भागसूचना
नवत्यधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
हिरण्यवर्माके आक्रमणके भयसे घबराये हुए द्रुपदका अपनी महारानीसे संकटनिवारणका उपाय पूछना
मूलम् (वचनम्)
भीष्म उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवमुक्तस्य दूतेन द्रुपदस्य तदा नृप।
चोरस्येव गृहीतस्य न प्रावर्तत भारती ॥ १ ॥
मूलम्
एवमुक्तस्य दूतेन द्रुपदस्य तदा नृप।
चोरस्येव गृहीतस्य न प्रावर्तत भारती ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीष्मजी कहते हैं— राजन्! दूतके ऐसा कहनेपर पकड़े गये चोरकी भाँति राजा द्रुपदके मुखसे सहसा कोई बात नहीं निकली॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स यत्नमकरोत् तीव्रं सम्बन्धिन्यनुमानने।
दूतैर्मधुरसम्भाषैर्न तदस्तीति संदिशन् ॥ २ ॥
मूलम्
स यत्नमकरोत् तीव्रं सम्बन्धिन्यनुमानने।
दूतैर्मधुरसम्भाषैर्न तदस्तीति संदिशन् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन्होंने मधुरभाषी दूतोंके द्वारा यह संदेश देकर कि ‘ऐसी बात नहीं है (आपको धोखा नहीं दिया गया है)’ अपने सम्बन्धीको मनानेका दुष्कर प्रयत्न किया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स राजा भूय एवाथ ज्ञात्वा तत्त्वमथागमत्।
कन्येति पाञ्चालसुतां त्वरमाणो विनिर्ययौ ॥ ३ ॥
मूलम्
स राजा भूय एवाथ ज्ञात्वा तत्त्वमथागमत्।
कन्येति पाञ्चालसुतां त्वरमाणो विनिर्ययौ ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजा हिरण्यवर्माने जब पुनः पता लगाया तो पांचालराजकी पुत्री शिखण्डिनी कन्या ही है, यह बात ठीक जान पड़ी। इससे रुष्ट होकर उन्होंने बड़ी उतावलीके साथ द्रुपदपर आक्रमण करनेका निश्चय किया॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सम्प्रेषयामास मित्राणाममितौजसाम् ।
दुहितुर्विप्रलम्भं तं धात्रीणां वचनात् तदा ॥ ४ ॥
मूलम्
ततः सम्प्रेषयामास मित्राणाममितौजसाम् ।
दुहितुर्विप्रलम्भं तं धात्रीणां वचनात् तदा ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर राजाने धायोंके कथनानुसार अपनी कन्याको द्रुपदके द्वारा धोखा दिये जानेका समाचार अमिततेजस्वी मित्र राजाओंके पास भेजा॥४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः समुदयं कृत्वा बलानां राजसत्तमः।
अभियाने मतिं चक्रे द्रुपदं प्रति भारत ॥ ५ ॥
मूलम्
ततः समुदयं कृत्वा बलानां राजसत्तमः।
अभियाने मतिं चक्रे द्रुपदं प्रति भारत ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! इसके बाद नृपश्रेष्ठ हिरण्यवर्माने सैन्य-संग्रह करके राजा द्रुपदके ऊपर चढ़ाई करनेका निश्चय किया॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सम्मन्त्रयामास मन्त्रिभिः स महीपतिः।
हिरण्यवर्मा राजेन्द्र पाञ्चाल्यं पार्थिवं प्रति ॥ ६ ॥
मूलम्
ततः सम्मन्त्रयामास मन्त्रिभिः स महीपतिः।
हिरण्यवर्मा राजेन्द्र पाञ्चाल्यं पार्थिवं प्रति ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! फिर राजा हिरण्यवर्माने अपने मन्त्रियोंके साथ बैठकर परामर्श किया कि मुझे पांचालनरेशके साथ कैसा बर्ताव करना चाहिये॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र वै निश्चितं तेषामभूद् राज्ञां महात्मनाम्।
तथ्यं भवति चेदेतत् कन्या राजन् शिखण्डिनी ॥ ७ ॥
बद्ध्वा पञ्चालराजानमानयिष्यामहे गृहम् ।
अन्यं राजानमाधाय पञ्चालेषु नरेश्वरम् ॥ ८ ॥
घातयिष्याम नृपतिं पाञ्चालं सशिखण्डिनम् ॥ ९ ॥
मूलम्
तत्र वै निश्चितं तेषामभूद् राज्ञां महात्मनाम्।
तथ्यं भवति चेदेतत् कन्या राजन् शिखण्डिनी ॥ ७ ॥
बद्ध्वा पञ्चालराजानमानयिष्यामहे गृहम् ।
अन्यं राजानमाधाय पञ्चालेषु नरेश्वरम् ॥ ८ ॥
