०४५ द्वन्द्वयुद्धे

भागसूचना

पञ्चचत्वारिंशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

उभय पक्षके सैनिकोंका द्वन्द्व-युद्ध

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

पूर्वाह्णे तस्य रौद्रस्य युद्धमह्नो विशाम्पते।
प्रावर्तत महाघोरं राज्ञां देहावकर्तनम् ॥ १ ॥

मूलम्

पूर्वाह्णे तस्य रौद्रस्य युद्धमह्नो विशाम्पते।
प्रावर्तत महाघोरं राज्ञां देहावकर्तनम् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— प्रजानाथ! उस भयंकर दिनके प्रथम भागमें महाभयानक युद्ध होने लगा, जो राजाओंके शरीरका उच्छेद करनेवाला था॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुरूणां सृञ्जयानां च जिगीषूणां परस्परम्।
सिंहानामिव संह्रादो दिवमुर्वीं च नादयन् ॥ २ ॥

मूलम्

कुरूणां सृञ्जयानां च जिगीषूणां परस्परम्।
सिंहानामिव संह्रादो दिवमुर्वीं च नादयन् ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कौरव और सृंजयवंशी वीर एक-दूसरेको जीतनेकी इच्छा रखकर सिंहोंके समान दहाड़ रहे थे। उनका वह सिंहनाद पृथ्वी और आकाशको प्रतिध्वनित कर रहा था॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आसीत् किलकिलाशब्दस्तलशङ्खरवैः सह ।
जज्ञिरे सिंहनादाश्च शूराणां प्रतिगर्जताम् ॥ ३ ॥

मूलम्

आसीत् किलकिलाशब्दस्तलशङ्खरवैः सह ।
जज्ञिरे सिंहनादाश्च शूराणां प्रतिगर्जताम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तल और शंखोंकी ध्वनिके साथ सैनिकोंका किलकिल शब्द गूँज उठा। एक-दूसरेके प्रति गर्जना करनेवाले शूरवीरोंके सिंहनाद होने लगे॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तलत्राभिहताश्चैव ज्याशब्दा भरतर्षभ ।
पत्तीनां पादशब्दश्च वाजिनां च महास्वनः ॥ ४ ॥
तोत्राङ्‌कुशनिपातश्च आयुधानां च निःस्वनः।
घण्टाशब्दश्च नागानामन्योन्यमभिधावताम् ॥ ५ ॥
तस्मिन् समुदिते शब्दे तुमुले लोमहर्षणे।
बभूव रथनिर्घोषः पर्जन्यनिनदोपमः ॥ ६ ॥

मूलम्

तलत्राभिहताश्चैव ज्याशब्दा भरतर्षभ ।
पत्तीनां पादशब्दश्च वाजिनां च महास्वनः ॥ ४ ॥
तोत्राङ्‌कुशनिपातश्च आयुधानां च निःस्वनः।
घण्टाशब्दश्च नागानामन्योन्यमभिधावताम् ॥ ५ ॥
तस्मिन् समुदिते शब्दे तुमुले लोमहर्षणे।
बभूव रथनिर्घोषः पर्जन्यनिनदोपमः ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतश्रेष्ठ! तलत्राणके आघातसे टकरायी हुई प्रत्यंचाओंके शब्द, पैदल सिपाहियोंके पैरोंकी धमक, उच्चस्वरसे होनेवाली घोड़ोंकी हिनहिनाहट, हाथियोंके चाबुक और अंकुशके आघातका शब्द, हथियारोंकी झनझनाहट तथा एक-दूसरेपर धावा करनेवाले गजराजोंके घण्टानाद—ये सब शब्द मिलकर ऐसी भयंकर आवाज प्रकट करने लगे, जो रोंगटे खड़े कर देनेवाली थी। उसीमें रथोंके पहियोंकी घरघराहट होने लगी, जो मेघोंकी विकट गर्जनाके समान जान पड़ती थी॥४—६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते मनः क्रूरमाधाय समभित्यक्तजीविताः।
पाण्डवानभ्यवर्तन्त सर्व एवोच्छ्रितध्वजाः ॥ ७ ॥

मूलम्

ते मनः क्रूरमाधाय समभित्यक्तजीविताः।
पाण्डवानभ्यवर्तन्त सर्व एवोच्छ्रितध्वजाः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे समस्त कौरव सैनिक अपने मनको कठोर बना प्राणोंकी बाजी लगाकर ऊँची ध्वजाएँ फहराते हुए पाण्डवोंपर धावा करने लगे॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथ शान्तनवो राजन्नभ्यधावद् धनंजयम्।
प्रगृह्य कार्मुकं घोरं कालदण्डोपमं रणे ॥ ८ ॥

मूलम्

अथ शान्तनवो राजन्नभ्यधावद् धनंजयम्।
प्रगृह्य कार्मुकं घोरं कालदण्डोपमं रणे ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! तदनन्तर शान्तनुनन्दन भीष्म उस युद्धभूमिमें कालदण्डके समान भीषण धनुष लेकर अर्जुनकी ओर दौड़े॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अर्जुनोऽपि धनुर्गृह्य गाण्डीवं लोकविश्रुतम्।
अभ्यधावत तेजस्वी गाङ्गेयं रणमूर्धनि ॥ ९ ॥

मूलम्

अर्जुनोऽपि धनुर्गृह्य गाण्डीवं लोकविश्रुतम्।
अभ्यधावत तेजस्वी गाङ्गेयं रणमूर्धनि ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उधरसे महातेजस्वी अर्जुन भी अपना लोकविख्यात गाण्डीव धनुष लेकर युद्धके मुहानेपर गंगानन्दन भीष्मकी ओर दौड़े॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावुभौ कुरुशार्दूलौ परस्परवधैषिणौ ।
गाङ्गेयस्तु रणे पार्थं विद्ध्‌वा नाकम्पयद् बली ॥ १० ॥

मूलम्

तावुभौ कुरुशार्दूलौ परस्परवधैषिणौ ।
गाङ्गेयस्तु रणे पार्थं विद्ध्‌वा नाकम्पयद् बली ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों कुरुकुलके सिंह थे और एक-दूसरेको मार डालनेकी इच्छा रखते थे। बलवान् भीष्म युद्धमें अर्जुनको घायल करके भी उन्हें विचलित न कर सके॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तथैव पाण्डवो राजन् भीष्मं नाकम्पयद् युधि।
सात्यकिस्तु महेष्वासः कृतवर्माणमभ्ययात् ॥ ११ ॥

