१७१

भागसूचना

एकसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

पाण्डवपक्षके रथी, महारथी एवं अतिरथी आदिका वर्णन

मूलम् (वचनम्)

भीष्म उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

पञ्चालराजस्य सुतो राजन् परपुरंजयः।
शिखण्डी रथमुख्यो मे मतः पार्थस्य भारत ॥ १ ॥

मूलम्

पञ्चालराजस्य सुतो राजन् परपुरंजयः।
शिखण्डी रथमुख्यो मे मतः पार्थस्य भारत ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मजी कहते हैं— राजन्! भरतनन्दन! पांचालराज द्रुपदका पुत्र शिखण्डी शत्रुओंकी नगरीपर विजय पानेवाला है, मैं उसे युधिष्ठिरकी सेनाका एक प्रमुख रथी मानता हूँ॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एष योत्स्यति संग्रामे नाशयन् पूर्वसंस्थितम्।
परं यशो विप्रथयंस्तव सेनासु भारत ॥ २ ॥

मूलम्

एष योत्स्यति संग्रामे नाशयन् पूर्वसंस्थितम्।
परं यशो विप्रथयंस्तव सेनासु भारत ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! वह तुम्हारी सेनामें प्रवेश करके अपने पूर्व अपयशका नाश तथा उत्तम सुयशका विस्तार करता हुआ बड़े उत्साहसे युद्ध करेगा॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतस्य बहुलाः सेनाः पञ्चालाश्च प्रभद्रकाः।
तेनासौ रथवंशेन महत् कर्म करिष्यति ॥ ३ ॥

मूलम्

एतस्य बहुलाः सेनाः पञ्चालाश्च प्रभद्रकाः।
तेनासौ रथवंशेन महत् कर्म करिष्यति ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसके साथ पांचालों और प्रभद्रकोंकी बहुत बड़ी सेना है। वह उन रथियोंके समूहद्वारा युद्धमें महान् कर्म कर दिखायेगा॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धृष्टद्युम्नश्च सेनानीः सर्वसेनासु भारत।
मतो मेऽतिरथो राजन् द्रोणशिष्यो महारथः ॥ ४ ॥

मूलम्

धृष्टद्युम्नश्च सेनानीः सर्वसेनासु भारत।
मतो मेऽतिरथो राजन् द्रोणशिष्यो महारथः ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! जो पाण्डवोंकी सम्पूर्ण सेनाका सेनापति है, वह द्रोणाचार्यका महारथी शिष्य धृष्टद्युम्न मेरे विचारसे अतिरथी है॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एष योत्स्यति संग्रामे सूदयन् वै परान् रणे।
भगवानिव संक्रुद्धः पिनाकी युगसंक्षये ॥ ५ ॥

मूलम्

एष योत्स्यति संग्रामे सूदयन् वै परान् रणे।
भगवानिव संक्रुद्धः पिनाकी युगसंक्षये ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे प्रलयकालमें पिनाकधारी भगवान् रुद्र कुपित होकर प्रजाका संहार करते हैं, उसी प्रकार यह संग्राममें शत्रुओंका संहार करता हुआ युद्ध करेगा॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतस्य तद् रथानीकं कथयन्ति रणप्रियाः।
बहुत्वात् सागरप्रख्यं देवानामिव संयुगे ॥ ६ ॥

मूलम्

एतस्य तद् रथानीकं कथयन्ति रणप्रियाः।
बहुत्वात् सागरप्रख्यं देवानामिव संयुगे ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसके पास रथियोंकी जो देवसेनाके समान विशाल सेना है, उसकी संख्या बहुत होनेके कारण युद्धप्रेमी सैनिक रणक्षेत्रमें उसे समुद्रके समान बताते हैं॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्षत्रधर्मा तु राजेन्द्र मतो मेऽर्धरथो नृप।
धृष्टद्युम्नस्य तनयो बाल्यान्नातिकृतश्रमः ॥ ७ ॥

मूलम्

क्षत्रधर्मा तु राजेन्द्र मतो मेऽर्धरथो नृप।
धृष्टद्युम्नस्य तनयो बाल्यान्नातिकृतश्रमः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! धृष्टद्युम्नका पुत्र क्षत्रधर्मा मेरी समझमें अभी अर्धरथी है। बाल्यावस्था होनेके कारण उसने अस्त्र-विद्यामें अधिक परिश्रम नहीं किया है॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शिशुपालसुतो वीरश्चेदिराजो महारथः ।
धृष्टकेतुर्महेष्वासः सम्बन्धी पाण्डवस्य ह ॥ ८ ॥

