०४७ श्वेतयुद्धे

भागसूचना

सप्तचत्वारिंशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

भीष्मके साथ अभिमन्युका भयंकर युद्ध, शल्यके द्वारा उत्तरकुमारका वध और श्वेतका पराक्रम

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

गतपूर्वाह्णभूयिष्ठे तस्मिन्नहनि दारुणे ।
वर्तमाने तथा रौद्रे महावीरवरक्षये ॥ १ ॥
दुर्मुखः कृतवर्मा च कृपः शल्यो विविंशतिः।
भीष्मं जुगुपुरासाद्य तव पुत्रेण चोदिताः ॥ २ ॥

मूलम्

गतपूर्वाह्णभूयिष्ठे तस्मिन्नहनि दारुणे ।
वर्तमाने तथा रौद्रे महावीरवरक्षये ॥ १ ॥
दुर्मुखः कृतवर्मा च कृपः शल्यो विविंशतिः।
भीष्मं जुगुपुरासाद्य तव पुत्रेण चोदिताः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! उस अत्यन्त भयंकर दिनका पूर्वभाग जब प्रायः व्यतीत हो गया, तब बड़े-बड़े वीरोंका विनाश करनेवाले उस भयानक संग्राममें आपके पुत्रकी आज्ञासे दुर्मुख, कृतवर्मा, कृपाचार्य, शल्य और विविंशति वहाँ आकर भीष्मकी रक्षा करने लगे॥१-२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतैरतिरथैर्गुप्तः पञ्चभिर्भरतर्षभः ।
पाण्डवानामनीकानि विजगाहे महारथः ॥ ३ ॥

मूलम्

एतैरतिरथैर्गुप्तः पञ्चभिर्भरतर्षभः ।
पाण्डवानामनीकानि विजगाहे महारथः ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इन पाँच अतिरथी वीरोंसे सुरक्षित हो भरत-भूषण महारथी भीष्मजीने पाण्डवोंकी सेनाओंमें प्रवेश किया॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चेदिकाशिकरूषेषु पञ्चालेघु च भारत।
भीष्मस्य बहुधा तालश्चलत्केतुरदृश्यत ॥ ४ ॥

मूलम्

चेदिकाशिकरूषेषु पञ्चालेघु च भारत।
भीष्मस्य बहुधा तालश्चलत्केतुरदृश्यत ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! चेदि, काशि, करूष तथा पांचालोंमें विचरते हुए भीष्मका तालचिह्नित चंचल पताकाओंवाला रथ अनेक-सा दिखायी देने लगा॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स शिरांसि रणेऽरीणां रथांश्च सयुगध्वजान्।
निचकर्त महावेगैर्भल्लैः संनतपर्वभिः ॥ ५ ॥

मूलम्

स शिरांसि रणेऽरीणां रथांश्च सयुगध्वजान्।
निचकर्त महावेगैर्भल्लैः संनतपर्वभिः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे युद्धमें झुकी हुई गाँठवाले अत्यन्त वेगशाली भल्लोंद्वारा शत्रुओंके मस्तक, रथ, जूआ तथा ध्वज काट-काटकर गिराने लगे॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नृत्यतो रथमार्गेषु भीष्मस्य भरतर्षभ।
भृशमार्तस्वरं चक्रुर्नागा मर्मणि ताडिताः ॥ ६ ॥

मूलम्

नृत्यतो रथमार्गेषु भीष्मस्य भरतर्षभ।
भृशमार्तस्वरं चक्रुर्नागा मर्मणि ताडिताः ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! वे रथके मार्गोंपर नृत्य-सा कर रहे थे। उनके बाणोंसे मर्मस्थानोंमें चोट खाये हुए हाथी अत्यन्त आर्तनाद करने लगे॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभिमन्युः सुसंक्रुद्धः पिशङ्गैस्तुरगोत्तमैः ।
संयुक्तं रथमास्थाय प्रायाद् भीष्मरथं प्रति ॥ ७ ॥
जाम्बूनदविचित्रेण कर्णिकारेण केतुना ।
अभ्यवर्तत भीष्मं च तांश्चैव रथसत्तमान् ॥ ८ ॥

मूलम्

अभिमन्युः सुसंक्रुद्धः पिशङ्गैस्तुरगोत्तमैः ।
संयुक्तं रथमास्थाय प्रायाद् भीष्मरथं प्रति ॥ ७ ॥
जाम्बूनदविचित्रेण कर्णिकारेण केतुना ।
अभ्यवर्तत भीष्मं च तांश्चैव रथसत्तमान् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह देख अभिमन्यु अत्यन्त कुपित हो पिंगलवर्णके श्रेष्ठ घोड़ोंसे जुते हुए रथपर बैठकर भीष्मके रथकी ओर दौड़े आये। उनका वह रथ कर्णिकारके चिह्नसे युक्त स्वर्णनिर्मित विचित्र ध्वजसे सुशोभित था। उन्होंने भीष्मपर तथा उनकी रक्षाके लिये आये हुए उन श्रेष्ठ रथियोंपर भी आक्रमण किया॥७-८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तालकेतोस्तीक्ष्णेन केतुमाहत्य पत्रिणा।
भीष्मेण युयुधे वीरस्तस्य चानुरथैः सह ॥ ९ ॥

