भागसूचना
एकोनविंशतितमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
व्यूहनिर्माणके विषयमें युधिष्ठिर और अर्जुनकी बातचीत, अर्जुनद्वारा वज्रव्यूहकी रचना, भीमसेनकी अध्यक्षतामें सेनाका आगे बढ़ना
मूलम् (वचनम्)
धृतराष्ट्र उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
अक्षौहिण्यो दशैका च व्यूढा दृष्ट्वा युधिष्ठिरः।
कथमल्पेन सैन्येन प्रत्यव्यूहत पाण्डवः ॥ १ ॥
यो वेद मानुषं व्यूहं दैवं गान्धर्वमासुरम्।
कथं भीष्मं स कौन्तेयः प्रत्यव्यूहत संजय ॥ २ ॥
मूलम्
अक्षौहिण्यो दशैका च व्यूढा दृष्ट्वा युधिष्ठिरः।
कथमल्पेन सैन्येन प्रत्यव्यूहत पाण्डवः ॥ १ ॥
यो वेद मानुषं व्यूहं दैवं गान्धर्वमासुरम्।
कथं भीष्मं स कौन्तेयः प्रत्यव्यूहत संजय ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
धृतराष्ट्र बोले— संजय! मेरी ग्यारह अक्षौहिणियोंको व्यूहाकारमें खड़ी हुई देख पाण्डुनन्दन युधिष्ठिरने उसका सामना करनेके लिये अपनी थोड़ी-सी सेनाके द्वारा किस प्रकार व्यूह-रचना की? जो मनुष्य, देवता, गन्धर्व और असुर सभीकी व्यूहनिर्माण-विधिको जानते हैं, उन भीष्मजीके सामने कुन्तीकुमारने किस तरह अपनी सेनाका व्यूह बनाया?॥१-२॥
मूलम् (वचनम्)
संजय उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
धार्तराष्ट्राण्यनीकानि दृष्ट्वा व्यूढानि पाण्डवः।
अभ्यभाषत धर्मात्मा धर्मराजो धनंजयम् ॥ ३ ॥
मूलम्
धार्तराष्ट्राण्यनीकानि दृष्ट्वा व्यूढानि पाण्डवः।
अभ्यभाषत धर्मात्मा धर्मराजो धनंजयम् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
संजयने कहा— राजन्! आपकी सेनाओंको व्यूहाकारमें खड़ी हुई देख धर्मात्मा पाण्डुपुत्र धर्मराज युधिष्ठिरने अर्जुनसे कहा—॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महर्षेर्वचनात् तात वेदयन्ति बृहस्पतेः।
संहतान् योधयेदल्पान् कामं विस्तारयेद् बहून् ॥ ४ ॥
मूलम्
महर्षेर्वचनात् तात वेदयन्ति बृहस्पतेः।
संहतान् योधयेदल्पान् कामं विस्तारयेद् बहून् ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘तात! महर्षि बृहस्पतिके वचनसे ऐसा ज्ञात होता है कि यदि शत्रुओंकी सेना थोड़ी हो, तो अपनी सेनाको छोटे आकारमें संगठित करके युद्ध करना चाहिये और यदि अपनेसे अधिक सैनिकोंके साथ युद्ध करना हो, तो अपनी सेनाको इच्छानुसार फैलाकर खड़ी करे॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सूचीमुखमनीकं स्यादल्पानां बहुभिः सह।
अस्माकं च तथा सैन्यमल्पीयः सुतरां परैः ॥ ५ ॥
मूलम्
सूचीमुखमनीकं स्यादल्पानां बहुभिः सह।
अस्माकं च तथा सैन्यमल्पीयः सुतरां परैः ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘थोड़े-से सैनिकोंसे बहुतोंके साथ युद्ध करनेके लिये सूचीमुख नामक व्यूह उपयोगी हो सकता है और हमारी सेना शत्रुओंसे बहुत कम है ही॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतद् वचनमाज्ञाय महर्षेर्व्यूह पाण्डव।
एतच्छ्रुत्वा धर्मराजं प्रत्यभाषत पाण्डवः ॥ ६ ॥
मूलम्
एतद् वचनमाज्ञाय महर्षेर्व्यूह पाण्डव।
