवान् नाकम्पत यथाचलः।

मूलम्

तं प्रत्यविध्यद् दशभिर्भीष्मः शान्तनवस्तदा ॥ ५४ ॥
स विद्धस्तेन बलवान् नाकम्पत यथाचलः।

अनुवाद (हिन्दी)

तब शान्तनुनन्दन भीष्मने भी दस बाण मारकर बदला चुकाया। उनके द्वारा घायल किये जानेपर भी बलवान् श्वेत विचलित नहीं हुआ। वह पर्वतकी भाँति अविचलभावसे खड़ा रहा॥५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वैराटिः समरे क्रुद्धो भृशमायम्य कार्मुकम् ॥ ५५ ॥
आजघान ततो भीष्मं श्वेतः क्षत्रियनन्दनः।

मूलम्

वैराटिः समरे क्रुद्धो भृशमायम्य कार्मुकम् ॥ ५५ ॥
आजघान ततो भीष्मं श्वेतः क्षत्रियनन्दनः।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर क्षत्रियकुलको आनन्दित करनेवाले विराटकुमार श्वेतने युद्धमें कुपित हो धनुषको जोर-जोरसे खींचकर भीष्मपर पुनः बाणोंद्वारा प्रहार किया॥५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सम्प्रहस्य ततः श्वेतः सृक्किणी परिसंलिहन् ॥ ५६ ॥
धनुश्चिच्छेद भीष्मस्य नवभिर्दशधा शरैः।

मूलम्

सम्प्रहस्य ततः श्वेतः सृक्किणी परिसंलिहन् ॥ ५६ ॥
धनुश्चिच्छेद भीष्मस्य नवभिर्दशधा शरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद उन्होंने हँसकर अपने मुँहके दोनों कोनोंको चाटते हुए नौ बाण मारकर भीष्मके धनुषके दस टुकड़े कर दिये॥५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संधाय विशिखं चैव शरं लोमप्रवाहिनम् ॥ ५७ ॥
उन्ममाथ ततस्तालं ध्वजशीर्षं महात्मनः।

मूलम्

संधाय विशिखं चैव शरं लोमप्रवाहिनम् ॥ ५७ ॥
उन्ममाथ ततस्तालं ध्वजशीर्षं महात्मनः।

अनुवाद (हिन्दी)

फिर शिखाशून्य पंखयुक्त बाणका संधान करके उसके द्वारा महात्मा भीष्मके तालचिह्नयुक्त ध्वजका ऊपरी भाग काट डाला॥५७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

केतुं निपतितं दृष्ट्‌वा भीष्मस्य तनयास्तव ॥ ५८ ॥
हतं भीष्मममन्यन्त श्वेतस्य वशमागतम्।

मूलम्

केतुं निपतितं दृष्ट्‌वा भीष्मस्य तनयास्तव ॥ ५८ ॥
हतं भीष्मममन्यन्त श्वेतस्य वशमागतम्।

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मके ध्वजको नीचे गिरा देख आपके पुत्रोंने उन्हें श्वेतके वशमें पड़कर मरा हुआ ही माना॥५८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पाण्डवाश्चापि संहृष्टा दध्मुः शङ्खान् मुदा युताः ॥ ५९ ॥
भीष्मस्य पतितं केतुं दृष्ट्‌वा तालं महात्मनः।

मूलम्

पाण्डवाश्चापि संहृष्टा दध्मुः शङ्खान् मुदा युताः ॥ ५९ ॥
भीष्मस्य पतितं केतुं दृष्ट्‌वा तालं महात्मनः।

अनुवाद (हिन्दी)

महात्मा भीष्मके तालध्वजको पृथ्वीपर पड़ा देख पाण्डव हर्षसे उल्लसित हो प्रसन्नतापूर्वक शंख बजाने लगे॥५९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुर्योधनः क्रोधात् स्वमनीकमनोदयत् ॥ ६० ॥
यत्ता भीष्मं परीप्सध्वं रक्षमाणाः समन्ततः।
मा नः प्रपश्यमानानां श्वेतान्मृत्युमवाप्स्यति ॥ ६१ ॥
भीष्मः शान्तनवः शूरस्तथा सत्यं ब्रवीमि वः।

मूलम्

ततो दुर्योधनः क्रोधात् स्वमनीकमनोदयत् ॥ ६० ॥
यत्ता भीष्मं परीप्सध्वं रक्षमाणाः समन्ततः।
मा नः प्रपश्यमानानां श्वेतान्मृत्युमवाप्स्यति ॥ ६१ ॥
भीष्मः शान्तनवः शूरस्तथा सत्यं ब्रवीमि वः।

अनुवाद (हिन्दी)

तब दुर्योधनने क्रोधपूर्वक अपनी सेनाको आदेश दिया—‘वीरो! सावधान होकर सब ओरसे भीष्मकी रक्षा करते हुए उन्हें घेरकर खड़े हो जाओ। कहीं ऐसा न हो कि ये हमारे देखते-देखते श्वेतके हाथों मारे जायँ। मैं तुमलोगोंको सत्य कहता हूँ कि शान्तनुनन्दन भीष्म महान् शूरवीर हैं’॥६०-६१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

राज्ञस्तु वचनं श्रुत्वा त्वरमाणा महारथाः ॥ ६२ ॥
बलेन चतुरङ्गेण गाङ्गेयमन्वपालयन् ।