मूलम्

स तालकेतोस्तीक्ष्णेन केतुमाहत्य पत्रिणा।
भीष्मेण युयुधे वीरस्तस्य चानुरथैः सह ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वीर अभिमन्युने तीखे बाणसे उस तालचिह्नित ध्वजको छेद डाला और भीष्म तथा उनके अनुगामी रथियोंके साथ युद्ध आरम्भ कर दिया॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृतवर्माणमेकेन शल्यं पञ्चभिराशुगैः ।
विद्ध्वा नवभिरानर्च्छच्छिताग्रैः प्रपितामहम् ॥ १० ॥

मूलम्

कृतवर्माणमेकेन शल्यं पञ्चभिराशुगैः ।
विद्ध्वा नवभिरानर्च्छच्छिताग्रैः प्रपितामहम् ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन्होंने एक बाणसे कृतवर्माको और पाँच शीघ्रगामी बाणोंसे शल्यको बेधकर तीखी धारवाले नौ बाणोंसे प्रपितामह भीष्मको भी चोट पहुँचायी॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पूर्णायतविसृष्टेन सम्यक् प्रणिहितेन च।
ध्वजमेकेन विव्याध जाम्बूनदपरिष्कृतम् ॥ ११ ॥

मूलम्

पूर्णायतविसृष्टेन सम्यक् प्रणिहितेन च।
ध्वजमेकेन विव्याध जाम्बूनदपरिष्कृतम् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् धनुषको अच्छी तरह खींचकर पूरे मनोयोगसे चलाये हुए एक बाणके द्वारा उनके सुवर्ण-भूषित ध्वजको भी छेद डाला॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्मुखस्य तु भल्लेन सर्वावरणभेदिना।
जहार सारथेः कायाच्छिरः संनतपर्वणा ॥ १२ ॥

मूलम्

दुर्मुखस्य तु भल्लेन सर्वावरणभेदिना।
जहार सारथेः कायाच्छिरः संनतपर्वणा ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद झुकी हुई गाँठवाले तथा सब प्रकारके आवरणोंका भेदन करनेवाले एक भल्लके द्वारा दुर्मुखके सारथिका मस्तक धड़से अलग कर दिया॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनुश्चिच्छेद भल्लेन कार्तस्वरविभूषितम् ।
कृपस्य निशिताग्रेण तांश्च तीक्ष्णमुखैः शरैः ॥ १३ ॥
जघान परमक्रुद्धो नृत्यन्निव महारथः।

मूलम्

धनुश्चिच्छेद भल्लेन कार्तस्वरविभूषितम् ।
कृपस्य निशिताग्रेण तांश्च तीक्ष्णमुखैः शरैः ॥ १३ ॥
जघान परमक्रुद्धो नृत्यन्निव महारथः।

अनुवाद (हिन्दी)

साथ ही कृपाचार्यके स्वर्णभूषित धनुषको भी तेज धारवाले भालासे काट गिराया; फिर सब ओर घूमकर नृत्य-सा करते हुए महारथी अभिमन्युने अत्यन्त कुपित हो तीखी नोकवाले बाणोंसे भीष्मकी रक्षा करनेवाले उन महारथियोंको भी घायल कर दिया॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य लाघवमुद्वीक्ष्य तुतुषुर्देवता अपि ॥ १४ ॥
लब्धलक्षतया कार्ष्णेः सर्वे भीष्ममुखा रथाः।
सत्त्ववन्तममन्यन्त साक्षादिव धनंजयम् ॥ १५ ॥

मूलम्

तस्य लाघवमुद्वीक्ष्य तुतुषुर्देवता अपि ॥ १४ ॥
लब्धलक्षतया कार्ष्णेः सर्वे भीष्ममुखा रथाः।
सत्त्ववन्तममन्यन्त साक्षादिव धनंजयम् ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अभिमन्युके हाथोंकी यह फुर्ती देखकर देवताओंको भी बड़ी प्रसन्नता हुई। अर्जुनकुमारके इस लक्ष्य-वेधकी सफलतासे प्रभावित हो भीष्म आदि सभी रथियोंने उन्हें साक्षात् अर्जुनके समान शक्तिशाली समझा॥१४-१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य लाघवमार्गस्थमलातसदृशप्रभम् ।
दिशः पर्यपतच्चापं गाण्डीवमिव घोषवत् ॥ १६ ॥

मूलम्

तस्य लाघवमार्गस्थमलातसदृशप्रभम् ।
दिशः पर्यपतच्चापं गाण्डीवमिव घोषवत् ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अभिमन्युका धनुष गाण्डीवके समान टंकारध्वनि प्रकट करनेवाला, हाथोंकी फुर्ती दिखानेका उपयुक्त स्थान और खींचे जानेपर अलातचक्रके समान मण्डलाकार प्रकाशित होनेवाला था। वह वहाँ सम्पूर्ण दिशाओंमें घूम रहा था॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमासाद्य महावेगैर्भीष्मो नवभिराशुगैः ।
विव्याध समरे तूर्णमार्जुनिं परवीरहा ॥ १७ ॥