घातयिष्याम नृपतिं पाञ्चालं सशिखण्डिनम् ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ महामना मित्र राजाओंका यह निश्चय घोषित हुआ कि राजन्! यदि यह सत्य सिद्ध हुआ कि शिखण्डी वास्तवमें पुत्र नहीं कन्या है, तब हमलोग पांचालराजको कैद करके अपने घरको ले आयेंगे और पांचालदेशके राज्यपर दूसरे किसी राजाको बिठाकर शिखण्डीसहित द्रुपदको मरवा डालेंगे॥७—९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत् तथाभूतमाज्ञाय पुनर्दूतान्नराधिपः ।
प्रास्थापयत् पार्षताय निहन्मीति स्थिरो भव ॥ १० ॥
मूलम्
तत् तथाभूतमाज्ञाय पुनर्दूतान्नराधिपः ।
प्रास्थापयत् पार्षताय निहन्मीति स्थिरो भव ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर दूतके मुखसे उस समाचारको यथार्थ जानकर राजा हिरण्यवर्माने द्रुपदके पास दूत भेजा। स्थिर रहो (सावधान हो जाओ), मैं कुछ ही दिनोंमें तुम्हारा संहार कर डालूँगा॥१०॥
मूलम् (वचनम्)
भीष्म उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
स हि प्रकृत्या वै भीतः किल्विषी च नराधिपः।
भयं तीव्रमनुप्राप्तो द्रुपदः पृथिवीपतिः ॥ ११ ॥
मूलम्
स हि प्रकृत्या वै भीतः किल्विषी च नराधिपः।
भयं तीव्रमनुप्राप्तो द्रुपदः पृथिवीपतिः ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीष्म कहते हैं— राजा द्रुपद उन दिनों स्वभावसे ही भीरु थे। फिर उनके द्वारा अपराध भी बन गया था। अतः उन्होंने बड़े भारी भयका अनुभव किया॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विसृज्य दूतान् दाशार्णे द्रुपदः शोकमूर्छितः।
समेत्य भार्यां रहिते वाक्यमाह नराधिपः ॥ १२ ॥
मूलम्
विसृज्य दूतान् दाशार्णे द्रुपदः शोकमूर्छितः।
समेत्य भार्यां रहिते वाक्यमाह नराधिपः ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजा द्रुपदने दशार्णनरेशके पास दूतोंको भेजकर शोकसे अधीर हो एकान्त स्थानमें अपनी पत्नीसे मिलकर इस विषयमें बातचीत करनेकी इच्छा की॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भयेन महताऽऽविष्टो हृदि शोकेन चाहतः।
पाञ्चालराजो दयितां मातरं वै शिखण्डिनः ॥ १३ ॥
मूलम्
भयेन महताऽऽविष्टो हृदि शोकेन चाहतः।
पाञ्चालराजो दयितां मातरं वै शिखण्डिनः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
पांचालराजके हृदयमें बड़ा भारी भय समा गया था। वे शोकसे पीड़ित थे। अतः उन्होंने अपनी प्यारी पत्नी शिखण्डीकी मातासे इस प्रकार कहा—॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभियास्यति मां कोपात् सम्बन्धी सुमहाबलः।
हिरण्यवर्मा नृपतिः कर्षमाणो वरूथिनीम् ॥ १४ ॥
मूलम्
अभियास्यति मां कोपात् सम्बन्धी सुमहाबलः।
हिरण्यवर्मा नृपतिः कर्षमाणो वरूथिनीम् ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘देवि! मेरे महाबली सम्बन्धी हिरण्यवर्मा क्रोधवश अपनी विशाल सेना लाकर मेरे ऊपर आक्रमण करेंगे॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
किमिदानीं करिष्यावो मूढौ कन्यामिमां प्रति।
शिखण्डी किल पुत्रस्ते कन्येति परिशङ्कितः ॥ १५ ॥
मूलम्
किमिदानीं करिष्यावो मूढौ कन्यामिमां प्रति।
शिखण्डी किल पुत्रस्ते कन्येति परिशङ्कितः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘इस समय हम दोनों क्या करें? इस कन्याके प्रश्नको लेकर हमलोग किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे हैं। सम्बन्धीके मनमें यह शंका दृढ़मूल हो गयी है कि तुम्हारा पुत्र शिखण्डी वास्तवमें कन्या है॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इति संचिन्त्य यत्नेन समित्रः सबलानुगः।
वञ्चितोऽस्मीति मन्वानो मां किलोद्धर्तुमिच्छति ॥ १६ ॥
किमत्र तथ्यं सुश्रोणि मिथ्या किं ब्रूहि शोभने।