एतच्छ्रुत्वा धर्मराजं प्रत्यभाषत पाण्डवः ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘पाण्डुनन्दन! महर्षिके इस कथनपर विचार करके तुम भी अपनी सेनाका व्यूह बनाओ।’ धर्मराजकी यह बात सुनकर पाण्डुपुत्र अर्जुनने उन्हें इस प्रकार उत्तर दिया—॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एष व्यूहामि ते व्यूहं राजसत्तम दुर्जयम्।
अचलं नाम वज्राख्यं विहितं वज्रपाणिना ॥ ७ ॥
मूलम्
एष व्यूहामि ते व्यूहं राजसत्तम दुर्जयम्।
अचलं नाम वज्राख्यं विहितं वज्रपाणिना ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘नृपश्रेष्ठ! यह लीजिये, मैं आपके लिये अविचल एवं दुर्जय वज्रव्यूहकी रचना करता हूँ, जिसका आविष्कार वज्रधारी इन्द्रने किया है॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यः स वात इवोद्भूतः समरे दुःसहः परैः।
स नः पुरो योत्स्यते वै भीमः प्रहरतां वरः॥८॥
मूलम्
यः स वात इवोद्भूतः समरे दुःसहः परैः।
स नः पुरो योत्स्यते वै भीमः प्रहरतां वरः॥८॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जो समरभूमिमें प्रचण्ड वायुकी भाँति उठकर शत्रुओंके लिये दुःसह हो उठते हैं, वे योद्धाओंमें श्रेष्ठ आर्य भीमसेन हमारे आगे रहकर युद्ध करेंगे॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेजांसि रिपुसैन्यानां मृद्नन् पुरुषसत्तमः।
अग्रेऽग्रणीर्योत्स्यति नो युद्धोपायविचक्षणः ॥ ९ ॥
मूलम्
तेजांसि रिपुसैन्यानां मृद्नन् पुरुषसत्तमः।
अग्रेऽग्रणीर्योत्स्यति नो युद्धोपायविचक्षणः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘पुरुषश्रेष्ठ भीमसेन युद्धके विविध उपायोंके ज्ञानमें निपुण हैं। वे हमारी सेनाके अगुआ होकर शत्रुसेनाके तेजको नष्ट करते हुए युद्ध करेंगे॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यं दृष्ट्वा कुरवः सर्वे दुर्योधनपुरोगमाः।
निवर्तिष्यन्ति संत्रस्ताः सिंहं क्षुद्रमृगा यथा ॥ १० ॥
मूलम्
यं दृष्ट्वा कुरवः सर्वे दुर्योधनपुरोगमाः।
निवर्तिष्यन्ति संत्रस्ताः सिंहं क्षुद्रमृगा यथा ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जैसे सिंहको देखते ही क्षुद्र मृग भयभीत होकर भाग उठते हैं, उसी प्रकार इन्हें देखकर दुर्योधन आदि समस्त कौरव त्रस्त होकर पीछे लौट जायँगे॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तं सर्वे संश्रयिष्यामः प्राकारमकुतोभयाः।
भीमं प्रहरतां श्रेष्ठं देवराजमिवामराः ॥ ११ ॥
मूलम्
तं सर्वे संश्रयिष्यामः प्राकारमकुतोभयाः।
भीमं प्रहरतां श्रेष्ठं देवराजमिवामराः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘जैसे देवता देवराजका आश्रय लेकर निर्भय हो जाते हैं, उसी प्रकार हमलोग योद्धाओंमें श्रेष्ठ भीमसेनका आश्रय लेंगे। ये हमारे लिये परकोटेका काम करेंगे। फिर हमें कहींसे कोई भय नहीं रह जायगा॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
न हि सोऽस्ति पुमाल्ँलोके यः संक्रुद्धं वृकोदरम्।
द्रष्टुमत्युग्रकर्माणं विषहेत नरर्षभम् ॥ १२ ॥
मूलम्
न हि सोऽस्ति पुमाल्ँलोके यः संक्रुद्धं वृकोदरम्।
द्रष्टुमत्युग्रकर्माणं विषहेत नरर्षभम् ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘संसारमें ऐसा कोई भी पुरुष नहीं है, जो भयंकर पराक्रम प्रकट करनेवाले क्रोधमें भरे हुए नरश्रेष्ठ वृकोदरकी ओर देखनेका साहस कर सके॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनो गदां बिभ्रद् वज्रसारमयीं दृढाम्।