मूलम्

तमासाद्य महावेगैर्भीष्मो नवभिराशुगैः ।
विव्याध समरे तूर्णमार्जुनिं परवीरहा ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अर्जुनकुमार अभिमन्युको पाकर शत्रुवीरोंका हनन करनेवाले भीष्मने समरभूमिमें नौ शीघ्रगामी महावेगवान् बाणोंद्वारा तुरंत ही उन्हें वेध दिया॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ध्वजं चास्य त्रिभिर्भल्लैश्चिच्छेद परमौजसः।
सारथिं च त्रिभिर्बाणैराजघान यतव्रतः ॥ १८ ॥

मूलम्

ध्वजं चास्य त्रिभिर्भल्लैश्चिच्छेद परमौजसः।
सारथिं च त्रिभिर्बाणैराजघान यतव्रतः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

साथ ही उस महातेजस्वी वीरके ध्वजको भी तीन बाणोंसे काट गिराया; इतना ही नहीं, नियमपूर्वक ब्रह्मचर्यव्रतका पालन करनेवाले भीष्मने तीन बाणोंसे अभिमन्युके सारथिको भी मार डाला॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव कृतवर्मा च कृपः शल्यश्च मारिष।
विद्‌ध्वा नाकम्पयत्‌ कार्ष्णिं मैनाकमिव पर्वतम् ॥ १९ ॥

मूलम्

तथैव कृतवर्मा च कृपः शल्यश्च मारिष।
विद्‌ध्वा नाकम्पयत्‌ कार्ष्णिं मैनाकमिव पर्वतम् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! इसी प्रकार कृतवर्मा, कृपाचार्य तथा शल्य उस मैनाक पर्वतकी भाँति स्थिर हुए अर्जुनकुमारको बाणविद्ध करके भी कम्पित न कर सके॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तैः परिवृतः शूरो धार्तराष्ट्रैर्महारथैः।
ववर्ष शरवर्षाणि कार्ष्णिः पञ्चरथान् प्रति ॥ २० ॥

मूलम्

स तैः परिवृतः शूरो धार्तराष्ट्रैर्महारथैः।
ववर्ष शरवर्षाणि कार्ष्णिः पञ्चरथान् प्रति ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दुर्योधनके उन महारथियोंसे घिर जानेपर भी शूरवीर अर्जुनकुमार उन पाँचों रथियोंपर बाण-वर्षा करता रहा॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततस्तेषां महास्त्राणि संवार्य शरवृष्टिभिः।
ननाद बलवान् कार्ष्णिर्भीष्माय विसृजन् शरान् ॥ २१ ॥

मूलम्

ततस्तेषां महास्त्राणि संवार्य शरवृष्टिभिः।
ननाद बलवान् कार्ष्णिर्भीष्माय विसृजन् शरान् ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार अपने बाणोंकी वर्षासे उन सबके महान् अस्त्रोंका निवारण करके बलवान् अर्जुनकुमार अभिमन्युने भीष्मपर सायकोंका प्रहार करते हुए बड़े जोरका सिंहनाद किया॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्रास्य सुमहद् राजन् बाह्वोर्बलमदृश्यत।
यतमानस्य समरे भीष्ममर्दयतः शरैः ॥ २२ ॥

मूलम्

तत्रास्य सुमहद् राजन् बाह्वोर्बलमदृश्यत।
यतमानस्य समरे भीष्ममर्दयतः शरैः ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस समय समरभूमिमें प्रयत्नपूर्वक अपने बाणोंद्वारा भीष्मको पीड़ा देते हुए अभिमन्युकी भुजाओंका महान् बल प्रत्यक्ष देखा गया॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पराक्रान्तस्य तस्यैव भीष्मोऽपि प्राहिणोच्छरान्।
स तांश्चिच्छेद समरे भीष्मचापच्युतान् शरान् ॥ २३ ॥

मूलम्

पराक्रान्तस्य तस्यैव भीष्मोऽपि प्राहिणोच्छरान्।
स तांश्चिच्छेद समरे भीष्मचापच्युतान् शरान् ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब भीष्मने भी उस पराक्रमी वीरपर बाणोंका प्रहार किया; परंतु अभिमन्युने रणभूमिमें भीष्मके धनुषसे छूटे हुए समस्त बाणोंको काट डाला॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो ध्वजममोघेषुर्भीष्मस्य नवभिः शरैः।
चिच्छेद समरे वीरस्तत उच्चुक्रुशुर्जनाः ॥ २४ ॥

मूलम्

ततो ध्वजममोघेषुर्भीष्मस्य नवभिः शरैः।
चिच्छेद समरे वीरस्तत उच्चुक्रुशुर्जनाः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अभिमन्युके बाण अमोघ थे। उस वीरने समरांगणमें नौ बाणोंद्वारा भीष्मके ध्वजको काट गिराया। यह देख सब लोग उच्च स्वरसे कोलाहल कर उठे॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स राजतो महास्कन्धस्तालो हेमविभूषितः।
सौभद्रविशिखैश्छिन्नः पपात भुवि भारत ॥ २५ ॥