मूलम्

राज्ञस्तु वचनं श्रुत्वा त्वरमाणा महारथाः ॥ ६२ ॥
बलेन चतुरङ्गेण गाङ्गेयमन्वपालयन् ।

अनुवाद (हिन्दी)

राजा दुर्योधनकी यह बात सुनकर सब महारथी बड़ी उतावलीके साथ वहाँ आये और चतुरंगिणी सेनाद्वारा गंगानन्दन भीष्मकी रक्षा करने लगे॥६२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बाह्लीकः कृतवर्मा च शलः शल्यश्च भारत ॥ ६३ ॥
जलसंधो विकर्णश्च चित्रसेनो विविंशतिः।
त्वरमाणास्त्वराकाले परिवार्य समन्ततः ॥ ६४ ॥
शस्त्रवृष्टिं सुतुमुलां श्वेतस्योपर्यपातयन् ।

मूलम्

बाह्लीकः कृतवर्मा च शलः शल्यश्च भारत ॥ ६३ ॥
जलसंधो विकर्णश्च चित्रसेनो विविंशतिः।
त्वरमाणास्त्वराकाले परिवार्य समन्ततः ॥ ६४ ॥
शस्त्रवृष्टिं सुतुमुलां श्वेतस्योपर्यपातयन् ।

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! बाह्लीक, कृतवर्मा, शल, शल्य, जलसंध, विकर्ण, चित्रसेन और विविंशति—इन सबने शीघ्रताके अवसरपर शीघ्रता करते हुए चारों ओरसे भीष्मजीको घेर लिया और श्वेतके ऊपर भयंकर शस्त्र-वर्षा करने लगे॥६३-६४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तान् क्रुद्धो निशितैर्बाणैस्त्वरमाणो महारथः ॥ ६५ ॥
अवारयदमेयात्मा दर्शयन् पाणिलाघवम् ।

मूलम्

तान् क्रुद्धो निशितैर्बाणैस्त्वरमाणो महारथः ॥ ६५ ॥
अवारयदमेयात्मा दर्शयन् पाणिलाघवम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

तब अपरिमित आत्मबलसे सम्पन्न महारथी श्वेतने अपने हाथोंकी फुर्ती दिखाते हुए बड़ी उतावलीके साथ क्रोधपूर्वक पैने बाणोंद्वारा उन सबको रोक दिया॥६५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स निवार्य तु तान् सर्वान् केसरी कुञ्जरानिव ॥ ६६ ॥
महता शरवर्षेण भीष्मस्य धनुराच्छिनत्।

मूलम्

स निवार्य तु तान् सर्वान् केसरी कुञ्जरानिव ॥ ६६ ॥
महता शरवर्षेण भीष्मस्य धनुराच्छिनत्।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे सिंह हाथियोंके समूहको आगे बढ़नेसे रोक देता है, उसी प्रकार उन सभी महारथियोंको रोककर भारी बाणवर्षाके द्वारा श्वेतने भीष्मका धनुष काट दिया॥६६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽन्यद् धनुरादाय भीष्मः शान्तनवो युधि ॥ ६७ ॥
श्वेतं विव्याध राजेन्द्र कङ्कपत्रैः शितैः शरैः।

मूलम्

ततोऽन्यद् धनुरादाय भीष्मः शान्तनवो युधि ॥ ६७ ॥
श्वेतं विव्याध राजेन्द्र कङ्कपत्रैः शितैः शरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! तब शान्तनुनन्दन भीष्मने दूसरा धनुष लेकर युद्धस्थलमें कंकपत्रयुक्त पैने बाणोंद्वारा श्वेतको घायल कर दिया॥६७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सेनापतिः क्रुद्धो भीष्मं बहुभिरायसैः ॥ ६८ ॥
विव्याध समरे राजन् सर्वलोकस्य पश्यतः।

मूलम्

ततः सेनापतिः क्रुद्धो भीष्मं बहुभिरायसैः ॥ ६८ ॥
विव्याध समरे राजन् सर्वलोकस्य पश्यतः।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तब सेनापति श्वेतने कुपित हो उस समरभूमिमें बहुत-से लौहमय बाणोंद्वारा सब लोगोंके देखते-देखते भीष्मको क्षत-विक्षत कर दिया॥६८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्रव्यथितो राजा भीष्मं दृष्ट्‌वा निवारितम् ॥ ६९ ॥
प्रवीरं सर्वलोकस्य श्वेतेन युधि वै तदा।
निष्ठानकश्च सुमहांस्तव सैन्यस्य चाभवत् ॥ ७० ॥

मूलम्

ततः प्रव्यथितो राजा भीष्मं दृष्ट्‌वा निवारितम् ॥ ६९ ॥
प्रवीरं सर्वलोकस्य श्वेतेन युधि वै तदा।
निष्ठानकश्च सुमहांस्तव सैन्यस्य चाभवत् ॥ ७० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्वेतने सम्पूर्ण विश्वके विख्यात वीर भीष्मको युद्धमें आगे बढ़नेसे रोक दिया, यह देखकर राजा दुर्योधनके मनमें बड़ी व्यथा हुई। साथ ही आपकी सेनामें सब लोगोंपर महान् भय छा गया॥६९-७०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं वीरं वारितं दृष्ट्‌वा श्वेतेन शरविक्षतम्।
हतं श्वेतेन मन्यन्ते श्वेतस्य वशमागतम् ॥ ७१ ॥