चरन् वेगेन महता समुद्रमपि शोषयेत् ॥ १३ ॥
केकया धृष्टकेतुश्च चेकितानश्च वीर्यवान्।
मूलम्
भीमसेनो गदां बिभ्रद् वज्रसारमयीं दृढाम्।
चरन् वेगेन महता समुद्रमपि शोषयेत् ॥ १३ ॥
केकया धृष्टकेतुश्च चेकितानश्च वीर्यवान्।
अनुवाद (हिन्दी)
‘जब भीमसेन लोहेसे बनी हुई अपनी सुदृढ़ गदा हाथोंमें ले महान् वेगसे विचरते हैं, उस समय वे समुद्रको भी सोख सकते हैं। केकयराजकुमार, धृष्टकेतु और चेकितान भी ऐसे ही पराक्रमी हैं॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एते तिष्ठन्ति सामात्याः प्रेक्षकास्ते जनाधिप ॥ १४ ॥
धृतराष्ट्रस्य दायादा इति बीभत्सुरब्रवीत्।
भीमसेनं तदा राजन् दर्शयस्व महाबलम् ॥ १५ ॥
मूलम्
एते तिष्ठन्ति सामात्याः प्रेक्षकास्ते जनाधिप ॥ १४ ॥
धृतराष्ट्रस्य दायादा इति बीभत्सुरब्रवीत्।
भीमसेनं तदा राजन् दर्शयस्व महाबलम् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘नरेश्वर! ये धृतराष्ट्रके पुत्र अपने मन्त्रियोंसहित आपकी ओर देख रहे हैं।’ राजन्! युधिष्ठिरसे ऐसा कहकर अर्जुन भीमसेनसे बोले—‘अब आप इन शत्रुओंको अपना महान् बल दिखाइये’॥१४-१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ब्रुवाणं तु तथा पार्थं सर्वसैन्यानि भारत।
अपूजयंस्तदा वाग्भिरनुकूलाभिराहवे ॥ १६ ॥
मूलम्
ब्रुवाणं तु तथा पार्थं सर्वसैन्यानि भारत।
अपूजयंस्तदा वाग्भिरनुकूलाभिराहवे ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! अर्जुनके ऐसा कहनेपर उस युद्धस्थलमें समस्त सैनिकोंने अनुकूल वचनोंद्वारा उस समय उनका पूजन समादर किया॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्त्वा महाबाहुस्तथा चक्रे धनंजयः।
व्यूह्य तानि बलान्याशु प्रययौ फाल्गुनस्तथा ॥ १७ ॥
मूलम्
एवमुक्त्वा महाबाहुस्तथा चक्रे धनंजयः।
व्यूह्य तानि बलान्याशु प्रययौ फाल्गुनस्तथा ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाबाहु अर्जुनने ऐसा कहकर उसी तरह किया; अपनी सब सेनाओंका शीघ्र ही व्यूह बनाया और रणके लिये प्रस्थान किया॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सम्प्रयातान् कुरून् दृष्ट्वा पाण्डवानां महाचमूः।
गङ्गेव पूर्णा स्तिमिता स्पन्दमाना व्यदृश्यत ॥ १८ ॥
मूलम्
सम्प्रयातान् कुरून् दृष्ट्वा पाण्डवानां महाचमूः।
गङ्गेव पूर्णा स्तिमिता स्पन्दमाना व्यदृश्यत ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कौरवोंको अपनी ओर आते देख पाण्डवोंकी वह विशाल सेना पहले तो भरी हुई गंगाके समान स्थिर दिखायी दी; फिर उसमें धीरे-धीरे कुछ चेष्टा दृष्टिगोचर होने लगी॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनोऽग्रणीस्तेषां धृष्टद्युम्नश्च वीर्यवान् ।
नकुलः सहदेवश्च धृष्टकेतुश्च पार्थिवः ॥ १९ ॥
मूलम्
भीमसेनोऽग्रणीस्तेषां धृष्टद्युम्नश्च वीर्यवान् ।
नकुलः सहदेवश्च धृष्टकेतुश्च पार्थिवः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डवसेनामें भीमसेन सबसे आगे चलनेवाले थे। उनके साथ पराक्रमी धृष्टद्युम्न, नकुल, सहदेव तथा चेदिराज धृष्टकेतु भी थे॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विराटश्च ततः पश्चाद् राजाथाक्षौहिणीवृतः।
भ्रातृभिः सह पुत्रैश्च सोऽभ्यरक्षत पृष्ठतः ॥ २० ॥