मूलम्

स राजतो महास्कन्धस्तालो हेमविभूषितः।
सौभद्रविशिखैश्छिन्नः पपात भुवि भारत ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! वह रजतनिर्मित, स्वर्णभूषित अत्यन्त ऊँचा ताल-चिह्नसे युक्त भीष्मका ध्वज सुभद्राकुमारके बाणोंसे छिन्न-भिन्न होकर पृथ्वीपर गिर पड़ा॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं तु सौभद्रविशिखैः पातितं भरतर्षभ।
दृष्ट्‌वा भीमो ननादोच्चैः सौभद्रमभिहर्षयन् ॥ २६ ॥

मूलम्

तं तु सौभद्रविशिखैः पातितं भरतर्षभ।
दृष्ट्‌वा भीमो ननादोच्चैः सौभद्रमभिहर्षयन् ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! अभिमन्युके बाणोंसे कटकर गिरे हुए उस ध्वजको देखकर भीमसेनने सुभद्राकुमारका हर्ष बढ़ाते हुए उच्चस्वरसे गर्जना की॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथ भीष्मो महास्त्राणि दिव्यानि सुबहूनि च।
प्रादुश्चक्रे महारौद्रे रणे तस्मिन् महाबलः ॥ २७ ॥

मूलम्

अथ भीष्मो महास्त्राणि दिव्यानि सुबहूनि च।
प्रादुश्चक्रे महारौद्रे रणे तस्मिन् महाबलः ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब महाबली भीष्मने उस अत्यन्त भयंकर संग्राममें बहुत-से महान् दिव्यास्त्र प्रकट किये॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः शरसहस्रेण सौभद्रं प्रपितामहः।
अवाकिरदमेयात्मा तदद्भुतमिवाभवत् ॥ २८ ॥

मूलम्

ततः शरसहस्रेण सौभद्रं प्रपितामहः।
अवाकिरदमेयात्मा तदद्भुतमिवाभवत् ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब अमेय आत्मबलसे सम्पन्न प्रपितामह भीष्मने सुभद्राकुमारपर हजारों बाणोंकी वर्षा की। वह एक अद्भुत-सी घटना प्रतीत हुई॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दश महेष्वासाः पाण्डवानां महारथाः।
रक्षार्थमभ्यधावन्त सौभद्रं त्वरिता रथैः ॥ २९ ॥
विराटः सह पुत्रेण धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
भीमश्च केकयाश्चैव सात्यकिश्च विशाम्पते ॥ ३० ॥

मूलम्

ततो दश महेष्वासाः पाण्डवानां महारथाः।
रक्षार्थमभ्यधावन्त सौभद्रं त्वरिता रथैः ॥ २९ ॥
विराटः सह पुत्रेण धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।
भीमश्च केकयाश्चैव सात्यकिश्च विशाम्पते ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तब पुत्रसहित विराट, द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न, भीमसेन, पाँचों भाई केकयराजकुमार तथा सात्यकि—ये पाण्डव-पक्षके महान् धनुर्धर दस महारथी अभिमन्युकी रक्षाके लिये रथोंद्वारा तुरंत वहाँ दौड़े आये॥२९-३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तेषां जवेनापततां भीष्मः शान्तनवो रणे।
पाञ्चाल्यं त्रिभिरानर्च्छत् सात्यकिं नवभिः शरैः ॥ ३१ ॥

मूलम्

तेषां जवेनापततां भीष्मः शान्तनवो रणे।
पाञ्चाल्यं त्रिभिरानर्च्छत् सात्यकिं नवभिः शरैः ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शान्तनुनन्दन भीष्मने रणभूमिमें वेगपूर्वक आक्रमण करनेवाले उन दसों महारथियोंमेंसे धृष्टद्युम्नको तीन और सात्यकिको नौ बाणोंसे गहरी चोट पहुँचायी॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पूर्णायतविसृष्टेन क्षुरेण निशितेन च।
ध्वजमेकेन चिच्छेद भीमसेनस्य पत्रिणा ॥ ३२ ॥

मूलम्

पूर्णायतविसृष्टेन क्षुरेण निशितेन च।
ध्वजमेकेन चिच्छेद भीमसेनस्य पत्रिणा ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर धनुषको पूरी तरहसे खींचकर छोड़े हुए एक पंखयुक्त तीखे बाणसे भीमसेनकी ध्वजा काट डाली॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जाम्बूनदमयः श्रीमान् केसरी स नरोत्तम।
पपात भीमसेनस्य भीष्मेण मथितो रथात् ॥ ३३ ॥

मूलम्

जाम्बूनदमयः श्रीमान् केसरी स नरोत्तम।
पपात भीमसेनस्य भीष्मेण मथितो रथात् ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरश्रेष्ठ! भीमसेनका वह सुवर्णमय सुन्दर ध्वज सिंहके चिह्नसे युक्त था। वह भीष्मके द्वारा काट दिये जानेपर रथसे नीचे गिर पड़ा॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो भीमस्त्रिभिर्विद््ध्वा भीष्मं शान्तनवं रणे।
कृपमेकेन विव्याध कृतवर्माणमष्टभिः ॥ ३४ ॥