मूलम्

तं वीरं वारितं दृष्ट्‌वा श्वेतेन शरविक्षतम्।
हतं श्वेतेन मन्यन्ते श्वेतस्य वशमागतम् ॥ ७१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्वेतने वीरवर भीष्मको कुण्ठित कर दिया और उनका शरीर बाणोंसे क्षत-विक्षत हो गया है, यह देखकर सब लोग यह मानने लगे कि भीष्मजी श्वेतके वशमें पड़ गये हैं और अब उन्हींके हाथसे मारे जायँगे॥७१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः क्रोधवशं प्राप्तः पिता देवव्रतस्तव।
ध्वजमुन्मथितं दृष्ट्‌वा तां च सेनां निवारिताम् ॥ ७२ ॥

मूलम्

ततः क्रोधवशं प्राप्तः पिता देवव्रतस्तव।
ध्वजमुन्मथितं दृष्ट्‌वा तां च सेनां निवारिताम् ॥ ७२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब आपके पिता देवव्रत भीष्म अपने ध्वजको टूटकर गिरा हुआ और सेनाको निवारित की हुई देखकर क्रोधके अधीन हो गये॥७२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्वेतं प्रति महाराज व्यसृजत् सायकान् बहून्।
तानावार्य रणे श्वेतो भीष्मस्य रथिनां वरः ॥ ७३ ॥
धनुश्चिच्छेद भल्लेन पुनरेव पितुस्तव।

मूलम्

श्वेतं प्रति महाराज व्यसृजत् सायकान् बहून्।
तानावार्य रणे श्वेतो भीष्मस्य रथिनां वरः ॥ ७३ ॥
धनुश्चिच्छेद भल्लेन पुनरेव पितुस्तव।

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! उन्होंने श्वेतपर बहुत-से बाणोंकी वर्षा की, परंतु रथियोंमें श्रेष्ठ श्वेतने रणक्षेत्रमें उन सब सायकोंका निवारण करके पुनः एक भल्लके द्वारा आपके पिता भीष्मका धनुष काट दिया॥७३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उत्सृज्य कार्मुकं राजन् गाङ्गेयः क्रोधमूर्च्छितः ॥ ७४ ॥
अन्यत् कार्मुकमादाय विपुलं बलवत्तरम्।
तत्र संधाय विपुलान् भल्लान् सप्त शिलाशितान् ॥ ७५ ॥
चतुर्भिश्च जघानाश्वाञ्छ्‌वेतस्य पृतनापतेः ।
ध्वजं द्वाभ्यां तु चिच्छेद सप्तमेन च सारथेः ॥ ७६ ॥
शिरश्चिच्छेद भल्लेन संक्रुद्धो लघुविक्रमः।

मूलम्

उत्सृज्य कार्मुकं राजन् गाङ्गेयः क्रोधमूर्च्छितः ॥ ७४ ॥
अन्यत् कार्मुकमादाय विपुलं बलवत्तरम्।
तत्र संधाय विपुलान् भल्लान् सप्त शिलाशितान् ॥ ७५ ॥
चतुर्भिश्च जघानाश्वाञ्छ्‌वेतस्य पृतनापतेः ।
ध्वजं द्वाभ्यां तु चिच्छेद सप्तमेन च सारथेः ॥ ७६ ॥
शिरश्चिच्छेद भल्लेन संक्रुद्धो लघुविक्रमः।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! यह देख गंगानन्दन भीष्मने क्रोधसे मूर्च्छित हो उस धनुषको फेंककर दूसरा अत्यन्त प्रबल एवं विशाल धनुष ले लिया और उसके ऊपर पत्थरपर रगड़कर तेज किये हुए सात विशाल भल्लोंका संधान किया। उनमेंसे चार भल्लोंके द्वारा उन्होंने सेनापति श्वेतके चार घोड़ोंको मार डाला, दोसे उनका ध्वज काट दिया और अपनी फुर्तीका परिचय देते हुए सातवें भल्लके द्वारा क्रोधपूर्वक उनके सारथिका सिर उड़ा दिया॥७४-७६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हताश्वसूतात् स रथादवप्लुत्य महाबलः ॥ ७७ ॥
अमर्षवशमापन्नो व्याकुलः समपद्यत ।

मूलम्

हताश्वसूतात् स रथादवप्लुत्य महाबलः ॥ ७७ ॥
अमर्षवशमापन्नो व्याकुलः समपद्यत ।

अनुवाद (हिन्दी)

घोड़े और सारथिके मारे जानेपर महाबली श्वेत उस रथसे कूद पड़े और अमर्षके वशीभूत होकर व्याकुल हो उठे॥७७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विरथं रथिनां श्रेष्ठं श्वेतं दृष्ट्‌वा पितामहः ॥ ७८ ॥
ताडयामास निशितैः शरसंघैः समन्ततः।

मूलम्

विरथं रथिनां श्रेष्ठं श्वेतं दृष्ट्‌वा पितामहः ॥ ७८ ॥
ताडयामास निशितैः शरसंघैः समन्ततः।

अनुवाद (हिन्दी)

रथियोंमें श्रेष्ठ श्वेतको रथहीन हुआ देख पितामह भीष्मने चारों ओरसे पैने बाणसमूहोंद्वारा उन्हें पीड़ा देनी प्रारम्भ की॥७८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स ताड्यमानः समरे भीष्मचापच्युतैः शरैः ॥ ७९ ॥
स्वरथे धनुरुत्सृज्य शक्तिं जग्राह काञ्चनीम्।