मूलम्
विराटश्च ततः पश्चाद् राजाथाक्षौहिणीवृतः।
भ्रातृभिः सह पुत्रैश्च सोऽभ्यरक्षत पृष्ठतः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् राजा विराट अपने भाइयों और पुत्रोंके साथ एक अक्षौहिणी सेना लेकर भीमसेनके पृष्ठभागकी रक्षा कर रहे थे॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चक्ररक्षौ तु भीमस्य माद्रीपुत्रौ महाद्युतौ।
द्रौपदेयाः ससौभद्राः पृष्ठगोपास्तरस्विनः ॥ २१ ॥
मूलम्
चक्ररक्षौ तु भीमस्य माद्रीपुत्रौ महाद्युतौ।
द्रौपदेयाः ससौभद्राः पृष्ठगोपास्तरस्विनः ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमके पहियोंकी रक्षा परम तेजस्वी माद्रीकुमार नकुल-सहदेव कर रहे थे। द्रौपदीके पाँचों पुत्र तथा अभिमन्यु—ये वेगशाली वीर उनके पृष्ठभागकी रक्षा करते थे॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धृष्टद्युम्नश्च पाञ्चाल्यस्तेषां गोप्ता महारथः।
सहितः पृतनाशूरै रथमुख्यैः प्रभद्रकैः ॥ २२ ॥
मूलम्
धृष्टद्युम्नश्च पाञ्चाल्यस्तेषां गोप्ता महारथः।
सहितः पृतनाशूरै रथमुख्यैः प्रभद्रकैः ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पांचालराजकुमार महारथी धृष्टद्युम्न अपनी सेनाके चुने हुए शूरवीर एवं प्रधान रथी प्रभद्रकोंके साथ उन सबकी रक्षा करते थे॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिखण्डी तु ततः पश्चादर्जुनेनाभिरक्षितः।
यत्तो भीष्मविनाशाय प्रययौ भरतर्षभ ॥ २३ ॥
मूलम्
शिखण्डी तु ततः पश्चादर्जुनेनाभिरक्षितः।
यत्तो भीष्मविनाशाय प्रययौ भरतर्षभ ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! इन सबके पीछे अर्जुनद्वारा सुरक्षित शिखण्डी भीष्मका विनाश करनेके लिये उद्यत हो आगे बढ़ रहा था॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पृष्ठतोऽप्यर्जुनस्यासीद् युयुधानो महाबलः ।
चक्ररक्षौ तु पाञ्चाल्यौ युधामन्यूत्तमौजसौ ॥ २४ ॥
मूलम्
पृष्ठतोऽप्यर्जुनस्यासीद् युयुधानो महाबलः ।
चक्ररक्षौ तु पाञ्चाल्यौ युधामन्यूत्तमौजसौ ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अर्जुनके पीछे महाबली सात्यकि थे। पांचाल वीर युधामन्यु और उत्तमौजा अर्जुनके रथके पहियोंकी रक्षा करते थे॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राजा तु मध्यमानीके कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
बृहद्भिः कुञ्जरैर्मत्तैश्चलद्भिरचलैरिव ॥ २५ ॥
मूलम्
राजा तु मध्यमानीके कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
बृहद्भिः कुञ्जरैर्मत्तैश्चलद्भिरचलैरिव ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
चलते-फिरते पर्वतोंके समान विशाल और मतवाले गजराजोंकी सेनाके साथ कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर बीचकी सेनामें उपस्थित थे॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अक्षौहिण्याथ पाञ्चाल्यो यज्ञसेनो महामनाः।
विराटमन्वयात् पश्चात् पाण्डवार्थं पराक्रमी ॥ २६ ॥
मूलम्
अक्षौहिण्याथ पाञ्चाल्यो यज्ञसेनो महामनाः।
विराटमन्वयात् पश्चात् पाण्डवार्थं पराक्रमी ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महामना पराक्रमी पांचालराज द्रुपद पाण्डवोंके लिये एक अक्षौहिणी सेनाके सहित राजा विराटके पीछे-पीछे चल रहे थे॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेषामादित्यचन्द्राभाः कनकोत्तमभूषणाः ।
