१८८ शिखण्ड्युत्पत्तौ

भागसूचना

अष्टाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

अम्बाका राजा द्रुपदके यहाँ कन्याके रूपमें जन्म, राजा तथा रानीका उसे पुत्ररूपमें प्रसिद्ध करके उसका नाम शिखण्डी रखना

मूलम् (वचनम्)

दुर्योधन उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

कथं शिखण्डी गाङ्गेय कन्या भूत्वा पुरा तदा।
पुरुषोऽभूद् युधिश्रेष्ठ तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १ ॥

मूलम्

कथं शिखण्डी गाङ्गेय कन्या भूत्वा पुरा तदा।
पुरुषोऽभूद् युधिश्रेष्ठ तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

दुर्योधनने पूछा— समरश्रेष्ठ गंगानन्दन पितामह! शिखण्डी पहले कन्यारूपमें उत्पन्न होकर फिर पुरुष कैसे हो गया, यह मुझे बताइये॥१॥

मूलम् (वचनम्)

भीष्म उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

भार्या तु तस्य राजेन्द्र द्रुपदस्य महीपतेः।
महिषी दयिता ह्यासीदपुत्रा च विशाम्पते ॥ २ ॥

मूलम्

भार्या तु तस्य राजेन्द्र द्रुपदस्य महीपतेः।
महिषी दयिता ह्यासीदपुत्रा च विशाम्पते ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मने कहा— प्रजापालक राजेन्द्र! राजा द्रुपदकी प्यारी पटरानीके कोई पुत्र नहीं था॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतस्मिन्नेव काले तु द्रुपदो वै महीपतिः।
अपत्यार्थे महाराज तोषयामास शङ्करम् ॥ ३ ॥

मूलम्

एतस्मिन्नेव काले तु द्रुपदो वै महीपतिः।
अपत्यार्थे महाराज तोषयामास शङ्करम् ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! इसी समय भूपाल द्रुपदने संतानकी प्राप्तिके लिये भगवान् शंकरको संतुष्ट किया॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अस्मद्वधार्थं निश्चित्य तपो घोरं समास्थितः।
ऋते कन्यां महादेव पुत्रो मे स्यादिति ब्रुवन् ॥ ४ ॥
भगवन् पुत्रमिच्छामि भीष्मं प्रतिचिकीर्षया।
इत्युक्तो देवदेवेन स्त्रीपुमांस्ते भविष्यति ॥ ५ ॥
निवर्तस्व महीपाल नैतज्जात्वन्यथा भवेत्।

मूलम्

अस्मद्वधार्थं निश्चित्य तपो घोरं समास्थितः।
ऋते कन्यां महादेव पुत्रो मे स्यादिति ब्रुवन् ॥ ४ ॥
भगवन् पुत्रमिच्छामि भीष्मं प्रतिचिकीर्षया।
इत्युक्तो देवदेवेन स्त्रीपुमांस्ते भविष्यति ॥ ५ ॥
निवर्तस्व महीपाल नैतज्जात्वन्यथा भवेत्।

अनुवाद (हिन्दी)

हमलोगोंके वधके लिये पुत्र पानेका निश्चित संकल्प लेकर उन्होंने यह कहते हुए घोर तपस्या की थी कि ‘महादेव! मुझे कन्या नहीं, पुत्र प्राप्त हो। भगवन्! मैं भीष्मसे बदला लेनेके लिये पुत्र चाहता हूँ’। यह सुनकर देवाधिदेव महादेवजीने कहा—‘भूपाल! तुम्हें पहले कन्या प्राप्त होगी, फिर वही पुरुष हो जायगी। अब तुम लौटो। मैंने जो कहा है वह कभी मिथ्या नहीं हो सकता’॥४-५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स तु गत्वा च नगरं भार्यामिदमुवाच ह ॥ ६ ॥
कृतो यत्नो महादेवस्तपसाऽऽराधितो मया।
कन्या भूत्वा पुमान् भावी इति चोक्तोऽस्मि शम्भुना ॥ ७ ॥
पुनः पुनर्याच्यमानो दिष्टमित्यब्रवीच्छिवः ।
न तदन्यच्च भविता भवितव्यं हि तत् तथा ॥ ८ ॥

