भागसूचना
द्व्यशीत्यधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
भीष्म और परशुरामका युद्ध
मूलम् (वचनम्)
भीष्म उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः प्रभाते राजेन्द्र सूर्ये विमलतां गते।
भार्गवस्य मया सार्धं पुनर्युद्धमवर्तत ॥ १ ॥
मूलम्
ततः प्रभाते राजेन्द्र सूर्ये विमलतां गते।
भार्गवस्य मया सार्धं पुनर्युद्धमवर्तत ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीष्मजी कहते हैं— राजेन्द्र! तदनन्तर प्रातःकाल जब सूर्यदेव उदित होकर प्रकाशमें आ गये, उस समय मेरे साथ परशुरामजीका युद्ध पुनः प्रारम्भ हुआ॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽभ्रान्ते रथे तिष्ठन् रामः प्रहरतां वरः।
ववर्ष शरजालानि मयि मेघ इवाचले ॥ २ ॥
मूलम्
ततोऽभ्रान्ते रथे तिष्ठन् रामः प्रहरतां वरः।
ववर्ष शरजालानि मयि मेघ इवाचले ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तत्पश्चात् योद्धाओंमें श्रेष्ठ परशुरामजी स्थिर रथपर खड़े हो जैसे मेघ पर्वतपर जलकी बौछार करता है, उसी प्रकार मेरे ऊपर बाणसमूहोंकी वर्षा करने लगे॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सूतो मम सुहृच्छरवर्षेण ताडितः।
अपयातो रथोपस्थान्मनो मम विषादयन् ॥ ३ ॥
मूलम्
ततः सूतो मम सुहृच्छरवर्षेण ताडितः।
अपयातो रथोपस्थान्मनो मम विषादयन् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय मेरा प्रिय सुहृद् सारथि बाणवर्षासे पीड़ित हो मेरे मनको विषादमें डालता हुआ रथकी बैठकसे नीचे गिर गया॥३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सूतो ममात्यर्थं कश्मलं प्राविशन्महत्।
पृथिव्यां च शराघातान्निपपात मुमोह च ॥ ४ ॥
मूलम्
ततः सूतो ममात्यर्थं कश्मलं प्राविशन्महत्।
पृथिव्यां च शराघातान्निपपात मुमोह च ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मेरे सारथिको अत्यन्त मोह छा गया था। वह बाणोंके आघातसे पृथ्वीपर गिरा और अचेत हो गया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सूतोऽजहात् प्राणान् रामबाणप्रपीडितः।
मुहूर्तादिव राजेन्द्र मां च भीराविशत् तदा ॥ ५ ॥
मूलम्
ततः सूतोऽजहात् प्राणान् रामबाणप्रपीडितः।
मुहूर्तादिव राजेन्द्र मां च भीराविशत् तदा ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! परशुरामजीके बाणोंसे अत्यन्त पीड़ित होनेके कारण दो ही घड़ीमें सूतने प्राण त्याग दिये। उस समय मेरे मनमें बड़ा भय समा गया॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सूते हते तस्मिन् क्षिपतस्तस्य मे शरान्।
प्रमत्तमनसो रामः प्राहिणोन्मृत्युसम्मितम् ॥ ६ ॥
मूलम्
ततः सूते हते तस्मिन् क्षिपतस्तस्य मे शरान्।
प्रमत्तमनसो रामः प्राहिणोन्मृत्युसम्मितम् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस सारथिके मारे जानेपर मैं असावधान मनसे परशुरामजीके बाणोंको काट रहा था! इतनेहीमें परशुरामजीने मुझपर मृत्युके समान भयंकर बाण छोड़ा॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः सूतव्यसनिनं विप्लुतं मां स भार्गवः।
शरेणाभ्यहनद् गाढं विकृष्य बलवद्धनुः ॥ ७ ॥
