०१६ सैन्यवर्णने

भागसूचना

षोडशोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

दुर्योधनकी सेनाका वर्णन

मूलम् (वचनम्)

संजय उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो रजन्यां व्युष्टायां शब्दः समभवन्महान्।
क्रोशतां भूमिपालानां युज्यतां युज्यतामिति ॥ १ ॥

मूलम्

ततो रजन्यां व्युष्टायां शब्दः समभवन्महान्।
क्रोशतां भूमिपालानां युज्यतां युज्यतामिति ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय कहते हैं— राजन्! तदनन्तर रात्रिके अन्तमें सबेरा होते ही ‘रथ जोतो, युद्धके लिये तैयार हो जाओ।’ इस प्रकार जोर-जोरसे बोलनेवाले राजाओंका महान् कोलाहल सब ओर छा गया॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शङ्खदुन्दुभिघौषैश्च सिंहनादैश्च भारत ।
हयहेषितनादैश्च रथनेमिस्वनैस्तथा ॥ २ ॥
गजानां बृंहतां चैव योधानां चापि गर्जताम्।
क्ष्वेलितास्फोटितोत्क्रुष्टैस्तुमुलं सर्वतोऽभवत् ॥ ३ ॥

मूलम्

शङ्खदुन्दुभिघौषैश्च सिंहनादैश्च भारत ।
हयहेषितनादैश्च रथनेमिस्वनैस्तथा ॥ २ ॥
गजानां बृंहतां चैव योधानां चापि गर्जताम्।
क्ष्वेलितास्फोटितोत्क्रुष्टैस्तुमुलं सर्वतोऽभवत् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! शंख और दुन्दुभियोंकी ध्वनि, वीरोंके सिंहनाद, घोड़ोंकी हिनहिनाहट, रथके पहियोंकी घरघराहट, हाथियोंकी गर्जना तथा गर्जते हुए योद्धाओंके सिंहनाद करने, ताल ठोंकने और जोर-जोरसे बोलने आदिकी तुमुल ध्वनि सब ओर व्याप्त हो गयी॥२-३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उदतिष्ठन्महाराज सर्वं युक्तमशेषतः ।
सूर्योदये महत् सैन्यं कुरुपाण्डवसेनयोः ॥ ४ ॥

मूलम्

उदतिष्ठन्महाराज सर्वं युक्तमशेषतः ।
सूर्योदये महत् सैन्यं कुरुपाण्डवसेनयोः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! सूर्योदय होते-होते कौरवों और पाण्डवोंकी वह सारी विशाल सेना सम्पूर्ण रूपसे युद्धके लिये तैयार हो उठी॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

राजेन्द्र तव पुत्राणां पाण्डवानां तथैव च।
दुष्प्रधृष्याणि चास्त्राणि सशस्त्रकवचानि च ॥ ५ ॥

मूलम्

राजेन्द्र तव पुत्राणां पाण्डवानां तथैव च।
दुष्प्रधृष्याणि चास्त्राणि सशस्त्रकवचानि च ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! आपके पुत्रों तथा पाण्डवोंके दुर्दम्य अस्त्र-शस्त्र तथा कवच चमक उठे॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः प्रकाशे सैन्यानि समदृश्यन्त भारत।
त्वदीयानां परेषां च शस्त्रवन्ति महान्ति च ॥ ६ ॥

मूलम्

ततः प्रकाशे सैन्यानि समदृश्यन्त भारत।
त्वदीयानां परेषां च शस्त्रवन्ति महान्ति च ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! तब सूर्योदयके प्रकाशमें आपकी और शत्रुओंकी सारी सेनाएँ शस्त्रोंसे सुसज्जित तथा अत्यन्त विशाल दिखायी देने लगीं॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तत्र नागा रथाश्चैव जाम्बूनदपरिष्कृताः।
विभ्राजमाना दृश्यन्ते मेघा इव सविद्युतः ॥ ७ ॥

मूलम्

तत्र नागा रथाश्चैव जाम्बूनदपरिष्कृताः।
विभ्राजमाना दृश्यन्ते मेघा इव सविद्युतः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जाम्बूनद नामक सुवर्णसे विभूषित आपके हाथी और रथ बिजलियोंसहित मेघोंकी घटाके समान प्रकाशमान दिखायी देते थे॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथानीकान्यदृश्यन्त नगराणीव भूरिशः ।
अतीव शुशुभे तत्र पिता ते पूर्णचन्द्रवत् ॥ ८ ॥