मूलम्

स तु गत्वा च नगरं भार्यामिदमुवाच ह ॥ ६ ॥
कृतो यत्नो महादेवस्तपसाऽऽराधितो मया।
कन्या भूत्वा पुमान् भावी इति चोक्तोऽस्मि शम्भुना ॥ ७ ॥
पुनः पुनर्याच्यमानो दिष्टमित्यब्रवीच्छिवः ।
न तदन्यच्च भविता भवितव्यं हि तत् तथा ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तब राजा द्रुपद नगरको लौट गये और अपनी पत्नीसे इस प्रकार बोले—‘देवि! मैंने बड़ा प्रयत्न किया। तपस्याके द्वारा महादेवजीकी आराधना की। तब भगवान् शंकरने प्रसन्न होकर कहा—पहले तुम्हें पुत्री होगी; फिर वही पुत्रके रूपमें परिणत हो जायगी। मैंने बार-बार केवल पुत्रके लिये याचना की; परंतु भगवान् शिवने इसे दैवका विधान बताया है और कहा—‘यह बदल नहीं सकता। जो कहा गया है, वही होगा’॥६—८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः सा नियता भूत्वा ऋतुकाले मनस्विनी।
पत्नी द्रुपदराजस्य द्रुपदं प्रविवेश ह ॥ ९ ॥
लेभे गर्भं यथाकालं विधिदृष्टेन कर्मणा।
पार्षतस्य महीपाल यथा मां नारदोऽब्रवीत् ॥ १० ॥
ततो दधार सा देवी गर्भं राजीवलोचना।

मूलम्

ततः सा नियता भूत्वा ऋतुकाले मनस्विनी।
पत्नी द्रुपदराजस्य द्रुपदं प्रविवेश ह ॥ ९ ॥
लेभे गर्भं यथाकालं विधिदृष्टेन कर्मणा।
पार्षतस्य महीपाल यथा मां नारदोऽब्रवीत् ॥ १० ॥
ततो दधार सा देवी गर्भं राजीवलोचना।

अनुवाद (हिन्दी)

तदनन्तर द्रुपदराजकी मनस्विनी पत्नीने नियमपूर्वक रहकर द्रुपदके साथ संयोग किया। शास्त्रीय विधिसे गर्भाधान-संस्कार होनेपर यथासमय उसने गर्भ धारण किया। राजन्! जैसा कि मुझसे नारदजीने कहा था। द्रुपदकी कमलनयनी रानीने इसी प्रकार गर्भ धारण किया॥९-१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तां स राजा प्रियां भार्यां द्रुपदः कुरुनन्दन ॥ ११ ॥
पुत्रस्नेहान्महाबाहुः सुखं पर्यचरत् तदा।
सर्वानभिप्रायकृतान् भार्यालभत कौरव ॥ १२ ॥

मूलम्

तां स राजा प्रियां भार्यां द्रुपदः कुरुनन्दन ॥ ११ ॥
पुत्रस्नेहान्महाबाहुः सुखं पर्यचरत् तदा।
सर्वानभिप्रायकृतान् भार्यालभत कौरव ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुरुनन्दन! महाबाहु द्रुपदने भावी पुत्रके प्रति स्नेह होनेके कारण अपनी प्यारी पत्नीको बड़े सुखसे रखा। उसका आदर-सत्कार किया। कुरुकुलरत्न! रानीको जिन-जिन वस्तुओंकी इच्छा हुई, वे सब उनके सामने प्रस्तुत की गयीं॥११-१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपुत्रस्य सतो राज्ञो द्रुपदस्य महीपतेः।
यथाकालं तु सा देवी महिषी द्रुपदस्य ह ॥ १३ ॥
कन्यां प्रवररूपां तु प्राजायत नराधिप।

मूलम्

अपुत्रस्य सतो राज्ञो द्रुपदस्य महीपतेः।
यथाकालं तु सा देवी महिषी द्रुपदस्य ह ॥ १३ ॥
कन्यां प्रवररूपां तु प्राजायत नराधिप।