मूलम्
ततः सूतव्यसनिनं विप्लुतं मां स भार्गवः।
शरेणाभ्यहनद् गाढं विकृष्य बलवद्धनुः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय मैं सारथिकी मृत्युके कारण व्याकुल था तो भी भृगुनन्दन परशुरामने अपने सुदृढ़ धनुषको जोर-जोरसे खींचकर मुझपर बाणसे गहरा आघात किया॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स मे भुजान्तरे राजन् निपत्य रुधिराशनः।
मयैव सह राजेन्द्र जगाम वसुधातलम् ॥ ८ ॥
मूलम्
स मे भुजान्तरे राजन् निपत्य रुधिराशनः।
मयैव सह राजेन्द्र जगाम वसुधातलम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! वह रक्त पीनेवाला बाण मेरी दोनों भुजाओंके बीच (वक्षःस्थलमें) चोट पहुँचाकर मुझे साथ लिये-दिये पृथ्वीपर जा गिरा॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मत्वा तु निहतं रामस्ततो मां भरतर्षभ।
मेघवद् विननादोच्चैर्जहृषे च पुनः पुनः ॥ ९ ॥
मूलम्
मत्वा तु निहतं रामस्ततो मां भरतर्षभ।
मेघवद् विननादोच्चैर्जहृषे च पुनः पुनः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! उस समय मुझे मारा गया जानकर परशुरामजी मेघके समान गम्भीर स्वरसे गर्जना करने लगे। उनके शरीरमें बार-बार हर्षजनित रोमांच होने लगा॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तथा तु पतिते राजन् मयि रामो मुदा युतः।
उदक्रोशन्महानादं सह तैरनुयायिभिः ॥ १० ॥
मूलम्
तथा तु पतिते राजन् मयि रामो मुदा युतः।
उदक्रोशन्महानादं सह तैरनुयायिभिः ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इस प्रकार मेरे धराशायी होनेपर परशुरामजीको बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने अपने अनुयायियोंके साथ महान् कोलाहल मचाया॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मम तत्राभवन् ये तु कुरवः पार्श्वतः स्थिताः।
आगता अपि युद्धं तज्जनास्तत्र दिदृक्षवः।
आर्तिं परमिकां जग्मुस्ते तदा पतिते मयि ॥ ११ ॥
मूलम्
मम तत्राभवन् ये तु कुरवः पार्श्वतः स्थिताः।
आगता अपि युद्धं तज्जनास्तत्र दिदृक्षवः।
आर्तिं परमिकां जग्मुस्ते तदा पतिते मयि ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वहाँ मेरे पार्श्वभागमें जो कुरुवंशी क्षत्रियगण खड़े थे तथा जो लोग वहाँ युद्ध देखनेकी इच्छासे आये थे, उन सबको मेरे गिर जानेपर बड़ा दुःख हुआ॥११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽपश्यं पतितो राजसिंहं
द्विजानष्टौ सूर्यहुताशनाभान् ।
ते मां समन्तात् परिवार्य तस्थुः
स्वबाहुभिः परिधार्याजिमध्ये ॥ १२ ॥
मूलम्
ततोऽपश्यं पतितो राजसिंहं
द्विजानष्टौ सूर्यहुताशनाभान् ।
ते मां समन्तात् परिवार्य तस्थुः
स्वबाहुभिः परिधार्याजिमध्ये ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजसिंह! वहाँ गिरते समय मैंने देखा कि सूर्य और अग्निके समान तेजस्वी आठ ब्राह्मण आये और संग्रामभूमिमें मुझे सब ओरसे घेरकर अपनी भुजाओंपर ही मेरे शरीरको धारण करके खड़े हो गये॥१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रक्ष्यमाणश्च तैर्विप्रैर्नाहं भूमिमुपास्पृशम् ।