श्रुत्वा त्वत्तः शुभं वाक्यं संविधास्याम्यहं तथा ॥ १७ ॥
मूलम्
इति संचिन्त्य यत्नेन समित्रः सबलानुगः।
वञ्चितोऽस्मीति मन्वानो मां किलोद्धर्तुमिच्छति ॥ १६ ॥
किमत्र तथ्यं सुश्रोणि मिथ्या किं ब्रूहि शोभने।
श्रुत्वा त्वत्तः शुभं वाक्यं संविधास्याम्यहं तथा ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘यह सोचकर वे ऐसा मानने लगे हैं कि मेरे साथ धोखा किया गया है और इसलिये वे अपने मित्रों, सैनिकों तथा सेवकोंसहित आकर मुझे यत्नपूर्वक उखाड़ फेंकना चाहते हैं। सुश्रोणि! यहाँ क्या सच है और क्या झूठ? शोभने! इस बातको तुम्हीं बताओ। तुम्हारे मुखसे निकले हुए शुभ वचनको सुनकर मैं वैसा ही करूँगा॥१६-१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अहं हि संशयं प्राप्तो बाला चेयं शिखण्डिनी।
त्वं च राज्ञि महत् कृच्छ्रं सम्प्राप्ता वरवर्णिनि ॥ १८ ॥
मूलम्
अहं हि संशयं प्राप्तो बाला चेयं शिखण्डिनी।
त्वं च राज्ञि महत् कृच्छ्रं सम्प्राप्ता वरवर्णिनि ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘रानी! मेरा जीवन संशयमें पड़ गया है। यह शिखण्डिनी भी बालिका ही है। सुन्दरि! तुम भी महान् संकटमें फँस गयी हो॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सा त्वं सर्वविमोक्षाय तत्त्वमाख्याहि पृच्छतः।
तथा विदध्यां सुश्रोणि कृत्यमाशु शुचिस्मिते ॥ १९ ॥
मूलम्
सा त्वं सर्वविमोक्षाय तत्त्वमाख्याहि पृच्छतः।
तथा विदध्यां सुश्रोणि कृत्यमाशु शुचिस्मिते ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सुश्रोणि! मैं पूछ रहा हूँ। सबको संकटसे छुड़ानेके लिये कोई यथार्थ उपाय बताओ। शुचिस्मिते! मैं उस उपायको शीघ्र ही काममें लाऊँगा॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
शिखण्डिनि च मा भैस्त्वं विधास्ये तत्र तत्त्वतः।
कृपयाहं वरारोहे वञ्चितः पुत्रधर्मतः ॥ २० ॥
मूलम्
शिखण्डिनि च मा भैस्त्वं विधास्ये तत्र तत्त्वतः।
कृपयाहं वरारोहे वञ्चितः पुत्रधर्मतः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘सुन्दर अंगोंवाली महारानी! तुम शिखण्डीके विषयमें भय मत करो। मैं दया करके वही कार्य करूँगा, जो वस्तुतः हितकारक होगा, मैं स्वयं पुत्रधर्मसे वंचित हो गया हूँ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मया दाशार्णको राजा वञ्चितः स महीपतिः।
तदाचक्ष्व महाभागे विधास्ये तत्र यद्धितम् ॥ २१ ॥
मूलम्
मया दाशार्णको राजा वञ्चितः स महीपतिः।
तदाचक्ष्व महाभागे विधास्ये तत्र यद्धितम् ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
‘और मैंने दशार्णनरेश महाराज हिरण्यवर्माको भी वंचित किया है। अतः महाभागे! इस अवसरपर तुम्हारी दृष्टिमें जो हितकारक कार्य हो, उसे बताओ। मैं उसका अनुष्ठान करूँगा’॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जानता हि नरेन्द्रेण ख्यापनार्थं परस्य वै।
प्रकाशं चोदिता देवी प्रत्युवाच महीपतिम् ॥ २२ ॥
मूलम्
जानता हि नरेन्द्रेण ख्यापनार्थं परस्य वै।
प्रकाशं चोदिता देवी प्रत्युवाच महीपतिम् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
यद्यपि राजा द्रुपद सब कुछ जानते थे तो भी दूसरे लोगोंमें अपनी निर्दोषता सिद्ध करनेके लिये महारानीसे स्पष्ट शब्दोंमें पूछा। उनके प्रश्न करनेपर रानीने राजाको इस प्रकार उत्तर दिया॥२२॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि अम्बोपाख्यानपर्वणि द्रुपदप्रश्ने नवत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १९० ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्तर्गत अम्बोपाख्यानपर्वमें द्रुपदप्रश्नविषयक एक सौ नब्बेवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१९०॥