मूलम्

स ताड्यमानः समरे भीष्मचापच्युतैः शरैः ॥ ७९ ॥
स्वरथे धनुरुत्सृज्य शक्तिं जग्राह काञ्चनीम्।

अनुवाद (हिन्दी)

उस समरभूमिमें भीष्मजीके धनुषसे छूटे हुए बाणोंद्वारा पीड़ित होनेपर श्वेतने धनुषको रथपर ही छोड़कर सुवर्णमयी शक्ति हाथमें ले ली॥७९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शक्तिं रणे श्वेतो जग्राहोग्रां महाभयाम् ॥ ८० ॥
कालदण्डोपमां घोरां मृत्योर्जिह्वामिव श्वसन्।
अब्रवीच्च तदा श्वेतो भीष्मं शान्तनवं रणे ॥ ८१ ॥

मूलम्

ततः शक्तिं रणे श्वेतो जग्राहोग्रां महाभयाम् ॥ ८० ॥
कालदण्डोपमां घोरां मृत्योर्जिह्वामिव श्वसन्।
अब्रवीच्च तदा श्वेतो भीष्मं शान्तनवं रणे ॥ ८१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अत्यन्त उग्र, महाभयंकर, कालदण्डके समान घोर और मृत्युकी जिह्वा-सी प्रतीत होनेवाली उस शक्तिको श्वेतने हाथमें उठाया और लंबी साँस लेते हुए रणक्षेत्रमें शान्तनुपुत्र भीष्मसे इस प्रकार कहा—॥८०-८१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तिष्ठेदानीं सुसंरब्धः पश्य मां पुरुषो भव।
एवमुक्त्वा महेष्वासो भीष्मं युधि पराक्रमी ॥ ८२ ॥
ततः शक्तिममेयात्मा चिक्षेप भुजगोपमाम्।
पाण्डवार्थे पराक्रान्तस्तवानर्थं चिकीर्षुकः ॥ ८३ ॥

मूलम्

तिष्ठेदानीं सुसंरब्धः पश्य मां पुरुषो भव।
एवमुक्त्वा महेष्वासो भीष्मं युधि पराक्रमी ॥ ८२ ॥
ततः शक्तिममेयात्मा चिक्षेप भुजगोपमाम्।
पाण्डवार्थे पराक्रान्तस्तवानर्थं चिकीर्षुकः ॥ ८३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘भीष्म! इस समय साहसपूर्वक खड़े रहो। मुझे देखो और पुरुष बनो’, ऐसा कहकर अमित आत्मबलसे सम्पन्न महाधनुर्धर और पराक्रमी वीर श्वेतने भीष्मपर वह सर्पके समान भयंकर शक्ति चलायी। श्वेत पाण्डवोंका हित और आपके पक्षका अहित करनेकी इच्छासे पराक्रम दिखा रहे थे॥८२-८३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हाहाकारो महानासीत् पुत्राणां ते विशाम्पते।
दृष्ट्वा शक्तिं महाघोरां मृत्योर्दण्डसमप्रभाम् ॥ ८४ ॥
श्वेतस्य करनिर्मुक्तां निर्मुक्तोरगसंनिभाम् ।

मूलम्

हाहाकारो महानासीत् पुत्राणां ते विशाम्पते।
दृष्ट्वा शक्तिं महाघोरां मृत्योर्दण्डसमप्रभाम् ॥ ८४ ॥
श्वेतस्य करनिर्मुक्तां निर्मुक्तोरगसंनिभाम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! श्वेतके हाथसे छूटकर यमदण्डके समान प्रकाशित होनेवाली और केंचुल छोड़कर निकली हुई सर्पिणीकी भाँति अत्यन्त भय उत्पन्न करनेवाली उस शक्तिको देखकर आपके पुत्रोंके दलमें महान् हाहाकार मच गया॥८४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपतत् सहसा राजन् महोल्केव नभस्तलात् ॥ ८५ ॥
ज्वलन्तीमन्तरिक्षे तां ज्वालाभिरिव संवृताम्।
असम्भ्रान्तस्तदा राजन् पिता देवव्रतस्तव ॥ ८६ ॥
अष्टभिर्नवभिर्भीष्मः शक्तिं चिच्छेद पत्रिभिः।

मूलम्

अपतत् सहसा राजन् महोल्केव नभस्तलात् ॥ ८५ ॥
ज्वलन्तीमन्तरिक्षे तां ज्वालाभिरिव संवृताम्।
असम्भ्रान्तस्तदा राजन् पिता देवव्रतस्तव ॥ ८६ ॥
अष्टभिर्नवभिर्भीष्मः शक्तिं चिच्छेद पत्रिभिः।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! वह शक्ति आकाशसे बहुत बड़ी उल्काके समान सहसा गिरी। अन्तरिक्षमें ज्वालाओंसे घिरी हुई-सी उस प्रज्वलित शक्तिको देखकर आपके पिता देवव्रतको तनिक भी घबराहट नहीं हुई। उन्होंने आठ-नौ बाण मारकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये॥८५-८६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उत्कृष्टहेमविकृतां निकृतां निशितैः शरैः ॥ ८७ ॥
उच्चुक्रुशुस्ततः सर्वे तावका भरतर्षभ।