मूलम्

तथैव पाण्डवो राजन् भीष्मं नाकम्पयद् युधि।
सात्यकिस्तु महेष्वासः कृतवर्माणमभ्ययात् ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उसी प्रकार पाण्डुनन्दन अर्जुन भी भीष्मको युद्धमें हिला न सके। दूसरी ओर महाधनुर्धर सात्यकिने कृतवर्मापर धावा किया॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तयोः समभवद् युद्धं तुमुलं लोमहर्षणम्।
सात्यकिः कृतवर्माणं कृतवर्मा च सात्यकिम् ॥ १२ ॥
आनर्च्छतुः शरैर्घोरैस्तक्षमाणौ परस्परम् ।

मूलम्

तयोः समभवद् युद्धं तुमुलं लोमहर्षणम्।
सात्यकिः कृतवर्माणं कृतवर्मा च सात्यकिम् ॥ १२ ॥
आनर्च्छतुः शरैर्घोरैस्तक्षमाणौ परस्परम् ।

अनुवाद (हिन्दी)

उन दोनोंमें बड़ा भयंकर रोमांचकारी युद्ध हुआ। सात्यकिने कृतवर्माको और कृतवर्माने सात्यकिको भयंकर बाणोंसे घायल करते हुए एक-दूसरेको बड़ी पीड़ा पहुँचायी॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ शरार्चितसर्वाङ्गौ शुशुभाते महाबलौ ॥ १३ ॥
वसन्ते पुष्पशबलौ पुष्पिताविव किंशुकौ।

मूलम्

तौ शरार्चितसर्वाङ्गौ शुशुभाते महाबलौ ॥ १३ ॥
वसन्ते पुष्पशबलौ पुष्पिताविव किंशुकौ।

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों महाबली वीर सर्वांगमें बाणोंसे छिदे होनेके कारण वसन्त-ऋतुमें खिले हुए दो पुष्पयुक्त पलाश वृक्षोंके समान शोभा पा रहे थे॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अभिमन्युर्महेष्वासं बृहद्‌बलमयोधयत् ॥ १४ ॥
ततः कोसलराजासावभिमन्योर्विशाम्पते ।
ध्वजं चिच्छेद समरे सारथिं च न्यपातयत् ॥ १५ ॥

मूलम्

अभिमन्युर्महेष्वासं बृहद्‌बलमयोधयत् ॥ १४ ॥
ततः कोसलराजासावभिमन्योर्विशाम्पते ।
ध्वजं चिच्छेद समरे सारथिं च न्यपातयत् ॥ १५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अभिमन्युने महान् धनुर्धर बृहद्‌बलके साथ युद्ध किया। प्रजानाथ! कोसलनरेश बृहद्‌बलने उस युद्धमें अभिमन्युके ध्वजको काट दिया और सारथिको मार गिराया॥१४-१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सौभद्रस्तु ततः क्रुद्धः पातिते रथसारथौ।
बृहद्‌बलं महाराज विव्याध नवभिः शरैः ॥ १६ ॥

मूलम्

सौभद्रस्तु ततः क्रुद्धः पातिते रथसारथौ।
बृहद्‌बलं महाराज विव्याध नवभिः शरैः ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! अपने रथके सारथिके मारे जानेपर सुभद्राकुमार अभिमन्यु कुपित हो उठे और उन्होंने बृहद्‌बलको नौ बाणोंसे घायल कर दिया॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथापराभ्यां भल्लाभ्यां शिताभ्यामरिमर्दनः ।
ध्वजमेकेन चिच्छेद पार्ष्णिमेकेन सारथिम् ॥ १७ ॥
अन्योन्यं च शरैः क्रुद्धौ ततक्षाते परस्परम्।

मूलम्

अथापराभ्यां भल्लाभ्यां शिताभ्यामरिमर्दनः ।
ध्वजमेकेन चिच्छेद पार्ष्णिमेकेन सारथिम् ॥ १७ ॥
अन्योन्यं च शरैः क्रुद्धौ ततक्षाते परस्परम्।

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् शत्रुमर्दन अभिमन्युने अन्य दो तीखे बाणोंसे बृहद्‌बलके ध्वजको काट डाला, फिर एक बाणसे उनके पृष्ठरक्षकको और दूसरेसे सारथिको मार डाला। फिर वे दोनों अत्यन्त कुपित हो तीखे सायकोंद्वारा एक-दूसरेको बेधने लगे॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मानिनं समरे दृप्तं कृतवैरं महारथम् ॥ १८ ॥
भीमसेनस्तव सुतं दुर्योधनमयोधयत् ।

मूलम्

मानिनं समरे दृप्तं कृतवैरं महारथम् ॥ १८ ॥
भीमसेनस्तव सुतं दुर्योधनमयोधयत् ।

अनुवाद (हिन्दी)

युद्धमें अभिमान प्रकट करनेवाले, घमंडी और पहलेके वैरी आपके महारथी पुत्र दुर्योधनसे भीमसेन युद्ध करने लगे॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावुभौ नरशार्दूलौ कुरुमुख्यौ महाबलौ ॥ १९ ॥
अन्योन्यं शरवर्षाभ्यां ववृषाते रणाजिरे।

मूलम्

तावुभौ नरशार्दूलौ कुरुमुख्यौ महाबलौ ॥ १९ ॥
अन्योन्यं शरवर्षाभ्यां ववृषाते रणाजिरे।

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों नरश्रेष्ठ महाबली वीर कुरुकुलके प्रधान व्यक्ति थे। उन्होंने समरांगणमें एक-दूसरेपर बाणोंकी वर्षा आरम्भ कर दी॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ वीक्ष्य तु महात्मानौ कृतिनौ चित्रयोधिनौ ॥ २० ॥
विस्मयः सर्वभूतानां समपद्यत भारत।

मूलम्

तौ वीक्ष्य तु महात्मानौ कृतिनौ चित्रयोधिनौ ॥ २० ॥
विस्मयः सर्वभूतानां समपद्यत भारत।

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! वे दोनों महामनस्वी अस्त्रविद्याके विद्वान् तथा विचित्र प्रकारसे युद्ध करनेवाले थे। उन्हें देखकर समस्त प्राणियोंको बड़ा विस्मय हुआ॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुःशासनस्तु नकुलं प्रत्युद्याय महाबलम् ॥ २१ ॥
अविध्यन्निशितैर्बाणैर्बहुभिर्मर्मभेदिभिः ।

मूलम्

दुःशासनस्तु नकुलं प्रत्युद्याय महाबलम् ॥ २१ ॥
अविध्यन्निशितैर्बाणैर्बहुभिर्मर्मभेदिभिः ।

अनुवाद (हिन्दी)

