०५१ धृतराष्ट्रवाक्ये

भागसूचना

एकपञ्चाशत्तमोऽध्यायः

सूचना (हिन्दी)

भीमसेनके पराक्रमसे डरे हुए धृतराष्ट्रका विलाप

मूलम् (वचनम्)

धृतराष्ट्र उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्व एते महोत्साहा ये त्वया परिकीर्तिताः।
एकतस्त्वेव ते सर्वे समेता भीम एकतः ॥ १ ॥

मूलम्

सर्व एते महोत्साहा ये त्वया परिकीर्तिताः।
एकतस्त्वेव ते सर्वे समेता भीम एकतः ॥ १ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

धृतराष्ट्र बोले— संजय! तुमने जिन लोगोंके नाम बताये हैं, ये सभी बड़े उत्साही वीर हैं। इनमें भी जितने लोग वहाँ एकत्र हुए हैं, वे सब एक ओर और भीमसेन एक ओर॥१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीमसेनाद्धि मे भूयो भयं संजायते महत्।
क्रुद्धादमर्षणात् तात व्याघ्रादिव महारुरोः ॥ २ ॥

मूलम्

भीमसेनाद्धि मे भूयो भयं संजायते महत्।
क्रुद्धादमर्षणात् तात व्याघ्रादिव महारुरोः ॥ २ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तात! मुझे क्रोधमें भरे हुए अमर्षशील भीमसेनसे बड़ा डर लगता है; ठीक उसी तरह, जैसे महान् मृगको किसी व्याघ्रसे सदा भय बना रहता है॥२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जागर्मि रात्रयः सर्वा दीर्घमुष्णं च निःश्वसन्।
भीतो वृकोदरात् तात सिंहात् पशुरिवापरः ॥ ३ ॥

मूलम्

जागर्मि रात्रयः सर्वा दीर्घमुष्णं च निःश्वसन्।
भीतो वृकोदरात् तात सिंहात् पशुरिवापरः ॥ ३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वत्स! सिंहसे डरे हुए दूसरे पशुकी भाँति मैं भीमसेनसे भयभीत हो रातभर गर्म-गर्म लंबी साँसें खींचता हुआ जागता रहता हूँ॥३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न हि तस्य महाबाहोः शक्रप्रतिमतेजसः।
सैन्येऽस्मिन् प्रतिपश्यामि य एनं विषहेद् युधि ॥ ४ ॥

मूलम्

न हि तस्य महाबाहोः शक्रप्रतिमतेजसः।
सैन्येऽस्मिन् प्रतिपश्यामि य एनं विषहेद् युधि ॥ ४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाबाहु भीम इन्द्रके समान तेजस्वी है। मैं अपनी सेनामें किसीको भी ऐसा नहीं देखता, जो भीमका सामना कर सके—युद्धमें इसके वेगको सह सके॥४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अमर्षणश्च कौन्तेयो दृढवैरश्च पाण्डवः।
अनर्महासी सोन्मादस्तिर्यक्प्रेक्षी महास्वनः ॥ ५ ॥

मूलम्

अमर्षणश्च कौन्तेयो दृढवैरश्च पाण्डवः।
अनर्महासी सोन्मादस्तिर्यक्प्रेक्षी महास्वनः ॥ ५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

कुन्तीकुमार पाण्डुपुत्र भीम असहनशील तथा वैरको दृढ़तापूर्वक पकड़े रखनेवाला है। उसकी की हुई हँसी भी हँसीके लिये नहीं होती, वह उसे सत्य कर दिखाता है। उसका स्वभाव उद्धत है। वह टेढ़ी निगाहसे देखता और बड़े जोरसे गर्जना करता है॥५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महावेगो महोत्साहो महाबाहुर्महाबलः ।
मन्दानां मम पुत्राणां युद्धेनान्तं करिष्यति ॥ ६ ॥

मूलम्

महावेगो महोत्साहो महाबाहुर्महाबलः ।
मन्दानां मम पुत्राणां युद्धेनान्तं करिष्यति ॥ ६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह महान् वेगशाली, अत्यन्त उत्साही, विशाल-बाहु और महाबली है। वह युद्ध करके मेरे मन्दबुद्धि पुत्रोंको अवश्य मार डालेगा॥६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ऊरुग्राहगृहीतानां गदां बिभ्रद् वृकोदरः।
कुरूणामृषभो युद्धे दण्डपाणिरिवान्तकः ॥ ७ ॥

मूलम्

ऊरुग्राहगृहीतानां गदां बिभ्रद् वृकोदरः।
कुरूणामृषभो युद्धे दण्डपाणिरिवान्तकः ॥ ७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मेरे पुत्र भी बड़े दुराग्रही हैं, अतः हाथमें गदा लिये कुरुश्रेष्ठ वृकोदर भीम दण्डपाणि यमराजकी भाँति युद्धमें इनका निश्चय ही वध कर डालेगा॥७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अष्टास्रिमायसीं घोरां गदां काञ्चनभूषणाम्।
मनसाहं प्रपश्यामि ब्रह्मदण्डमिवोद्यतम् ॥ ८ ॥

