१७४ अम्बावाक्ये

भागसूचना

चतुःसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

अम्बाका शाल्वराजके प्रति अपना अनुराग प्रकट करके उनके पास जानेके लिये भीष्मसे आज्ञा माँगना

मूलम् (वचनम्)

भीष्म उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततोऽहं भरतश्रेष्ठ मातरं वीरमातरम्।
अभिगम्योपसंगृह्य दाशेयीमिदमब्रुवम् ॥ १ ॥

मूलम्

ततोऽहं भरतश्रेष्ठ मातरं वीरमातरम्।
अभिगम्योपसंगृह्य दाशेयीमिदमब्रुवम् ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मजी कहते हैं— भरतश्रेष्ठ! तदनन्तर मैंने वीरजननी दाशराजकी कन्या माता सत्यवतीके पास जाकर उनके चरणोंमें प्रणाम करके इस प्रकार कहा—॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इमाः काशिपतेः कन्या मया निर्जित्य पार्थिवान्।
विचित्रवीर्यस्य कृते वीर्यशुल्का हृता इति ॥ २ ॥

मूलम्

इमाः काशिपतेः कन्या मया निर्जित्य पार्थिवान्।
विचित्रवीर्यस्य कृते वीर्यशुल्का हृता इति ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘माँ! ये काशिराजकी कन्याएँ हैं। पराक्रम ही इनका शुल्क था। इसलिये मैं समस्त राजाओंको जीतकर भाई विचित्रवीर्यके लिये इन्हें हर लाया हूँ’॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ततो मूर्धन्युपाघ्राय पर्यश्रुनयना नृप।
आह सत्यवती हृष्टा दिष्ट्या पुत्र जितं त्वया ॥ ३ ॥

मूलम्

ततो मूर्धन्युपाघ्राय पर्यश्रुनयना नृप।
आह सत्यवती हृष्टा दिष्ट्या पुत्र जितं त्वया ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

नरेश्वर! यह सुनकर माता सत्यवतीके नेत्रोंमें हर्षके आँसू छलक आये। उन्होंने मेरा मस्तक सूँघकर प्रसन्नतापूर्वक कहा—‘बेटा! बड़े सौभाग्यकी बात है कि तुम विजयी हुए’॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सत्यवत्यास्त्वनुमते विवाहे समुपस्थिते ।
उवाच वाक्यं सव्रीडा ज्येष्ठा काशिपतेः सुता ॥ ४ ॥

मूलम्

सत्यवत्यास्त्वनुमते विवाहे समुपस्थिते ।
उवाच वाक्यं सव्रीडा ज्येष्ठा काशिपतेः सुता ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सत्यवतीकी अनुमतिसे जब विवाहका कार्य उपस्थित हुआ, तब काशिराजकी ज्येष्ठ पुत्री अम्बाने कुछ लज्जित होकर मुझसे कहा—॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीष्म त्वमसि धर्मज्ञः सर्वशास्त्रविशारदः।
श्रुत्वा च वचनं धर्म्यं मह्यं कर्तुमिहार्हसि ॥ ५ ॥

मूलम्

भीष्म त्वमसि धर्मज्ञः सर्वशास्त्रविशारदः।
श्रुत्वा च वचनं धर्म्यं मह्यं कर्तुमिहार्हसि ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘भीष्म! तुम धर्मके ज्ञाता और सम्पूर्ण शास्त्रोंके ज्ञानमें निपुण हो। मेरी बात सुनकर मेरे साथ धर्मपूर्ण बर्ताव करना चाहिये॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मया शाल्वपतिः पूर्वं मनसाभिवृतो वरः।
तेन चास्मि वृता पूर्वं रहस्यविदिते पितुः ॥ ६ ॥

मूलम्

मया शाल्वपतिः पूर्वं मनसाभिवृतो वरः।
तेन चास्मि वृता पूर्वं रहस्यविदिते पितुः ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘मैंने अपने मनसे पहले शाल्वराजको अपना पति चुन लिया है और उन्होंने भी एकान्तमें मेरा वरण कर लिया है। यह पहलेकी बात है, जो मेरे पिताको भी ज्ञात नहीं है॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कथं मामन्यकामां त्वं राजधर्ममतीत्य वै।
वासयेथा गृहे भीष्म कौरवः सन् विशेषतः ॥ ७ ॥

मूलम्

कथं मामन्यकामां त्वं राजधर्ममतीत्य वै।
वासयेथा गृहे भीष्म कौरवः सन् विशेषतः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘भीष्म! मैं दूसरेकी कामना करनेवाली राजकन्या हूँ। तुम विशेषतः कुरुवंशी होकर राजधर्मका उल्लंघन करके मुझे अपने घरमें कैसे रखोगे?॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतद् बुद्ध्या विनिश्चित्य मनसा भरतर्षभ।
यत् क्षमं ते महाबाहो तदिहारब्धुमर्हसि ॥ ८ ॥

मूलम्

एतद् बुद्ध्या विनिश्चित्य मनसा भरतर्षभ।
यत् क्षमं ते महाबाहो तदिहारब्धुमर्हसि ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘महाबाहु भरतश्रेष्ठ! अपनी बुद्धि और मनसे इस विषयमें निश्चित विचार करके तुम्हें जो उचित प्रतीत हो, वही करना चाहिये॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स मां प्रतीक्षते व्यक्तं शाल्वराजो विशाम्पते।
तस्मान्मां त्वं कुरुश्रेष्ठ समनुज्ञातुमर्हसि ॥ ९ ॥

मूलम्

स मां प्रतीक्षते व्यक्तं शाल्वराजो विशाम्पते।
तस्मान्मां त्वं कुरुश्रेष्ठ समनुज्ञातुमर्हसि ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘प्रजानाथ! शाल्वराज निश्चय ही मेरी प्रतीक्षा करते होंगे; अतः कुरुश्रेष्ठ! तुम्हें मुझे उनकी सेवामें जानेकी आज्ञा देनी चाहिये॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कृपां कुरु महाबाहो मयि धर्मभृतां वर।
त्वं हि सत्यव्रतो वीर पृथिव्यामिति नः श्रुतम् ॥ १० ॥

मूलम्

कृपां कुरु महाबाहो मयि धर्मभृतां वर।
त्वं हि सत्यव्रतो वीर पृथिव्यामिति नः श्रुतम् ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

‘धर्मात्माओंमें श्रेष्ठ! महाबाहु वीर! मुझपर कृपा करो। मैंने सुना है कि इस पृथ्वीपर तुम सत्यव्रती महात्मा हो’॥१०॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि अम्बोपाख्यानपर्वणि अम्बावाक्ये चतुःसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १७४ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्तर्गत अम्बोपाख्यानपर्वमें अम्बावाक्यविषयक एक सौ चौहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१७४॥