मूलम्

शिशुपालसुतो वीरश्चेदिराजो महारथः ।
धृष्टकेतुर्महेष्वासः सम्बन्धी पाण्डवस्य ह ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

शिशुपालका वीर पुत्र महाधनुर्धर चेदिराज धृष्टकेतु पाण्डुनन्दन युधिष्ठिरका सम्बन्धी एवं महारथी है॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एष चेदिपतिः शूरः सह पुत्रेण भारत।
महारथानां सुकरं महत् कर्म करिष्यति ॥ ९ ॥

मूलम्

एष चेदिपतिः शूरः सह पुत्रेण भारत।
महारथानां सुकरं महत् कर्म करिष्यति ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भारत! यह शौर्यसम्पन्न चेदिराज अपने पुत्रके साथ आकर महारथियोंके लिये सहजसाध्य महान् पराक्रम कर दिखायेगा॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्षत्रधर्मरतो मह्यं मतः परपुरंजयः।
क्षत्रदेवस्तु राजेन्द्र पाण्डवेषु रथोत्तमः ॥ १० ॥

मूलम्

क्षत्रधर्मरतो मह्यं मतः परपुरंजयः।
क्षत्रदेवस्तु राजेन्द्र पाण्डवेषु रथोत्तमः ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! शत्रुओंकी नगरीपर विजय पानेवाला क्षत्रियधर्मपरायण क्षत्रदेव मेरे मतमें पाण्डवसेनाका एक श्रेष्ठ रथी है॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जयन्तश्चामितौजाश्च सत्यजिच्च महारथः ।
महारथा महात्मानः सर्वे पाञ्चालसत्तमाः ॥ ११ ॥
योत्स्यन्ते समरे तात संरब्धा इव कुञ्जराः।

मूलम्

जयन्तश्चामितौजाश्च सत्यजिच्च महारथः ।
महारथा महात्मानः सर्वे पाञ्चालसत्तमाः ॥ ११ ॥
योत्स्यन्ते समरे तात संरब्धा इव कुञ्जराः।

अनुवाद (हिन्दी)

जयन्त, अमितौजा और महारथी सत्यजित्—ये सभी पांचालशिरोमणि महामनस्वी वीर महारथी ही हैं। तात! ये सब-के-सब क्रोधमें भरे हुए गजराजोंकी भाँति समरभूमिमें युद्ध करेंगे॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अजो भोजश्च विक्रान्तौ पाण्डवार्थे महारथौ ॥ १२ ॥
योत्स्येते बलिनौ शूरौ परं शक्त्या क्षयिष्यतः।

मूलम्

अजो भोजश्च विक्रान्तौ पाण्डवार्थे महारथौ ॥ १२ ॥
योत्स्येते बलिनौ शूरौ परं शक्त्या क्षयिष्यतः।

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डवोंके लिये महान् पराक्रम करनेवाले बलवान् शूरवीर अज और भोज दोनों महारथी हैं। वे सम्पूर्ण शक्ति लगाकर युद्ध करेंगे और अपने पुरुषार्थका परिचय देंगे॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शीघ्रास्त्राश्चित्रयोद्धारः कृतिनो दृढविक्रमाः ॥ १३ ॥
केकयाः पञ्च राजेन्द्र भ्रातरो दृढविक्रमाः।
सर्वे चैव रथोदाराः सर्वे लोहितकध्वजाः ॥ १४ ॥

मूलम्

शीघ्रास्त्राश्चित्रयोद्धारः कृतिनो दृढविक्रमाः ॥ १३ ॥
केकयाः पञ्च राजेन्द्र भ्रातरो दृढविक्रमाः।
सर्वे चैव रथोदाराः सर्वे लोहितकध्वजाः ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! शीघ्रतापूर्वक अस्त्र चलानेवाले, विचित्र योद्धा, युद्धकालमें निपुण और दृढ़ पराक्रमी जो पाँच भाई केकयराजकुमार हैं, वे सभी उदार रथी माने गये हैं। उन सबकी ध्वजा लाल रंगकी है॥१३-१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