मूलम्

उत्कृष्टहेमविकृतां निकृतां निशितैः शरैः ॥ ८७ ॥
उच्चुक्रुशुस्ततः सर्वे तावका भरतर्षभ।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! उत्तम सुवर्णकी बनी हुई उस शक्तिको भीष्मके पैने बाणोंसे नष्ट हुई देख आपके पुत्र हर्षके मारे जोर-जोरसे कोलाहल करने लगे॥८७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शक्तिं विनिहतां दृष्ट्‌वा वैराटिः क्रोधमूर्च्छितः ॥ ८८ ॥
कालोपहतचेतास्तु कर्तव्यं नाभ्यजानत ।
क्रोधसम्मूर्च्छितो राजन् वैराटिः प्रहसन्निव ॥ ८९ ॥
गदां जग्राह संहृष्टो भीष्मस्य निधनं प्रति।

मूलम्

शक्तिं विनिहतां दृष्ट्‌वा वैराटिः क्रोधमूर्च्छितः ॥ ८८ ॥
कालोपहतचेतास्तु कर्तव्यं नाभ्यजानत ।
क्रोधसम्मूर्च्छितो राजन् वैराटिः प्रहसन्निव ॥ ८९ ॥
गदां जग्राह संहृष्टो भीष्मस्य निधनं प्रति।

अनुवाद (हिन्दी)

अपनी शक्तिको इस प्रकार विफल हुई देख विराटपुत्र श्वेत क्रोधसे मूर्च्छित हो गये। कालने उनकी विवेक-शक्तिको नष्ट कर दिया था; अतः उन्हें अपने कर्तव्यका भान न रहा। उन्होंने हर्षसे उत्साहित हो हँसते-हँसते भीष्मको मार डालनेके लिये हाथमें गदा उठा ली॥८८-८९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्रोधेन रक्तनयनो दण्डपाणिरिवान्तकः ॥ ९० ॥
भीष्मं समभिदुद्राव जलौघ इव पर्वतम्।

मूलम्

क्रोधेन रक्तनयनो दण्डपाणिरिवान्तकः ॥ ९० ॥
भीष्मं समभिदुद्राव जलौघ इव पर्वतम्।

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय उनकी आँखें क्रोधसे लाल हो रही थीं। वे हाथमें दण्ड लिये यमराजके समान जान पड़ते थे। जैसे महान् जलप्रवाह किसी पर्वतसे टकराता हो, उसी प्रकार वे गदा लिये भीष्मकी ओर दौड़े॥९०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य वेगमसंवार्यं मत्वा भीष्मः प्रतापवान् ॥ ९१ ॥
प्रहारविप्रमोक्षार्थं सहसा धरणीं गतः।

मूलम्

तस्य वेगमसंवार्यं मत्वा भीष्मः प्रतापवान् ॥ ९१ ॥
प्रहारविप्रमोक्षार्थं सहसा धरणीं गतः।

अनुवाद (हिन्दी)

प्रतापी भीष्म उसके वेगको अनिवार्य समझकर उस प्रहारसे बचनेके लिये सहसा पृथ्वीपर कूद पड़े॥९१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्वेतः क्रोधसमाविष्टो भ्रामयित्वा तु तां गदाम् ॥ ९२ ॥
रथे भीष्मस्य चिक्षेप यथा देवो धनेश्वरः।

मूलम्

श्वेतः क्रोधसमाविष्टो भ्रामयित्वा तु तां गदाम् ॥ ९२ ॥
रथे भीष्मस्य चिक्षेप यथा देवो धनेश्वरः।

अनुवाद (हिन्दी)

उधर श्वेतने क्रोधसे व्याप्त हो उस गदाको आकाशमें घुमाकर भीष्मके रथपर फेंक दिया, मानो कुबेरने गदाका प्रहार किया हो॥९२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तया भीष्मनिपातिन्या स रथो भस्मसात्कृतः ॥ ९३ ॥
सध्वजः सह सूतेन साश्वः सयुगबन्धुरः।

मूलम्

तया भीष्मनिपातिन्या स रथो भस्मसात्कृतः ॥ ९३ ॥
सध्वजः सह सूतेन साश्वः सयुगबन्धुरः।

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मको मार डालनेके लिये चलायी हुई उस गदाके आघातसे ध्वज, सारथि, घोड़े, जूआ और धुरा आदिके साथ वह सारा रथ चूर-चूर हो गया॥९३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विरथं रथिनां श्रेष्ठं भीष्मं दृष्ट्‌वा रथोत्तमाः ॥ ९४ ॥
अभ्यधावन्त सहिताः शल्यप्रभृतयो रथाः।

मूलम्

विरथं रथिनां श्रेष्ठं भीष्मं दृष्ट्‌वा रथोत्तमाः ॥ ९४ ॥
अभ्यधावन्त सहिताः शल्यप्रभृतयो रथाः।

अनुवाद (हिन्दी)

रथियोंमें श्रेष्ठ भीष्मको रथहीन हुआ देख शल्य आदि उत्तम महारथी एक साथ दौड़े॥९४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽन्यं रथमास्थाय धनुर्विस्फार्य दुर्मनाः ॥ ९५ ॥
शनकैरभ्ययाच्छ्‌वेतं गाङ्गेयः प्रहसन्निव ।

मूलम्

ततोऽन्यं रथमास्थाय धनुर्विस्फार्य दुर्मनाः ॥ ९५ ॥
शनकैरभ्ययाच्छ्‌वेतं गाङ्गेयः प्रहसन्निव ।

अनुवाद (हिन्दी)