मूलम्

अष्टास्रिमायसीं घोरां गदां काञ्चनभूषणाम्।
मनसाहं प्रपश्यामि ब्रह्मदण्डमिवोद्यतम् ॥ ८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मैं मनकी आँखोंसे देख रहा हूँ, भीमसेनकी स्वर्णभूषित भयंकर गदा, जो लोहेकी बनी हुई और आठ कोनोंसे युक्त है, ब्रह्मदण्डके समान उठी हुई है॥८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा मृगाणां यूथेषु सिंहो जातबलश्चरेत्।
मामकेषु तथा भीमो बलेषु विचरिष्यति ॥ ९ ॥

मूलम्

यथा मृगाणां यूथेषु सिंहो जातबलश्चरेत्।
मामकेषु तथा भीमो बलेषु विचरिष्यति ॥ ९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे बलवान् सिंह मृगोंके यूथोंमें निःशंक विचरण करता है, उसी प्रकार भीमसेन मेरी विशाल वाहिनियोंमें बेखटके विचरेगा॥९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वेषां मम पुत्राणां स एकः क्रूरविक्रमः।
बह्वाशी विप्रतीपश्च बाल्येऽपि रभसः सदा ॥ १० ॥

मूलम्

सर्वेषां मम पुत्राणां स एकः क्रूरविक्रमः।
बह्वाशी विप्रतीपश्च बाल्येऽपि रभसः सदा ॥ १० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

बाल्यकालमें भी मेरे सब पुत्रोंमें एकमात्र वह भीमसेन ही क्रूर पराक्रमी, बहुत अधिक खानेवाला, सबके प्रतिकूल चलनेवाला तथा सदा अत्यन्त वेगशाली था॥१०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उद्वेपते मे हृदयं ये मे दुर्योधनादयः।
बाल्येऽपि तेन युध्यन्तो वारणेनेव मर्दिताः ॥ ११ ॥

मूलम्

उद्वेपते मे हृदयं ये मे दुर्योधनादयः।
बाल्येऽपि तेन युध्यन्तो वारणेनेव मर्दिताः ॥ ११ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसकी याद आते ही मेरा हृदय काँपने लगता है। मेरे दुर्योधन आदि पुत्र बचपनमें भी जब उसके साथ खेल-कूदमें लड़ते थे, तब वह गजराजकी भाँति इन सबको मसल देता था॥११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य वीर्येण संक्लिष्टा नित्यमेव सुता मम।
स एव हेतुर्भेदस्य भीमो भीमपराक्रमः ॥ १२ ॥

मूलम्

तस्य वीर्येण संक्लिष्टा नित्यमेव सुता मम।
स एव हेतुर्भेदस्य भीमो भीमपराक्रमः ॥ १२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मेरे पुत्र उसके बल-पराक्रमसे सदा ही कष्टमें पड़े रहते थे। भयंकर पराक्रमी भीमसेन ही इस फूटकी जड़ है॥१२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ग्रसमानमनीकानि नरवारणवाजिनाम् ।
पश्यामीवाग्रतो भीमं क्रोधमूर्च्छितमाहवे ॥ १३ ॥

मूलम्

ग्रसमानमनीकानि नरवारणवाजिनाम् ।
पश्यामीवाग्रतो भीमं क्रोधमूर्च्छितमाहवे ॥ १३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मुझे अपने सामने दीख-सा रहा है कि भीमसेन युद्धमें क्रोधसे मूर्च्छित हो मनुष्य, हाथी और घोड़ोंकी (समस्त) सेनाओंको कालका ग्रास बनाता जा रहा है॥१३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अस्त्रे द्रोणार्जुनसमं वायुवेगसमं जवे।
महेश्वरसमं क्रोधे को हन्याद् भीममाहवे ॥ १४ ॥

मूलम्

अस्त्रे द्रोणार्जुनसमं वायुवेगसमं जवे।
महेश्वरसमं क्रोधे को हन्याद् भीममाहवे ॥ १४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह अस्त्रविद्यामें द्रोणाचार्य तथा अर्जुनके समान है, वेगमें वायुकी समानता करता है एवं क्रोधमें महेश्वरके तुल्य है। ऐसे भीमको युद्धमें कौन मार सकता है?॥१४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संजयाचक्ष्व मे शूरं भीमसेनममर्षणम्।
अतिलाभं तु मन्येऽहं यत् तेन रिपुघातिना ॥ १५ ॥
तदैव न हताः सर्वे पुत्रा मम मनस्विना।

मूलम्

संजयाचक्ष्व मे शूरं भीमसेनममर्षणम्।
अतिलाभं तु मन्येऽहं यत् तेन रिपुघातिना ॥ १५ ॥
तदैव न हताः सर्वे पुत्रा मम मनस्विना।

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! मुझे अमर्षमें भरे हुए शूरवीर भीमसेनका समाचार सुनाओ। मैं तो यही सबसे बड़ा लाभ मानता हूँ कि उस शत्रुघाती मनस्वी वीरने (जब द्यूतक्रीड़ा हो रही थी) उसी समय मेरे सब पुत्रोंको नहीं मार डाला॥१५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

येन भीमबला यक्षा राक्षसाश्च पुरा हताः ॥ १६ ॥
कथं तस्य रणे वेगं मानुषः प्रसहिष्यति।

मूलम्

येन भीमबला यक्षा राक्षसाश्च पुरा हताः ॥ १६ ॥
कथं तस्य रणे वेगं मानुषः प्रसहिष्यति।