काशिकः सुकुमारश्च नीलो यश्चापरो नृप।
सूर्यदत्तश्च शङ्खश्च मदिराश्वश्च नामतः ॥ १५ ॥
सर्व एव रथोदाराः सर्वे चाहवलक्षणाः।
सर्वास्त्रविदुषः सर्वे महात्मानो मता मम ॥ १६ ॥

मूलम्

काशिकः सुकुमारश्च नीलो यश्चापरो नृप।
सूर्यदत्तश्च शङ्खश्च मदिराश्वश्च नामतः ॥ १५ ॥
सर्व एव रथोदाराः सर्वे चाहवलक्षणाः।
सर्वास्त्रविदुषः सर्वे महात्मानो मता मम ॥ १६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

सुकुमार, काशिक, नील, सूर्यदत्त, शंख और मदिराश्व नामक ये सभी योद्धा उदार रथी हैं। युद्ध ही इन सबका शौर्यसूचक चिह्न है। मैं इन सभीको सम्पूर्ण अस्त्रोंके ज्ञाता और महामनस्वी मानता हूँ॥१५-१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वार्धक्षेमिर्महाराज मतो मम महारथः।
चित्रायुधश्च नृपतिर्मतो मे रथसत्तमः ॥ १७ ॥

मूलम्

वार्धक्षेमिर्महाराज मतो मम महारथः।
चित्रायुधश्च नृपतिर्मतो मे रथसत्तमः ॥ १७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाराज! वार्धक्षेमिको मैं महारथी मानता हूँ तथा राजा चित्रायुध मेरे विचारसे श्रेष्ठ रथी हैं॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स हि संग्रामशोभी च भक्तश्चापि किरीटिनः।
चेकितानः सत्यधृतिः पाण्डवानां महारथौ।
द्वाविमौ पुरुषव्याघ्रौ रथोदारौ मतौ मम ॥ १८ ॥

मूलम्

स हि संग्रामशोभी च भक्तश्चापि किरीटिनः।
चेकितानः सत्यधृतिः पाण्डवानां महारथौ।
द्वाविमौ पुरुषव्याघ्रौ रथोदारौ मतौ मम ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

चित्रायुध संग्राममें शोभा पानेवाले तथा अर्जुनके भक्त हैं। चेकितान और सत्यधृति—ये दो पुरुषसिंह पाण्डव-सेनाके महारथी हैं। मैं इन्हें रथियोंमें श्रेष्ठ मानता हूँ॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

व्याघ्रदत्तश्च राजेन्द्र चन्द्रसेनश्च भारत।
मतौ मम रथोदारौ पाण्डवानां न संशयः ॥ १९ ॥

मूलम्

व्याघ्रदत्तश्च राजेन्द्र चन्द्रसेनश्च भारत।
मतौ मम रथोदारौ पाण्डवानां न संशयः ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भरतनन्दन! महाराज! व्याघ्रदत्त और चन्द्रसेन—ये दो नरेश भी मेरे मतमें पाण्डवसेनाके श्रेष्ठ रथी हैं, इसमें संशय नहीं है॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सेनाबिन्दुश्च राजेन्द्र क्रोधहन्ता च नामतः।
यः समो वासुदेवेन भीमसेनेन वा विभो ॥ २० ॥
स योत्स्यति हि विक्रम्य समरे तव सैनिकैः।

मूलम्

सेनाबिन्दुश्च राजेन्द्र क्रोधहन्ता च नामतः।
यः समो वासुदेवेन भीमसेनेन वा विभो ॥ २० ॥
स योत्स्यति हि विक्रम्य समरे तव सैनिकैः।

अनुवाद (हिन्दी)

राजेन्द्र! राजा सेनाबिन्दुका दूसरा नाम क्रोधहन्ता भी है। प्रभो! वे भगवान् श्रीकृष्ण तथा भीमसेनके समान पराक्रमी माने जाते हैं। वे समरांगणमें तुम्हारे सैनिकोंके साथ पराक्रम प्रकट करते हुए युद्ध करेंगे॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मां च द्रोणं कृपं चैव यथा सम्मन्यते भवान्॥२१॥
तथा स समरश्लाघी मन्तव्यो रथसत्तमः।
काश्यः परमशीघ्रास्त्रः श्लाघनीयो नरोत्तमः ॥ २२ ॥