तब दूसरे रथपर बैठकर धनुषकी टंकार करते हुए गंगानन्दन भीष्म उदास मनसे हँसते हुए-से धीरे-धीरे श्वेतकी ओर चले॥९५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतस्मिन्नन्तरे भीष्मः शुश्राव विपुलां गिरम् ॥ ९६ ॥
आकाशादीरितां दिव्यामात्मनो हितसम्भवाम् ।
भीष्म भीष्म महाबाहो शीघ्रं यत्नं कुरुष्व वै ॥ ९७ ॥
एष ह्यस्य जये कालो निर्दिष्टो विश्वयोनिना।

मूलम्

एतस्मिन्नन्तरे भीष्मः शुश्राव विपुलां गिरम् ॥ ९६ ॥
आकाशादीरितां दिव्यामात्मनो हितसम्भवाम् ।
भीष्म भीष्म महाबाहो शीघ्रं यत्नं कुरुष्व वै ॥ ९७ ॥
एष ह्यस्य जये कालो निर्दिष्टो विश्वयोनिना।

अनुवाद (हिन्दी)

इसी बीचमें भीष्मने अपने हितसे सम्बन्ध रखनेवाली एक दिव्य एवं गम्भीर आकाशवाणी सुनी—‘महाबाहु भीष्म! शीघ्र प्रयत्न करो। इस श्वेतपर विजय पानेके लिये ब्रह्माजीने यही समय निश्चित किया है’॥९६-९७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतच्छ्रुत्वा तु वचनं देवदूतेन भाषितम् ॥ ९८ ॥
सम्प्रहृष्टमना भूत्वा वधे तस्य मनो दधे।

मूलम्

एतच्छ्रुत्वा तु वचनं देवदूतेन भाषितम् ॥ ९८ ॥
सम्प्रहृष्टमना भूत्वा वधे तस्य मनो दधे।

अनुवाद (हिन्दी)

देवदूतका कहा हुआ यह वचन सुनकर भीष्मजीका मन प्रसन्न हो गया और उन्होंने श्वेतके वधका विचार किया॥९८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विरथं रथिनां श्रेष्ठं श्वेतं दृष्ट्‌वा पदातिनम् ॥ ९९ ॥
सहितास्त्वभ्यवर्तन्त परीप्सन्तो महारथाः ।

मूलम्

विरथं रथिनां श्रेष्ठं श्वेतं दृष्ट्‌वा पदातिनम् ॥ ९९ ॥
सहितास्त्वभ्यवर्तन्त परीप्सन्तो महारथाः ।

अनुवाद (हिन्दी)

रथियोंमें श्रेष्ठ श्वेतको रथहीन और पैदल देख उसकी रक्षा करनेके लिये एक साथ बहुत-से महारथी दौड़े आये॥९९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सात्यकिर्भीमसेनश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः ॥ १०० ॥
कैकेयो धृष्टकेतुश्च अभिमन्युश्च वीर्यवान्।

मूलम्

सात्यकिर्भीमसेनश्च धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः ॥ १०० ॥
कैकेयो धृष्टकेतुश्च अभिमन्युश्च वीर्यवान्।

अनुवाद (हिन्दी)

उनके नाम इस प्रकार हैं—सात्यकि, भीमसेन, द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न, केकयराजकुमार, धृष्टकेतु तथा पराक्रमी अभिमन्यु॥१००॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतानापततः सर्वान् द्रोणशल्यकृपैः सह ॥ १०१ ॥
अवारयदमेयात्मा वारिवेगानिवाचलः ।

मूलम्

एतानापततः सर्वान् द्रोणशल्यकृपैः सह ॥ १०१ ॥
अवारयदमेयात्मा वारिवेगानिवाचलः ।

अनुवाद (हिन्दी)

इन सबको आते देख अमेय शक्तिसम्पन्न भीष्मजीने द्रोणाचार्य, शल्य तथा कृपाचार्यके साथ जाकर उनकी गति रोक दी, मानो किसी पर्वतने जलके प्रवाहको अवरुद्ध कर दिया हो॥१०१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स निरुद्धेषु सर्वेषु पाण्डवेषु महात्मसु ॥ १०२ ॥
श्वेतः खड्‌गमथाकृष्य भीष्मस्य धनुराच्छिनत्।

मूलम्

स निरुद्धेषु सर्वेषु पाण्डवेषु महात्मसु ॥ १०२ ॥
श्वेतः खड्‌गमथाकृष्य भीष्मस्य धनुराच्छिनत्।

अनुवाद (हिन्दी)

समस्त महामना पाण्डवोंके अवरुद्ध हो जानेपर श्वेतने तलवार खींचकर भीष्मका धनुष काट दिया॥१०२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदपास्य धनुश्छिन्नं त्वरमाणः पितामहः ॥ १०३ ॥
देवदूतवचः श्रुत्वा वधे तस्य मनो दधे।

मूलम्

तदपास्य धनुश्छिन्नं त्वरमाणः पितामहः ॥ १०३ ॥
देवदूतवचः श्रुत्वा वधे तस्य मनो दधे।

अनुवाद (हिन्दी)

उस कटे हुए धनुषको फेंककर पितामह भीष्मने देवदूतके कथनपर ध्यान देकर तुरंत ही श्वेतके वधका निश्चय किया॥१०३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्रचरमाणस्तु पिता देवव्रतस्तव ॥ १०४ ॥
अन्यत् कार्मुकमादाय त्वरमाणो महारथः।
क्षणेन सज्यमकरोच्छक्रचापसमप्रभम् ॥ १०५ ॥