दुःशासनने आगे बढ़कर मर्मस्थानोंको विदीर्ण करनेवाले अपने बहुसंख्यक तीखे बाणोंद्वारा महाबली नकुलको घायल कर दिया॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य माद्रीसुतः केतुं सशरं च शरासनम् ॥ २२ ॥
चिच्छेद निशितैर्बाणैः प्रहसन्निव भारत।
अथैनं पञ्चविंशत्या क्षुद्रकाणां समार्पयत् ॥ २३ ॥

मूलम्

तस्य माद्रीसुतः केतुं सशरं च शरासनम् ॥ २२ ॥
चिच्छेद निशितैर्बाणैः प्रहसन्निव भारत।
अथैनं पञ्चविंशत्या क्षुद्रकाणां समार्पयत् ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! तब माद्रीकुमार नकुलने भी हँसते हुए-से तीखे बाण मारकर दुःशासनके धनुष-बाण और ध्वजको काट गिराया और पचीस बाण मारकर उसे घायल कर दिया॥२२-२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुत्रस्तु तव दुर्धर्षो नकुलस्य महाहवे।
तुरङ्गांश्चिच्छिदे बाणैर्ध्वजं चैवाभ्यपातयत् ॥ २४ ॥

मूलम्

पुत्रस्तु तव दुर्धर्षो नकुलस्य महाहवे।
तुरङ्गांश्चिच्छिदे बाणैर्ध्वजं चैवाभ्यपातयत् ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके बाद आपके दुर्धर्ष पुत्रने उस महायुद्धमें नकुलके घोड़ोंको अपने सायकोंद्वारा काट डाला और ध्वजको भी नीचे गिरा दिया॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुर्मुखः सहदेवं च प्रत्युद्याय महाबलम्।
विव्याध शरवर्षेण यतमानं महाहवे ॥ २५ ॥

मूलम्

दुर्मुखः सहदेवं च प्रत्युद्याय महाबलम्।
विव्याध शरवर्षेण यतमानं महाहवे ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाबली सहदेव उस महासमरमें अपनी विजय-के लिये बड़ा प्रयत्न कर रहे थे। उन्हें आपके पुत्र दुर्मुखने धावा करके अपने बाणोंकी वर्षासे घायल कर दिया॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहदेवस्ततो वीरो दुर्मुखस्य महारणे।
शरेण भृशतीक्ष्णेन पातयामास सारथिम् ॥ २६ ॥

मूलम्

सहदेवस्ततो वीरो दुर्मुखस्य महारणे।
शरेण भृशतीक्ष्णेन पातयामास सारथिम् ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब वीरवर सहदेवने उस महायुद्धमें अत्यन्त तीखे बाणसे दुर्मुखके सारथिको मार गिराया॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावन्योन्यं समासाद्य समरे युद्धदुर्मदौ।
त्रासयेतां शरैर्घोरैः कृतप्रतिकृतैषिणौ ॥ २७ ॥

मूलम्

तावन्योन्यं समासाद्य समरे युद्धदुर्मदौ।
त्रासयेतां शरैर्घोरैः कृतप्रतिकृतैषिणौ ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों युद्धदुर्मद वीर समरांगणमें एक-दूसरेसे टक्कर लेकर पूर्वकृत अपराधोंका बदला लेनेकी इच्छा रखते हुए भयंकर बाणोंद्वारा एक-दूसरेको भयभीत करने लगे॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

युधिष्ठिरः स्वयं राजा मद्रराजानमभ्ययात्।
तस्य मद्राधिपश्चापं द्विधा चिच्छेद मारिष ॥ २८ ॥

मूलम्

युधिष्ठिरः स्वयं राजा मद्रराजानमभ्ययात्।
तस्य मद्राधिपश्चापं द्विधा चिच्छेद मारिष ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

स्वयं राजा युधिष्ठिरने मद्रराज शल्यपर आक्रमण किया। राजन्! मद्रराजने युधिष्ठिरके धनुषके दो टुकड़े कर दिये॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदपास्य धनुश्च्छिन्नं कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
अन्यत् कार्मुकमादाय वेगवद् बलवत्तरम् ॥ २९ ॥
ततो मद्रेश्वरं राजा शरैः संनतपर्वभिः।
छादयामास संक्रुद्धस्तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ ३० ॥

मूलम्

तदपास्य धनुश्च्छिन्नं कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
अन्यत् कार्मुकमादाय वेगवद् बलवत्तरम् ॥ २९ ॥
ततो मद्रेश्वरं राजा शरैः संनतपर्वभिः।
छादयामास संक्रुद्धस्तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ ३० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब कुन्तीपुत्र युधिष्ठिरने उस कटे हुए धनुषको फेंककर दूसरा वेगयुक्त एवं प्रबलतर धनुष ले लिया और झुकी हुई गाँठवाले तीखे बाणोंद्वारा मद्रराज शल्यको ढक दिया। फिर क्रोधमें भरकर कहा—‘खड़े रहो, खड़े रहो’॥२९-३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नस्ततो द्रोणमभ्यद्रवत भारत ।
तस्य द्रोणः सुसंक्रुद्धः परासुकरणं दृढम् ॥ ३१ ॥
त्रिधा चिच्छेद समरे पाञ्चाल्यस्य तु कार्मुकम्।

मूलम्

धृष्टद्युम्नस्ततो द्रोणमभ्यद्रवत भारत ।
तस्य द्रोणः सुसंक्रुद्धः परासुकरणं दृढम् ॥ ३१ ॥
त्रिधा चिच्छेद समरे पाञ्चाल्यस्य तु कार्मुकम्।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! एक ओरसे धृष्टद्युम्नने द्रोणाचार्यपर आक्रमण किया। तब द्रोणने अत्यन्त क्रुद्ध होकर युद्धमें दूसरोंके मारनेके साधनभूत धृष्टद्युम्नके सुदृढ़ धनुषके तीन टुकड़े कर डाले॥३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शरं चैव महाघोरं कालदण्डमिवापरम् ॥ ३२ ॥
प्रेषयामास समरे सोऽस्य काये न्यमज्जत।

मूलम्

शरं चैव महाघोरं कालदण्डमिवापरम् ॥ ३२ ॥
प्रेषयामास समरे सोऽस्य काये न्यमज्जत।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर उस रणक्षेत्रमें उन्होंने द्वितीय कालदण्डके समान अत्यन्त भयंकर बाण चलाया। वह बाण धृष्टद्युम्नके शरीरमें धँस गया॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अथान्यद् धनुरादाय सायकांश्च चतुर्दश ॥ ३३ ॥
द्रोणं द्रुपदपुत्रस्तु प्रतिविव्याध संयुगे।
तावन्योन्यं सुसंक्रुद्धौ चक्रतुः सुभृशं रणम् ॥ ३४ ॥