मूलम्

रथानीकान्यदृश्यन्त नगराणीव भूरिशः ।
अतीव शुशुभे तत्र पिता ते पूर्णचन्द्रवत् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बहुसंख्यक रथोंकी सेनाएँ नगरोंके समान दृष्टिगोचर हो रही थीं। उनके बीच आपके ताऊ भीष्मजी, पूर्ण चन्द्रमाके समान प्रकाशित हो रहे थे॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनुर्भिर्ऋष्टिभिः खड्‌गैर्गदाभिः शक्तितोमरैः ।
योधाः प्रहरणैः शुभ्रैस्तेष्वनीकेष्ववस्थिताः ॥ ९ ॥

मूलम्

धनुर्भिर्ऋष्टिभिः खड्‌गैर्गदाभिः शक्तितोमरैः ।
योधाः प्रहरणैः शुभ्रैस्तेष्वनीकेष्ववस्थिताः ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

आपकी सेनाके सैनिक धनुष, खड्ग, ऋष्टि, गदा, शक्ति और तोमर आदि चमकीले अस्त्र-शस्त्र लेकर उन सेनाओंमें खड़े थे॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गजाः पदाता रथिनस्तुरगाश्च विशाम्पते।
व्यतिष्ठन् वागुराकाराः शतशोऽथ सहस्रशः ॥ १० ॥

मूलम्

गजाः पदाता रथिनस्तुरगाश्च विशाम्पते।
व्यतिष्ठन् वागुराकाराः शतशोऽथ सहस्रशः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

प्रजानाथ! हाथी, घोड़े, पैदल और रथी, शत्रुओंको बाँधनेके लिये जाल-से बनकर एक-एक जगह सैकड़ों और हजारोंकी संख्यामें खड़े थे॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ध्वजा बहुविधाकारा व्यदृश्यन्त समुच्छ्रिताः।
स्वेषां चैव परेषां च द्युतिमन्तः सहस्रशः ॥ ११ ॥

मूलम्

ध्वजा बहुविधाकारा व्यदृश्यन्त समुच्छ्रिताः।
स्वेषां चैव परेषां च द्युतिमन्तः सहस्रशः ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

अपने और शत्रुओंके अनेक प्रकारके ऊँचे-ऊँचे चमकीले ध्वज हजारोंकी संख्यामें दृष्टिगोचर हो रहे थे॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

काञ्चना मणिचित्राङ्गा ज्वलन्त इव पावकाः।
अर्चिष्मन्तो व्यरोचन्त गजारोहाः सहस्रशः ॥ १२ ॥

मूलम्

काञ्चना मणिचित्राङ्गा ज्वलन्त इव पावकाः।
अर्चिष्मन्तो व्यरोचन्त गजारोहाः सहस्रशः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुवर्णमय आभूषण पहने, मणियोंके अलंकारोंसे विचित्र अंगोंवाले, सहस्रों हाथीसवार सैनिक अपनी प्रभासे शिखाओंसहित प्रज्वलित अग्निके समान प्रकाशित हो रहे थे॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महेन्द्रकेतवः शुभ्रा महेन्द्रसदनेष्विव ।
संनद्धास्ते प्रवीराश्च ददृशुर्युद्धकाङ्क्षिणः ॥ १३ ॥

मूलम्

महेन्द्रकेतवः शुभ्रा महेन्द्रसदनेष्विव ।
संनद्धास्ते प्रवीराश्च ददृशुर्युद्धकाङ्क्षिणः ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे इन्द्रभवनमें देवराज इन्द्रके चमकीले ध्वज फहराते रहते हैं, उसी प्रकार कौरव-पाण्डवसेनाके ध्वज भी फहरा रहे थे। दोनों सेनाओंके प्रमुख वीर युद्धकी अभिलाषा रखकर कवच आदिसे सुसज्जित दिखायी दे रहे थे॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उद्यतैरायुधैश्चित्रास्तलबद्धाः कलापिनः ।
ऋषभाक्षा मनुष्येन्द्राश्चमूमुखगता बभुः ॥ १४ ॥

मूलम्

उद्यतैरायुधैश्चित्रास्तलबद्धाः कलापिनः ।
ऋषभाक्षा मनुष्येन्द्राश्चमूमुखगता बभुः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके हथियार उठे हुए थे। वे हाथमें दस्ताने और पीठपर तरकश बाँधे सेनाके मुहानेपर खड़े हुए भूपालगण अद्भुत शोभा पा रहे थे। उनकी आँखें बैलोंकी आँखोंके समान बड़ी-बड़ी दिखायी दे रही थीं॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शकुनिः सौबलः शल्यः सैन्धवोऽथ जयद्रथः।
विन्दानुविन्दौ कैकेयाः काम्बोजस्य सुदक्षिणः ॥ १५ ॥
श्रुतायुधश्च कालिङ्गो जयत्सेनश्च पार्थिवः।
बृहद्बलश्च कौशल्यः कृतवर्मा च सात्वतः ॥ १६ ॥
दशैते पुरुषव्याघ्राः शूरा परिघबाहवः।
अक्षौहिणीनां पतयो यज्वानो भूरिदक्षिणाः ॥ १७ ॥