अनुवाद (हिन्दी)

जिसने पूर्वकालमें भयंकर बलशाली यक्षों तथा राक्षसोंका वध किया है, युद्धमें उसका वेग कोई मनुष्य कैसे सह सकेगा?॥१६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न स जातु वशे तस्थौ मम बाल्येऽपि संजय॥१७॥
किं पुनर्मम दुष्पुत्रैः क्लिष्टः सम्प्रति पाण्डवः।

मूलम्

न स जातु वशे तस्थौ मम बाल्येऽपि संजय॥१७॥
किं पुनर्मम दुष्पुत्रैः क्लिष्टः सम्प्रति पाण्डवः।

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! पाण्डुकुमार भीमसेन बचपनमें भी कभी मेरे वशमें नहीं रहा; फिर जब मेरे दुष्ट पुत्रोंने उसे बार-बार कष्ट दिया है, तब वह इस समय मेरे वशमें कैसे हो सकता है?॥१७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निष्ठुरो रोषणोऽत्यर्थं भज्येतापि न संनमेत्।
तिर्यक्प्रेक्षी संहतभ्रूः कथं शाम्येद् वृकोदरः ॥ १८ ॥

मूलम्

निष्ठुरो रोषणोऽत्यर्थं भज्येतापि न संनमेत्।
तिर्यक्प्रेक्षी संहतभ्रूः कथं शाम्येद् वृकोदरः ॥ १८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह क्रूर और क्रोधी है। टूट भले ही जाय, पर झुक नहीं सकेगा। सदा टेढ़ी निगाहसे ही देखता है। उसकी भौंहें क्रोधके कारण परस्पर गुँथी रहती हैं। ऐसा भीमसेन कैसे शान्त हो सकेगा?॥१८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शूरस्तथाप्रतिबलो गौरस्ताल इवोन्नतः ।
प्रमाणतो भीमसेनः प्रादेशेनाधिकोऽर्जुनात् ॥ १९ ॥

मूलम्

शूरस्तथाप्रतिबलो गौरस्ताल इवोन्नतः ।
प्रमाणतो भीमसेनः प्रादेशेनाधिकोऽर्जुनात् ॥ १९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

गोरे रंगका वह शूरवीर भीमसेन ताड़के समान ऊँचा है। ऊँचाईमें वह अर्जुनसे एक बित्ता अधिक है, बलमें उसकी समता करनेवाला दूसरा कोई नहीं है॥१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जवेन वाजिनोऽत्येति बलेनात्येति कुञ्जरान्।
अव्यक्तजल्पी मध्वक्षो मध्यमः पाण्डवो बली ॥ २० ॥

मूलम्

जवेन वाजिनोऽत्येति बलेनात्येति कुञ्जरान्।
अव्यक्तजल्पी मध्वक्षो मध्यमः पाण्डवो बली ॥ २० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

वह स्पष्ट नहीं बोलता। उसकी आँखें सदा मधुके समान पिंगलवर्णकी दिखायी देती हैं। वह महाबली मध्यम पाण्डव अपने वेगसे घोड़ोंको भी लाँघ सकता है और बलसे हाथियोंको भी पराजित कर सकता है॥२०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इति बाल्ये श्रुतः पूर्वं मया व्यासमुखात् पुरा।
रूपतो वीर्यतश्चैव याथातथ्येन पाण्डवः ॥ २१ ॥

मूलम्

इति बाल्ये श्रुतः पूर्वं मया व्यासमुखात् पुरा।
रूपतो वीर्यतश्चैव याथातथ्येन पाण्डवः ॥ २१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मैंने बाल्यकालमें ही व्यासजीके मुखसे पहले इस पाण्डुपुत्रके अद्भुत रूप और पराक्रमका यथार्थ वर्णन सुना था॥२१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आयसेन स दण्डेन रथान् नागान् नरान्‌ हयान्।
हनिष्यति रणे क्रुद्धो रौद्रः क्रूरपराक्रमः ॥ २२ ॥

मूलम्

आयसेन स दण्डेन रथान् नागान् नरान्‌ हयान्।
हनिष्यति रणे क्रुद्धो रौद्रः क्रूरपराक्रमः ॥ २२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

निष्ठुर पराक्रम प्रकट करनेवाला यह भयंकर भीमसेन समरभूमिमें कुपित होकर लौहदंडसे मेरे रथों, हाथियों, पैदल मनुष्यों और घोड़ोंका भी संहार कर डालेगा॥२२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अमर्षी नित्यसंरब्धो भीमः प्रहरतां वरः।
मया तात प्रतीपानि कुर्वन् पूर्वं विमानितः ॥ २३ ॥

मूलम्

अमर्षी नित्यसंरब्धो भीमः प्रहरतां वरः।
मया तात प्रतीपानि कुर्वन् पूर्वं विमानितः ॥ २३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तात संजय! सदा क्रोधमें भरा रहनेवाला अमर्षशील भीमसेन प्रहार करनेवाले योद्धाओंमें सबसे श्रेष्ठ है। मेरे पुत्रोंके प्रतिकूल आचरण करते समय मैंने पहले कई बार उसका अपमान किया है॥२३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

निष्कर्णामायसीं स्थूलां सुपार्श्वां काञ्चनीं गदाम्।
शतघ्नीं शतनिर्ह्रादां कथं शक्ष्यन्ति मे सुताः ॥ २४ ॥