मूलम्

अथान्यद् धनुरादाय सायकांश्च चतुर्दश ॥ ३३ ॥
द्रोणं द्रुपदपुत्रस्तु प्रतिविव्याध संयुगे।
तावन्योन्यं सुसंक्रुद्धौ चक्रतुः सुभृशं रणम् ॥ ३४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्नने दूसरा धनुष लेकर चौदह सायक चलाये और उस युद्धभूमिमें द्रोणाचार्यको घायल कर दिया। फिर तो वे दोनों एक-दूसरेपर अत्यन्त कुपित हो भीषण संग्राम करने लगे॥३३-३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सौमदत्तिं रणे शङ्खो रभसं रभसो युधि।
प्रत्युद्ययौ महाराज तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ ३५ ॥

मूलम्

सौमदत्तिं रणे शङ्खो रभसं रभसो युधि।
प्रत्युद्ययौ महाराज तिष्ठ तिष्ठेति चाब्रवीत् ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! वेगशाली शंखने उस युद्धमें वेगवान् वीर भूरिश्रवापर धावा किया और कहा—‘खड़े रहो, खड़े रहो’॥३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य वै दक्षिणं वीरो निर्बिभेद रणे भुजम्।
सौमदत्तिस्तथा शङ्खं जत्रुदेशे समाहनत् ॥ ३६ ॥

मूलम्

तस्य वै दक्षिणं वीरो निर्बिभेद रणे भुजम्।
सौमदत्तिस्तथा शङ्खं जत्रुदेशे समाहनत् ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वीर शंखने रणभूमिमें भूरिश्रवाकी दाहिनी भुजा विदीर्ण कर डाली; फिर भूरिश्रवाने भी शंखके गलेकी हँसलीपर बाण मारा॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तयोस्तदभवद् युद्धं घोररूपं विशाम्पते।
दृप्तयोः समरे पूर्वं वृत्रवासवयोरिव ॥ ३७ ॥

मूलम्

तयोस्तदभवद् युद्धं घोररूपं विशाम्पते।
दृप्तयोः समरे पूर्वं वृत्रवासवयोरिव ॥ ३७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! उस समरभूमिमें इन्द्र और वृत्रासुरकी भाँति उन दोनों अभिमानी वीरोंमें बड़ा भयंकर युद्ध हुआ॥३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बाह्लीकं तु रणे क्रुद्धं क्रुद्धरूपो विशाम्पते।
अभ्यद्रवदमेयात्मा धृष्टकेतुर्महारथः ॥ ३८ ॥

मूलम्

बाह्लीकं तु रणे क्रुद्धं क्रुद्धरूपो विशाम्पते।
अभ्यद्रवदमेयात्मा धृष्टकेतुर्महारथः ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! रणक्षेत्रमें कुपित हुए बाह्लीकपर अपरिमित आत्मबलसे सम्पन्न महारथी धृष्टकेतुने क्रोधपूर्वक आक्रमण किया॥३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बाह्लीकस्तु रणे राजन् धृष्टकेतुममर्षणः।
शरैर्बहुभिरानर्च्छत् सिंहनादमथानदत् ॥ ३९ ॥

मूलम्

बाह्लीकस्तु रणे राजन् धृष्टकेतुममर्षणः।
शरैर्बहुभिरानर्च्छत् सिंहनादमथानदत् ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! अमर्षशील बाह्लीकने समरांगणमें बहुत-से बाणोंद्वारा धृष्टकेतुको पीड़ा दी और सिंहके समान गर्जना की॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चेदिराजस्तु संक्रुद्धो बाह्लीकं नवभिः शरैः।
विव्याध समरे तूर्णं मत्तो मत्तमिव द्विपम् ॥ ४० ॥

मूलम्

चेदिराजस्तु संक्रुद्धो बाह्लीकं नवभिः शरैः।
विव्याध समरे तूर्णं मत्तो मत्तमिव द्विपम् ॥ ४० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब चेदिराज धृष्टकेतुने अत्यन्त क्रुद्ध होकर जैसे मतवाला हाथी किसी मदोन्मत्त गजराजपर हमला करता है, उसी प्रकार तुरंत ही नौ बाण मारकर उस युद्धभूमिमें बाह्लीकको क्षत-विक्षत कर दिया॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तौ तत्र समरे क्रुद्धौ नर्दन्तौ च पुनः पुनः।
समीयतुः सुसंक्रुद्धावङ्गारकबुधाविव ॥ ४१ ॥

मूलम्

तौ तत्र समरे क्रुद्धौ नर्दन्तौ च पुनः पुनः।
समीयतुः सुसंक्रुद्धावङ्गारकबुधाविव ॥ ४१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस रणभूमिमें वे दोनों वीर परस्पर कुपित हो रोषमें भरे हुए मंगल और बुधकी भाँति बारंबार गर्जते हुए युद्ध कर रहे थे॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

राक्षसं रौद्रकर्माणं क्रूरकर्मा घटोत्कचः।
अलम्बुषं प्रत्युदियाद् बलं शक्र इवाहवे ॥ ४२ ॥

मूलम्

राक्षसं रौद्रकर्माणं क्रूरकर्मा घटोत्कचः।
अलम्बुषं प्रत्युदियाद् बलं शक्र इवाहवे ॥ ४२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे इन्द्रने युद्धमें बल नामक दैत्यपर चढ़ाई की थी, उसी प्रकार क्रूरकर्मा घटोत्कचने भयंकर कर्म करनेवाले अलम्बुष नामक राक्षसपर आक्रमण किया॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

घटोत्कचस्ततः क्रुद्धो राक्षसं तं महाबलम्।
नवत्या सायकैस्तीक्ष्णैर्दारयामास भारत ॥ ४३ ॥

मूलम्

घटोत्कचस्ततः क्रुद्धो राक्षसं तं महाबलम्।
नवत्या सायकैस्तीक्ष्णैर्दारयामास भारत ॥ ४३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! क्रोधमें भरे हुए घटोत्कचने नब्बे तीखे बाणोंद्वारा उस महाबली राक्षस अलम्बुषको विदीर्ण कर दिया॥४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अलम्बुषस्तु समरे भैमसेनिं महाबलम्।
बहुधा दारयामास शरैः संनतपर्वभिः ॥ ४४ ॥

मूलम्

अलम्बुषस्तु समरे भैमसेनिं महाबलम्।
बहुधा दारयामास शरैः संनतपर्वभिः ॥ ४४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब अलम्बुषने भी महाबली भीमसेनपुत्र घटोत्कचको झुकी हुई गाँठवाले बाणोंद्वारा समरांगणमें बहुत प्रकारसे घायल कर दिया॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्यभ्राजेतां ततस्तौ तु संयुगे शरविक्षतौ।
यथा देवासुरे युद्धे बलशक्रौ महाबलौ ॥ ४५ ॥