अन्तरिक्षे धृतो ह्यस्मि तैर्विप्रैर्बान्धवैरिव ॥ १३ ॥
मूलम्
रक्ष्यमाणश्च तैर्विप्रैर्नाहं भूमिमुपास्पृशम् ।
अन्तरिक्षे धृतो ह्यस्मि तैर्विप्रैर्बान्धवैरिव ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन ब्राह्मणोंसे सुरक्षित होनेके कारण मुझे धरतीका स्पर्श नहीं करना पड़ा। मेरे सगे भाई-बन्धुओंकी भाँति उन ब्राह्मणोंने मुझे आकाशमें ही रोक लिया था॥१३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्वसन्निवान्तरिक्षे च जलबिन्दुभिरुक्षितः ।
ततस्ते ब्राह्मणा राजन्नब्रुवन् परिगृह्य माम् ॥ १४ ॥
मूलम्
श्वसन्निवान्तरिक्षे च जलबिन्दुभिरुक्षितः ।
ततस्ते ब्राह्मणा राजन्नब्रुवन् परिगृह्य माम् ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! आकाशमें मैं साँस लेता-सा ठहर गया था। उस समय ब्राह्मणोंने मुझपर जलकी बूँदें छिड़क दीं। फिर वे मुझे पकड़कर बोले॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मा भैरिति समं सर्वे स्वस्ति तेऽस्त्विति चासकृत्।
ततस्तेषामहं वाग्भिस्तर्पितः सहसोत्थितः ।
मातरं सरितां श्रेष्ठामपश्यं रथमास्थिताम् ॥ १५ ॥
मूलम्
मा भैरिति समं सर्वे स्वस्ति तेऽस्त्विति चासकृत्।
ततस्तेषामहं वाग्भिस्तर्पितः सहसोत्थितः ।
मातरं सरितां श्रेष्ठामपश्यं रथमास्थिताम् ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उन सबने एक साथ ही बार-बार कहा—‘तुम्हारा कल्याण हो। तुम भयभीत न हो।’ उनके वचनामृतोंसे तृप्त होकर मैं सहसा उठकर खड़ा हो गया और देखा, मेरे रथपर सारथिके स्थानमें सरिताओंमें श्रेष्ठ माता गंगा बैठी हुई हैं॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हयाश्च मे संगृहीतास्तयासन्
महानद्या संयति कौरवेन्द्र ।
पादौ जनन्याः प्रतिगृह्य चाहं
तथा पितॄणां रथमभ्यरोहम् ॥ १६ ॥
मूलम्
हयाश्च मे संगृहीतास्तयासन्
महानद्या संयति कौरवेन्द्र ।
पादौ जनन्याः प्रतिगृह्य चाहं
तथा पितॄणां रथमभ्यरोहम् ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कौरवराज! उस युद्धमें महानदी माता गंगाने मेरे घोड़ोंकी बागडोर पकड़ रखी थी। तब मैं माताके चरणोंका स्पर्श करके और पितरोंके उद्देश्यसे भी मस्तक नवाकर उस रथपर जा बैठा॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ररक्ष सा मां सरथं हयांश्चोपस्कराणि च।
तामहं प्राञ्जलिर्भूत्वा पुनरेव व्यसर्जयम् ॥ १७ ॥
मूलम्
ररक्ष सा मां सरथं हयांश्चोपस्कराणि च।
तामहं प्राञ्जलिर्भूत्वा पुनरेव व्यसर्जयम् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
माताने मेरे रथ, घोड़ों तथा अन्यान्य उपकरणोंकी रक्षा की। तब मैंने हाथ जोड़कर पुनः माताको विदा कर दिया॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽहं स्वयमुद्यम्य हयांस्तान् वातरंहसः।
अयुध्यं जामदग्न्येन निवृत्तेऽहनि भारत ॥ १८ ॥
मूलम्
ततोऽहं स्वयमुद्यम्य हयांस्तान् वातरंहसः।
अयुध्यं जामदग्न्येन निवृत्तेऽहनि भारत ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भारत! तदनन्तर स्वयं ही उन वायुके समान वेगशाली घोड़ोंको काबूमें करके मैं जमदग्निनन्दन परशुरामजीके साथ युद्ध करने लगा। उस समय दिन प्रायः समाप्त हो चला था॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततोऽहं भरतश्रेष्ठ वेगवन्तं महाबलम्।