मूलम्

निष्कर्णामायसीं स्थूलां सुपार्श्वां काञ्चनीं गदाम्।
शतघ्नीं शतनिर्ह्रादां कथं शक्ष्यन्ति मे सुताः ॥ २४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसकी लोहेकी गदा सीधी, मोटी, सुन्दर पार्श्वभागवाली और सुवर्णसे विभूषित है, वह शत-शत वज्रपातके समान बड़े जोरसे आवाज करती और एक ही चोटमें सैकड़ोंको मार डालती है। मेरे बेटे उसका आघात कैसे सह सकेंगे?॥२४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अपारमप्लवागाधं समुद्रं शरवेगिनम् ।
भीमसेनमयं दुर्गं तात मन्दास्तितीर्षवः ॥ २५ ॥

मूलम्

अपारमप्लवागाधं समुद्रं शरवेगिनम् ।
भीमसेनमयं दुर्गं तात मन्दास्तितीर्षवः ॥ २५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तात! भीमसेन एक दुर्गम अपार समुद्र है, इसे पार करनेके लिये न तो कोई नौका है और न इसकी कहीं थाह ही है; बाण ही इसका वेग है, तो भी मेरे मूर्ख पुत्र इस भीमसेनमय दुर्गम समुद्रको पार करना चाहते हैं॥२५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

क्रोशतो मे न शृण्वन्ति बालाः पण्डितमानिनः।
विषमं न हि मन्यन्ते प्रपातं मधुदर्शिनः ॥ २६ ॥

मूलम्

क्रोशतो मे न शृण्वन्ति बालाः पण्डितमानिनः।
विषमं न हि मन्यन्ते प्रपातं मधुदर्शिनः ॥ २६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मैं चीखता-चिल्लाता रह जाता हूँ, परंतु अपनेको पण्डित समझनेवाले ये मूर्ख पुत्र मेरी बात नहीं सुनते हैं। ये केवल वृक्षकी ऊँची शाखामें लगे हुए शहदको देखते हैं, वहाँसे गिरनेका जो भयानक खटका है, उसकी ओर इनका ध्यान नहीं है॥२६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संयुगं ये गमिष्यन्ति नररूपेण मृत्युना।
नियतं चोदिता धात्रा सिंहेनेव महामृगाः ॥ २७ ॥

मूलम्

संयुगं ये गमिष्यन्ति नररूपेण मृत्युना।
नियतं चोदिता धात्रा सिंहेनेव महामृगाः ॥ २७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे महान् मृग सिंहसे भिड़ जायँ, उसी प्रकार जो लोग उस मनुष्यरूपी यमराजके साथ लड़नेके लिये युद्धभूमिमें उतरेंगे, उन्हें विधाताने ही मृत्युके लिये प्रेरित करके भेजा है, ऐसा मानना चाहिये॥२७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शैक्यां तात चतुष्किष्कुं षडस्रिममितौजसम्।
प्रहितां दुःखसंस्पर्शां कथं शक्ष्यन्ति मे सुताः ॥ २८ ॥

मूलम्

शैक्यां तात चतुष्किष्कुं षडस्रिममितौजसम्।
प्रहितां दुःखसंस्पर्शां कथं शक्ष्यन्ति मे सुताः ॥ २८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तात संजय! भीमसेनकी गदा छींकेपर रखनेयोग्य, चार हाथ लंबी और छः कोणोंसे विभूषित है। उस अत्यन्त तेजस्विनी गदाका स्पर्श भी दुःखदायक है। जब भीम उसे मेरे पुत्रोंपर चलायेगा, तब वे उसका आघात कैसे सह सकेंगे?॥२८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गदां भ्रामयतस्तस्य भिन्दतो हस्तिमस्तकान्।
सृक्किणी लेलिहानस्य बाष्पमुत्सृजतो मुहुः ॥ २९ ॥
उद्दिश्य नागान् पततः कुर्वतो भैरवान् रवान्।
प्रतीपं पततो मत्तान् कुञ्जरान् प्रतिगर्जतः ॥ ३० ॥
विगाह्य रथमार्गेषु वरानुद्दिश्य निघ्नतः।
अग्नेः प्रज्वलितस्येव अपि मुच्येत मे प्रजा ॥ ३१ ॥

मूलम्

गदां भ्रामयतस्तस्य भिन्दतो हस्तिमस्तकान्।
सृक्किणी लेलिहानस्य बाष्पमुत्सृजतो मुहुः ॥ २९ ॥
उद्दिश्य नागान् पततः कुर्वतो भैरवान् रवान्।
प्रतीपं पततो मत्तान् कुञ्जरान् प्रतिगर्जतः ॥ ३० ॥
विगाह्य रथमार्गेषु वरानुद्दिश्य निघ्नतः।
अग्नेः प्रज्वलितस्येव अपि मुच्येत मे प्रजा ॥ ३१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीमसेन जब क्रोधजनित आँसू बहाता और बारंबार अपने ओष्ठप्रान्तको चाटता हुआ गदा घुमा-घुमाकर हाथियोंके मस्तक विदीर्ण करने लगेगा, सामने भयंकर गर्जना करनेवाले गजराजोंको लक्ष्य करके उनकी ओर दौड़ेगा, प्रतिकूल दिशाकी ओर भागनेवाले मदोन्मत्त हाथियोंकी गर्जनाके उत्तरमें स्वयं भी सिंहनाद करेगा और मेरे रथियोंकी सेनाओंमें घुसकर श्रेष्ठ वीरोंको चुन-चुनकर मारने लगेगा, उस समय अग्निके समान प्रज्वलित होनेवाले भीमके हाथसे मेरे पुत्र कैसे जीवित बचेंगे?॥२९—३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वीथीं कुर्वन् महाबाहुर्द्रावयन् मम वाहिनीम्।
नृत्यन्निव गदापाणिर्युगान्तं दर्शयिष्यति ॥ ३२ ॥