मूलम्

व्यभ्राजेतां ततस्तौ तु संयुगे शरविक्षतौ।
यथा देवासुरे युद्धे बलशक्रौ महाबलौ ॥ ४५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे देवासुर-संग्राममें महाबली बलासुर और इन्द्र घायल हो गये थे, उसी प्रकार इस युद्धमें एक-दूसरेके बाणोंसे क्षत-विक्षत हो अलम्बुष और घटोत्कच अद्भुत शोभा धारण कर रहे थे॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिखण्डी समरे राजन् द्रौणिमभ्युद्ययौ बली।
अश्वत्थामा ततः क्रुद्धः शिखण्डिनमुपस्थितम् ॥ ४६ ॥
नाराचेन सुतीक्ष्णेन भृशं विद्‌ध्वा ह्यकम्पयत्।
शिखण्ड्यपि ततो राजन् द्रोणपुत्रमताडयत् ॥ ४७ ॥
सायकेन सुपीतेन तीक्ष्णेन निशितेन च।
तौ जघ्नतुस्तदान्योन्यं शरैर्बहुविधैर्मृधे ॥ ४८ ॥

मूलम्

शिखण्डी समरे राजन् द्रौणिमभ्युद्ययौ बली।
अश्वत्थामा ततः क्रुद्धः शिखण्डिनमुपस्थितम् ॥ ४६ ॥
नाराचेन सुतीक्ष्णेन भृशं विद्‌ध्वा ह्यकम्पयत्।
शिखण्ड्यपि ततो राजन् द्रोणपुत्रमताडयत् ॥ ४७ ॥
सायकेन सुपीतेन तीक्ष्णेन निशितेन च।
तौ जघ्नतुस्तदान्योन्यं शरैर्बहुविधैर्मृधे ॥ ४८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! बलवान् शिखण्डीने रणक्षेत्रमें द्रोणपुत्र अश्वत्थामापर धावा किया। तब अश्वत्थामाने कुपित हो एक तीखे नाराचके द्वारा निकट आये हुए शिखण्डीको अत्यन्त घायल करके कम्पित कर दिया। महाराज! तब शिखण्डीने भी पीले रंगके तेज धारवाले तीखे सायकसे द्रोणपुत्र अश्वत्थामाको गहरी चोट पहुँचायी; तदनन्तर वे दोनों अनेक प्रकारके बाणोंद्वारा एक-दूसरेपर प्रहार करने लगे॥४६—४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भगदत्तं रणे शूरं विराटो वाहिनीपतिः।
अभ्ययात् त्वरितो राजंस्ततो युद्धमवर्तत ॥ ४९ ॥

मूलम्

भगदत्तं रणे शूरं विराटो वाहिनीपतिः।
अभ्ययात् त्वरितो राजंस्ततो युद्धमवर्तत ॥ ४९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! संग्रामशूर भगदत्तपर सेनापति विराटने बड़ी उतावलीके साथ आक्रमण किया। फिर तो उन दोनोंमें युद्ध होने लगा॥४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विराटो भगदत्तं तु शरवर्षेण भारत।
अभ्यवर्षत् सुसंक्रुद्धो मेघो वृष्ट्या इवाचलम् ॥ ५० ॥

मूलम्

विराटो भगदत्तं तु शरवर्षेण भारत।
अभ्यवर्षत् सुसंक्रुद्धो मेघो वृष्ट्या इवाचलम् ॥ ५० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! विराटने अत्यन्त कुपित होकर भगदत्तपर अपने बाणोंकी वर्षा आरम्भ कर दी, मानो मेघ पर्वतपर जलकी बूँदें बरसा रहा हो॥५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भगदत्तस्ततस्तूर्णं विराटं पृथिवीपतिम् ।
छादयामास समरे मेघः सूर्यमिवोदितम् ॥ ५१ ॥

मूलम्

भगदत्तस्ततस्तूर्णं विराटं पृथिवीपतिम् ।
छादयामास समरे मेघः सूर्यमिवोदितम् ॥ ५१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब जैसे बादल उगे हुए सूर्यको ढक लेता है, उसी प्रकार भगदत्तने समरभूमिमें बाणोंकी वर्षाद्वारा पृथ्वीपति विराटको आच्छादित कर दिया॥५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बृहत्क्षत्रं तु कैकेयं कृपः शारद्वतो ययौ।
तं कृपः शरवर्षेण छादयामास भारत ॥ ५२ ॥
गौतमं कैकयः क्रुद्धः शरवृष्ट्याभ्यपूरयत्।

मूलम्

बृहत्क्षत्रं तु कैकेयं कृपः शारद्वतो ययौ।
तं कृपः शरवर्षेण छादयामास भारत ॥ ५२ ॥
गौतमं कैकयः क्रुद्धः शरवृष्ट्याभ्यपूरयत्।

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! केकयराज बृहत्क्षत्रपर शरद्वान्‌के पुत्र कृपाचार्यने आक्रमण किया और अपने बाणोंकी वर्षाद्वारा उन्हें ढक दिया। तब केकयराजने भी क्रुद्ध होकर अपने सायकोंकी वर्षासे कृपाचार्यको आच्छादित कर दिया॥५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तावन्योन्यं हयान् हत्वा धनुश्छित्त्वा च भारत ॥ ५३ ॥
विरथावसियुद्धाय समीयतुरमर्षणौ ।
तयोस्तदभवद् युद्धं घोररूपं सुदारुणम् ॥ ५४ ॥

मूलम्

तावन्योन्यं हयान् हत्वा धनुश्छित्त्वा च भारत ॥ ५३ ॥
विरथावसियुद्धाय समीयतुरमर्षणौ ।
तयोस्तदभवद् युद्धं घोररूपं सुदारुणम् ॥ ५४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! वे दोनों वीर एक-दूसरेके घोड़ोंको मार धनुषके टुकड़े करके रथहीन हो अमर्षमें भरकर खड्‌गद्वारा युद्ध करनेके लिये आमने-सामने खड़े हुए। फिर तो उन दोनोंमें अत्यन्त भयंकर एवं दारुण युद्ध होने लगा॥५३-५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्रुपदस्तु ततो राजन् सैन्धवं वै जयद्रथम्।
अभ्युद्ययौ हृष्टरूपो हृष्टरूपं परंतपः ॥ ५५ ॥

मूलम्

द्रुपदस्तु ततो राजन् सैन्धवं वै जयद्रथम्।
अभ्युद्ययौ हृष्टरूपो हृष्टरूपं परंतपः ॥ ५५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! दूसरी ओर शत्रुओंको संताप देनेवाले द्रुपदने बड़े हर्षके साथ सिन्धुराज जयद्रथपर धावा किया। जयद्रथ भी बहुत प्रसन्न था॥५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सैन्धवको राजा द्रुपदं विशिखैस्त्रिभिः।
ताडयामास समरे स च तं प्रत्यविध्यत ॥ ५६ ॥