नानाचित्रधरा राजन् रथेष्वासन् महाध्वजाः ॥ २७ ॥
मूलम्
तेषामादित्यचन्द्राभाः कनकोत्तमभूषणाः ।
नानाचित्रधरा राजन् रथेष्वासन् महाध्वजाः ॥ २७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! उनके रथोंपर भाँति-भाँतिके बेल-बूटोंसे विभूषित स्वर्णमण्डित विशाल ध्वज सूर्य और चन्द्रमाके समान प्रकाशित हो रहे थे॥२७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समुत्सार्य ततः पश्चाद् धृष्टद्युम्नो महारथः।
भ्रातृभिः सह पुत्रैश्च सोऽभ्यरक्षद् युधिष्ठिरम् ॥ २८ ॥
मूलम्
समुत्सार्य ततः पश्चाद् धृष्टद्युम्नो महारथः।
भ्रातृभिः सह पुत्रैश्च सोऽभ्यरक्षद् युधिष्ठिरम् ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर महारथी धृष्टद्युम्न अन्य लोगोंको हटाकर स्वयं भाइयों और पुत्रोंके साथ उपस्थित हो राजा युधिष्ठिरकी रक्षा करने लगे॥२८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्वदीयानां परेषां च रथेषु विपुलान् ध्वजान्।
अभिभूयार्जुनस्यैको रथे तस्थौ महाकपिः ॥ २९ ॥
मूलम्
त्वदीयानां परेषां च रथेषु विपुलान् ध्वजान्।
अभिभूयार्जुनस्यैको रथे तस्थौ महाकपिः ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! आपके तथा शत्रुओंके रथोपर जो बहुसंख्यक विशाल ध्वज फहरा रहे थे, उन सबको तिरस्कृत करके केवल अर्जुनके रथपर एकमात्र महान् कपिसे उपलक्षित दिव्य ध्वज शोभा पाता था॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पादातास्त्वग्रतोऽगच्छन्नसिशक्त्यृष्टिपाणयः ।
अनेकशतसाहस्रा भीमसेनस्य रक्षिणः ॥ ३० ॥
मूलम्
पादातास्त्वग्रतोऽगच्छन्नसिशक्त्यृष्टिपाणयः ।
अनेकशतसाहस्रा भीमसेनस्य रक्षिणः ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीमसेनकी रक्षाके लिये उनके आगे-आगे हाथोंमें खड्ग, शक्ति तथा ऋष्टि लिये कई लाख पैदल सैनिक चल रहे थे॥३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वारणा दशसाहस्राः प्रभिन्नकरटामुखाः ।
शूरा हेममयैर्जालैर्दीप्यमाना इवाचलाः ॥ ३१ ॥
क्षरन्त इव जीमूता महार्हाः पद्मगन्धिनः।
राजानमन्वयुः पश्चाज्जीमूता इव वार्षिकाः ॥ ३२ ॥
मूलम्
वारणा दशसाहस्राः प्रभिन्नकरटामुखाः ।
शूरा हेममयैर्जालैर्दीप्यमाना इवाचलाः ॥ ३१ ॥
क्षरन्त इव जीमूता महार्हाः पद्मगन्धिनः।
राजानमन्वयुः पश्चाज्जीमूता इव वार्षिकाः ॥ ३२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजा युधिष्ठिरके पीछे वर्षाकालके मेघोंकी भाँति तथा पर्वतोंके समान ऊँचे-ऊँचे दस हजार गजराज जा रहे थे। उनके गण्डस्थलसे फूटकर मदकी धारा बह रही थी। वे सोनेकी जालीदार झूलोंसे उद्दीप्त हो रहे थे। उनमें शौर्य भरा था। वे मेघोंके समान मदकी बूँदें बरसाते थे। उनसे कमलके समान सुगन्ध निकलती थी और वे सभी बहुमूल्य थे॥३१-३२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भीमसेनो गदां भीमां प्रकर्षन् परिघोपमाम्।
प्रचकर्ष महासैन्यं दुराधर्षो महामनाः ॥ ३३ ॥
मूलम्
भीमसेनो गदां भीमां प्रकर्षन् परिघोपमाम्।
