भागसूचना
षट्षष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः
सूचना (हिन्दी)
कौरवपक्षके रथियोंका परिचय
मूलम् (वचनम्)
भीष्म उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुदक्षिणस्तु काम्बोजो रथ एकगुणो मतः।
तवार्थसिद्धिमाकाङ्क्षन् योत्स्यते समरे परैः ॥ १ ॥
मूलम्
सुदक्षिणस्तु काम्बोजो रथ एकगुणो मतः।
तवार्थसिद्धिमाकाङ्क्षन् योत्स्यते समरे परैः ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
भीष्मने कहा— राजन्! काम्बोजदेशके राजा सुदक्षिण एक रथी माने गये हैं। ये तुम्हारे कार्यकी सिद्धि चाहते हुए समरांगणमें शत्रुओंके साथ युद्ध करेंगे॥१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतस्य रथसिंहस्य तवार्थे राजसत्तम।
पराक्रमं यथेन्द्रस्य द्रक्ष्यन्ति कुरवो युधि ॥ २ ॥
मूलम्
एतस्य रथसिंहस्य तवार्थे राजसत्तम।
पराक्रमं यथेन्द्रस्य द्रक्ष्यन्ति कुरवो युधि ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
नृपश्रेष्ठ! रथियोंमें सिंहके समान पराक्रमी ये काम्बोजराज तुम्हारे लिये युद्धमें इन्द्रके समान पराक्रम प्रकट करेंगे और समस्त कौरव इनके पराक्रमको देखेंगे॥२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतस्य रथवंशे हि तिग्मवेगप्रहारिणः।
काम्बोजानां महाराज शलभानामिवायतिः ॥ ३ ॥
मूलम्
एतस्य रथवंशे हि तिग्मवेगप्रहारिणः।
काम्बोजानां महाराज शलभानामिवायतिः ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! प्रचण्ड वेगसे प्रहार करनेवाले इन काम्बोजनरेशके रथियोंके समुदायमें काम्बोजदेशीय सैनिकोंकी श्रेणी टिड्डियोंके दल-सी दृष्टिगोचर होती है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नीलो माहिष्मतीवासी नीलवर्मा रथस्तव।
रथवंशेन कदनं शत्रूणां वै करिष्यति ॥ ४ ॥
मूलम्
नीलो माहिष्मतीवासी नीलवर्मा रथस्तव।
रथवंशेन कदनं शत्रूणां वै करिष्यति ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
माहिष्मतीपुरीके निवासी राजा नील भी तुम्हारे दलके एक रथी हैं। इन्होंने नीले रंगका कवच पहन रखा है। ये अपने रथसमूहद्वारा शत्रुओंका संहार कर डालेंगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृतवैरः पुरा चैव सहदेवेन मारिष।
योत्स्यते सततं राजंस्तवार्थे कुरुनन्दन ॥ ५ ॥
मूलम्
कृतवैरः पुरा चैव सहदेवेन मारिष।
योत्स्यते सततं राजंस्तवार्थे कुरुनन्दन ॥ ५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुनन्दन! पूर्वकालमें सहदेवके साथ इनकी शत्रुता हो गयी थी। राजन्! ये सदा तुम्हारे शत्रुओंके साथ युद्ध करेंगे॥५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ संमतौ रथसत्तमौ ।
कृतिनौ समरे तात दृढवीर्यपराक्रमौ ॥ ६ ॥
मूलम्
विन्दानुविन्दावावन्त्यौ संमतौ रथसत्तमौ ।
कृतिनौ समरे तात दृढवीर्यपराक्रमौ ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अवन्तीदेशके दोनों वीर राजकुमार विन्द और अनुविन्द श्रेष्ठ रथी माने गये हैं। तात! वे युद्धकलाके पण्डित तथा सुदृढ़ बल एवं पराक्रमसे सम्पन्न हैं॥६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतौ तौ पुरुषव्याघ्रौ रिपुसैन्यं प्रधक्ष्यतः।
गदाप्रासासिनाराचैस्तोमरैश्च करच्युतैः ॥ ७ ॥
मूलम्
एतौ तौ पुरुषव्याघ्रौ रिपुसैन्यं प्रधक्ष्यतः।
गदाप्रासासिनाराचैस्तोमरैश्च करच्युतैः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये दोनों पुरुषसिंह अपने हाथसे छूटे हुए गदा, प्रास, खड्ग, नाराच तथा तोमरोंद्वारा शत्रुसेनाको दग्ध कर डालेंगे॥७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
युद्धाभिकामौ समरे क्रीडन्ताविव यूथपौ।
यूथमध्ये महाराज विचरन्तौ कृतान्तवत् ॥ ८ ॥
मूलम्