मूलम्

ततः सैन्धवको राजा द्रुपदं विशिखैस्त्रिभिः।
ताडयामास समरे स च तं प्रत्यविध्यत ॥ ५६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तत्पश्चात् सिन्धुराज जयद्रथने समरांगणमें तीन बाणोंद्वारा द्रुपदको गहरी चोट पहुँचायी। द्रुपदने भी बदलेमें उसे बींध डाला॥५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तयोस्तदभवद् युद्धं घोररूपं सुदारुणम्।
ईक्षणप्रीतिजननं शुक्राङ्गारकयोरिव ॥ ५७ ॥

मूलम्

तयोस्तदभवद् युद्धं घोररूपं सुदारुणम्।
ईक्षणप्रीतिजननं शुक्राङ्गारकयोरिव ॥ ५७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उन दोनोंका वह घोर एवं अत्यन्त भयंकर युद्ध शुक्र और मंगलके संघर्षकी भाँति नेत्रोंके लिये हर्ष उत्पन्न करनेवाला था॥५७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विकर्णस्तु सुतस्तुभ्यं सुतसोमं महाबलम्।
अभ्ययाज्जवनैरश्वैस्ततो युद्धमवर्तत ॥ ५८ ॥

मूलम्

विकर्णस्तु सुतस्तुभ्यं सुतसोमं महाबलम्।
अभ्ययाज्जवनैरश्वैस्ततो युद्धमवर्तत ॥ ५८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपके पुत्र विकर्णने तेज चलनेवाले घोड़ोंद्वारा महाबली सुतसोमपर धावा किया। तत्पश्चात् उनमें भारी युद्ध होने लगा॥५८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विकर्णः सुतसोमं तु विद्‌ध्वा नाकम्पयच्छरैः।
सुतसोमो विकर्णं च तदद्भुतमिवाभवत् ॥ ५९ ॥

मूलम्

विकर्णः सुतसोमं तु विद्‌ध्वा नाकम्पयच्छरैः।
सुतसोमो विकर्णं च तदद्भुतमिवाभवत् ॥ ५९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

विकर्ण अपने बाणोंसे सुतसोमको घायल करके भी उन्हें कम्पित न कर सका। इसी प्रकार सुतसोम भी विकर्णको विचलित न कर सके। उन दोनोंका यह पराक्रम अद्भुत-सा प्रतीत हुआ॥५९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुशर्माणं नरव्याघ्रश्चेकितानो महारथः ।
अभ्यद्रवत् सुसंक्रुद्धः पाण्डवार्थे पराक्रमी ॥ ६० ॥

मूलम्

सुशर्माणं नरव्याघ्रश्चेकितानो महारथः ।
अभ्यद्रवत् सुसंक्रुद्धः पाण्डवार्थे पराक्रमी ॥ ६० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरश्रेष्ठ पराक्रमी महारथी चेकितानने पाण्डवोंके लिये अत्यन्त कुपित होकर सुशर्मापर धावा किया॥६०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुशर्मा तु महाराज चेकितानं महारथम्।
महता शरवर्षेण वारयामास संयुगे ॥ ६१ ॥

मूलम्

सुशर्मा तु महाराज चेकितानं महारथम्।
महता शरवर्षेण वारयामास संयुगे ॥ ६१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! सुशर्माने भारी बाण-वर्षाके द्वारा महारथी चेकितानको युद्धमें आगे बढ़नेसे रोक दिया॥६१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चेकितानोऽपि संरब्धः सुशर्माणं महाहवे।
प्राच्छादयत् तमिषुभिर्महामेघ इवाचलम् ॥ ६२ ॥

मूलम्

चेकितानोऽपि संरब्धः सुशर्माणं महाहवे।
प्राच्छादयत् तमिषुभिर्महामेघ इवाचलम् ॥ ६२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब चेकितानने भी रोषमें भरकर उस महायुद्धमें अपने बाणोंकी वर्षासे सुशर्माको उसी प्रकार ढक दिया, जैसे महामेघ जलकी वर्षासे पर्वतको आच्छादित कर देता है॥६२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शकुनिः प्रतिविन्ध्यं तु पराक्रान्तं पराक्रमी।
अभ्यद्रवत राजेन्द्र मत्तः सिंह इव द्विपम् ॥ ६३ ॥

मूलम्

शकुनिः प्रतिविन्ध्यं तु पराक्रान्तं पराक्रमी।
अभ्यद्रवत राजेन्द्र मत्तः सिंह इव द्विपम् ॥ ६३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! पराक्रमी शकुनि पराक्रमसम्पन्न प्रतिविन्ध्यपर चढ़ आया, ठीक उसी तरह जैसे मतवाला सिंह किसी हाथीपर आक्रमण करता है॥६३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यौधिष्ठिरस्तु संक्रुद्धः सौबलं निशितैः शरैः।
व्यदारयत संग्रामे मघवानिव दानवम् ॥ ६४ ॥

मूलम्

यौधिष्ठिरस्तु संक्रुद्धः सौबलं निशितैः शरैः।
व्यदारयत संग्रामे मघवानिव दानवम् ॥ ६४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिस प्रकार इन्द्र संग्रामभूमिमें किसी दानवको विदीर्ण करते हैं, उसी प्रकार युधिष्ठिरके पुत्र प्रतिविन्ध्यने अत्यन्त कुपित होकर सुबलपुत्र शकुनिको अपने तीखे बाणोंसे बेध डाला॥६४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शकुनिः प्रतिविन्ध्यं तु प्रतिविध्यन्तमाहवे।
व्यदारयन्महाप्राज्ञः शरैः संनतपर्वभिः ॥ ६५ ॥

मूलम्

शकुनिः प्रतिविन्ध्यं तु प्रतिविध्यन्तमाहवे।
व्यदारयन्महाप्राज्ञः शरैः संनतपर्वभिः ॥ ६५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

युद्धमें अपनेको बेधनेवाले प्रतिविन्ध्यको भी परम बुद्धिमान् शकुनिने झुके हुए गाँठवाले बाणोंसे घायल कर दिया॥६५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुदक्षिणं तु राजेन्द्र काम्बोजानां महारथम्।
श्रुतकर्मा पराक्रान्तमभ्यद्रवत संयुगे ॥ ६६ ॥