मूलम्

शकुनिः सौबलः शल्यः सैन्धवोऽथ जयद्रथः।
विन्दानुविन्दौ कैकेयाः काम्बोजस्य सुदक्षिणः ॥ १५ ॥
श्रुतायुधश्च कालिङ्गो जयत्सेनश्च पार्थिवः।
बृहद्बलश्च कौशल्यः कृतवर्मा च सात्वतः ॥ १६ ॥
दशैते पुरुषव्याघ्राः शूरा परिघबाहवः।
अक्षौहिणीनां पतयो यज्वानो भूरिदक्षिणाः ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुबलपुत्र शकुनि, शल्य, स्विन्धुनरेश जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, केकयराजकुमार, काम्बोजराज सुदक्षिण, कलिंगराज श्रुतायुध, राजा जयत्सेन, कोशलनरेश बृहद्बल तथा भोजवंशी कृतवर्मा—ये दस पुरुषसिंह शूरवीर क्षत्रिय एक-एक अक्षौहिणी सेनाके अधिनायक थे। इनकी भुजाएँ परिघोंके समान मोटी दिखायी देती थीं। इन सबने बड़े-बड़े यज्ञ किये थे और उनमें प्रचुर दक्षिणाएँ दी थीं॥१५—१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एते चान्ये च बहवो दुर्योधनवशानुगाः।
राजानो राजपुत्राश्च नीतिमन्तो महारथाः ॥ १८ ॥
संनद्धाः समदृश्यन्त स्वेष्वनीकेष्ववस्थिताः ।

मूलम्

एते चान्ये च बहवो दुर्योधनवशानुगाः।
राजानो राजपुत्राश्च नीतिमन्तो महारथाः ॥ १८ ॥
संनद्धाः समदृश्यन्त स्वेष्वनीकेष्ववस्थिताः ।

अनुवाद (हिन्दी)

ये तथा और भी बहुत-से नीतिज्ञ महारथी राजा और राजकुमार दुर्योधनके वशमें रहकर कवच आदिसे सुसज्जित हो अपनी-अपनी सेनाओंमें खड़े दिखायी देते थे॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बद्धकृष्णाजिनाः सर्वे बलिनो युद्धशालिनः ॥ १९ ॥
हृष्टा दुर्योधनस्यार्थे ब्रह्मलोकाय दीक्षिताः।
समर्था दश वाहिन्यः परिगृह्य व्यवस्थिताः ॥ २० ॥

मूलम्

बद्धकृष्णाजिनाः सर्वे बलिनो युद्धशालिनः ॥ १९ ॥
हृष्टा दुर्योधनस्यार्थे ब्रह्मलोकाय दीक्षिताः।
समर्था दश वाहिन्यः परिगृह्य व्यवस्थिताः ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इन सबने काले मृगचर्म बाँध रखे थे। सभी बलवान् और युद्धभूमिमें सुशोभित होनेवाले थे और सबने दुर्योधनके हितके लिये बड़े हर्ष और उल्लासके साथ ब्रह्मलोककी दीक्षा ली थी। ये सामर्थ्यशाली दस वीर अपने सेनापतित्वमें दस सेनाओंको लेकर युद्धके लिये तैयार खड़े थे॥१९-२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एकादशी धार्तराष्ट्रा कौरवाणां महाचमूः।
अग्रतः सर्वसैन्यानां यत्र शान्तनवोऽग्रणीः ॥ २१ ॥

मूलम्

एकादशी धार्तराष्ट्रा कौरवाणां महाचमूः।
अग्रतः सर्वसैन्यानां यत्र शान्तनवोऽग्रणीः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

ग्यारहवीं विशाल वाहिनी दुर्योधनकी थी, जिनमें अधिकांश कौरव-योद्धा थे। यह कौरव-सेना अन्य सब सेनाओंके आगे खड़ी थी। इसके अधिनायक थे शान्तनुनन्दन भीष्म॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्वेतोष्णीषं श्वेतहयं श्वेतवर्माणमच्युतम् ।
अपश्याम महाराज भीष्मं चन्द्रमिवोदितम् ॥ २२ ॥