मूलम्

ततो भीमस्त्रिभिर्विद््ध्वा भीष्मं शान्तनवं रणे।
कृपमेकेन विव्याध कृतवर्माणमष्टभिः ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब भीमसेनने उस रणक्षेत्रमें शान्तनुनन्दन भीष्मको तीन बाणोंसे घायल करके कृपाचार्यको एक और कृतवर्माको आठ बाणोंसे बेध दिया॥३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रगृहीताग्रहस्तेन वैराटिरपि दन्तिना ।
अभ्यद्रवत राजानं मद्राधिपतिमुत्तरः ॥ ३५ ॥

मूलम्

प्रगृहीताग्रहस्तेन वैराटिरपि दन्तिना ।
अभ्यद्रवत राजानं मद्राधिपतिमुत्तरः ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी समय जिसने अपनी सूँड़को मोड़कर मुखमें रख लिया था, उस दन्तार हाथीपर आरूढ़ हो विराट-कुमार उत्तरने मद्रदेशके स्वामी राजा शल्यपर धावा किया॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य वारणराजस्य जवेनापततो रथे।
शल्यो निवारयामास वेगमप्रतिमं शरैः ॥ ३६ ॥

मूलम्

तस्य वारणराजस्य जवेनापततो रथे।
शल्यो निवारयामास वेगमप्रतिमं शरैः ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह गजराज बड़े वेगसे शल्यके रथकी ओर झपटा। उस समय शल्यने अपने बाणोंद्वारा उसके अप्रतिम वेगको रोक दिया॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य क्रुद्धः स नागेन्द्रो बृहतः साधुवाहिनः।
पदा युगमधिष्ठाय जघान चतुरो हयान् ॥ ३७ ॥

मूलम्

तस्य क्रुद्धः स नागेन्द्रो बृहतः साधुवाहिनः।
पदा युगमधिष्ठाय जघान चतुरो हयान् ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इससे वह गजेन्द्र शल्यपर अत्यन्त कुपित हो उठा और अपना एक पैर रथके जूएपर रखकर उसे अच्छी तरह वहन करनेवाले चारों विशाल घोड़ोंको मार डाला॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स हताश्वे रथे तिष्ठन् मद्राधिपतिरायसीम्।
उत्तरान्तकरीं शक्तिं चिक्षेप भुजगोपमाम् ॥ ३८ ॥

मूलम्

स हताश्वे रथे तिष्ठन् मद्राधिपतिरायसीम्।
उत्तरान्तकरीं शक्तिं चिक्षेप भुजगोपमाम् ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

घोड़ोंके मारे जानेपर भी उसी रथपर बैठे हुए मद्रराज शल्यने लोहेकी बनी हुई एक शक्ति चलायी, जो सर्पके समान भयंकर और राजकुमार उत्तरका अन्त करनेवाली थी॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तया भिन्नतनुत्राणः प्रविश्य विपुलं तमः।
स पपात गजस्कन्धात् प्रमुक्ताङ्‌कुशतोमरः ॥ ३९ ॥

मूलम्

तया भिन्नतनुत्राणः प्रविश्य विपुलं तमः।
स पपात गजस्कन्धात् प्रमुक्ताङ्‌कुशतोमरः ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस शक्तिने उनके कवचको काट दिया। उसकी चोटसे उनपर अत्यन्त मोह छा गया। उनके हाथसे अंकुश और तोमर छूटकर गिर गये और वे भी अचेत होकर हाथीकी पीठसे पृथ्वीपर गिर पड़े॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

असिमादाय शल्योऽपि अवप्लुत्य रथोत्तमात्।
तस्य वारणराजस्य चिच्छेदाथ महाकरम् ॥ ४० ॥

मूलम्

असिमादाय शल्योऽपि अवप्लुत्य रथोत्तमात्।
तस्य वारणराजस्य चिच्छेदाथ महाकरम् ॥ ४० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसी समय शल्य हाथमें तलवार लेकर अपने श्रेष्ठ रथसे कूद पड़े और उसीके द्वारा उस गजराजकी विशाल सूँड़को उन्होंने काट गिराया॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भिन्नमर्मा शरशतैश्छिन्नहस्तः स वारणः।
भीममार्तस्वरं कृत्वा पपात च ममार च ॥ ४१ ॥

मूलम्

भिन्नमर्मा शरशतैश्छिन्नहस्तः स वारणः।
भीममार्तस्वरं कृत्वा पपात च ममार च ॥ ४१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सैकड़ों बाणोंसे उसके मर्म विद्ध हो गये थे और उसकी सूँड़ भी काट डाली गयी। इससे भयंकर आर्तनाद करके वह गजराज भूमिपर गिरा और मर गया॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतदीदृशकं कृत्वा मद्रराजो नराधिप।
आरुरोह रथं तूर्णं भास्वरं कृतवर्मणः ॥ ४२ ॥

मूलम्

एतदीदृशकं कृत्वा मद्रराजो नराधिप।
आरुरोह रथं तूर्णं भास्वरं कृतवर्मणः ॥ ४२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! यह पराक्रम करके मद्रराज शल्य तुरंत ही कृतवर्माके तेजस्वी रथपर चढ़ गये॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उत्तरं वै हतं दृष्ट्‌वा वैराटिर्भ्रातरं तदा।
कृतवर्मणा च सहितं दृष्ट्‌वा शल्यमवस्थितम् ॥ ४३ ॥
श्वेतः क्रोधात् प्रजज्वाल हविषा हव्यवाडिव।