मूलम्

ततः प्रचरमाणस्तु पिता देवव्रतस्तव ॥ १०४ ॥
अन्यत् कार्मुकमादाय त्वरमाणो महारथः।
क्षणेन सज्यमकरोच्छक्रचापसमप्रभम् ॥ १०५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर आपके पिता महारथी देवव्रतने तुरंत ही दूसरा धनुष लेकर वहाँ विचरण करते हुए ही क्षणभरमें उसपर प्रत्यंचा चढ़ा दी। वह इन्द्रधनुषके समान प्रकाशित हो रहा था॥१०४-१०५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पिता ते भरतश्रेष्ठ श्वेतं दृष्ट्वा महारथैः।
वृतं तं मनुजव्याघ्रैर्भीमसेनपुरोगमैः ॥ १०६ ॥
अभ्यवर्तत गाङ्गेयः श्वेतं सेनापतिं द्रुतम्।

मूलम्

पिता ते भरतश्रेष्ठ श्वेतं दृष्ट्वा महारथैः।
वृतं तं मनुजव्याघ्रैर्भीमसेनपुरोगमैः ॥ १०६ ॥
अभ्यवर्तत गाङ्गेयः श्वेतं सेनापतिं द्रुतम्।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! आपके पिता गंगानन्दन भीष्मने नरश्रेष्ठ भीमसेन आदि महारथियोंसे घिरे हुए सेनापति श्वेतको देखकर उनपर तुरंत धावा किया॥१०६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आपतन्तं ततो भीष्मो भीमसेनं प्रतापवान् ॥ १०७ ॥
आजघ्ने विशिखैः षष्ट्या सेनान्यं स महारथः।

मूलम्

आपतन्तं ततो भीष्मो भीमसेनं प्रतापवान् ॥ १०७ ॥
आजघ्ने विशिखैः षष्ट्या सेनान्यं स महारथः।

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय सेनानायक भीमसेनको सामने आते देख प्रतापी महारथी भीष्मने उन्हें साठ बाणोंसे घायल कर दिया॥१०७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभिमन्युं च समरे पिता देवव्रतस्तव ॥ १०८ ॥
आजघ्ने भरतश्रेष्ठस्त्रिभिः संनतपर्वभिः ।

मूलम्

अभिमन्युं च समरे पिता देवव्रतस्तव ॥ १०८ ॥
आजघ्ने भरतश्रेष्ठस्त्रिभिः संनतपर्वभिः ।

अनुवाद (हिन्दी)

उस समरभूमिमें आपके पिता भरतश्रेष्ठ भीष्मने झुकी हुई गाँठवाले तीन बाणोंसे अभिमन्युको चोट पहुँचायी॥१०८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सात्यकिं च शतेनाजौ भरतानां पितामहः ॥ १०९ ॥
धृष्टद्युम्नं च विंशत्या कैकेयं चापि पञ्चभिः।
तांश्च सर्वान् महेष्वासान् पिता देवव्रतस्तव ॥ ११० ॥
वारयित्वा शरैर्घोरैः श्वेतमेवाभिदुद्रुवे ।

मूलम्

सात्यकिं च शतेनाजौ भरतानां पितामहः ॥ १०९ ॥
धृष्टद्युम्नं च विंशत्या कैकेयं चापि पञ्चभिः।
तांश्च सर्वान् महेष्वासान् पिता देवव्रतस्तव ॥ ११० ॥
वारयित्वा शरैर्घोरैः श्वेतमेवाभिदुद्रुवे ।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतवंशियोंके उन पितामहने युद्धस्थलमें सौ बाणोंसे सात्यकिको, बीस सायकोंद्वारा धृष्टद्युम्नको और पाँच बाणोंसे केकयराजकुमारको क्षत-विक्षत कर दिया। इस प्रकार आपके पिता भीष्मने अपने भयंकर बाणोंद्वारा उन सम्पूर्ण महाधनुर्धरोंको जहाँके तहाँ रोककर पुनः श्वेतपर ही आक्रमण किया॥१०९-११०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शरं मृत्युसमं भारसाधनमुत्तमम् ॥ १११ ॥
विकृष्य बलवान् भीष्मः समाधत्त दुरासदम्।
ब्रह्मास्त्रेण सुसंयुक्तं तं शरं लोमवाहिनम् ॥ ११२ ॥

मूलम्

ततः शरं मृत्युसमं भारसाधनमुत्तमम् ॥ १११ ॥
विकृष्य बलवान् भीष्मः समाधत्त दुरासदम्।
ब्रह्मास्त्रेण सुसंयुक्तं तं शरं लोमवाहिनम् ॥ ११२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर महाबली भीष्मने धनुषको खींचकर उसके ऊपर एक मृत्युके समान भयंकर, भारी-से-भारी लक्ष्यको बेधनेमें समर्थ, उत्तम और दुःसह पंखयुक्त बाण रखा; फिर उसे ब्रह्मास्त्रद्वारा अभिमन्त्रित करके छोड़ दिया॥१११-११२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ददृशुर्देवगन्धर्वाः पिशाचोरगराक्षसाः ।
स तस्य कवचं भित्त्वा हृदयं चामितौजसः ॥ ११३ ॥
जगाम धरणीं बाणो महाशनिरिव ज्वलन्।

मूलम्

ददृशुर्देवगन्धर्वाः पिशाचोरगराक्षसाः ।
स तस्य कवचं भित्त्वा हृदयं चामितौजसः ॥ ११३ ॥
जगाम धरणीं बाणो महाशनिरिव ज्वलन्।