मूलम्

वीथीं कुर्वन् महाबाहुर्द्रावयन् मम वाहिनीम्।
नृत्यन्निव गदापाणिर्युगान्तं दर्शयिष्यति ॥ ३२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाबाहु भीम मेरी सेनामें घुसकर अपने रथके लिये रास्ता बनाता, मेरी विशाल वाहिनीको खदेड़ता और हाथमें गदा लिये नृत्य-सा करता हुआ जब आगे बढ़ेगा, तब प्रलयकालका दृश्य उपस्थित कर देगा॥३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रभिन्न इव मातङ्गः प्रभञ्जन् पुष्पितान् द्रुमान्।
प्रवेक्ष्यति रणे सेनां पुत्राणां मे वृकोदरः ॥ ३३ ॥

मूलम्

प्रभिन्न इव मातङ्गः प्रभञ्जन् पुष्पितान् द्रुमान्।
प्रवेक्ष्यति रणे सेनां पुत्राणां मे वृकोदरः ॥ ३३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे मदकी धारा बहानेवाला मतवाला हाथी फूले हुए वृक्षोंको तोड़ता हुआ आगे बढ़ता है, उसी प्रकार भीमसेन समरभूमिमें मेरे पुत्रोंकी सेनाके भीतर प्रवेश करेगा॥३३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुर्वन् रथान् विपुरुषान् विसारथिहयध्वजान्।
आरुजन् पुरुषव्याघ्रो रथिनः सादिनस्तथा ॥ ३४ ॥
गङ्गावेग इवानूपांस्तीरजान् विविधान् द्रुमान्।
प्रभङ्क्ष्यति रणे सेनां पुत्राणां मम संजय ॥ ३५ ॥

मूलम्

कुर्वन् रथान् विपुरुषान् विसारथिहयध्वजान्।
आरुजन् पुरुषव्याघ्रो रथिनः सादिनस्तथा ॥ ३४ ॥
गङ्गावेग इवानूपांस्तीरजान् विविधान् द्रुमान्।
प्रभङ्क्ष्यति रणे सेनां पुत्राणां मम संजय ॥ ३५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! वह पुरुषसिंह भीम रथोंको रथी, सारथि, अश्व तथा ध्वजाओंसे शून्य कर देगा एवं रथियों और घुड़सवारोंके अंग-भंग कर डालेगा। जैसे गंगाजीका बढ़ता हुआ वेग जलमय प्रदेशमें स्थित हुए नाना प्रकारके तटवर्ती वृक्षोंको गिराकर नष्ट कर देता है, उसी प्रकार भीम युद्धभूमिमें आकर मेरे पुत्रोंकी सेनाका संहार कर डालेगा॥३४-३५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दिशो नूनं गमिष्यन्ति भीमसेनभयार्दिताः।
मम पुत्राश्च भृत्याश्च राजानश्चैव संजय ॥ ३६ ॥

मूलम्

दिशो नूनं गमिष्यन्ति भीमसेनभयार्दिताः।
मम पुत्राश्च भृत्याश्च राजानश्चैव संजय ॥ ३६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! निश्चय ही भीमसेनके भयसे पीड़ित हो मेरे पुत्र, सेवक तथा सहायक नरेश विभिन्न दिशाओंमें भाग जायँगे॥३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

येन राजा महावीर्यः प्रविश्यान्तःपुरं पुरा।
वासुदेवसहायेन जरासंधो निपातितः ॥ ३७ ॥
कृत्स्नेयं पृथिवी देवी जरासंधेन धीमता।
मागधेन्द्रेण बलिना वशे कृत्वा प्रतापिता ॥ ३८ ॥

मूलम्

येन राजा महावीर्यः प्रविश्यान्तःपुरं पुरा।
वासुदेवसहायेन जरासंधो निपातितः ॥ ३७ ॥
कृत्स्नेयं पृथिवी देवी जरासंधेन धीमता।
मागधेन्द्रेण बलिना वशे कृत्वा प्रतापिता ॥ ३८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परम बुद्धिमान् और बलवान् महाबली मगधराज जरासंधने यह सारी पृथिवी अपने वशमें करके इसे पीड़ा देना प्रारम्भ किया था, परंतु भीमसेनने भगवान् श्रीकृष्णके साथ उसके अन्तःपुरमें जाकर उस महापराक्रमी नरेशको मार गिराया॥३७-३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीष्मप्रतापात् कुरवो नयेनान्धकवृष्णयः ।
यन्न तस्य वशे जग्मुः केवलं दैवमेव तत् ॥ ३९ ॥