प्रचकर्ष महासैन्यं दुराधर्षो महामनाः ॥ ३३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दुर्जय वीर महामनस्वी भीमसेन हाथमें परिघके समान मोटी एवं भयंकर गदा लिये अपने साथ विशाल सेनाको खींचे लिये जा रहे थे॥३३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमर्कमिव दुष्प्रेक्ष्यं तपन्तमिव वाहिनीम्।
न शेकुः सर्वयोधास्ते प्रतिवीक्षितुमन्तिके ॥ ३४ ॥
मूलम्
तमर्कमिव दुष्प्रेक्ष्यं तपन्तमिव वाहिनीम्।
न शेकुः सर्वयोधास्ते प्रतिवीक्षितुमन्तिके ॥ ३४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय सूर्यकी भाँति उनकी ओर देखना कठिन हो रहा था। वे आपकी सेनाको संतप्त-सी कर रहे थे। निकट आनेपर समस्त योद्धा उनकी ओर आँख उठाकर देखनेमें भी समर्थ न हो सके॥३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वज्रो नामैष स व्यूहो निर्भयः सर्वतोमुखः।
चापविद्युद्ध्वजो घोरो गुप्तो गाण्डीवधन्वना ॥ ३५ ॥
मूलम्
वज्रो नामैष स व्यूहो निर्भयः सर्वतोमुखः।
चापविद्युद्ध्वजो घोरो गुप्तो गाण्डीवधन्वना ॥ ३५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यह वज्र नामक व्यूह सर्वथा भयरहित तथा सब ओर मुखवाला था। उसके ध्वजके निकट सुवर्णभूषित धनुष विद्युत्के समान प्रकाशित होता था। गाण्डीवधारी अर्जुनके द्वारा ही वह भयंकर व्यूह सुरक्षित था॥३५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यं प्रतिव्यूह्य तिष्ठन्ति पाण्डवास्तव वाहिनीम्।
अजेयो मानुषे लोके पाण्डवैरभिरक्षितः ॥ ३६ ॥
मूलम्
यं प्रतिव्यूह्य तिष्ठन्ति पाण्डवास्तव वाहिनीम्।
अजेयो मानुषे लोके पाण्डवैरभिरक्षितः ॥ ३६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पाण्डवलोग जिस व्यूहकी रचना करके आपकी सेनाका सामना करनेके लिये खड़े थे, वह उनके द्वारा सुरक्षित होनेके कारण मनुष्यलोकमें अजेय था॥३६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
संध्यां तिष्ठत्सु सैन्येषु सूर्यस्योदयनं प्रति।
प्रावात् सपृषतो वायुर्निरभ्रे स्तनयित्नुमान् ॥ ३७ ॥
मूलम्
संध्यां तिष्ठत्सु सैन्येषु सूर्यस्योदयनं प्रति।
प्रावात् सपृषतो वायुर्निरभ्रे स्तनयित्नुमान् ॥ ३७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सूर्योदयके समय जब सभी सैनिक संध्योपासना कर रहे थे, बिना बादलके ही पानीकी बूँदोंके साथ हवा चलने लगी। उसके साथ मेघकी-सी गर्जना भी होती थी॥३७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विष्वग्वाताश्च विववुर्नीचैः शर्करकर्षिणः ।
रजश्चोद्धूयत महत् तम आच्छादयज्जगत् ॥ ३८ ॥
मूलम्
विष्वग्वाताश्च विववुर्नीचैः शर्करकर्षिणः ।
रजश्चोद्धूयत महत् तम आच्छादयज्जगत् ॥ ३८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ सब ओर नीचे बालू और कंकड़ बरसाती हुई तीव्र वायु बह रही थी। उस समय इतनी धूल उड़ी कि जगत्में घोर अन्धकार छा गया॥३८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पपात महती चोल्का प्राङ्मुखी भरतर्षभ।
उद्यन्तं सूर्यमाहत्य व्यशीर्यत महास्वना ॥ ३९ ॥
मूलम्
पपात महती चोल्का प्राङ्मुखी भरतर्षभ।
उद्यन्तं सूर्यमाहत्य व्यशीर्यत महास्वना ॥ ३९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! पूर्व दिशाकी ओर मुँह करके बड़ी भारी उल्का गिरी और उदय होते हुए सूर्यसे टकराकर बड़े जोरकी आवाजके साथ बिखर गयी॥३९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ संनह्यमानेषु सैन्येषु भरतर्षभ।