अमुञ्चं समरे बाणं रामाय हृदयच्छिदम् ॥ १९ ॥
मूलम्
ततोऽहं भरतश्रेष्ठ वेगवन्तं महाबलम्।
अमुञ्चं समरे बाणं रामाय हृदयच्छिदम् ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भरतश्रेष्ठ! उस समरभूमिमें मैंने परशुरामजीकी ओर एक प्रबल एवं वेगवान् बाण चलाया, जो हृदयको विदीर्ण कर देनेवाला था॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो जगाम वसुधां मम बाणप्रपीडितः।
जानुभ्यां धनुरुत्सृज्य रामो मोहवशं गतः ॥ २० ॥
मूलम्
ततो जगाम वसुधां मम बाणप्रपीडितः।
जानुभ्यां धनुरुत्सृज्य रामो मोहवशं गतः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
मेरे उस बाणसे अत्यन्त पीड़ित हो परशुरामजीने मूर्च्छाके वशीभूत होकर धनुष छोड़ धरतीपर घुटने टेक दिये॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततस्तस्मिन् निपतिते रामे भूरिसहस्रदे।
आवव्रुर्जलदा व्योम क्षरन्तो रुधिरं बहु ॥ २१ ॥
मूलम्
ततस्तस्मिन् निपतिते रामे भूरिसहस्रदे।
आवव्रुर्जलदा व्योम क्षरन्तो रुधिरं बहु ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अनेक सहस्र ब्राह्मणोंको बहुत दान करनेवाले परशुरामजीके धराशायी होनेपर अधिकाधिक रक्तकी वर्षा करते हुए बादलोंने आकाशको ढक लिया॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उल्काश्च शतशः पेतुः सनिर्घाताः सकम्पनाः।
अर्कं च सहसा दीप्तं स्वर्भानुरभिसंवृणोत् ॥ २२ ॥
मूलम्
उल्काश्च शतशः पेतुः सनिर्घाताः सकम्पनाः।
अर्कं च सहसा दीप्तं स्वर्भानुरभिसंवृणोत् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
बिजलीकी गड़गड़ाहटके समान सैकड़ों उल्कापात होने लगे। भूकम्प आ गया। अपनी किरणोंसे उद्भासित होनेवाले सूर्यदेवको राहुने सब ओरसे सहसा घेर लिया॥२२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ववुश्च वाताः परुषाश्चलिता च वसुन्धरा।
गृध्रा बलाश्च कङ्काश्च परिपेतुर्मुदा युताः ॥ २३ ॥
मूलम्
ववुश्च वाताः परुषाश्चलिता च वसुन्धरा।
गृध्रा बलाश्च कङ्काश्च परिपेतुर्मुदा युताः ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वायु तीव्र वेगसे बहने लगी, धरती डोलने लगी, गीध, कौवे और कंक प्रसन्नतापूर्वक सब ओर उड़ने लगे॥२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दीप्तायां दिशि गोमायुर्दारुणं मुहुरुन्नदत्।
अनाहता दुन्दुभयो विनेदुर्भृशनिःस्वनाः ॥ २४ ॥
मूलम्
दीप्तायां दिशि गोमायुर्दारुणं मुहुरुन्नदत्।
अनाहता दुन्दुभयो विनेदुर्भृशनिःस्वनाः ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
दिशाओंमें दाह-सा होने लगा, गीदड़ बार-बार भयंकर बोली बोलने लगा, दुन्दुभियाँ बिना बजाये ही जोर-जोरसे बजने लगीं॥२४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतदौत्पातिकं सर्वं घोरमासीद् भयंकरम्।
विसंज्ञकल्पे धरणीं गते रामे महात्मनि ॥ २५ ॥
मूलम्
एतदौत्पातिकं सर्वं घोरमासीद् भयंकरम्।