मूलम्

भीष्मप्रतापात् कुरवो नयेनान्धकवृष्णयः ।
यन्न तस्य वशे जग्मुः केवलं दैवमेव तत् ॥ ३९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

भीष्मजीके प्रतापसे कुरुवंशी और नीतिबलसे अंधक-वृष्णिवंशके लोग जो जरासंधके वशमें नहीं पड़े, वह केवल दैवयोग था॥३९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स गत्वा पाण्डुपुत्रेण तरसा बाहुशालिना।
अनायुधेन वीरेण निहतः किं ततोऽधिकम् ॥ ४० ॥

मूलम्

स गत्वा पाण्डुपुत्रेण तरसा बाहुशालिना।
अनायुधेन वीरेण निहतः किं ततोऽधिकम् ॥ ४० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

परंतु अपनी भुजाओंसे सुशोभित होनेवाले वीर पाण्डुपुत्र भीमने वेगपूर्वक वहाँ जाकर बिना किसी अस्त्र-शस्त्रके ही उस जरासंधको यमलोक पहुँचा दिया, इससे बढ़कर पराक्रम और क्या होगा?॥४०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दीर्घकालसमासक्तं विषमाशीविषो यथा ।
स मोक्ष्यति रणे तेजः पुत्रेषु मम संजय ॥ ४१ ॥

मूलम्

दीर्घकालसमासक्तं विषमाशीविषो यथा ।
स मोक्ष्यति रणे तेजः पुत्रेषु मम संजय ॥ ४१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! जैसे विषधर सर्प बहुत दिनोंसे संचित किये हुए विषको किसीपर उगलता है, उसी प्रकार भीमसेन भी दीर्घकालसे संचित अपने तेजको रणभूमिमें मेरे पुत्रोंपर छोड़ेगा॥४१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

महेन्द्र इव वज्रेण दानवान् देवसत्तमः।
भीमसेनो गदापाणिः सूदयिष्यति मे सुतान् ॥ ४२ ॥

मूलम्

महेन्द्र इव वज्रेण दानवान् देवसत्तमः।
भीमसेनो गदापाणिः सूदयिष्यति मे सुतान् ॥ ४२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे देवश्रेष्ठ इन्द्र वज्रसे दानवोंका संहार करते हैं, उसी प्रकार हाथमें गदा लिये भीमसेन मेरे पुत्रोंका संहार कर डालेगा॥४२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अविषह्यमनावार्यं तीव्रवेगपराक्रमम् ।
पश्यामीवातिताम्राक्षमापतन्तं वृकोदरम् ॥ ४३ ॥

मूलम्

अविषह्यमनावार्यं तीव्रवेगपराक्रमम् ।
पश्यामीवातिताम्राक्षमापतन्तं वृकोदरम् ॥ ४३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उसका आक्रमण दुःसह है। उसकी गतिको कोई रोक नहीं सकता। उसका वेग और पराक्रम तीव्र है। मैं प्रत्यक्ष देख-सा रहा हूँ कि वह भीम क्रोधसे अत्यन्त लाल आँखें किये इधर ही दौड़ा आ रहा है॥४३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अगदस्याप्यधनुषो विरथस्य विवर्मणः ।
बाहुभ्यां युद्ध्यमानस्य कस्तिष्ठेदग्रतः पुमान् ॥ ४४ ॥

मूलम्

अगदस्याप्यधनुषो विरथस्य विवर्मणः ।
बाहुभ्यां युद्ध्यमानस्य कस्तिष्ठेदग्रतः पुमान् ॥ ४४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

यदि वह गदा, धनुष, रथ और कवचको छोड़कर केवल दोनों भुजाओंसे युद्ध करे तो भी उसके सामने कौन पुरुष ठहर सकता है?॥४४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भीष्मो द्रोणश्च विप्रोऽयं कृपः शारद्वतस्तथा।
जानन्त्येते यथैवाहं वीर्यज्ञस्तस्य धीमतः ॥ ४५ ॥

मूलम्

भीष्मो द्रोणश्च विप्रोऽयं कृपः शारद्वतस्तथा।
जानन्त्येते यथैवाहं वीर्यज्ञस्तस्य धीमतः ॥ ४५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस बुद्धिमान् भीमके बल और पराक्रमको जैसे मैं जानता हूँ, उसी प्रकार ये भीष्म, विप्रवर द्रोणाचार्य तथा शरद्वान्‌के पुत्र कृप भी जानते हैं॥४५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आर्यव्रतं तु जानन्तः संगरान्तं विधित्सवः।
सेनामुखेषु स्थास्यन्ति मामकानां नरर्षभाः ॥ ४६ ॥

मूलम्

आर्यव्रतं तु जानन्तः संगरान्तं विधित्सवः।
सेनामुखेषु स्थास्यन्ति मामकानां नरर्षभाः ॥ ४६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तथापि ये नरश्रेष्ठ शिष्ट पुरुषोंके व्रतको जानते हैं, इसलिये युद्धमें प्राणत्याग करनेकी इच्छासे मेरे पुत्रोंकी सेनाके अग्रभागमें डटे रहेंगे॥४६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बलीयः सर्वतो दिष्टं पुरुषस्य विशेषतः।
पश्यन्नपि जयं तेषां न नियच्छामि यत् सुतान् ॥ ४७ ॥