मूलम्

उत्तरं वै हतं दृष्ट्‌वा वैराटिर्भ्रातरं तदा।
कृतवर्मणा च सहितं दृष्ट्‌वा शल्यमवस्थितम् ॥ ४३ ॥
श्वेतः क्रोधात् प्रजज्वाल हविषा हव्यवाडिव।

अनुवाद (हिन्दी)

अपने भाई उत्तरको मारा गया और शल्यको कृतवर्माके साथ रथपर बैठा हुआ देख विराटपुत्र श्वेत क्रोधसे जल उठे, मानो अग्निमें घीकी आहुति पड़ गयी हो॥४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स विस्फार्य महच्चापं शक्रचापोपमं बली ॥ ४४ ॥
अभ्यधावज्जिघांसन् वै शल्यं मद्राधिपं बली।

मूलम्

स विस्फार्य महच्चापं शक्रचापोपमं बली ॥ ४४ ॥
अभ्यधावज्जिघांसन् वै शल्यं मद्राधिपं बली।

अनुवाद (हिन्दी)

उस बलवान् वीरने इन्द्रधनुषके समान अपने विशाल शरासनको कानोंतक खींचकर मद्रराज शल्यको मार डालनेकी इच्छासे उनपर धावा किया॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महता रथवंशेन समन्तात् परिवारितः ॥ ४५ ॥
मुञ्चन् बाणमयं वर्षं प्रायाच्छल्यरथं प्रति।

मूलम्

महता रथवंशेन समन्तात् परिवारितः ॥ ४५ ॥
मुञ्चन् बाणमयं वर्षं प्रायाच्छल्यरथं प्रति।

अनुवाद (हिन्दी)

वह विशाल रथ-सेनाके द्वारा सब ओरसे घिरकर बाणोंकी वर्षा करता हुआ शल्यके रथपर चढ़ आया॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य मत्तवारणविक्रमम् ॥ ४६ ॥
तावकानां रथाः सप्त समन्तात् पर्यवारयन्।
मद्रराजमभीप्सन्तो मृत्योर्दंष्ट्रान्तरं गतम् ॥ ४७ ॥

मूलम्

तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य मत्तवारणविक्रमम् ॥ ४६ ॥
तावकानां रथाः सप्त समन्तात् पर्यवारयन्।
मद्रराजमभीप्सन्तो मृत्योर्दंष्ट्रान्तरं गतम् ॥ ४७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मतवाले हाथीके समान पराक्रम प्रकट करनेवाले श्वेतको धावा करते देख आपके सात रथियोंने मौतके दाँतोंमें फँसे हुए मद्रराज शल्यको बचानेकी इच्छा रखकर उन्हें चारों ओरसे घेर लिया॥४६-४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बृहद्‌बलश्च कौसल्यो जयत्सेनश्च मागधः।
तथा रुक्मरथो राजन् शल्यपुत्रः प्रतापवान् ॥ ४८ ॥
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ काम्बोजश्च सुदक्षिणः ।
बृहत्क्षत्रस्य दायादः सैन्धवश्च जयद्रथः ॥ ४९ ॥

मूलम्

बृहद्‌बलश्च कौसल्यो जयत्सेनश्च मागधः।
तथा रुक्मरथो राजन् शल्यपुत्रः प्रतापवान् ॥ ४८ ॥
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ काम्बोजश्च सुदक्षिणः ।
बृहत्क्षत्रस्य दायादः सैन्धवश्च जयद्रथः ॥ ४९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उन रथियोंके नाम ये हैं—कोसलनरेश बृहद्‌बल, मगधदेशीय जयत्सेन, शल्यके प्रतापी पुत्र रुक्मरथ, अवन्तिके राजकुमार विन्द और अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण तथा बृहत्क्षत्रके पुत्र सिन्धुराज जयद्रथ॥४८-४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नानावर्णविचित्राणि धनूंषि च महात्मनाम्।
विस्फारितानि दृश्यन्ते तोयदेष्विव विद्युतः ॥ ५० ॥

मूलम्

नानावर्णविचित्राणि धनूंषि च महात्मनाम्।
विस्फारितानि दृश्यन्ते तोयदेष्विव विद्युतः ॥ ५० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इन महामना वीरोंके फैलाये हुए अनेक रूपरंगके विचित्र धनुष बादलोंमें बिजलियोंके समान दृष्टिगोचर हो रहे थे॥५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते तु बाणमयं वर्षं श्वेतमूर्धन्यपातयन्।
निदाघान्तेऽनिलोद्धूता मेघा इव नगे जलम् ॥ ५१ ॥

मूलम्

ते तु बाणमयं वर्षं श्वेतमूर्धन्यपातयन्।
निदाघान्तेऽनिलोद्धूता मेघा इव नगे जलम् ॥ ५१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन सबने श्वेतके मस्तकपर बाणोंकी वर्षा आरम्भ कर दी, मानो ग्रीष्म-ऋतुके अन्तमें वायुके द्वारा उठाये हुए मेघ पर्वतपर जल बरसा रहे हों॥५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः क्रुद्धो महेष्वासः सप्तभल्लैः सुतेजनैः।
धनूंषि तेषामाच्छिद्य ममर्द पृतनापतिः ॥ ५२ ॥