मूलम्

मां च द्रोणं कृपं चैव यथा सम्मन्यते भवान्॥२१॥
तथा स समरश्लाघी मन्तव्यो रथसत्तमः।
काश्यः परमशीघ्रास्त्रः श्लाघनीयो नरोत्तमः ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तुम मुझको, आचार्य द्रोणको तथा कृपाचार्यको जैसा समझते हो, युद्धमें दूसरे वीरोंसे स्पर्धा रखनेवाले तथा बहुत ही फुर्तीके साथ अस्त्र-शस्त्रोंका प्रयोग करनेवाले प्रशंसनीय एवं उत्तम रथी नरश्रेष्ठ काशिराजको भी तुम्हें वैसा ही मानना चाहिये॥२१-२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रथ एकगुणो मह्यं ज्ञेयः परपुरंजयः।
अयं च युधि विक्रान्तो मन्तव्योऽष्टगुणो रथः ॥ २३ ॥

मूलम्

रथ एकगुणो मह्यं ज्ञेयः परपुरंजयः।
अयं च युधि विक्रान्तो मन्तव्योऽष्टगुणो रथः ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मेरी दृष्टिमें शत्रुनगरीपर विजय पानेवाले काशिराजको साधारण अवस्थामें एक रथी समझना चाहिये; परंतु जिस समय ये युद्धमें पराक्रम प्रकट करने लगते हैं उस समय इन्हें आठ रथियोंके बराबर मानना चाहिये॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सत्यजित् समरश्लाघी द्रुपदस्यात्मजो युवा।
गतः सोऽतिरथत्वं हि धृष्टद्युम्नेन सम्मितः ॥ २४ ॥
पाण्डवानां यशस्कामः परं कर्म करिष्यति।

मूलम्

सत्यजित् समरश्लाघी द्रुपदस्यात्मजो युवा।
गतः सोऽतिरथत्वं हि धृष्टद्युम्नेन सम्मितः ॥ २४ ॥
पाण्डवानां यशस्कामः परं कर्म करिष्यति।

अनुवाद (हिन्दी)

द्रुपदका तरुण पुत्र सत्यजित् सदा युद्धकी स्पृहा रखनेवाला है। वह धृष्टद्युम्नके समान ही अतिरथीका पद प्राप्त कर चुका है। वह पाण्डवोंके यशोविस्तारकी इच्छा रखकर युद्धमें महान् कर्म करेगा॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अनुरक्तश्च शूरश्च रथोऽयमपरो महान् ॥ २५ ॥
पाण्ड्यराजो महावीर्यः पाण्डवानां धुरंधरः।
दृढधन्वा महेष्वासः पाण्डवानां महारथः ॥ २६ ॥

मूलम्

अनुरक्तश्च शूरश्च रथोऽयमपरो महान् ॥ २५ ॥
पाण्ड्यराजो महावीर्यः पाण्डवानां धुरंधरः।
दृढधन्वा महेष्वासः पाण्डवानां महारथः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पाण्डवपक्षके धुरंधर वीर महापराक्रमी पाण्ड्यराज भी एक अन्य महारथी हैं। ये पाण्डवोंके प्रति अनुराग रखनेवाले और शूरवीर हैं। इनका धनुष महान् और सुदृढ़ है। ये पाण्डवसेनाके सम्माननीय महारथी हैं॥२५-२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रेणिमान् कौरवश्रेष्ठ वसुदानश्च पार्थिवः।
उभावेतावतिरथौ मतौ परपुरंजयौ ॥ २७ ॥

मूलम्

श्रेणिमान् कौरवश्रेष्ठ वसुदानश्च पार्थिवः।
उभावेतावतिरथौ मतौ परपुरंजयौ ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कौरवश्रेष्ठ! राजा श्रेणिमान् और वसुदान—ये दोनों वीर अतिरथी माने गये हैं। ये शत्रुओंकी नगरीपर विजय पानेमें समर्थ हैं॥२७॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि रथातिरथसंख्यानपर्वणि एकसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १७१ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्तर्गत रथातिरथसंख्यानपर्वमें एक सौ इकहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१७१॥