विसंज्ञकल्पे धरणीं गते रामे महात्मनि ॥ २५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस प्रकार महात्मा परशुरामके मूर्च्छित होकर पृथ्वीपर गिरते ही ये समस्त उत्पातसूचक अत्यन्त भयंकर अपशकुन होने लगे॥२५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो वै सहसोत्थाय रामो मामभ्यवर्तत।
पुनर्युद्धाय कौरव्य विह्वलः क्रोधमूर्च्छितः ॥ २६ ॥
मूलम्
ततो वै सहसोत्थाय रामो मामभ्यवर्तत।
पुनर्युद्धाय कौरव्य विह्वलः क्रोधमूर्च्छितः ॥ २६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुनन्दन! इसी समय परशुरामजी सहसा उठकर क्रोधसे मूर्च्छित एवं विह्वल हो पुनः युद्धके लिये मेरे समीप आये॥२६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आददानो महाबाहुः कार्मुकं तालसंनिभम्।
ततो मय्याददानं तं राममेव न्यवारयन् ॥ २७ ॥
महर्षयः कृपायुक्ताः क्रोधाविष्टोऽथ भार्गवः।
स मेऽहरदमेयात्मा शरं कालानलोपमम् ॥ २८ ॥
मूलम्
आददानो महाबाहुः कार्मुकं तालसंनिभम्।
ततो मय्याददानं तं राममेव न्यवारयन् ॥ २७ ॥
महर्षयः कृपायुक्ताः क्रोधाविष्टोऽथ भार्गवः।
स मेऽहरदमेयात्मा शरं कालानलोपमम् ॥ २८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
परशुराम ताड़के समान विशाल धनुष लिये हुए थे। जब वे मेरे लिये बाण उठाने लगे, तब दयालु महर्षियोंने उन्हें रोक दिया। वह बाण कालाग्निके समान भयंकर था। अमेयस्वरूप भार्गवने कुपित होनेपर भी मुनियोंके कहनेसे उस बाणका उपसंहार कर लिया॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततो रविर्मन्दमरीचिमण्डलो
जगामास्तं पांसुपुञ्जावगूढः ।
निशाव्यगाहत् सुखशीतमारुता
ततो युद्धं प्रत्यवहारयावः ॥ २९ ॥
मूलम्
ततो रविर्मन्दमरीचिमण्डलो
जगामास्तं पांसुपुञ्जावगूढः ।
निशाव्यगाहत् सुखशीतमारुता
ततो युद्धं प्रत्यवहारयावः ॥ २९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तदनन्तर मन्द किरणोंके पुंजसे प्रकाशित सूर्यदेव युद्धभूमिकी उड़ती हुई धूलोंसे आच्छादित हो अस्ताचलको चले गये। रात्रि आ गयी और सुखद शीतल वायु चलने लगी। उस समय हम दोनोंने युद्ध समाप्त कर दिया॥२९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एवं राजन्नवहारो बभूव
ततः पुनर्विमलेऽभूत् सुघोरम् ।
कल्यं कल्यं विंशतिं वै दिनानि
तथैव चान्यानि दिनानि त्रीणि ॥ ३० ॥
मूलम्
एवं राजन्नवहारो बभूव
ततः पुनर्विमलेऽभूत् सुघोरम् ।
कल्यं कल्यं विंशतिं वै दिनानि
तथैव चान्यानि दिनानि त्रीणि ॥ ३० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! इस प्रकार प्रतिदिन संध्याके समय युद्ध बंद हो जाता और प्रातःकाल सूर्योदय होनेपर पुनः अत्यन्त भयंकर संग्राम छिड़ जाता था। इस प्रकार हम दोनोंके युद्ध करते-करते तेईस दिन बीत गये॥३०॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि अम्बोपाख्यानपर्वणि रामभीष्मयुद्धे द्व्यशीत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १८२ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्तर्गत अम्बोपाख्यानपर्वमें परशुराम-भीष्मयुद्धविषयक एक सौ बयासीवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१८२॥