निष्प्रभोऽभ्युद्ययौ सूर्यः सघोषं भूश्चचाल च ॥ ४० ॥
मूलम्
अथ संनह्यमानेषु सैन्येषु भरतर्षभ।
निष्प्रभोऽभ्युद्ययौ सूर्यः सघोषं भूश्चचाल च ॥ ४० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतभूषण! जब उभय-पक्षकी सेनाएँ युद्धके लिये पूर्णतः तैयार हो गयीं, उस समय सूर्यकी प्रभा फीकी पड़ गयी और भारी आवाजके साथ धरती काँपने लगी॥४०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
व्यशीर्यत सनादा च भूस्तदा भरतर्षभ।
निर्घाता बहवो राजन् दिक्षु सर्वासु चाभवन् ॥ ४१ ॥
मूलम्
व्यशीर्यत सनादा च भूस्तदा भरतर्षभ।
निर्घाता बहवो राजन् दिक्षु सर्वासु चाभवन् ॥ ४१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! उस समय ऐसा जान पड़ता था, मानो पृथ्वी विकट नाद करती हुई फटी जा रही है। राजन्! सम्पूर्ण दिशाओंमें अनेक बार वज्रपातके समान भयानक शब्द प्रकट हुए॥४१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रादुरासीद् रजस्तीव्रं न प्राज्ञायत किंचन।
ध्वजानां धूयमानानां सहसा मातरिश्वना ॥ ४२ ॥
किङ्किणीजालबद्धानां काञ्चनस्रग्वराम्बरैः ।
महतां सपताकानामादित्यसमतेजसाम् ॥ ४३ ॥
सर्वं झणझणीभूतमासीत् तालवनेष्विव ।
मूलम्
प्रादुरासीद् रजस्तीव्रं न प्राज्ञायत किंचन।
ध्वजानां धूयमानानां सहसा मातरिश्वना ॥ ४२ ॥
किङ्किणीजालबद्धानां काञ्चनस्रग्वराम्बरैः ।
महतां सपताकानामादित्यसमतेजसाम् ॥ ४३ ॥
सर्वं झणझणीभूतमासीत् तालवनेष्विव ।
अनुवाद (हिन्दी)
तीव्र वेगसे धूलकी वर्षा होने लगी। कुछ भी सूझ नहीं पड़ता था। सहसा वायुके वेगसे ध्वज हिलने लगे। पताकासहित वे ध्वज सूर्यके समान तेजस्वी जान पड़ते थे। उन्हें सोनेके हार और सुन्दर वस्त्रोंसे सजाया गया था। उनमें छोटी-छोटी घंटियोंके साथ झालरें बँधी थीं, जिनके मधुर शब्द सब ओर फैल रहे थे। इस प्रकार उन महान् ध्वजोंके शब्दसे ताड़के जंगलोंकी भाँति उस रणभूमिमें सब ओर झन-झनकी आवाज हो रही थी॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं ते पुरुषव्याघ्राः पाण्डवा युद्धनन्दिनः ॥ ४४ ॥
व्यवस्थिताः प्रतिव्यूह्य तव पुत्रस्य वाहिनीम्।
ग्रसन्त इव मज्जा नो योधानां भरतर्षभ ॥ ४५ ॥
दृष्ट्वाऽग्रतो भीमसेनं गदापाणिमवस्थितम् ॥ ४६ ॥
मूलम्
एवं ते पुरुषव्याघ्राः पाण्डवा युद्धनन्दिनः ॥ ४४ ॥
व्यवस्थिताः प्रतिव्यूह्य तव पुत्रस्य वाहिनीम्।
ग्रसन्त इव मज्जा नो योधानां भरतर्षभ ॥ ४५ ॥
दृष्ट्वाऽग्रतो भीमसेनं गदापाणिमवस्थितम् ॥ ४६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार युद्धसे आनन्दित होनेवाले पुरुष-सिंह पाण्डव आपके पुत्रकी वाहिनीके सामने व्यूह बनाकर खड़े थे और हमारे योद्धाओंकी रक्त और मज्जा भी सुखाये देते थे। गदाधारी भीमसेनको आगे खड़ा देख हमारी सारी सेना भयभीत हो रही थी॥४४—४६॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि श्रीमद्भगवद्गीतापर्वणि पाण्डवसैन्यव्यूहे एकोनविंशोऽध्यायः ॥ १९ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत श्रीमद्भगवद्गीतापर्वमें पाण्डवसेनाका व्यूहनिर्माणविषयक उन्नीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१९॥