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय देवताओं, गन्धर्वों, पिशाचों, नागों तथा राक्षसोंने भी देखा, वह बाण महान् वज्रके समान प्रज्वलित हो उठा और अमित बलशाली श्वेतके कवच तथा हृदयको भी छेदकर धरतीमें समा गया॥११३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अस्तं गच्छन् यथाऽऽदित्यः प्रभामादाय सत्वरः ॥ ११४ ॥
एवं जीवितमादाय श्वेतदेहाज्जगाम ह।

मूलम्

अस्तं गच्छन् यथाऽऽदित्यः प्रभामादाय सत्वरः ॥ ११४ ॥
एवं जीवितमादाय श्वेतदेहाज्जगाम ह।

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे डूबता हुआ सूर्य अपनी प्रभा साथ लेकर शीघ्र ही अस्त हो जाता है, उसी प्रकार वह बाण श्वेतके शरीरसे उसके प्राण लेकर चला गया॥११४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं भीष्मेण नरव्याघ्रं तथा विनिहतं युधि ॥ ११५ ॥
प्रपतन्तमपश्याम गिरेः शृङ्गमिव च्युतम्।

मूलम्

तं भीष्मेण नरव्याघ्रं तथा विनिहतं युधि ॥ ११५ ॥
प्रपतन्तमपश्याम गिरेः शृङ्गमिव च्युतम्।

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मके द्वारा मारे गये नरश्रेष्ठ श्वेतको युद्धस्थलमें हमने देखा। वह टूटकर गिरे हुए पर्वतके समान जान पड़ता था॥११५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अशोचन् पाण्डवास्तत्र क्षत्रियाश्च महारथाः ॥ ११६ ॥
प्रहृष्टाश्च सुतास्तुभ्यं कुरवश्चापि सर्वशः।

मूलम्

अशोचन् पाण्डवास्तत्र क्षत्रियाश्च महारथाः ॥ ११६ ॥
प्रहृष्टाश्च सुतास्तुभ्यं कुरवश्चापि सर्वशः।

अनुवाद (हिन्दी)

महारथी पाण्डव तथा उस दलके दूसरे क्षत्रिय श्वेतके लिये शोकमें डूब गये। इधर आपके पुत्र समस्त कौरव हर्षसे उल्लसित हो उठे॥११६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दुःशासनो राजन्‌ श्वेतं दृष्ट्वा निपातितम् ॥ ११७ ॥
वादित्रनिनदैर्घोरैर्नृत्यति स्म समन्ततः ।

मूलम्

ततो दुःशासनो राजन्‌ श्वेतं दृष्ट्वा निपातितम् ॥ ११७ ॥
वादित्रनिनदैर्घोरैर्नृत्यति स्म समन्ततः ।

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! श्वेतको मारा गया देख आपका पुत्र दुःशासन बाजे-गाजेकी भयंकर ध्वनिके साथ चारों ओर नाचने लगा॥११७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्मिन् हते महेष्वासे भीष्मेणाहवशोभिना ॥ ११८ ॥
प्रावेपन्त महेष्वासाः शिखण्डिप्रमुखा रथाः।

मूलम्

तस्मिन् हते महेष्वासे भीष्मेणाहवशोभिना ॥ ११८ ॥
प्रावेपन्त महेष्वासाः शिखण्डिप्रमुखा रथाः।

अनुवाद (हिन्दी)

संग्रामभूमिमें शोभा पानेवाले भीष्मजीके द्वारा महाधनुर्धर श्वेतके मारे जानेपर शिखण्डी आदि महाधनुर्धर रथी भयके मारे काँपने लगे॥११८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो धनंजयो राजन् वार्ष्णेयश्चापि सर्वशः ॥ ११९ ॥
अवहारं शनैश्चक्रुर्निहते वाहिनीपतौ ।
ततोऽवहारः सैन्यानां तव तेषां च भारत ॥ १२० ॥

मूलम्

ततो धनंजयो राजन् वार्ष्णेयश्चापि सर्वशः ॥ ११९ ॥
अवहारं शनैश्चक्रुर्निहते वाहिनीपतौ ।
ततोऽवहारः सैन्यानां तव तेषां च भारत ॥ १२० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तब सेनापति श्वेतके मारे जानेके कारण अर्जुन और श्रीकृष्णने धीरे-धीरे अपनी सेनाको युद्धभूमिसे पीछे हटा लिया। भारत! फिर आपकी और पाण्डवोंकी सेना भी उस समय युद्धसे विरक्त हो गयी॥११९-१२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावकानां परेषां च नर्दतां च मुहुर्मुहुः।
पार्था विमनसो भूत्वा न्यवर्तन्त महारथाः।
चिन्तयन्तो वधं घोरं द्वैरथेन परंतपाः ॥ १२१ ॥

मूलम्

तावकानां परेषां च नर्दतां च मुहुर्मुहुः।
पार्था विमनसो भूत्वा न्यवर्तन्त महारथाः।
चिन्तयन्तो वधं घोरं द्वैरथेन परंतपाः ॥ १२१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय आपके और शत्रुपक्षके सैनिक भी बारंबार गर्जना कर रहे थे। उस द्वैरथ युद्धमें जो भयंकर संहार हुआ था, उसके लिये चिन्ता करते हुए शत्रुसंतापी पाण्डव महारथी उदास मनसे शिविरमें लौट आये॥१२१॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि श्वेतवधे अष्टचत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ४८ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें श्वेतवधविषयक अड़तालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥४८॥