मूलम्

ततः क्रुद्धो महेष्वासः सप्तभल्लैः सुतेजनैः।
धनूंषि तेषामाच्छिद्य ममर्द पृतनापतिः ॥ ५२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समय महान् धनुर्धर सेनापति श्वेतने कुपित होकर तेज किये हुए भल्ल नामक सात बाणोंद्वारा उन सातों रथियोंके धनुष काटकर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिये॥५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निकृत्तान्येव तानि स्म समदृश्यन्त भारत।
ततस्ते तु निमेषार्धात् प्रत्यपद्यन् धनूंषि च ॥ ५३ ॥
सप्त चैव पृषत्कांश्च श्वेतस्योपर्यपातयन्।
ततः पुनरमेयात्मा भल्लैः सप्तभिराशुगैः।
निचकर्त महाबाहुस्तेषां चापानि धन्विनाम् ॥ ५४ ॥

मूलम्

निकृत्तान्येव तानि स्म समदृश्यन्त भारत।
ततस्ते तु निमेषार्धात् प्रत्यपद्यन् धनूंषि च ॥ ५३ ॥
सप्त चैव पृषत्कांश्च श्वेतस्योपर्यपातयन्।
ततः पुनरमेयात्मा भल्लैः सप्तभिराशुगैः।
निचकर्त महाबाहुस्तेषां चापानि धन्विनाम् ॥ ५४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! वे सातों धनुष कट जानेपर ही दृष्टिमें आये। तदनन्तर उन सबने आधे निमेषमें ही दूसरे धनुष ले लिये और श्वेतके ऊपर एक ही साथ सात बाण चलाये। तब अमेय आत्मबलसे युक्त महाबाहु श्वेतने पुनः शीघ्रगामी सात भल्ल मारकर उन धनुर्धरोंके धनुष काट दिये॥५३-५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते निकृत्तमहाचापास्त्वरमाणा महारथाः ।
रथशक्तीः परामृश्य विनेदुर्भैरवान् रवान् ॥ ५५ ॥

मूलम्

ते निकृत्तमहाचापास्त्वरमाणा महारथाः ।
रथशक्तीः परामृश्य विनेदुर्भैरवान् रवान् ॥ ५५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अपने विशाल धनुषोंके कट जानेपर उन सातों महारथियोंने बड़ी उतावलीके साथ रथ-शक्तियाँ उठा लीं और भयंकर गर्जना की॥५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अन्वयुर्भरतश्रेष्ठ सप्त श्वेतरथं प्रति।
ततस्ता ज्वलिताः सप्त महेन्द्राशनिनिःस्वनाः ॥ ५६ ॥

मूलम्

अन्वयुर्भरतश्रेष्ठ सप्त श्वेतरथं प्रति।
ततस्ता ज्वलिताः सप्त महेन्द्राशनिनिःस्वनाः ॥ ५६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! वे सातों शक्तियाँ प्रज्वलित हो देवराज इन्द्रके वज्रकी भाँति भयंकर शब्द करती हुई श्वेतके रथकी ओर एक साथ चलीं॥५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अप्राप्ताः सप्तभिर्भल्लैश्चिच्छेद परमास्त्रवित् ।
ततः समादाय शरं सर्वकायविदारणम् ॥ ५७ ॥
प्राहिणोद् भरतश्रेष्ठ श्वेतो रुक्मरथं प्रति।

मूलम्

अप्राप्ताः सप्तभिर्भल्लैश्चिच्छेद परमास्त्रवित् ।
ततः समादाय शरं सर्वकायविदारणम् ॥ ५७ ॥
प्राहिणोद् भरतश्रेष्ठ श्वेतो रुक्मरथं प्रति।

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु श्वेत उत्तम अस्त्रोंके ज्ञाता थे। उन्होंने सात भल्ल मारकर अपने निकट आनेसे पहले ही उन शक्तियोंके टुकड़े-टुकड़े कर दिये। भरतश्रेष्ठ! तत्पश्चात् श्वेतने सबकी कायाको विदीर्ण कर देनेवाले एक बाणको लेकर उसे रुक्मरथकी ओर चलाया॥५७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य देहे निपतितो बाणो वज्रातिगो महान् ॥ ५८ ॥
ततो रुक्मरथो राजन् सायकेन दृढाहतः।
निषसाद रथोपस्थे कश्मलं चाविशन्महत् ॥ ५९ ॥

मूलम्

तस्य देहे निपतितो बाणो वज्रातिगो महान् ॥ ५८ ॥
ततो रुक्मरथो राजन् सायकेन दृढाहतः।
निषसाद रथोपस्थे कश्मलं चाविशन्महत् ॥ ५९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वज्रसे भी अधिक प्रभावशाली वह महान् बाण रुक्मरथके शरीरपर जा गिरा। राजन्! उस बाणसे अत्यन्त घायल होकर रुक्मरथ अपने रथके पिछले भागमें बैठ गया और अत्यन्त मूर्च्छित हो गया॥५८-५९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तं विसंज्ञं विमनसं त्वरमाणस्तु सारथिः।
अपोवाह न सम्भ्रान्तः सर्वलोकस्य पश्यतः ॥ ६० ॥