मूलम्

श्वेतोष्णीषं श्वेतहयं श्वेतवर्माणमच्युतम् ।
अपश्याम महाराज भीष्मं चन्द्रमिवोदितम् ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उनके सिरपर सफेद पगड़ी शोभा पाती थी। उनके घोड़े भी सफेद ही थे। उन्होंने अपने अंगोंमें श्वेत कवच बाँध रखा था। महाराज! मर्यादासे कभी पीछे न हटनेवाले उन भीष्मजीको मैंने अपनी श्वेतकान्तिके कारण नवोदित चन्द्रमाके समान सुशोभित देखा॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

हेमतालध्वजं भीष्मं राजते स्यन्दने स्थितम्।
श्वेताभ्र इव तीक्ष्णांशुं ददृशुः कुरुपाण्डवाः ॥ २३ ॥
सृंजयाश्च महेष्वासा धृष्टद्युम्नपुरोगमाः ।

मूलम्

हेमतालध्वजं भीष्मं राजते स्यन्दने स्थितम्।
श्वेताभ्र इव तीक्ष्णांशुं ददृशुः कुरुपाण्डवाः ॥ २३ ॥
सृंजयाश्च महेष्वासा धृष्टद्युम्नपुरोगमाः ।

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मजी चाँदीके बने हुए सुन्दर रथपर विराजमान थे। उनकी तालचिह्नित स्वर्णमयी ध्वजा आकाशमें फहरा रही थी। उस समय कौरवों, पाण्डवों तथा धृष्टद्युम्न आदि महाधनुर्धर सृंजयवंशियोंने उन्हें सफेद बादलोंमें छिपे हुए सूर्यदेवके समान देखा॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जृम्भमाणं महासिंहं दृष्ट्वा क्षुद्रमृगा यथा ॥ २४ ॥
धृष्टद्युम्नमुखाः सर्वे समुद्विविजिरे मुहुः।

मूलम्

जृम्भमाणं महासिंहं दृष्ट्वा क्षुद्रमृगा यथा ॥ २४ ॥
धृष्टद्युम्नमुखाः सर्वे समुद्विविजिरे मुहुः।

अनुवाद (हिन्दी)

धृष्टद्युम्न आदि सृंजयवंशी उन्हें देखकर बारंबार उद्विग्न हो उठते थे। ठीक उसी तरह, जैसे मुँह बाये हुए विशाल सिंहको देखकर क्षुद्र मृग भयसे व्याकुल हो उठते हैं॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एकादशैताः श्रीजुष्टा वाहिन्यस्तव पार्थिव ॥ २५ ॥
पाण्डवानां तथा सप्त महापुरुषपालिताः।

मूलम्

एकादशैताः श्रीजुष्टा वाहिन्यस्तव पार्थिव ॥ २५ ॥
पाण्डवानां तथा सप्त महापुरुषपालिताः।

अनुवाद (हिन्दी)

भूपाल! आपकी ये ग्यारह अक्षौहिणी सेनाएँ तथा पाण्डवोंकी सात अक्षौहिणी सेनाएँ वीर पुरुषोंसे सुरक्षित हो उत्तम शोभासे सम्पन्न दिखायी देती थीं॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उन्मत्तमकरावर्तौ महाग्राहसमाकुलौ ॥ २६ ॥
चुगान्ते समवेतौ द्वौ दृश्येते सागराविव।

मूलम्

उन्मत्तमकरावर्तौ महाग्राहसमाकुलौ ॥ २६ ॥
चुगान्ते समवेतौ द्वौ दृश्येते सागराविव।

अनुवाद (हिन्दी)

वे दोनों सेनाएँ प्रलयकालमें एक-दूसरेसे मिलनेवाले उन दो समुद्रोंके समान दृष्टिगोचर हो रही थीं, जिनमें मतवाले मगर और भँवरें होती हैं तथा जिनमें बड़े-बड़े ग्राह सब ओर फैले रहते हैं॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नैव नस्तादृशो राजन् दृष्टपूर्वो न च श्रुतः।
अनीकानां समेतानां कौरवाणां तथाविधः ॥ २७ ॥

मूलम्

नैव नस्तादृशो राजन् दृष्टपूर्वो न च श्रुतः।
अनीकानां समेतानां कौरवाणां तथाविधः ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजन्! कौरवोंकी इतनी बड़ी सेनाका वैसा संगठन मैंने पहले कभी न तो देखा था और न सुना ही था॥२७॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वणि श्रीमद्भगवद्‌गीतापर्वणि सैन्यवर्णने षोडशोऽध्यायः ॥ १६ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्वके अन्तर्गत श्रीमद्भगवद्‌गीतापर्वमें सैन्यवर्णनविषयक सोलहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१६॥