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! पुत्रहीन राजा द्रुपदकी उस महारानीने समय आनेपर एक परम सुन्दरी कन्याको जन्म दिया॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपुत्रस्य तु राज्ञः सा द्रुपदस्य मनस्विनी ॥ १४ ॥
ख्यापयामास राजेन्द्र पुत्रो ह्येष ममेति वै।

मूलम्

अपुत्रस्य तु राज्ञः सा द्रुपदस्य मनस्विनी ॥ १४ ॥
ख्यापयामास राजेन्द्र पुत्रो ह्येष ममेति वै।

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! तब पुत्रहीन राजा द्रुपदकी मनस्विनी रानीने यह घोषणा करा दी कि यह मेरा पुत्र है॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततः स राजा द्रुपदः प्रच्छन्नाया नराधिप ॥ १५ ॥
पुत्रवत् पुत्रकार्याणि सर्वाणि समकारयत्।
रक्षणं चैव मन्त्रस्य महिषी द्रुपदस्य सा ॥ १६ ॥
चकार सर्वयत्नेन ब्रुवाणा पुत्र इत्युत।
न च तां वेद नगरे कश्चिदन्यत्र पार्षतात् ॥ १७ ॥

मूलम्

ततः स राजा द्रुपदः प्रच्छन्नाया नराधिप ॥ १५ ॥
पुत्रवत् पुत्रकार्याणि सर्वाणि समकारयत्।
रक्षणं चैव मन्त्रस्य महिषी द्रुपदस्य सा ॥ १६ ॥
चकार सर्वयत्नेन ब्रुवाणा पुत्र इत्युत।
न च तां वेद नगरे कश्चिदन्यत्र पार्षतात् ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेन्द्र! इसके बाद राजा द्रुपदने छिपाकर रखी हुई उस कन्याके सभी संस्कार पुत्रके ही समान कराये। द्रुपदकी रानीने सब प्रकारका प्रयत्न करके इस रहस्यको गुप्त रखनेकी व्यवस्था की। वह उस कन्याको पुत्र कहकर ही पुकारती थी। सारे नगरमें केवल द्रुपदको छोड़कर दूसरा कोई नहीं जानता था कि वह कन्या है॥१५—१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रद्दधानो हि तद्वाक्यं देवस्याच्युततेजसः।
छादयामास तां कन्या पुमानिति च सोऽब्रवीत् ॥ १८ ॥

मूलम्

श्रद्दधानो हि तद्वाक्यं देवस्याच्युततेजसः।
छादयामास तां कन्या पुमानिति च सोऽब्रवीत् ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिनका तेज कभी क्षीण नहीं होता, उन महादेवजीके वचनोंपर श्रद्धा रखनेके कारण राजा द्रुपदने उसके कन्याभावको छिपाया और पुत्र होनेकी घोषणा कर दी॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जातकर्माणि सर्वाणि कारयामास पार्थिवः।
पुंवद्विधानयुक्तानि शिखण्डीति च तां विदुः ॥ १९ ॥

मूलम्

जातकर्माणि सर्वाणि कारयामास पार्थिवः।
पुंवद्विधानयुक्तानि शिखण्डीति च तां विदुः ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजाने बालकके सम्पूर्ण जातकर्म पुत्रोचित विधानसे ही करवाये, लोग उसे ‘शिखण्डी’ के नामसे जानते थे॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अहमेकस्तु चारेण वचनान्नारदस्य च।
ज्ञातवान् देववाक्येन अम्बायास्तपसा तथा ॥ २० ॥

मूलम्

अहमेकस्तु चारेण वचनान्नारदस्य च।
ज्ञातवान् देववाक्येन अम्बायास्तपसा तथा ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

केवल मैं गुप्तचरके दिये हुए समाचारसे, नारदजीके कथनसे, महादेवजीके वरदान-वाक्यसे तथा अम्बाकी तपस्यासे शिखण्डीके कन्या होनेका वृत्तान्त जान गया था॥२०।

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि अम्बोपाख्यानपर्वणि शिखण्ड्युत्पत्तौ अष्टाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १८८ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्तर्गत अम्बोपाख्यानपर्वमें शिखण्डीका उत्पत्तिविषयक एक सौ अट्ठासीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१८८॥