मूलम्

तं विसंज्ञं विमनसं त्वरमाणस्तु सारथिः।
अपोवाह न सम्भ्रान्तः सर्वलोकस्य पश्यतः ॥ ६० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसे अचेत और अनमना देख सारथि तनिक भी घबराहटमें न पड़कर अत्यन्त उतावलीके साथ सबके देखते-देखते रणभूमिसे दूर हटा ले गया॥६०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽन्यान्‌ षट् समादाय श्वेतो हेमविभूषितान्।
तेषां षण्णां महाबाहुर्ध्वजशीर्षाण्यपातयत् ॥ ६१ ॥

मूलम्

ततोऽन्यान्‌ षट् समादाय श्वेतो हेमविभूषितान्।
तेषां षण्णां महाबाहुर्ध्वजशीर्षाण्यपातयत् ॥ ६१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब महाबाहु श्वेतने दूसरे स्वर्णभूषित छः बाण लेकर उन छहों रथियोंके ध्वजके अग्रभाग काट गिराये॥६१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हयांश्च तेषां निर्भिद्य सारथींश्च परंतप।
शरैश्चैतान् समाकीर्य प्रायाच्छल्यरथं प्रति ॥ ६२ ॥

मूलम्

हयांश्च तेषां निर्भिद्य सारथींश्च परंतप।
शरैश्चैतान् समाकीर्य प्रायाच्छल्यरथं प्रति ॥ ६२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतप! फिर उनके घोड़ों और सारथियोंको विदीर्ण करके उनके शरीरोंमें भी बहुत-से बाण जड़ दिये। इसके बाद श्वेतने शल्यके रथपर धावा किया॥६२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो हलहलाशब्दस्तव सैन्येषु भारत।
दृष्ट्वा सेनापतिं तूर्णं यान्तं शल्यरथं प्रति ॥ ६३ ॥

मूलम्

ततो हलहलाशब्दस्तव सैन्येषु भारत।
दृष्ट्वा सेनापतिं तूर्णं यान्तं शल्यरथं प्रति ॥ ६३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! तब सेनापति श्वेतको शीघ्रतापूर्वक शल्यके रथकी ओर जाते देख आपकी सेनाओंमें हाहाकार मच गया॥६३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो भीष्मं पुरस्कृत्य तव पुत्रो महाबलः।
वृतस्तु सर्वसैन्येन प्रायाच्छ्‌वेतरथं प्रति ॥ ६४ ॥
मृत्योरास्यमनुप्राप्तं मद्रराजममोचयत् ।

मूलम्

ततो भीष्मं पुरस्कृत्य तव पुत्रो महाबलः।
वृतस्तु सर्वसैन्येन प्रायाच्छ्‌वेतरथं प्रति ॥ ६४ ॥
मृत्योरास्यमनुप्राप्तं मद्रराजममोचयत् ।

अनुवाद (हिन्दी)

तब आपके महाबली पुत्र दुर्योधनने भीष्मजीको आगे करके सम्पूर्ण सेनाके साथ श्वेतके रथपर चढ़ाई की और मृत्युके मुखमें पहुँचे हुए मद्रराज शल्यको छुड़ा लिया॥६४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो युद्धं समभवत् तुमुलं लोमहर्षणम् ॥ ६५ ॥
तावकानां परेषां च व्यतिषक्तरथद्विपम्।

मूलम्

ततो युद्धं समभवत् तुमुलं लोमहर्षणम् ॥ ६५ ॥
तावकानां परेषां च व्यतिषक्तरथद्विपम्।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर आपके और पाण्डवोंके सैनिकोंमें अत्यन्त भयंकर रोमांचकारी युद्ध होने लगा। रथसे रथ और हाथीसे हाथी गुँथ गये॥६५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सौभद्रे भीमसेने च सात्यकौ च महारथे ॥ ६६ ॥
कैकेये च विराटे च धृष्टद्युम्ने च पार्षते।
एतेषु नरसिंहेषु चेदिमत्स्येषु चैव ह।
ववर्ष शरवर्षाणि कुरुवृद्धः पितामहः ॥ ६७ ॥

मूलम्

सौभद्रे भीमसेने च सात्यकौ च महारथे ॥ ६६ ॥
कैकेये च विराटे च धृष्टद्युम्ने च पार्षते।
एतेषु नरसिंहेषु चेदिमत्स्येषु चैव ह।
ववर्ष शरवर्षाणि कुरुवृद्धः पितामहः ॥ ६७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डवपक्षकी ओरसे सुभद्राकुमार अभिमन्यु, भीमसेन, महारथी सात्यकि, केकयराजकुमार, राजा विराट तथा द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न—ये पुरुषसिंह और चेदि एवं मत्स्यदेशके क्षत्रिय युद्ध कर रहे थे। कुरुकुलके वृद्ध पुरुष पितामह भीष्मने इन सबपर बाणोंकी वर्षा प्रारम्भ कर दी॥६६-६७॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि श्वेतयुद्धे सप्तचत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ४७ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें श्वेतयुद्धविषयक सैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥४७॥