युद्धाभिकामौ समरे क्रीडन्ताविव यूथपौ।
यूथमध्ये महाराज विचरन्तौ कृतान्तवत् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! जैसे दो यूथपति गजराज हाथियोंके झुंडमें खेल-सा करते हुए विचरते हैं, उसी प्रकार युद्धकी अभिलाषा रखनेवाले विन्द और अनुविन्द समरांगणमें यमराजके समान विचरण करते हैं॥८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्रिगर्ता भ्रातरः पञ्च रथोदारा मता मम।
कृतवैराश्च पार्थैस्ते विराटनगरे तदा ॥ ९ ॥
मूलम्
त्रिगर्ता भ्रातरः पञ्च रथोदारा मता मम।
कृतवैराश्च पार्थैस्ते विराटनगरे तदा ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
त्रिगर्तदेशीय पाँचों भ्राताओंको मैं उदार रथी मानता हूँ। विराटनगरमें दक्षिणगोग्रहके युद्धके समय चार पाण्डवोंके साथ इनका वैर बढ़ गया था॥९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मकरा इव राजेन्द्र समुद्धततरङ्गिणीम्।
गङ्गां विक्षोभयिष्यन्ति पार्थानां युधि वाहिनीम् ॥ १० ॥
मूलम्
मकरा इव राजेन्द्र समुद्धततरङ्गिणीम्।
गङ्गां विक्षोभयिष्यन्ति पार्थानां युधि वाहिनीम् ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजेन्द्र! जैसे ग्राहगण उत्ताल तरंगोंवाली गंगाको मथ डालते हैं, उसी प्रकार ये त्रिगर्तदेशीय पाँचों क्षत्रिय वीर पाण्डवोंकी सेनामें हलचल मचा देंगे॥१०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते रथाः पञ्च राजेन्द्र येषां सत्यरथो मुखम्।
एते योत्स्यन्ति संग्रामे संस्मरन्तः पुराकृतम् ॥ ११ ॥
व्यलीकं पाण्डवेयेन भीमसेनानुजेन ह।
दिशो विजयता राजन् श्वेतवाहेन भारत ॥ १२ ॥
मूलम्
ते रथाः पञ्च राजेन्द्र येषां सत्यरथो मुखम्।
एते योत्स्यन्ति संग्रामे संस्मरन्तः पुराकृतम् ॥ ११ ॥
व्यलीकं पाण्डवेयेन भीमसेनानुजेन ह।
दिशो विजयता राजन् श्वेतवाहेन भारत ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! ये पाँचों भाई रथी हैं और सत्यरथ उनमें प्रधान है। भारत! भीमसेनके छोटे भाई श्वेत घोड़ोंवाले पाण्डुनन्दन अर्जुनने दिग्विजयके समय जो त्रिगर्तोंका अप्रिय किया था, उस पहलेके वैरको याद रखते हुए ये पाँचों वीर संग्रामभूमिमें मन लगाकर युद्ध करेंगे॥११-१२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ते हनिष्यन्ति पार्थानां तानासाद्य महारथान्।
वरान् वरान् महेष्वासान् क्षत्रियाणां धुरन्धरान् ॥ १३ ॥
मूलम्
ते हनिष्यन्ति पार्थानां तानासाद्य महारथान्।
वरान् वरान् महेष्वासान् क्षत्रियाणां धुरन्धरान् ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये पाण्डवोंके बड़े-बड़े महारथियोंके पास जा उन महाधनुर्धर क्षत्रियशिरोमणि वीरोंका संहार कर डालेंगे॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
लक्ष्मणस्तव पुत्रश्च तथा दुःशासनस्य च।
उभौ तौ पुरुषव्याघ्रौ संग्रामेष्वपलायिनौ ॥ १४ ॥
मूलम्
लक्ष्मणस्तव पुत्रश्च तथा दुःशासनस्य च।
उभौ तौ पुरुषव्याघ्रौ संग्रामेष्वपलायिनौ ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तुम्हारा पुत्र लक्ष्मण और दुःशासनका पुत्र—ये दोनों पुरुषसिंह युद्धसे पलायन करनेवाले नहीं हैं॥१४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तरुणौ सुकुमारौ च राजपुत्रौ तरस्विनौ।
युद्धानां च विशेषज्ञौ प्रणेतारौ च सर्वशः ॥ १५ ॥
मूलम्
तरुणौ सुकुमारौ च राजपुत्रौ तरस्विनौ।
युद्धानां च विशेषज्ञौ प्रणेतारौ च सर्वशः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये दोनों तरुण और सुकुमार राजपुत्र बड़े वेगशाली हैं, अनेक युद्धोंके विशेषज्ञ हैं और सब प्रकारसे सेनानायक होनेयोग्य हैं॥१५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रथौ तौ कुरुशार्दूल मतौ मे रथसत्तमौ।