मूलम्

सुदक्षिणं तु राजेन्द्र काम्बोजानां महारथम्।
श्रुतकर्मा पराक्रान्तमभ्यद्रवत संयुगे ॥ ६६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! काम्बोजदेशके राजा पराक्रमी महारथी सुदक्षिणपर रणभूमिमें श्रुतकर्माने आक्रमण किया॥६६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुदक्षिणस्तु समरे साहदेविं महारथम्।
विद्‌ध्वा नाकम्पयत वै मैनाकमिव पर्वतम् ॥ ६७ ॥

मूलम्

सुदक्षिणस्तु समरे साहदेविं महारथम्।
विद्‌ध्वा नाकम्पयत वै मैनाकमिव पर्वतम् ॥ ६७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब सुदक्षिणने समरांगणमें सहदेवपुत्र महारथी श्रुतकर्माको क्षत-विक्षत कर दिया; तो भी वह उन्हें कम्पित न कर सका। वे मैनाक पर्वतकी भाँति अविचल भावसे खड़े रहे॥६७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रुतकर्मा ततः क्रुद्धः काम्बोजानां महारथम्।
शरैर्बहुभिरानर्च्छद् दारयन्निव सर्वशः ॥ ६८ ॥

मूलम्

श्रुतकर्मा ततः क्रुद्धः काम्बोजानां महारथम्।
शरैर्बहुभिरानर्च्छद् दारयन्निव सर्वशः ॥ ६८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर श्रुतकर्माने कुपित होकर महारथी काम्बोजराजको सब ओरसे विदीर्ण-सा करते हुए अपने बहुसंख्यक बाणोंद्वारा भलीभाँति पीड़ित किया॥६८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इरावानथ संक्रुद्धः श्रुतायुषमरिंदमम् ।
प्रत्युद्ययौ रणे यत्तो यत्तरूपं परंतपः ॥ ६९ ॥

मूलम्

इरावानथ संक्रुद्धः श्रुतायुषमरिंदमम् ।
प्रत्युद्ययौ रणे यत्तो यत्तरूपं परंतपः ॥ ६९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दूसरी ओर शत्रुओंको संताप देनेवाले यत्नशील इरावान्‌ने युद्धमें कुपित होकर शत्रुदमन श्रुतायुषपर धावा किया। श्रुतायुष भी प्रयत्नपूर्वक उनका सामना कर रहा था॥६९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आर्जुनिस्तस्य समरे हयान् हत्वा महारथः।
ननाद बलवन्नादं तत् सैन्यं प्रत्यपूरयत् ॥ ७० ॥

मूलम्

आर्जुनिस्तस्य समरे हयान् हत्वा महारथः।
ननाद बलवन्नादं तत् सैन्यं प्रत्यपूरयत् ॥ ७० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अर्जुनके उस महारथी पुत्र इरावान्‌ने रणक्षेत्रमें श्रुतायुषके घोड़ोंको मारकर बड़े जोरसे गर्जना की और उसकी सेनाको बाणोंसे आच्छादित कर दिया॥७०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रुतायुस्तु ततः क्रुद्धः फाल्गुनेः समरे हयान्।
निजघान गदाग्रेण ततो युद्धमवर्तत ॥ ७१ ॥

मूलम्

श्रुतायुस्तु ततः क्रुद्धः फाल्गुनेः समरे हयान्।
निजघान गदाग्रेण ततो युद्धमवर्तत ॥ ७१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यह देख श्रुतायुषने भी रुष्ट होकर रणभूमिमें अर्जुनपुत्र इरावान्‌के घोड़ोंको अपनी गदाकी चोटसे मार डाला। तत्पश्चात् उन दोनोंमें खूब जमकर युद्ध होने लगा॥७१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विन्दानुविन्दावावन्त्यौ कुन्तिभोजं महारथम् ।
ससेनं ससुतं वीरं संससज्जतुराहवे ॥ ७२ ॥

मूलम्

विन्दानुविन्दावावन्त्यौ कुन्तिभोजं महारथम् ।
ससेनं ससुतं वीरं संससज्जतुराहवे ॥ ७२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अवन्तिदेशके राजकुमार विन्द और अनुविन्दने सेना और पुत्रसहित वीर महारथी कुन्तिभोजके साथ युद्ध आरम्भ किया॥७२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्राद्भुतमपश्याम तयोर्घोरं पराक्रमम् ।
अयुध्येतां स्थिरौ भूत्वा महत्या सेनया सह ॥ ७३ ॥

मूलम्

तत्राद्भुतमपश्याम तयोर्घोरं पराक्रमम् ।
अयुध्येतां स्थिरौ भूत्वा महत्या सेनया सह ॥ ७३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ मैंने उन दोनोंका अद्‌भुत और भयंकर पराक्रम देखा। वे दोनों ही अपनी विशाल वाहिनीके साथ स्थिरतापूर्वक खड़े होकर एक-दूसरेका सामना कर रहे थे॥७३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनुविन्दस्तु गदया कुन्तिभोजमताडयत् ।
कुन्तिभोजश्च तं तूर्णं शरव्रातैरवाकिरत् ॥ ७४ ॥

मूलम्

अनुविन्दस्तु गदया कुन्तिभोजमताडयत् ।
कुन्तिभोजश्च तं तूर्णं शरव्रातैरवाकिरत् ॥ ७४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अनुविन्दने कुन्तिभोजपर गदासे आघात किया। तब कुन्तिभोजने भी तुरंत ही अपने बाणसमूहोंद्वारा उसे आच्छादित कर दिया॥७४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुन्तिभोजसुतश्चापि विन्दं विव्याध सायकैः।
स च तं प्रतिविव्याध तदद्भुतमिवाभवत् ॥ ७५ ॥

मूलम्

कुन्तिभोजसुतश्चापि विन्दं विव्याध सायकैः।
स च तं प्रतिविव्याध तदद्भुतमिवाभवत् ॥ ७५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

साथ ही कुन्तिभोजके पुत्रने विन्दको भी अपने सायकोंसे घायल कर दिया। विन्दने भी बदलेमें कुन्तिभोजपुत्रको क्षत-विक्षत कर दिया। वह अद्भुत-सी घटना हुई॥७५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

केकया भ्रातरः पञ्च गान्धारान् पञ्च मारिष।
ससैन्यास्ते ससैन्यांश्च योधयामासुराहवे ॥ ७६ ॥

मूलम्

केकया भ्रातरः पञ्च गान्धारान् पञ्च मारिष।
ससैन्यास्ते ससैन्यांश्च योधयामासुराहवे ॥ ७६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! पाँच भाई केकयराजकुमारोंने सेनासहित आकर युद्धमें अपनी विशाल वाहिनीके साथ खड़े हुए गान्धारदेशीय पाँच वीरोंके साथ युद्ध आरम्भ किया॥७६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वीरबाहुश्च ते पुत्रो वैराटिं रथसत्तमम्।
उत्तरं योधयामास विव्याध निशितैः शरैः ॥ ७७ ॥
उत्तरश्चापि तं वीरं विव्याध निशितैः शरैः।