मूलम्

बलीयः सर्वतो दिष्टं पुरुषस्य विशेषतः।
पश्यन्नपि जयं तेषां न नियच्छामि यत् सुतान् ॥ ४७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

पुरुषका भाग्य ही सबसे विशेष प्रबल है, क्योंकि मैं पाण्डवोंकी विजय समझकर भी अपने पुत्रोंको रोक नहीं पाता हूँ॥४७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ते पुराणं महेष्वासा मार्गमैन्द्रं समास्थिताः।
त्यक्ष्यन्ति तुमुले प्राणान् रक्षन्तः पार्थिवं यशः ॥ ४८ ॥

मूलम्

ते पुराणं महेष्वासा मार्गमैन्द्रं समास्थिताः।
त्यक्ष्यन्ति तुमुले प्राणान् रक्षन्तः पार्थिवं यशः ॥ ४८ ॥

सूचना (हिन्दी)

धृतराष्ट्रकी सभामें संजय पाण्डवोंका सन्देश सुना रहे हैं

अनुवाद (हिन्दी)

वे महाधनुर्धर भीष्म आदि पुरातन स्वर्गीय मार्गका आश्रय ले पार्थिव यशकी रक्षा करते हुए घमासान युद्धमें अपने प्राण त्याग देंगे॥४८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथैषां मामकास्तात तथैषां पाण्डवा अपि।
पौत्रा भीष्मस्य शिष्याश्च द्रोणस्य च कृपस्य च ॥ ४९ ॥

मूलम्

यथैषां मामकास्तात तथैषां पाण्डवा अपि।
पौत्रा भीष्मस्य शिष्याश्च द्रोणस्य च कृपस्य च ॥ ४९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तात! इनके लिये जैसे मेरे पुत्र हैं, वैसे ही पाण्डव भी हैं। दोनों ही भीष्मके पौत्र तथा द्रोण और कृपके शिष्य हैं॥४९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यदस्मदाश्रयं किंचिद् दत्तमिष्टं च संजय।
तस्यापचितिमार्यत्वात् कर्तारः स्थविरास्त्रयः ॥ ५० ॥

मूलम्

यदस्मदाश्रयं किंचिद् दत्तमिष्टं च संजय।
तस्यापचितिमार्यत्वात् कर्तारः स्थविरास्त्रयः ॥ ५० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! भीष्म, द्रोण और कृपाचार्य—ये तीनों वृद्ध श्रेष्ठ पुरुष हैं; अतः हमारे आश्रयमें रहकर इन्होंने जो कुछ भी दान-यज्ञ आदि किया है, ये उसका बदला चुकायेंगे (युद्धमें दुर्योधनका ही साथ देंगे)॥५०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आददानस्य शस्त्रं हि क्षत्रधर्मं परीप्सतः।
निधनं क्षत्रियस्याजौ वरमेवाहुरुत्तमम् ॥ ५१ ॥

मूलम्

आददानस्य शस्त्रं हि क्षत्रधर्मं परीप्सतः।
निधनं क्षत्रियस्याजौ वरमेवाहुरुत्तमम् ॥ ५१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो अस्त्र-शस्त्र धारण करके क्षात्रधर्मकी रक्षा करना चाहता है, उस क्षत्रियके लिये संग्राममें होनेवाली मृत्युको ही श्रेष्ठ एवं उत्तम माना गया है॥५१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स वै शोचामि सर्वान् वै ये युयुत्सन्ति पाण्डवैः।
विक्रुष्टं विदुरेणादौ तदेतद् भयमागतम् ॥ ५२ ॥

मूलम्

स वै शोचामि सर्वान् वै ये युयुत्सन्ति पाण्डवैः।
विक्रुष्टं विदुरेणादौ तदेतद् भयमागतम् ॥ ५२ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो लोग पाण्डवोंसे युद्ध करना चाहते हैं, उन सबके लिये मुझे बड़ा शोक हो रहा है। विदुरने पहले ही उच्चस्वरसे जिसकी घोषणा की थी, वही यह भय आज आ पहुँचा है॥५२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न तु मन्ये विघाताय ज्ञानं दुःखस्य संजय।
भवत्यतिबलं ह्येतज्ज्ञानस्याप्युपघातकम् ॥ ५३ ॥

मूलम्

न तु मन्ये विघाताय ज्ञानं दुःखस्य संजय।
भवत्यतिबलं ह्येतज्ज्ञानस्याप्युपघातकम् ॥ ५३ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! मुझे तो ऐसा मालूम होता है कि ज्ञान दुःखका नाश नहीं कर सकता, अपितु प्रबल दुःख ही ज्ञानका भी नाश करनेवाला बन जाता है॥५३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ऋषयो ह्यपि निर्मुक्ताः पश्यन्तो लोकसंग्रहान्।
सुखैर्भवन्ति सुखिनस्तथा दुःखेन दुःखिताः ॥ ५४ ॥

मूलम्

ऋषयो ह्यपि निर्मुक्ताः पश्यन्तो लोकसंग्रहान्।
सुखैर्भवन्ति सुखिनस्तथा दुःखेन दुःखिताः ॥ ५४ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जीवन्मुक्त महर्षि भी लोकव्यवहारकी ओर दृष्टि रखकर सुखके साधनोंसे सुखी और दुःखसे दुःखी होते हैं॥५४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