क्षत्रधर्मरतौ वीरौ महत् कर्म करिष्यतः ॥ १६ ॥
मूलम्
रथौ तौ कुरुशार्दूल मतौ मे रथसत्तमौ।
क्षत्रधर्मरतौ वीरौ महत् कर्म करिष्यतः ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
कुरुश्रेष्ठ! ये दोनों वीर रथी तो हैं ही, रथियोंमें श्रेष्ठ भी हैं। ये क्षत्रियधर्ममें तत्पर होकर युद्धमें महान् पराक्रम करेंगे॥१६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दण्डधारो महाराज रथ एको नरर्षभ।
योत्स्यते तव संग्रामे स्वेन सैन्येन पालितः ॥ १७ ॥
मूलम्
दण्डधारो महाराज रथ एको नरर्षभ।
योत्स्यते तव संग्रामे स्वेन सैन्येन पालितः ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाराज! नरश्रेष्ठ! अपनी सेनामें दण्डधार भी एक रथी हैं, जो तुम्हारे लिये संग्राममें अपनी सेनासे सुरक्षित होकर लड़ेंगे॥१७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बृहद्बलस्तथा राजा कौसल्यो रथसत्तमः।
रथो मम मतस्तात महावेगपराक्रमः ॥ १८ ॥
मूलम्
बृहद्बलस्तथा राजा कौसल्यो रथसत्तमः।
रथो मम मतस्तात महावेगपराक्रमः ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तात! महान् वेग और पराक्रमसे सम्पन्न कोसलदेशके राजा बृहद्बल भी मेरी दृष्टिमें एक रथी हैं और रथियोंमें इनका स्थान बहुत ऊँचा है॥१८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एष योत्स्यति संग्रामे स्वान् बन्धून् सम्प्रहर्षयन्।
उग्रायुधो महेष्वासो धार्तराष्ट्रहिते रतः ॥ १९ ॥
मूलम्
एष योत्स्यति संग्रामे स्वान् बन्धून् सम्प्रहर्षयन्।
उग्रायुधो महेष्वासो धार्तराष्ट्रहिते रतः ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
ये धृतराष्ट्रपुत्रोंके हितमें तत्पर हो भयंकर अस्त्र-शस्त्र तथा महान् धनुष धारण किये अपने बन्धुओंका हर्ष बढ़ाते हुए समरांगणमें बड़े उत्साहसे युद्ध करेंगे॥१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कृपः शारद्वतो राजन् रथयूथपयूथपः।
प्रियान् प्राणान् परित्यज्य प्रधक्ष्यति रिपूंस्तव ॥ २० ॥
मूलम्
कृपः शारद्वतो राजन् रथयूथपयूथपः।
प्रियान् प्राणान् परित्यज्य प्रधक्ष्यति रिपूंस्तव ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
राजन्! शरद्वान्के पुत्र कृपाचार्य तो रथयूथपतियोंके भी यूथपति हैं। ये अपने प्यारे प्राणोंकी परवा न करके तुम्हारे शत्रुओंको जला डालेंगे॥२०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गौतमस्य महर्षेर्य आचार्यस्य शरद्वतः।
कार्तिकेय इवाजेयः शरस्तम्बात् सुतोऽभवत् ॥ २१ ॥
मूलम्
गौतमस्य महर्षेर्य आचार्यस्य शरद्वतः।
कार्तिकेय इवाजेयः शरस्तम्बात् सुतोऽभवत् ॥ २१ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
गौतमवंशी महर्षि आचार्य शरद्वान्के पुत्र कृपाचार्य कार्तिकेयकी भाँति सरकण्डोंसे उत्पन्न हुए हैं और उन्हींकी भाँति अजेय भी हैं॥२१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एष सेनाः सुबहुला विविधायुधकार्मुकाः।
अग्निवत् समरे तात चरिष्यति विनिर्दहन् ॥ २२ ॥
मूलम्
एष सेनाः सुबहुला विविधायुधकार्मुकाः।
अग्निवत् समरे तात चरिष्यति विनिर्दहन् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
तात! ये नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्र एवं धनुष धारण करनेवाली बहुत-सी सेनाओंको अग्निके समान दग्ध करते हुए समरभूमिमें विचरण करेंगे॥२२॥
मूलम् (समाप्तिः)
इति श्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि रथातिरथसंख्यानपर्वणि षट्षष्ट्यधिकशततमोऽध्यायः ॥ १६६ ॥
मूलम् (वचनम्)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्तर्गत रथातिरथसंख्यानपर्वमें एक सौ छाछठवाँ अध्याय पूरा हुआ॥१६६॥