मूलम्

वीरबाहुश्च ते पुत्रो वैराटिं रथसत्तमम्।
उत्तरं योधयामास विव्याध निशितैः शरैः ॥ ७७ ॥
उत्तरश्चापि तं वीरं विव्याध निशितैः शरैः।

अनुवाद (हिन्दी)

आपके पुत्र वीरबाहुने विराटके पुत्र श्रेष्ठ रथी उत्तरके साथ युद्ध किया और उसे तीखे बाणोंद्वारा घायल कर दिया। उत्तरने भी वीरबाहुको अपने तीक्ष्ण सायकोंका लक्ष्य बनाकर बेध डाला॥७७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चेदिराट् समरे राजन्नुलूकं समभिद्रवत् ॥ ७८ ॥
तथैव शरवर्षेण उलूकं समविद्ध्यत।
उलूकश्चापि तं बाणैर्निशितैर्लोमवाहिभिः ॥ ७९ ॥

मूलम्

चेदिराट् समरे राजन्नुलूकं समभिद्रवत् ॥ ७८ ॥
तथैव शरवर्षेण उलूकं समविद्ध्यत।
उलूकश्चापि तं बाणैर्निशितैर्लोमवाहिभिः ॥ ७९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! चेदिराजने समरांगणमें उलूकपर धावा किया और उसे अपने बाणोंकी वर्षासे बींध डाला। वैसे ही उलूकने भी पंखयुक्त तीखे बाणोंद्वारा चेदिराजको गहरी चोट पहुँचायी॥७८-७९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तयोर्युद्धं समभवद् घोररूपं विशाम्पते।
दारयेतां सुसंक्रुद्धावन्योन्यमपराजितौ ॥ ८० ॥

मूलम्

तयोर्युद्धं समभवद् घोररूपं विशाम्पते।
दारयेतां सुसंक्रुद्धावन्योन्यमपराजितौ ॥ ८० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! फिर उन दोनोंमें बड़ा भयंकर युद्ध होने लगा। किसीसे पराजित न होनेवाले वे दोनों वीर अत्यन्त कुपित होकर एक दूसरेको विदीर्ण किये देते थे॥८०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं द्वन्द्वसहस्राणि रथवारणवाजिनाम् ।
पदातीनां च समरे तव तेषां च संकुले ॥ ८१ ॥

मूलम्

एवं द्वन्द्वसहस्राणि रथवारणवाजिनाम् ।
पदातीनां च समरे तव तेषां च संकुले ॥ ८१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार उस घमासान युद्धमें आपके और पाण्डवपक्षके रथ, हाथी, घोड़े और पैदल सैन्यके सहस्रों योद्धाओंमें द्वन्द्व-युद्ध चल रहा था॥८१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मुहूर्तमिव तद् युद्धमासीन्मधुरदर्शनम् ।
तत उन्मत्तवद् राजन् न प्राज्ञायत किंचन ॥ ८२ ॥

मूलम्

मुहूर्तमिव तद् युद्धमासीन्मधुरदर्शनम् ।
तत उन्मत्तवद् राजन् न प्राज्ञायत किंचन ॥ ८२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! दो घड़ीतक तो वह युद्ध देखनेमें बड़ा मनोरम प्रतीत हुआ; फिर उन्मत्तकी भाँति विकट युद्ध चलने लगा। उस समय किसीको कुछ सूझ नहीं पड़ता था॥८२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गजो गजेन समरे रथिनं च रथी ययौ।
अश्वोऽश्वं समभिप्रायात्‌ पदातिश्च पदातिनम् ॥ ८३ ॥

मूलम्

गजो गजेन समरे रथिनं च रथी ययौ।
अश्वोऽश्वं समभिप्रायात्‌ पदातिश्च पदातिनम् ॥ ८३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस समरभूमिमें हाथी हाथीके साथ भिड़ गया, रथीने रथीपर आक्रमण किया, घुड़सवार घुड़सवारपर चढ़ आया और पैदलने पैदलके साथ युद्ध किया॥८३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो युद्धं सुदुर्धर्षं व्याकुलं समपद्यत।
शूराणां समरे तत्र समासाद्येतरेतरम् ॥ ८४ ॥

मूलम्

ततो युद्धं सुदुर्धर्षं व्याकुलं समपद्यत।
शूराणां समरे तत्र समासाद्येतरेतरम् ॥ ८४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुछ ही देरमें उस रणक्षेत्रके भीतर शूरवीर सैनिकोंका एक-दूसरेसे भिड़कर अत्यन्त दुर्धर्ष एवं घमासान युद्ध होने लगा॥८४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्र देवर्षयः सिद्धाश्चारणाश्च समागताः।
प्रैक्षन्त तद् रणं घोरं देवासुरसमं भुवि ॥ ८५ ॥

मूलम्

तत्र देवर्षयः सिद्धाश्चारणाश्च समागताः।
प्रैक्षन्त तद् रणं घोरं देवासुरसमं भुवि ॥ ८५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वहाँ आये हुए देवर्षियों, सिद्धों तथा चारणोंने भूतलपर होनेवाले उस युद्धको देवासुर-संग्रामके समान भयंकर देखा॥८५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो दन्तिसहस्राणि रथानां चापि मारिष।
अश्वौघाः पुरुषौघाश्च विपरीतं समाययुः ॥ ८६ ॥

मूलम्

ततो दन्तिसहस्राणि रथानां चापि मारिष।
अश्वौघाः पुरुषौघाश्च विपरीतं समाययुः ॥ ८६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आर्य! तदनन्तर हजारों हाथी, रथ, घुड़सवार और पैदल सैनिक द्वन्द्व-युद्धके पूर्वोक्त क्रमका उल्लंघन करके सभी सबके साथ युद्ध करने लगे॥८६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्र तत्र प्रदृश्यन्ते रथवारणपत्तयः।
सादिनश्च नरव्याघ्र युध्यमाना मुहुर्मुहुः ॥ ८७ ॥

मूलम्

तत्र तत्र प्रदृश्यन्ते रथवारणपत्तयः।
सादिनश्च नरव्याघ्र युध्यमाना मुहुर्मुहुः ॥ ८७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरश्रेष्ठ! जहाँ-जहाँ दृष्टि जाती, वहीं रथ, हाथी, घुड़सवार और पैदल सैनिक बारंबार युद्ध करते दिखायी देते थे॥८७॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि भीष्मवधपर्वणि द्वन्द्वयुद्धे पञ्चचत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ४५ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत भीष्मवधपर्वमें द्वन्द्व-युद्धविषयक पैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥४५॥