किं पुनर्मोहमासक्तस्तत्र तत्र सहस्रधा।
पुत्रेषु राज्यदारेषु पौत्रेष्वपि च बन्धुषु ॥ ५५ ॥

मूलम्

किं पुनर्मोहमासक्तस्तत्र तत्र सहस्रधा।
पुत्रेषु राज्यदारेषु पौत्रेष्वपि च बन्धुषु ॥ ५५ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर जो पुत्र, राज्य, पत्नी, पौत्र तथा बन्धु-बान्धवोंमें जहाँ-तहाँ सहस्रों प्रकारसे मोहवश आसक्त हो रहा है, उसकी तो बात ही क्या है?॥५५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संशये तु महत्यस्मिन् किं नु मे क्षममुत्तरम्।
विनाशं ह्येव पश्यामि कुरूणामनुचिन्तयन् ॥ ५६ ॥

मूलम्

संशये तु महत्यस्मिन् किं नु मे क्षममुत्तरम्।
विनाशं ह्येव पश्यामि कुरूणामनुचिन्तयन् ॥ ५६ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस महान् संकटके विषयमें मैं क्या उचित प्रतीकार कर सकता हूँ? मुझे तो बार-बार विचार करनेपर कौरवोंका विनाश ही दिखायी पड़ता है॥५६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

द्यूतप्रमुखमाभाति कुरूणां व्यसनं महत्।
मन्देनैश्वर्यकामेन लोभात् पापमिदं कृतम् ॥ ५७ ॥

मूलम्

द्यूतप्रमुखमाभाति कुरूणां व्यसनं महत्।
मन्देनैश्वर्यकामेन लोभात् पापमिदं कृतम् ॥ ५७ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

द्यूतक्रीड़ा आदिकी घटनाएँ ही कौरवोंपर भारी विपत्ति लानेका कारण प्रतीत होती हैं। ऐश्वर्यकी इच्छा रखनेवाले मूर्ख दुर्योधनने लोभवश यह पाप किया है॥५७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मन्ये पर्यायधर्मोऽयं कालस्यात्यन्तगामिनः ।
चक्रे प्रधिरिवासक्तो नास्य शक्यं पलायितुम् ॥ ५८ ॥

मूलम्

मन्ये पर्यायधर्मोऽयं कालस्यात्यन्तगामिनः ।
चक्रे प्रधिरिवासक्तो नास्य शक्यं पलायितुम् ॥ ५८ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

मैं समझता हूँ कि अत्यन्त तीव्र गतिसे चलनेवाले कालका ही यह क्रमशः प्राप्त होनेवाला नियम है। इस कालचक्रमें उसकी नेमिके समान मैं जुड़ा हुआ हूँ, अतः मेरे लिये इससे दूर भागना सम्भव नहीं है॥५८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

किंनु कुर्यां कथं कुर्यां क्व नु गच्छामि संजय।
एते नश्यन्ति कुरवो मन्दाः कालवशं गताः ॥ ५९ ॥

मूलम्

किंनु कुर्यां कथं कुर्यां क्व नु गच्छामि संजय।
एते नश्यन्ति कुरवो मन्दाः कालवशं गताः ॥ ५९ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

संजय! क्या करूँ, कैसे करूँ और कहाँ चला जाऊँ? ये मूर्ख कौरव कालके वशीभूत होकर नष्ट होना चाहते हैं॥५९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अवशोऽहं तदा तात पुत्राणां निहते शते।
श्रोष्यामि निनदं स्त्रीणां कथं मां मरणं स्पृशेत् ॥ ६० ॥

मूलम्

अवशोऽहं तदा तात पुत्राणां निहते शते।
श्रोष्यामि निनदं स्त्रीणां कथं मां मरणं स्पृशेत् ॥ ६० ॥

अनुवाद (हिन्दी)

तात! मेरे सौ पुत्र यदि युद्धमें मारे गये, तब विवश होकर मैं इनकी अनाथ स्त्रियोंका करुण क्रन्दन सुनूँगा। हाय! मेरी मृत्यु किस प्रकार हो सकती है?॥६०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यथा निदाघे ज्वलनः समिद्धो
दहेत् कक्षं वायुना चोद्यमानः।
गदाहस्तः पाण्डवो वै तथैव
हन्ता मदीयान् सहितोऽर्जुनेन ॥ ६१ ॥

मूलम्

यथा निदाघे ज्वलनः समिद्धो
दहेत् कक्षं वायुना चोद्यमानः।
गदाहस्तः पाण्डवो वै तथैव
हन्ता मदीयान् सहितोऽर्जुनेन ॥ ६१ ॥

अनुवाद (हिन्दी)

जैसे गर्मीमें प्रज्वलित हुई अग्नि हवाका सहारा पाकर घास-फूस एवं जंगलको भी जलाकर भस्म कर देती है, उसी प्रकार अर्जुनसहित पाण्डुनन्दन भीम गदा हाथमें लेकर मेरे सब पुत्रोंको मार डालेगा॥६१॥

मूलम् (समाप्तिः)

इति श्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि यानसंधिपर्वणि धृतराष्ट्रवाक्ये एकपञ्चाशत्तमोऽध्यायः ॥ ५१ ॥

मूलम् (वचनम्)

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्तर्गत यानसंधिपवमें धृतराष्ट्रवाक्यविषयक इक्यावनवाँ अध्याय पूरा हुआ॥५१॥